बदहवास खेतान ने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिए ।
संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाते हुए यादव मेरी तरफ घूमा ।
“शशिकांत को” मैं बोला, “कभी पता न लगता कि उसका ब्रोकर ही उसके साथ घोटाला कर रहा था अगर उसके लिए अपना सारा स्टॉक तत्काल कैश कर लेना जरूरी न हो गया होता ।”
“ऐसा क्यों जरूरी हो गया था ?” यादव बोला ।
“वो ये मुल्क छोड़कर जा रहा था । मदान से पूछ लो ।”
यादव ने मदान की तरफ देखा । मदान ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यानी कि” यादव बोला, “शशिकांत के स्टॉक में किये घोटाले को छुपाने के लिए इसने उसका कत्ल किया ?”
“जाहिर है । जरूर शशिकांत ने इसे ये अल्टीमेटम दिया हुआ था कि परसों रात पूरे हिसाब-किताब के साथ उसका सारा माल ये उसे सौंप दे । इसके लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं था, इसलिए ये पहले ही कत्ल की तैयारी करके आया था । एडवांस तैयारी की चुगली ये रिवॉल्वर ही करती है जो कि इसने अपने दूसरे क्लायंट माथुर के यहां से चुराई । यहां मकतूल से इसकी तकरार होनी थी, ये तो इसे मालूम था, लेकिन ये शायद इसके लिए अप्रत्याशित था कि यहां सुजाता मेहरा की सूरत में एक गवाह भी मौजूद था । उस तकरार का कोई गवाह न होता तो इसके लिए सुधा माथुर को फोन करने की कोई जरूरत नहीं थी । तकरार का मुद्दा जो कागजात थे, वो क्लब की रेनोवेशन के कागजात नहीं थे, इसका ये भी सबूत है कि जो शख्स अगले रोज मुल्क ही छोड़कर जा रहा था, उसने क्लब की रेनोवेशन से क्या लेना-देना था ! ऐसे अधूरे या मुकम्मल कागजात देखकर उसे क्या हासिल होना था ! ऐसी बेमानी चीज के लिए मकतूल क्यों ये जिद करता कि तारीख बदलने से पहले वो कागजात उसे दिखाए जाए ।”
“मान लिया । आगे बढ़ो ।”
“बहरहाल खेतान ने अब्बा जाते वक्त रास्ते में दिल्ली गेट पेट्रोल पम्प पर रूककर सुधा माथुर को फोन किया और उससे इसरार किया कि वो कागजात अभी जाकर मकतूल को दिखा आए । सुधा ने कहा कि कागजात अभी मुकम्मल नहीं थे तो इसने कहा कि शशिकांत को फर्क पता नहीं लगने वाला था ।”
“क्यों नहीं लगने वाला था ? वो क्या अहमक था ?”
“नहीं था । ये बात भी अपने आपमें इस बात की तरफ इशारा है कि उस फोन काल की घड़ी से पहले ही शशिकांत पीछे अपनी कोठी में मरा पड़ा था । खेतान जानता था कि सुधा माथुर जब यहां पहुंचती तो उसे यहां कागजात का मुआयना करने वाला कोई नहीं मिलने वाला था ।”
“वो कागजात सुधा माथुर के पास घर पर उपलब्ध थे ?”
“हां । वो उन्हें घर पर मुकम्मल करने के लिऐ ऑफिस से घर ले आई थी । मैंने दरयाफ्त किया था ।”
“उसने ऐसा न किया होता तो ?”
“क्या न किया होता तो ?”
“वो कागजात घर न लाई होती तो क्या वो खेतान की फरमायश पूरी करने के लिए पहले फ्लैग स्टॉफ रोड से कनाट प्लेस अपने ऑफिस में जाती ?”
मैं गड़बड़ाया ।
खेतान विजेता के से भाव से मुस्कराया ।
“इसे” एकाएक मधु बोल पड़ी, “मालूम था कि सुधा वो कागजात ऑफिस से घर लेकर जा रही थी ।”
“कैसे ?” यादव बोला ।
“परसों दोपहर को सुधा हमारे अपार्टमेंट में थी । तब खेतान भी वहां था । खेतान ने मेरे सामने रेनोवेशन के बारे में सुधा से सवाल किया था तो सुधा ने कहा था कि उसका उन कागजात को घर ले जाकर मुकम्मल करने का इरादा था ।”
“सो” अब मैं विजेता के से स्वर में बोला, “देयर यू आर ।”
खेतान का चेहरा फिर बुझ गया ।
“इसने” यादव बोला, “कत्ल के लिए बाइस कैलिबर की रिवॉल्वर क्यों चुनी ?”
“क्योंकि ये मरने वाले की औरतों में बनी साख से वाकिफ था । दूसरे, इसे अपने अचूक निशाने पर पूरा एतबार था ।”
“ओह !”
“लेकिन ये इतना कमीना है कि इसने शक की सुई शशिकांत की वाकफियात के दायरे में आने वाली औरतों तक ही सीमित नहीं रखी । इसने एक और शख्स को भी शक के दायरे में लपेटने का मामान किया ।”
“किसे ?”
“कृष्ण बिहारी माथुर को । परसों शाम चार बजे मकतूल की माथुर से टेलीफोन पर बात हुई थी जिसमें मकतूल ने शाम साढ़े आठ बजे यहां माथुर से मुलाकात की पेशकश की थी । जवाब में माथुर ने कहा था कि अगर उसे यहां आना पड़ा तो वो शशिकांत से बात करने नहीं, उसे शूट करने आएगा । माथुर के मुंह से निकली ये बात खेतान ने भी सुनी थी, इस बात की तसदीक मैं कर चुका हूं । अपनी इस जानकारी को कैश करने के लिए इसने क्या किया ? परसों रात ये यहां अपने साथ एक व्हील चेयर भी लेकर आया जो कि इस बात का अतिरिक्त सबूत है कि कत्ल का इरादा ये पहले से किए हुए था । कत्ल के बाद इसने उस व्हील चेयर के निशान बाहर आयरन गेट से कोठी तक बनाए जिससे ये लगे कि माथुर अपनी साढ़े आठ बजे की अप्वायंटमेंट पर पूरा खरा उतरा था और वो ही यहां आकर कत्ल करके गया था । इत्तफाक से निशानेबाजी में वो भी खेतान से कम नहीं ।”
“ऐसे कोई निशान” यादव हैरानी से बोला, “बाहर ड्राइव-वे में हैं ?”
“कल तक तो थे ।” मैं झोंक में बोला । साथ ही मैंने होंठ काटे ।
यादव ने कहरभरी निगाहों से मुझे देखा ।
“कोहली” वो दांत पीसता हुआ बोला, “तेरी खैर नहीं ।”
“यादव साहब” मैं मीठे स्वर में बोला, “ये वक्त बड़े मगरमच्छ की तरफ तवज्जो देने का है जो कि खेतान की सूरत में तुम्हारे सामने खड़ा है ! मेरे जैसी छोटी-मोटी मछली पर वक्त बरबाद करने का ये वक्त थोड़े ही है ! मेरे जैसी छोटी-मोटी मछली की तो आप कभी फुरसत में भी दुक्की पीट लेंगे ।”
चेहरे पर वैसे ही सख्त भाव लिए यादव ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब हमारे वकील साहब के तरकश के तीसरे तीर पर आइये ।” मैं बोला ।
“अभी तीसरा भी ?” यादव बोला ।
“वो गुमनाम टेलीफोन कॉल जो तुमने अपने ऑफिस में हमारे सामने सुनी थी जिसकी वजह से तुमने मधु को हिरासत में लिया था ।”
“वो भी इसने की थी ?”
“और कौन करता ? ये ही तो था चश्मदीद गवाह मधु की यहां आमद का । अपनी इस जानकारी को इसने उस गुमनाम टेलीफोन कॉल की सूरत में कैश किया ।”
“ओए, पुनीत दया पुत्तरा ।” एकाएक मदान कहर बरपाता खेतान की ओर लपका, “तेरी ते मैं भैन दी...”
खेतान सहमकर दोनों हवलदारों की ओट में हो गया ।
यादव झपटकर उसके सामने आन खड़ा हुआ ।
“काबू में रहो ।” वो सख्ती से बोला, “इसे अपनी हर करतूत की सजा मिलेगी ।”
“हद हो गई जी कमीनेपन दी ।” मदान भुनभुनाया, “कंजरीदा गोद में बैठ कर दाढ़ी मूंडता है ।”
“चुप करो ।” यादव डपटकर बोला ।
निगाहों से खेतान पर भाले बर्छिया बरसाता, दांत किटकिटाता मदान खामोश हो गया ।
“और ?” यादव मेरे से बोला ।
“और क्या ?” मैं बोला, “बस ।”
“शशिकांत माथुर से क्यों मिलना चाहता था ?”
Thriller मकसद
- rangila
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Re: Thriller मकसद
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- rangila
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Re: Thriller मकसद
“मुझे क्या मालूम ?”
“क्यों नहीं मालूम ? बाकी हर बात मालूम है तो ये क्यों नहीं मालूम ?”
“बस, नहीं मालूम । जरुरी थोड़े ही है कि हर बात मुझे ही मालूम हो ? तुम इस बाबत माथुर से भी तो सवाल कर सकते हो ।”
“वो जरुर ही बताएगा मुझे कुछ ।”
“तुम्हारा भाई” यादव मदान से संबोधित हुआ, “मुल्क से कूच की तैयारी क्यों कर रहा था ?”
मदान परे देखने लगा ।
यादव ने एक गहरी सांस ली और बड़े असहाय भाव से गर्दन हिलाई । फिर वो खेतान के करीब पहुंचा ।
“तुम” वो बोला, “अपना जुर्म कबूल करते हो ?”
“कौन-सा जुर्म ?” खेतान बड़े दबंग स्वर में बोला, “कैसा जुर्म ? मैंने कोई जुर्म नहीं किया ।”
“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“बिलकुल झूठ । मैं उसे जीता-जागता, सही सलामत यहां छोडकर गया था । इस आदमी की” उसने खंजर की तरह एक उंगली मेरी तरफ भौंकी, “बकवास से आप मुझे खूनी साबित नहीं कर सकते । सिवाए बेहूदा थ्योरियों के और अटकलबाजियों के क्या है आपके पास मेरे खिलाफ ? कोई सबूत है ? है कोई सबूत ?”
“घड़ी पर” मैं धीरे-से बोला, “इसकी उंगलियों के निशान हो सकते हैं ।”
यादव को बात जंची । तत्काल उसने अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को तलब किया ।
एक्सपर्ट ने घड़ी को चैक किया ।
“घड़ी पर” वो बोला, “या बुत पर, कहीं भी उंगलियों के कैसे भी कोई निशान नहीं हैं ।”
“ओह ।” यादव बोला ।
“लेकिन इंस्पेक्टर साहब” मैं बोला, “ये भी तो अपने आप में भारी संदेहजनक बात है । इसके न सही, किसी के तो उंगलियों के निशान होने चाहिए बुत पर ।”
“शशिकांत के तो होने चाहिए” मदान बोला, “जो कि रोज इस घड़ी में चाबी भरता था ।”
“चाबी !” फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट बोला, “चाबी तो इस घड़ी में कोई लगी ही नहीं हुई ।”
“वो चाबी अलग से लगती है ।” मदान बोला, “एक लम्बी-सी चाबी है जिसके दोनों सिरों पर मुंह है । एक ओर का बड़ा मुंह घड़ी में चाबी भरने वाले लीवर को पकड़ता है और दूसरा एकदम छोटा मुंह वो लीवर पकड़ता है जिससे घड़ी की सुइयां आगे-पीछे सरकती हैं ।”
“कहां है चाबी ?”
“यहीं कहीं होगी ।”
दो मुंही चाबी घड़ी वाले बुत के पीछे से बरामद हुई ।
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने उस पर से उंगलियों के निशान उठाए ।
चाबी पर पुनीत खेतान के बाएं हाथ के अंगूठे का स्पष्ट निशान मिला ।
यादव की बांछे खिल गई ।
पुनीत खेतान के तमाम कस बल निकल गए ।
“मैंने तुम्हारी काबलियत को कम करके आंका ।” पुनीत खेतान बोला ।
मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा था । मुस्तैद पुलिसिए ड्राईंगरूम के बाहर के दरवाजे पर खड़े थे । यादव भीतर स्टडी में मदान और उसकी बीवी के साथ था । उसी ने बाकी लोगों को स्टडी से बाहर निकाला था ।
“मेरी काबलियत को” मैं बोला, “ठीक से आंकते तो क्या हो जाता ?”
“तो जो कुछ तुमने पुलिस को बताया, उसका ग्राहक मैं होता ।”
“ग्राहक ?” मेरी भंवे उठी ।
“हां ।”
“इतना बिकाऊ तो नहीं मैं !”
वो हंसा । प्रत्यक्षतः उसकी निगाह में मैं ‘इतना ही बिकाऊ’ था ।
“वैसे मानते हो” फिर वह संजीदगी से बोला, “कि निशाना कुछ है मेरा !”
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा । कैसा आदमी था वो ! कदम फांसी के फंदे की ओर बढ़ रहे थे और वो अपनी निशानेबाजी की आइडेंटिटी का ख्वाहिशमंद था ।
“घड़ी की तरफ तवज्जो कैसे गई ?” वो बोला ।
“मधु के बयान की वजह से ।” मैं बोला, “मुझे यकीन था कि वो झूठ नहीं बोल रही थी । अब अगर मैंने उसके बयान पर एतबार करना था तो घड़ी की शहादत को झूठा और फर्जी करार देना मेरे लिए जरुरी था ।”
“हूं । और ?”
“और मेरे ज्ञानचक्षु माथुर साहब के शूटिंग रेंज पर खुले जहां कि मेरा हर निशाना खाली गया । तभी मुझे पहली बार महसूस हुआ कि ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम नहीं था । ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम हो ही नहीं सकता था ।”
“ओह ।”
“कैसी अजीब बात है कि एक अकेला, अनपढ़, नादान मदान ही था जिसने कि शूटिंग के मामले में कोई काबलियत की बात कही थी । उसने लाश और लाश के इर्द-गिर्द एक निगाह डालते ही कहा था कि वो किसी पक्के निशानेबाज का काम था ।”
“मदान ने कहा था ऐसा ?”
“हां । और दूसरी गौरतलब बात उसने ये कही थी कि किसी औरत की मजाल नहीं हो सकती थी शशिकांत पर गोलियां चलाने की । इन दोनों बातों की अहमियत को मैंने फौरन समझा होता तो परसों ही केस का तीया-पांचा एक हो जाता ।”
वो खामोश रहा ।
“अब एक बात तो बता दो ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“शशिकांत की मां कौशल्या के तुम्हें सौंपे कोई कागजात तुम्हारे पास हैं ?”
वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला, “देखो, कौशल्या का वकील मेरा बाप था । मेरे बाप के पास कौशल्या का सौंपा एक सीलबंद लिफाफा था जोकि मेरे बाप की मौत के बाद मुझे हस्तांतरित हो गया था । मुझे नहीं पता कि उस लिफाफे में क्या है लेकिन अब लगता है की उसमे जरुर वो ही कागजात हैं जिनको हासिल करने के लिए मदान मरा जा रहा है ।”
“उस लिफाफे का तुम क्या करोगे ?”
“तुम बताओ क्या करूं ?”
“उसे मदान को सौंप दो । उसका भला हो जाएगा ।”
“बदले में मेरा क्या भला होगा ?”
“तुम क्या भला चाहते हो ?”
“उसे कहो, मुझे छुड़वाए ।”
“पागल हो ! ऐसे कैसे छूट जाओगे ! खुद वकील हो, फिर भी ऐसी बाते कर रहे हो ।”
“पैसे से केस को हल्का किया जा सकता है । पैसे की बिना पर मेरी खलासी दो-चार साल की सजा से ही हो सकती है । संदेह लाभ पाकर छूट भी जाऊं तो कोई बड़ी बात नहीं । और सवाल उस सीलबंद लिफाफे का नहीं, शशिकांत की विरासत का भी है । वो लिफाफा शशिकांत की विरासत से, इंश्योरंस क्लेम से, हर क्लेम से मदान को बेदखल करा सकता है । वो मदान को जेल में मेरा नेक्स्ट डोर नेबर बना सकता है । तुम बिचौलिया बनकर इस बाबत मदान से मेरा कोई सौदा पटवा दो, लिफाफा मैं तुम्हें दे दूंगा ।”
“क्यों नहीं मालूम ? बाकी हर बात मालूम है तो ये क्यों नहीं मालूम ?”
“बस, नहीं मालूम । जरुरी थोड़े ही है कि हर बात मुझे ही मालूम हो ? तुम इस बाबत माथुर से भी तो सवाल कर सकते हो ।”
“वो जरुर ही बताएगा मुझे कुछ ।”
“तुम्हारा भाई” यादव मदान से संबोधित हुआ, “मुल्क से कूच की तैयारी क्यों कर रहा था ?”
मदान परे देखने लगा ।
यादव ने एक गहरी सांस ली और बड़े असहाय भाव से गर्दन हिलाई । फिर वो खेतान के करीब पहुंचा ।
“तुम” वो बोला, “अपना जुर्म कबूल करते हो ?”
“कौन-सा जुर्म ?” खेतान बड़े दबंग स्वर में बोला, “कैसा जुर्म ? मैंने कोई जुर्म नहीं किया ।”
“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“बिलकुल झूठ । मैं उसे जीता-जागता, सही सलामत यहां छोडकर गया था । इस आदमी की” उसने खंजर की तरह एक उंगली मेरी तरफ भौंकी, “बकवास से आप मुझे खूनी साबित नहीं कर सकते । सिवाए बेहूदा थ्योरियों के और अटकलबाजियों के क्या है आपके पास मेरे खिलाफ ? कोई सबूत है ? है कोई सबूत ?”
“घड़ी पर” मैं धीरे-से बोला, “इसकी उंगलियों के निशान हो सकते हैं ।”
यादव को बात जंची । तत्काल उसने अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को तलब किया ।
एक्सपर्ट ने घड़ी को चैक किया ।
“घड़ी पर” वो बोला, “या बुत पर, कहीं भी उंगलियों के कैसे भी कोई निशान नहीं हैं ।”
“ओह ।” यादव बोला ।
“लेकिन इंस्पेक्टर साहब” मैं बोला, “ये भी तो अपने आप में भारी संदेहजनक बात है । इसके न सही, किसी के तो उंगलियों के निशान होने चाहिए बुत पर ।”
“शशिकांत के तो होने चाहिए” मदान बोला, “जो कि रोज इस घड़ी में चाबी भरता था ।”
“चाबी !” फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट बोला, “चाबी तो इस घड़ी में कोई लगी ही नहीं हुई ।”
“वो चाबी अलग से लगती है ।” मदान बोला, “एक लम्बी-सी चाबी है जिसके दोनों सिरों पर मुंह है । एक ओर का बड़ा मुंह घड़ी में चाबी भरने वाले लीवर को पकड़ता है और दूसरा एकदम छोटा मुंह वो लीवर पकड़ता है जिससे घड़ी की सुइयां आगे-पीछे सरकती हैं ।”
“कहां है चाबी ?”
“यहीं कहीं होगी ।”
दो मुंही चाबी घड़ी वाले बुत के पीछे से बरामद हुई ।
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने उस पर से उंगलियों के निशान उठाए ।
चाबी पर पुनीत खेतान के बाएं हाथ के अंगूठे का स्पष्ट निशान मिला ।
यादव की बांछे खिल गई ।
पुनीत खेतान के तमाम कस बल निकल गए ।
“मैंने तुम्हारी काबलियत को कम करके आंका ।” पुनीत खेतान बोला ।
मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा था । मुस्तैद पुलिसिए ड्राईंगरूम के बाहर के दरवाजे पर खड़े थे । यादव भीतर स्टडी में मदान और उसकी बीवी के साथ था । उसी ने बाकी लोगों को स्टडी से बाहर निकाला था ।
“मेरी काबलियत को” मैं बोला, “ठीक से आंकते तो क्या हो जाता ?”
“तो जो कुछ तुमने पुलिस को बताया, उसका ग्राहक मैं होता ।”
“ग्राहक ?” मेरी भंवे उठी ।
“हां ।”
“इतना बिकाऊ तो नहीं मैं !”
वो हंसा । प्रत्यक्षतः उसकी निगाह में मैं ‘इतना ही बिकाऊ’ था ।
“वैसे मानते हो” फिर वह संजीदगी से बोला, “कि निशाना कुछ है मेरा !”
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा । कैसा आदमी था वो ! कदम फांसी के फंदे की ओर बढ़ रहे थे और वो अपनी निशानेबाजी की आइडेंटिटी का ख्वाहिशमंद था ।
“घड़ी की तरफ तवज्जो कैसे गई ?” वो बोला ।
“मधु के बयान की वजह से ।” मैं बोला, “मुझे यकीन था कि वो झूठ नहीं बोल रही थी । अब अगर मैंने उसके बयान पर एतबार करना था तो घड़ी की शहादत को झूठा और फर्जी करार देना मेरे लिए जरुरी था ।”
“हूं । और ?”
“और मेरे ज्ञानचक्षु माथुर साहब के शूटिंग रेंज पर खुले जहां कि मेरा हर निशाना खाली गया । तभी मुझे पहली बार महसूस हुआ कि ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम नहीं था । ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम हो ही नहीं सकता था ।”
“ओह ।”
“कैसी अजीब बात है कि एक अकेला, अनपढ़, नादान मदान ही था जिसने कि शूटिंग के मामले में कोई काबलियत की बात कही थी । उसने लाश और लाश के इर्द-गिर्द एक निगाह डालते ही कहा था कि वो किसी पक्के निशानेबाज का काम था ।”
“मदान ने कहा था ऐसा ?”
“हां । और दूसरी गौरतलब बात उसने ये कही थी कि किसी औरत की मजाल नहीं हो सकती थी शशिकांत पर गोलियां चलाने की । इन दोनों बातों की अहमियत को मैंने फौरन समझा होता तो परसों ही केस का तीया-पांचा एक हो जाता ।”
वो खामोश रहा ।
“अब एक बात तो बता दो ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“शशिकांत की मां कौशल्या के तुम्हें सौंपे कोई कागजात तुम्हारे पास हैं ?”
वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला, “देखो, कौशल्या का वकील मेरा बाप था । मेरे बाप के पास कौशल्या का सौंपा एक सीलबंद लिफाफा था जोकि मेरे बाप की मौत के बाद मुझे हस्तांतरित हो गया था । मुझे नहीं पता कि उस लिफाफे में क्या है लेकिन अब लगता है की उसमे जरुर वो ही कागजात हैं जिनको हासिल करने के लिए मदान मरा जा रहा है ।”
“उस लिफाफे का तुम क्या करोगे ?”
“तुम बताओ क्या करूं ?”
“उसे मदान को सौंप दो । उसका भला हो जाएगा ।”
“बदले में मेरा क्या भला होगा ?”
“तुम क्या भला चाहते हो ?”
“उसे कहो, मुझे छुड़वाए ।”
“पागल हो ! ऐसे कैसे छूट जाओगे ! खुद वकील हो, फिर भी ऐसी बाते कर रहे हो ।”
“पैसे से केस को हल्का किया जा सकता है । पैसे की बिना पर मेरी खलासी दो-चार साल की सजा से ही हो सकती है । संदेह लाभ पाकर छूट भी जाऊं तो कोई बड़ी बात नहीं । और सवाल उस सीलबंद लिफाफे का नहीं, शशिकांत की विरासत का भी है । वो लिफाफा शशिकांत की विरासत से, इंश्योरंस क्लेम से, हर क्लेम से मदान को बेदखल करा सकता है । वो मदान को जेल में मेरा नेक्स्ट डोर नेबर बना सकता है । तुम बिचौलिया बनकर इस बाबत मदान से मेरा कोई सौदा पटवा दो, लिफाफा मैं तुम्हें दे दूंगा ।”
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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Re: Thriller मकसद
मैंने सहमति में सिर हिलाया और स्टडी के बंद दरवाजे की तरफ देखा ।
तभी मदान वहां से बाहर निकला । मैं लपककर उसके करीब पहुंचा । वो मुझे एक ओर ले गया और भुनभुनाता सा बोला, “लक्ख रुपया मांग रहा है वो इंस्पेक्टर का बच्चा मधु का पीछा छोड़ने का ।”
“दे रहे हो ?” मैं बोला ।
“और क्या न दूं ?”
“जरुर दो । तुम्हारी हसीन बीवी को एक पल भी हवालात में काटना पड़ गया तो जिन्दगी भर वो तुम्हारी दुक्की पीटती रहेगी ।”
“वही तो ।”
“और अब बदले में कई लाखों की बात सुनो ।”
“कौन-सी ?”
मैंने उसे खेतान की ख्वाहिश की बाबत बताया ।
“ऐदी भैन दी ।” सुनते ही मदान भड़का, “ब्लैकमेल करता है मुझे ! माईयंवी मेरी बिल्ली मेरे से म्याऊं !”
“भडको मत ।” मैं बोला, “शांति से फैसला करो । जो तुम्हारा आखिरी मकसद था, उसको निगाह में रखकर, सोचकर फैसला करो । मैं जरा इंस्पेक्टर से बात करके आता हूं ।”
यादव मुझे स्टडी में मिला । उस घड़ी उसके चेहरे पर परम तृप्ति के भाव थे ।
“आधा मेरा ।” मैं बोला ।
“क्या ?” वो हकबकाया ।
“माल । मदान से हासिल होने वाला । उसमें से पचास हजार मुझे ।”
“पागल हुए हो !”
“ये न भूलो कि ये केस मेरी वजह से ही हल हुआ है ।”
“तुम भी ये न भूलो कि तुम और खेतान एक ही हथकड़ी में बंधे हो सकते हो ।”
“कोई बात नहीं । हम दोनों की मंजिल एक नहीं हो सकती । मेरे पर कोई गंभीर चार्ज नहीं है । आराम से छूट जाऊंगा । लेकिन छूटते ही विकास मीनार पर चढ़कर दुहाई दूंगा कि तुमने मदान दादा से लाख रुपए की रिश्वत खाई है । मेरी दुहाई पुलिस हैडक्वार्टर के एक-एक कमरे में सुनाई देगी ।”
“अबे, कमीन...”
“वो तो मैं हूं ही । दो ही चीजों की कीमत है आजकल दिल्ली शहर में । जमीन की और कमीन की ।”
“तुम्हें आधा हिस्सा चाहिए या पचास हजार रूपया ।”
“क्या फर्क हुआ ?”
“अगर आधा चाहिए तो मैं अभी मदान से दो लाख मांगता हूं । पचास हजार चाहिए तो डेढ़ लाख मांगता हूं ।”
“यानी कि तुम्हें तो एक लाख चाहिए ही चाहिए ।”
“बिल्कुल !”
“फिर तो” मैं मरे स्वर में बोला, “मैं खुद ही कर लूंगा मदान से अपना हिसाब-किताब ।”
यादव बड़े कुटिल भाव से मुस्कुराया ।
हजरात, उस हैरान और हलकान कर देने वाले केस का जो असली इनाम आपके खादिम को मिला वो डेढ़ लाख रुपए की फीस नहीं थी जो मैंने अपने दो संपन्न क्लायंटों से कमाई थी, वो मेरे गरीबखाने पर शुक्रगुजार होने को आई एक हसीना की आमद थी जो यूं शुक्रगुजार होना चाहती थी जैसे कोई औरत ही किसी मर्द की हो सकती थी ।
रात को जब मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा तो पिंकी वहां मुझे मेरा इंतजार करती मिली ।
अपने वादे के मुताबिक मुझे ‘सबकुछ’ लाइव दिखाने के लिए ।
समाप्त
तभी मदान वहां से बाहर निकला । मैं लपककर उसके करीब पहुंचा । वो मुझे एक ओर ले गया और भुनभुनाता सा बोला, “लक्ख रुपया मांग रहा है वो इंस्पेक्टर का बच्चा मधु का पीछा छोड़ने का ।”
“दे रहे हो ?” मैं बोला ।
“और क्या न दूं ?”
“जरुर दो । तुम्हारी हसीन बीवी को एक पल भी हवालात में काटना पड़ गया तो जिन्दगी भर वो तुम्हारी दुक्की पीटती रहेगी ।”
“वही तो ।”
“और अब बदले में कई लाखों की बात सुनो ।”
“कौन-सी ?”
मैंने उसे खेतान की ख्वाहिश की बाबत बताया ।
“ऐदी भैन दी ।” सुनते ही मदान भड़का, “ब्लैकमेल करता है मुझे ! माईयंवी मेरी बिल्ली मेरे से म्याऊं !”
“भडको मत ।” मैं बोला, “शांति से फैसला करो । जो तुम्हारा आखिरी मकसद था, उसको निगाह में रखकर, सोचकर फैसला करो । मैं जरा इंस्पेक्टर से बात करके आता हूं ।”
यादव मुझे स्टडी में मिला । उस घड़ी उसके चेहरे पर परम तृप्ति के भाव थे ।
“आधा मेरा ।” मैं बोला ।
“क्या ?” वो हकबकाया ।
“माल । मदान से हासिल होने वाला । उसमें से पचास हजार मुझे ।”
“पागल हुए हो !”
“ये न भूलो कि ये केस मेरी वजह से ही हल हुआ है ।”
“तुम भी ये न भूलो कि तुम और खेतान एक ही हथकड़ी में बंधे हो सकते हो ।”
“कोई बात नहीं । हम दोनों की मंजिल एक नहीं हो सकती । मेरे पर कोई गंभीर चार्ज नहीं है । आराम से छूट जाऊंगा । लेकिन छूटते ही विकास मीनार पर चढ़कर दुहाई दूंगा कि तुमने मदान दादा से लाख रुपए की रिश्वत खाई है । मेरी दुहाई पुलिस हैडक्वार्टर के एक-एक कमरे में सुनाई देगी ।”
“अबे, कमीन...”
“वो तो मैं हूं ही । दो ही चीजों की कीमत है आजकल दिल्ली शहर में । जमीन की और कमीन की ।”
“तुम्हें आधा हिस्सा चाहिए या पचास हजार रूपया ।”
“क्या फर्क हुआ ?”
“अगर आधा चाहिए तो मैं अभी मदान से दो लाख मांगता हूं । पचास हजार चाहिए तो डेढ़ लाख मांगता हूं ।”
“यानी कि तुम्हें तो एक लाख चाहिए ही चाहिए ।”
“बिल्कुल !”
“फिर तो” मैं मरे स्वर में बोला, “मैं खुद ही कर लूंगा मदान से अपना हिसाब-किताब ।”
यादव बड़े कुटिल भाव से मुस्कुराया ।
हजरात, उस हैरान और हलकान कर देने वाले केस का जो असली इनाम आपके खादिम को मिला वो डेढ़ लाख रुपए की फीस नहीं थी जो मैंने अपने दो संपन्न क्लायंटों से कमाई थी, वो मेरे गरीबखाने पर शुक्रगुजार होने को आई एक हसीना की आमद थी जो यूं शुक्रगुजार होना चाहती थी जैसे कोई औरत ही किसी मर्द की हो सकती थी ।
रात को जब मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा तो पिंकी वहां मुझे मेरा इंतजार करती मिली ।
अपने वादे के मुताबिक मुझे ‘सबकुछ’ लाइव दिखाने के लिए ।
समाप्त
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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