Thriller सीक्रेट एजेंट

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Masoom
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Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

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“बॉस” - नीलेश विनयशील स्‍वर में बोला - “तुम्‍हें मालूम, तुमने खुद सैटल किया, आज मेरी शार्ट ड्‍यूटी । आज मैं नौ बजे ऑफ !”
“ठीक ! ठी‍क ! पण कोई स्‍टाम्‍प पेपर पर लिख के तो नहीं दिया ! नोटरी से ठप्‍पा लगवाकर तो नहीं दिया !”
“क्‍या कहना चाहते हो ?”
“अनएक्‍सपैक्टिड रश हो गया है । रोमिला की वजह से भी शार्टहैंडिड हूं, एक दो घंटे लिये रुक जाते !”
“मैं क्‍लोजिंग टाइम तक बाखुशी रुक जाता, बॉस, लेकिन आज नहीं ।”
“आज क्‍या है ?”
“है कुछ ।”
“डेट ?”
“हो सकता है ।”
“बोलता है हो सकता है । मेरे को अंधा समझता है ।”

“जब जानते हो तो पूछते क्‍यों हो ?”
“’श्‍यामला !”
नीलेश हंसा ।
“लगता है दिन में मैं जो कुछ तेरे को बोला वो सब तेरे सिर के ऊपर से गुजर गया !”
“सब याद है । लेकिन जो बोला था, रोमिला को लेकर बोला था । मेरी डेट रोमिला नहीं है ।”
“जो बात एक जगह लागू हो, वो दो जगह भी लागू हो सकती है, चार जगह भी लागू हो सकती है, दस जगह भी लागू हो सकती है ।”
“बॉस” - नीलेश तनिक चिड़कर बोला - “ये कोनाकोना आइलैंड है या फॉरबिडन प्‍लेनेट है ?”
“बात का मतलब समझ । बाल की खाल न निकाल ।”

“क्‍या समझूं ?”
“अपनी औकात में रह । अपने लैवल पर एक्‍ट कर । टॉप शैल्‍फ पर हाथ डालने कोशिश न कर ।”
“बॉस, तुम्‍हारी बातें मेरी समझ से परे हैं...”
“तू सब समझता है ।”
“अगर तुम्‍हें कोई ऐतराज है...”
“मुझे नहीं है । उसके बाप को हो सकता है । उसको न हुआ तो महाबोले को हो सकता है । होगा । यकीनन । क्‍या फायदा नाहक पंगा लेने का ! ऐसा पंगा लेने का जो झेला न जाये ! क्‍या फायदा किसी के फटे में टांग देने का !”
“पहले भी बोला ऐसा । टांग मेरी है न !”

पुजारा हड़बड़ाया ।
“मैं नहीं समझता किसी को मेरी पर्सनल लाइफ को डिक्‍टेट करने का कोई हक पहुंचता है ।”
“ठीक । ठीक ।”
“नमस्‍ते । कल हाजिर होता हूं ।”
“हां । दोपहर से पहले आ जाना ।”
“दोपहर से पहले ! काहे को ?”
“भई, वो खाली वक्‍त होता है । तेरा फाइनल हिसाब किताब करने में मेरे को सहूलियत होगी ।”
“फाइनल हिसाब किताब ! क्‍या बात है ? डिसमिस कर रहे हो ?”
“अभी क्‍या बोले मैं !”
“हैरानी की बात है कि इतनी सी बात को डिसमिसल की वजह बना रहे हो कि मैं रुक नहीं सकता ।”

“अरे, ये बात नहीं है ।” - पुजारा खोखली हंसी हंसा - “ये बात तो इत्तफाक से उट खड़ी हुई । असल में मैं वैसे भी तेरे को जवाब देने ही वाला था । तू रुकता तो मैं क्‍लोजिंग टाइम पर तेरे को बोलता कि कल आकर हिसाब कर लेना । अभी बिजनेस है न ! सोचा था तीन चार घंटे की ड्‍यूटी तेरे से निचोड़ लूं । पण, वांदा नहीं । कल आ के फाइनल हिसाब करना ।”
“मेरे काम से कोई शिकायत हुई ?”
“अरे, नहीं रे ! काम तो तेरा ऐन फर्स्‍ट क्‍लास ।”
“तो फिर ?”

“एक भांजा है न मेरा ! साला मेरे को पता ही न चला कि जवान हो गया ! उसको जॉब मांगता है न ! बहन को कैसे ‘नो’ बोलेगा !”
“ओह !”
“फिर उसकी टांग भी तेरी जितनी लम्‍बी नहीं है ।”
“बॉस, आई कैन टेक ए हिंट । आई हैव टेकन दि हिंट । नाओ डोंट रब इट इन ।”
“ओके ! ओके ! डोंट गैट ऑफ दि हैंडल । हैव ए नाइस टाइम टुनाइट आई विश यू आल दि बैस्‍ट ।”
“थैंक्‍यू ।”
“गैट अलांग ।”
कोंसिका क्‍लब से बाहर निकल कर सिग्रेट के विचारपूर्ण कश लगाता नीलेश कई क्षण फुटपाथ पर ठिठका खड़ा रहा ।

उसकी निगाह स्‍वयंमेव ही सामने ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की ओर उठ गयी । वो वक्‍त दूसरी मंजिल पर स्थित कैसीनो में गेम्‍बलर्स का जमावड़ा बढ़ता जाने का था । वहां हाउसफुल हो जाने पर-जो कि वीकएण्‍ड्स पर तो जरूर ही होता था-ऐन्‍ट्री रिस्ट्रिक्‍ट कर दी जाती थी और दूसरी मंजिल की तमाम फालतू बत्तियां-खास तौर से बाहर सड़क पर से दिखाई देने वाली-बंद कर दी जाती थीं ।
उसने सड़क‍ पार की और ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ के बाजू की गली में दाखिल हुआ ।
वहां पिछवाड़े में ‘इम्‍पीरियल’ रिट्रीट’ का अपना प्राइवेट पायर था जहां कि फ्रांसिस मैग्‍नारो की अत्‍याधुनिक स्‍पीड बोट खड़ी होती थी । उस ने सुना था कि उससे ज्‍यादा रफ्तार पकड़ने वाली स्‍पीड बोट कस्‍टम वालों के पास भी नहीं थी, कोस्‍ट गार्ड्‍स के पास भी नहीं थी ।

वो पिछवाड़े की सड़क पर पहुंचा और दायें बाजू आगे बढ़ा ।
सड़क कदरन संकरी थी और उस पर सैलानियों की भरपूर आवाजाही थी । नौजवान लड़के लड़कियां बांहों में बांहें पिरोये वहां विचार रहे थे । कई सैलनियों के हाथ में बियर का कैन था या बकार्डी ब्रीजर की बोतल थी जिसका वो गाहेबगाहे घूंट लगाते चलते थे ।
उस सड़क पर कितने ही छोटे बड़े बार और कैफे थे, आगे बढ़ते नीलेश ने जिन में से हर एक में झांका लेकिन रोमिला उसे कहीं दिखाई न दी ।
कहां चली गयी !
वो सिग्रेट के कश लगाता आगे बढ़ता रहा ।

उस सड़क पर सबसे ज्‍यादा रौनक और शोरशराबे वाली जगह मनोरंजन पार्क ही थी । वहां भीतर और बाहर दोनों जगह बराबर भीड़ थी । वहां चालक समेत या चालक के बिना बोट किराये पर मिलती थी जिस पर विशाल झील की सैर करना सैलनियों का-खासतौर से नौजवान जोड़ों का-पसंदीदा शगल था ।
मनोरंजन क्‍लब के लोहे के पुल के करीब वो ठिठका । वहां एक पब्लिक फोन था जहां सं उसने रोमिला के बोर्डिंग हाउस में फोन लगाया ।
उसके पास मोबाइल था लेकिन उस रोज इत्तफाकन वो उसे अपने काटेज पर भूल आया था ।
तभी दूसरी ओर से फोन उठाया गया, उसे लैंडलेडी की रूखी ‘हल्‍लो’ सुनाई दी तो उसने रोमिला की बाबत सवाल किया ।

“नहीं है ।” - लैंडलेडी चिड़े स्‍वर में बोली - “कितने लोग पूछोगे ? कितनी बार पूछोगे ? बोला न, आठ बजे इधर से गई । मेरे को बोल के नहीं गयी किधर जाती थी या कब लौट के आने का था । बोले तो अभी कल मार्निंग में फोन करना ।”
भड़ाक !
उसने फोन वापिस हुक पर टांग दिया और वापिस सड़क पर पांव डाला । आगे सड़क झील के साथ साथ बायें घूम‍ती थी और मोड़ काटते ही दायें बाजू उसका किराये का कॉटेज था । उसका कॉटेज मेन रोड पर होने की जगह पिछवाड़े की एक गली में था जिस तक कॉटेजों के बीच से गुजरती, ऊपर को उठती एक संकरी सड़क जाती थी ।

वो अपनी मंजिल पर पहुंचा ।
गली से कॉटेज के मेन डोर तक पहुंचने के लिये पांच सीढि़यां चढ़नी पड़ती थीं जो कि उसने चढ़ीं । उसने जेब चाबी निकालकर की-होल में डाली और उसे घुमाने की कोशिश की तो पाया कि ताला पहले से खुला था ।
वजह ?
क्‍या वहां से अपनी रवानगी के वक्‍त वो ही दरवाजे को पीछे अनलॉक्‍ड छोड़ गया था ?
वो कोई फैसला न कर सका ।
ऐसी लापरवाही उससे पहले कभी नहीं हुई थी लेकिन आखिर कभी तो पहल होनी ही होती थी !
हिचकिचाते हुए उसने नॉब को घुमाया और हौले से दरवाजे को भीतर की तरफ धक्‍का दिया । दरवाजा धीरे धीरे भीतर को सरका । दरवाजा कोई फुट भर चौखट से अलग हो गया तो उसने भीतर के अंधेरे में निगाह दौड़ाई और कान खड़े करके कोई आहट लेने की कोशिश करने लगा ।

खामोशी !
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खामोशी !
वो कुछ क्षण और स्‍तब्‍ध ठिठका खड़ा रहा, फिर उसने भीतर हाथ डाला । भीतर चौखट की बाजू में ही स्विच बोर्ड था, बाहर खड़े खड़े ही जिस तक उसका हाथ पहुंच गया । उसने एक स्विच आन किया, तत्काल हाथ वापिस खींचा और दरवाजे पर से एक बाजू हट गया ।
भीतर रोशनी हुई लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया सामने न आई । उसने दरवाजे को धकेला और भीतर कदम डाला । वहीं ठिठककर उसने दरवाजे के बिल्‍ट-इन लॉक का मुआयना किया । ऐसे कोई निशान उसे ताले पर या उसके आसपास दरवाजे पर न दिखाई दिये जिनसे लगता कि उसके पीछे उसे जबरन खोला गया था ।

लिहाजा वहां से निकलते वक्‍त खुद वो ही दरवाजा लॉक करना भूल गया था ।
उसने ड्राईंगरूम में कदम रखा तो उसका वो खयाल हवा हो गया ।
ड्राईंगरूम की हर चीज अस्‍तव्‍य‍स्‍त थी । दीवार पर लगी दो पेंटिंग अपनी जगह से हिली हुई थीं और तिरछी हो कर लटक रही थीं । फर्श का कार्पेट अपनी जगह से नदारद था, वो रोल किया हुआ बायीं तरफ दीवार के सहारे लम्‍बवत् खड़ा था । सोफासैट का कोई कुशन अपनी जगह पर नहीं था । दायें बाजू वाल कैबिनेट थी जिसके सारे दराज खुले थे ।
ड्राईंगरूम को पार करके वो आगे बैडरूम के दरवाजे पर पहुंचा । पूर्ववत् उसने सावधानी से दरवाजे को भीतर की तरफ धकेला और चौखट पर से ही भीतर हाथ डाल कर बिजली का स्विच आन करके भीतर रौशनी की ।

बैडरूम का भी ड्राईंगरूम से मिलता जुलता ही हाल था ।
वो एक कुर्सी पर ढ़ेर हुआ और एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
सिग्रेट के कश लगाता वो सोचने लगा ।
जैसा बुरा हाल वहां का हुआ दिखाई दे रहा था, वैसा या तो कोई चोर कर सकता था या फिर पुलिस कर सकती थी । वो चोर का कारनामा था तो उसने नाहक जहमत की थी, मेहनत की थी, क्‍योंकि चुराने लायक वहां कुछ था ही नहीं । वो कॉटेज उसे फर्निश्‍ड किराये पर मिला था, जहां उसका अपनासामान खाली एक सूटकेस था जिसमेंउसके कुछ कपड़े थे और रोजमर्रा के इस्‍तेमाल का कुछ सामान था । अपना कीमती सामान-जैसे कैश, कैमरा - वो हर घड़ी अपने साथ अपनी जेबों में रखता था ।

मोबाइल !
वो उठ कर किचन में गया जहां की एक सॉकेट में चार्ज पर लगा कर वो उसे वहां से हटाना भूल गया था ।
मोबाइल अपनी जगह मौजूद था ।
लिहाजा वो चोर का नहीं, पुलिस का कारनामा था । मोबाइल बीस हजार का था, चोर ने भागते भूत की लंगोटी जान कर उसे जरूर काबू में किया होता ।
उसने बिजली का स्विच आफ किया, चार्जर पर से मोबाइल हटाया और उसे अपनी जेब के हवाले किया ।
फिर किसी अज्ञात भावना से प्ररित हो कर उसने जेब से कैमरा निकाला और उसे चाय के जार में चाय के बीच धकेल दिया । उसने जार का ढ़क्‍कन लगा कर उसे वापिस यथास्‍थान रख दिया । फिर उसने अपने कपड़े बदले, बालों में कंघी फिराई, जिस्‍म पर सेंट की फुहार छोड़ी और शीशे में अपना मुआयना किया ।

गुड !
अब वो डेट के लिये तैयार था ।
उसने कॉटेज की तमाम बत्तियां बुझाई, बाहर निकल कर उसके मेन डोर को सावधानी से लॉक किया और घूम कर सीढि़यां उतरने लगा ।
गली में उसने अभी कुछ ही कदम बढ़ाये थे कि एक बात उसे खटकी । वो ठिठका ।
अभी दस मिनट पहले जब वो वहां पहुंचा था तो गली में रोशनी थी-गली के मिडल में बिजली का एक खम्‍बा जिस पर शेड के नीचे बिजली का एक बल्‍ब जल रहा था ।
क्‍या हुआ बल्‍ब को !
फ्यूज हो गया एकाएक !
लेकिन...
तभी उसे अपने पीछे एक आहट महसूस हुई ।

तत्‍काल वो वापिस घूमा ।
अंधेरे में उसे एक बांह हवा में लहराती दिखाई दी । उसने सिर को नीचा करके जिस्‍म को एक बाजू झुकाया तो कोई चीज ‘शू’ की आवाज के साथ हवा को चीरती उसके कान के करीब से गुजरी ।
डंडा !
जो अपने निशाने पर पड़ जाता तो उसकी खोपड़ी तरबूज की तरह खुली होती ।
सिर झुकाये पूरे वेग के साथ वो उस साये से टकराया जिसके हाथ में डंडा था ।
तभी पीछे से उसके दायें कंधे पर जोर का प्रहार हुआ । उसके सारे जिस्‍म में दर्द की तीखी लहर दौड़ी । बड़ी मुश्किल से वो अपने पैरों पर खड़ा रह पाने में कामयाब हुआ ।

पीछे वाले ने उसकी कनपटी पर वार किया ।
नीलेश का सारा जिस्‍म झनझना गया, उसके पांव जमीन पर से उखड़ गये और वो सामने वाले पर ढ़ेर हुआ । अंदाजन उसने दायें हाथ का घूंसा हवा में घूमाया । घूंसा किसी के मुंह पर कहीं टकराया, किसी के मुंह से पहले घुटी हुई चीख ओर फिर किसी ‘रोनी’ को पुकारती फरियाद निकली ।
पीछे से उनकी खोपड़ी पर वार हुआ ।
उसके घुटने मुड़ गये और वो औंधे मुंह गली में गिरा ।
फिर पसलियों में ठोकर ।
फिर भारी जूते का छाती पर प्रहार ।
फिर !
फिर !

एकाएक कहीं हार्न बजा और गली में एक मोटर साइकल दाखिल हुई ।
तत्‍काल उसके आक्रमणकारियों ने अपने काम से हाथ खींचा और विपरीत दिशा में भाग निकले ।
इतनी धुनाई होने के बावजूद नीलेश को चेतना लुप्‍त नहीं हुई थी । उसने सिर उठा कर भागते दोनों जनों पर निगाह दौड़ाई तो उसे लगा एक जना पुलिस कर वर्दी में था ।
लड़खड़ाता सा वो उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ ।
मोटरसाइकल उसके बाजू से गुजर गयी ।
वो वापिस लौटा, बड़ी मुश्किल से पांच सीढि़यां चढ़ा और वापिस अपने कॉटेज में दाखिल हुआ । बत्तियां जलाता वो बाथरूम में पहुंचा और वहां वाशबेशिन के ऊपर लगे शीशे में उसने अपनी सूरत का मुआयना किया और उंगलियों से अपनी खोपड़ी टटोली ।

उसकी पड़ताल का जो नतीजा सामने आया वो ये था कि खोपड़ी में अंडे के आकार का गूमड़ था, ठोडी और दोईं आंख के ऊपर खाल छिली हुई थी, और सारा जिस्‍म फोड़े की तरह दुख रहा था ।
फिर भी खैरियत थी कोई हड्‍डी नहीं टूटी थी, कोई गहरा घाव नहीं लगा था । यानी हास्‍पीटल केस बनने से वो बच गया था ।
फिर उसने अपनी पोशाक का मुआयना किया तो वो उसे बदलने लायक ही लगी ।
उसने कलाई घड़ी पर निगाह डाली औार असहाय भाव से गर्दन हिलाई ।
उस घड़ी उसे नेलसन एवेन्‍यू में पांच नम्‍बर इमारत की कालबैल बजाते होना चाहिये था ।
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अब अपनी डेट पर पहुंचने से पहले उसने कहीं और पहुचना था ।
उसने खुद को फर्स्‍ट एड दी, मुंह माथा धोया, बाल संवारे, फिर कपड़े तब्‍दील किये और कॉटेज से निकल पड़ा ।
पुलिस स्‍टेशन पहुंचने के लिये ।
थाने में दाखिल होते ही तो पहला शख्‍स नीलेश को दिखाई दिया वो लोकल म्‍यूनीसिपैलिटी का प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी था । मैचिंग शर्ट और एग्‍जीक्‍यूटिव टेबल के पीछे बैठा सिगार के कश लगा रहा था । उसका जिस्‍म थुलथुल था, तोंद निकली हुई थी और सिर के तकरीबन बाल सफेद थे ।
उसके बाजू में ही एक चेयर पर बावर्दी थानाध्‍यक्ष अनिल महाबोले मौजूद था ।

और कोई पुलिसिया उस घड़ी इर्द गिर्द दिखाई नहीं दे रहा था ।
महाबोले ने यूं उसे देखा जैसे राजमहल में चोर घुस आया हो ।
“क्‍या है ?” - वो कर्कश स्‍वर में बोला ।
“मैं नीलेश गोखले” - नीलेश बोला - “आप मुझे जानते हैं । हम पहले मिल चुके हैं ।”
“तो ?”
“एफआईआर लिखाना चाहता हूं ।”
“किस बाबत ?”
“मेरे कॉटेज में चोर घुसे । मेरे पर कातिलाना हमला हुआ ।”
“किसने किया सब ?”
“मालूम होता तो यहां आता ?”
“क्‍या करते ? खुद ही निपट लेते ?”
नीलेश खामोश रहा ।
महाबोले ने बड़े नुमायशी अंदाज से अपने सामने फुलस्‍केप शीट्स का चुटकी लगा एक पुलंदा खींचा और हाथ में बालपैन थामता बोला - “जो कहना है तफसील से कहो ।”

नीलेश ने कहा ।
जब वो खामोश हुआ तो महाबोले बोला - “हमलावरों में से किसी को पहचाना ?”
नीलेश खामोश रहा ।
“जवाब दो, भई !”
क्‍या उसे बोलना चाहिये था कि एक तो शर्तिया कोई पुलिसिया था !
उसने उस बाबत फिलहाल खामोश रहना ही मुनासिब समझा ।
“नहीं ।” - वो बोला ।
“कितने थे ?”
“शायद दो थे ।”
“शायद ?”
“दो थे ।”
“किसी को पहचाना ?”
“नहीं ।”
“किसी का हुलिया बयान कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“क्‍यों ?”
“अंधेरा था ।”
“जहां रहते हो वहां बाहर अंधेरा होता है ?”
“नहीं । गली में रोशनी होती है लेकिन जब मेरे पर हमला हुआ था, तब अंधेरा था ।”

“कहीं ये तो नहीं कहना चाहते कि अंधेरा इत्तफाकन नहीं था, इरादतन था ?”
“यही कहना चाहता हूं ।”
“हमलावरों ने गली में अंधेरा करके रखा ताकि पहचान में न आ पाते ?”
“हो सकता है ।”
“हथियार क्‍या थे उनके पास ?”
“हथियार !”
“भई, कातिलाना हमला हुआ बताते हो, ऐसा हमला हथियार के बिना तो नहीं होता !”
“हथियार के बिना भी होता है लेकिन मुझे किसी हथियार की खबर नहीं । एक डंडा था शायद दोनों में से एक के पास ।”
“डंडा ! वो भी शायद !”
नीलेश खामोश रहा ।
“शायद बहुत प्रधान है तुम्‍हारे बयान में । नशे में तो नहीं हो ?”

“नहीं ।”
“तुम्‍हारे कहने से क्‍या होता है ?”
“और किसके कहने से होता है ?”
“जुबान बहुत लड़ाते हो ! जबकि थाने में खड़े हो ।”
“ये भी तो दुख की बात है ।”
“क्‍या ?”
“खड़ा हूं ।”
महाबोले सकपकाया ।
“बहस करते हो ।” - फिर बोला - “कानून छांटते हो ।”
“तो रपट लिख रहे हैं आप ?”
“तफ्तीश होगी । तुम्‍हारे बयान में कोई दम पाया जायेगा तो फिर देखेंगे ।”
“क्‍या देखेंगे ?”
“पंचनामा करेंगे, भई । एफआईआर दर्ज करेंगे । यही तो चाहते हो न ?”
“जी हां ।”
“तो इंतजार करो ।”

“इंतजार करूं ?”
“वक्‍त लगता है न हर काम में ! प्रोसीजर का काम है, प्रोसीजर से होगा, कोई इंस्‍टेंट फूड तो नहीं, टू-मिनट्स-नूडल्‍स तो नहीं जो झट तैयार हो जायेंगी !”
“लेकिन...”
“अभी भी लेकिन !”
एकाएक बाबूराव मोकाशी अपने स्‍थान से उठा और विशाल टेबल का घेरा काटकर उसके सामने पहुंचा ।
“तो” - वो अपलक उसे देखता बोला - “तुम हो गोखले ?”
“जी हां ।”
“नीलेश गोखले ?”
“जी हां ।”
“मेरी बेटी श्‍यामला की डेट ?”
“जी हां ।”
“लेट नहीं हो गये हो ?”
“हो गया हूं, सर । वजह बन गयी न, सर !”

“वजह ?”
“जो मैंने अभी बयान की ।”
“मैंने सुनी । लेकिन कोई बड़ा डैमेज तो मुझे दिखाई नहीं दे रहा ! नौजवान हो, मजबूत हो, मैं नहीं समझता कि कोई छोटी मोटी टूट फूट तुम्‍हारे जोशोजुनून में कोई कमी ला सकती है ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“कहां से हो ?” - मोकाशी ने नया सवाल किया ।
“मुम्‍बई से ।”
“कोई प्रूफ आफ आइडेंटिटी है ?”
“ड्राइविंग लाइसेंस है । वोटर आई कार्ड है ।”
“दिखाओ ।”
नीलेश ने दोनों चीजें पेश कीं ।
मोकाशी ने दोनों का मुआयना किया और उन्‍हें आगे महाबोले को सौंपा ।
महाबोले ने दोनों पर से सीरियल नम्‍बर वगैरह अपने सामने पड़ी शीट पर नोट किये और दोनों कार्ड नीलेश को लौटा दिये ।

“आइलैंड पर बतौर टूरिस्‍ट हो ?” - मोकाशी बोला ।
“जी नहीं ।” - नीलेश बोला - “नौकरी के लिये आया ।”
“मिली ?”
“जी हां ।”
“कहां ?”
“कोंसिका क्‍लब में ।”
“क्‍या हो तुम वहां ?”
“बाउंसर ! बारमैंस असिस्‍टेंट । जनरल हैंडीमैंन ।”
“आई सी ।”
“लेकिन था ।”
“क्‍या मतलब ? अब नहीं हो ?”
“नहीं हूं ।”
“क्‍यों ? क्‍या हुआ ?”
“जवाब मिल गया ।”
“मतलब ?”
“आई वाज फायर्ड ।”
“कब ?”
“आज ही ।”
“वजह क्‍या हुई ?”
“मालूम नहीं । एम्‍पालायर ने बताई नहीं, मैंने जानने की जिद न की ।”

“जो बात मालूम हो” - महाबोले बोला - “उसको जानने की जिद नहीं की जाती ।”
“जी !”
“वजह मुझे मालूम है ।”
“आ-आपको मालूम है ?”
“गल्‍ले में हाथ सरकाया होगा, पुजारा ने रंगे हाथों थाम लिया होगा !”
नीलेश को पूरा पूरा अहसास था कि महाबोले उसे जानबूझ कर हड़काने की कोशिश कर रहा था । वो जानता था उस घड़ी वो आइलैंड के दो बड़े महंतो के रूबरू था इसलिये जब्‍त से काम लेना जरूरी था ।
“ऐसी कोई बात नहीं, सर ।” - वो विनयशील स्‍वर में बोला ।
“कैसी कोई बात नहीं ?”
“मैं आदतन ईमानदार आदमी हूं । जो आप कह रहे हैं, वो न मैंने किया था, न कर सकता था ।”

“तो डिसमिस क्‍यों किये गये ?”
“पुजारा साहब ने कोई वजह न बताई । बस बोला, कल आके हिसाब कर लेना ।”
“बेवजह कुछ नहीं होता ।” - मोकाशी बोला - “वजह कोई भी रही हो, आइलैंड को बदनाम करने वाली नहीं होनी चाहिये । यहां की गुडविल खराब करने वाली नहीं होनी चाहिये । बाहर से मुलाजमत के लिये यहां आये किसी शख्‍स पर चोरी चकारी का, या किसी दूसरी तरह की बद्सलूकी का इलजाम आये, ये हैल्‍दी ट्रैंड नहीं है । तुम सुन रहे हो, महाबोले ?”
महाबोले ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।
“यहां लॉ एण्‍ड आर्डर तुम्‍हारा महकमा है, तुम्‍हारी जिम्‍मेदारी है इसलिये बोला ।”

“मैंने सुना बराबर, मोकाशी साहब ।”
साले , हवा में मछलियां मार रहे हैं । वजूद में कुछ भी नहीं , और कानून छांट रहे हैं ।
मोकाशी नीलेश की तरफ वापिस घूमा ।
“गोखले !” - वो बोला - “मेरे आइलैंड पर...”
मेरे आइलैंड पर ! क्‍या कहने !
“…तुम्‍हारे साथ कोई बुरी वारदात वाकया हुई, इसका मुझे अफसोस है । लेकिन तुम निश्‍चिंत रहो, एसएचओ साहब पूरी पूरी तफ्तीश करेंगे और ये भी पक्‍की करेंगे कि जो तुम्‍हारे साथ हुआ, वो आइंदा न हो ।”
“मैं मशकूर हूं, जनाब ।”
“अब जाओ, घर जा कर आराम करो ।”

“अभी तो मैं घर नहीं जा सकता, जनाब ।”
मोकाशी की भवें उठीं ।
“वजह आपको मालूम है ।”
“डेट !”
“जी हां ।”
“यू आर लेट । अभी स्‍टैण्‍ड करती है ?”
“उम्‍मीद तो है, सर !”
“हूं !” - मोकाशी ने संजीदगी से सिर हिलाया - “निकल लो ।”
“थैंक्‍यू, सर । थैंक्‍यू, एसएसओ साहब ।”
वो वहां से बाहर निकला ।
बाहरी बरामदे में उसे बैंच पर एक सिपाही बैठा दिखाई दिया ।
नीलेश उसके करीब से गुजरता ठिठका ।
सिपाही ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा ।
“हवलदार जगन खत्री है थाने में ?” - नीलेश ने पूछा ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

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“नहीं ।” - सिपाही सहज भाव से बोला - “छुट्‌टी करके घर गया ।”
“कहां ?”
“अरे, बोला न, घर गया ?”
“मैंने बराबर सुना न ! मैं पूछ रहा हूं घर कहां है उसका ?”
“अच्‍छा वो ! तिलक स्‍ट्रीट में है । ग्‍यारह नम्‍बर ।”
“शुक्रिया ।”
एक आटो पर सवार होकर वो तिलक स्‍ट्रीट पहुंचा ।
ग्‍यारह नम्‍बर एक छोटा सा एकमंजिला मकान निकला ।
मकान के दायें बाजू में एक संकरी सी गली थी जिसमें मकान की एक खिड़की थी जो खुली थी और रात की उस घड़ी सिर्फ उसी में रोशनी दिखाई दे रही थी ।

दबे पांव वो उस खिड़की पर पहुंचा । सावधानी से सिर उठा कर उसने भीतर झांका ।
वो एक छोटा सा बैडरूम था जहां एक बिना बांहों की कुर्सी पर हवलदार खत्री बैठा हुआ था । उसकी वर्दी की कमीज कुर्सी की पीठ पीछे टंगी हुई थी । उसका मुंह दायीं तरफ यूं सूजा हुआ था कि गाल का रंग बदरंग था और आंख के नीचे सूजन का ये हाल था कि वहां तब तक काला पड़ चुका गूमड़ निकल आया हुआ था जिसकी वजह से उधर की आंख लगभग बंद हो गयी थी । एक महिला - जो कि जरूर उसकी बीवी थी - गर्म प्रैस से कपडे़ की गद्दी को गर्मा कर उसका गूमड़ सेंक रही थी और जब भी गर्म गद्दी उसके गाल को छूती थी, उसके मुंह से कराह निकल जाती थी ।

नीलेश खिड़की पर से हट गया ।
अपने एक हमलावर की शिनाख्‍त अब उसे निश्‍चित रूप से हो चुकी थी ।
अब वो संतुष्‍ट था कि सारे वार उसी ने नहीं झेले थे, उसका भी कोई वार किसी को झेलना पड़ा था ।
पीछे थाने में दोनों बडे़ खलीफा संजीदासूरत एक दूसरे के रूबरू थे ।
“क्‍या हो रहा है ?” - फिर मोकाशी बोला ।
“क्‍या होना है ?” - लापरवाही से कंधे उचकाता महाबोले बोला - “एक श्‍याना पल्‍ले पड़ गया है ।”
“गोखले !”
“और कौन ?”
“इस वास्‍ते ठोक दिया !”
“श्‍यानपंती तो निकालने का था न ! श्‍यानपंती कौन मांगता है इधर ! या मांगता है ?”

“नहीं । लेकिन इतनी जल्‍दबाजी की क्‍या जरूरत थी ?”
“जल्‍दबाजी !”
“पहले मेरे से जिक्र किया होता !”
“सर, दिस इज पोलिस मैटर !” - महाबोले अप्रसन्‍न भाव से बोला - “आपसे जिक्र करने लायक बात कौन सी थी इसमें ?”
“पुलिस मैटर था इसलिये तुमने खुद हैंडल किया । क्‍योंकि तुम्‍हें अपने तजुर्बे पर नाज है, समझते हो तुम पुलिस मैटर को बढ़िया हैंडल करते हो । ठीक !”
“क्‍या कहना चाहते हैं ?”
“मुम्‍बई से आयी वो टूरिस्‍ट महिला भी पुलिस मैटर थी, नशे में जिस पर लार टपकाने लगे थे, जिसके गले पड़ गये थे, जिसका जिगजैग ड्राइविंग का चालान करने की धमकी दी थी और जिसके हैण्‍डबैग में मौजूद दो सौ डालर निकाल लिये थे !”

महाबोले ने मुंह बाये मोकाशी की तरफ देखा ।
“मोस्‍ट इम्‍पार्टेंट पुलिस मैटर था जिस वजह से उसे खुद हैण्‍डल किया । ट्रैफिक कॉप का काम थाने के एसएचओ ने किया । और क्‍या खूब किया ! हाइवे रॉबर्स को मात कर दिया ।”
“कौन बोला ?” - महाबोले के मुंह से निकला ।
“कोई तो बोला ! गजट में तो छपा नहीं था जहां से कि मैंने पढ़ लिया !”
“इधर से किसी ने मुंह फाड़ा ?”
मोकाशे ने जवाब न दिया ।
“जान से मार दूंगा ।” - महाबोले दांत पीसता बोला ।
“यानी नये स्‍टाइल से खुदकुशी करोगे !”

“मेरा कोई बाल नहीं बांका कर सकता ।”
“कोई नहीं कर सकता । खुद तो कर सकते हो न ! जाने अनजाने यही कर रहे हो तुम । क्‍या !”
महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“एक बात ऐसी है जो तुम्‍हें नहीं मालूम लेकिन किसी तरीके से मेरे तक पहुंची है । सुनो, क्‍या बात है ! सुन रहे हो ?”
महाबोले ने तनिक हड़बड़ाते हुए सह‍मति में सिर हिलाया ।
“वो टूरिस्‍ट महिला, जिसे तुम भूल भी चुके हो- नाम मीनाक्षी कदम - अपनी बद्किस्‍मती समझो कि एक सिटिंग एमपी की करीबी निकली है जिसको कि मुम्‍बई लौट कर उसने अपनी आपबीती सुनाई थी । एमपी उसे सीधा मंत्रालय में होम मिनिस्‍टर के पास ले कर गया था जिसने आगे मुम्‍बई के पुलिस कमिश्‍नर को तलब किया था...”

“ब-बात इतनी ऊपर तक पहुंच गयी !”
“हां ।”
“लेकिन कोई...कोई रियेक्‍शन तो सामने आया नहीं ! हुआ तो कुछ भी नहीं !”
“इसी बात की मुझे हैरानी है ।”
“लेकिन...”
“एक बात हो सकती है ।”
“क्‍या ?”
“कई शातिर चोर उचक्‍कों की माडस अप्रांडी है कि वो पुलिस का बहूरूप धारण करके आपरेट करते हैं । ऊपर शायद ये बात किसी को हज्‍म नहीं हुई कि खुद इलाके का एसएचओ ऐसी कोई टुच्‍ची हरकत कर सकता हो । उन्‍हें यही मुमकिन लगा हो कि इंस्‍पेक्‍टर की वर्दी में कोई बहुरूपिया था जो यहां उस टूरिस्‍ट महिला से-मीनाक्षी कदम से-टकराया था ।”

“ऐसा हो तो सकता है लेकिन-खानापूरी के लिये ही सही-कोई छोटी मोटी इंक्‍वायरी तो फिर भी सामने आयी होनी चाहिये थी !”
“क्‍या पता सामने आयी हो और वो इतनी खुफिया रही हो कि तुम्‍हें खबर ही न लगी हो !”
महाबोले के चेहरे पर विश्‍वास के भाव न आये ।
“उस रोज तुम इतने टुन्‍न थे कि थाने में लौट के मुंह फाड़ा था, अपनी करतूत की शेखी बघारी थी । याद तो होगा नहीं कुछ !”
महाबोले खामोश रहा ।
“अपनी म्‍यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट की हैसियत में मैं एक तरह से इस आइलैंड का एडमिनिस्‍ट्रेटर हूं । इसलिये यहां के ठहरे पानी में कोई पत्‍थर आ के गिरता है तो उसकी मुझे खबर होनी चाहिये । अब इस बात की रू में जवाब दो - गोखले पुलिस मैटर है ? सिर्फ पुलिस मैटर है ?”

महाबोले का सिर स्‍वयमेव इंकार में‍ हिला ।
“तुम खुद कुबूल करते हो कि खानापूरी के लिये ही सही, तुम्‍हारी उस करतूत की रू में कोई छोटी मोटी इंक्‍वायरी सामने आनी चाहिये थी । ऐसी कोई इंक्‍वायरी होगी तो जरूरी है कि तुम्‍हें उसकी खबर लगे ?”
“जरूरी है । थाने आये बिना कैसे होगी इंक्‍वायरी उस बाबत ?”
“वो बात मेरे को मालूम है । मैं थाने आया था ?”
“नहीं । इस काम के लिये तो नहीं !”
“फिर भी बात मुझे मालूम हुई न ! कैसे हुई ?”
“आप बताइये ।”
“जवाब कोई इतना मुश्किल तो नहीं कि खुद तुम्‍हें न सूझे !”

उसने उस बात पर विचार किया ।
“मेरे आदमी मेरे वफादार हैं” - फिर बोला - “फिर भी किसी ने मुंह फाड़ा !”
“इंसानी फितरत का ऊंट कब किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता । बहरहाल बात गोखले की हो रही थी । क्‍या वो खुफिया इंक्‍वायरी एजेंट हो सकता है ?”
“वो ! नहीं ! उसकी उतनी ही औकात है जितनी उसकी कोंसिका क्‍लब की नौकरी में उजागर है ।”
“वो बाहरी आदमी है...”
“शुरू में हर कोई बाहरी आदमी ही होता है ।”
“हर कोई बराबर । लेकिन उन्‍हीं में से कोई हर कोई होने की जगह खास भी निकल आता है । गोखले मुझे दूसरी टाइप का हर कोई जान पड़ता है ।”

“गलत जान पड़ता है । कुछ नहीं है वो । आपका अंदेशा अपनी जगह सही है लेकिन वो अंदेशा आपकी आदत भी तो बन चुका है !”
मोकाशी की भवें उठीं ।
“फ्रांसिस मैग्‍नारो के कदम आइलैंड पर पडे़ थे, तब भी आपको ऐसे ही अंदेश ने सताया था । आपको लगा था वो हम दोनों पर हावी हो जायेगा । अब क्‍या कहते है ?”
“मैंने क्‍या कहना है ! वो और उसका गैंग तुम्‍हारी वजह से आइलैंड पर है । तुमने उसे यहां आने को न्‍योता था । उसकी बाबत जो जानते हो, तुम्हीं बेहतर जानते हो ।”

“तो मेरी जानकारी पर ऐतबार लाइये । ही इज ए सेफ बैट एण्‍ड ही इज विद अस लाइक हैण्‍ड इन ग्‍लव ।”
“फिर क्‍या बात है !”
“मैग्‍नारो बहुत स्‍मार्ट आपरेटर है । जुए और प्रास्‍टीच्‍यूशन और ड्रग पैडलिंग का जो सि‍लसिला इतना उम्‍दा तरीके से यहां चल रहा है, वैसे उसे हम नहीं चला सकते । सब कुछ वो हैंडल करता है, वो आर्गेनाइज करता है, कोई खतरा सामने आता है तो कामयाबी से उसका मुकाबला वो करता है लेकिन उसके साथ चांदी हम भी काटते हैं । मैं मौजूदा सिलसिले से संतुष्‍ट हूं, आपको भी होना चाहिये ।”

“वो तो मैं हूं लेकिन मेरी चिंता दूसरी किस्‍म की है ?”
“क्‍या है आपकी चिंता ?”
“अब तक जब कभी भी सरकारी तौर पर हमारे खिलाफ कुछ हुआ है, प्रत्‍यक्ष हुआ है । हमारा अपना खुफिया तंत्र है इसलिये जो कुछ होने वाला होता है, हमें उसकी एडवांस में खबर लग जाती है इसलिये हम खबरदार हो जाते हैं । नतीजतन रेड मारने आये बाहरी लोगों के हाथ कुछ नहीं लगता । कोई इक्‍का दुक्‍का डोप पुशर पकड़ा जाता है या कालगर्ल पकड़ी जाती है तो वो अपनी इंडिविजुअल कैपेसिटी में पकड़ी जाती है इसलिये हम पर कोई हर्फ नहीं आता...”

“क्‍योंकि ये बात प्रत्‍यक्ष है कि पुलिस की लिमिटेशंस होती हैं, हम हर एक टूरिस्‍ट पर एक‍ सिपाही नहीं अप्‍वायंट कर सकते इसलिये कहने को कोई इक्‍का दुक्‍का काली भेड़ निकल ही आती है जिसकी हमें खबर नहीं हो पाती ।”
“ठीक । ठीक । लेकिन मेरी चिंता ये है कि अगर कभी हमारा खुफिया तंत्र फेल हो गया, हमारे खिलाफ होने वाली कार्यवाही की वक्‍त रहते हमें खबर न लगी तो...तो क्‍या होगा ?”
“आप खातिर जमा रखिये । ऐसा नहीं होगा । मेरे होते ऐसा नहीं हो सकता । मेरी जर्रे जर्रे पर नजर है ।”
“महाबोले, ओवरकंफीडेंस ही वाटरलू बनता है ।”
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“मेरे साथ-हमारे साथ-ऐसा कुछ नहीं होने वाला । आप मेरे पर ऐतबार लाइये और यकीन जानिये, इधर सब कुछ काबू में है ।”
“सब कुछ?”
“जी हां ।”
“कोई लूपहोल नहीं ?”
“लूपहोल !”
“हां ।”
“आपकी निगाह में है कोई ? आप कुछ कहना चाहते हैं ?”
“आइलैंड पर प्रास्‍टीच्‍यूट्स बढ़ती जा रही हैं, मुझे उनसे अंदेशा है ।”
“सब हफ्ता देती हैं, इसलिये सब हमारी निगाह में हैं ।”
“सब ?”
“क्‍या कहना चाहते हैं ?”
“सुना है कोई तुम्‍हें भा जाये तो वो हफ्ता और तरीके से देती है !”
“मैं समझा नहीं !”
“मिसाल दे कर समझाता हूं । जैसे कि कोंसिका क्‍लब की बारबाला रोमिला सावंत ।”

“देवा ! ये कौन है...कौन है जो मेरी मुखबिरी पर लगा है ?”
“तुम्‍हारे उससे ताल्‍लुकात हैं ?”
“बिल्‍कुल नहीं । अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आये कि मैं एक बारबाला ते ताल्लुकात बनाऊंगा ।”
“वो कहती है...”
“कहती है तो झूठ बोलती है । मुझे बदनाम करती है ।”
“सुन तो लो क्‍या कहती है !”
“मैं नहीं सुनना चाहता । मुर्दा बोलेगा तो कफन ही फाडे़गा ! दुम ठोकूंगा मैं साली की । बल्कि आइलैंड से निकाल बाहर करूंगा ।”
“ज्‍यादा ताकत बताओगे तो सारी रंडियां खिलाफ हो जायेंगी । आइलैंड पर प्रास्‍टीच्‍यूशन का धंधा ही ठप्‍प हो जायेगा ।”

“ऐसा न होगा, न हो सकता है । जब ये सृष्टि बनी थी, तब ये धंधा मौजूद था; जब खत्‍म होगी, तब भी ये धंधा मौजूद होगा ।”
“अब गोखले के बारे में फाइनल बात बोलो, क्‍या कहते हो ! वो सीक्रेट एजेंट हो सकता है ?”
“नहीं हो सकता । जब आप जानते ही हैं कि मैंने उसे ठुकवाया है तो बाकी भी सुनिये । मैंने उसकी गैरहाजिरी में उसके कॉटेज की तलाशी का भी इंतजाम किया था । आपकी जानकारी के लिये कोई शक उपजाऊ चीज तलाशी में बरामद नहीं हुई थी । उसकी ठुकाई के पीछे भी मेरी यही मंशा है कि वो खुद ही आइलैंड छोड़कर चला जाये ।”

“जब तुम्‍हें यकीन है कि वो खुफिया एजेंट नहीं है तो क्‍यों तुम ऐसा चाहते हो ?”
“क्‍योंकि आपकी बेटी के पीछे पड़ा है ।”
“मेरी बेटी को तुम इस डिसकशन से बाहर रखो ।”
“उसने मेरी बाबत आपसे कुछ बोला ?”
“लगता है तुमने सुना नहीं मैंने क्‍या कहा ! श्‍यामला का जिक्र, श्‍यामला का खयाल छोड़ दो । जो तुम चाहते हो, वो नहीं हो सकता । किसी सूरत में नहीं हो सकता ।”
“आपको मालूम है मैं क्‍या चाहता हूं ?”
“मालूम है । तभी बोला ।”
“फिर तो मैं आपको थैंक्‍यू बोलता हूं...”
“जज्‍बाती होने का कोई फायदा नहीं ।”

“मैं जज्‍बाती नहीं हो रहा, मैं तसलीम कर रहां हूं कि श्‍यामला के मामले में मैं कहां स्‍टैण्‍ड करता हूं, मैंने अच्‍छी तरह से समझ लिया है । अब एक बात आप भी समझ लीजिये । अच्‍छी तरह से ।”
“क्‍या ?”
“अभी मुझे कोई जल्‍दी नहीं है लेकिन मैं जब चाहूंगा श्‍यामला पर अपना क्‍लेम लगा दूंगा । और आप इस बाबत कुछ नहीं कर सकेंगे । देखना आप ।”
मोकाशी हड़बड़ाया । फिर परे देखने लगा । फिर सिगार के कश लगाने लगा तो पाया वो बुझ चुका था । हड़बड़ी में वो सिगार को सुलगाने की कोशिश करने लगा ताकि महाबोले को मालूम न हो पाता कि वो कितना आशंकित, कितना आंदोलित हो उठा था ।

“वो आइलैंड पर नवां भीङू” - महाबोले कह रहा था - “नीलेश गोखले, जिसके आगे पीछे का कुछ पता नहीं, आपकी बेटी से ताल्‍लुकात बना रहा है, आपको कोई एतराज नहीं । रात के एक एक, दो दो बजे तक श्‍यामला बार हॉपर्स छोकरों के साथ मस्‍ती मारती है, आपको कोई ऐतराज नहीं । क्‍योंकि आप माडर्न बाप हैं, लिबरल बाप हैं । मैं तवज्‍जो दिलाऊं तो आप मुझे हसद का मारा बताने लगते हैं । मैं पूछता हूं क्‍या पसंद आया है आपको गोखले में जिसकी वजह से आप उसक तरफदार बने हैं ? क्‍या जानते हैं आप उसके बारे में ?”

“कुछ जानने की जरूरत नहीं । वैसे मुझे मालूम है कि अभी ऐसी कोई नौबत नहीं आयी है लेकिन जब आयेगी तो मैं यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी की पसंद, वो मेरी पसंद ।”
“आप खता खायेंगे ।”
“देखेंगे ।”
“वो सीक्रेट एजेंट निकला तो क्‍या करेंगे ?”
“अरे, अभी तो कहके हटे हो, खुद कनफर्म करके हटे हो, कि वो सीक्रेट एजेंट नहीं है ।”
“फिर भी हुआ तो ?”
“तुम्‍हारे कहने से !”
“जवाब दीजिये ।”
“तो फिक्र की बात होगी ।”
“दुश्‍मन का साथ देंगे ! ताकि वो गोद में बैठ कर दाढ़ी मूंड सके ! ताकि हमारा यहां का जमा जमाया निजाम उखाड़ने में वो आपको हथियार बना सके !”

“तुम बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर कह रहे हो । वो ऐसा निकला तो उसको हैंडल करने के लिये मुझे किसी से ट्रेनिंग लेने जाने की जरूरत नहीं होगी, तो मैं उसको तुमसे बेहतर सजा दे के दिखाऊंगा ।”
महाबोले हंसा ।
“तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं ?” - मोकाशी गुस्‍से से बोला ।
“देखेंगे, जनाब, देखेंगे कि वक्‍त आने पर कौन किसको सजा देता है । लेकिन” - एकाएक महाबोले का स्‍वर असाधारण रूप से कर्कश हो उठा - “मैं वो वक्‍त नहीं आने दूंगा ।”
“क्‍या करोगे ?”
“ना छोङूंगा बांस, न बजने दूंगा बांसुरी ।”

“मतलब ?”
“वक्‍त आने दीजिये, समझ जायेंगे । और यकीन जानिये, जिस वक्‍त ने आना है, वो कोई ज्‍यादा दूर नहीं खड़ा ।” - उसने वाल क्‍लॉक पर निगाह दौड़ाई - “अब रात खोटी करने का कोई फायदा नहीं । वैसे मुझे कोई एतराज नहीं है, आप भले ही जब तक मर्जी ठहरिये ।”
“नहीं । चलता हूं । गुड नाइट ।”
“गुड नाइट, सर ।”
चिंतित भाव से सिगार के केश लगाता बाबूराव मोकाशी वहां से रुखसत हो गया ।
पीछे उतने ही चिंतित थानेदार महाबोले को छोड़ कर ।
नीलेश गोखले महाबोले की तवज्‍जो का मरकज बराबर था लेकिन उस वक्‍त उसके जेहन पर रोमिला और सिर्फ रोमिला छाई हुई थी ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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