“सब सीखा । इतना ज्यादा सीखा कि जो सीखा, उसी ने बर्बाद किया । अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया । जो बेगैरत सबक सीखा, उसको मुकम्मल तौर से भुला देने से ही मेरी फिर से उठ कर अपने पैरों पर खड़ा होने की हैसियत बनी है । अपनी इस हैसियत को मैं फिर खुद ही पलीता लगाऊंगा तो मेरे से बड़ा अहमक और अभागा दूसरा शख्स इस दुनिया में कोई न होगा । अब मेरा अतीत एक ऐसा शीशा है जो कुछ प्रतिबिम्बित नहीं करता । उसमें मुझे बैड कॉप का, करप्ट कॉप का अक्स दिखाई नहीं देता । अब मैं गुड कॉप हूं जो अतीत को प्रतिबिम्बित करने वाले शीशे में कोई अक्स नहीं देखना चाहता । नीलेश गोखले की बीती यादों की जंजीर अब कोई नहीं हिला सकता-न कोई दलील, न कोई जज्बा, न कोई मुलाहजा, न कोई फरियाद । कसम है मुझे अपने मकतूल भाई की मुकद्दस रुह की, मैं गुड कॉप हूं, वैसा पुलिस अधिकारी हूं जैसा वो खुद था और जैसा वो अपनी जिंदगी में मुझे देखने चाहता था । मैं कभी करप्ट कॉप न होता, कभी भाई लोगों के हाथों बिका न होता तो मेरा छोटा भाई राजेश गोखले, सब इंस्पेक्टर, मुम्बई पुलिस आज जिंदा होता, अभागा बेमौत न मारा गया होता । मैं अपने भाई का गुनहगार हूं, अपने गुनाह का जुआ ताजिंदगी मैं अपने कन्धों से नहीं उतार फेंक सकता । मेरे गुनाहों की तलाफी इसी बात मैं है कि मैं गुड कॉप बनूं और मेरा भाई मुझे कहीं से देखा रहा हो तो उसकी रुह को चैन आये, उसकी आवाज मुझे कहती सुनाई दे ‘भाई, तुम्हारा हर गुनाह माफ है’ ।”
उसका गला रुंध गया, आंखें डबडबा आयीं, वो मुंह फेर कर कमीज की आस्तीन से आंखें पोंछने लगा ।
“ये” - श्यामला के मुंह से निकला - “ये क्या है ?”
“जवाब है ।” - अपने स्वर को भरसक संतुलन करता नीलेश बोला ।
“किस बात का ?”
“इस बात का कि क्यों मोकाशी साहब के लिये मेरे से कोई उम्मीद करना बेमानी है ।”
“ओह !”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“तुम मेरे से कोई बात करना चाहते थे, वो हो गयी हो तो चलें ?”
“हो तो नहीं गयी - सच पूछो तो शुरु ही नहीं हुई - हालात की, जज्बात की रो में कोई और ही बातें होने लगी । अब पता नहीं जो कहना चाहता था, उसे जुबान पर लाना मुनासिब होगा या नहीं !”
“कोशिश करके देखो ।”
“आगे जो मोकाशी साहब के साथ बीतने वाली है, उसकी रु में तुम अकेली रह जाओगी ?”
“है तो ऐसा ही ।”
“कोई सगा सम्बंधी ? कोई करीबी रिश्तेदार ?”
“नागपुर में एक मौसी है । लेकिन मैं ऐसा कोई आसरा नहीं चाहती । आई विल लीड माई ओन, इंडीपेंडेंट लाइफ ।”
“यहीं ?”
“देखेंगे ।”
“तीन दिन पहले रुट फिफ्टीन पर जब इत्तफाकन मौकायवारदात पर मिली थीं तो तुमने कहा था कि तुम्हारी मेरी मुलाकात में किसी अदृश्य शक्ति का हाथ था, उसमें ऊपर वाले की रजा थी । फिर कहा था कि गलत लगा था क्योंकि हम दोंनो एक राह के राही नहीं रहे थे । हमेशा के लिये अलविदा तक बोल दिया था । याद आया ?”
“हं-हां ।”
“लेकिन अलविदा हुई तो नहीं हमेशा के लिये ! अभी हम बैठे हैं आमने सामने ! नहीं ?”
“हां ।”
“इस बारे में क्या कहती हो ?”
“क्या कहूं ?”
“सवाल मैंने पूछा है ।”
“मेरे पास जवाब नहीं है ।”
“टाल रही हो !”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“अब तुम्हे ऊपर वाले की रजा नहीं दिखाई देती ? किसी अदृश्य शक्ति का हाथ नहीं दिखाई देता ?”
“तुम पहेलियां बुझा रहे हो ।”
“आधी रात का वो मंजर याद करो जब हम अमेरिकन डाइनर से लौटे थे और मैं तुम्हें तुम्हारे बंगले पर ड्रॉप करने गया था ।”
“क्या याद करुं ?”
“इसरार से तुमने मेरे से कहलवाया था कि मैं तुम से प्यार करता था ! ‘नीलेश, से यू लव मी’ यू सैड ।”
“मैं शैब्लिस के नशे में थी ।”
“न होती तो प्यार मुहब्बत वाली कोई बात ही नहीं थी !”
वो खामोश रही, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“होश में होतीं तो तुम्हें बेरोजगार, ओवरएज, विधुर ऐसे जज्बात के इजहार के काबिल न लगा होता !”
उसने जवाब न दिया ।
“खैर ! कोई बात नहीं ! दिल की बस्ती है । बसते बसते बसती है । कभी नहीं भी बसती ।”
उसने सिर उठाया, व्याकुल भाव से उसकी तरफ देखा ।
“बस, एक बात और कहना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“चमन उजड़ा भी हो तो चमन ही कहलाता है । दिल टूटा भी हो तो दिल ही कहलाता है ।”
वो और व्याकुल दिखाई देने लगी ।
“पहले फाल्स अलार्म था । अब है अलविदा की घड़ी ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “शाम तक मैं यहां से चला जाऊंगा । अलविदा, श्यामला ।”
वो जाने के लिये मुड़ने लगा तो एकाएक श्यामला ने हाथ बढ़ाया और कस कर उसका हाथ थाम लिया ।
“मेरे जेहन पर पापा के आइ्ंदा, बुरे, अंजाम का बोझ है । उस बोझ के तले कहीं दिल की आवाज दब गयी है । लेकिन दबी हुई आवाज ही अब मुझे कहती जान पड़ रही है कि अलविदा कहना मेरा गलत फैसला था और गलती को सुधारना चाहिये, उस पर एक और गलती नहीं करनी चाहिये । टू रांग्स कैननाट मेक वन राइट । नो ?”
“यस ।”
“जज्बात की रो में बह कर मैंने कहा था कि मैं अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी, आई विल- आई कुड - लीड माई इंडिपेंडेंट लाइफ । मैं अपने अल्फाज वापिस लेना चाहती हूं ।”
“मतलब ?”
“मैं तुम्हारी राह का राही बनना चाहती हूं । तुम्हारी जुबानी जो उस रात सुना, वो फिर सुनना चाहती हूं । से, यू लव मी ।”
“मैं नहीं कह सकता…”
श्यामला के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“…क्योंकि मैं इससे ज्यादा, कहीं ज्यादा कुछ कहना चाहता हूं ।”
“क..क्या ?”
नीलेश घुटनों के बल उसके सामने बैठ गया और उसने उसका हाथ अपने दोंनो हाथों में ले लिया ।
“आई वांट टु प्रोपोज ।” - नीलेश भावपूर्ण स्वर में बोला - “श्यामला, विल यू बी माई वाइफ ?”
“आई विल बी ग्लैड टु ।”
“डू यू असैप्ट मी एज युअर हसबैंड ?”
“आई डू, माई लार्ड एण्ड मास्टर ।”
तालियां बजने लगीं ।
दोनों ने घबरा कर सिर उठाया।
कैफे में जितने लोग मौजूद थे, उन्हें पता ही नहीं लगा था कि कब सब की तवज्जो उनकी तरफ हो गयी थी और कब वहां मुकम्मल सन्नाटा छा गया था । प्रत्यक्ष था कि उस सन्नाटे में नीलेश को प्रोपोज करता और श्यामला को प्रोपोज अक्सेप्ट करता सबने सुना था ।
बौखलाये से दोनों उठ कर खड़े हुए । संकोच से दोनों का चेहरा लाल पड़ गया ।
फिर उन पर बधाइयों की बौछार होने लगी ।
अच्छे लोग थे आइलैंडवासी । त्रिमूर्ति का ग्रहण अभी टला नहीं था कि अच्छाइयों के, सदभावनाओं के फूल बिखरे पड़ रहे थे ।
कितना प्यार था दुनिया में ! कोई तलाश करने वाला चाहिये था । कोई बटोरने वाला चाहिये था । कोई झोली भरने वाला चाहिये था ।
देवा ! मुझको ही तलब का ढ़ब न आया, वर्ना तेरे पास क्या नहीं था ।
“तुमने कहा कुछ !” - श्यामला बोली ।
“हां ।” - नीलेश उसके कान के करीब मुंह ले जा कर बोला - “नौकरी बचाने निकला था, बीवी ले कर लौटूंगा । इसे कहते हैं चुपड़ी और दो दो ।”
श्यामला हंसी ।
मंदिर की घंटियों जैसी पवित्र हंसी ।
समाप्त
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Re: Thriller सीक्रेट एजेंट
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Re: Thriller सीक्रेट एजेंट
अच्छी कहानी है मित्र।
Nice Ending.
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Re: Thriller सीक्रेट एजेंट
बढ़िया कहानी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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