Romance जलन

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jay
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Re: Romance जलन

Post by jay »

Superb............

😖

(^@@^-1rs2) 😘
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

“मैं सबूत भी दे सकता हूं हुजूर।"

“सबूत? तुम सबूत भी दे सकते हो। और उसके खिलाफ जो दीन-दुनिया के मालिक सुलतान काशगर के दिल की रानी है- उसकी करतूतों को तुम साबित कर सकते हो? या खुदा। कहने वाली जबान गल क्यों नहीं गईं? सुनने वाले के कान बहरे क्यों नहीं हो गए?" सुलतान का सिर एक ओर लटक गया। शायद उन्हें गश आ गया था?

"जहांपनाह !"

"मैं!... सुलतान की तबीयत धीर-धीरे ठीक हो गई, "मैं सबूत चाहता हूं। चलो, मैं मल्काए-आलम तक चलता है। वहां अगर तुम्हारी बातों का पूरा सबूत न मिला तो मेरी तलवार तुम्हारा सिर तराश लेगी!" -सुलतान ने अपनी तलवार कमर से लटकाते हुए कहा।

“हुजूर किस रास्ते से चलेंगे!"

"छिपे रास्ते से तुम मेरे पीछे-पीछे आओ..." कहते हुए सुलतान ने पास ही लगी हुई चांदी की एक मूठ धीरे से घुमा दी।

मूठ घुमाते ही दीवाल में थोड-सा कंपन्न हुआ और एक मनुष्य के जाने योग्य दरार हो गईं। सुलतान और वीर क्रमश: उस दरार में घुस गए। उनके भीतर प्रवेश करते ही वह दीवार पुन: आपस में जा मिली और वह स्थान पूर्ववत् बिल्कुल साफ दिखाई देने लगा।

वह हृदयग्राही विशाल उद्यान है जिसमें रंग-बिरंगे फूल खिलकर हवा में अपनी सुगंध फैला रहे हैं। स्थान-स्थान पर संगमरमर के फव्वारे से बने हुए हैं, जिससे इस आधी रात के समय भी पानी की फुवारें उठा रही है।

चंद्रमा की जोत्सना में उद्यान की शोभा दर्शनीय है। उद्यान के मध्य भाग में एक छोटा-सा महल बना हुआ है। छोटा होने पर भी महल की निर्माण-कला अद्वितीय है। सुंदर गुमटियां बनी हुई हैं। गुमटियां चतुर्दिक लताओं द्वारा आच्छादित हैं। लताओं के घनीभूत होने के कारण यहां कोई सहज ही अपने आपको छिपा सकता है।

वजीर और सुलतान ने उसी स्थान से सब कुछ देखने का निश्चय किया।

"गौर से देखिए हुजूर। वह दोनों है, मल्काए-आलम और वह गुलाम।” वजीर ने सुलतान के कान के पास मुह सटाकर कहा।।

सुलतान लताओं को हटाकर इधर-उधर देखने लगे, "मुझे तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता।" उन्होंने थोडी देर के बाद कहा।

"कुछ दिखाई नहीं पड़ता?" वजीर आश्चर्य से बोला, “या इलाही! मेरी जईफ आंखों से भी आपकी आंखें कमजोर हैं? अच्छा और नजदीक आकर देखिए।"

वजीर और सुलतान पेड की ओट लेते हुए आगे बढ । एक पेड़ के नीचे पहुंचते ही सुलतान ठिठककर खडा हो गए।

उन्होंने देखा, साफ चांदनी में, दूध में धोई रात में, अपने दिल की रानी मल्काए-आलम का कपट व्यवहार कुत्सित प्रेम-लीला।

उन्होंने देखा- जलती हुई आँखों में, धडकते हुए हृदय से और खोलते हुए खून से विश्वासघात का वह दृश्य जिसका सीमा असीम है। मल्का अपने प्रेमी के साथ स्फटिक शीला पर बैठकर प्रेमालाप में इतनी तल्लीन थीं कि उन्हें अपने अस्त-व्यस्त कपड का तनिक भी ध्यान न था। प्रेमी युवक क्षुद्र अनुचर मात्र था। इतनी बड। सल्तनत के अधिपति सुलतान को छोड कर मल्का ने क्षुद्र गुलाम के हाथ अपनी प्रतिष्ठा अपनी मर्यादा और अपने सतीत्व का सौदा किया था। विश्वासघात का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है?

स्थिर एवं प्रस्तरवत नेत्रों से सुलतान सब-कुछ देख रहे थे। क्रोध से शरीर कांप रहा था। हाथ तलवार की मूठ पर था। थोडी देर तक सुलतान उनकी क्षण-क्षण परिवर्तन होने वाले क्रियाकलापों को खड। देखते रहे। सुलतान की जगह यदि कोई और मनुष्य होता, तो कदापि इस तरह चुपचाप वह दृश्य नहीं देख सकता था। वह क्रोधवश या तो मूर्च्छित होकर गिर पडता या दोनों का सिर धड़ से अलग कर देता।

परंतु सुलतान तो सुलतान थे। साधारण मनुष्य में और उनमें बहुत अंतर था। उन्होंने सब-कुछ शान्तचित्त से देखा, फिर एकाएक घूम पड । एक दीर्घ श्वास लेकर उन्होंने कहा- “तुम्हारा सिर बच गया मेरे बुजुर्ग। वाकई तुम्हारा कहना ठीक था।"

ऊपर से सुलतान बहुत शांत और गंभीर दिख पड रहें थे, परंतु उनकी आंतरिक अवस्था अत्यंत शोचनीय थी। उनके हृदय में दारुण ज्वाला धडक रही थी। औरतों के प्रेम में छिपी हई वासनात्मक प्रवृत्ति और उनके दुर्गम चरित्र को देखकर उन्हें बडी ही ग्लानि हो रही थी।

"तुम शहजादे परवेज के महल में चले जाओ इसी वक्त, और जल्द से जल्द लेकर मेरे पास आओ। मैं महल में जा रहा हूं।" सुलतान ने कहा। वजीर शहजादे परवेज को बुलाने चला गया।

सुलतान पलंग पर आकर अन्यमनस्क भाव से पड रहे। प्रतिक्षण उठते हुए विचारों ने उनके मस्तिष्क को उद्विग्न कर दिया। लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें शांति नहीं मिल रही थी। घबराहट की अवस्था में कभी-कभी बडबड ने लगते, कभी करवटें बदलते और कभी हृदय के अंत:प्रदेश से निश्वास छोडकर, अपनी आत्मा को सांत्वना देने का असफल प्रयास करते। अब तक तीन युवतियां वहां आ चुकी थीं। उनमें से एक ने उनके चेहरे पर बदमुश्क छिडकना आरंभ किया। बदमुश्क की शीतलता ने उन्हें कुछ राहत दी। __शरबते-अनार !" सुलतान का इशारा पाकर एक बांदी ने प्याले में थोड-सी शराब डालकर सुलतान के होठों से लगा दिया। सुलतान गटागट एक ही सांस में पी गए।, फिर वह प्याला उस युवती से छीनकर उसकी छाती पर इतने जोरों से खींच के मारा कि वह बेचारी चीख उठी।

"साकी! शराब! औरत!" सुलतान की आवाज कांप रही थी। औरत! फाहशी, दगाबाज! चली जाओ, तुम सब यहां से।"

और सुलतान ने अपना सिर थाम लिया। “सुलतान की हालत एकाएक ऐसी क्यों हो गई ?" एक ने दबी जबान से पूछा।

"जरूर कोई नई बात हुई है। दूसरी ने कहा और तीनों युवतियां थर-थर कांपती हुई प्रकोष्ठ से बाहर हो गईं।

“जिल्ले सुब्हानी।" एकाएक दरवाजे पर आवाज आई। सुलतान ने सिर उठाकर देखा, दरवाजे पर वजीर के साथ मुस्कराता हुआ परवेज खड था।

“तुम आ गए जीनते-ताज-शानहीं" सुलतान ने कहा- “आओ बैठो।"

परवेज आकर सुलतान के पलंग पर बैठ गया और बोला, "भाईजान ! इस बेवक्त कौन-सी जरूरत आन पड , जिसके लिए मुझे बुलाने की तकलीफ उठाई आपने?"
___ *परवेज!"... शहंशाह कहने लगे, "मुझे एक पेचीदा मामले में तुमसे मशविरा करना है। तुम मेरे भाई हो। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरे फैसले को, मेरे हुक्म को लफ्ज-ब-लफ्ज बजा लाओगे। यों तो मैं वह काम किसी ओर के भी सुपुर्द कर सकता था, मर यह पोशिदा बात है, और इसमें बदनामी का डर है।"

"आखिर बात क्या है, आलिजाह?" परवेज ने पूछा। उसकी आंखों में उत्सुकता झांकने लगी थी।

"बात? क्या वजीर ने आज की दास्तान तुम्हें नहीं सुनाई?" ___

"नहीं जहाँपनाह ! मैंने शहजादे से वह शर्मनाक बात अपनी जबान से कहना जरूरी नहीं समझा।" वजीर ने अभिवादन करते हुए कहा।
rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

"मरहबा मेरे जईफ वजीर!" सुलतान के चेहरे पर एक फीकी मुस्कराहट खेल गईं, "परवेज! खुदा की पाक इज्जत पर, जो बदनामी का धब्बा लगा, उसके लिए उस बदनसीब के लिए तुम कौन-सी सजा तजबीज करोगे?"

"भाईजान ! इज्जत और अस्मत-ये दोनों चीजें जिस शख्स ने गवा दी, उसके लिए इस तख्त ए-दुनिया से नेस्तनाबूद हो जाना ही बेहतर है।" -परवेज ने कहा। ____

"आफरी शहजादे!" सुलतान के मुंह से शाबाशी के अल्फाज निकल पड], "तुमने बहुत ठीक जवाब दिया, मगर मैं उस शख्स को शहर से निकल जाने की सजा देता हूं।"

"वह शख्स है कौन, भाईजान?"

"सुनो!" सुलतान की आकृति गंभीर हो गईं। टूटे स्वर में उन्होंने कहा, “मल्का ! जिसे तुम अब तक इज्जतो-अस्मत की हूर समझते थे। वह फाहशा है, बदकार है समझे। मैं तुम्हें हुक्म देता है कि सुबह होते ही, किसी बहाने उसे किसी खौफनाक जंग में छोड आओ, जहां से वह लौटकर ना आ सके।" ___

भाईजान?"आश्चर्यचकित मुद्रा में परवेज उठ खडा हुआ, "मल्काए-आलम फाहशा!

यह कभी नहीं हो सकता भाईजान ! कभी नहीं हो सकता, आपका ख्याल गलत है।" ___

"मेरा ख्याल ठीक है।" सुलतान सक्रोध बोले, "कान से सुनी हुई बात गलत हो सकती है, शहाजादे! परंतु उसकी बदकारी खुद मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं, उसको तुम गलत कैसे कह सकते हो? मेरा हवम है, सुलतान का हुक्म है कि तुम मल्का को ले जाकर ऐसी जगह छोड दो, जहाँ पीने को पानी और खाने को दाना भी नसीब न हो। दुनिया वाले, दी हुई सजा सुनकर कानों पर हाथ रख लें। जमीन-आसमान कांप उठे, हा-हां-हाँ।" सुलतान का विकट हास्य भयानक रूप से गूंज उठा, "मेरी हुकूमत के असमान पर सितारों का उलटफेर। कभी नहीं, कभी नहीं। जाओ, अभी जाओ।"

"मेरे आका! शहंशाह ! रहम। रहम। वजीर आर्तनाद कर उठा।

"हर्गिज नहीं।" शहंशाह गरज उठे, "जाओ तुम लोग, मुझे आराम की जरूरत है।"

वजीर और परवजे थर-थर कांपते हुए चले गए। उनके जाते ही शहंशाह चिल्ला उठे, "अंगूरी। शरबते-अनार। शराब! साकी!"

तीनों युवतियां वहां तुरंत आ पहुंची। एक ने शराब का प्याला भरकर कांपते हुए हाथों से सुलतान के होंठों से लगा दिया। सुलतान एक ही सांस में उसे पी गए।
दुसरा, तीसर, चौथा और पांचवा। सुलतान शराब पीते गए और दीन-दुनिया की सुध भूलते गए। इसी समय कोने में लटका हुआ घंटा बज उठा जोरों से।

"हैं! किसने पुकारा?" ...नशे में झूमते हुए सुलतान दरवाजे की ओर बढतीनों सुंदरियां विस्फरित नेत्रों से सुलतान के अव्यवस्थित कार्यों को देख रही थीं।
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rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

सुनसान भयानक जंगल। इतना बीहड कि दिन में भी मार्ग पर चलना कभी-कभी कठिन हो जाता है। ऐसी ही भयानक जंगल की पगडंडी से दो प्राणी, एक पुरुष और एक स्त्री, शीघ्रता से आगे और आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। दोनों के वस्त्रादि राजकीय है, जिससे मालूम होता है कि उन दोनों का किसी शाही खानादान से अवश्य कुछ संबंध है। ___

"मैं तो थक गईं परवेज!..." औरत कहने लगी, तुम न जाने कहां जंगल-जंगल मुझे घुमा रहे हो। कुछ मुंह से बोलते भी नहीं। देखती हूं, तुम्हारा चेहरा जर्द है, आंखें नम है, आखिर इसकी वजह क्या है ?"

"मल्काए-आलम!" परवेज ने कहा, "खुदा की पनाह! आज कहर होने वाला है। उफ्फ्। मैं क्या करूं मल्का! आइए, इस चट्टान पर बैठकर आराम कर लीजिए। अभी हमें बहुत बड़ी मंजिल तय करनी है। सुलतान का हुक्म है कि आपको ऐसी जगह छोड आऊं, जहां पीने को पानी और खाने को दाना भी न मिले।"

"तुम्हारा क्या मतलब है, शहजादे!"- मल्का की मुखाकृति मलीन पड गईं।

"मेरा मतलब बहुत साफ है मल्का ! शहंशाह आपकी सारी बेवफाई से वाकिफ हो चुके हैं। आपका सारा राज फाश हो गया है। मुझे आपको शहर-बेदखल करने का हुक्म हुआ है..."

"या रब! यह मैंने क्या सुना?..." मल्का अपनी अवस्था पर विचार कर रो पड। "परवेज, माना कि मैं कसूरवार हूं, मगर सुलतान भी तो कम कसूरवार नहीं है? रात-दिन नई नई छोकरियों की जवानियों के साथ अठखेलियां करना और मुझसे दूर रहना। क्या तुम्हारी निगाह में ठीक है? मैं औरत हूं परवेज ! मेरे पास भी दिल है, दिल में अरमान हैं, तमन्ना है, हलिस है, मगर सिवाय तडपन के मुझे क्या नसीब हुआ है?"

"मल्का! बादशाह की जिंदगी ऐशो-इशरत परस्त होती है, किसकी मजाल कि सुलतान के आगे सिर उठा सके? वे दीन-दनिया के मालिक हैं, किसमें इतनी हिम्मत है कि उनकी कारगुजारी में दखल दे सके? मगर सच कहूंगा मल्का? आपसे कहीं अच्छी वे गरीब औरतें हैं जिनकी जिस्मानी भूख हंसी-खुशी से मिट जाती है..."

"ठीक कहते हो शहजादे! बदनसीब औरत ही शहंशाह की मल्का हो सकती है।" मल्का ने कहा।

थोडी देर तक सन्नाटा रहा, तत्पश्चात् परवेज कहने लगा। "मुझे सख्त अफसोस है, मल्का-ए-आलम, मगर क्या करू, शाही हुक्म से लाचार हूं।"

"आजकल सुलतान शराब और साकी के पीछे दीवाने हो रहे हैं। उन्हें सल्तनत की कोई फिक्र नहीं। सल्तनत की हालत बदतर हो रही है। जरा अपनी हालत पर गौर करो, तुम सुलतान के भाई हो, सगे भाई, मगर हो तुम गुलाम से भी बदतर। तुम्हें कुछ खर्च मिल जाता है, उसी पर तुम गुजर करते हो और उधर शहंशाह दरियाए-शराब में तैरते हुए ऐश करते हैं, अगर यही हालत रही तो थोड ही दिनों में सल्तनत खाक में मिल जाएगी।

परवेज के हृदय पर मल्का की बातों ने पर्याप्त प्रभाव डाला। वह बोला-"मल्का! मैं इन सारी बातों को बहुत पहले से ही सोचता चला आ रहा हूं। सोचता हूं कि...।" ___

सोचा ही चाहिए, शहजादे! तुम दोनों भाई हो, फिर सुलतान को क्या हक है कि सारी सल्तनत को अपनी ही मिल्कियत समझें और तुम एक गुलाम की तरह उनके हुक्म को आंख बंद करके मानते जाओ। तुम्हें हुकूमत की मुखालफत करनी चाहिए। तुम बगावत करके सुलतान से अपना हक मांगो। मैं तुम्हें इस काम में मदद दूंगी-" मल्का ने कहा।

"मगर आपको तो शहर-बेदखल करने का हुक्म है।"

"तुम पागल हो गए हो शहजादे! इस वक्त मेरी जान तुम्हारे हाथों में है। अगर मुझे अकेली ही इस जंगल में छोड़ कर चले जाओगे तो मुझे जंगली जानवर चीर-फाड कर खा जाएंगे!... शहजादे, मैं तुमसे अपनी जान की भीख मांगती हूं और चाहती हूं तुम्हारी जिंदगी में उलट-फेर करके एसी बना दूंगी कि तुम आराम की जिंदगी बसर कर सको। तुम तैयार हो जाओ,मुंह से हा कह दो। तब, देखो में किस खुबसूरती के साथ सुलतान से अपना बदला लेती हूं और तुम्हें सल्तनत काशगर का ताज पहनाकर दीन-दुनिया का मालिक बनाती हूं।"

मल्का की बातों से परवेज के अंत:प्रदेश में एक भयंकर महत्त्वाकांक्षा का उदय हुआ। काशगर का सुलतान बनने की अभिलाषा ने उसे अपने भाई का प्रभुत्व भूल जाने के लिए बाध्य कर दिया। उसके हृदय में इस समय विचारों का संघर्ष हो रहा था। ____

“जब तुम ताजवर बन जाओगे, तब मेरी मुराद वर आएगी। तुम सुलतान होंगे और मैं मल्का! तुम मेरे दिल के मालिक होंगे और मैं तुम्हारी बांदी..." कहती हुई मल्का ने आवेश में परवेज को अपनी फूल सी बाहों में कस लिया। यह बांहों का कसाव परवेज के लिए नवीन अनुभूति थी। रोमांचित होकर उसने मल्का के होंठों पर अपने होंठ रख दिए।, फिर अलग होता हुआ बोला

"मैं तैयार हूं मल्का, मगर यह सब कैसे हो सकता है ?"

"इसकी तरकीब बड़ी आसान है।" कहकर मल्का परवेज के पास खिसक आई और धीरे धीरे कुछ कहने लगी। परवेज ध्यानपूर्वक सुनने लगा। सुलतान को सिंहासनाच्युत करने की नींव डाली जाने लगी।
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