Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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समीर कुछ देर के लिए चुप हो गया। उसके धड़कनें अचानक ही तेज़ हो गईं। फिर उसने खुद पर थोड़ा नियंत्रण लाते हुए कहा, “आई डू लव यू! डू यू नो दैट?”

उसने सर हिला कर हामी भरी।

“मैं आपको ‘मिनी’ बुला सकता हूँ?”

मीनाक्षी मुस्कुराई, “आप प्यार से मुझे जिस नाम से भी बुलाएँगे, वो ही मेरा नाम होगा।”

समीर मुस्कुराया, “मिनी, आई लव यू। और इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि हम एक दूसरे के बारे में बहुत अंजान हैं। पति-पत्‍नी के प्‍यार में .... शारीरिक संबंध ही पति-पत्‍नी का असली संबंध नहीं है। मैं आपको जानना चाहता हूँ। अपने बारे में बताना चाहता हूँ। कुछ मंत्र पढ़ लिए, रीति रिवाज पूरे कर लिए। वो कोई शादी थोड़े ही है! वो तो बस, सामजिक शादी है। वो शादी तो हो गई।

लेकिन हमारा क्या? हमारी भावनात्मक शादी का क्या? उसके लिए मैं आपकी पसंद, नापसंद जानना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि आप किन बातों पर हँसती हैं। किन बातों पर नाराज़ होती हैं। मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं। मैं आपका ऐसा ख्याल रखना चाहता हूँ कि आप आगे आने वाली जिंदगी दुःख क्या होता है, यह भूल जाएँ!

मैं यह नहीं चाहता कि आप किसी भी तरह का कोम्प्रोमाईज़ करें, या मैं किसी तरह का कोम्प्रोमाईज़ करूँ। हमें कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना है, बल्कि तार-तम्य बैठाना है। तबला अलग है, बाँसुरी अलग। अगर कोम्प्रोमाईज़ करेंगे तो उनमे से कोई एक कम बजेगा, और दूसरा ज्यादा। लेकिन अगर दोनों ने तार-तम्य बैठेगा, तो दोनों बराबर बजेंगे। और एक बढ़िया सिम्फनी बनेगी।

सच कहूँ, मैं मरा जा रहा हूँ आपका सान्निध्य पाने के लिए। लेकिन मैं इंतज़ार कर लूँगा। मुझे मालूम है कि उस इंतज़ार का फल बहुत मीठा होगा।”

समीर की ऐसी गंभीर समझ को सुन कर मीनाक्षी कुछ पल समझ नहीं सकी कि वो क्या बोले। फिर कुछ सोचने के बाद बोली, “मम्मी डैडी ने लड़का नहीं, हीरा बनाया है आपको!”

“हा हा हा हा हा हा”

“एक बात पूछूँ आपसे?”

“हाँ?”

“मिनी क्यों?”

“हा हा…. आप उम्र में मुझसे बड़ी हैं, लेकिन न जाने क्यों छोटी सी लगती हैं मुझे!” कह कर समीर कमरे से बाहर चला गया।

जब वो वापस लौट रहा था, तब मीनाक्षी ने उसको पुकारा, “सुनिए?”

जब समीर कमरे में आ गया तो उसने कहा, “इधर आइए? मेरे पास!”

समीर उसके पास आ कर बिस्तर पर बैठ गया, तब मीनाक्षी ने प्रेम से उसके गले में गलबैयाँ डाल कर उसके होंठों को चूम लिया। और अपनी बड़ी बड़ी आखों से उसके मुस्कुराते चेहरे को देखने लगी।

“गुड नाइट!”

“गुड नाइट!” समीर ने कहा, और अनिच्छा से कमरे से बाहर निकल आया। उसका दिल बल्लियों उछल रहा था। सुनहरा भविष्य सन्निकट था।


रिसेप्शन के बाद के दिनों में दोनों की दिनचर्या बँध गई। मीनाक्षी जल्दी उठ जाती, जिससे वो समीर को नाश्ता खिला कर ऑफिस भेज सके। दिन में वो लिखने पढ़ने का काम करती। डांस करती। जिम जाती। आस पड़ोस में और महिलाओं से बात करती। शाम को समीर के आने के बाद उसके लिए नाश्ता रखती। डिनर पर से समीर का एकाधिकार ख़तम हो रहा था। डिनर दोनों मिल कर पकाते। सप्ताहांत में मम्मी डैडी आते, और उनके साथ गप्पें लड़ाने, और मज़े करने में निकल जाता।

मीनाक्षी धीरे धीरे करके समीर के साथ खुलने लगी। दोनों कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते थे, बस, वो दैनिक छोटी-छोटी बातें - जैसे कि समीर का दिन कैसा रहा, उसका खुद का दिन कैसा रहा, क्या देखा, क्या पढ़ा, क्या किया, क्या खाया, ऑफिस में किसने क्या कहा, क्या सुना - बस ऐसी ही छोटी-छोटी बातें! मीनाक्षी ने समीर के साथ अपने किसी बड़े रहस्य को साझा नहीं किया। लेकिन उसने समीर से सहजता के साथ बात करना शुरू कर दिया।

एक बार समीर ने मीनाक्षी से अपने ऑफिस के काम से सम्बंधित किसी बात के सिलसिले में उससे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव मांगे। मीनाक्षी को यकीन ही नहीं हुआ कि वो उससे इस विषय में सलाह मांग सकता है - उसने इंजीनियरिंग की कोई पढ़ाई नहीं करी थी, अब ऐसे में वो समीर को क्या सलाह देती? और तो और, क्या यह एक स्त्री का कोई स्थान है कि वो अपने पति को किसी तरह की कोई सलाह दे? उसको याद आया एक बार की बात जब उसके पापा ने उसकी माँ से इसी तरह अपने काम के सिलसिले में एक प्रश्न पूछ लिया। माँ ने सोचा कि शायद पापा उनसे वाकई कोई उत्तर या सलाह चाहते हैं। लेकिन जब उन्होंने जवाब दिया तो पापा झल्ला गए।

इसलिए मीनाक्षी के मन में अज्ञात का भय था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी किसी नादानी के कारण, ये जो हँसी ख़ुशी के दिन बीत रहे हैं, उनमे कोई विघ्न पड़े। लेकिन समीर ने पूछा था तो कुछ तो बताना ही चाहिए। विषय ज्ञान तो नहीं था। मीनाक्षी ने समीर की तरफ देखा; वो किसी उत्तर या सुझाव की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहा था। थोड़ा अनिश्चय के साथ ही सही, लेकिन मीनाक्षी ने सुझाव देना शुरू किया, और समीर ने सुना। पूरा सुना। पूरी गंभीरता और पूरे आदर के साथ। सुझावों के कुछ बिंदुओं पर उसने मीनाक्षी के साथ कुछ देर तक प्रतिवाद भी किया।

जब वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गया, तो मुस्कुराते हुए ‘थैंक यू … आई मैरिड एन इंटेलीजेंट गर्ल’ बोल कर कमरे से बाहर निकल गया। अपनी उपयोगिता और महत्ता पर आज मीनाक्षी को खूब गर्व महसूस हुआ। आज उसके अंदर एक अलग तरह का आत्मविश्वास पैदा होने लगा था।
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Rohit Kapoor
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नॉएडा में मीनाक्षी की कुछ सहेलियाँ रहती थीं, जो उसकी शादी में उपस्थित थीं। उनमे से कुछ रिसेप्शन में भी आई थीं। एक बार मीनाक्षी का मन हुआ कि वो उनसे मिल आए। इस बाबत उसने समीर से अपने दोस्तों से मिलने के बारे में आज्ञा चाही।

मीनाक्षी ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “क्या मैं अपनी सहेलियों से मिलने जा सकती हूँ? वो एक शेयर्ड अपार्टमेंट में रहती हैं - शायद आज रात रुकना पड़ जाए। लेकिन मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगी और कैसी भी बेवकूफी वाला काम नहीं करूँगी। आप चाहें तो मुझे फोन कर सकते हैं, या उनको फ़ोन कर सकते हैं। ये डायरी में उनका नंबर भी लिख दिया है। मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगी। जा सकती हूँ?”

जिस तरह की मीनाक्षी की परवरिश थी, उसमें उसको सिखाया गया था कि शादी के बाद स्त्री पर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है। बिना पति की आज्ञा के कोई कार्य नहीं करना।

लेकिन समीर की गुस्से से भरी शकल देख कर मीनाक्षी का दिल बैठ गया। आज तक समीर को गुस्से में उसने नहीं देखा था। कुछ देर समीर ने कुछ कहा नहीं - वाकई वह बहुत गुस्से में था। उसका यह रूप देख कर उसको डर लग गया। ज़रूर कोई गड़बड़ी हो गई है उससे! उसको लगा कि जैसे वो समीर के सामने नग्न खड़ी हुई है। शर्म के मारे उसकी आँखें जैसे ज़मीन में धंस गईं। आज समीर उसको एक और पाठ पढ़ाने वाला था।

समीर ने लगभग निराश होते हुए कहा, “मीनाक्षी,” (रोज़ के जैसे उसने उसको ‘मिनी’ कह के नहीं पुकारा) “मैंने आपको कितनी बार कहा है कि आप मेरी पत्नी हैं! कितनी बार? और अपनी सहेलियों से मिलने जाने के लिए आप मेरी परमिशन क्यों ले रही हैं? आप मेरी एम्प्लॉई हैं क्या? छुट्टी की एप्लीकेशन लगाओ अब से! ठीक है न?”

फिर कुछ ठहर कर, कम गुस्से में उसने आगे कहा, “आप मुझे बस बता दिया करें! जिससे मुझे मालूम रहे कि आप किसी परेशानी में तो नहीं हैं! बस! उतना काफी है। जाओ। लेकिन अब से ऐसे भीख मत माँगो! प्लीज़!” उसने कहा और वहाँ से चला गया। खुश तो बिलकुल ही नहीं था।

समीर की बातों और उसके बर्ताव से मीनाक्षी को धक्का लगा। सच में, पहले दिन से ही समीर ने उसको इतना आदर दिया था जितना की उसको अपने घर में नहीं मिला था। और यह बात तो उसने कम से कम दस हज़ार बार दोहराई होगी कि मीनाक्षी उसकी पत्नी है, और उसका समीर के जीवन में बराबर का अधिकार है। मीनाक्षी को लगा कि उसने वाकई समीर को निराश कर दिया। मीनाक्षी समीर के पीछे पीछे गई। वह बालकनी से नीचे सड़क को देख रहा था। मीनाक्षी भी उसके संग, उसके बराबर आ कर खड़ी हो गई और नीचे देखा।

“समीर (समीर का नाम अपने मुँह पर आते ही मीनाक्षी एक दो पल के लिए रुक गई - आज उसने पहली बार यह नाम बोला था), मैं सीख रही हूँ। प्लीज मेरे साथ थोड़ा धीरज रखिए।”

मीनाक्षी ने नीचे देखते हुए बोलना जारी रखा, “मेरी जैसी परवरिश रही है, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ? अपने पति से बात करने के लिए मेरी माँ ने मुझे एक लम्बी चौड़ी लिस्ट दी हुई है, कि मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं! कैसे बिहेव करूँ और कैसे नहीं। लेकिन आपके साथ उस लिस्ट की एक भी बात फिट नहीं होती।”

“लेकिन मेरा यकीन मानिए कि मैं सीख रही हूँ। थोड़ा और बर्दाश्त कर लीजिए। प्लीज मुझसे निराश मत होईए।”

मीनाक्षी की बात पर समीर ठट्ठा मार कर हँसा - लेकिन उसकी हंसी में उपहास नहीं परिहास था।

“ओह आई ऍम सॉरी! आई ऍम सॉरी! मैं आप पर नहीं हँस रहा था। वो लिस्ट वाली बात पर हँस रहा था। आल्सो, आई ऍम सॉरी फॉर माय बिहेवियर। मैंने आपसे बदतमीज़ी से बात की, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ। मैं आपकी बात याद रखूँगा। लेकिन आप भी वायदा करिए कि अब आप ‘अपने घर’ में हैं, अपने माँ बाप के घर में नहीं। हम दोनों आगे का सोचेंगे! अतीत का नहीं! है न?”

कहते हुए समीर ने एक क्षण के लिए मीनाक्षी की पीठ को छुआ। दिलासा देने के लिए। यह इतना जादुई स्पर्श था कि मीनाक्षी की आत्मा ने भी उसको महसूस किया। मीनाक्षी के मन में यह विचार आया कि काश समीर उसको चूम ले! उसने महसूस किया कि अगर समीर उसको इस समय चूम लेगा, तो उसको खुद को बहुत अच्छा लगेगा।

समीर ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए अपनी एक हथेली उसके गाल पर रखी और दूसरी से उसके चेहरे पर उतर आई उसकी लटों को पीछे की तरफ फेर दिया। और फिर उसने मीनाक्षी का मुख चूम लिया।

“किसी चीज़ की ज़रुरत हो, तो मुझे बता दीजिएगा। और वॉलेट से पैसे निकाल कर रख लीजिए। और….” इसके पहले समीर उसको और कोई हिदायद देता, मीनाक्षी ने उसके होंठों पर अपनी तर्जनी रख कर उसको चुप हो जाने का इशारा किया।

‘मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं।’

मीनाक्षी के मन में समीर की कही हुई ये बात कौंध गई। उसकी आँखों के कोनों में आँसू उतर गए। उसने आँखें बंद कर समीर को आलिंगनबद्ध कर वापस उसके होंठ चूम लिए।

“आई लव यू!” मीनाक्षी ने कहा।

उस दिन के बाद समीर और मीनाक्षी का अपने दोस्तों के घर आना जाना शुरू हो गया।
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मीनाक्षी अपने दोस्तों को डिनर के लिए घर बुलाने लगी। जाहिर सी बात है कि उसकी सहेलियाँ भी उसके ही समान समीर से आठ से दस बड़ी थी। लेकिन मीनाक्षी से समीर के बारे में जान कर उनके मन में भी उसके लिए आदर भाव हो गए थे। वो सभी समीर को ‘जीजू’ या ‘जीजा जी’ कह कर बुलाती थीं। वो इस सम्बोधन पर बहुत हँसता, और उसकी सहेलियों को अक्सर कहता कि उसको उसके नाम से बुलाया करें। लेकिन वो मानती नहीं थीं। सालियों का काम ही है अपने जीजा को तंग करना। मीनाक्षी की सहेलियाँ उसकी अच्छी किस्मत पर जहाँ एक तरफ बहुत खुश थीं, वहीं दूसरी तरफ कहीं न कहीं उनको थोड़ी ईर्ष्या भी थी। वो उसको अक्सर कहतीं कि वो बहुत लकी है कि उसको समीर जैसा हस्बैंड मिला।

दूसरी तरफ समीर के दोस्त भी उसकी ख़ुशकिस्मती पर ईर्ष्यालु हुए बिना नहीं रह सके। अक्सर वो मीनाक्षी से कहते कि ‘भाभी, अपनी ही जैसी कोई हमारे लिए भी ढूंढ दो’। मीनाक्षी बढ़िया पढ़ी-लिखी, समझदार, कार्य-दक्ष, मृदुभाषी, स्नेही और सरल लड़की थी। और उसकी सुंदरता के तो क्या कहने! छोटी छोटी उसकी इच्छाएँ थीं। और जो सबसे बड़ी बात थी वो यह कि भगवान् की उस पर कृपा थी। वरना कैसे उसका जीवन यूँ ही चुटकी बजाते बदल जाता? ऐसी सौभाग्यवती लड़की कौन अपने घर में नहीं लाना चाहेगा?

समीर के साथ रहते हुए मीनाक्षी के ज्ञान, अधिकार और मनोबल की सीमा काफ़ी बढ़ी। अब वो ऐसे काम कर सकती थी, जो उसने पहले सोचे भी नहीं थे। उसके साथ समीर ने उसके परिवेश का दायरा भी बढ़ाने का काम किया। उसको वो क्लब ले जाता, म्यूजिकल कॉन्सर्ट में ले जाता, उसको मिनी-ड्रेस पहनने के लिए प्रोत्साहित करता, उसके साथ जिम जा कर व्यायाम करता, कभी कभी मीठी शराब (डिजर्ट वाइन) भी लाता जिसे दोनों साथ में बैठ कर पीते। घर का हो, या बाहर का कोई सामाजिक काम, वो किसी भी काम में वो मीनाक्षी के विचारों को अधिक अहमियत देता। उसके लिए हमेशा कुछ न कुछ नया कर के उसको सरप्राइज करता। उसको आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त करने के लिए भी प्रोत्साहित करता। उसके प्रोत्साहन के चलते और मीनाक्षी के प्रयत्न से, उसको एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी भी मिल गई।

इन सब बातों के चलते मीनाक्षी को अक्सर लगता कि बिना उसकी मर्ज़ी के ही सही, लेकिन समीर उसके माता-पिता और भाई का दिया हुआ सबसे बड़ा, और सबसे क़ीमती उपहार था। एक अजनबी से शादी करके जैसे उसको दूसरा जन्म मिल गया था।

पिछले कुछ वर्षों से मीनाक्षी में मन में लेखिका बनने की इच्छा बलवती हो गई थी। उसके चलते वो कई बार अख़बारों और मैगज़ीनों में छोटी छोटी कहानियाँ लिख कर भेजती रहती थी, जो छपा भी करतीं थीं। उसको लगता था कि वो यह काम अच्छा कर पाती है। अब, जब उसके जीवन में स्थिरता और मजबूती आ गई थी, तो वो लेखन के काम को गंभीरता से लेना चाहती थी। एक रात, मीनाक्षी और समीर बालकनी में साथ में बैठ कर वाइन पी रहे थे और रिमझिम बारिश का आनंद उठा रहे थे। मीनाक्षी के मन में हुआ कि समीर से वो अपने मन की बात बोल दे। उसने संकोच करते हुए, फुसफुसाते हुए कहा,

“मैं… लिखना चाहती हूँ!”

“क्या?”

“मेरा मतलब है, मैं राइटर बनना चाहती हूँ! मेरे मन में यह इच्छा बहुत दिनों से है। लेकिन अब लगता है कि मैं इस इच्छा को पूरा कर सकती हूँ!”

मीनाक्षी की इस बात पर समीर के चेहरे पर जो भाव उठे, उनको मीनाक्षी कभी भुला नहीं सकती। मीनाक्षी ने समीर को इतना खुश होते हुए पहले कभी नहीं देखा था, और उसको एक पल को लगा कि समीर की आँखों में आँसू झिलमिला रहे थे।

“यह तो बहुत बढ़िया बात है। सही में, नौकरी के फेर में पड़ने की कोई ज़रुरत नहीं। अगर आपको लगता है कि आप बढ़िया लिख सकती हैं, तो बिलकुल लिखिए! कभी साहित्य अकादमी अवार्ड मिलेगा तो मैं भी कहूंगा, कि देखो - मेरी बीवी है!”

मीनाक्षी को समीर की यही बात बहुत पसंद है। इतना आशावादी! उसी कारण से समीर ने उससे शादी करी। वो हर काम में इतनी सम्भावनाएँ देखता है कि उसके लिए कुछ भी असंभव सा नहीं लगता। देखो, उसने लिखने की बस इच्छा ही जाहिर करी थी, और वो कहाँ साहित्य अकादमी अवार्ड तक पहुँच गया। ऐसे पुरुष के साथ रहते रहते कोई कैसे न खुद भी आशावादी हो जाए! अगले घण्टे तक समीर उससे क्या लिखना है, कैसे लिखना है, कौन कौन से साधन चाहिए, कैसे उपकरण चाहिए, इन सब बातों को डिसकस करता रहा। उसका उत्साह देखने वाला था।

उस रात मीनाक्षी जिस तरह रोई, वैसे वो पहले कभी नहीं रोई। आज वो रो कर अपने सारे दुःख अपने आँसुओं के साथ बहा देना चाहती थी। ‘बस अब! अब मेरी लाइफ में दुःख की कोई जगह नहीं’। कहीं समीर सुन न ले, यह सोच कर उसने अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। और खूब रोई! उसका मन हुआ कि वो चीख़ भी ले! नैराश्य की भावनाएँ जो पिछले पाँच छः वर्षों से उसके दिमाग में घर कर के बैठ गईं थीं, अब सब बाहर थीं।

जब वो अच्छी तरह रो ली, तब उसने अपना चेहरा धोया। फिर मम्मी ने जो उससे ब्राइडल लॉन्जेरे के दो सेट ज़बरदस्ती खरीदवाए थे, उनमे से एक पहन कर कमरे से बाहर आ गई और समीर के कमरे की तरफ चली। जुलाई बीत चुकी थी, और बढ़िया बारिश होने लगी थी। अब इस कमरे में भी वैसी गर्मी नहीं होती थी।

वो कमरे में आई, और आ कर सीधा समीर के बगल उस बेड पर लेट गई। समीर करवट पर लेटा हुआ था। शायद उसकी ऐसी आदत थी। इस समय उसकी पीठ मीनाक्षी के सामने थी। तो मीनाक्षी भी करवट ले कर उससे चिपक कर लेट गई, और अपना एक हाथ उसने समीर पर डालते हुए उसके सीने पर रख दिया। अपने बिस्तर पर हलचल महसूस कर के वो थोड़ा कुनमुनाया लेकिन मीनाक्षी ने ‘श्श्श ...’ कह कर उसको शांत कर दिया।

आज वो पहली बार समीर के इतने करीब थी। इतने करीब कि समीर के शरीर की महक उसको आ रही थी। यह एक अलग तरह की अंतरंगता थी। अभी तक मर्दों की गंध के नाम पर उसने जो भी महसूस किया था वो ज्यादातर दुर्गन्ध की श्रेणी में आता था। लेकिन समीर के शरीर की गंध उसको खराब नहीं लगी - उल्टे उसको उसकी महक अच्छी ही लगी। मीनाक्षी ने पीछे से ही उसके गर्दन के नीचे चूमा - जहाँ गर्दन और कन्धा मिलते हैं। ऐसा करते ही समीर के उस साइड वाले हिस्से पर रोंगटे खड़े हो गए। उसकी नींद कुछ कुछ खुलने लगी,

“मिनी?” गहरी नींद में उसने कहा।

“श्श्श ... सो जाओ!”

“हम्म?”

“सो जाओ! आज मैं यहीं सोऊँगी!”

“हम्म”

समीर वापस सो गया। गहरी नींद में। मीनाक्षी कुछ इस तरह लेटी हुई थी, कि उसके शरीर का हर अंग इस समय समीर की किसी न किसी अंग से चिपका हुआ था। कोई घण्टा ऐसे ही लेटे रहने से उसका करवट के साइड में दर्द होने लगा। वो खुद भी चित्त लेट गई, और समीर को भी हल्का सा अपनी तरफ खींच कर चित्त लिटा दी। यह बेड दो लोगों के एक साथ सोने के लिए बहुत छोटा था - सिंगल बेड! इसकी चौड़ाई लगभग कोई तीन फ़ीट ही होती है। इसलिए इसमें बिना आपस में चिपके लेटना मुश्किल था।

जब उसका दर्द कम हो गया, तब उसने फिर से समीर की तरफ करवट ली। आँखें अँधेरे में देखने में अभ्यस्त हो गईं थीं अब तक। वो उसको संतुष्टि वाले भाव लिए सोते देख कर मुस्कुरा दी। वो थोड़ा झुकी, और बहुत हलके से उसके गाल को चूमा। वो उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए रुकी, और कुछ न देख कर उसने फिर से चूमा।

“हम्म” समीर गहरी नींद में ही बोला।

समीर की ऐसी प्रतिक्रिया देख कर वो स्नेह से मुस्कुरा दी, ‘ऐसे तो हमेशा मैच्योर बातें करते हैं, लेकिन अभी देखो! बिलकुल नन्हे बच्चों के जैसे सो रहे हैं’

“सुनो?” उसने बहुत प्यार से, लेकिन बहुत धीमे से पुकारा।

“हम्म?”

“तुम हमेशा मेरे ही रहना” उतने ही धीरे मीनाक्षी ने कहा।

“हम्म”

इस मासूमियत भरे वार्तालाप पर मीनाक्षी को हँसी आ गई, लेकिन समीर जाग न जाए, इसलिए उसने अपनी हँसी दबा ली। लेकिन उसके मन में समीर के लिए जो प्यार उमड़ रहा था, उसकी अभिव्यक्ति भी ज़रूरी थी। मीनाक्षी ने नीचे झुक कर समीर के होंठों को चूम लिया। वैसे ही। हलके से। कोमलता से।

“हम्म!”

मीनाक्षी मुस्कुराई, और फिर कुछ सोचते हुए उसने अपनी नाइटी का एक कप कंधे से नीचे ढलका दिया। उसका एक स्तन अनावृत हो गया। अपनी खुद की ही इस हरक़त से उसके दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं। उसने समीर का वो हाथ, जो उसके शरीर के संपर्क में नहीं था, उसको हौले से पकड़ कर अपने अनावृत स्तन पर रख दिया और उसको अपने हाथों से सहारा दे कर स्तन पर रखा रहने दिया। ऐसा साहस / दुस्साहस उसने अपने जीवन में पहली बार किया था। उसका चूचक उत्तेजना से तन गया था और बहुत कठोर हो गया था। अपने शरीर में ऐसा परिवर्तन होते देख कर वो खुद ही घबरा गई। उसने पूरी सतर्कता से समीर का हाथ वापस उसकी जगह पर रख दिया और फिर अपने कपड़े व्यवस्थित कर के बेड से उठी, और अपने कमरे में आ गई।

वो मुस्कुराते हुए लेटी और अगली सुबह मुस्कुराते हुए ही उठी। उसका बदला हुआ व्यवहार देख कर समीर बहुत खुश हुआ। उसको लगा कि शायद अपने लेखन के कार्य को लेकर मीनाक्षी उत्साहित है, इसलिए। लेकिन उसको यह नहीं मालूम था कि मीनाक्षी, जितना वो सोचता था, उससे ज्यादा उसके करीब आ चुकी थी। और उसकी ख़ुशी का भी यही कारण था।

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इस घटना के कोई दस दिन बाद स्वतंत्रता दिवस था। और उस कारण तीन दिनों की छुट्टी मिलती। समीर ने सुझाया कि कहीं घूमने चला जाए। लेकिन मीनाक्षी ने कहा कि पूरे परिवार के साथ कुछ दिन बिताते हैं। ठीक बात थी, सभी से मिले कुछ समय भी हो गया था। समीर ने कॉल कर के अपने सास ससुर और आदेश को घर आने का न्योता दिया। इसको सभी ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया। सभी लोग पंद्रह अगस्त की शाम को आने वाले थे, इसलिए मीनाक्षी ने सोचा कि घर की थोड़ी सफाई कर ली जाए। कामवाली कुछ दिनों की छुट्टी पर थी, इसलिए घर की सफाई थोड़ा उपेक्षित हो गई थी।

लगभग दस बज रहा था।

नाश्ता और साफ़ सफ़ाई वगैरह निबटा कर मीनाक्षी नहाने के लिए बाथरूम गई। काम काज और गर्मी ने पूरे बदन को पसीने से तर बतर कर दिया था; और ऊपर से ऊमस। ऐसे में चैन नहीं मिलता। जैसे ही नहाते हुए उसने पहला मग पानी का डाला, उसका मन हुआ कि बस कुछ इसी तरह वो पानी में पड़ी रहे। काफी देर तक बाहर निकलने को उसका मन ही नहीं हो रहा था। लेकिन आखिरकार बाहर आना ही पड़ा। बाहर आते हुए उसने अपना बदन एक पतले सूती अंगौछे में लपेट लिया। ऐसी सड़ी हुई गर्मी में तौलिया लपेटने में तो गर्मी के मारे जान निकल जाती।

बाथरूम से निकलकर उसने जैसे ही पहला कदम रखा तो देखा समीर उसके सामने खड़ा है। इतने दिनों में वो आज पहली बार इतनी देर से सो कर उठा था। वो इस समय सिर्फ अपने अंडरवियर को पहने था। समीर का मर्दाना चौकोर चेहरा, छोटे बाल, उनींदी लेकिन चमकती आँखें, होठों पर सहज मुस्कुराहट, लंबी काठी और कसा हुआ शरीर .... अपने पति को ऐसे देख कर मीनाक्षी के दिल में एक धमक सी हुई।

‘ओह! कैसा मॉडल जैसा लगता है!’

वह ठगी सी उसको देखती रह गई। दोनों के इस संछिप्त विवाहित जीवन में अंतरंगता के यह प्रथम क्षण थे। मीनाक्षी समीर को देख तो रही थी, लेकिन समीर क्या देख रहा था? छाती से जाँघ तक के शरीर को सूती अंगौछे से ढकी एक युवती। उसका यौवन जैसे अभी-अभी ही अपने शिखर तक पहुँचा हो। कितनी सुन्दर… मीनाक्षी... मछली के आकार की आँखों वाली! मीनाक्षी को उस हाल में आज तक किसी भी पुरूष ने नहीं देखा था। गीले बालों से टपकते हुए पानी से उसका पतला, सफ़ेद अंगौछा पूरी तरह से भीग चुका था। अब वह वस्त्र मीनाक्षी के शरीर को जितना छुपा रहा था, उससे अधिक उसकी नुमाइश लगा रहा था। उसके स्तनों की गोलाइयाँ, चूचकों का गहरा रंग, शरीर का कटाव, कमर का लोच, नितंब का आकार - कुछ भी नहीं छुप रहा था।

समीर हतप्रभ सा अपनी पत्नी को देख रहा था। उसको लगा जैसे उसके दिल की धड़कनें रुक जायेंगीं।

‘हे प्रभु! ये लड़की जब सजती सँवरती है, तब भी रति का रूप लगती है, और जब नहीं भी सजती सँवरती है, तब भी! कैसी आश्चर्यजनक बात है!’

समीर अपनी प्रतिज्ञा अपनी प्रतिज्ञा के कारण रास्ता बदल देना चाहता है! लेकिन वो ऐसा करे भी तो कैसे? ईश्वर-प्रदत्त इस अवसर को भला कैसे ठुकरा दे? वह चरित्रवान तो है, लेकिन इतना भी नहीं कि कामदेव के इस अद्वितीय उपहार से दृष्टि बचा कर निकल जाए। वह शर्मीला भी है, लेकिन इतना नहीं कि अपने ऐसे सौभाग्य से शरमा जाए। ऐसी ही अवस्था में जब राजा पाण्डु ने अपनी रानी माद्री को देखा, तब वो कामाग्नि से भस्म हो गए। ऐसी ही अवस्था में जब ऋषि विश्रवा ने कैकसी को देखा तो उनके संयोग से रावण का जन्म हुआ।

‘कुछ दिन और सब्र कर लो। जल्दबाज़ी से कुछ भी सार्थक नहीं निकलता है।’

कामदेव का जादू कुछ क्षण यूँ ही चलता रहा, और जब वो जादुई पल समाप्त हुए, तो दोनों यूँ ही शर्मसार हो गए। समीर पलट कर लौट गया, और मीनाक्षी शरमा कर खुद में ही सिमट गई। आज उसको लगा कि उसका सर्वस्व समीर लेता गया। यदि लज्जा ने मीनाक्षी की दृष्टि को रोक न लिया होता, और उसने अपने पति के शरीर पर उस एकमात्र वस्त्र की ओर देख लिया होता, तो उसको पता चल जाता कि कामदेव के जादू का समीर पर क्या असर हुआ है।

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