अदालत और अदालत से बाहर एक बार फिर तिल रखने की जगह न थी । रोमेश सक्सेना की दोबारा गिरफ्तारी भी कम सनसनीखेज नहीं थी । इस बार पुलिस की तरफ से सरकारी वकील राजदान नहीं था बल्कि वैशाली वहाँ खड़ी थी ।
"योर ऑनर, इस संगीन मुकदमे पर प्रकाश डालने से पहले मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगी कि मुझे जे.एन. मर्डर केस पर एक बार फिर प्रकाश डालने का अवसर दिया जाये, क्योंकि सीमा मर्डर केस का सीधा सम्बन्ध जनार्दन नागारेड्डी के मर्डर केस से जुड़ता है और क़त्ल की इन दोनों ही वारदातों का मुल्जिम एक ही व्यक्ति है, रोमेश सक्सेना !"
"जनार्दन नागारेड्डी मर्डर के बारे में कानून, अदालत, न्यायाधीश पुलिस को एक शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा था । कानून के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है, इसलिये अदालत जनार्दन नागारेड्डी मर्डर केस को दोबारा शुरू करने की अनुमति देती है ।"
"थैंक्यू योर ऑनर !"
"आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर !" रोमेश ने आपत्ति प्रकट की, "यह मुकदमा जे.एन. मर्डर केस नहीं है । जे.एन. मर्डर केस का फैसला हो चुका है, अदालत अपना दिया फैसला कैसे बदल सकती है ?"
"बदल सकती है ।" वैशाली ने दलील दी, "ठीक उस तरह जैसे सेशन कोर्ट में दिया गया फैसला हाईकोर्ट बदल देती है और हाईकोर्ट में दिया फैसला सुप्रीम कोर्ट बदल सकती है । हाँ, सुप्रीम कोर्ट का दिया फैसला, फिर कोई अदालत नहीं बदल सकती । आप तो कानून के दिग्गज खिलाड़ी है सर रोमेश सक्सेना ! आप तो जानते हैं कि जब एक मुलजिम को सजा हो जाती है, तो वह सुप्रीम कोर्ट तक अपील कर सकता है । अब अगर पुलिस कोर्ट केस हार जाती है, तो सभी ऊपरी अदालतों में अपील कर सकती है, आपको सेशन कोर्ट ने बरी किया है, हाईकोर्ट ने नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने नहीं । इसलिये मुकदमा अभी खत्म नहीं होता, इसे री-ओपन करने का कानूनी हक़ अभी हमें है ।"
कानूनी बहसों के बाद वैशाली का पक्ष उचित ठहराया गया, यह अलग बात है कि जे.एन. मर्डर केस को हाईकोर्ट में री-ओपन करने की इजाजत दी गयी । रोमेश सक्सेना के यह दोनों ही केस हाईकोर्ट में ट्रांसफर हो गये ।
रोमेश के अतिरिक्त मायादास और सोमू भी मुलजिम थे ।
तीनो को आजन्म कारावास की सजा हो गयी ।
वैशाली ने मुकदमा जीत लिया ।
जेल जाते समय वैशाली और विजय ने रोमेश से मुलाकात की ।
"हाँ, मैं हार गया । सचमुच हार गया । तुम्हें बधाई देता हूँ वैशाली ! याद रखना मेरे बाद तुम्हें मेरे आदर्शों पर चलना है ।"
"वही सब तो किया है मैंने सर ! कानून के आदर्शों को स्थापित किया ।"
"मुझे तुम पर फख्र है और विजय तुम पर भी । आखिर जीत सच्चाई की होती है, अब मैं चलता हूँ । कुछ आराम करना चाहता हूँ ।”
"आपको और सोमू को हमारी शादी में आना है, इसके लिए हमने पैरोल की
एप्लीकेशन लगवा दी है ।" विजय ने कहा ।
"उचित होता कि तुम इस अवसर पर न बुलाते ।"
"नहीं, यह हमारी जाति मामला है । वैशाली को आपने आशीर्वाद देना है । कानून की लड़ाई तो खत्म हो चुकी, अब हमारे पुराने सम्बन्ध तो खत्म नहीं होते । हम जेल में भी मिलने आते रहेंगे । शादी में तो शामिल होना ही होगा रोमेश ।"
"ओ.के. ! ओ.के. !!"
रोमेश ने विजय और वैशाली के हाथ जोड़े और उन्हें थपथपाया । फिर वह सलाखों के पीछे चला गया ।\
समाप्त
Thriller दस जनवरी की रात
- rajsharma
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Re: Thriller दस जनवरी की रात
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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