Kaun Jeeta Kaun Hara
“चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना पूरी संजीदगी के साथ बोला- “इस कहानी में कुछ बातें बिल्कुल आइने की तरह साफ हो चुकी हैं ।”
“कैसे ?”
“जैसे वह चारों मर्डर कन्फर्म तौर पर अविनाश लोहार ने ही किये हैं और खुद अपने हाथों से किये हैं । अब कम-से-कम इस बारे में बहस करना बिल्कुल बेकार है कि अविनाश लोहार ने हत्या करने के लिए किसी डुप्लीकेट का सहारा लिया था या फिर कुछ और प्रपंच रचा ।”
“सही बात है ।” गंगाधर महंत ने भी कहा- “अब तक के घटनाक्रम से तो यही साबित होता है कि यह चारों हत्यायें कन्फर्म तौर पर अविनाश लोहार ने अपने हाथों से ही की हैं ।”
“लेकिन फिर वही सनसनीखेज सवाल हमारे दिमाग पर हथौड़े की तरह पड़ता है चीफ !”
“कौन सा सवाल ?”
“यही कि अगर यह चारों हत्यायें अविनाश लोहार ने ही की हैं, अकेले ही की हैं, तो वह सिर्फ एक-एक घंटे के अंतराल से देश के अलग-अलग महानगरों में जाकर यह चारों हत्यायें कैसे कर पाया ? मैंने फ्लाइटों का टाइम-टेबल भी चेक किया है । उस टाइम पर एक महानगर से दूसरे महानगर तक जाने के लिए कोई फ्लाइट भी उपलब्ध नहीं थी । सिर्फ कलकत्ता से दिल्ली जाने के लिए सवा दो बजे के करीब एक फ्लाइट थी, लेकिन वो फ्लाइट भी घटना की रात बने कोहरे की वजह से कैंसिल हो गयी थी और अपने निश्चित समय से दो घंटे लेट उड़ी थी । इसके अलावा दूसरा यक्ष प्रश्न जो है चीफ, वो ये है कि अगर उस समय हत्या के टाइम को मैच करती हुई उड़ानें होती भीं, तब भी अविनाश लोहार उनके माध्यम से एक महानगर से दूसरे महानगर तक का सफर कैसे तय कर सकता था ? क्योंकि कोई भी फ्लाइट मुंबई से मद्रास जाने में ढाई घंटे का समय लेती है । इसी तरह मद्रास से कलकत्ता पहुंचने में दो घंटे दस मिनट का समय लगता है । और कलकत्ता से दिल्ली पहुंचने में भी तकरीबन इतना ही समय दरकार है । यानि किसी भी एक महानगर से दूसरे महानगर हवाई जहाज से जाने के लिए दो घंटे चाहिये, जबकि हत्यायें मात्र एक-एक घंटे के अंतराल से ही हो गई हैं । फिर ऐसी हालत में अविनाश लोहार ने एक महानगर से दूसरे महानगर तक का फासला किस प्रकार तय किया ? इसके अलावा एअरपोर्ट पर उतरने के बाद अपने शिकार तक पहुंचने में भी अविनाश लोहार को कुछ वक्त लगा होगा । हत्या करने में भी थोड़ा बहुत वक्त लगेगा और फिर अविनाश लोहार वापस उस जगह भी आया होगा, जहाँ से उसने अपनी फ्लाइट पकड़ी चीफ ! यह सारे काम हालांकि छोटे-छोटे नजर आते हैं, मगर ध्यान से देखा जाये, तो यह बहुत वक्त लगाने वाले काम हैं । बहुत टाइम की एक्युरेसी वाले काम हैं ।”
“और वह सारे काम भी उसी एक घंटे के वक्फे में हुए हैं ।”
“बिल्कुल ।”
गंगाधर महंत खामोश हो गये ।
“अगर देखा जाये तो यह हत्या की एक बेइंतहा पेचीदा केस है चीफ, हद से ज्यादा पेचीदा ।”
“सबसे बड़ी बात तो ये है करण !” गंगाधर महंत ‘हवाना’ सिगार का छोटा सा कश लगाते हुए बोले- “कि यह सारे काम हुए हैं और उसी एक घंटे के अंदर हुए हैं । मगर सवाल ये है, अविनाश लोहार ने आखिर यह सब किया, तो कैसे किया ?”
“सचमुच उसने जो भी योजना बनाई, वह हैरतअंगेज थी चीफ !”
“इसमें क्या शक है ?” गंगाधर महंत बोले- “और अब तुमने उसी योजना का पर्दाफाश करना है ।”
“हां ।”
“हकीकत की तह में उतरने के लिए तुम अपनी तरफ से सबसे पहला कदम क्या उठाओगे ?”
कमाण्डर करण सक्सेना सोचने लगा ।
दिमाग को इस हद तक झकझोर देने वाला ऐसा कोई केस उसकी जिंदगी में पहले कभी नहीं आया था ।
“चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना काफी सोचने विचारने के बाद बोला- “मैं अब इस केस के एक बिल्कुल नए पहलू की तरफ गौर कर रहा हूँ, जिसकी तरफ अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया ।”
“नए पहलू की तरफ ?”
गंगाधर महंत चौंके ।
वह ‘हवाना सिगार’ का कश लगाते-लगाते ठिठक गये ।
“हां ।”
“इस केस का वह नया पहलू क्या है ?”
गंगाधर महंत के दिमाग में आतिशबाजी-सी फूटती चली गई थी ।
☐☐☐
“आप एक बात पर थोड़ा ध्यान देकर सोचिए चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना थोड़ा आगे को झुक गया और बेहद सस्पेंसफुल लहजे में बोला ।
चीफ !
उसके चेहरे पर भी अब सस्पेंस का नाग अपना फन फटकारने लगा ।
“जरा सोचिए चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना ने बड़े रहस्यमयी अंदाज में कहा- “अविनाश लोहार को यह बातें एडवांस में ही मालूम थीं कि जिस रात वह उन चारों का मर्डर करने ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से बाहर निकलेगा, उस रात उसके चारों शिकार किस-किस जगह होंगे और क्या कर रहे होंगे । जैसे अविनाश लोहार को पहले से ही पता था कि फिल्म स्टार शशि मुखर्जी उस समय मुंबई शहर में ही होगा और फिल्मिस्तान स्टूडियो में नाइट शिफ्ट में शूटिंग कर रहा होगा । इसीलिए वह पूरे कॉन्फिडेंस के साथ सीधा फिल्मिस्तान स्टूडियो पहुंचा और वहाँ पहुंचकर उसने शशि मुखर्जी को शूट कर दिया । इसी तरह अविनाश लोहार को उद्योगपति अर्जुन मेहता के बारे में भी पता था कि उस रात ठीक एक बजे उसकी मद्रास के ‘होटल सनशाइन’ में किसी के साथ बिजनेस मीटिंग थी । वह क्रिकेटर विजय पटेल के बारे में भी पहले से जानता था कि उस रात वह कलकत्ता के ‘गोल्डन गेट फार्म हाउस’ में कोका-कोला की विज्ञापन फिल्म की शूटिंग कर रहा होगा । उसे यह भी पता था कि समाजवादी नेता नागेंद्र पाल उस रात कहाँ था ? वह क्या कर रहा था ? यह सारी बातें अविनाश लोहार को पहले से मालूम थीं । एडवांस में मालूम थीं, क्योंकि ऐसा नहीं था कि अविनाश लोहार ने मुंबई पहुंचने के बाद पहले शशि मुखर्जी को खोजा हो तथा फिर उसकी हत्या की हो या मद्रास पहुंचने के बाद उसने अर्जुन मेहता की खोजबीन की हो तथा फिर उसका मर्डर किया हो । अविनाश लोहार के पास इतना वक्त ही नहीं था, जो वह उसे खोजबीन जैसे काम में जाया करता । वह तो सीधे अपने उस लक्ष्य पर पहुंचा था, जहाँ उसका शिकार मौजूद था और बस वहाँ पहुंचकर उसने अपने शिकार को प्वाइंट ब्लैंक शूट कर दिया था ।”
“यानि तुम यह कहना चाहते हो ।” गंगाधर महंत आश्चर्यजनक मुद्रा में बोले- “कि उस रात अविनाश लोहार जब ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल से हत्या करने के इरादे के साथ बाहर निकला, तो वह जानता था कि उसका कौन सा शिकार इस वक्त कहाँ-कहाँ मौजूद होगा ?”
“बिल्कुल जानता था और यही हैरानी का विषय है चीफ !”
गंगाधर महंत के नेत्र सिकुड़ गये ।
उन्होंने ‘हवाना सिगार’ का एक छोटा सा कश और लगाया ।
“क्यों ? यह हैरानी का विषय क्यों है ?”
“क्योंकि उससे पहले अविनाश लोहार हॉस्पिटल के इंटेंसिव केअर यूनिट में था और बहुत सख्त पहरे के बीच था । इतने सख्त पहरे के बीच कि उसके पास कोई परिंदा भी पर न मार सके । वह बाहर की दुनिया से लगभग पूरी तरह कटा हुआ था । कोई अखबार, कोई मैगजीन उस तक नहीं पहुंचती थी । यहाँ तक कि बाहर की दुनिया का कोई परिचित आदमी भी उस तक नहीं पहुंचने दिया जाता था । फिर सवाल ये है चीफ, अविनाश लोहार को उसके कैदखाने में रहते हुए वह तमाम जानकारियां किस तरह प्राप्त हुईं ? जिस वाहन के द्वारा वह एक शहर से दूसरे शहर गया, उस वाहन का इतने आनन-फानन तरीके से इंतजाम कैसे किया गया ?”
“तुम कहना क्या चाहते हो, बिल्कुल साफ-साफ कहो करण !”
गंगाधर महंत की कौतूहलता एकाएक बहुत बढ़ चुकी थी ।
“मैं साफ-साफ ही कह रहा हूँ । दरअसल अविनाश लोहार को ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल के अंदर ही ‘इनसाइड हेल्प’ हासिल थी चीफ !” कमाण्डर करण सक्सेना एकाएक प्रचंड धमाका-सा करता हुआ बोला- “कोई उस हॉस्पिटल में ऐसा शख्स मौजूद था, जो अविनाश लोहार की मदद कर रहा था । उसका रहनुमा बना हुआ था ।”
बम फट पड़ा वहाँ ।
टाइम बम ।
“य...यह तुम क्या कह रहे हो ?”
“मैं इस समय एक-एक बात बहुत सोच-समझकर बोल रहा हूँ । बिना ‘इनसाइड हेल्प’ अविनाश लोहार को यह तमाम जानकारियां प्राप्त नहीं हो सकती थीं । बिना ‘इनसाइड हेल्प’ के वह कुछ नहीं कर सकता था ।”
“लेकिन ऑल इंडिया मेडिकल हॉस्पिटल में इतने सख्त पहरे के बीच उसका कौन मददगार हो सकता था ?”
“शायद ब्लैक कैट कमांडोज !”
कमाण्डर करण सक्सेना ने एक विस्फोट और कर दिया ।
पहले से भी ज्यादा जबरदस्त विस्फोट !
“ब… ब्लैक कैट कमांडोज !” गंगाधर महंत हकबकाए ।
“यस चीफ !”
“ल... लेकिन.. ।”
“मैं जानता हूँ कि आप क्या सोच रहे हैं । ब्लैक कैट कमांडोज बहुत विश्वसनीय होते हैं । उनकी बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग की गई होती है । लेकिन इस दुनिया में पैसे के लिए कब कौन बिक जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता चीफ ! और अब इस केस की इन्वेस्टिगेशन वहीं से शुरू होगी ।”
☐☐☐