सीक्रेट एजेंट
सुबह ग्यारह बजे का वक्त था जबकि मुम्बई पुलिस हैडक्वार्टर्स की तीसरी मंजिल के एक मिनी कांफ्रेंस रुम जैसे कमरे में एक मिनी कांफ्रेंस ही जारी थी । उस कांफ्रेस की सदारत खुद मुम्बई पुलिस कमिश्नर जुआरी ने करनी थी लेकिन खड़े पैर उसके लिये होम मिनिस्टर का बुलावा आ गया था तो अब उसकी जगह उसकी वो ड्यूटी जायंट कमिश्नर बोमन मोरावाला सम्भाल रहा था । उसके अतिरिक्त वहां जो तीन, बावर्दी पुलिस अधिकारी और मौजूद थे उनमें से एक दादर डिस्ट्रिक्ट का डीसीपी नितिन पाटिल था, दूसरा हैडक्वार्टर में ही तैनात एडीशनल कमिश्नर संजीव दीक्षित था और तीसरा नितीन पाटिल के अंडर आने वाले नौ थाने में से एक ग्रांट रोड थाने का एसएचओ श्याम राव महात्रे था ।
उन अफसरान में महात्रे की औकात सबसे छोटी थी - हैडक्वार्टर के उच्चाधिकारियों के सामने वो हमेशा अपना दर्जा चपरासी जैसा पता था - लेकिन अपने डीसीपी के हुक्म पर उसको वहां हाजिरी भरनी पड़ रही थी और वो वहां जायंट कमिश्नर के रूबरू यूं बैठा हुआ था जैसे कुर्सी की सीट पर कांटे उगे हों । ये अभी उसे मालूम होना बाकी था कि क्यों उसकी वहां हाजिरी जरूरी समझी गयी थी ।
कांफ्रेंस में डिसकस होने वाले सब्जेक्ट की बाबत अलबत्ता उसे मालूम था ।
सब्जेक्ट था : कोनाकोना आइलैंड और उसका मौजूदा करप्ट निजाम ।
कोनाकोना आइलैंड अरब सागर में स्थापित था और प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से कुदरत का करिश्मा था । वो बहुत शांत टूरिस्ट टाउन था जिसकी स्थायी लोकल आबादी मुश्किल से दो हजार थी । आइलैंड पर एक मनोरम झील थी जिसके दायें बाजू एक पहाड़ी इलाका था जो एस्टोरिया हिल के नाम से जाना जाता था और जिस पर सारे महाराष्ट्र के साधन सम्पन्न महानुभावों के लग्जरी कॉटेज थे जिनमें से कोई ही कभी सारा साल आबाद दिखाई देता था । बड़े, रईस लोग परिवार के साथ, फ्रेंड्स के साथ, कीप्स के साथ पिकनिक के लिये, तफरीह के लिये, मौजमस्ती के लिये, रिलैक्सेशन के लिये आते थे, जी भर जाता था तो वापिस चले जाते थे, फिर आ जाते थे । रईसों का ऐसा आवागमन कोनाकोना आइलैंड पर राउंड-दि-इयर चलता था । सारा साल ही वहां सैलानियों की आवाजाही रहती थी क्योंकि उनके लिये वहां मनोरंजन के ऐसे इंतजाम भी मौजूद थे जिनकी इजाजत राज्य का कायदा कानून नहीं देता था । कायदे कानून के नाम पर वहां अराजकता का राज था । बहुत ऊपर तक इस बात की हाजिरी थी कि एक अरसे से आइलैंड पर महज दो जनों का कब्जा था जिनमें से एक वहां के थाने का थानेदार था ।
यही बात उस कांफ्रेंस का मुद्दा थी जो कि मूलरूप से कमिश्नर की मौजूदगी में होने वाली थी ।
“...ये काम” - जायंट कमिश्नर बोमन मोरावाला कह रहा था - “मुम्बई पुलिस के स्कोप में नहीं आता । कोनाकोना आइलैंड हमारी ज्यूरिसडिक्शन नहीं । उसका निजाम उस डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी के अंडर आता है जिसके अंदर कि मुरुड आता है जबकि कोनाकोना आइलैंड मुम्बई से करीब है, पिच्चासी किलोमीटर पर है । मुरुड से - जो कि कोस्टल टूरिस्ट टाउन है - वो एक सौ पचपन किलोमीटर से फासले पर है । ये विसंगति, व्यवस्था अंग्रेज के टाइम से चली आ रही है जिस पर पुनर्विचार करने की, जिसको रिवाइज करने की कभी कोई कोशिश नहीं हुई । बहरहाल इस सिलसिले में जो है सो है । नो ?”
सबके सिर सहमति में हिले ।
“मुरुड - जैसा कि मैंने कहा - यहां से एक सौ पैंसठ किलोमीटर पर है । बहरहाल हमें ऊपर से आर्डर इशु हुआ है कि इस प्रोजेक्ट को हम हैंडल करें, इस तरीके से हैंडल करें कि जिनका असल में ये काम है, उनको भी कानोंकान खबर न हो कि आइलैंड पर खास, नया, कुछ हो रहा है ।” - जायंट कमिश्नर एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “मुरुड से और इधर मुम्बई से कोनाकोना आइलैंड के लिये स्टीमर चलते हैं जिनकी सर्विस इतनी बढ़िया है कि पर्यटकों को वहां पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती । आइलैंड पर हैलीपैड है इसलिये जिसकी समर्थ हो वो हैलीकाप्टर से भी वहां पहुंच सकता है । इट गोज विदाउट सेईंग दैट ऐसी समर्थ उन वीआईपीज की ही है जिनके कि वहां लग्जरी कॉटेजिज हैं ।”
कोई कुछ न बोला ।
“टुरिस्ट्स के लिये वहां मनोरंजन का हर साधन उपलब्ध बताया जाता है । शराब और शबाब का खुला दरबार तो वहां है ही, कहते हैं कि एक जुआघर भी वहां बड़े सुचारुरूप से, बिना किसी खास छुपाव के, शरेआम चलता है । इस वजह से औरतों के रसिया और जुए के शौकीन लोग भारी तादाद में वहां पहुंचते हैं । यहां तक सुना गया है कि कुछ टूरिस्ट एजेंसियां तो कोनाकोना आईलैंड के बैंकाक स्टाइल सैक्स टूर्स आर्गेनाइज करने लगी हैं ।” - जायंट कमिश्नर अपने शब्दों का प्रभाव अपने मातहतों पर देखने के लिये एक क्षण को रुका और फिर आगे बढ़ा - “लेकिन ये सब-प्रास्टीच्यूशन, गेम्बलिंग - भी हायर अप्स की चिंता का विषय नहीं हैं, क्योंकि ये दोनों काम यहां मुम्बई में भी बहुताहत में होते हैं और उन पर रोक लगाने की पुलिस की भरपूर कोशिशों के बावजूद नहीं रुकते । पुलिस रेड करके ये कारोबार एक जगह से उखाड़ती है तो वो दूसरी जगह शिफ्ट हो जाता है, तीसरी जगह शिफ्ट हो जाता है । जंटलमैन, होम मिनिस्ट्री का चिंता का विषय ये है कि उनके पास कुछ ऐसी - अनकनफर्म्ड - रिपोर्ट्स पहुंची हैं कि कोनाकोना आइलैंड ड्रग समगलिंग का और आर्म्स समगलिंग का अड्डा बना जा रहा है । हम नहीं जानते कि इस बात में कितनी सच्चाई है लेकिन ये हम बराबर जानते समझते हैं कि हम नहीं चाहते - राज्य का निजाम नहीं चाहता - कि कोनाकोना का कैरेक्टर स्वैननैक प्वायंट वाला बन जाये । हम नहीं चाहते कि पाकिस्तान की शह पाये बादशाह अब्दुल मजीद दलवई की सरपरस्ती में फूला फला स्वैननैक प्वायंट तबाह हुआ तो उसकी जगह अब कोनाकोना ले ले ।”
“ऐसा कैसे होगा, सर !” - डीसीपी नितिन पाटिल बोला - “क्यों होने देंगे हम ? क्या प्राब्लम है ?”
“प्राब्लम हमारी ये लाचारी, ये बेचारगी है कि हकीकत को भांपने के लिये, कनफर्म करने के लिये हमारा जो कोई भी अंडरकवर एजेंट कोनाकोना आइलैंड पर कदम रखता है, फौरन पहचान लिया जाता है । नतीजतन वहां चलता कैसीनो यूं गायब हो जाता है जैसे कि कभी था ही नहीं । वहां की ईंट उखाड़े मिलने वाली प्रास्टीच्यूट्स ओवरनाइट में गायब हो जाती हैं या सम्भ्रांत टूरिस्ट महिलायें लगने लगती हैं । बार वहां लीगल हैं, स्काच विस्की आम मिलती है लेकिन वो समगलिंग की होती है, एक्साइज अनपेड होती है लेकिन हमारे अंडरकवर एजेंट की आइलैंड पर मौजूदगी की भनक लगते ही बारों पर स्काच की बोतलें लीगल, एक्साइज पेड दिखाई देने लगती हैं । कोई कहीं ड्रग्स का हिंट दे तो उसे गिरफ्तार करा दिये जाने की धमकी मिलती है । हमारा सीक्रेट एजेंट अभी वहां पहुंचा नहीं होता कि समझो कि वहां रामराज स्थापित हो जाता है ।”
“कमाल है !”
“कमाल ही है । और ये कमाल एक बार नहीं, पिछले दो साल में कई बार हो चुका है ।”
“कैसे हो पाता है ?”
“रक्षक, ही भक्षक हैं, ऐसे हो पाता है ।”
“जी !”
“हमारी इंटेलीजेंस रिपोर्ट ये कहती है कि वहां के थाने का थानेदार - एसएचओ, स्टेशन हाउस आफिसर, अनिल महाबोले नाम है - ही मेन विलेन है । उसी ने आपना ऐसा खुफिया तंत्र उधर स्थापित किया हुआ है कि जब भी कोई सरकारी आदमी उधर का रुख करता है, उसे एडवांस में खबर लग जाती है । मुझे कहते अफसोस होता है लेकिन कहना पड़ता है कि इस सिलसिले में उसकी सलाहियात काबिलेरश्क हैं । हिज रिसोर्सफुलनैस इस एनवियेबल ।”
“दैट्स टू बैड !”
“आफकोर्स इट्स टू बैड । कोई बड़ी बात नहीं कि इस सिलसिले में मुरुड से भी उसे मदद मिलती हो ।”
“मुरुड से ?” - एडीशनल कमिश्नर दीक्षित सकपकाये लहजे से बोला ।
“हां ।”
“लेकिन मुरुड से...”
“समझो, भई । मामूली इंस्पेक्टर, यहां से पिच्चासी किलोमीटर दूर के एक थाने का थानेदार यहां हैडक्वार्टर में घात नहीं लगा सकता लेकिन मुरुड के डीसीपी तक पहुंच बना सकता है जिसके अंडर कि उसका थाना आता है । खुदा न करे डीसीपी गलत हो लेकिन अगर हो तो सोचो, अपने ऊंचे रुतबे के जेरेसाया वो क्या नहीं कर सकता !”
“ओह ! ओह ! तो इसलिये ऊपर से हुक्म हुआ है कि हमारे प्रेजेंट प्रोजेक्ट की किसी को भी कानोकान खबर न लगे ?”
“नाओ यू अंडरस्टैंड ।”
“एक्सक्यूज मी, सर ।” - डीसीपी नितिन पाटिल बोला - “ऐसे थानेदार पर अंकुश लगाने के और भी तो तरीके हैं !”
“उसे वहां से ट्रांसफर किया जा सकता है । यही कहना चाहते हो न ?”
“ज..जी हां ।”
“किया जा सकता है । सस्पेंड करके उसके खिलाफ डिपार्टमेंटल इंक्वायरी भी बिठाई जा सकती है लेकिन ये कदम इस वक्त नहीं उठाया जा सकता, मौजूदा हालात मैं नहीं उठाया जा सकता ।”
“गुस्ताखी माफ, सर, वजह ?”
“सुनने में आया है कि गुजरे वक्त के साथ उसने उधर अपनी ऐसी ताकत बना ली है कि वहां से हटाया जाने पर भी वो रिमोट कंट्रोल से आइलैंड का निजाम कंट्रोल कर सकता है ।”
“नये एसएचओ को अपनी कठपुतली की तरह नचा सकता है ?”
“हां ।”
“ओह, नो ।”
“ऐसा ही सुनने में आया है । ऊपर से लोकल म्युनिसपैलिटी के प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी से उसका हाथ और दस्ताने जैसा गंठजोड़ है । और ऊपर से खुद कमिश्नर साहब का खयाल है कि अपनी नयी स्ट्रेटेजी के तहत अगर हम उसे थोड़ी और ढ़ील दें तो उसका ओवरकंफीडेंस ही उसके पतन को कारण बन जायेगा । वो खुद अपना वाटरलू बनेगा । इस सिलसिले में उसकी एक करतूत बुनियाद बन भी चुकी है ।”