Thriller मकसद

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josef
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Re: Thriller मकसद

Post by josef »

बढ़िया उपडेट तुस्सी छा गए बॉस

अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा


(^^^-1$i7) 😘
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rajsharma
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Re: Thriller मकसद

Post by rajsharma »

बहुत ही शानदार अच्छी शुरुआत है दोस्त
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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rangila
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Re: Thriller मकसद

Post by rangila »

“फोन की उधर की आवाज” हबीब बकरा सशंक स्वर में वोला, “कैसे सुनाई दे गई तुझे ?”

“दे गई किसी तरह ।” मैं लापरवाही से वोला, “हो जाता है कभी-कभी ऐसा ।”

“तूने सब सुना ?”

“हां ।”

“जानता है मैं किससे बात कर रहा था?”

“अपने बाप ...आई मीन बाँस से ।”'

“और वो कौन हुआ ?”

“वो मुझे क्या मालूम !”

उसके चेहरे पर राहत के भाव आए ।

“मेरे को टॉयलेट जाना है ।”

“क्या ?” वो हड़बड़ाया ।

मैने अपनी कनकी उंगली ऊंची करके उसे दिखाई ।

हबीब बकरे ने हामिद की तरफ देखा ।
हामिद चाय बना रहा था।

हबीब बकरे ने गोद में रखी अपनी रिवॉल्वर उठाकर अपने हाथ में ले ली और उठ खड़ा हुआ ।”


“'चल ।” वह बैडरूम के पिछवाड़े के दरवाजे की ओर इशारा करता हुआ वोला ।

मैं उठकर दरवाजे पर पहुंचा । मैंने उसे खोला तो पाया कि आगे एक लम्बा गलियारा था ।

पहलवान मुझे अपने से आगे चलाता हुआ गलियारे के सिरे तक लाया जहां कि टायलेट था ।

“चल ।” हबीब बकरा बोला “निपट”

मैंने टायलेट के दरवाजे को धकेला ।

“अंधेरा है” मैं बोला ।

“नखरे मत कर ।” हबीब बकरा यूं बोला जैसे मास्टर किसी बच्चे को समझा रहा हो, “भीतर दीवार के साथ स्विच है ।”

मैं भीतर दाखिल हुआ । मैंने अपने पीछे दरवाजा बन्द करने का उपक्रम किया ।

“खवरदार !” हबीब बकरा एकाएक सांप की तरह फुंफकारा ।

मैं निराश हो उठा । मेरा इरादा भीतर से दरवाजा बंद करके गला फाड़-फाड़कर चिल्लाने लगने का था ।

“यार, ये तो बड़ी ज्यादती है ।”, मैं बोला, “यूं तो...”

“बक-बक नहीं ।” वो सख्ती से बोला, “बिजली का स्विच ऑन कर । दरवाजे से परे हट ।”

मैंने दीवार टटोलकर स्विच तलाश किया और उसे ऑन किया । टॉयलेट में रोशनी फैल गई । जगह मेरी अपेक्षा से बड़ी निकली ।

वो भी भीतर दाखिल हुआ । उसने दरवाजा भिड़काया और उससे पीठ लगाकर खड़ा हो गया । रिवॉल्वर उसने मजबूती से थामकर अपने सामने की हुई थी और वो अपलक मुझे देख रहा था ।

“यार” मैंने कहना चाहा, “ये कोई बात हुई जो ...”

“बहस करेगा” वो मेरी बात काटता दृढ स्वर में बोला, “तो जो करना है वो पतलून में ही करेगा ।”

मैंने आह भरी और फिर उसकी ओर पीठ फेरकर कमोड के कामने जा खड़ा हुआ । टॉयलेट के इस्तेमाल की जरूरत के बहाने को साकार करने के लिए मैंने अपने गुर्दों के साथ बलात्कार किया, फिर पतलून की जिप खींची और वॉशबेसिन के सामने जा खड़ा हुआ ।

मैंने नल चालू किया और साबुन उठाकर उससे हाथ मलने लगा ।
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rangila
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Re: Thriller मकसद

Post by rangila »

वाशबेसिन के ऊपर लगे शीशे में से मुझे हबीब बकरे का प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा था । वो मेरे पीछे मेरे से मुश्किल से चार फुट परे खड़ा था । चेहरे पर आत्मविश्वास के भाव लिए वो बड़ी बेबाकी से मेरी तरफ देख रहा था ।

एकाएक साबुन की टिकिया मैंने अपने हाथ से फिसल जाने दी ।

उसकी निगाह स्वयंमेव ही फर्श पर परे जा गिरे साबुन की ओर उठ गई ।

मैं तनिक घूमा, एक कदम आगे बढ़ा और मैंने झुककर साबुन उठाया । फिर मैंने उठकर सीधा होना शुरू किया लेकिन सीधा होने से पहले ही मैंने सिर झुकाकर अपना सिर सांड की तरह उसके पेट से टकरा दिया । उसके मुंह से गैस निकलते गुबारे जैसी आवाज निकली और वह दोहरा हो गया । साथ ही उसने फायर किया लेकिन गोली कहीं दीवार से जा टकराई । मैंने झुके-झुके ही ताबड़ तोड़ तीन-चार घूंसे उसके पेट में रसीद किए और फिर उसके दोबारा फायर कर पाने से पहले ही उसके हाथ से उसकी रिवॉल्वर नोंच ली ।

वो फर्श पर ढेर हो गया ।

तभी गलियारे में से दौड़ते कदमों की आवाज गूंजी । जरूर हामिद ने गोली चलने की आवाज सुन ली थी और अब वो उधर ही लपका चला आ रहा था । मैंने अपने जूते की एक भरपूर ठोकर हबीब बकरे की कनपटी पर जमाई और फिर उसके ऊपर से कूदकर दरवाजे पर पहुंचा ।

तभी बाहर से दरवाजे को धक्का दिया गया ।

दरवाजा भड़ाक से खुला और मुझे चौखट पर हामिद की झलक दिखाई दी ।

एक क्षण भी नष्ट किए विना मैंने रिवॉल्वर का रुख उसकी ओर किया और घोड़ा खींचना शुरू कर दिया ।

सारी रिवॉल्वर मैंने दरवाजे की दिशा में खाली कर दी । तब मैंने देखा कि हामिद गलियारे में दरवाजे के सामने धराशाई हुआ पड़ा था । डरते-डरते मैं उसके करीब पहुंचा । मैंने पांव की ठोकर से उसके चेहरे को, उसकी छाती को, उसकी पसलियों को टहोका । उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई । मेरी चलाई गोलियों में से पता नहीं कितनी उसे लगी थीं लेकिन निश्चय ही वो मर चुका था ।

मैंने खाली रिवॉल्वर परे फेंक दी और झुककर उसकी उंगलियों में से उसकी रिवॉल्वर निकाल ली ।

मैं फिर हबीब बकरे की ओर आकर्षित हुआ ।

वो बाथरूम के फर्श पर बेहोश पड़ा था और प्रत्यक्षत: उसके जल्दी होश में आ जाने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । लेकिएन उसका जल्दी होश में आना जरूरी था । मैंने उससे कई सवाल पूछने थे और फिर एक लाश के साथ वहां बने रहने का भी मेरा कोई इरादा नहीं था ।

मैंने उसके मुंह पर पानी के छींटे मारने शुरू किए ।

कुछ क्षण वाद उसने कराहकर आंख खोली ।
“उठके खड़ा हो जा, पहलवान ।” मैं कर्कश स्वर में बोला ।
उसने दो-तीन बार आंखें मिचमिचाइं और हड़बड़ाकर उठ बैठा ।
चेतावानी के तौर पर मैंने रिवॉल्वर उसकी तरफ तान दी । उसके नेत्र फैले । उसने जोर से थूक निगली ।

“उठ !”
वो बड़ी मेहनत से उठके खड़ा हुआ ।
“फुसफुसा पहलवान निकला ।” मैं व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला, “दो करारे हाथों में ही बोल गया । भीतर से खोखला मालूम होता है ।”
निगाहों में कहर भरकर उसने मेरी तरफ देखा लेकिन मैं अब क्या डरता ! अब तो निगाहों से ज्यादा कहर बरपाने वाला आइटम युअर्स ट्रूली के हाथ में थी ।
तभी उसकी निगाह गलियारे के फर्श पर गड़ी । उसके पहले से फैले नेत्र और फैल गए ।
“मर गया ?” वह आतंकित भाव से वोला ।
“नहीं ।” मैं बोला, “सांस रोके पड़ा है । फेफड़ों को आराम दे रहा है । सांस लिए बिना जिन्दा रहने की मश्क कर रहा है ।”

“भैय्ये ! तेरी खैर नहीं ।”
“अभी तो अपनी खैर मना मोटे भैंसे ।”
“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा ।”
“क्या करेगा ! मुझे बकरे की तरह जिबह करेगा और खाल उधेड़कर उल्टा टांग देगा ! भूला तो नहीं होगा अभी अपना पुराना धन्धा !”
“पुराना धन्धा !”
“कल्लाल का ! हबीबुल्लाह खान बकरेवाला । उर्फ फुसफुस पहलवान ।”
वो चौंका ।
“तू... तू मुझे जानता है ?”
“तुझे क्या, मैं तेरे बाप को भी जानता हूं ।”
“मेरा बाप !”
“लेखराज मदान । तेरे से निपट लूं, फिर उसकी भी खबर लेता हूं जाकर ।”
अब वो साफ-साफ फिक्रमंद दिखाई देने लगा ।

“बाहर निकल ।” मैंने आदेश दिया ।
उसने हामिद की लाश को लांघकर बाहर गलियारे नें कदम रखा ।
“हामिद को” मैं बोला “खुद मारता तो लाश कहां ठिकाने लगाता ?”
“क... क्या?”
“वही जो मैं बोला । मरना तो इसने था ही । अब तेरा काम मेरे हाथों हो गया है । अब बोल लाश कहां ठिकाने लगाता ?”
“यहीं ।”
“क्या मतलब ?”
“ये मकान खाली है । हमारा इससे कोई वास्ता नहीं । हमने नकली चाबियों से इसके ताले खोलकर इसे जबरन कबजाया है । इसी काम के लिए ।”
“ओह !” मैं एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला, “भीतर चल ।”

हम दोनों वापस बैडरूम में लौटे । वहां मैंने उसे पलंग पर धकेला और उसी नायलॉन की उसी डोरी से उसकी मुश्कें कस दीं जिससे कि उसने मेरी वह गत बनवाई थी । फिर मैं कुर्सी घसीटकर उसके सामने बैठ गया ।
“शुरू हो जा ।” मैंने आदेश दिया ।
“क... क्या शुरू हो जाऊं?” वो कठिन स्वर में बोला ।
“क्या कहानी है ?”
“क..क्या कहानी है?”
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