Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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शाम को दोनों परिवार मीनाक्षी और समीर के घर पर इकठ्ठा हुए।

मीनाक्षी ने पहले से ही समीर को सख़्त हिदायत दे रखी थी कि वो आज रसोई में न आएँ, और उसको ही सारा काम करने दें। इसलिए उसकी इच्छा का मान रखते हुए समीर ने उसको सारा काम तो नहीं, लेकिन ज्यादातर काम करने को दिया। मीनाक्षी ने पूरे उत्साह से विभिन्न पकवान बनाए और सभी के आने की राह देखने लगी।

सबसे पहले मीनाक्षी के माता पिता ही आए। समीर ने दोनों के पैर छू कर दोनों का अभिनन्दन किया। मिसेज़ वर्मा अपने बांके दामाद को चूमे बिना न रह सकीं। वर्मा जी उनके जितना एक्सप्रेसिव तो नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी समीर के कंधों पर हाथ रख कर उसकी कुशल क्षेम पूछी। अपनी बेटी को देख कर दोनों ही बहुत खुश हुए - वो बहुत खुश और स्वस्थ दिख रही थी। उसके चेहरे पर वैसी मुस्कराहट थी, जैसी कई वर्षों पहले होती थी। मिसेज़ वर्मा तो मीनाक्षी के साथ रसोई चलीं गईं उसका हाथ बँटाने और साथ ही एकांत में उसका हाल चाल लेने। समीर और वर्मा जी अकेले ड्राइंग रूम में रह गए।

वो समीर से बात करने में थोड़ा हिचकिचा रहे थे। ज्यादातर इधर उधर की ही बातें कर रहे थे। असहज थे। ‘काम कैसा चल रहा है’, ‘ऑफिस में सब ठीक है’, ‘बढ़िया घर है’, ‘कॉलोनी की अच्छी लोकेशन है’ वगैरह वगैरह। कुछ देर के बाद उनकी बातें घूम फिर कर राजनीति की चर्चा पर आ गई। जब पुरुषों के बीच में उतनी जान पहचान नहीं होती, तब उनके लिए कारगिल, पार्लियामेंट पर आतंकवादियों का हमला, गोधरा - यह सब डिसकस करना ज्यादा आसान होता है। यह सब टॉपिक्स एक न्यूट्रल ग्राउंड पर होते हैं - इसलिए यहाँ व्यक्तिगत ठेस लगने की के कम चान्सेस होते हैं।

वर्मा जी भी क्या करें! उनके मन में एक दुविधा सी थी - समीर उनके बेटे का मित्र है और समीर उनकी बेटी का पति भी है। अब वो किस वाले समीर से बात करें, उनको समझ ही नहीं आती। एकलौती पुत्री के पिता होने के नाते वो शुरुवात में ही चाहते थे कि समीर से पूरी निर्लज्जता से पूछ लें, कि तुम जैसे विवाह वाले दिन थे वैसे ही हो अभी तक, या अभी अपना रंग बदल दिया? समाज का सताया हुआ पुरुष और करे भी तो क्या करे?

लेकिन जब वो अपनी बेटी के मुखारविंद पर प्रसन्नता और आत्मविश्वास की चमक देखते हैं, तो यह प्रश्न ही उनके लिए बेमानी हो जाता है। उनके मन में एक ग्लानि का भाव भी आ जाता है। यह लड़का जिसने उनकी पगड़ी उछलने से बचा लिया, जिसने उनका समाजिक और आत्म सम्मान दोनों ही न सिर्फ बचा लिया, बल्कि बढ़ा भी दिया, उस लड़के बारे में वो अभी भी ऐसा सोचते हैं यह सोच कर उनको ग्लानि हुई।

वो कमरे की दीवारों पर समीर और मीनाक्षी की अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के साथ 2 - 3 मढ़ी हुई तस्वीरें लगी देखते हैं। मीनाक्षी ने उन तस्वीरों में पाश्चात्य परिधान पहना हुआ है। ‘कैसी प्यारी सी लगती है वो!’ उसकी मुस्कान देख कर वर्मा जी को अच्छा लगता है। उसकी यह मुस्कान देखे तो एक मुद्दत हो गई है। उनको याद था कि जब उसकी शादी तय हुई थी, तब भी वो ऐसी खुश नहीं थी। बिटिया सब देख रही थी - कैसे उसके पिता का संचित धन उसकी शादी के व्यर्थ के इंतजाम में जाया हो रहा था। वो कैसे खुश होती?

बेटी से जब वो एकांत में पूछते हैं तो बेटी उनके दामाद का ऐसा बखान करती है की मानों मायके में उसको पिंजरे में बंद कर के रखा गया था। फिर उनको लगा कि शायद यह बात सही ही हो - उन्होंने मीनाक्षी को पारम्परिक तरीके से पाल पास कर बड़ा किया है। बस जो बात उन्होंने बाकियों से भिन्न करी वो यह थी कि उन्होंने उसको पढ़ाने लिखाने में कोई कोताही नहीं करी। बाकी संस्कार तो पूरे दिए। खैर, उनकी बिटिया प्रसन्न है! और क्या चाहिए।

समीर की सास के लिए उससे बात करना, वर्मा जी की अपेक्षा ज्यादा आसान साबित हुआ। ‘बेटा तुम अच्छे से हो?’, ‘मेरी बेटी तुम्हारा ख़याल रखती है ठीक से?’, ‘हर काम में दक्ष है। इसलिए निःसंकोच जो चाहिए, उसको बोल दिया करो’, ‘थोड़ा ढंग से खाया पिया करो…. कमज़ोर से लग रहे हो’ वगैरह।

वो स्त्री हैं। उनको समझ आता है अपनी बेटी का हाव भाव। जब मीनाक्षी रह रह कर मुस्कुराते हुए समीर को देखती है, तो वो समझ जाती हैं कि अंततः उनकी बेटी को एक सुखी घर मिल गया है। जब वो समीर को मीनाक्षी का हाथ बँटाते देखती हैं, तो वो समझ जाती हैं कि समीर उनकी बेटी को प्रेम से रखता है। वो देख लेती हैं कि उनकी बेटी स्वस्थ है। उसके चेहरे पर एक नई लालिमा है।

कुछ देर में उनके समधी भी आ जाते हैं।

“माफ़ कीजिएगा भाई साहब! आने में ज़रा देर हो गई। दरअसल पंद्रह अगस्त, दिवाली, और छब्बीस जनवरी को मेरे ऑफिस में मैं दावत का इंतजाम रखता हूँ। बेटे के की शादी के कारण इस बार की दावत थोड़ा ज्यादा हो गई। हा हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!” वर्मा जी समझ गए कि कैसी पार्टी हुई थी।

मीनाक्षी की माँ सब देख रही हैं।

समीर की माँ उनसे मिलने से पहले मीनाक्षी से मिलती हैं। वो उसको गले लगाती हैं, और उसको चूमती हैं। उसके कान में सहेलियों की तरह खुसुर पुसुर करती हैं। मीनाक्षी भी दाँत निकाले अपनी सास की बातों पर अल्हड़ता से हंसती है। यह सब करने के बाद फिर आ कर वो उनसे और उनके पति से मिलती हैं। मीनाक्षी की माँ बिलकुल भी बुरा नहीं मानतीं अगर समीर की माँ उनसे न भी मिलतीं! क्योंकि उनको एक बात का पक्का विश्वास हो गया था -

‘सच में, उनकी बेटी इस घर में बहू नहीं, बेटी ही बन कर आई है!’

थोड़ी ही देर बाद आदेश भी आ जाता है। और घर में हंसी ठहाकों का दौर चलने लगता है।
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रात्रिभोज के बाद वर्मा जी, समीर के पिता से बोले, “भाई साहब, हमारी इच्छा है कि बिटिया को घर लिवा लाएँ। शादी के बाद से आई नहीं।”

“भाई साहब, अब ये तो आप मीनाक्षी बिटिया से ही पूछ लीजिए। वो जैसा चाहेगीं वही होगा। हमारी तरफ से कोई रोक-टोक थोड़े ही है!”

“बोलो बिटिया!”

“पापा, वो मैं.... अभी नहीं।” मीनाक्षी ने तपाक से बोला, “मैं अभी नहीं आ सकती। अभी तो यहाँ का ही सब सेटअप करना है। और नई नई जॉब है।”

पिता के चेहरे पर निराशा देख कर वो आगे बोलती है, “दशहरा या दिवाली पर प्लान करते हैं।”

कह कर उसने समीर की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक नटखटपन था। मिसेज़ वर्मा से वो नटखटपन छुप न पाया। वर्मा जी यह सब नहीं देख पाते। आदेश अपने दोस्त से बतियाने में व्यस्त था। वर्मा जी कुछ बोलने वाले हुए ही थे, कि मिसेज़ वर्मा ने उनको रोक दिया।

“ठीक है बेटा! हाँ, सही बात है अभी कैसे आओगी! जब भी फुर्सत मिले आ जाना। समीर बेटे के साथ।”

वर्मा जी को आश्चर्य हुआ। उनकी ही तरह उनकी पत्नी भी चाहती थीं की मीनाक्षी घर आ जाए, और कुछ समय साथ में बिताए। लेकिन यहाँ तो उसका सुर ही पलट गया।

बाद में जब उन दोनों को कुछ क्षणों का एकांत मिला, तो वो अपने पति से मुस्कुराते हुए बोलीं, “बिटिया को लिवा लाने की बात छोड़ दीजिए। वो बहुत खुश है यहाँ। मैं बताऊंगी आपको बाद में। लेकिन यकीन मानिए मेरा, मीनाक्षी बहुत खुश है।”

खाने के बाद दोनों समधी लोग समीर के पिता जी के यहाँ चले गए। आदेश यहीं रह गया। दोस्त और दीदी के साथ समय बिताने के लिए। तीनों ने कुछ देर तक गप्पें लड़ाईं, लेकिन फिर मीनाक्षी उनींदी हो कर चली गई,

“मैं सोने जा रही हूँ। जब आप दोनों की बातें ख़तम हो जाएँ, तो आ जाइएगा। आदेश, तेरे सोने का इंतजाम बगल वाले कमरे में हैं। किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो बता देना। ठीक है?” जाते जाते वो कहती गई।

“जी दीदी”

आदेश और समीर देर रात तक दोनों बियर की चुस्कियाँ लेते हुए बतियाते रहे।

“भाई, और सुना..” जब आदेश को लगा कि दीदी दो गई होगी, तब उसने समीर से पूछा।

“सब बढ़िया है यार!”

“हाँ! बढ़िया तो लग रहा है। दीदी तो बहुत बढ़िया लग रही है।”

“अरे यार! तेरी बहन को क्या मैं कोई दुःख दूँगा?”

“बिलकुल भी नहीं! ऐसा मैंने कब कहा? यह तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ! अगर मुझे ऐसा कोई भी अंदेशा होता, तो क्या अपनी दीदी की शादी तुमसे कहने को कहता? मैं तो तुम्हारे बारे में पूछ रहा था… कि कहीं दीदी तुमको तंग तो नहीं करती।”

उत्तर में समीर मुस्कुराया।

“हम्म.. लगता है कि नहीं करती। मुझको तो बहुत परेशान करती थी, बाबा! अच्छा खैर... एक बात तो बता... तूने यार कुछ... सेक्स वेक्स किया या नहीं?” आदेश ने दबी आवाज़ में समीर से पूछा।

“अबे तू क्या पूछ रहा है? कुछ प्राइवेसी तो रहने दे!”

“अरे..! तू मेरा भाई है!”

“हाँ.. और मेरी बीवी तेरी बहन है.. वो भी बड़ी!”

“ये तो और भी अच्छी बात है! और इसीलिए तो पूछ रहा हूँ। तू मेरा भाई है.. दोस्त नहीं! इसलिए दीदी के साथ साथ मुझे तेरी ख़ुशी की भी फ़िक्र है!”

“हा हा”

“सच बता यार... तुम दोनों ने अभी तक कुछ किया या नहीं?”
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“नहीं यार.. अभी तक... नहीं। इतना आसान नहीं है यह सब!”

“देख भाई.. तूने उससे शादी करी है। तो...”

आदेश की बात को बीच में ही काटते हुए समीर बोला, “हाँ.. हाँ हमने शादी करी है। लेकिन टाइम चाहिए इन सब बातों के लिए! देखो न, किन हालात में हमारी शादी हुई थी!”

“हम्म। समझता हूँ भाई। सब समझता हूँ। बस पूछ लिया!”

“यार, मैं उसको जानना समझना चाहता हूँ। मैं पहले उसका दोस्त बन जाऊँ, मेरे लिए ये ज़रूरी है। सेक्स तो होता रहेगा।”

“तुझे वो पसंद तो आती है न?”

“न पसंद आती तो शादी करता?”

“नहीं नहीं, मेरा मतलब वैसा पसंद आने से नहीं है। दीदी तुझे सेक्सी तो लगती है?”

“ओह गॉड! मैंने कैसे खुद को रोका हुआ है, मैं ही जानता हूँ!”

“बस भाई तसल्ली हो गई मुझे!” फिर कुछ देर रुक कर, “सोच यार, इंजीनियरिंग के टाइम में हम लोग कैसे सेक्स की बातें कर लेते थे। कितने हल्केपन से... जैसे, कुछ होता ही नहीं! जैसे वो सिर्फ मसाला हो। याद है तुमको? मैं तुझे कहता रहता था, कि मेरा छोटा है.... तो तेरी बीवी की मैं पहले ड्रिलिंग कर दूँगा, मेरे बाद तू बोरिंग कर लियो। लेकिन अब देखो - मेरी अपनी ही दीदी तुमसे ब्याही है। अब लगता है कि ऐसी छिछोरी बातें नहीं करनी चाहिए! नहीं करनी चाहिए थीं।”

समीर मुस्कुराया, “अरे यार, तू भी क्या सोचने में लग गया! इतना मत सोच। वो हमारे लड़कपन के दिन थे। उन दिनों की बातें सोच कर इतना इमोशनल नहीं बनना चाहिए।”

“थैंक यू यार! तू सच्चा दोस्त है! भाई है मेरा! भाई से बढ़कर! आई लव यू!”

“लव यू टू!” समीर मुस्कुराते हुए बोला।

“भाई देख... एक रिक्वेस्ट है। थोड़ा आराम से करना, जब भी करना। तेरा लण्ड बड़ा सा है, और दीदी..... वो भले ही उम्र में बड़ी हैं, लेकिन हैं तो कुँआरी ही न!”

“अबे यार!”

“अबे यार नहीं! समझा कर! और हाँ, अब जल्दी कर लेना। बहुत वेट मत करना। आखिर पति पत्नी हो!”

“साले, अब तू पिटेगा।”

“हा हा.... अरे साला ही तो हूँ मैं तेरा!”

“हा हा.... अरे मेरी बात बहुत हो गई। तू बता, तुझे कोई लड़की मिली अभी तक या अभी तक ऐसे ही है?”

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समीर मीनाक्षी से सम्भोग करने के लिए हमेशा से आतुर था। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वो तैयार नहीं था - पहले प्रेम होता है, फिर संसर्ग! उसका बस यही मानना था। और आज वो मौका आ गया था - इस अवसर के लिए तीन महीने से ऊपर तक उसने इंतज़ार किया था। मन ही मन समीर को कई प्रश्न सता रहे थे.... जैसे कि, क्या मीनाक्षी भी तैयार होगी? क्या वो भी उससे उतना ही प्रेम करती है? क्या वो मेरा लिंग ले सकेगी? उसका शरीर कैसा होगा? उसके स्तन कैसे होंगे? उसके निप्पल मुँह में लेने में कैसे लगेंगे? उसकी योनि कैसी होगी? उसके होंठों का स्वाद कैसा होगा? उसकी योनि का स्वाद कैसा होगा? इत्यादि।

समीर ने इस सुहागरात को ख़ास बनाने के लिए रैडिसन ब्लू में कमरा बुक किया था। होटल स्टाफ को उसने यह ख़ास निर्देश दिया कि डिनर के बाद, रात में साढ़े आठ या नौ बजे, उनको सुहागरात के अनुकूल एक सुसज्जित कमरे में शिफ्ट कर दिया जाए। उसने कह रखा था कि आज उसकी और उसकी पत्नी की पहली रात है। लिहाज़ा यह रात यादगार होनी चाहिए। इसलिए स्पेशल इंतजाम में कोई कोताही न हो।

समीर मीनाक्षी को वो वहां डिनर कराने के बहाने से लाया था। पहले से बता के रखने से संभव था कि वो ना-नुकुर करने लगती। इसलिए आज का प्लान अगर सरप्राइज ही रहे तो बढ़िया था। मीनाक्षी पहले ही थोड़ा ना-नुकुर कर रही थी, ‘फाइव स्टार में जा कर खाना क्यों खाना है? बिना वजह का खर्च! और आज कोई ओकेशन भी तो नहीं है!’ वगैरह वगैरह! बड़ी मुश्किल से समीर ने उसको भरोसा दिलाया कि उसका आज यहाँ डिनर करने का मन था।

होटल की ही अनुशंसा पर उसने डिनर मेनू पहले से ही तय कर के रखा था। उधर मीनाक्षी इस बात पर आश्चर्य कर रही थी कि वो दोनों इतनी देर से टेबल पर बैठे हैं, और अभी तक कोई आर्डर लेने भी नहीं आया! और इधर बिना कोई आर्डर दिए ही एक मल्टी-कोर्स स्प्रेड उसकी टेबल पर सर्व कर दिया जाता है, एक उम्दा वाइन के साथ!

मीनाक्षी समझ जाती है कि यह डिनर उसको सरप्राइज करने के लिए ही समीर ने प्लान किया हुआ था। वो खुश हो जाती है। समीर की यह अदा उसको पसंद है। खाना एकदम लाजवाब था।

डिनर ख़तम होने पर एक वेटर ने समीर से कहा, “सर, योर गिफ्ट इस रेडी! वी होप यू विल लाइक इट वैरी मच!”

मीनाक्षी समझी नहीं कि डिनर के लिए कोई होटल गिफ्ट क्यों देने लगा!

खैर, होटल का अशर समीर और मीनाक्षी को होटल के ऊपरी मंजिल पर बने एक कमरे में ले आया। और दरवाज़ा खोल कर कमरे की पास-की समीर को थमा दी, और ‘शुभ रात्रि’ बोल कर वहाँ से चला गया। होटल स्टाफ ने उनके शयनकक्ष को बहुत शानदार तरीके से सजाया था - पूरे कमरे में फूल ही फूल। बिस्तर पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ। पूरे कमरे में फूलों की ही महक! टी-स्टैंड पर स्पार्कलिंग वाइन की बोतल एक कूलिंग बकेट में रखी थी, और उसके साथ दो वाइन ग्लास रखे हुए थे। दूसरे टी-स्टैंड पर बेल्जियन चॉकलेट का डब्बा रखा हुआ था। कमरे में मूड लाइट्स थीं, और कमरे में पहले से ही एक धीमा, रोमांटिक संगीत बज रहा था। स्टाफ की शरारत थी या कि दूर की सोच, लेकिन वहाँ पर कामसूत्र का एक पैकेट भी रखा हुआ था।

मीनाक्षी जब कमरे में आई तो इस पूरे बंदोबस्त को देख कर दंग रह गई। पहले तो उसको यह सोच कर हैरानी हुई कि वो दोनों एक कमरे में क्यों जा रहे हैं, लेकिन उसने जैसे ही उसने अंदर का नज़ारा देखा, उसको तुरंत सब कुछ समझ आ गया। वो समझ गई कि मिलन के इंतज़ार की घड़ियाँ अब ख़त्म हो गई थीं। वो समझ रही थी कि उसके कौमार्य के दिन में अब बस मिनट ही शेष रह गए थे। लेकिन यह सब देख कर उसको बहुत सुकून हुआ और उसका शरीर रोमांच से भर गया - समीर ने उसके मिलन के इन पलों को यादगार बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। समीर खुद भी अपने प्लान में होटल स्टाफ के सहयोग को देख कर आश्चर्यचकित था। उसको उम्मीद नहीं थी कि वो लोग इतना उम्दा काम करेंगे।

मीनाक्षी ने एक हल्की मुस्कान के साथ समीर को देखा।

“मिनी, मुझे लगता है कि अब हम एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं। शायद यह सही समय है कि हम एक दूसरे को पूरी तरह जान लेने की कोशिश करें!”

समीर की बात सुन कर मीनाक्षी की आँखें शर्म से झुक गईं। वो समझ रही थी कि समीर क्या कह रहा था।

“लेकिन मुझे ख़र्राटे अभी भी आते हैं!”

समीर की बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“नहीं आते हैं! मुझे मालूम है!” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए, शरारत भरी आवाज़ में कहा।

फिर न जाने उसके मन में क्या आया कि वो अचानक ही समीर के पैरों में गिर पड़ी। एक पल को उसको लगा कि मीनाक्षी को शायद चक्कर आ गया। लेकिन जब उसके मीनाक्षी को अपने पैर छूते महसूस किया, तो उसने मीनाक्षी को कंधों से पकड़ कर उठा लिया और कहा,

“अरे! आप यह क्यों कर रही हैं?”

“इसलिए कि मैंने मन से आपको अपना पति माना है!”

“अरे पगली, तो फिर उसके लिए पैर पड़ने की क्या ज़रुरत है? आप तो मेरे दिल की रानी हैं! आपकी जगह मेरे दिल में है! पैर में नहीं! और... वैसे भी आप मुझसे उम्र में बड़ी हैं। उल्टा तो मुझे आपके पैर पड़ने चाहिए।”

इतना सुनते ही मीनाक्षी समीर से लिपट गई।

अलका मीनाक्षी की अनन्य सहेली है, और उसको पता है कि मीनाक्षी शादी होने के तीन महीने बाद भी वो कुँवारी है। यह जान कर अलका को आश्चर्य भी हुआ, और अच्छा भी लगा। आश्चर्य इस बात पर कि मीनाक्षी जैसी सुन्दर लड़की को उसके पति ने तुरंत ही नहीं भोगा। उसमें कितना आत्मनियंत्रण होगा! और अच्छा इस बात पर लगा कि अभी भी समीर जैसे लोग हैं दुनिया में, जो अपनी पत्नी को सिर्फ भोग्या ही नहीं समझते। उसके खुद के पति ने तो उसके साथ अकेलेपन के पहले क्षणों में ही मैथुन कर लिया था। अलका को सम्भोग के वो पल बलात्कार जैसे ही लगे थे। उसकी अपने पति से पहले से कोई जान पहचान तो थी नहीं, और न ही कोई बात चीत। ऐसे में उन दोनों का पहला संपर्क, पहली पारस्परिक क्रिया अगर सम्भोग हो, तो उसको और क्या नाम दिया जाए? वह उस घटना को बस इसलिए बर्दाश्त कर सकी क्योंकि वो दोनों पति-पत्नी थे। नहीं तो न जाने उसके मानस पटल पर कैसा प्रभाव पड़ता! इसलिए वो मीनाक्षी के लिए खुश थी। उसको ऐसा पति मिला था, जो पहले उसका दोस्त, हमराज़, और प्रेमी बनने की कोशिश कर रहा था.... और उसके बाद में उसका पति!
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