Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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‘समीर ने कितना किया है?’ मीनाक्षी के मन में यह सवाल उठा, ‘कम या ज्यादा? शरीर देख कर तो लगता है कि साहब ने अपनी माँ का दूध खूब पिया है! और अब अपनी बीवी का भी!’

“आपसे एक बात पूछूँ?”

“एक नहीं, सौ बात पूछो!”

“आपने मम्मी का दूध कब तक पिया है?”

“उम्म्म, यही कोई छः सात साल तक!”

“अरे वाह। मम्मी आपको बहुत प्यार करती हैं इसका मतलब।”

“हाँ! बहुत प्यार करती हैं! मैं भी उनको बहुत प्यार करता हूँ। वो अभी भी मेरा बचपन याद कर के बताती हैं कि मैं उनके दूध को कभी छोड़ना ही नहीं चाहता था। उनका दूध पीना मुझे सबसे ज्यादा सुख देता था। पर अफ़सोस, उम्र बढ़ी और मैं मम्मी के दूध से वंचित हो गया। हर औरत के स्तन माँ के प्रेम की याद दिलाते तो हैं, लेकिन हर औरत प्रेममयी हो, ये ज़रूरी नहीं।”

समीर ने देखा की मीनाक्षी बहुत इंटरेस्ट ले कर उसकी बात सुन रही थी। वो मुस्कुराया और फिर बोला,

“लेकिन इनमें (उसने बारी बारी से मीनाक्षी के दोनों चूचक चूमे) से मेरे लिए प्रेम की मीठी धारा बहती है।”

मीनाक्षी मुस्कुरा दी। उसका ध्यान समीर के लिंग पर गया - सम्भोग के बाद वो विकराल अंग अब मात्र दो-ढाई इंच जितना ही रह गया था। सिकुड़ा हुआ, कोमल, निर्जीव! जैसे सो गया हो! अलका कहती है कि इसे मुँह में लेकर चूसने में बहुत मज़ा आता है! और यह कि उसके पति को इस काम में बहुत मज़ा आता है। कभी कभी अलका तो चूस चूस कर उसका वीर्य भी पी लेती है!

“छीः! गन्दी” ख्यालों में डूबी मीनाक्षी के मुँह से निकल गया।

“हम्म?” उसके स्तनों को पीने में मगन समीर उसकी आवाज़ सुन कर चौंक गया।

“कुछ नहीं” तन्द्रा में डूबी मीनाक्षी धरातल पर वापस आई, “वो… वो मैं कह रही थी कि आप पी लीजिए!”

“पी ही तो रहा हूँ!”

“ओहो! आहहह! आप ऐसे चूस चूस कर इनका दम निकाल देंगे!”

“अरे दम कहाँ निकला - ये देखो? तुम्हारी चेरियाँ कैसी कड़क हो गई हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ में कहा।

“अब बस जानू! दर्द होने लगता है!”

“ओह! ठीक है!” कह कर समीर उसके स्तन से अलग हो गया।

मीनाक्षी को लगा कि समीर का मन बुझ गया। उसको मनाने के अंदाज़ में उसने कहा, “मेरी आदत नहीं है न! और आप पीते भी इतने जोश में हैं! अच्छा ठीक है, इनको मुँह में ले कर दुलारते रहिए… फिर कुछ देर बाद पी लीजिएगा! मैं कहीं भागी थोड़े न जा रही हूँ! है न?”

“हम्म्म” कह कर समीर फिर से उसको अपनी बाहों में भरने की कोशिश करने लगा।

“ओहो! समीर… छोड़िए ना… अभी मन नहीं भरा क्या?”

“तुम्हारे जैसी खूबसूरत बीवी हो तो किसी का मन भरेगा क्या? ये देखो!” कह कर समीर ने उसका हाथ अपने लिंग पर रख दिया। जो लिंग अभी बस कुछ क्षणों पहले मुरझाया हुआ था, न जाने कब वापस अपने विकराल रूप में आ गया था। मीनाक्षी को बहुत आश्चर्य हुआ।

“मिनी, तुम बहुत सुन्दर हो! प्लीज, मुझे अपने से दूर मत करो!” कह कर उसने एक साथ कई चुम्बन मीनाक्षी के चेहरे पर जड़ दिए।

मीनाक्षी भी कहाँ उसको मना करने वाली थी? लेकिन मिलन की रात में थोड़ा ठुनकना तो बनता है न? लड़की थोड़ी शोख़ी न दिखाए, चंचलता न दिखाए, मान मनुहार न करवाए, तो क्या मज़ा? उसके कुछ कहने से पहले ही समीर उससे गुत्थम-गुत्था हो गया। वो पेट के बल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी। और समीर उसके ऊपर आ कर चढ़ बैठा। पहली बार मीनाक्षी को अपने मुकाबले समीर के शरीर के आकार का अनुमान हुआ - समीर वाकई बड़े कद काठी का नौजवान था। पूरा मर्द!

उसने पीछे से ही मीनाक्षी के स्तनों को पकड़ लिया, और उसकी पीठ, गर्दन, कानों पर चुम्बन देने लगा। उसके नितम्बो के बीच में समीर का कड़क लिंग चुभने लगा। थोड़ी ही देर पहले जो कुछ हुआ था, उसके फिर से होने की सोच कर मीनाक्षी की देह काँप गई। बीच बीच में समीर कभी उसके कान, तो कभी गाल, तो कभी गर्दन तो कभी पीठ को चूमता। बीच बीच में वो उसके स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर दबाता और मसलता, तो उसकी साँसे फूल जातीं।

कुछ देर के बाद समीर ने कहा, “तुमको मालूम है?”

“क्या?” मीनाक्षी ने हाँफते हुए पूछा।

“तुम्हारी दाहिने चूतड़ पर एक प्यारा सा तिल है! यहाँ।” कह कर उसने जहाँ तिल था, वहाँ अपनी तर्जनी से छुआ।

“धत्त बत्तमीज़!”

“अरे क्यूँ?”

“कैसे कैसे गन्दा गन्दा बोलते हो आप!”

“अरे! गन्दा क्या है? चूतड़ ही तो हैं - सुन्दर, गोल गोल!” उसके मीनाक्षी ने नितम्बों को सहलाते हुए कहा, “और उनके बीच में ये तुम्हारी प्यारी सी चूत!” उसने उसकी योनि पर हाथ फिराया, “और ये, वाह वाह… क्या बढ़िया सी गाँड़!” उसने मीनाक्षी के नितम्बों को फ़ैलाते हुए उसकी गुदा को अनावृत कर दिया।

मीनाक्षी चिहुँक गई। उसने अपनी पुट्ठे की पेशियाँ सिकोड़ लीं, और पलट गई।
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मीनाक्षी चिहुँक गई। उसने अपनी पुट्ठे की पेशियाँ सिकोड़ लीं, और पलट गई।

“धत्त! थप्पड़ पड़ेगा!” एक स्वतः प्रेरणा से मीनाक्षी ने समीर की हरकतों का विरोध किया। लेकिन ऐसा करते ही उसको अपनी गलती का एहसास हो गया। आज की रात तो वर्जनाएँ तोड़ने की है, परदे गिराने की है! आज से तो समीर का उस पर पूरा अधिकार है!

“सॉरी जानू! मेरा वो मतलब नहीं था!” उसने कहा। लेकिन समीर ने बुरा माना ही नहीं।

“थप्पड़ मार लेना, लेकिन एक बार चूमने दो न”

“जानू, गन्दा है वो” मीनाक्षी ने मिन्नत करी।

“होगा गन्दा। लेकिन मैं तुम्हारे हर अंग को चूमना चाहता हूँ। हर अंग पर अपने प्यार की मुहर लगाना चाहता हूँ।”

मीनाक्षी ने अविश्वास से समीर को देखा और फिर वापस सीने के बल लेट गई।

‘मेरे कहने से ये थोड़े न मानेंगे’

“जो करना है कीजिए। लेकिन उसके बाद मुँह धो लीजिएगा! नहीं तो लिप्स पे नो किस्सी!”

समीर ने वापस उसके दोनों नितम्बों को फैला कर उसकी गुदा फिर से अनावृत करी और उसकी बनावट का जायज़ा लेने लगा। वह ऐसा कोई आकर्षक अंग तो खैर नहीं था, लेकिन मीनाक्षी का था, इसलिए उसको आकर्षक लगा।

“ज़रा अपने चूतड़ तो उठाओ मेरी जान! तभी तो चूमूँगा!”

न चाहते हुए भी मीनाक्षी ने अपने नितम्ब बिस्तर से ऊपर उठा दिए। और अगले ही पल उसने समीर की साँस और उसका चुम्बन अपने ‘वहाँ’ महसूस किया। उस एहसास से उसकी आँखें बंद हो गईं।

“मुँह धो कर आता हूँ! ऐसे ही रहना!” कह कर समीर बिस्तर से उठा। उसने जाते हुए देखा कि समीर का लिंग ज़मीन के समतल से कोई साठ अंश का कोण बनाए तना हुआ था, और चलने के कारण झूल रहा था।

‘बाप रे’


समीर कुछ देर बाद वापस आया। उसके लिंग में उत्तेजना थोड़ी कम हो गई थी। बिस्तर पर बैठ कर उसने कहा,

“अब मन करे, तो थप्पड़ मार लो।”

“मैं आपको थप्पड़ मारूँगी क्या भला!”

“नहीं… बोला था, तो करना पड़ेगा। चलो, लगाओ थप्पड़ मुझे! चलो...”

समीर की ज़िद पर मीनाक्षी ने बारी बारी से उसके दोनों गालों को प्यार से सहला दिया। समीर को हँसी आ गई,

“ये तुम्हारा थप्पड़ है?! इसकी धौंस मिल रही थी मुझे?” कहते हुए वो मीनाक्षी के सामने अपने घुटनों के बल खड़ा हुआ।

“मिनी, मुँह खोलो!” उसने कहा।

मीनाक्षी समझ गई कि समीर क्या चाहता है। जब समीर ने उसकी योनि को प्यार किया था, तो उसको बहुत आनंद आया था। उसने मुँह खोला। समीर ने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे किया और चमकता हुआ शिश्नमुंड मीनाक्षी के मुँह में डाल दिया। समीर ने मीनाक्षी की जीभ अपने शिश्नमुण्ड पर फिरती महसूस करी। उसको यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। जीभ फिराने के साथ साथ, वो लिंग को चूस भी लेती। उत्तेजना-वश समीर के शरीर में कंपकंपी दौड़ गई। कुछ देर के चूषण के बाद उसने महसूस किया कि उसका वीर्य निकलने को हो गया।

“बस बस! अब छोड़ दो।”

मीनाक्षी ने सवालिया दृष्टि से समीर को देखा।

उसने कहा, “मेरी जान, अब छोड़ दो। नहीं तो मेरा वीर्य निकल जाएगा तुम्हारे मुँह में ही।”

तब जा कर मीनाक्षी को समझ आया और उसके चूसना बंद किया और अलग हो कर गहरी साँस भरने लगी। ऐसे बड़े, फूलते हुए अंग को मुँह में रखना आसान बात नहीं है।

समीर ने उसको वापस पेट के बल लिटाया और उसकी पीठ पर चुम्बन जड़ने लगा। कुछ देर में मीनाक्षी वापस उत्तेजना के सागर में हिचकोले खाने लगी। वो आनंद से जैसे मरी जा रही थी, जब समीर के हाथ उसके नंगे पुट्ठों को छू रहे थे। उसको आनंद में आते देख समीर ने अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार के और अंदर डाला। मीनाक्षी से रहा नहीं गया और उसने भी अपने हाथ पीछे किए और समीर को नितम्ब से पकड़ कर अपनी तरफ दबाने लगी। समीर इस समय मीनाक्षी के एकदम नज़दीक था और उसने अपना हाथ उसके कूल्हों से हटाया, और अपना लिंग वहाँ स्थापित कर दिया। मीनाक्षी के दबाव से उसका लिंग मीनाक्षी के नितम्ब में दब गया था। और जब मीनाक्षी को इस बात का एहसास हुआ तो वो धीरे धीरे अपने नितम्ब चलाने लगी।

समीर ने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी दरार की पूरी लम्बाई में चलाया। अलका ने एक बार उसको कहा था कि मीनाक्षी का पिछवाड़ा बढ़िया गोल मटोल है, और समीर उसको नंगा देख कर मतवाला हो जाएगा।

‘बच के रहना, प्यारी बहना! नहीं तो वो तुम्हारी गाँड भी मार लेगा! हा हा।’ उसने मीनाक्षी को छेड़ा था।

वो ख़याल आते ही मीनाक्षी सकते में आ गई - बाप रे, ये मूसल तो उसकी योनि में ठीक से तो जाता नहीं, और कहीं इन्होने उसको ‘उधर’ घुसाने की कोशिश करी तो वो मर ही जाएगी। यह सोच कर मीनाक्षी काँप उठी।

“आहहहह, आप क्या कर रहे हैं?” मीनाक्षी आह भरती हुई बोली। ठीक उसी समय समीर की उंगलियों ने उसके फिर से गीली हो चली योनिद्वार को छुआ।

“देखो… तुम्हारी आमरस की प्याली से फिर से रस निकल रहा है।” समीर ने अपनी उंगलियों को ऊपर की तरफ ले जाते हुये कहा।

‘नहीं नहीं… ऐसा कैसे? इतनी जल्दी?’

“जानेमन! मैंने कहा था न कि हम दोनों की सेक्सुअल कम्पैटिबिलिटी अमेजिंग है?” कहते हुए उसने लिंग को फिर से मीनाक्षी की योनि में घुसा दिया।

“इईईईईईईईईई”

“क्या हुआ?”

“ओहहहह”

“कैसा लग रहा है?”

“ओह… आ… आप..... ओह… थकते …. ओह…. न…. ओह…. नहीं?”

मीनाक्षी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी। समीर ने पूरी गति से धक्के लगाने शुरू किए थे; उसके हर प्रहार पर मीनाक्षी की योनि कामरस छोड़ रही थी। उसका शरीर थरथरा रहा था।

“आज तो मैं तुमको पूरी रात भर चोदूँगा मेरी जान!”

जैसा दर्द उसको पहली बार हुआ था, वैसा इस बार नहीं हुआ। इस बार के सम्भोग में वाकई आनंद आ रहा था। वो खुद भी जैसा उससे हो पा रहा था, अपने नितम्ब हिलाते हुए समीर का साथ दे रही थी, और सम्भोग का पूरा-पूरा आनंद उठा रही थी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं,

“ओह्ह्ह... आहिस्ता ... आह.. अम्मा.. मर गई मैं.... धीरे जानू...!”

समीर उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए ज़ोरदार धक्के मारता जा रहा था। कोई दस मिनट तक चले इस खेल के अंत में मीनाक्षी को फिर से रति-निष्पत्ति हो गई, और उसके थोड़ी ही देर बाद समीर ने भी फिर से मीनाक्षी की कोख में अपना वीर्य छोड़ दिया।

कुछ देर तक दोनों ही खामोश पड़े रहे। मीनाक्षी नीचे, समीर उसके ऊपर। फिर वो वो मीनाक्षी को आलिंगनबद्ध कर के उसकी बगल में लेट गया। उसके हाथ फिर से मीनाक्षी के नितम्बों से खेल रहे थे। उधर मीनाक्षी बिलकुल बेजान हुई अपने नग्न शरीर पर अपने पति के स्पर्श का आनंद ले रही थी। समीर की उँगलियाँ उसकी योनि को छेड़ती रहीं। मीनाक्षी अब चाहती ही थी कि जब भी वो और समीर साथ में हों, तो उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं हो। और यह कि उसका पति मन भरने तक उसके निर्वस्त्र शरीर से खेलता रहे।

“मेरी जान,” समीर ने कहा, “बिस्तर गीला हो रहा है!”

वो मुस्कुराई, “होने दीजिए! मेरे अंदर अब ताक़त नहीं है बाथरूम तक जाने की।”

“इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो!”

“इतनी बड़ी लड़की को कोई ऐसे सताता है?”

“तो कैसे सताता है?”

“कैसे भी नहीं!” कह कर वो समीर का सीना सहलाने लगी। काफी देर दोनों चुप रहे, फिर मीनाक्षी ने ही बोला, “आई लव यू।”

“आई लव यू, टू!”

इन तीन छोटे से शब्दों का अर्थ बहुत गहरा होता है। इनको सतही तौर पर भी बोला जा सकता है और बहुत गहरे भी जा कर बोला सकता है। दोनों ही स्थितियों में इन शब्दों का अर्थ अलग अलग निकलता है। मीनाक्षी सिर्फ भावनाओं से वशीभूत हो कर समीर को आई लव यू नहीं बोल रही थी। यह पिछले कई दिनों से जो वो समीर के लिए महसूस कर रही थी, ये उसकी भावनाओं की परिणति (culmination) थी। वो समीर को बताना चाहती थी कि वो अब सिर्फ उसकी थी - उसकी सहचरी, उसके सुख-दुःख की बराबर की हिस्सेदार, उसकी प्रेमिका, उसकी सखी, उसकी अर्धांगिनी! वो बताना चाहती थी कि वो समीर को वैसा प्रेम करती है, जैसा प्रेम उसने समीर के पहले न किसी पुरुष से किया, और न ही उसके अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से करेगी। वो उसको प्रेम करने के लिए कोई भी रूप ले सकती है। वो बताना चाहती थी कि अब वो दोनों एक हैं। उनके शरीर अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी आत्माएँ अब एक हैं। और समीर तो खैर उसको बहुत पहले से ही चाहता था। मीनाक्षी उसकी पत्नी तो तत्क्षण बन गई थी, लेकिन उसको अपनी प्रेमिका बनाने में उसने जो जतन किए हैं, वो निष्छल प्रेम के बिना नहीं हो सकता।
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समीर की तरफ करवट लिए मीनाक्षी ने उसको आलिंगनबद्ध कर रखा था। कुछ देर दोनों को कुछ नहीं बोले, फिर समीर के सर को स्नेह से सहलाते हुए मीनाक्षी ने गुनगुनाना शुरू किया,

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं… जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

समीर सुखद आश्चर्य वाले भाव लिए मीनाक्षी को देख रहा था। उसको मालूम नहीं था कि वो गाती भी है।

‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना, जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी....’

समीर को मालूम नहीं था कि वो गाती भी है, और इतना अच्छा गाती है। मीठी, सुरीली और जादुई आवाज़! उसके थके हुए शरीर पर मानों शीतल जल की बूँदें गिर रही थीं। मीनाक्षी ने ममता और स्नेह के साथ समीर को सहलाना और थपकियाँ देना शुरू कर दिया।

‘तेरे दुख अब मेरे, मेरे सुख अब तेरे, तेरे ये दो नैना, चाँद और सूरज मेरे’
ओ मेरे जीवन साथी....’

मीनाक्षी गाना नहीं गा रही थी, बल्कि समीर से अपनी भावनाओं का हाल बयान कर रही थी।

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं.... जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

“आप कितना अच्छा गाती हैं!” समीर में मंत्रमुग्ध हो कर कहा।

“पत्नी की खूबियाँ, उसके गुण, पति को धीरे धीरे मालूम पड़ने चाहिए! इससे पति की नज़र में उसके लिए प्रेम और रेस्पेक्ट बनी रहती है!”

समीर ने कुछ कहा नहीं, बस उसके होंठों को चूम लिया।

“टेक सम रेस्ट, जानू!” मीनाक्षी की आवाज़, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में समीर के लिए इस समय इतना प्रेम उमड़ रहा था कि उसके सागर उत्प्लवन करते करते समीर की आँख लग गई। अंततः उसको शांत पा कर मीनाक्षी मुस्कुराई, और उसकी जान में जान भी आई। समीर को सहलाते, चूमते हुए वो बहुत देर तक आज तक के अपने विवाहित जीवन का जायज़ा लेने लगी।

...........

क्या क्या सोचा था उसने अपनी शादी की रात को! क्या कुछ घट गया था उस दिन। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रभु अभी भी समीर जैसे लोग बनाते हैं! दी नाईट इन शाइनिंग आर्मर - हाँ, मीनाक्षी के लिए समीर बिकुल वैसा ही था। उससे उम्र के कितना छोटा है, लेकिन जिस प्रकार की गंभीरता, सामाजिकता, आदर, आत्मविश्वास उसके अंदर है, वैसा मीनाक्षी ने किसी अन्य पुरुष में नहीं देखा। जब कभी आदेश समीर को ‘जीजा जी’ कह कर बुलाता है, तो मीनाक्षी को कितना अच्छा लगता है, वो बता नहीं सकती। जब उसकी सहेलियाँ समीर को ‘जीजा जी’ कह कर बुलाती हैं, तो वो घमण्ड से फूली नहीं समाती। उसको समीर की पत्नी होने पर कितना घमण्ड होता है, वो बता नहीं सकती। समीर की तरह ही उसने भी आज की रात के लिए न जाने कैसे कैसे सपने सँजोये थे - लेकिन जो कुछ समीर ने उसके साथ किया, वो वैसा सोच भी नहीं सकती थी। कितना बल है उसमें, और कितना स्टैमिना! बाप रे! जोड़ जोड़ हिला दिया!

कोई घंटे भर आराम करने के बाद अलसाते हुए वो उठी और लंगड़ाते हुए बाथरूम की तरफ़ चली। इस समय उसको अपने हर अंग में मीठी मीठी चुभन महसूस हो रही थी, और उसका हर अंग किसी अनोखे उन्माद में डूबा था। बाथरूम के दर्पण में उसने अपने आप को देखा - उसके शरीर के हर हिस्से पर लाल और नीले निशान पड़ गए थे। उसके शरीर के हर हिस्से पर समीर के प्रेम की मोहर लगी हुई थी। उसकी आँखें नशीली सी लग रही थी। सच में, आज से मीनाक्षी समीर की दासी बन गई थी। आज उसका सब कुछ समीर का हो गया था, और इस बात पर उसको गर्व था।

बाथरूम में बाथटब था। उसने सोचा कि अगर गरम गरम पानी में वो लेट जाए, तो यह थकावट और सुरूर थोड़ा कम हो जाएगा। तो उसने वही किया। बाथटब में उसने थोड़ा अधिक गरम पानी भरा, और फिर उसमें बबल-बाथ डाल कर वो पानी की नरम नरम गर्माहट में लेट गई। पानी में लेटे हुए भी वो भूतकाल की बातों का विश्लेषण, और भविष्य की कोमल कल्पनाओं के बारे में सोचने लगी।

कितने ही लोगों को कहते सूना है कि शादी के बाद स्त्री, और पुरुष दोनों को समझौता करना पड़ता है। लेकिन उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। और अगर उसको समझौता करना भी हुआ, तो वो ख़ुशी ख़ुशी कर लेगी। समीर भगवान का दिया अनमोल उपहार है। उसके लिए वो कुछ भी सह लेगी।

उसकी ज्यादातर सहेलियाँ शादी के बाद हुए बदलावों का हवाला देती हैं अपनी इच्छाएँ न पूरी कर पाने के लिए -

‘अरे, घर-गृहस्थी के चक्कर में ये सब कहाँ हो पाएगा?’
‘मेरे हस्बैंड को ये सब पसंद नहीं है, इसलिए नहीं करती’
‘माँ जी कहती हैं की डांस करना फालतू काम है’
‘उनको मेरा नौकरी करना पसंद नहीं’

और उसके समीर ने उसको उड़ने के लिए पंख दे रखे हैं। वो हमेशा उसको अपने मन का करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है। लेखिका बनने की उसकी इच्छा समीर के कारण ही मूर्त रूप ले रही है। समीर ने उसको स्वतन्त्र छोड़ रखा है। और इस स्वतंत्रता में समीर उसको स्थायित्व देता है। वो उसका घर है। लौट कर उसको हमेशा समीर के पास ही आना है।

शादी से पहले जब वो माँ पापा को उसकी शादी के लिए चिंतित देखती थी, तो वो उनको उनसे कहती थी कि क्यों वो अकेली खुश नहीं रह सकती। नौकरी तो वो करती ही है। अच्छा कमा भी लेती है। उसका गुजारा हो जाएगा उतने से। वो किसी पुरुष के साथ की मोहताज नहीं। लेकिन अब समीर का साथ पा कर उसको लगता है कि अकेले जीने से कहीं बेहतर उसके साथ जीना है। वो उसको खुश रखता है। बहुत खुश! ‘और मम्मी डैडी की तो बिटिया हूँ मैं!’

उसने मन ही मन भगवान् को धन्यवाद किया, ‘हे प्रभु, आपके आशीर्वाद से ही सब कुछ हुआ है। अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखिए - बस यही विनती है। मेरे ह्रदय में प्रेम का, स्नेह का जो पौधा आपने लगाया है, उसको फल-दार वृक्ष बना कर अपनी कृपा का प्रसाद मुझे दीजिए!’

फ़ल से उसको अगला विचार आया, ‘अब जब हम दोनों का मिलन हो गया है, तो जल्दी ही हम दोनों भी मम्मी-पापा बन जाएँगे! समीर से इस बारे में बात करनी होगी कि वो बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं। अगर वो अभी रेडी नहीं हैं, तो कॉन्ट्रासेप्टिव्स के बारे में डॉक्टर्स से मिलना पड़ेगा।’

‘वैसे बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के लिए वो अभी छोटे ही हैं! लेकिन.... जैसी उनकी मच्योरिटी है, क्या पता, हो सकता है कि वो पापा बनना चाहें जल्दी ही! हाँ, अगर वो नहीं चाहते, तो मैं भी वेट कर लूंगी।’

‘लेकिन फिर भी! मैं भी बहुत वेट तो नहीं कर सकती। तीस की तो हो ही गई हूँ। बहुत हुआ तो दो या तीन साल! इससे अधिक तो वेट नहीं कर सकती हूँ। पता नहीं, आगे कोई कम्प्लीकेशन हो जाए, और बच्चे ही न हों!’

‘वो मेरा दूध पीना चाहते हैं! बच्चे होंगे तभी तो दूध आएगा! सच में, मैं भी चाहती हूँ कि इन ब्रेस्ट्स में से उनके लिए प्रेम की मीठी धारा बहती रहे। मम्मी से इनके बचपन के बारे में पूछूँगी सब बातें।’


‘इनसे पूछूँगी, कि इनको मेरे ‘वहाँ’ पर बाल अगर नापसंद हों, तो हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट करवा लूंगी। अलका ने भी तो करवाया है। कह रही थी कि ‘ओरल’ करते समय उसके पति को वहाँ पर बाल बिलकुल अच्छे नहीं लगते।’

....................
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ऐसी ही कई छोटी, बड़ी, ख़ास, फ़ालतू अनगिनत बातें सोचते हुए कोई एक घंटा हो गया। टब का पानी भी लगभग ठंडा हो गया। पानी में पड़े पड़े उसके शरीर की थकावट काफ़ी कम हो गई थी, और वो पहले से अधिक तरोताज़ा महसूस कर रही थी। गुनगुना शावर ले कर उसने साबुन धोया, फिर बाथरूम से बाहर निकल आई। उसने एक तौलिया अपनी छाती पर बाँध रखा था, जिससे उसके जाँघ के ऊपरी हिस्से तक शरीर ढँका हुआ था।

जब वो कमरे में वापस आई तो उसने देखा कि समीर उनींदी आँखों से मुस्कुराते हुए उसी की तरफ देख रहा था। उसका लिंग वापस तना हुआ ऐसा दिख रहा था, जैसे कि वो फिर से काम-युद्ध के लिए तैयार हो।

‘फिर से रेडी! ये थकते नहीं हैं क्या! हे प्रभु, देर से ही सही, लेकिन तुमने मुझे ऐसा पति दिया जिसे पा कर मैं धन्य हो गई!’ मीनाक्षी ने मन ही मन सोचा।

“कहाँ से सीखी इतनी बदमाशी आपने?” मीनाक्षी ने बिस्तर पर बैठते हुए और मुस्कुराते हुए समीर से पूछा।

“कैसी बदमाशी?”

“ये.... आपका नुन्नू!” मीनाक्षी ने शिकायती लहज़े में कहा, “ये कभी आराम भी करता है, या बस हमेशा मुझे सताने के लिए तैयार रहता है?”

“नुन्नू!!? अरे जानेमन, तुमको इतने मज़े देता है ये बेचारा…. कम से कम जॉय स्टिक ही बोल दो इसको!”

“जी नहीं! मैं इसको नुन्नू ही बोलूँगी! मेरा प्यारा सा नुन्नू!”

“चलो जी! ये भी ठीक है! कम से कम आपको ये प्यारा तो लगता है। अब ये सोचिए कि पैदा होने के इक्कीस साल बाद जा कर इस बेचारे को अपनी सहेली मिली है। अब जब ये उससे हाय-हेलो बोलना चाहता है, तो आप क्यों नाराज़ होती हैं?”

“बहुत हाय-हेलो हो गई इसकी और इसकी सहेली की। इनके हाय-हेलो के चक्कर में इस बड़ी लड़की को सताना बंद करिए।” मीनाक्षी मुस्कुराते हुए बोली।

“आज की रात कुछ बंद करने की रात थोड़े न है!”

“अच्छा जी? फिर?”

“आज की रात तो खोलने की है....”

“अच्छा जी! फिर से बदमाशी....” मीनाक्षी शरमाती हुई इठलाई।

“इधर आओ,” कहते हुए समीर ने मीनाक्षी का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया। वो पीठ के बल, चित्त हो कर बिस्तर पर गिर गई।

“मिनी?”

“जी?”

“आप हनीमून के लिए कहाँ जाना चाहोगी?”

“हनीमून? उम्म्म्म....!” मीनाक्षी ने कुछ देर सोचने का अभिनय किया और फिर थोड़ा गंभीरता से कहा,

“जानू, शादी के दिन से अभी तक मेरा हनीमून ही तो चल रहा है! और मुझे मालूम है कि आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा! आप सभी मुझको इतना प्यार करते हैं! और मैं भी आपको खूब प्यार करती हूँ! हमारा घर, प्यार का घर है। मुझे आपका प्यार पाने के लिए कहीं और जाने की कोई ज़रुरत नहीं है।”

समीर के चेहरे को प्यार से अपने दोनों हाथों में ले कर उसने आगे कहा, “वैसे आपको कहीं घूमने फिरने चलने का मन है तो ठीक है… वो जगह आप चूज़ करिए लेकिन। और.... प्लीज् यह मत सोचिए कि हनीमून कोई रस्म है, जिसको आपको निभाना है.... मुझको जो सुख इतने दिनों से मिल रहा है, वो किसी हनीमून का मोहताज नहीं..”


समीर उसकी बात सुन कर मुस्कुराया। कुछ पल वो उसके भोले सौंदर्य को देखता रहा, और फिर वो मीनाक्षी का मुख चूमने के लिए उस पर झुक गया। मीनाक्षी भी सहर्ष समीर के होंठों को अपने होंठों में लेकर उसको चुम्बन में सहयोग देने लगी। यह कोई कामुक चुम्बन नहीं था, बल्कि एक स्नेहमय चुम्बन था। एक बहुत ही लम्बा स्नेहमय चुम्बन! दोनों को समय का कोई ध्यान नहीं रहा कि वो कब तक एक दूसरे को चूमते रहे। अंततः जब उनका चुम्बन टूटा, तो समीर ने कहा,

“ये तौलिया क्यों लगाया हुआ है?”

“आपके नुन्नू से उसकी सहेली को बचाने के लिए।” मीनाक्षी अपने कहे पर खुद ही शरमा गई।

“मिनी, एक बात बोलूँ?” समीर ने तौलिया उसके शरीर से हटाते हुए कहा।

“जी?”

“जब तुम मेरे सामने रहा करो, तो ऐसा नहीं हो सकता कि बिलकुल नंगी रहो?” उसने बिस्तर से उठते, और मीनाक्षी की जाँघें खोलते हुए कहा।

‘बाप रे! कुछ देर पहले ही तो मैं यही सोच रही थी। इनको कैसे सब मालूम पड़ जाता है? कोई टेलीपैथिक कनेक्शन है क्या!’

“हटो जी! ऐसे कैसे होगा?” मीनाक्षी ने नखरा दिखाया।

“कोशिश करो! कोशिश करने से तो सब कुछ हो जाता है।” वो उसकी योनि सहला रहा था। मीनाक्षी के शरीर में झुरझुरी होने लगी - एक तो समीर के इस तरह अंतरंग तरीके से छूने के कारण, और दूसरा इसलिए क्योंकि वो अभी अभी गरम पानी से नहा कर निकली थी, और कमरे में एसी के कारण ठंडक थी। समीर ने उसको पीठ के बल लिटा दिया, और अगले दौर के लिए खुद उसकी जाँघों के बीच में आ गया।

“ओह्ह्ह! जानू! मैं आपकी हर बात मानूँगी। लेकिन उन चार पाँच दिनों में यह करना मुश्किल है।”

समीर अपने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे खिसका चुका था।

“किन दिनों में?”

“पीरियड्स ..... आआह्ह्ह!”

समीर उसकी योनि को अपनी तर्जनी और अंगूठे से खोल कर अपने लिंग को फिर से भीतर इतनी ज़ोर से ठेला कि मीनाक्षी को एकदम से पीड़ा सी हुई और उसकी चीख निकल गई। इस हमले से आहत मीनाक्षी उसे गुस्से से देखने लगी। समीर भी शायद मीनाक्षी के दर्द से थोड़ा सहम गया, और सोचने लगा कि अब वो क्या करेगी। समीर को ऐसे भोलेपन से देखता देख कर मीनाक्षी को गुस्सा भी आ रहा था और हँसी भी।

मीनाक्षी को हँसते हुए देख कर समीर की जान में जान आई - उसने मीनाक्षी को अपने ऊपर बैठा लिया कुछ इस तरह कि जब वो अपनी पीठ के बल लेटा तो मीनाक्षी उसकी जाँघों पर उसके ऊपर अपने दोनों घुटने मोड़ कर इधर-उधर करके बैठी थी। इस नए आसन के कारण समीर का लिंग जबरदस्त रूप से कठोरता धारण किए हुए था।

“ये तुम्हारे अंदर रहता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है!”

मीनाक्षी ने शरारत से कहा, “ये तो अपनी सहेली के अंदर है.... आपको क्यूँ अच्छा लगता है?”

“क्योंकि मेरा काम कम हो जाता है।”

“काम? कौन सा काम?”

“जब ये ऐसे रहता है न, तो इसको हाथ से समझाना बुझाना पड़ता है।”

मीनाक्षी कुछ समझी नहीं। शायद उसको हस्तमैथुन के बारे में नहीं मालूम था। और समीर ने भी इस बात को आगे नहीं खींचा। उसने आगे कहना जारी रखा, “और मुझे ये मीठे मीठे राजपुरी आम चूसने को मिल जाता है!”

“हा हा हा! आप और आपका आम प्रेम!”

“ए मिनी, तुमको कैसा लगता है?”

“क्या?” वो सब समझती है कि समीर उससे क्या पूछ रहा था। लेकिन जान बूझ कर अनजान बनी हुई थी।

“जब ये तुम्हारे अंदर रहता है!”

उसकी बात सुन कर मीनाक्षी फिर से शरमा गई। वो समीर के लिंग की कठोरता को अपने भीतर महसूस कर रही थी। समीर धक्के नहीं लगा रहा था, लेकिन अपनी योनि के भीतर मीनाक्षी को समीर के उत्तेजित लिंग के झटके पर झटके महसूस हो रहे थे। समीर को कुछ भी न करते देख कर अंततः मीनाक्षी ने ही पहल करी - उसने बैठे बैठे ही अपने नितंबो को पीछे की ओर थोड़ा सा उठाया और फिर हल्का सा धक्का दिया। उसकी योनि भीतर से पहले से ही गीली थी। समीर का लिंग उसकी योनि के भीतर ऐसी मजबूती से गड़ा हुआ था जैसे कि लकड़ी में लोहे की कील ठुकी हुई हो! मीनाक्षी ने अपने नितम्बों को गति देनी शुरू की जैसे कि समीर ने किया था - आगे-पीछे!

मीनाक्षी अपनी आँखें बंद किए हुए समीर के सख्त लिंग के घर्षण का आनंद उठा ही रही थी, कि वैसे ही लेटे लेटे ही समीर ने एक ज़ोर का धक्का मारा। इस प्रहार से उसका लिंग मीनाक्षी की योनि में भीतर तक ठुक गया। मीनाक्षी को फिर से तीव्र पीड़ा का आघात लगा। मीनाक्षी उसको घूरने लगी, लेकिन समीर को जैसे कोई परवाह नहीं थी - उसने फिर से एक धक्का और मारा, और पुनः पूरा का पूरा मीनाक्षी की योनि में घुस गया। इस दूसरे आघात से मीनाक्षी लगभग गिरते गिरते बची। वो कुछ कर पाती, उसके पहले ही समीर ने उसको एक खिलौने की भाँति उठाया और अपनी गोदी में बैठा लिया और खुद भी बैठ गया। उस अवस्था में मीनाक्षी का पूरा भार उसकी योनि में घुसे हुए समीर के लिंग पर आ गया, और वो पूरा अंदर तक घुस गया - जैसे अगर कोई गुंजाईश रह गई हो, तो वो भी ख़तम हो गई।
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