Thriller दस जनवरी की रात

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rajsharma
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

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विजय ने घड़ी में समय देखा, वह कोई दस मिनट लेट था । पुलिस स्टेशन में हर काम रूटीन की तरह चल रहा था । इंस्पेक्टर विजय के आते ही पूरा थाना अलर्ट हो गया । उसने आफिस में बैठते ही जी डी तलब की । जी डी तुरंत उसकी मेज पर आ गई ।

अभी वह जी डी देख रहा था कि टेलीफोन घनघना उठा ।

"नमस्कार ।" उसने फोन पर कहा, "मैं गोरेगांव पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर विजय बोल रहा हूँ ।"

"ओ सांई, यहाँ पहुंचो नी फौरन, संगीता अपार्टमेंट में मर्डर हो गया नी सांई, मेरे फ्रेंड जगाधरी का ।"

"आप कौन बोल रहे हैं ?"

"ओ सांई हम हीरालाल जेठानी बोलता जी, उसका पड़ोसी, फौरन आओ नी ।"

"ठीक है, हम अभी पहुंचते हैं ।"

"इंस्पेक्टर विजय ने तुरन्त सब-इंस्पेक्टर बलदेव को बुलाया ।

"तुमने संगीता अपार्टमेंट देखा है ।"

"ओ श्योर !" बलदेव ने कहा, "क्या हुआ ?"

"रवानगी दर्ज करो, हमें वहाँ एक कत्ल की तफ्तीश के लिए तुरन्त पहुंचना है ।"

बलदेव के अलावा चार सिपाहियों को साथ लेकर इंस्पेक्टर विजय घटनास्थल की ओर रवाना हो गया । संगीता अपार्टमेंट ईस्ट में था, फिर भी घटनास्थल पर पहुंचने में उन्हें दस मिनट से अधिक समय नहीं लगा ।

विजय के पहुंचने से पहले ही अपार्टमेंट के बाहर काफी भीड़ लग चुकी थी । इंस्पेक्टर विजय ने उन लोगों के पास एक सिपाही को छोड़ा और बाकी को लेकर अपार्टमेंट के तीसरे फ्लैट पर जा पहुँचा । इमारत में प्रविष्ट होते ही उसे पता चल चुका था कि वारदात कहाँ हुई है ।

"सांई मेरा मतलब हीरालाल जेठानी ।" फ्लैट के दरवाजे पर खड़े एक अधेड़ व्यक्ति ने विजय की तरफ लपकते हुए कहा । हीरालाल कुर्ता-पजामा पहने था, सुनहरी फ्रेम की ऐनक नाक पर झुक-सी रही थी और सिर पर मारवाड़ियों जैसी टोपी थी ।

तीसरे माले में चार फ्लैट थे ।

"क्या नाम बताया था ?"

"जगाधरी ।" हीरालाल बोला और फिर रूमाल से अपनी आँखें पोंछने लगा,"मेरा पक्का दोस्त साहब जी, चल बसा ।"

"हूँ ।" विजय ने फ्लैट का दरवाजा खोला और एक सिपाही को दरवाजे पर खड़े रहने का संकेत करके अन्दर दाखिल हो गया ।

दो बैडरूम और एक ड्राइंगरूम का फ्लैट था । फ्लैट में कोई नहीं था ।

"किधर ?" विजय ने हीरालाल से पूछा ।

हीरालाल ने एक बेडरूम की ओर इशारा कर दिया ।

विजय बेडरूम की तरफ बढ़ा । उसने बेडरूम को पुश किया, दरवाजा खुलता चला गया । वह सोच रहा था, बेडरूम में बेड पड़ा होगा और लाश या तो बेड पर होगी या नीचे बिछे कालीन पर, किन्तु वहाँ का दृश्य कुछ और ही था, मृतक इस अन्दाज में बैठा था जैसे बिल्कुल किसी सस्पेंस मूवी का दृश्य हो । वह एक ऊँचे हत्थे वाली रिवाल्विंग चेयर पर विराजमान था, उसके माथे पर खून जमा हो गया था और चेहरे पर लोथड़े झूल रहे थे । नीचे तक खून फैला था । वह रेशमी गाउन पहने हुए था ।

मेज पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी और सफेद मोहरे वाले बादशाह को काले मोहरे ने मात दी हुई थी ।

तो क्या वह मरने से पहले शतरंज खेल रहा था ? बिसात पर भी खून टपका हुआ था ।

"सर रिवॉल्वर ।" बलदेव की आवाज ने विजय का ध्यान भंग किया, बलदेव भी विजय के साथ-साथ कमरे में दाखिल हो गया था, अलबत्ता हीरालाल ड्राइंगरूम में ही था ।

मेज के पीछे एक चेयर थी जिस पर मृतक विराजमान था, ठीक कुर्सी के पीछे हैण्डलूम के मोटे परदे झूल रहे थे, मेज की दूसरी ओर चार कुर्सियां थी, एक तरफ टेलीफोन रखा था, दो गिलास रखे थे, एक व्हिस्की की बोतल भी मेज पर रखी थी, इसके अलावा एक पेपर वेट, डायरेक्ट्री, ऊपर दो फाइलें । बस इतना ही सामान था मेज की टॉप पर ।

गोली ठीक ललाट के बीचों-बीच लगी थी ।
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

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बलदेव ने जिधर रिवॉल्वर होने का इशारा किया था, विजय उधर ही मुड़ गया । कमरे के दरवाजे से कोई तीन फुट दूर कालीन पर रिवॉल्वर पड़ी थी । विजय ने रिवॉल्वर को रूमाल में लपेटकर बलदेव को थमा दिया ।

"फिंगरप्रिंट और फोटो डिपार्टमेंट को फोन करो ।"

बलदेव कमरे में रखे फोन की तरफ बढ़ा ।

"इधर नहीं बाहर से, ड्राइंगरूम में फोन की टेबल है, किसी चीज को छूना नहीं, दस्ताने पहन लो ।

विजय ने स्वयं भी दस्ताने लिए ।

दो सिपाही ड्राइंगरूम के अन्दर हीरालाल के दायें चुपचाप इस तरह खड़े थे, जैसे ऑफिसर का हुक्म मिलते ही उसे धर दबोचेंगे ।

विजय ने कमरे का निरीक्षण शुरू किया । इस कमरे में कोई खिड़की नहीं थी । ऊपर वेन्टीलेशन था, परन्तु वहीं एग्जास्ट लगा था । कमरे में आने-जाने का एकमात्र रास्ता वही दरवाजा था । जिससे होकर विजय स्वयं अन्दर आया था ।

कुछ देर बाद विजय ड्राइंगरूम में आ गया ।

"तुम्हारा नाम हीरालाल है ?"

"हीरालाल जेठानी ।" हीरालाल अपने चश्मे का एंगल दुरुस्त करते हुए बोला ।

"जेठानी ।"

"जी ।"

"तुम मृतक के पड़ोसी हो ।"

"बराबर वाला फ्लैट अपना ही है ।"

"पूरी बात बताओ ।" विजय एक कुर्सी पर बैठ गया ।

अपना फ्रेन्ड जगाधरी बहुत अच्छा आदमी था नी, सण्डे का दिन हमारा छुट्टी का दिन होता, दोनों यार शतरंज खेलता और दारू पीता, हम शतरंज खेलता, कबी वो जीतता कबी हम जीतता, कबी हम जीतता कबी वो, शतरंज भी अजीब खेल है सांई! हम दोनों बिल्कुल बराबर का खिलाड़ी, एकदम बराबर का । कबी वो जीतता कबी… ।"

"मुझे तुम्हारी शतरंज की जीत हार से कुछ लेना-देना नहीं समझे ।" विजय ने बीच में उसे टोकते हुए कहा, "तुम आज यहाँ शतरंज खेलने आये थे और तुमने यहाँ आकर दारू पी थी ।"

"कसम खाके बोलता सांई, आज दारू नहीं पी, अरे पीता किसके साथ, जगाधरी तो रहा नहीं, आप दारू की बात करता ।" हीरालाल की आंखों में एकाएक आँसू छलक आए, "हम दोनों हफ्ते में एक दिन पीता, बस एक दिन । अब तो हफ्ते में एक दिन क्या महीने में भी एक दिन पीना नहीं होयेगा सांई । "

"शटअप !"

हीरालाल इस प्रकार चुप हो गया, जैसे ब्रेक लग गया हो ।

"जो मैं पूछता हूँ, बस उतना ही जवाब देना, वरना अन्दर कर दूँगा ।"

हीरालाल के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।

"आज तुम यहाँ शतरंज खेलने आये थे ।"

"आज नहीं खेला, ठीक वक्त पर जब मैं आया, घंटी बजाया फ्लैट की, तभी अन्दर गोली चलने का आवाज हुआ, पहले मैं समझा कोई पटाखा छूटा होगा, हड़बड़ाहट में मैंने दरवाजे पर धक्का मारा, दरवाजा खुला था, जगाधरी को पुकारता हुआ उस कमरे के अन्दर घुसा तो देखा सांई ! बस जो देखा, कभी नहीं देखा पहले । मेरा यार राम को प्यारा हो गया नी । मैं उसका हालत देखके भागा और सबसे पेले आपको फोन किया नी ।"

"क्या उस वक्त तक जगाधरी मर चुका था ?"

"देखने से यही लगता था, अबी जैसा देखने से लगता ।"

"तुम्हारे अलावा कमरे में और कोई नहीं गया ?"

"नहीं जी, मैं तो यहीं से फोन मिलाया, फिर दरवाजा बन्द करके बाहर बैठ गया, मैं सोचा के गोली चलाने वाला अन्दर ही कहीं छिप गया होयेगा, मैं दरवाजे पे डट गया सांई । मेरे यार को मारके साला निकल के दिखाता बाहर, मैं ही उसका खोपड़ा तोड़ देता ।"

"कातिल को तुमने नहीं देखा ।"

"देखता तो वो यहाँ लम्बा न पड़ा होता ?"

"इस फ्लैट में जगाधरी के अलावा कौन रहता था ?"

"एक नौकर था बस, वो भी दो दिन से छुट्टी पे गया है । उसका यहाँ कोई नहीं था, यह बात जगाधरी ने मुझे बताया था सांई ।"
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

Post by rajsharma »

"सर यह झूठ बोलता है ।" बलदेव बोल उठा, "इसने फायर की आवाज सुनी । उसी वक्त अंदर भी आया और फिर दरवाजा बन्द करके बाहर जम गया । फिर गोली चलाने वाला कहाँ गया ? मैंने सारा फ्लैट देख मारा है, इस दरवाजे के सिवा बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, एक खिड़की है जिस पर ग्रिल लगी है, सलामत है ग्रिल भी ।"

"यही तो मैं पूछता सांई, वो गोली चलाके गया किधर ?"

"जगाधरी का पार्टनर कहाँ रहता है ?"

"मैं इतना नहीं जानता सांई, ना उसने कबी बताया । मैंने कभी उसके घर का लोग नहीं देखा, एक-दो बार पूछा, बताके नहीं देता था । छ: महीने पहले यह फ्लैट किराये पर लिया ।"

"जगाधरी का क्या बिजनेस था ?"

"शेयर मार्केट में दलाली करता था, बस और हम कुछ नहीं जानता, हमारी दोस्ती शतरंज से शुरू हुई, दोनों एक क्लब में मिले, फिर पता लगा वो हमारा पड़ोसी है, उसके बाद यहीं जमने लगी, मगर आदमी बहुत अच्छा था सांई ! हफ्ते में एक दिन पीता था सण्डे को और मैं भी उसी दिन पीता, कबी वो जीतता कबी मैं ।"

"कबी मैं जीतता कबी वो ।" विजय चीख पड़ा ।

"आपको कैसे मालूम जी ।" हीरालाल ने एक बार फिर चश्मा दुरुस्त किया ।

"अब तुम ड्राइंगरूम से बाहर बैठो, कहीं फूटना नहीं, तुम्हारे बयान होंगे ।" विजय ने हीरालाल को बाहर भेज दिया ।

विजय ने गहरी सांस ली और तफ्तीश शुरू कर दी ।

कुछ ही देर में फिंगर प्रिंट्स और फोटो वाले भी आ गये ।

पुलिस कंट्रोल रूम को मर्डर की सूचना दे दी गई थी ।

☐☐☐

सण्डे था ।

सण्डे का दिन रोमेश अपनी पत्नी सीमा के लिए सुरक्षित रखता था, बाथरूम से नहा धोकर नौ बजे वह नाश्ते की टेबिल पर आ गया ।

"डार्लिंग, आज कहाँ का प्रोग्राम है ?"

"पूरे हफ्ते बाद याद आई मेरी ।" सीमा मेज पर नाश्ते की प्लेटें सजाती हुई बोली ।

"क्या करें डार्लिंग, तुम तो जानती ही हो कि कितना काम करना पड़ता है । दिन में कोर्ट, बाकी वक्त इन्वेस्टीगेशन, कई बार तो खतरों से भी जूझना पड़ता है, मुझे इन क्रिमिनल्स से सख्त नफरत है डार्लिंग ।"

"अब यह कोर्ट की बातें बन्द करिये, सण्डे है ।"

"हाँ भई, आज का दिन तुम्हारा होता है, आज के दिन हम जोरू के गुलाम, किधर का प्रोग्राम बनाया जानेमन ?"

"बहुत दिनों से झावेरी ज्वैलर्स में शॉपिंग करने की सोच रही थी ।"

"झावेरी ज्वैलर्स ।" रोमेश के हलक में जैसे कुछ फंस गया, "क… क्या खरीदना था ?"

"हीरे की एक अंगूठी, तुमने हनीमून पर वादा किया था कि मुझे हीरे की अंगूठी लाकर दोगे, वही जो झावेरी के शोरूम में लगी है और कुल पचास हजार की है ।"

"म…मारे गये, यह अंगूठी फिर टपक पड़ी ।" रोमेश बड़बड़ाया ।

"क्यों, कुछ फंस गया गले में, लो पानी पी लो ।" सीमा ने पानी का गिलास सामने कर दिया ।

रोमेश एक साँस में पूरा गिलास खाली कर गया ।

"डार्लिंग गिफ्ट देने का कोई शुभ अवसर भी तो होना चाहिये ना ।"

"पाँच साल हो गये हैं हमारी शादी हुए । इस बीच कम-से-कम पांच शुभ अवसर तो आये ही होंगे ।" सीमा ने व्यंगात्मक स्वर में कहा, "आपको याद है जब हमारे प्यार के शुरुआती दिन थे तो । "

"याद तो सब कुछ है, तुम्हें भी तो बंगला कार वगैरा से बहुत लगाव है ।"
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

Post by rajsharma »

"किसको नहीं होता, आप अपने साथी वकीलों की माली हालत पर भी तो नजर डाल लिया कीजिए, उनके पास क्या नहीं है और एक आप हैं कि आपकी मोटरसाइकिल तक रिटायर नहीं हो पाती ।"

"तल्खी खत्म हो तो बता देना ।" रोमेश उठकर फ्लैट की बालकनी में चला गया ।

तल्खी खत्म नहीं हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी । रोमेश फोन की तरफ बढ़ गया ।

"रोमेश हेयर ।"

"मैं विजय ।" दूसरी तरफ से कहा गया ।

"इंस्पेक्टर, यह सुबह-सुबह कहाँ से बोल रहे हो ?"

''गोरेगांव ईस्ट, संगीता अपार्टमेंट ।"

"किसी का मर्डर हो गया क्या ?"

"तुम्हें कैसे मालूम ।"

"फोन पर गंध आ रही है । संगीता अपार्टमेन्ट में न तो तुम्हारा कोई रिश्तेदार रहता है, न कोई गर्लफ्रेंड, न ही वहाँ कोई शराब का अड्डा चलता है । घड़ी जो समय बता रही है, उसके अनुसार तुम्हें इस वक्त थाने में होना चाहिये था । तुम अपने ही इलाके की किसी और लोकेशन से बोल रहे हो, जिसका साफ मतलब है कि तुम मौका-ए-वारदात पर हो । मुझे फोन किया, इसलिये साफ जाहिर है कत्ल का मामला होगा, चोर डकैतों की लिस्ट तो पुलिस के पास होती ही है । हाँ, हत्यारों की नहीं होती ।"

"गुरु फौरन आ जाओ, मेरी फंसी पड़ी है ।"

"गुरु मानते हो, इसलिये आना ही होगा, लेकिन यार आज सण्डे है ।"

दूसरी तरफ से फोन कट चुका था ।

"इन पुलिस वालों की छुट्टी तो वैसे कभी होती ही नहीं ।"

"खासकर विजय की तो हो ही नहीं सकती ।" सीमा बोल पड़ी, "जैसे आप, वैसा विजय । आप किसी क्रिमिनल का केस नहीं लड़ते और वह किसी क्रिमिनल को रिश्वत लेकर नहीं छोड़ता ।"

"कोई फतवा हो तो बताओ, वरना मैं देख आऊं क्या मामला है ?"

"जाइये ।" इतना कहकर सीमा बाथरूम में चली गई ।

जल्दी ही तैयार होकर रोमेश अपनी मोटरसाइकिल लेकर चल पड़ा । बांद्रा से अंधेरी, अंधेरी से गोरेगांव । रॉयल एनफील्ड की बुलेट गाड़ी को पुलिसिया अंदाज में दौड़ाता हुआ वह पंद्रह मिनट में मौका-ए-वारदात पर पहुंच गया ।

और फिर जगाधरी के फ्लैट में पहुँचा, जहाँ विजय उसका बेताबी से इन्तजार कर रहा था । कुछ दूसरे सीनियर पुलिस ऑफिसर भी घटनास्थल पर आ चुके थे । उनमें से कुछेक ऐसे भी थे, जो रोमेश को पसन्द नहीं करते थे।

"मकतूल की लाश कहाँ है ?" रोमेश ने विजय से पूछा ।

विजय, रोमेश को लाश वाले कमरे में ले गया ।

"जब तुम उस कमरे में दाखिल हुए, क्या सब इसी तरह था, कोई चेजिंग तो नहीं हुई है ?" रोमेश ने कमरे में सरसरी नजर दौड़ाते हुए कहा ।

"सिर्फ एक चेंजिग है, रिवॉल्वर हमने अपने कब्जे में ले ली है ।"


"यानि कि जिस रिवॉल्वर से कत्ल हुआ ।"

"अभी यह कहना मुनासिब न होगा कि कत्ल उसी से हुआ, लेकिन वह यहाँ उसे नीचे पड़ी मिली ।"

"वह जहाँ से उठाई, वहीं रख दो ।"

विजय ने बलदेव को संकेत किया, बलदेव ने रिवॉल्वर रख दी ।

"क्या रिवॉल्वर रखने से सिचुऐशन पर फर्क पड़ जायेगा ।" यह बात डी.एस.पी. केसरीनाथ ने कटाक्ष के तौर पर कही ।

"हंड्रेड परसेन्ट ।" रोमेश बोला,"धारा भी बदल सकती है ।"

"यानि कि मर्डर की धारा 302 की जगह कुछ और बनती है ।"

"सर प्लीज ।" विजय ने केसरीनाथ को टिप्पणियां करने से रोका ।

"एनीवे ।" केसरीनाथ ड्राइंगरूम में चला गया, "जो भी रिजल्ट निकले, मेरे को इन्फॉर्म करो ।"
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

Post by rajsharma »

"यह दरवाजा बन्द कर दो बलदेव ।" रोमेश ने कहा ।

बलदेव, रोमेश की जांबाजी से वाकिफ था और यह भी जानता था कि विजय तभी रोमेश की मदद लेता है, जब मामला सचमुच पेचीदा हो । कत्ल के मामले सुलझाने में उसे मुम्बई पुलिस का मददगार शरलक होम्स कहा जाता था । रोमेश इस काम की कोई फीस नहीं लेता था । बतौर शौक, यही नहीं बल्कि गुत्थी सुलझाने में उसे इस बात का सुकून मिलता था कि कोई निर्दोष नहीं पकड़ा गया ।

दरवाजा बन्द होने के बाद एक बार फिर रोमेश ने कमरे का निरीक्षण शुरू कर दिया था ।

विजय सारी घटना पर प्रकाश डालता जा रहा था । जब वह सब बता चुका, तो बोला, "अब बताओ कातिल कोई हवा तो है नहीं कि निकल गया होगा । या तो हीरालाल गलत बयानी कर रहा है या वह खुद ।"

"किसी ठोस निर्णय के बिना हीरालाल को लपेटना उचित नहीं होगा ।" रोमेश ने बीच में ही टोक दिया,"ऐसा आमतौर पर होता नहीं है कि कातिल कत्ल के बाद खुद गले में फंदा डालने वाली परिस्थितियां बना दे ।"

"मगर दरवाजा एक ही है और धमाके के समय हीरालाल द्वार पर था, फिर वह यहाँ आया । ओह एक बात हो सकती है ।"

"क्या ?"

"कत्ल करने के बाद कातिल इस कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में या बाथरूम में छिपा, हीरालाल जैसे ही इसके अन्दर आया, वह बाहर निकल गया होगा । लेकिन उसने रिवॉल्वर यहाँ फेंक क्यों दी ? किसी मुसीबत से निपटने के लिए उसे रिवॉल्वर तो अपने पास रखनी चाहिये थी । ऐसे में जबकि हीरालाल दरवाजे पर था ।"

रोमेश ने रिवॉल्वर रूमाल से लपेटकर उठा ली । उसकी नाल सूंघी, गर्दन हिलाई । उसका चेम्बर चेक किया । चेम्बर में अभी भी पांच गोलियां थीं, एक ही चली थी । बारूद की गंध से पता चलता था कि गोली उसी से चली थी ।

फिर रोमेश का ध्यान दरवाजे पर लगी चंद कीलों पर पड़ा ।

उसने दरवाजे से सीधा लाश को देखा और फिर लाश के पास पहुंच गया । उसके बाद वह घुटने के बल बैठ गया और फर्श पर कुछ कुरेदता रहा । फिर रबड़ की एक डोरी उठाते ही उसके होंठ गोल हो गये । वह सीधा खड़ा हो गया ।

"माई डियर पुलिस ऑफिसर । अब आप चाहें, तो शव को सील करके पोस्टमार्टम के लिए भेज सकते हैं ।"

इंस्पेक्टर विजय समझ गया कि जो गुत्थी वह नहीं सुलझा पा रहा था, वह सुलझ चुकी है ।

"हुआ क्या, लाश तो सील होगी ही । पंचनामा भी होगा, पोस्टमार्टम भी होगा । मगर बतौर कातिल मैं किसे गिरफ्तार करूं ? मैं जानने के लिए बेचैन हूँ, रोमेश का आखिर कत्ल किसने किया और कातिल कैसे निकल भागा ?"

"कातिल कहीं नहीं गया ।"

''क्या मतलब ?"

"माई डियर फ्रेन्ड, मकतूल भी यहीं है और कातिल भी, लेकिन अफसोस एक ही बात का है कि सारे सबूत उसके खिलाफ होते हुए भी तुम उसे गिरफ्तार न कर पाओगे ?"

"क्या बात कर रहे हो भाई, अपने मामले में मैं कितना सख्त हूँ, यह तो तुम भी जानते हो ।"

"यही तो मुश्किल है कि इस बार तुम हर जगह से हारोगे, कातिल सामने होगा और तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकोगे ।"

"साफ-साफ बताओ यार, पहेली मत बुझाओ ।"

"तो सुनो, जो मकतूल है, वही कातिल भी है ।"

"क… क्या मतलब ? माई गॉड ! मगर कैसे ? वह यहाँ और रिवॉल्वर वहाँ ? हाउ इज इट पॉसिबल ? आत्महत्या करने के बाद वह रिवॉल्वर इतनी दूर कैसे फेंक सकता है ? या तो उसके हाथ में होती या मेज पर ? नहीं तो ज्यादा-से-ज्यादा उसके पैरों के पास । कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि आत्महत्या के बाद किसी ने रिवॉल्वर उस तरफ फेंक दी होगी ।"

"यार तुम तो हजारों सवाल किये जा रहे हो । कभी-कभी दिमाग के घोड़े भी दौड़ा लिया करो, तुमने वह दरवाजा देखा ।"

दरवाजा बन्द था ।

"हाँ, देखा ।"

"इस किस्म के फ्लैटों में रहने वाले लोग क्या दरवाजों पर इस तरह कीलें ठोककर रखते हैं । कीलें तो झोंपड़पट्टी वाले भी अपने दरवाजों पर नहीं ठोकते ।"

विजय ने उन कीलों को देखा ।

"मगर इससे क्या हल निकला ?"

"रिवॉल्वर दरवाजे के पास गिरी हुई थी, लो पहले इसका चेम्बर खाली करके गोलियां अपने कब्जे में करो, फिर बताता हूँ ।"

विजय ने चेम्बर खाली कर दिया ।

खाली रिवॉल्वर की मूठ को रोमेश ने उन कीलों पर फिक्स किया, रिवॉल्वर कीलों पर अटक गया ।

''अब अगर इसकी नाल से गोली निकलती है, तो कहाँ पड़नी चाहिये ?" रोमेश ने पूछा ।

"ओ गॉड ! गोली सीधा उसी कुर्सी पर पड़ेगी, जहाँ मृतक मौजूद है ।"
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