Thriller कत्ल की पहेली

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Masoom
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Re: Thriller कत्ल की पहेली

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“उस टयोटा की बाबत जिसका मैंने तुमसे जिक्र किया था । वाइट टयोटा । एक्सीलेंट कंडीशन । वैरी लो माइलेज । ओनर ड्रिवन । ऐज, गुड ऐज न्यू । लॉट आफ असेसिरीज । कीमत सिर्फ छ: लाख रुपये ।”
“छ... छ: लाख !”
“मालिक पौने सात मांगता था । अख्तर ने बड़ी मुश्क‍िल से छ: पर पटाया है ।”
“लेकिन छ:...”
“मैं कुछ नहीं जानता । मुझे ले के दो ।” - कौशल ने यूं मुंह बिसूरा जैसे कोई बच्चा किसी पसन्दीदा खिलौने के लिये मचल रहा हो ।
“अच्छी बात है ।”
“ओह डार्लिंग” - कौशल उछलकर कुर्सी से उठा और बांहें फैलाया उसकी तरफ बढा - “यू आर ग्रेट । आई लव यू । आई...”
“खबरदार ! वहीं बैठे रहो ।”
कौशल के जोश को ब्रेक लगी ।
“ये ऑफिस है । मालूम !”
“ओह !”
“सुनो । मैं चाहती हूं कि तुम अभी भी अपने फैसले के बारे में फिर से सोच लो । तुम जानते हो कि मौजूदा हालात में हम वो कार अफोर्ड नहीं कर सकते ।”
“यानी कि तुम मुझे अफोर्ड नहीं कर सकतीं !”
“वो बात नहीं लेकिन वो क्या है कि...”
“क्या है ?”
“कुछ नहीं ।”
“डार्लिंग, मुझे पूरा यकीन है कि तुम मुझे मायूस नहीं करोगी । नहीं करोगी न !”
“यानी कि अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं हो ?”
“मेरी जिद की क्या कीमत है !” - वो यूं बोला जैसे अभी रो देने लगा हो - “लेकिन तुम इनकार करोगी तो मेरी जिद तो अपने आप ही छूट जायेगी । लेकिन फिर मेरा तुम्हें चान्दनी, रात में चान्दनी जैसे सफेद टयोटा पर आगरा घुमाकर लाने का सपना भी टूट जायेगा और फिर...”
“ओके । ओके । मैं करती हूं कोई इन्तजाम ।”
“आज ही ?”
“हां, भाई । आज ही ।”
“बढिया । फिर तो मैं कल सुबह सवेरे ही आगरे के लिए रवाना हो जाऊंगा और फिर हमारी सफेद टयोटा पर मैं सीधा गोवा तुम्हारे पास पहुचूंगा और आगरे के ही रास्ते - आई रिपीट, आगरे के ही रास्ते - शाहजहां और मुमताज महल को विशी-विशी करते तुम्हें वापिस लेकर आऊंगा । हमारी सफेद टयोटा पर । नो ?”
“यस ।” - ज्योति उत्साहहीन स्वर में बोली ।
“डार्लिंग, आई लव यू । आई अडोर यू । आई वरशिप दि ग्राउन्ड यू वाक आन ।”
***
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बैंगलोर एयरपोर्ट के वेटिंग लाउन्ज के एक कोने में भुनभुनाती-सी शशिबाला बैठी थी और बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रही थी । उसकी बगल में एक ठिगना-सा, लम्बे बालों वाला और बड़े-बड़े शीशों वाले चश्मे वाला, सिग्रेट के कश लगाता एक व्यक्ति बैठा था जो कि लोकेशन शूटिंग पर बम्बई से बैंगलौर आयी शशिबाला का सैक्रेट्री था ।
शशिबाला हिन्दी फिल्मों की मशहूर हीरोइन थी ।
जिस प्लेन के इन्तजार में वो बैठे थे, उसने गोवा से आना था और फिर तत्काल लौटकर गोवा जाना था । प्लेन अभी गोवा से ही नहीं आया था इसलिये जाहिर था कि उसकी रिटर्न फ्लाइट काफी लेट होने वाली थी जिसकी वजह से कि शशिबाला का मूड उखड़ा जा रहा था ।
“आ गया ।” - एकाएक सैक्रेट्री बोला ।
“कौन ?” - हीरोइन भुनभुनायी ।
“प्लेन । अब बड़ी हद आधा घण्टा और लगेगा ।”
“शुक्र है ।”
“पीछे शूटिंग का हर्जा होगा ।”
हीरोइन के गुलाब की पंखड़ियों से खूबसूरत होंठों से भद्दी गाली निकली ।
“गोवा जाना टल नहीं सकता ?”
“नहीं । पहले ही बोला । सौ बार ।”
“ये सतीश तुम्हारा कोई सगेवाला निकल आया मालूम पड़ता है ।”
“हां । बाप है मेरा । हाल ही में पता चला ।”
वो हंसा ।
“हंसो मत ।” - हीरोइन डपटकर बोली ।
सैक्रेट्री की हंसी को तत्काल ब्रेक लगी । वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “बाप है या बड़ा बाप है ?”
“बड़ा बाप ?”
“शूगर डैडी ?”
“वो कौन हुआ ?”
“वाह मेरी भोली मलिका । फिल्मों की दुनिया में बसती हो । बड़ा बाप नहीं जानतीं । शूगर डैडी नहीं जानतीं ।”
“धरम” - वो उसे घूरती हुई बोली - “तुम मेरा इम्तहान ले रहो हो !”
“ओह नो, बेबी । नैवर ।”
“तो बोलो क्या फर्क हुआ ?”
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“बाप जिन्दगी देता है । बड़ा बाप उर्फ शूगर डैडी जिन्दगी को जीने लायक बनाकर देता है । गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस, ऐशोइशरत से नवाजता है ।”
“ओह, शटअप । सतीश ऐसा आदमी नहीं । उसने मेरे पर क्या, कभी किसी भी लड़की पर नीयत मैली नहीं की । ही इज वैरी स्ट्रेट, वैरी आनरेबल, वैरी लवेबल ओल्डमैन । वो तो कोई पीर पैगम्बर है ।”
“चिकनी सूरत पर पीर-पैगम्बर का भी ईमान डोल जाता है ।”
“अरे, मैं कोई पहली चिकनी सूरत नहीं जो उसने देखी है । सतीश की तमाम बुलबुलें एक से एक बढकर खूबसूरत हैं । मेरे से तो यकीनन सब की सब ज्यादा खूबसूरत हैं ।”
“फिर भी हीरोइन सिर्फ तुम बनीं ।”
“इसमें मेरा क्या कमाल है ! सब बन सकती थीं । तुम्हीं कान्ट्रैक्ट लेकर उनके पीछे-पीछे घूमा करते थे । खास तौर से पायल पाटिल के पीछे । बाकी न मानीं, मैं मान गयी । वो मान जातीं तो वो भी बन जातीं ।”
“यानी कि तुम्हारे और उस बुलबुल बान्ड्रो के बीच में ऐसा-वैसा कुछ नहीं ?”
“नहीं । न है, न था, न कभी होगा ।”
“बेबी, वो तुम्हारा गॉडफादर नहीं, तुम्हारा शूगर डैडी नहीं, तुम्हारा शैदाई नहीं, फिर भी उसमें ऐसी क्या खूबी है जो कि टेलीग्राम के जरिये उसकी एक पुकार पर गोवा दौड़ी चली जाती हो । शूटिंग छोड़कर । हर साल !”
“तुम नहीं समझोगे ।”
“लेकिन शूटिंग...”
“मैं सोमवार तक लौट आऊंगी ।”
“तब तक प्रोड्यूसर मेरा कीमा बना देगा ।”
“कोई बात नहीं । मैं कोई दूसरा सैक्रेट्री ढूंढ लूंगी ।”
सैकेट्री ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
तत्काल हीरोइन के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“सारी ।” - वो अपने सैक्रेट्री का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाती हुई बोली - “मेरा ये मतलब नहीं था । तुम जानते हो मेरा ये मतलब नहीं था ।”
“जानता हूं ।”
“ऐसे मुंह सुजाकर मत कहो । जरा हंस के बात करो अपनी हीरोइन से ।”
“जानता हूं ।” - वो यूं मुस्कराता हुआ बोला जैसे इतने से ही निहाल हो गया हो ।
“से यू लव मी ।”
“आई लव यू ।”
“टैल मी टु हैव फन ।”
“हैव लाट्स एण्ड लाट्स ऑफ फन, हनी ।”
“दिल से कहो ।”
“दिल से ही कहा है ।”
“मैं सोमवार तक हर हाल में लौट आऊंगी ।”
“बढिया ।”
“तुम्हें सतीश से जलन तो नहीं हो रही ?”
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“ज्यादा नहीं हो रही । बस उतनी ही हो रही है जितनी किसी को गोली मार देने का इरादा कर लेने के लिए काफी होती है ।”
“ओह नो । नॉट अगेन । धरम, प्लीज । नाट अगेन ।”
“मैं मजाक कर रहा था ।”
“मजाक कर रहे थे तो ठीक है ।”
“तुम्हारी फ्लाइट की अनाउन्समैंट हो रही है ।”
“शुक्र है ।”
वो उठकर खड़ी हुई तो सैक्रेट्री भी उठा । शशिबाला इतनी लम्बी थी और पिद्दी-सा सैक्रेट्री इतना ठिगना था कि आमने-सामने खड़े होने पर वो शशिबाला की ठोड़ी तक भी नहीं पहुंचता था । शशिबाला ने झुककर उसके एक गाल पर चुम्बन अंकित किया, दूसरे गाल पर चिकोटी काटी और फिर बड़े अनुरागपूर्ण भाव से उसके कान में फुसफुसाई - “सी यू, डार्लिंग ।”
फिर वो उससे परे हटकर लाउन्ज के रन वे की तरफ खुलने वाले दरवाजे की ओर दौड़ चली ।
सैक्रेट्री उदास-सा पीछे खड़ा उसे मुसाफिरों की भीड़ में विलीन होता देखता रहा ।
***
चण्डीगढ में वहां के भीड़ भरे इलाके सैक्टर सत्तरह पर स्थ्‍िात ‘लीडो’ नामक कैब्रे जायन्ट में आधी रात को वैसी ही भीड़ थी जैसी कि वहां हमेशा होती थी । जो कैब्रे डांसर ‘लीडो’ की स्टार अट्रैक्शन थी उसका असली नाम फौजिया खान था लेकिन वो वहां प्रिंसेस शीबा के नाम से जानी जाती थी और ऐन काहिरा से आयातित बतायी जाती थी । उस घड़ी स्टेज पर उसका उस रात का आखिरी डांस चल रहा था जिसमें उसके साथ तीन पुरुष-डांसर भी डांस कर रहे थे । बैंड की ऊंची धुन पर अपने सह-नर्तकों के बीच उसका गोरा, लम्बा, भरपूर जिस्म नागिन की तरह बल खाता लग रहा था । शोर-शराबे का ये आलम था कि कितनी ही बार उसमें बैंड की आवाज भी दब जाती थी । प्रिेंसेस शीबा झूम-झूमकर नाच रही थी, दर्शक तालियां बजा रहे थे, पैरों से फर्श पर बैंड के साथ थाप दे रहे थे और जोश में आपे से बाहर हुए जा रहे थे । फौजिया के उस आखिरी डांस में उसके साथ तीन युवा नर्तकों की ये भी अहमियत थी कि वो केवल नर्तक ही नहीं थे, बड़े हट्टे-कट्टे कड़ियल जवान थे जो कि किसी दर्शक के सच में ही आपे से बाहर हो जाने की सूरत में फौजिया की हर तरह से हिफाजत कर सकते थे । यानी कि रात की उस आखिरी परफारमेंस के दौरान उनका रोल सह-नर्तकों वाला कम था और बॉडी-गार्ड्स वाला ज्यादा था । नशे में या जोश में फौजिया पर झपट पड़ने वाला कोई भी शख्स वहां हाथ-पांव तुड़ा सकता था ।
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बैंड की तेज धुन पर तेज रफ्तार डांस के दौरान फौजिया के हाथ उसकी पीठ पीछे पहुंचे और फिर उसने अपनी अंगिया उतारकर दर्शकों के बीच हवा में उछाल दी । उसके उन्नत उरोज अंगिया के बन्धन से मुक्त होते ही यूं झूमकर उछले कि दर्शकों की सांसें रुकने लगीं, आंखें फटने लगीं ।
फिर बैंड ड्रम्स के फाइनल रोल के साथ फौजिया ने कमर तक झुककर दर्शकों का अभिवादन किया और दौड़कर शनील के भारी पर्दे के पीछे पहुंच गयी । उसके सह-नर्तकों ने उसका अनुसरण किया ।
हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।
पर्दे के पीछे वस्तुत: एक ड्रैसिंग रूम था । फौजिया ने वहां से एक तौलिया उठाया और हांफती हुई जिस्म का पसीना और चेहरे का मेकअप पोंछने लगी । उसके नग्न शरीर से न केवल वो खुद बेखबर थी उसके सह-नर्तक भी बेखबर थे । आखिर वो रोज की बात थी, रोजमर्रा का नजारा था ।
“शीबोजान” - एक नर्तक बोला - “आज तो तूने कमाल कर दिया !”
“अच्छा !” - फौजिया निर्विकार भाव से बोली ।
“आज तो बाहर हाल में सैलाब आ सकता था लोगों की टपकती लार की वजह से ।”
“यू आर रीयल हॉट स्टफ, बेबी ।” - दूसरा बोला ।
“सैन्सेशनल !” - तीसरा बोला ।
फौजिया मशीनी अंदाज से मुस्कराई और फिर कपड़े पहनने लगी ।
“प्रोपराइटर कह रहा था” - पहला बोला - “कि तू कहीं जा रही है ?”
“हां ।” - फौजिया बोली - “कुछ दिनों के लिये ।”
“वो तो होगा ही ।” - दूसरा बोला - “हमेशा के लिये क्या हम तुझे कहीं जाने देंगे ?”
“ऐसा करेगी भी” - तीसरा बोला - “तो हम भी तेरे साथ चलेंगे ।”
“कहां ?” - फौजिया विनोदपूर्ण स्वर में बोली ।
“जहां कहीं भी तू जायेगी ।”
“वैसे तू जा कहां रही है ?” - पहला उत्सुक भाव से बोला ।
“गोवा ।”
“क्यों जा रही है ?”
“वहां एक पार्टी है जिसमें मैं भी इनवाइटिड हूं ।”
“कोई खास ही पार्टी होगी !”
“हां । खास ही है ।”
“मेजबान भी खास ही होगा !”
“हां । बुलबुल सतीश । नाम सुना होगा ।”
“नहीं । कभी नहीं सुना ।”
“नैवर माइन्ड ।”
“कब जा रही है ?” - दूसरा बोला ।
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