Thriller सीक्रेट एजेंट

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

Post by Masoom »

“क्‍यो नहीं ! क्‍यों नही !”
“जो मैंने किया, जो उस भीङू के साथ हुआ, उससे तेरे को क्‍या प्राब्‍लम है ? तेरे इधर में” - नीलेश ने ठि‍ठक कर उसके उन्‍नत वक्ष पर निगाह डाली - “क्‍यों कुछ होता है ? होता है तो साला ये टेम ही क्‍यों होता है ?”
“मेरे को वांदा नहीं । मेरे को सब चलता है इधर । बहुत टेम हो गया न ! पर तुम्‍हें तो अभी टू वीक्‍स भी नहीं हुआ इधर ! इसी वास्‍ते सोचती थी कितनी जल्‍दी इधर के रंग में रंगा । साला तेरे जैसा डीसेंट भीङू...”
“कौन बोला मैं डीसेंट भीङू ?”

“क्‍या ! नहीं है ?”
“नहीं है । अब नक्‍की कर ।”
उसका कंधा थाम के उसको एक बाजू करता वो वापिस बार के पीछे पहुंचा गया ।
जो नाइंसफी उस बेवडे़ के साथ हुई थी, वो उसका दिल तो कचोटती थी लेकिन जिम्‍मेदार, वो खुद भी तो था ! क्‍यों वो बारबाला को ‘ईजी ले’ समझता था जो उसके एक लम्‍पट इशारे पर बिछने को तैयार हो सकती थी ! मुफ्त में‍ कहीं कुछ मिलता था ! हर चीज की कीमत होती थी जो कि अदा करनी ही पड़ती थी । उसने अदा न की, यासमीन ने खुद वसूल ली । बस इतनी सी बात थी ।

खुद को बहलाना भरमाना कितना आसान था !
और दो घंटे बाद कोंसिका क्‍लब में भीड़ का ये आलम था कि वहां‍ तिल धरने को जगह नहीं थी । अधिकतर मेहमान नशे की एडवांस स्‍टेज में पहुंच चुके हुए थे और उनके अट्टहासों का और कानफाङू म्‍यूजिक का ऐसा असर था कि आप‍स में वार्तालाप करने के लिये एक दूसरे के कान के पास मुंह ले जाकर ऊंचा बोलना पड़ता था । बार के सारे बूथ फुल थे और उनकी सैमी-प्राइवेसी में रंगरेलियों का और भी ज्‍यादा बोलबाला था । तरंग में लोग बाग खुश थे, आपे से बाहर हो रहे थे तो गमगीन भी थे जो जज्‍बाती हो कर अपने जाम में आंसू टपका रहे थे । एक झांकी जैसी जेवरों से लकदक किटी पार्टी मार्का महिला अपने पति के साथ थी, पति जब उठ कर टायलेट में गया था तो वो बाकायदा नीलेश पर डोरे डालने लगी थी । लेकिन वो शो थोड़ी देर ही चला था, पति लौट आया था तो उसने तुरंत अपनी सैक्‍स अपील का स्विच आफ कर दिया था और सम्‍भ्रांत ‘बहनजी’ बन गयी थी ।

आधी रात होने तक वहां तीन बार झगड़े फसाद का माहौल बना था । एक में दो मर्द, एक ही औरत के पीछे थे और के उस पर अपना अपना एक्‍सक्‍लूसिव दावा ठोकने की कोशिश में आपस में लड़ पडे़ थे । दूसरे में एक बारबाला ने नशे की एडवांस्‍ड स्‍टेज पर पहुंचे एक मेहमान को धुन दिया था जो कि उसको वहीं, मेज पर लिटाने कि कोशिश करने लगा था । तीसरा मामला गम्‍भीर था जिसमें चार जनों बियर की बोतलों से एक दूसरे के सिर फोड़ने में कसर नहीं छोड़ी थी ।
तीनों बार नीलेश ने स्थिति को बड़ी दक्षता से हैंडल किया था और बाकायदा अपने एम्‍पलायर गोपाल पुजारा की तारीफी निगाहों का हकदार बना था ।

वैसे जो कुछ भी हुआ था, वो रोजमर्रा का वाकया था, नया उसमें कुछ नहीं था ।
ऐसी ही रौनक जगह थी कोंसिका क्‍लब ।
बारह बजे के बाद भीड़ छंटने लगी थी और एक बजने तक कोई इक्‍का दुक्‍का बेवड़ा ही किसी टेबल पर बैठा रह गया था । रोमिला, यासमीन और बाकी बारबालायें वहां से जा चुकी थीं । बाहर का विशाल नियोन साइन आफ कर दिया गया था और भीतर की भी अधिकतर बत्तियां बुझा दी गयी थीं ।
एक बजने के पांच मिनट बाद एकाएक मेन डोर खुला और छ: जनों की एक पार्टी ने एक साथ भीतर कदम रखा । ग्रुप में तीन खूबसूरत नौजवान, माडर्न लड़कियां थीं जिनमे से कोई भी उम्र में बीस-बाइस साल से ज्‍यादा की नहीं जान पड़ती थी । साथ मे उनकी उम्र को मैच करते तीन लड़के थे ।

पुजारा ने खुद आगे बढ़ कर उनका स्‍वागत किया और एक वेटर को एक बड़े बूथ की टे‍बल को नये मेजपोश, नये नैपकिन, नयी क्रॉकरी, कटलरी से संवारने का हुक्‍म दिया ।
स्‍टाफ का हर कोई उनसे अदब से पेश आ रहा था, यहां तक कि कुक भी भीतर से निकल आया, उस ग्रुप के करीब पहुंचा और ग्रुप की एक लड़की का - जिसके बाल लाली लिये हुए भूरे थे और जो सबसे अधिक खूबसूरत थी - उसने बहुत खास, बहुत स्‍पेशल अभिवादन किया ।
नीलेश ने पुजारा को उस लड़की को श्‍यामला के नाम से पुकारते सुना । कुक अभिवादन करते वक्‍त उसको मिस मोकाशी कह कर पुकारा था ।

श्‍यामला मोकाशी !
म्‍युनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट बाबूराव मो‍काशी की इकलौती बेटी !
मुम्‍बई के टॉप के कालेज में शिक्षा प्राप्‍त !
नीलेश ने उसका चर्चा बराबर सुना था । लेकिन सूरत पहली बार देख रहा था ।
पुजारा परे खड़े नीलेश के करीब पहुंचा ।
“जाना नहीं अभी ।” - वो दबे स्‍वर में बोला ।
नीलेश की भवें उठीं ।
“भाव मत खा । ओवरटाइम मिलेगा ।”
“मैं कुछ बोला ?”
“अच्‍छा किया नहीं बोला ।”
“सबको ?”
“क्‍या सबको ?”
“जो अभी रुकेंगे, सबको ओवरटाइम !”
“नहीं । खाली तेरे को । स्‍पेशल करके तेरे को । अब खुश !”

“हां ।”
“मालिक की बेटी है । स्‍पेशल करके ट्रीट करने का कि नहीं करने का ?”
नीलेश के होंठ भिंचे । बेध्‍यानी में पुजारा के मुंह से एक बड़ा सच उजागर हो गया था ।
तो असल में कोंसिका क्‍लब का मालिक बाबूराव मोकाशी था, गोपाल पुजारा खाली उसका फ्रंट था ।
“जा के बार का आर्डर ले !” - पुजारा बोला ।
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया और उनके केबिन पर लौट कर आर्डर लिया ।
लडकियों के लिये वाइन, लड़कों के लिये वोदका विद टॉनिक वाटर । नीलेश बार पर गया, आर्डर के मुताबिक छ: ड्रिंक्‍स तैयार किये और उनको एक ट्रे पर सजा कर केबिन पर वापिस लौटा । उसने ड्रिंक्‍स सर्व किये ।

थैंक्‍युज की बुदबुदाहट हुई ।
उन लोगों को चियर्स बोलता छोड़कर नीलेश वहां से परे हट गया ।
श्‍यामला की खूबसूरती का नीलेश को ऐसा धड़का लगा था कि वो किसी न किसी बहाने उन‍के केबिन के गिर्द ही मंडराता रहा था और चोरी छुपे श्यामला को निहारता रहा था ।
क्‍या लड़की थी !
कॉनमैन की बेटी !
जो नीलेश के प्रयत्‍नों से निकट भविष्‍य में जेल जाने वाला था ।
एक बार श्‍यामला की निगाह नीलेश से मिली तो नीलेश को ऐसा लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो । वो बौखलाया और तत्‍काल परे देखने लगा ।

श्‍यामला के चेहरे पर उलझन के भाव आये, भवें सिकोडे़ वो कुछ क्षण उसकी तरफ देखती रही, फिर एकाएक उठी, केबिन से निकली और नीलेश के सामने आ खड़ी हुई ।
नीलेश और बौखला गया । वो पहलू बदलने लगा और उससे निगाहें चुराने लगा ।
“हल्‍लो !” - वो मुस्‍कराती हुई बोली - “मैं श्‍यामला मो‍काशी ! यहां नये हो ?”
नीलेश ने जल्‍दी से सहमति में सिर हिलाया ।
“नाम भी इशारे से ही बता सकते हो ?”
“नी-नीलेश ! नीलेश गोखले !”
“हल्‍लो, नीलेश !”
“ह-हल्लो मिस मोकाशी !”
“श्‍यामला ।”
“हल्‍लो, श्‍यामला !”
“दैट्स मोर लाइक इट । कहां से हो ?”

“मुम्‍बई से ।”
“इधर आल दि वे जॉब करने आये ?”
“हां ।”
“वहां कोई जॉब न मिली ?”
“मिली । लेकीन मै मुम्‍बई से आजिज था । कहीं बाहर निकलना चाहता था । चांस लगा, इधर आ गया ।”
“आई सी ! कब से हो यहां ?”
“कल टू वीक्‍स हो जायेगा ।”
“कैसा लगा हमारा आइलैंड ?”
हमारा आइलैंड !
साली के बाप का आइलैंड !
“बढिया !” - प्रत्‍यक्षत: वो बोला ।
“गुड ! आई एम ग्‍लैड ।” - वो एक क्षण ठि‍ठकी फिर बोली - “हम लोगों की वजह से तुम्‍हें रुकना पड़ा, उसके लिये सारी । हमें इतना लेट नहीं आना चाहिये था ।”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

Post by Masoom »

“वांदा नहीं । बोले तो मेरे को खुशी कि तुम लोगों के आने के टेम मैं इधर था, छुट्टी करके चला नहीं गया हुआ था ।”
श्‍यामला की‍ भवें उठीं ।
“फिर तुम्‍हारे से मुलाकात कैसे होती ?”
“ओह ! पसंद आयी मुलाकात ?”
“अब...आयी तो सही !”
“गुड ! वैल, दि फीलिंग इज म्‍यूचुअल !”
“थैंक्यू ।”
“यहां के मालिक मिस्‍टर पुजारा बहुत अच्‍छे आदमी हैं जिन्‍होंने हमारी लाज रखी, हमें सम्‍मान दिया और एक्‍स्‍ट्रा लेट आवर्स में हमारे लिये अपने क्‍लब को चालू रखना कबूल किया । मिस्‍टर पुजारा मेरे डैडी के फास्‍ट फ्रेंड हैं इसलिये उन्‍होंने हमारा इतना लिहाज किया ।”

स्‍टोरी बना रही थी या सच में ही नहीं जानती थी कि असल मे कोंसिका क्‍लब का मालिक उसका बाप था , पुजारा उसका फ्रंट था !
“वैसे” - वो कह रही थी - “मेन पायर पर दो आल नाइट डाइनर भी हैं लेकिन यहां के खाने की - खास तौर से मस्‍टर्ड आयल फ्राइड हिलसा की - बात ही कुछ और है ।”
“हिलसा ब्रॉट यू हेयर ?”
“बट आफ कोर्स । वो क्‍या है कि...”
तभी ग्रुप का एक युवक - जींस-जैकेट - गोल्‍फकैपधारी - उनके करीब पहुंचा । उसने नीलेश को खुश्‍क ‘एक्‍सक्‍यूज मी’ बोला, श्‍यामला की बांह थामी और उसे डांस फ्लोर की ओर ले चला । व‍हां खुद ही उसने म्‍यूजिक सिस्‍टम चालू किया, किसी वैस्‍टर्न डांस ट्यून की डिस्‍क उसमें फीड की और श्‍यामला की कमर में हाथ डाल कर जबरन उसके साथ डांस करने लगा ।

फासले से भी नीलेश ने लड़की के चेहरे पर गहन अनिच्‍छा के भाव साफ देखे ।
वो खामोशी से बार काउंटर के साथ टे‍क लगाये डांस फ्लोर का नजारा करता रहा ।
तभी कुक की देखरेख में दो वेटर उनके केबिन की टेबल पर खाना लगाने लगे ।
वो अपने काम से फारिग हुए तो एक युवक ने आवाज लगाई - “आओ, भई, खाना सर्व हो गया है ।”
श्‍यामला के पांव ठिठके, उसने अपनी कमर से गोल्‍फ कैप वाले का हाथ जबरन हटाया और बोली - “खाना !”
“उन लोगों को खाने दो ।” - युवक ने फिर उसको दबोच लिया - “हम बाद में खायेंगे ।”

“लेकिन...”
“बोला न ! कीप डांसिंग ।”
“बट...”
“ब्‍लडी पे अटेंशन टु वाट आई एम सेईंग ।”
साथ ही युवक ने उसे अपनी छाती से भींच लिया और उसका चुम्‍बन लेने की कोशिश करने लगा ।
“छोड़ो ! छोड़ो !” - वो छटपटाई ।
“हाथ पांव झटकने बंद कर, साली, और...एनजाय कर ।”
तत्‍काल बूथ में मौजूद दो युवक उठ कर खड़े हुए । लेकिन नीलेश डांस फ्लोर के करीब था इसलिये वो फ्लक झपकते वहां पहुंच गया । उसने युवक को उसकी गर्दन से थामा और दूसरा हाथ उसकी कमर में डाल कर उसको जबरन युवती से अलग किया ।

“वाट दि हैल !” - वो तड़प कर बोला ।
“नन आफ दैट, मिस्‍टर ।” - नीलेश सख्‍ती से बोला ।
“यु ब्‍लडी हायर्ड हैल्‍प...ब्‍लडी टू बिट बार स्‍कम...”
उसकी गर्दन तब भी नीलेश की पकड़ में थी, उसने पकड़ मजबूत की तो‍ उसकी आखें बाहर निकलने को हो गयीं ।
“नन आफ दैट टू ।” - नीलेश जब्‍त से बोला - “नो फाउल लैंग्‍वेज इन प्रेजेंस आफ दि लेडी !”
“साला टू बिट बारमैन मेरे को इंगलिश बोल के बताता है ! मैं अपनी फ्रेंड के साथ डांस करता है, साला तेरे को प्राब्‍लम !”
“मैडम को प्राब्‍लम ।”

“मैडम मेरे साथ है ।”
“साथ यहां है । कोंसिका क्‍लब में । इधर गलाटा नहीं मांगता ।”
“अच्‍छा !”
“हां ।”
“अभी रोक के बता ।”
उसने जबरन गर्दन छुड़ाई, दो कदम पीछे हटा और जेब से चाकू निकाल लिया । खटका दबाये जाने से कमानी खुलने की आवाज हुई तो नीलेश की तवज्‍जो चाकू की तरफ गयी ।
श्‍यामला की भी ।
उसके मुंह से चीख निकल गयी ।
चाकू वाला हाथ सामने फैलाये युवक नीलेश पर झपटा l नीलेश ने बड़ी दक्षता से उस हाथ की कलाई थाम ली और उसे फिरकी की तरह घुमा कर उसकी वो बांह उसकी पीठ पीछे लगा दी l उसने बांह और उमेठी तो चाकू उसकी पकड़ से निकल कर डांस फ्लोर के फर्श पर जा गिरा । नीलेश ने पांव की ठोकर से उसे वहां से परे उछाल दिया ।

तब तक उनके बाकी के साथ भी केबिन से उठकर वहां पहुंच चुके थे ।
दोनों लड़कियां सुबकती श्‍यामला के आजूबाजू पहुंची और उन्‍होंने उसे अपनी हिफाजत में ले लिया ।
नीलेश ने गोल्फ कैप वाले को बंधनमुक्‍त किया और उसे अपने से परे धकेल दिया ।
दोनों युवक गोल्‍फ कैप वाले के करीब पहुंचे ।
“जैकी !” - एक युवक गुस्से से उसे झिड़कता बोला - “माथा फिरेला है !”
“मैने क्‍या किया ?” - जैकी - गोल्‍फ कैपधारी - बोला ।
“तेरे को नहीं मालूम ?”
“जो किया, ये साला हरामी किया...”
“नो फाउल लैंग्‍वेज, जैकी !” - दूसरे युवक ने चेताया ।

“इसी ने बीच में आ के पंगा डाला...”
“चाकू भी इसी ने चमकाया !” - पहला युवक बोला ।
“ये साला मेरे को फोर्स किया…”
“फिर !” - दूसरा युवक बोला - “आई सैड नो फाउल लैंग्‍वेज !”
“हाथ मरोड़ दिया, गर्दन तोड़ने में कसर न छोड़ी...”
“जैकी, तू श्‍यामला के साथ मिसबिहेव करता था...”
“मैं जानूं श्‍यामला जाने ! ये साला किस वास्‍ते बीच में आन टपका ?”
“क्‍या बोलता है, जैकी ! तेरा म‍तलब है श्‍यामला को तेरा रफ, रॉटन, मिसबिहेवियर मंजूर ?”
श्‍यामला तत्‍काल जोर जोर से इंकार में सिर हिलाने लगी ।
“तू साला टुन्‍न है । इतना कि फीमेल कम्‍पनी के काबिल नहीं ।”

जैकी परे देखने लगा ।
“अभी क्‍या बोलता है ?”
जैकी ने जवाब न दिया ।
“मैं बोलता हूं ।” - नीलेश बोला - “ये इधर रामपुरी लेकर आया । ऐसा घातक हथियार पास रखना अपराध है, उसको इस्‍तेमाल में लाने की कोशिश गम्‍भीर अपराध है । ये मेरे को स्‍टैब करने लगा था । इरादायकत्‍ल की दफा लगेगी । मैं पुलिस को फोन करता हूं ।”
जैकी भयभीत दिखाई देने लगा, उसका नशा पहले ही हिरण हो चुका था, उसने पनाह मांगती निगाहों से अपने साथियों की तरफ देखा ।
“नो !” - श्‍यामला मजबूती से इंकार में सिर हिलाती बोली - “नो पुलि‍स बिजनेस !”

“बट हनी...” - पहले युवक ने कहना चाहा ।
“नो !” - श्‍यामला दृढ़ता से बोली ।
तभी पुजारा वहां पहुंचा ।
“बेबी इज राइट !” - वो बोला - “ नो पुलिस !”
कोई कुछ न बोला ।
“मैं सोने की तैयारी करता था । मेरे को कुक बुला के लाया । बेबी, ऐसे वायलेंट भीङू के साथ तेरे को लेट नाइट में बाहर नहीं होने का ।”
“मैं अकेली तो इसके साथ नहीं थी” - श्‍यामला रुआंसे स्‍वर में बोली - “चार जने और भी तो थे !”
“फिर भी...”
“अभी क्‍या बोलूं ! मैंने सपने में नहीं सोचा था कि ये मेरे साथ ऐसे पेश आयेगा, जबरदस्‍ती करने लगेगा, चाकू चमकाने लगेगा…”

“नशे में माथा घूम गया !” - पहला युवक बोला ।
“हम सब जैकी के व्यवाहार से शर्मिंदा हैं ।” - दूसरा युवक बोला ।
“सब !” - नीलेश बोला - “सिवाय इस‍के ! दि नाइफ वील्डिंग जैकी दादा के !”
“जैकी ! सारी बोल, ईडियट !”
“दि बैस्‍ट !” - पुजारा बोला - “सारी बोल, भीङू समझ सस्‍ता छूटा, और निेकल ले ।”
“क्-क्या !” - जैकी के मुंह से निकला, उसकी निगाह स्‍वयंमेव ही बड़े केबिन की टेबल पर लगे खाने की ओर उठ गयी ।
“दाने दाने पर खाने वाले का नाम होता है । तेरा नहीं है । था तो समझ मिट गया । क्‍या !”

उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अभी क्‍या सोचता है ? अकेले निकल लेना मुश्किल तेरे वास्‍ते ? पुलिस एस्‍कार्ट के साथ ही जायेगा ?”
वो अपनी जगह से हिला, उसकी निगाह पैन होती अपने साथियों पर फिरी । कहीं उसे हमदर्दी के दर्शन न हुए ।
उसने एक गहरी सांस ली, कदम आगे बढ़ाया और परे लुढ़के पड़े अपने चाकू की तरफ देखा ।
“कांटी इधरीच छोड़ के जाने का ।” - पुजारा सख्‍ती से बोला - “पोजेशन भी क्राइम । मालूम !”
फर्श पर लुढ़के पड़े चाकू की तरफ बढ़ता वो ठिठका ।
नीलेश ने आगे बढ़ कर चाकू उठाया और उसे अपनी जेब के हवाले किया जैकी मेन डोर की तरफ बढ़ा ।

तभी मेन डोर खुला और दो वर्दीधारी पुलिसियों ने भीतर कदम रखा ।
पुजारा सकपकाया ।
“ये कैसे आ गये ?” - उसके मुंह से निकला ।
नीलेश ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाये ।
आगंतुकों में एक हवलदार था और दूसरा तीन सितारों वाला इंस्‍पेक्‍टर था । हवलदार नीलेश का जाना पहचाना जगन खत्री था, इंस्‍पेक्‍टर के बारे में उसका अंदाजा था कि वो एसएचओ था, अलबत्ता एसएचओ से रूबरू मुलाकात का उसका कोई इत्तफाक पहले नहीं हुआ था ।
एसएचओ अनिल महाबोले उम्र में कोई चालीस साल का, उम्‍दा तंदुरुस्‍ती वाला सख्‍तमिजाज व्‍यक्ति था । उसकी निगाह पैन होती दायें से बायें, बायें से दायें फिरी ।

“क्‍या हो रहा है ?” - वो दबंग लहजे से बोला ।
तत्‍काल श्‍यामला के अलावा सारा ग्रुप एक साथ बोलने लग गया ।
वो खामोश हुए तो महाबोले ने एक लम्‍बी हुंकार भरी और फिर सख्‍त निगाह से फसाद की जड़ जैकी की तरह देखा ।
जैकी की सारी दिलेरी, सारा अक्‍खड़पन कब का हवा हो चुका था, वो अपने आप में सिकुड़ कर रह गया ।
महाबोले की निगाह उस पर से छिटकी तो श्‍यामला पर पड़ी ।
श्‍यामला बेचैनी से पहलू बदलने लगी और निगाहें चुराने लगी ।
“तेरे को इधर आने का नहीं था ।” - महाबोले बोला ।

“स-सारी ! ” - श्‍यामला दबे स्‍वर में बोली ।
“वाट सारी ! पहले भी बोल के रखा ! नहीं ?”
“हं-हां ।”
“कोई गलत बोला मैं इधर न आने को बोल कर ! अभी गलाटा हुआ न !”
“होने को था । गोखले ने सेव किया, प्रापर्ली हैंडल किया, इस वास्‍ते...”
“गोखले ?”
“नीलेश गोखले ।” - श्‍यामला ने नीलेश की तरफ इशारा किया - “इसने टाइम पर एक्‍ट किया इस वास्‍ते...सब ठीक हो गया ।”
“हूं ।” - महाबोले नीलेश की तरफ घूमा - “तो तुम हो गोखले !”
नीलेश ने अदब से सहमति में सिर हिलाया ।

“मेरे को जानते हो ?”
“बोले तो आप अनिल महाबोले हैं - आइलैंड के थाने के थानाध्‍यक्ष । एसएचओ ।”
“हूं ।” - महाबोले बोला, फिर उसने हवलदार को आदेश दिया - “थाम !”
जगन खत्री ने आगे बढ़ के जैकी को अपनी गिरफ्त में ले लिया ।
“तुम भी चलो ।” - महाबोले श्‍यामला से बोला ।
“मैं !” - श्‍यामला हड़बड़ाई - “कहां ?”
“थाने । वहां से मैं खुद तुम्‍हें घर छोड़ के आऊंगा ।”
“मैं...मैं फ्रेंड्स के साथ जाऊंगी ।”
“फ्रेंड्स कहां रखे हैं साथ जाने को ? ये सब तो अभी डिसमिस हो रहे हैं । सुना सबने !”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

Post by Masoom »

सब एक एक करके वहां से खिसकने लगे ।
“ख-खाना !” - श्‍यामला के मुंह से निकला ।
“इनको भूख नहीं हैं । तुम्‍हारे लिये पैक हो जायेगा ।”
“मु-मुझे भी भूख नहीं है ।”
“फिर क्‍या वांदा है ! पुजारा, खाने का बिल...”
“नो बिल, बॉस ।” - पुजारा तत्‍पर स्‍वर में बोला - “ऐवरीथिंग आन दि हाउस ।”
“गुड ! चलो !”
सब वहां से रुखसत हो गये ।
“फोन किसने किया ?” - पीछे पुजारा बड़बड़ाया ।
“स्‍टाफ में से किसी ने ?” - नीलेश ने सुझाया ।
“नहीं । अव्‍वल तो मेरे से पूछे बिना कोई ऐसा कर नहीं सकता, फिर भी जोश में कोई ऐसा कर बैठा हो तो तब भी मेरे को न बोले, ये नहीं हो सकता ।”

“फिर तो उस ग्रुप में से ही किसी ने...”
“ऐसा ही जान पड़ता है ।”
“पूछा होता ।”
“तब न सूझा । भले ही महाबोले कोई जवाब न देता लेकिन...पूछना ही न सूझा ।”
“इन्स्पेक्टर लड़की का ऐसा सगा बनके क्‍यों दिखा रहा था ?”
पुजारा हंसा ।
“कोई खास बात है ?” - नीलेश उत्‍सुक भाव से बोला ।
“है तो सही ?”
“क्‍या ?”
“तेरे को बोलना ठीक होगा ?”
“मैं किसी को नहीं बोलूंगा । कसम गण‍पति‍ की ।”
“लड़की पर लट्टू है ।”
“कौन ? एसएचओ ! महाबोले ।”
“और किसका जिक्र है इस वक्‍त ?”

“ओह !”
“शादी बनाना मांगता है ।”
“कमाल है ! शादीशुदा नहीं है ।”
“नहीं है इत्तफाक से ।”
“की ही नहीं या...कुछ और हुआ ?”
“हुई ही नहीं ।”
“लेकिन वो तो उम्र में लड़की से बहुत बड़ा है !”
“कम से कम नहीं तो सोलह सत्‍तरह साल बड़ा है ।”
“लड़की को मंजूर होगी शादी ?”
“बाप को मंजूर होगी तो होगी ।”
“क्‍या बात करते हो !”
“आज्ञाकारी बच्‍ची है ।”
“बच्‍ची कहां है ? अपना भला बुरा खुद विचारने की क्षमता रखने वाली नौजवान वाली लड़की है ।”
“तू समझता नहीं है ।”
“क्‍या ? क्‍या नहीं समझता ?”

“शादी - अगर हुई तो - के पीछे की वजह । खास वजह ।”
“मैं समझा नहीं कुछ ।”
“अरे, पुराने जमाने में राज रजवाडे़ आपस में बहन बेटियां ब्‍याहते थे कि नहीं । राणा साहब जवान बालबच्‍चेदार बुजुर्गवार, होने वाली रानी षोड़षी बाला । ताकत बनाने, ताकत बढ़ाने के लिये ऐसे गठबंधन किये जाते थे, एक और एक ग्‍यारह हों इसलीये ऐसे गठबंधन किये जाते थे । ताकत बनाने, बढ़ाने का जो रिवाज गुजरे जमाने में था, उस पर अमल आज नहीं हो सकता ?”
“ओह !”
“लगता है अभी समझा कुछ !”
नीलेश ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।

“दो ही तो पावरफुल भीङू हैं यहां जिनका कि आइलैंड पर कब्जा है । जब वो दो भीङू करीबी रिश्‍तेदारी में बंध कर एक हो जायेंगे तो सोचो, क्‍या कहर ढ़ायेंगे !”
“जब त‍क वो नौबत नहीं आती, वो दोनों एक नहीं होते, तब तक इधर भारी कौन पड़ता है ?”
“महाबोले बिलाशक ।”
“हूं । उस लड़के का क्‍या होगा जिसे पकड़ के ले गये ?”
“बुरा ही होगा ।”
“काहे को ? चाकू की - हथियार की - बरामदी तो हुई नहीं ।”
“वो बरामदी हो गयी होती - तूने भले वक्‍त चाकू उठा लिया - फिर तो बला का बुरा होता । लेकिन बुरा तो अब भी होगा बराबर ।”

“अब किसलिये ?”
“समझ, भई । मगज से काम ले । उस छोकरे ने थानेदार के माल पर हाथ डाला था । थानेदार बख्‍श देगा ?”
“माल !”
“बराबर । अपना माल ही समझता है वो श्‍यामला को । देखा नहीं, कैसे रौब से, कैसी धौंसपट्टी से इधर से ले के गया ! लड़की की मजाल हुई न बोलने की ? इतने चाव से इधर खाना खाने आयी थी, उसकी तरफ झांकने भी न दिया ? हिलसा रो रही है केबिन में पड़ी बेचारी ।”
“ठीक ।”
“बिल के बारे में पूछने का ढ़ण्‍ग देखा था ! जैसे चेता रहा हो ‘पुजारा, मजाल न हो तेरी बिल का नाम भी लेने की’ ।”

“कमाल है ! बॉस, ताकत के नशे में चूर किसी शख्‍स का किसी शै पर अपना नाजायज, नापाक दावा ठोकना समझ में आता है लेकिन उस दावे की आगे से बाकायदा एनडोर्समेंट भी हो, ये समझ में नही आता । श्‍यामला एक पढ़ी लिखी, बालिग, खुदमुख्‍तार लड़की है, कैसे कोई बाप ऐसी किसी लड़की से बकरी की तरह पेश आ सकता है, उसके गले में बंधी रस्‍सी किसी को भी थमा सकता है ।”
“मुश्किल सवाल है, भई, किसी मेरे से ज्‍यादा काबिल भीङू से जवाब का पता कर ।”
“आप जवाब को टाल रहे हैं । खैर, अब मैं जा सकता हूं ?”

“हां, जा । बहुत रात खोटी हुई तेरी आज इधर !”
“वांदा नहीं ।”
“जाने से पहले एक बात और सुन के जा ।”
“क्‍या ?”
“जब तक आइलैंड पर है, महाबोले की परछाईं से भी बच के रहना, हमेशा वो कहावत याद रखना जो कहती है समंदर में रहने का तो मगर से बैर नक्‍को । क्‍या ।”
“बरोबर, बॉस ।”
***
हकीकतन नीलेश पुजारा की सलाह को-वार्निंन जैसी सलाह को-थोड़ी देर के लिये भी लिये गांठ बांध कर न रखा सका । वापिसी में उसके कदम अपने आप ही उस सड़क पर मुड़ गये जिस पर कि थाना था ।

थाना एक ऐसी सैमीखण्‍डहर एकमंजिला इमारत में था जो लगता था कि इकठ्ठी बनने की जगह जैसे जैसे जरुरत पड़ती गयी थी, वैसे वैसे कमरा कमरा करके बनाई गयी थी और जब से बनी थी, रखरखाव से ताल्‍लुक रखती कोई तवज्जो उसे नसीब नहीं हुई थी ।
थाने की इमारत के फ्रंट में एक कम्‍पाउंड था जिसका लकड़ी का टूटा फूटा फाटक उस घडी़ पूरा खुला था ।
कम्‍पाउंड में दायीं ओर एक सायबान था जिसके नीचे वो जीप खड़ी थी जिस पर एसएचओ महाबोले कोंसिका क्‍लब पहुंचा था । दाईं ओर एक बडे़ से कमरे की दो सींखचों वाली रौशन खिड़कियां थीं जो उस घड़ी खुली थीं । उस कमरे का प्रवेश द्वार जरुर भीतर कहीं से था । उसने कुछ क्षण उन खिड़कियों की तरफ देखा तो पाया कि उनके पीछे कमरे में कोई था । उसने गौर से उन पर निगाह गड़ाई तो उसे उस ‘कोई’ की एक स्‍पष्‍ट झलक मिली ।

जैकी !
वो भीतर पिंजर में बंद जानवर की तरह बेचैनी से चहलकदमी कर रहा था । लगता था कि अभी कोई खास पुलिसिया खिदमत उसकी नहीं हुई थी ले‍किन बाकी की रात यकीनन उसकी वहीं कटने वाली थी।
उसकी फौजदारी जैसी मिल्कियत कमानीदार चाकू उसने रास्‍ते में एक गटर में फेंक दिया था ।
कम्‍पाउंड के सामने एक मेहराबदार ड्योढ़ी थी जिसमें एक आफिस टेबल लगी हुई थी जिस पर एक फोन पड़ा था और एक लकड़ी का तिकोना नामपट पड़ा था जिस पर लिखा था: ड्‍यूटी आफिसर । मेज के पीछे एक‍ और सामने तीन लकड़ी की कुर्सियां पड़ी थीं लेकिन ड्यूटी आफिसर के नाम को सार्थक करने वाला वहां कोई नहीं था । पीछे एक खुला दरवाजा था जिसके आगे आजूबाजू जाता एक गलियारा था ।

वो उस गलियारे में पहुंचा तो उसे वहां चार बंद दरवाजे दिखाई दिये । उनमें से दायीं ओर के एक दरवाजे के रोशनदान से रोशनी बाहर फूट रही थी और पार की दीवार पर पड़ रही थी ।
दबे पांव वो उस दरवाजे पर पहुंचा और कान लगा कर कोई आहट लेने की कोशि‍श करने लगा । कोई आहट तो उसे न मिली लेकिन ऐसा अहसास उसे बराबर हुआ कि वो कमरा खाली नहीं था । उसने दरवाजे पर हथेली टिका कर उसे हल्का सा धकेला तो पाया वो भीतर से बंद नहीं था । हिम्‍मत करके उसने दरवाजे को खोला और भीतर कदम डाला ।

भीतर, दरवाजे के बाजू में, उसे हवलदार जगन खत्री खड़ा मिला । आगे, कमरे के बीचोंबीच, एसएचओ महाबोले और श्‍यामला आमने सामने खडे़ थे । श्‍यामला का चेहारा फक था, नेत्र दहशत में फैले हुए थे और वो पत्‍ते की तरह कांप रही थी । उसके सामने सकते की सी हालत में खड़ा महाबोले अपना दायां गला सहला रहा था । नीलेश की आहट पाकर उसने गाल से हाथ हटाया तो वो सेंका गया होने की चुगली करते उंगलियों के निशान नीलेश को गाल पर साफ दिखाई दिये ।
“क्‍या है ?” - महाबोले कड़क कर बोला - “कहां घुसे चले आ रहे हो ?”

“जनाब” - नीलेश अतिरिक्‍त सम्‍मान से बोला - “मैं श्‍यामला को घर लिवा ले चलने के लिये आया था ।”
“क्‍या !” - महाबोले के मुंह से निकला ।
“यस, प्‍लीज ।” - नीलेश के फिर बोलने से पहले अतिव्‍यग्र, अतिआंदोलित श्‍यामला बोल पड़ी - “प्‍लीज, मेरे को घर ले के चलो ।”
“ये क्‍या हो रहा ? क्‍या बकवास है ये ?”
“जनाब, कोई बकवास नहीं है” - नीलेश विनयशील स्‍वर में बोला - “जो कुछ हो रहा है, आप के सामने हो रहा है, आपकी इजाजत से हो रहा है ।”
“मेरी इजाजत से हो रहा है ।”

“जो आप अभी देंगे न ! आइये, मैडम ।”
श्‍यामला उसकी तरफ बढ़ी ।
हवलदार झपट कर दरवाजे के आगे तन कर खड़ा हो गया ।
“रास्‍ता छोड़, भई ।” - नीलेश पूर्ववत् विनयशील स्‍वर में बोला - “गुजरना है ।”
हवलदार के चेहरे पर स्‍पष्‍ट उलझन के भाव आये ।
“साहब, ये क्‍या ...”
“जाने दे ।” - महाबोले बोला ।
एसएचओ का जवाब इतना अप्रत्‍याशित था कि पहले से हकबकाया हवलदार और ह‍कबका गया । उसके चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे कोई असम्‍भव बात सुनी हो ।
“जाने दूं ?” - उसके मुंह से निकला ।
“हां, जाने दे ।”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

Post by Masoom »

तीव्र अनिच्‍छापूर्ण भाव से हवलदार ने रास्‍ता छोड़ा तो पहले उस के पहलू से गुजरती श्‍यामला बाहर निकली फिर उसके पीछे नीलेश ने यूं बाहर कदम रखा जैसे किसी भी क्षण पीछे से हमला होने की उम्‍मीद कर रहा हो ।
निर्विघ्न वो थाने की इमारत से बाहर निकल कर फुटपाथ पर पहुंचे ।
“आगे कैसे जायेंगे ?” - नीलेश बोला - “मेरे पास तो कोई सवारी...”
“अभी चुप रहो” - वो जल्‍दी से बोली - “यहां से दूर निकल चलो, जो कहना हो, फिर कहना ।”
“मैं तो खाली ये कह...”
“नो ! महाबोले का इरादा बदल सकता है, पता नहीं किस सेंटीमेंट के हवाले अभी पीछे उसने जो फैसला किया, वो उसे पलट सकता है । मेरा तो फिर भी कुछ नहीं बिगड़ेगा, तुम्‍हारी वाट लग जायेगी ।”

“ओह !”
“चलो । जल्‍दी । तेज ।”
कोई आधा किलोमीटर वो दोनों दौड़ने से जरा ही कम तेज पैदल चले ।
एकाएक वो एक संकरी गली के दहाने पर रुकी ।
“थैंक्‍यू !” - वो तनिक हांफती सी बोली - “आगे मैं खुद चली जाऊंगी ।”
उसने नीमअंधेरी गली में कदम डाला और तेजी से उसमें आगे बढ़ चली ।”
पीछे नीलेश ठगा सा खड़ा हुआ । फिर उसने जेब से सिग्रेट का पैकट निकाल कर एक सिग्रेट सुलगाया और उसके कश लगाता भारी कदमों से उस दिशा में बढ़ा जिधर उसका छोटा सा किराये का कॅाटेज था ।

पीछे थाने में वक्‍ती जोशोजुनून के हवाले होकर जो उसने किया था, उसको याद कर के अब वो बहुत असहज महसूस कर रहा था । श्यामला की खतिर उसने नाहक थानाध्‍यक्ष का फोकस खुद पर बना लिया था । हैडक्‍वार्टर में बैठा टॉप ब्रास जरुर उसके उस कदम को बहुत गलत करार देता क्‍योंकि वो उसके आइंदा अभियान में आडे़ आ सकता था ।
पीछे थाने में महाबोले हवलदार जगन खत्री से मुखातिब था ।
“है कौन ये नीलेश गोखले ?” - वो बोला ।
“सर जी, कोंसिका क्‍लब का बाउंसर-कम-बारमैन-कम जनरल हैण्डीमैन है ।”
“वो तो हुआ लोकिन असल में कौन है ?”

“ये तो मालूम नहीं, सर जी । नवां भीङू है, अभी मु‍श्किल से दो हफ्ता हुआ है आईलैंड पर पहुंचे ।”
“और कुछ नहीं मालुम उसकी बाबत ?”
“और तो कुछ नहीं मालूम उसकी बाबत?”
और तो कुछ नहीं मालूम, सर जी ।”
“हूं ।”
“सर जी, आपने उसे जाने क्‍यों दिया ?”
“वांदा नहीं । तब लड़की की वजह से वहीच कदम ठीक था ।”
“पण...”
“अरे, क्‍या पण ! आईलैंड पर ही है न ! जब चाहेंगे फिर थाम लेंगे ।”
“बरोबर बोला, सर जी ।”
“अभी उसको खामोशी से चैक करने का, जानकारी निकालने का कि असल में वो है कौन ! किधर से आया ! जिधर से आया, उधर क्‍या करता था ! कोंसिका क्‍लब में एम्‍पलायमेंट के लिये उसको कौन रिकमेंड किया !”

“वो तो मैं करेगा, सर जी, पण ये सब करना काहे को !”
“ढ़क्‍कन ! क्योंकि मैं बोला करने को ।”
“सारी बोलता है, बॉस ।”
***
दस बजे के करीब नीलेश सो कर उठा ।
सूरज सिर पर चढ़ आया हुआ था । शीशे की खिड़कियों पर पडे़ पर्दों में से छन कर धूप की तीखी रोशनी आ रही थी, बाहर सड़क पर व्‍यस्‍त यातायात की आवाजाही का शोर था । सड़क से पार झील में बसे मनोरंजन पार्क से अभी से संगीत की स्‍वर ल‍हरियां उठनी शुरु हो भी चुकी थीं ।
वो हड़बड़ाकर उठा और टायलेट में दाखिल हुआ ।

आधे घंटे में वो नहा धो कर, एक प्‍याली चाय पी कर, नये कपडे़ पहन कर काटेज से निकाला और पैदल चलता मेन पायर पर पहुंचा जहां के एक रेस्‍टोरेंट में उम्‍दा ब्रेकफास्‍ट सर्व होता था ।
शीशे की एक विशाल खिड़की के करीब की एक टेबल पर वो ब्रेकफास्‍ट के लिये बैठा । ब्रेकफास्‍ट के दौरान अनायास ही उसकी निगाह बाहर की ओर उठी तो उसे मेन रोड से पायर की ओर बढ़ता एक सिपाही दिखाई दिया जो कि इतनी मोटी तोंद वाला था कि अपनी वर्दी में फंसा जान पड़ता था और जिसकी बाबत नीलेश जानता था कि उसका नाम दयाराम भाटे था । नीलेश की उसकी तरफ तवज्‍जो जाने की वजह से थी कि उस घड़ी उसके साथ पिछली रात वाला जैकी नाम का नौजवान था । पिछली रात का माडर्न, सजाधजा, स्‍टाइलिश नौजवान उस वक्‍त उजड़ा चमन लग रहा था । उसकी शर्ट और जींस का बुरा हाल था, जैकेट मैले तौलिये की तरह बायी बांह पर झूल रही थी और सिर पर से फैंसी गोल्‍फ कैप नदारद थी जिसकी वजह से उसके बेतरतीब बाल नुमायां थे । सूरत बताती थी कि थाने में किसी वजह से छोटी मोटी ठुकाई भी हुई थी ।

सिपाही दयाराम भाटे ने अपनी देखरेख में उसे एक स्‍टीमर पर सवार कराया और स्‍टीमर के एक कर्मचारी को उसकी बाबत कुछ समझाया ।
जरुर सुनि‍श्‍चि‍त कर रहा था कि टूरिस्‍ट की तफरीह एक्‍सटेंड न होने पाये ।
‘बुरी हुई बेचारे के साथ’ - नीलेश होंठों से बुदबुदाया - ‘नशे ने नाश कर दिया ।’
ब्रेकफास्‍ट से फारिग होकर नीलेश रेस्‍टोरेंट से बाहर निकला लेकिन अभी उसने कोंसिका क्‍लब का रुख न किया । उसने एक सिग्रेट सुलगाया और लापरवाही से टहलता हुआ आईलैंड के बीच पर पहुंचा ।
अभी तब ग्‍यारह ही बजे थे लेकिन बीच पर पर्यटकों की, सैलनियों की पूरी पूरी भरमार हो भी चुकी थी । लोग बाग किनारे की रेत में पसरे सुस्‍ता रहे थे, समुद्र में स्‍व‍िमिंग का आनंद ले रहे थे, पिकनिक मना रहे थे ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller सीक्रेट एजेंट

Post by Masoom »

तभी बीच पर उसे रोमिला दिखाई दी ।
उसने रेत पर एक टॉवल बिछाया हुआ था और बिकि‍नी स्विमसूट पहने उस पर चित्‍त लेटी हुई थी । उसने आंखों पर काले गागल्स चढ़ाये हुए थे जिनके पीछे जरुर उसकी आंखें बंद थीं वर्ना उसे मालूम होता कि करीब से गुजरते हर उम्र के सुंदरता के पुजारी बाकायदा ठिठक कर, रु‍क कर उसकी सैक्‍सी बॉडी का खुला नजारा करके आनंदित हो रहे थे, रोमचिंत हो रहे थे और कल्‍पना के घोडे़ दौड़ा रहे थे कि अगर वो उस हूर के पहलू में होते तो आनंद का अतिरेक उनका क्‍या, किस हद तक, बुरा हाल करता ।

या शायद गागल्‍स के पीछे उसकी आंखें बंद नहीं थीं और वो मेल अटेंशन को एनजाय कर रही थी, उसे अपने लिये कम्‍पलीमेंट समझ रही थी ।
नीलेश निशब्‍द उसके करीब जाकर खड़ा हुआ तो अपने आप ही साबित हो गया कि गागल्स की ओट में उसकी आंखें बंद नहीं थीं ।
उसने चश्‍मा अपने माथे पर सरकाया और नटखट निगाह उस पर डाली ।
“हल्‍लो, रोमिला !” - नीलेश मीठे स्‍वर में बोला ।
रोमिला मुस्‍काई, उसने अपना एक हाथ उसकी तरफ बढ़ाया । नीलेश ने हाथ थामा तो उसने ए‍क झटके से उसे अपने करीब ढे़र कर लिया ।

“आज तफरीह के मूड में हो !” - नीलेश बोला ।
“मैं हमेशा ही तफरीह के मूड में होती हूं” - वो बोली - “खाली दांव कभी कभी लगता है ।”
“आज लगा ?”
“जा‍हिर है । तुम कैसे आये ? तरफरीहन !”
“नहीं । लेट सो के उठा । ब्रेकफास्‍ट के बाद दिल किया थोड़ा हिलने डुलने का । सो इधर चला आया । आया तो तुम दिखाई दे गयीं ।”
“लिहाजा समुद्र में डुबकी लगाने का कोई इरादा नहीं ?”
“न । अपना बोलो ?”
“एक बार गयी समुद्र में । अभी दूसरी बार के बारे में सोच रही हूं ।”

“इसी वजह से अभी बि...स्विम सूट में ही हो ।”
“अरे, बेखौफ बिकिनी बोलो ! जब है तो है ।”
“ये भी ठीक है ।”
“कैसी लग रही हूं ?”
“बढ़िया”
“बस ?”
“कमाल ! तौबाशिकन !”
“और ?”
“और और दिखाओ तो बोलू ?”
वो हंसी । मादक हंसी ।
“बिकिनी में” - फिर बोली - “कुछ रह जाता है दिखने से ?”
“नहीं । फिर भी कुछ तो रह ही जाता है ।”
वो‍ फिर हंसी ।
“बिकिनी के बारे में ये कैसी अजीब बात है कि नब्‍बे फीसदी नंगा जिस्म तो वैसे ही दिख रहा होता है फिर भी मर्द की निगाह उस दस फीसदी पर ही जा कर टिकती है जो कि नहीं दिखा रहा होता ।”

वो और जोर से हंसी
“क्‍यों ? गलत कहा मैंने ?”
“नहीं । ठीक कहा एकदम । ढ़की, अनढ़की लड़कियों का काफी तजुर्बा जान पड़ता है तुम्‍हें ।”
“ऐसी कोई बात नहीं । बाई दि वे तुम लोकल तो नहीं हो !”
“नहीं । रिजक की तलाश इधर ले के आयी ।”
“ये जगह कैसे सूझी ?”
“कोई वाकिफ था, उसने सुझाई । बल्कि साथ लेकर आया ।”
“वो भी इधर ही है ?”
“हां ।”
“कौन ?”
“सुनोगे तो भाव खा जाओगे ।”
“देखते हैं । बोला कौन?”
“रोनी डिसूजा ?”
“वो कोन है ?”
“फ्रांसिस मैग्‍नारो का बॉडीगार्ड !”

“वो...वो तुम्‍हारा फ्रेंड है ?”
“वाकिफकार ।”
“जिसकी राय तुमने मानी और इधर चली आयीं ?”
“हां ।”
“जहां से आईं, वहां रिजक का तोड़ा था ?”
“ऐसा तो नहीं था लेकिन वो क्‍या है कि उधर एक लो‍कल मवाली से बड़ा पंगा पड़ गया था, तब कुछ अरसा उधर से नक्‍की करने में ही भलाई दिखाई दी थी ।”
“गोवा से ?”
“कैसे जाना ?”
“अरे, जब वो रैकेटियर मैग्‍नारो गोवा से है, उसका बॉडीगार्ड तुम्‍हारा करीबी है...”
“वाकिफकार ।”
“...तो क्‍या मुश्किल था गैस करना ।”
“ठीक ।”
“मैग्‍नारो तो सुना है पणजी से है, क्‍या तुम भी...”

“नहीं । वो पणजी का पापी है, मैं पोंडा से हूं ।”
“पोंडा की पापिन !”
“शट अप !”
“सारी !”
“वैसे उस रैकेटियर जैसी औकात बना पाऊं तो पापिन क्‍या, महापापिन कहलाने से भी कोई ऐतराज नहीं ।”
नीलेश हंसा ।
“मैग्‍नारो जैसा भीङू जिधर जा के सैटल होता है, जिधर से आपरेट करता हूं उधर बिग बिजनेस ।”
“मैग्‍नारो के लिये ।” - नीलेश बोला ।
“वो तो है ही । लेकिन मैग्‍नारो के फायदे में आईलैंड का फायदा है । मैग्‍नारो की प्रास्‍परिटी में आइलैंड की प्रास्‍परिटी है ।”
“क्‍या बात है ? रैकेटियर के पीआरओ की तरह बोल रही हो !”

“ऐसी कोई बात नहीं । मैंने कल भी बोला था, उसके आपरेशंस की वजह से पैसा इधर आता है जो कि आईलैंड की खुशहाली की वजह बनता है ।”
“इस वास्‍ते इधर गैरकानूनी जुआघर चले तो वांदा नहीं ।”
“जुआघर कानूनी हो या गैरकानूनी, आने वाले तो छिलते ही हैं न, लुटते ही हैं न !”
“वो जुदा मसला है । लेकिन जुआघर कानूनी हो तो टैक्‍स के तौर पर, आपरेशनल फीज के तौर पर गौरमेंट को कमाई में हिस्‍सा मिलता है ?”
“गौरमेंट जुए की कमाई खाना क्‍यों चाहती है ?”
“अच्‍छा सवाल है। किसी नेता से करना ।”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply