वारिस (थ्रिलर)
Chapter 1
कोकोनट ग्रोव गणपतिपुले के समुद्रतट पर स्थित एक हॉलीडे रिजॉर्ट था जिसे कि उस प्रकार के कारोबार के स्थापित मानकों के लिहाज से मामूली ही कहा जा सकता था लेकिन क्योंकि वो मुम्बई से कोई पौने चार सौ किलोमीटर दूर एक कदरन शान्त, छोटे लेकिन ऐतिहासिक महत्व के इलाके में था और आसपास वैसा हॉलीडे रिजॉर्ट या रत्नागिरि में था या फिर जयगढ में था । इसलिये उसके मौजूदा मुकाम पर मामूली होते हुए भी उसकी अहमियत थी । वो हॉलीडे रिजॉर्ट ऐन समुद्रतट पर अर्धवृत्त में बने कॉटेजों का एक समूह था जहां आसपास मौजूद शिवाजी महाराज के वक्त के बने कई किलों को देखने वाले सैलानी तो आते ही थे, मुम्बई की अतिव्यस्त और तेज रफ्तार जिन्दगी से उकताये और उससे निजात पाने के ततन्नाई लोग भी आते थे जिसकी वजह से वो डेढ दर्जन कॉटेजों वाला हॉलीडे रिजॉर्ट अमूमन फुल रहता था । उसके सड़क की ओर वाले रुख पर एक वैकेन्सी/नो वैकेन्सी वाला निओन साइन बोर्ड लगा हुआ था जिसका अमूमन ‘नो वैकेन्सी’ वाला हिस्सा ही रोशन दिखाई देता था ।
उस रिजॉर्ट के मालिक का नाम बालाजी देवसरे था जिसकी पचपन साला जिन्दगी की हालिया केस हिस्ट्री ऐसी थी कि उसके सालीसिटर्स की राय में मुम्बई से इतनी दूर वैसी जगह पर उसे तनहा नहीं छोड़ा जा सकता था क्योंकि वो अपनी इकलौती बेटी सुनन्दा की दुर्घटनावश हुई मौत के बाद से दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुका था । सालीसिटर्स की फर्म का नाम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स था, जिसके ‘एण्ड एसोसियेट्स’ वाले हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाला युवा, ट्रेनी, वकीलों में से एक मुकेश माथुर था जिसको फर्म के सीनियर पार्टनर नकुल बिहारी आनन्द उर्फ बड़े आनन्द साहब की हिदायत थी - हिदायत क्या थी, नादिरशाही हुक्म था - कि वो उनके आत्मघाती प्रवृति वाले क्लायन्ट को कभी अकेला न छोड़े और इस हिदायत पर मुकम्मल अमल के लिये उसका भी क्लायन्ट के साथ हॉलीडे रिजॉर्ट में रहना जरूरी था ।
आम हालात में मुकेश माथुर उसे कोई बुरी पेशकश न मानता जिसमें कि नौकरी की कम और तफरीह की ज्यादा गुंजाइश थी लेकिन हालात उसके लिये आम इसलिये नहीं थे क्योंकि छ: महीने पहले उसने मोहिनी माथुर उर्फ टीना टर्नर नाम की एक परीचेहरा हसीना से शादी की थी जो कि कभी ब्रांडो की बुलबुलों में से एक थी और जिससे उसकी मुलाकात अपनी पिछली असाइनमेंट के दौरान गोवा में पणजी से पचास किलोमीर्टर दूर स्थित फिगारो आइलैंड पर हुई थी जहां कि बुलबुल ब्रांडो नामक धनकुबेर का आलीशान मैंशन था और जहां कि सालाना रीयूनियन ग्रैंड पार्टी के सिलसिले में उसकी कई बुलबलें इकट्ठी हुई थीं और जिस पार्टी का समापन दो बुलबुलों के कत्ल से हुआ था । अब उसकी बीवी पांच मास से गर्भवती थी और मुम्बई में उसकी मां के हवाले थी । मुकेश माथुर का खयाल था कि ऐसे वक्त पर उसे मुम्बई में अपनी बीवी के करीब होना चाहिए था - या बीवी को भी वहां उसके साथ होना चाहिये था - लेकिन उसके हिटलर बॉस बड़े आनन्द साहब के हुक्म के तहत दोनों ही बातें नामुमकिन थीं लिहाजा नवविवाहिता बीवी के वियोग का सताया भावी पिता युवा एडवोकेट मुकेश माथुर उस शान्त रिजॉर्ट और खूबसूरत समुद्रतट का वो आनन्द नहीं उठा पा रहा था जो कि हालात आम होते तो वो यकीशनन उठाता ।\
मुकेश माथुर के पिता भी एडवोकेट थे और अपनी जिन्दगी में आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स से ही सम्बद्ध थे । वस्तुत: साढे तीन साल पहले उनकी मौत के बाद उन्हीं की जगह उसे दी गयी थी जबकि, बकौल बड़े आनन्द साहब, अपने पिता के मुकाबले में वो अभी एक चौथाई वकील भी नहीं बन पाया था, अभी वकीलों की उस महान फर्म में उसका ट्रैक रिकार्ड बस ‘ऐवरेज’ था ।
विनोद पाटिल वो शख्स था जो तीन जुलाई की शाम को वहां पहुंचा था और उसने आकर उस शान्त हॉलीडे रिजॉर्ट के ठहरे पानी में जैसे पत्थर फेंका था । वो कोई तीस साल का लम्बा ऊंचा, गोरा चिट्टा युवक था जो कि डेनिम की एक घिसी हुई जींस और काले रंग की चैक की कमीज पहने वहां पहुंचा था । सुनन्दा की जिन्दगी में वो उसका पति था - यानी कि रिजॉर्ट के मालिक बालाजी देवसरे का दामाद था - और वो ही सुनन्दा की असामयिक मौत की वजह बना था । मुम्बई में एक कार एक्सीडेंट को उसने यूं अंजाम दिया था कि एक्सीडेंट में खुद उसको तो मामूली खरोंचें ही आयी थीं जो कि चार दिन में ठीक हो गयी थीं लेकिन सुनन्दा की जिसमें ठौर मौत हो गयी थी । अपनी इकलौती बेटी की मौत ने बालाजी देवसरे को ऐसा झकझोरा था कि दो बार वो आत्महत्या की नाकाम कोशिश कर चुका था और अभी तीसरी बार फिर कर सकता था इसलिये अब मुकेश माथुर उसका बड़े आनन्द साहब की इस सख्त हिदायत के साथ जोड़ीदार बना हुआ था कि देवसरे आत्महत्या की कोई नयी कोशिश हरगिज न करने पाये ।