Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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दोपहर सिर पर आ गयी तो मुझे भूख-प्यास ने सताना शुरू किया। मेरी हालत अब भी भिखारियों जैसी थी। मैं बेताज बादशाह, जिसके पास दौलत ही दौलत हुआ करती थी, जिसने मोहिनी के प्रताप से बड़ों-बड़ों को गुल खिलाए थे। वही कुँवर राज ठाकुर अब यह बयान करके बार-बार शर्मिंदा नहीं होना चाहता था कि किस तरह मैंने अपने पेट का जहन्नुम भरा।

जब मैं निकटतम आबादी से अपने पेट की आग शांत करके वापस लौटा तो कुटी के पास आते ही ठिठककर रुक गया। कब्रिस्तान से कुछ अलग हटकर मैंने एक व्यक्ति को आलथी-पालथी मारे जप करते देखा। निकट पहुँचते ही मैंने उसे पहचान लिया। वह जगदेव था। साधु जगदेव के चारों तरफ़ चूने का सफ़ेद दायरा खींचा हुआ था और वह किसी जाप में लीन था।

साधु जगदेव को इस तरह मण्डल में बैठा देख मैं हैरत में पड़ गया।

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कुछ क्षण बाद अपनी साँसों पर काबू पाते हुए मैंने साधु जगदेव को संबोधित करने की कोशिश की लेकिन मेरी आवाज सन्नाटे की गूँज बनकर रह गयी। जगदेव ने मेरी आवाज का कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने उसे गला फाड़-फाड़कर आवाजें दीं, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। फिर मैंने सोचा निकट जाकर झिंझोड़ू लेकिन मेरे सामने की लकीर एक दीवार बन गयी।

मण्डल, यह ज्ञान-ध्यान, यह रहस्यमय जाप मेरे लिये कोई नयी बात नहीं थी। पहले भी मैं त्रिवेणी और शिवचरण को मण्डल में बैठे देख चुका था। मैं जानता था यदि साधु जगदेव किसी जाप में मग्न है तो मेरा मण्डल में घुसना मौत को दावत देना है। अतः मैंने आगे बढ़ने का विचार त्याग दिया और थक-हारकर मण्डल के बाहर बैठ गया। शायद जगदेव के जाप का समय बहुत कम हो और अपना जाप खत्म करके संभव है शाम तक बाहर आ जाए।

फिर मैं झोंपड़ी के निकट आकर धूप में लेट गया। इन बातों ने मेरी बुद्धि को जकड़कर रख दिया था। कोई बात समझ में नहीं आती थी। आख़िर जगदेव किस क़िस्म के जाप में व्यस्त हो गया। कल्पना कहीं जगदेव का दूसरा रूप तो नहीं है। यह भी संभव है। अब मैं जगदेव के निर्देश के बिना कोई कदम नहीं उठाना चाहता था। वह रात गुज़र गयी। फिर दूसरा दिन गुज़र गया। फिर तीसरा दिन गुज़र गया। मैं कभी झोंपड़ी में पड़ा रहता, कभी मण्डल के क़रीब जगदेव को ताकने लगता। कभी खाने के लिये कब्रिस्तान से बाहर चला जाता। जगदेव का जाप खत्म नहीं हुआ। चौथे रोज़ तंग आकर मैंने एक फ़ैसला किया कि मुझे एक बार तो अपने घर चलना चाहिए। चाचा का घर अपना घर है और अपने घर में यह झिझक कैसी।

अतः जगदेव से मिलने का इरादा छोड़कर मैं उस रास्ते पर चल पड़ा जो मेरे घर को जाता था।

लखनऊ की जानी-पहचानी सड़कों पर मैं किसी अजनबी की तरह चला जा रहा था। मुझे विश्वास था कि कोई मुझे पहचान नहीं पाएगा। जब मोहल्ले की गलियाँ आईं तो मैंने लोगों से कतराकर निकलना चाहा। मैं परिस्थिति के ताने-बाने जिस कदर सुलझाने की कोशिश करता वह उसी कदर उलझ जाते।

मैं जब उस गली में प्रविष्ट हुआ जहाँ चाचा का घर था तो दिल डूबने लगा, कदम लड़खड़ाने लगे। जी चाहा कि वापस लौट जाऊँ। बदन पर मैल की तहें जमी हुई थीं। सिर और दाढ़ी के बाल झाड़-झंकाड़ की तरह उगे हुए थे। शरीर के सारे कपड़े फट रहे थे और काले पड़ गए थे। घर के पास पहुँचकर गुजरी हुई बातें एक-एक करके याद आने लगीं। मैं अभी घर से चंद कदम के फासले पर था कि एकाएक मेरे सिर में चुभन सी महसूस होने लगी। वही जानी-पहचानी सी चुभन जो मोहिनी के आगमन का ऐलान थी। मैंने घर जाने की बजाय अचानक वापस जाने का इरादा किया और तेजी से दूसरी गली में चला आया। फिर मैंने बेचैनी की स्थिति में कल्पना की दुनिया में सिर पर नज़र डाली। मोहिनी छिपकली, वह जहरीली खूबसूरत बला मेरे सिर पर मौजूद थी। मैंने एक सर्द आह भरकर पूछा।
“अब क्या हुक्म देने आयी हो ?”

“कुँवर राज ठाकुर!” मोहिनी ने सर्द लहजे में उत्तर दिया। “तुम मुझे पहचानते हो ? मैं कौन हूँ ?”

“मोहिनी!” मैंने रुँधी हुई आवाज़ में कहा। “दिल पर नश्तर मत चलाओ। साफ़-साफ़ बात करो। क्या कहना है ?”

“तुम मेरी ताक़त से वाकिफ़ हो।”

“मैं तुम्हारे हर रूप से वाकिफ़ हूँ। काश! तुम्हें मरना भी आता। काश! तुम महसूस भी कर सकती।”

“बातें बनाने की बजाय तुम मेरे आका पंडित हरि आनन्द को भी खूब जानते हो। वह महान शक्तियों का स्वामी है। उसकी शक्ति से टकराने वाले का अंजाम बुरा होता है। तुम कभी मेरे आका के कष्ट से बच नहीं सकते।”

“मुझे मालूम है। मगर तुम क्या कहना चाहती हो ?”

“तुम हरि आनन्द के कष्ट से बच सकते हो लेकिन एक शर्त पर।”

“वह क्या है ?” मैंने धड़कते हुए दिल से पूछा।

“तुम्हें मुझे कल्पना की हैसियत बतानी होगी।”

“कल्पना ?” मैंने दोहराया। “मैं नहीं जानता कि वह कौन है ?”

“मुझसे कोई बात छुपाई नहीं जा सकती। यह बात तुम जानते हो।” मोहिनी ने गजबनाक आवाज़ में कहा। “अगर ज़िंदगी प्यारी है तो कल्पना की हैसियत और उसके ठिकाने से आगाह कराओ। वरना मुझे अपने आका को ख़ुश करने के लिये तुम्हारे लहू से अपना अस्तित्व तर करना होगा।”

मैंने खूब संभलकर कहा। “जब तुमसे कोई बात छुपाई नहीं जा सकती तो तुम अपनी शक्ति से क्यों मालूम नहीं कर लेती। मैं तुम्हारी धमकियों में न आ सकूँगा। तुम्हें जो करना है कर लो।”
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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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“कुँवर राज ठाकुर!” मोहिनी ने तेज स्वर में कहा। “मुझे बताओ कल्पना कौन है ? अधिक समय नष्ट न करो।”

“मैंने कह दिया कि मुझे नहीं मालूम। लेकिन मोहिनी क्या तुम्हारी रहस्यमय शक्ति कल्पना का रहस्य मालूम करने में असफल हो गयी है ?” मैंने पहली बार मोहिनी से धड़ल्ले से बात की। “मेरी जान मोहिनी। अब तुम्हारी कोई भी धमकी कारगार नहीं होगी। सारी बात मेरी समझ में आ गयी है। मुझे तुम्हारी बेबसी पर पहली बार ख़ुशी हुई। तुम कल्पना को भी नहीं जान सकती। क्योंकि उसे हरि आनन्द से बड़ी शक्ति प्राप्त है।”

अब मेरे कुछ कहने का समय था। मैं समझ गया था कि मोहिनी मायूस होकर मुझसे कल्पना का राज जानने आयी है और मैं बिल्कुल सुरक्षित हूँ। लेकिन मोहिनी ने चलते-चलते अपने पंजों की चुभन से मेरा बुरा हाल कर दिया। स्पष्ट था कि मेरे पास कल्पना का कोई राज न था और उसने बराबर कोशिश की कि वह मुझे बेबस कर दे। परंतु वह अचानक ही चौंककर भयभीत सी हो उठी और एकदम फुदककर मेरे सिर से नीचे उतरकर अदृश्य हो गयी। मोहिनी के इस व्यवहार से मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जगदेव की हर बात दुरुस्त साबित हो रही थी। कोई रहस्यमय शक्ति निरन्तर मेरी सहयता कर रही थी। कोई ऐसी महान शक्ति जिसके आगे मोहिनी की शैतानी ताकतें भी पनाह माँग गयी थीं। बहरहाल मुझे यक़ीन हो गया था कि अब कुछ दिनों के लिये हरि आनन्द से भी मुझे छुटकारा मिल जाएगा। वह मेरे सामने आने से कतरा रहा था लेकिन इसका मतलब यह भी हरगिज नहीं था कि उसने मेरे प्रति इंतकाम की भावना ही अपने दिल से निकाल दी हो। यह संभव नहीं था कि वह जलील और जालिम व्यक्ति इतनी आसानी से अपने पुराने दुश्मन को भूल जाता। मोहिनी को उसी ने मेरे सिर पर भेजा था ताकि वह कल्पना का राज हासिल कर सके। उस घटना के कारण मैं अपने मकान की पिछली गली में सहमा खड़ा था और अपने होश-हवाश दुरुस्त कर रहा था। फिर मैं किसी कदर हौसले के साथ मकान की सामने वाली गली में आया और मकान के दरवाज़े पर पहुँचकर दोबारा रुक गया।

मुझे अंदर जाते हुए झिझक हो रही थी। पता नहीं मुझे इस हूलिए में देखकर उनका मेरे साथ क्या बर्ताव होगा। मैं चंद लम्हे दरवाज़े पर उलझा सा खड़ा रहा। फिर मैंने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी। मेरी बहन आशा ने दरवाज़े की आड़ से मेरा चेहरा देखकर तेजी से दरवाज़ा बंद कर दिया। निश्चय ही वह मुझे नहीं पहचानती थी।
“ठहरो!” अंदर से सहमी हुई आवाज़ आयी।

मेरे भीतर के गैरतमंद इंसान ने कहा। वापस चले जाओ। परंतु अभी मैं इसी कशमकश में था कि एक हाथ दरवाज़े से बाहर निकला जिसमें मेरे लिये भिक्षा थी। रोटी। रोटी, जो इंसान का सबसे बड़ा जहन्नुम है। मैंने रोटी ले ली और वापस होना चाहा लेकिन घर के भीतर की जानी पहचानी आवाज़ें सुनकर कदम थम गए। आशा चली गयी थी। मैंने दोबारा दस्तक दी। इस बार माला ने दरवाज़ा खोला और मुझ पर एक उचटती सी नज़र डाली और फिर बोली।
“अब क्या चाहिए ?”

“माला, क्या तुमने भी नहीं पहचाना ? मैं हूँ राज।”

“आप।!”

दरवाज़ा पूरा खुल गया और माला एकदम सामने आ गयी।

“हाँ मैं! मैं वापस आ गया हूँ।” मैंने टूटे स्वर में कहा।

माला ने आश्चर्यचकित दृष्टि से मुझे देखा। फिर फट से दरवाज़ा खोल दिया और ड्योढ़ी में वह बेतहाशा मेरे सीने से चिपक गयी। आँसुओं की झड़ी लग गयी। मैं उसे संभालता हुआ अंदर ले गया। वहाँ दोनों बहनें थीं। उन्होंने आश्चर्य से देखा कि कौन पागल माला के कंधे पर हाथ रखे घर में घुसा चला आया है। मैंने उनका आश्चर्य दूर करने के लिये सबसे पहले आशा को गले लगाया। उन्हें मुझे पहचाने में देर नहीं लगी और फिर सारे घर में हलचल मच गयी। उन्होंने मुझसे तरह-तरह के प्रश्न करने शुरू कर दिए। मैंने उन्हें बताया कि मैं एक मुसीबत में गिरफ़्तार हो गया था और यह एक लम्बी कहानी है, फिर कभी सुन लेना। मेरे होंठ कंपकंपा रहे थे। शक्तियाँ जवाब दे गयी थीं। सिर्फ़ आँसू बह रहे थे। वह सब मुझसे लिपटे हुए थे और मैं उन्हें दिलासा दे रहा था। अब मैं आ गया हूँ। बुरे दिन गुज़र गए। मेरी परीक्षा का समय बीत चुका।

फिर चाचा भी आ गये। दिन भर मैं उन लोगों से घिरा रहा और उन्हें अपनी दुख भरी कहानी सुनाता रहा। दिन में उन्होंने तरह-तरह के पकवान बनाए। आशा ने कोई दस बार मेरे सामने हाथ जोड़े कि उसने मुझे कोई भिक्षुक समझकर रोटी दिए थे। रात आयी और आख़िर एकांत मिला तो मैंने माला के रूप-रंग का सरापा अपनी आगोश में पूरी शक्ति से समेट लिया। मेरे दिल में उस समय उसके प्रति बेहद प्यार उमड़ आया था और मैंने अपने जेल के बर्ताव की क्षमा माँगी। सारी रात हम दोनों जागते रहे। हम दोनों एक दूसरे से गिले-शिकवे करते रहे।

मैंने अपनी पूरी विपदा सुनाने के बाद उसे हरि आनन्द के सिलसिले में बताया और यह भी कि किस तरह उसने मोहिनी को प्राप्त करके मुझसे इंतकाम लेना चाहा। मैंने साधु जगदेव और कल्पना के संबंध में भी बताया।

“हरि आनन्द अब भी मेरी फिराक में है। माला मेरी ज़िंदगी अब भी ख़तरे से घिरी है और मेरी समझ में नहीं आता कि मैं किस तरह उससे छुटकारा हासिल करूँ।”
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Re: Fantasy मोहिनी

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“राज, हरि आनन्द एक कमीना और जालिम इंसान है। उसके पास जो शक्तियाँ हैं उससे निपटना आसान काम नहीं। परंतु तुम हिम्मत मत हारो। इंसान पर मुसीबतें तो आती ही रहती हैं।”

“फिर भी मुझे कुछ तो करना होगा।”

“मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूँ। तुम्हें कुलवन्त याद है ?”

“कुलवन्त!”

कुलवन्त का नाम सुनते ही मुझे एक झटका सा लगा। आख़िर मैं किस तरह उसे भूला बैठा। पूना के क्लबों की शान। अमीरों की महफ़िल की शमां कुलवन्त। जिसने मुझे बेपनाह मोहब्बत की थी। जिसने मेरे लिये घर-बार छोड़ा और फिर वही कुलवन्त...।

आह! कुलवन्त का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगा। कुलवन्त ने संसार की मोह-माया से छुटकारा प्राप्त पर लिया था। वह जोगन बन गयी थी। उसने बाबा प्रेमलाल का स्थान प्राप्त कर लिया था और माला जैसी सुन्दर लड़की को मेरी झोली में डाल दिया था।

“ओह माला! मैं इस पूरे समय में उसे भूल ही गया था।”

“यह इंसान की एक फितरत है। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं।”

“लेकिन तुम कुलवन्त के बारे में क्या कहना चाहती हो ?”

“कुलवन्त मैसूर की पहाड़ियों में तप कर रही है और उसे बाबा का स्थान प्राप्त है। देवी-देवताओं का आशीर्वाद उसके साथ है। कुलवन्त इन शैतानी शक्तियों से आपको छुटकारा दिला सकती है। आप एक बार उससे मिलिए।”

माला का बताया उपाय मेरे मस्तिष्क में जम कर रह गया और मैंने तय किया कि मैं कुलवन्त की तलाश में एक बार फिर मैसूर की उन्हीं पहाड़ियों तक जाऊँगा।

आठ रोज़ तक मैंने साधु जगदेव का मण्डल से निकलने का इन्तजार किया। परंतु जगदेव मण्डल से न निकला तो आवश्यक तैयारियाँ करके मैं मैसूर के लिये रवाना हो गया। एक बार फिर आँसुओं से माला के साथ मेरी जुदाई के लिये अलविदा कहा। फिर मैं मैसूर की पहाड़ियों के लिये चल पड़ा। मेरे लिये वह रास्ते जाने-पहचाने थे। मैं आठ रोज़ तक उन पहाड़ियों में भटकता, अनगिनत मुसीबतें सहन करता आख़िर बाबा प्रेमलाल के स्थान तक पहुँच ही गया।

झरने के पास मुझे किसी के गुनगुनाने की आवाज़ सुनाई दी। मेरी आशा बँधी और मैं झरने की तरफ़ बढ़ता चला गया। परंतु जब मैं उस लड़की के निकट पहुँचा तो मुझे देखकर हैरत हुई । वह लड़की तरन्नुम थी। अपनी आप बीती सुनाते वक्त मुझे बहुत सी बात छोड़नी पड़ी। क्योंकि मेरी आप बीती संघर्ष और मुसीबतों का एक लम्बा सिलसिला है। जब तरन्नुम को देखा तो बीती बातों का ख़्याल आया। लखनऊ में यह लड़की मुझे मिली थी। मुसीबतों में घिरी, भोली-भाली मासूम लड़की। अशर्फी बेगम याद आयी। जिसके बाला खाने पर तरन्नुम के हुस्न की चकाचौंध थी और लखनऊ के उमरा नवाबेन उसकी नथ उतराई के लिये बोलियाँ लगा रहे थे। मोहिनी ने मुझे बताया की तरन्नुम कौन थी। मेरे स्वर्गीय पिता के एक जिगरी दोस्त थे दौलत अली ख़ान। मुझे उनकी धुँधली सी याद आती थी और अहसास होता था कि तरन्नुम के साथ मैं बचपन में खेला करता था। तरन्नुम दौलत अली ख़ान की इकलौती लड़की थी। बचपन में वह मुझे राखी बाँधा करती थी। यह वही तरन्नुम थी जिसकी बोलियाँ एक कोठे पर लग रही थी।

तरन्नुम अशर्फी बेगम के कोठे तक कैसे पहुँची, यह एक लम्बी कहानी थी। सारांश यह था कि दौलत अली ख़ान अपनी ढलती उम्र में अशर्फी बेगम के इश्क़ में गिरफ़्तार हो गए थे। उनकी पत्नी का इंतकाल हो गया था। फिर अशर्फी बेगम ने दौलत अली ख़ान को ज़हर देकर मार डाला और तरन्नुम को हथिया लिया। हालाँकि तरन्नुम को अशर्फी बेगम ने अपनी लड़की की तरह पाला था। परंतु यह सब उसने तरन्नुम की जवानी से लाखों रुपया लूटने के लिये किया था। मोहिनी ने इतनी बातें मुझे बताई थी और फिर मेरे जमीर ने अपनी इस धर्म बहन को शैतानों के चंगुल से निकालने के लिये ललकारा। मैंने तरन्नुम को नहीं बताया कि मैं कौन हूँ। उस समय जब मैंने यह फ़ैसला किया तो नवाब बब्बन अली तरन्नुम की नथ उतराई की क़ीमत देकर अपनी हवेली में ले जा चुका था। बस मैंने नवाब को छाप डाला। मेरे लिये यह कोई मुश्किल काम नहीं था। मोहिनी मेरे साथ थी। तरन्नुम को मैंने हवेली से निकाल लिया। इस पर नवाब बब्बन अली मेरा जानी दुश्मन बन बैठा। अशर्फी बेगम भी मेरी दुश्मन बन गयी और उन्होंने तरन्नुम को फिर से पाने के लिये जेहाद छेड़ दिया। मुझ पर कातिलाना हमले हुए। परंतु जिसके पास मोहिनी हो भला उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है। और फिर एक दिन तरन्नुम अचानक लखनऊ से ग़ायब हो गयी।

वही तरन्नुम अब मेरे सामने थी। वह ठगी-ठगी सी मुझे देख रही थी।

“आप, कुँवर साहब यहाँ ?”

“यह पहाड़ियाँ मेरे लिये नई नहीं है तरन्नुम। मगर तुम यहाँ क्या कर रही हो ? लखनऊ से अचानक तुम कहाँ ग़ायब हो गयी थी ?”
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Re: Fantasy मोहिनी

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“मैं यहाँ एक देवी की पनाह में हूँ। उसके क़दमों की धूल बनकर अपनी ज़िंदगी बिता रही हूँ। यह देवी मेरे ख्वाबों में आया करती थी। तब जब आपने मुझपर रहम खाकर उन शैतानों के चंगुल से निकाला था। वह मेरे गमों की साथी बन गयी। मुझे रास्ता दिखाया करती। फिर मेरी चाह हुई कि इस देवी के पास चली जाऊँ जहाँ मुझे सुकून मिलेगा और एक दिन जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने-आप को यहाँ पाया और तब से यहीं हूँ। अब यहाँ से वापस लौटने का दिल नहीं चाहता। दुनिया के हर खूबसूरत रंग बेकार, बेमानी लगते हैं।”

“क्या तुम मुझे अपनी उस देवी के दर्शन करवाओगी ?”

“हाँ, आइए! वह यहीं एक कुटी में रहती हैं।”

उसके बाद तरन्नुम मुझे जिस देवी के दर्शन कराने ले गयी वह कुलवन्त ही थी। जोगन कुलवन्त जिसका चेहरा अब कुन्दन की तरह तप गया था। जिसकी आँखों से एक बेताबी सी थी। मुझे देखकर कुलवन्त मुस्कुराई।

“आइए कुँवर साहब! बड़े दिनों में रास्ता भूले।”

मैं बहुत शर्मिंदा था। तरन्नुम को यह देखकर बड़ी हैरत हुई कि मैं उस देवी को जानता हूँ। हमें इस तरह बातें करते देख वह पूछ बैठी।

“कुँवर साहब! क्या आप इन्हें जानते हैं ?”

“शायद तुम भूल गयी तरन्नुम। मैंने तुमसे कहा था कि मैं यहाँ पहली बार नहीं आया हूँ।”

तरन्नुम ने फिर कुछ नहीं पूछा। मैं कुलवन्त से क्षमा-याचना करने लगा। हम दोनों एक-दूसरे के सामने आलथी-पालथी मारे बैठे बातें करने लगे। पुरानी बातें, नई बातें। जबकि तरन्नुम अपनी देवी की आज्ञा पाकर मेरे लिये खाने-पीने की व्यवस्था में लग गयी। कुलवन्त की कुटी में मेरा स्वागत एक विशिष्ट मेहमान की तरह हुआ। मैं बेहद थका-हारा था। फिर भी कुलवन्त को पाकर मेरी सारी थकान दूर हो गयी थी और गयी रात तक मैं उससे बातें करता रहा। फिर कुटी में दिन बीतने लगे।

एक दिन मैंने कुलवन्त को अपने आगमन का कारण बताया। मैंने अभी बात शुरू भी न की थी कि वह बोली।

“तुम्हें कुछ बताने की ज़रूरत नहीं राज। मैं सब जानती हूँ। तुम भले ही मुझे भूल गए हो। परंतु मेरी आँख बराबर तुम्हें और माला को देखती थी। तुम यहाँ न आते तो भी तुम्हारी रक्षा करना मेरा कर्तव्य बन जाता। लेकिन अब अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। हरि आनन्द का समय आ गया है।”

अब कुलवन्त को कुछ बताना बेकार था। कुलवन्त को देख-देखकर एक जोश सा मेरे मन में उठता था। मेरे हवास पर एक तूफ़ान सा डोलने लगता था। वह पहले से भी अधिक सुन्दर हो चुकी थी और मेरी बाहें उसे अपनी आगोश में लेने के लिये मचल उठतीं। परंतु तरन्नुम की उपस्थिति मेरे हवास को फिर से क़ाबू में ले आती। उस समय तरन्नुम वहाँ न थी। उसकी अनुपस्थिति में ही हम यह बातें कर सकते थे।

“कुलवन्त, शायद तुम यह महसूस न करो। परंतु सच तो यह है कि जब से मोहिनी गयी मैं मानसिक रूप से बीमार हो गया हूँ। मोहिनी मेरी ज़रूरत बन गयी थी। अब मैं स्वयं को बेबस महसूस करता हूँ। क्या तुम मेरे लिये एक काम नहीं कर सकती ? मोहिनी को वापस ला दो। अगर तुम कोई ऐसा जाप शुरू करो तो चालीस दिन के अंदर-अंदर मोहिनी को प्राप्त कर सकती हो और तुम्हारे लिये यह कोई कठिन कार्य नहीं।”

“मोहिनी से बहुत प्यार है तुम्हें। मगर मोहिनी तो बड़ी हरजाई है। एक ख्याली तस्वीर। कभी छिपकली तो कभी सुन्दर शोख चंचल लड़की। नन्हीं-मुन्नी, हसीन-ओ-जमिल। बस उसकी यह कमज़ोरी है कि जो उसे प्राप्त कर लेता है उसकी ग़ुलाम हो जाती है। मगर राज, मैं मोहिनी का जाप नहीं कर सकती! इसलिए कि मेरी दृष्टि अगर एक बिंदु पर स्थिर हो जाए तो बड़ा अनिष्ट हो सकता है।” कुलवन्त ने उलझे स्वर में कहा।

“तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। मेरा विचार है कि तुम आज ही उसे प्राप्त करने का जाप शुरू कर सकती हो और इस तरह हरि आनन्द का घमंड तोड़ सकती हो।”

“इस समय यह संभव नहीं है कि मोहिनी तुम्हें मिल जाए। मैं तुमसे निवेदन करती हूँ कि समय से पहले किसी की ज़िद न करो।”

मैं कुलवन्त के स्वर से सहम सा गया और ख़ामोश हो गया। फिर कुछ देर बाद मैंने स्वयं सन्नाटा तोड़ा।

“मोहिनी की उपस्थिति से ढाँढस बँधी रहती थी। अब मैं स्वयं को खाली-खाली महसूस करता हूँ। यह मोहिनी की ही कृपा थी कि उसने मुझे तुमसे मिलवाया था। याद है तुम्हें ?”

“मुझे सब कुछ याद है राज। ऐसी बातें भूल कौन सकता है ?” कुलवन्त भावनात्मक स्वर में बोली। “मगर यह बातें एक खूबसूरत सपने के सिवा कुछ नहीं थीं। तुम भी वह बातें भूल जाओ। मैंने अपनी एक और दुनिया बना ली है। दुनिया से मेरा रिश्ता सिर्फ़ इतना है कि तुम इस दुनिया में रहते हो, तुमने माला रानी को जीवन संगिनी बनाया, बस।”

बीती बातों का ज़िक्र चल निकला। वातावरण बोझिल सा हो गया। कुलवन्त शायद अतीत में खो गयी थी। किंतु तुरंत ही उसने स्वयं पर क़ाबू पा लिया और कहने लगी।

“मोहिनी किसी न किसी रूप में तुम्हारे पास आ जाएगी।” कुलवन्त ने मुझे विश्वास दिलाया था। इसका मतलब यह था कि वह इस सिलसिले में कोई न कोई ठोस कदम उठाएगी। फिर मैंने कल्पना का ज़िक्र छेड़ दिया तो कुलवन्त बोली।
“तुम उसे अपनी मोहिनी का दूसरा रूप समझो।”

“महान शक्तियों ने उसे तुम्हारी सहायता के लिये दिया है। जब तुम्हारे दुख के दिन मिट जाएँगे, तो कल्पना का काम भी समाप्त हो जाएगा।”

“परंतु कुलवन्त, यह समय कब आएगा जब मुझे हरि आनन्द के कोप से मुक्ति मिलेगी। अब मैं थक चुका हूँ।” मैं किसी न किसी प्रकार हरि आनन्द का ज़िक्र बार-बार बीच में ले आता।

“राज, काली की भक्ति ने उसे घमंडी बना दिया है। परंतु एक न एक दिन उसे पछताना पड़ेगा। हालात अवश्य बदलेंगे। तुम समझते हो कि इतनी जल्दी पलक झपकते ही यह तमाशा खत्म हो सकता है। अगर ऐसा संभव होता तो क्या कुलवन्त तुम्हारी सहायता से इनकार करती ?”

“आजकल वह कहाँ है ?” मैंने जानकारी चाही। “कल्पना से आमना-सामना होने के बाद वह मुझे नज़र नहीं आया।”

“वह हर समय कल्पना का रहस्य जानने के लिये व्याकुल है। इसलिए उसने मोहिनी को तुम्हारे सिर पर भेजा था। परंतु उसे मायूसी हुई।”

“तो इसका मतलब यह हुआ कि हरि आनन्द कल्पना की शक्तियों के सामने कोई हैसियत नहीं रखता ?”

“नहीं, तुम ग़लत समझ रहे हो। रहस्यमय शक्तियाँ एक-दूसरे के साथ उलझने से परहेज करती हैं। जब तक कि उन्हें देवताओं की आज्ञा प्राप्त न हो। कल्पना ने अपने संबंध में इतनी सावधानी कर ली थी कि उसकी हैसियत हरि आनन्द के नज़रों से अदृश्य रहे। इसलिए हरि आनन्द और मोहिनी दोनों ही उससे अनभिज्ञ हैं।”

“कहीं कल्पना और जगदेव महाराज एक ही शरीर के दो रूप तो नहीं हैं ?” मैंने संदेह मिटाना चाहा।

कुलवन्त ने टालते हुए कहा। “मैं इतनी सारी बातें तुम्हें नहीं बता सकती। समय आने दो।”

“सिर्फ़ एक बात और। क्या कल्पना मुझे दोबारा मिल सकेगी ?”

“हाँ, अगर भगवान न चाहे तुम पर कोई विपत्ति आन पड़ी तो वह ज़रूर तुम्हारी सहायता करेगी।”

“कुलवन्त, क्या यह संभव नहीं कि मैं स्वयं भी किसी तपस्या के बिना कल्पना से मिल लिया करूँ ?”

“क्यों ?” कुलवन्त ने तेजी से पूछा।

“यूं ही!” मैंने शरारत से कहा। “वह बहुत सुन्दर है। उसे देखने और बातें करने को दिल चाहता है।”

“तुम्हारा मन अभी तक सुन्दर नारियों से नहीं भरा।”

मैंने एक ऐसी बात कह दी थी कि कुलवन्त अपने तमाम जोग तपस्या और त्याग के बावजूद हँस पड़ी।

“कभी-कभी अच्छी चीज़ें देखने और अच्छी औरतों से मिलने को जी चाहता है।”
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