Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

रामदयाल की पत्नी माया एक सुघड़ घरेलू महिला थी। परंतु एक पढ़ी-लिखी सुंदर स्त्री भी थी। दोनों मियाँ-बीवी अकेले रहते थे। घर-संसार खुशहाल था। दोनों ने मेरी अच्छी-खासी सेवा की।

रामदयाल को मैंने अपनी ज़िंदगी की सारी दास्तान सुना डाली। मैंने उससे मोहिनी का भेद भी बता दिया था। और वह हैरत से मेरी कहानी सुनता रहा।

मोहिनी की कहानी इसी घर से शुरू हुई थी। जब रामदयाल की माँ ने मुझसे कहा था कि मैं जाप करके मोहिनी को प्राप्त कर सकता हूँ। परंतु वह बात मैंने मज़ाक में टाल दी थी। क्योंकि जादू-टोने, तंत्र-मंत्र को मैं कोरी बकवास समझता था और रामदयाल भी इन चीज़ों से दूर रहता था। रामदयाल की माँ की मृत्यु एक आकस्मिक मृत्यु थी। जब मैंने उसे बताया कि उसकी माँ की मौत का कारण भी मोहिनी थी क्योंकि वह भी मोहिनी को सिद्ध करना चाहती थीं। और फिर मरघट में चिता जलाने के बाद अगली ही सुबह मोहिनी मेरे सिर पर छिपकली की तरह चिपक गयी थी तो रामदयाल को इन बातों पर विश्वास न हुआ।

लेकिन जब मैंने अपनी सारी दास्तान सुनाई तो उसे यक़ीन करना पड़ा क्योंकि वह जानता था कि मैं झूठ नहीं बोलता।

“और अब एक बार फिर मैं मोहिनी को पाने के लिये संघर्ष कर रहा हूँ रामदयाल। मेरे दोस्त, एक बार यदि वह मुझे मिल गयी तो फिर मेरी ज़िंदगी में हर बहार मेरे कदम चूमेगी। मैं उसे कभी अपने से जुदा नहीं होने दूँगा। वरना मेरी ज़िंदगी सिवाय एक लाश के कुछ नहीं...”

“इस सिलसिले में जो तुम चाहोगे, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। इसे अपना ही घर समझना...”

रामदयाल ने मेरे लिये नए रेडिमेड कपड़े ख़रीद लिये। मेरे दवा-दारू का प्रबंध भी कर दिया और तीन दिन बाद मैं फिर से तरोताज़ा हो गया।

तीन दिन बाद जो मैंने सबसे पहला काम किया वह काली के मंदिर का रुख़ किया। मंदिर में भीड़-भाड़ थी। मैंने एक पुजारी को साथ लिया और फिर उसकी सहायता से मैंने शिवचरण की राख काली के भेंट चढ़ा दी।

मेरा ख़्याल था कि इस काम में ज़रूर कुछ बाधाएँ आएँगी, परंतु ऐसा कुछ न हुआ।

रामदयाल की माँ के पास पहले भी बहुत से पुजारी आया करते थे। उनमें से एक को रामदयाल जानता था। उसी के कारण यह काम बड़ी सरलता से संपन्न हो गया।

जब मैं मंदिर से निकला तो मैंने अपने आपको काफ़ी हल्का-फुल्का और तरोताजा महसूस किया जैसे एक बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया हो। मेरा अनुमान था कि मंदिर से निकलते ही मोहिनी त्रिवेणी को छोड़कर तुरंत ही मेरे सिर पर आ जाएगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। एक-दो दिन तक मुझे इस बात का बड़ा धक्का लगा रहा। पर जब मोहिनी मेरे सिर पर नहीं आई तो मैं घोर निराशा में घिर गया।

मैं सोचने लगा कि मेरे कार्य में कहीं कोई भूल तो नहीं हो गयी। फिर अचानक मुझे हरि आनन्द के कहे हुए यह शब्द याद आए कि जैसे ही मैं राख काली के मंदिर में चढ़ाऊँ तो तब त्रिवेणी से मिलूँ। मैं यह बात भूल ही गया था।
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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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फिर अगले ही रोज़ मैंने रामदयाल को सारी बातें समझाकर पूना के लिये प्रस्थान किया। अंजाम कुछ भी हो सकता था पर मुझे त्रिवेणी के सामने जाना ही था। जो मेरे इतने दिन ग़ायब रहने पर अवश्य ही शंकित हो गया होगा। शायद त्रिवेणी को न भी मालूम हुआ हो। लेकिन इस बात की संभावनाएँ कम थी क्योंकि मोहिनी उसके पास थी और मोहिनी के द्वारा वह सबकुछ मालूम कर सकता था।

पूना पहुँचने के बाद मैं धड़कते दिल से त्रिवेणी के बंगले पर पहुँचा। इस बार मुझे उसके पास पहुँचने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। सूचना मिलते ही त्रिवेणी ने मुझे तुरन्त बुला लिया।

धड़कते हुए दिल से मैं त्रिवेणी के सामने गया। उसके चेहरे पर गंभीरता थी। उसने मेरा स्वागत इस अंदाज में नहीं किया जिसकी मुझे आशा थी। मेरा ख्याल था कि शिवचरण की मौत का समाचार उसे मिल गया होगा और वह गर्मजोशी से दोस्ताना अंदाज में मेरा स्वागत करेगा जैसा कि उसने पहले वचन दिया था। पर जिस दृष्टि से उसने मुझे देखा उसमें दोस्ती का कोई भाव नहीं था। उसके तेवर देखकर मुझे अनुमान लगाने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हुई कि वह मुझसे नाराज है। मैं ख़ामोशी से एक कुर्सी पर बैठ गया तो त्रिवेणी ने पहल करते हुए खुश्क स्वर में पूछा।
“कब आये ?”

मैं लापरवाह से स्वर में बोला– “कल रात! मगर तुम्हारे द्वारपाल ने कल रात मुझे अंदर दाखिल नहीं होने दिया।”

“इतने दिन कहाँ रहे ?” उसने उसी गंभीरता से पूछा।

“शिवचरण की मौत के बाद मेरा दिल कुछ उकता गया था। मैंने सोचा तुम्हारा काम तो हो ही गया है, क्यों न कुछ दिन घूम-फिर लूँ।”

“कहाँ-कहाँ घूमे, किस-किस जगह ठहरे... ?” उसके स्वर में व्यंग्य था।

“बस ऐसे ही इधर-उधर आवारागर्दी करता रहा।”

“तुमने अपने इस मित्र को सूचना क्यों नहीं दी। तुम्हें शिवचरण को मारने के बाद सीधा यहाँ आना चाहिए था। मैंने यही तुमसे कहा था।”

“मैंने सूचना देना आवश्यक नहीं समझा। मैं जानता था, तुम्हें सब मालूम ही होगा। वरना...”

“राज।” अचानक त्रिवेणी मेरा वाक्य काटकर बोला, “मैंने तुम्हें अपना मित्र समझकर भेजा था। मुझे अपना वादा याद है, परन्तु हो सकता है मुझे अपना यह फैसला बदलना पड़े।”

“त्रिवेणी, मुझे पहले ही संदेह था कि तुम्हारा वादा झूठा है! मैंने तो अपनी जान खतरे में डालकर तुम्हारे लिये यह सब कर डाला जिसके लिये मेरा जमीर कभी तैयार न हो सकता था और अब... इतनी सी बात का बहाना बनाकर कि मैं वह काम समाप्त करने के बाद सीधा यहाँ नहीं आया, उचित नहीं है; और मैं स्वीकार कर चुका हूँ कि मेरी गलती है।”

त्रिवेणी ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह मुझे टटोलने वाली दृष्टि से घूरे जा रहा था। उसके नेत्रों में गहरी उलझन का शिकार मालूम होता था। उसके नेत्रों में संदेह था और माथे पर शिकन। मैंने उसका ध्यान बँटाने के लिये इधर-उधर की बातें की लेकिन वह इसी अंदाज में बराबर मेरा निरीक्षण करता रहा। मेरी मर्म बातों ने उस पर कोई प्रभाव नहीं डाला था। कुछ देर इस कशमकश में फँसे रहने के बाद वह मेरे निकट आया और ठोस आवाज में बोला–
“राज, मैं यह जानना चाहता हूँ कि तुम इतने अरसे कहाँ रहे और क्या करते रहे। तुम्हें मालूम है मेरे सामने झूठ नहीं बोला जा सकता। मोहिनी मुझे सब कुछ सही-सही बता देगी। वह तुम्हारे बारे में मुझे एक-एक पल की खबर दे सकती है लेकिन मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ।”

मोहिनी का नाम सुनकर मैं सँभला। मैं जानता था कि मोहिनी की उपस्थिति में बहस करने से कोई लाभ न होगा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं त्रिवेणी को क्या उत्तर दूँ। क्या उसे सबकुछ साफ-साफ बता दूँ ? फिर उसे कैसे सन्तुष्ट करूँ ? उसी समय मुझे हरि आंनद का ख्याल आया जिसने मुझे बताया था कि वह अपनी शक्ति के द्वारा मेरे और मोहिनी के बीच पर्दा रखेगा। मैं कोई उचित जवाब देने वाला था कि त्रिवेणी ने खुश्क स्वर में गरजकर कहा– “राज तुमने अभी तक मेरी बात का उत्तर नहीं दिया।”
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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

मैंने हिचकिचाकर कहा– “त्रिवेणी, जब तुम मोहिनी की पराजित शक्ति के स्वामी हो तो उसी से क्यों नहीं जान लेते। लम्बे सफर के कारण मैं बहुत थक चुका हूँ।

“क्या मैं यह समझूँ कि तुम मुझे कुछ बताना नहीं चाहते ?” त्रिवेणी ने उखड़ी आवाज में कहा। उसके तेवर ख़राब होते जा रहे थे।

मैं विचित्र उलझन में गिरफ्तार था। अगर हालात ने मुझे मजबूर न किया होता और पण्डित हरि आनंद ने मुझे वापिस पहुँचने को न कहा होता तो मैं उसकी सूरत देखना भी गँवारा न करता। मुझे उससे गहरी नफरत थी। मैं सोच रहा था कि उसे किस तरह टालूँ ? त्रिवेणी ने मुझे खामोश देखा तो एकदम भड़क उठा।

“राज ठाकुर! तुम भूल रहे हो कि इस समय तुम किस शक्ति के सामने हो। क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि मैं कौन हूँ ?”

“त्रिवेणी तुम्हें क्या हो गया है ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?”

मैंने एक और कोशिश की- “अगर तुम्हें मेरा यहाँ आना गँवारा न गुजर रहा हो तो मैं आज ही चला जाता हूँ।”

इस वाक्य को पूरा करने के बाद मैं जाने के बहाने कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। वह मुझे उस शक्ति की धमकी दे रहा था जिसे मैंने जान पर खेलकर उसके लिये बचाया था। अगर मैंने शिवचरण को न मारा होता तो त्रिवेणी दर-दर की ठोकरें खा रहा होता। जैसे ही मैं जाने के लिये मुड़ा त्रिवेणी उछलकर मेरी राह में आ खड़ा हुआ।

“तू मुझे मूर्ख समझता है टुन्टे। तुझे एक और मौका देता हूँ। सच-सच बता दे कि शिवचरण को मारने के बाद तू कहाँ-कहाँ गया वरना मैं तेरी दूसरी आँख भी छीन लूँगा।”

मैं कांप उठा। मुझे याद आ गया किस तरह मोहिनी ने मेरी एक आँख मुझसे छीन ली थी। वह भयानक जहरीली छिपकली मोहिनी अब भी त्रिवेणी के हुक्म की गुलाम थी।

“आखिर तुम मोहिनी से ही क्यों नहीं पूछ लेते ?” मैंने उकताए स्वर में कहा, “तुमने तो मुझसे बड़े वादे किये थे परन्तु लगता है तुम अपने वादों को तोड़ने के लिये एक बहाना खोज रहे हो।”

“हाँ कमीने! कुत्ते! इस दुनिया में कौन किसका दोस्त होता है। मैं इस मामले में मोहिनी की शक्तियाँ प्रयोग नहीं करना चाहता। इतना याद रख कि अगर तूने मुझे कुछ न बताया तो मैं तुझे फिर से दर-दर का भिखारी बना दूँगा। जो अँधा, लूला, लंगड़ा होगा।”

त्रिवेणी के बार-बार कहने पर मेरी समझ में एक बात आ रही थी। हरि आनंद ने जो कुछ कहा था उसके अनुसार मोहिनी मेरी गतिविधियाँ न जान सकती थी। शायद यह बात सच थी। अन्यथा त्रिवेणी मुझसे न पूछता और शायद इसी बात के कारण उसके दिमाग में खुटक पैदा हो गया था। लेकिन हरि आनंद ने यह भी कहा था कि त्रिवेणी के पास जाऊँ। आखिर किस लिये और मोहिनी अब तक मेरे कब्जे में क्यों नहीं आई थी। अब मुझे इसकी उम्मीद न आ रही थी। इसलिए मैं किसी तरह वहाँ से फरारी का उपाय सोच रहा था। अगर मैं सच बात उसे बता देता तो वह हरगिज मुझे जिन्दा न छोड़ता।

“ठीक है त्रिवेणी, जो दिल में आये करो। अब मैं यहाँ रुकने वाला नहीं।”

मेरा इतना कहना था कि त्रिवेणी ने एक घूँसा मेरे मुँह पर जड़ दिया और मैं लड़खड़ाकर दिवार से जा लगा। त्रिवेणी की यह हरकत मेरी बर्दाश्त से बाहर थी। मेरे दिल में आया कि मैं तुरन्त अपने इकलौते हाथ से उसका गला घोंट दूँ। परन्तु सहसा मुझे मोहिनी की शक्ति का ख्याल आया। दूसरे वह मोटा ताजा त्रिवेणी आसानी से मेरे काबू में आने वाला न था। किन्तु एक विचार जो मेरे मष्तिष्क में तुरन्त आया वह यह था कि फरार होने में ही अब मेरी भलाई है। मुझे इस बात का भी विश्वास हो चला था कि मोहिनी से त्रिवेणी मेरी कारगुजारियों के बारे में कुछ भी ज्ञात न कर सका होगा अन्यथा वह मेरे मुँह से सच उगलवाने पर इतना दबाव न डालता।

क्षणिक फैसले में ही मैंने त्रिवेणी पर एक टक्कर रसीद कर दी। वह लुढ़क कर पीछे सोफे पर जा गिरा और मैं तीर की तरह दरवाजा बाहर से बंद करके वहाँ से भाग निकला।

दरबान ने मुझे नहीं रोका बस आश्चर्य से वह मेरी तरफ देखता रहा। सड़क पर पहुँचते ही मैंने एक खाली टैक्सी रोकी और पूना के दूसरे छोर पर पहुँच कर ही दम लिया।

फिर मैंने एक होटल की शरण ली। कमरा बुक करवा कर मैं होटल के कमरे में पहुँचा। मैंने दरवाजा भीतर से बंद किया और गहरी-गहरी साँस लेने लगा। पर यह सोचकर मैं पुनः भयभीत हो उठा कि भला मोहिनी के सामने बंद दरवाजे की क्या अहमियत और त्रिवेणी मुझे क्षमा नहीं कर सकता, न ही मैं त्रिवेणी से यह छिपा सकता हूँ कि मैं इस वक्त कहाँ हूँ। वह जब चाहेगा मुझे वापिस कोठी पर बुला लेगा।
chusu
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by chusu »

sahi...............
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