हादसे की एक रात
तीन जुलाई !
वह बुधवार की रात थी- जिस रात इस बेहद सनसनीखेज और दिलचस्प कहानी की शुरुआत हुई ।
वह एक मामूली ऑटो रिक्शा ड्राइवर था ।
नाम- राज !
राज पुरानी दिल्ली के सोनपुर में रहता था । सोनपुर- जहाँ ज्यादातर अपराधी किस्म के लोग ही रहा करते हैं । जेब तराशी, बूट लैगरस और चैन स्नेचिंग से लेकर किसी का कत्ल तक कर देना भी उनके लिये यूं मजाक का काम है, जैसे किसी ने कान पर बैठी मक्खी उड़ा दी हो ।
राज इस दुनिया में अकेला था- बिल्कुल तन्हा ।
फिर वह थोड़ा डरपोक भी था ।
खासतौर पर सोनपुर के उन गुण्डे-मवालियों को देखकर तो राज की बड़ी ही हवा खुश्क होती थी, जो जरा-जरा सी बात पर ही चाकू निकालकर इंसान की अंतड़ियां बिखेर देते हैं ।
सारी बुराइयों से राज बचा हुआ था, सिवाय एक बुराई के ।
शराब पीने की लत थी उसे ।
उस वक्त भी रात के कोई सवा नौ बज रहे थे और राज सोनपुर के ही एक दारू के ठेके में विराजमान था ।
उसने मेज से उठाकर दारू की बोतल मुँह से लगायी, चेहरा छत की तरफ उठाया, फिर पेशाब जैसी हल्के पीले रंग वाली दारू को गटागट हलक से नीचे उतार गया । उसने जब फट् की जोरदार आवाज के साथ बोतल वापस मेज पर पटकी, तो वह पूरी तरह खाली हो चुकी थी ।
ठेके में चारों तरफ गुण्डे-मवालियों का साम्राज्य कायम था, वह हंसी-मजाक में ही भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हुए दारू पी रहे थे और मसाले के भुने चने खा रहे थे ।
कुछ वेटर इधर-उधर घूम रहे थे ।
“ओये- इधर आ ।” राज ने नशे की तरंग में ही एक वेटर को आवाज लगायी ।
“क्या है ?”
“मेरे वास्ते एक दारू की बोतल लेकर आ । जल्दी ! फौरन !!” आदेश दनदनाने के बाद राज ने अपना मुँह मेज की तरफ झुका लिया और फिर आंखें बंद करके धीरे-धीरे मेज ठकठकाने लगा, तभी उसे महसूस हुआ, जैसे कोई उसके नजदीक आकर खड़ा हो गया है ।
“बोतल यहीं रख दे ।” राज ने समझा वेटर है- “और फूट यहाँ से ।”
लेकिन उसके पास खड़ा व्यक्ति एक इंच भी न हिला ।
“अबे सुना नहीं क्या ?” झल्लाकर कहते हुए राज ने जैसे ही गर्दन ऊपर उठाई, उसके छक्के छूट गए ।
मेज पर ताल लगाती उसकी उंगलियां इतनी बुरी तरह कांपी कि वह लरजकर अपने ही स्थान पर ढेर हो गयीं ।
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