Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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ऐसा नहीं है जब पहली रात को ले कर मीनाक्षी के मन में कौतूहल नहीं था। जैसे जैसे वो समीर को और समझती जाती, वैसे वैसे वो यह भी सोचती जाती कि जल्दी ही दोनों का मिलन होगा। वो भी चाहती थी कि वो समीर को वैसा आनंद दे सके, जैसा उसकी इच्छा हो! इसलिए वो जानना चाहती थी कि पति पत्नी क्या क्या करते हैं जब वो साथ होते हैं। जब मीनाक्षी ने अलका से पूछा कि आखिर होता क्या है सुहागरात में तो अलका ने कहा,

‘प्यारी बहना, सुहागरात के उन क्षणों में पति शेर होता है और बेचारी पत्नी बकरी। और तेरा पति तो वैसे भी माशा-अल्लाह एकदम तगड़ा है - शेर के माफ़िक। ऐसे में तुझे कुछ करने, या न करने की क्या परवाह? बस, अपनी टांगें चौड़ी करके लेट जाना - वो जैसा चाहेगा, करेगा!’

‘छीः! कितनी गन्दी है अलका!’

कई जगह उसने पढ़ा है, और कई लोगों से सुना भी है कि स्त्री पुरुष का सच्चा यौन संबंध दो शरीरों का मिलन ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है। शादी की रीतियों से वो दोनों परिणय सूत्र में तो बंध ही गए हैं, और अब जीवन सूत्र में बंधना बाकी रहा है। भगवान की कृपा से वो दिन भी आ ही गया। मीनाक्षी के मन में बहुत दिनों से यही विचार आ रहे थे। और अब जब यह सभी विचार मूर्त रूप ले रहे हैं, तब उसको लज्जा आ रही थी।

एक संछिप्त से आलिंगन के बाद समीर उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गया। खुद बैठ कर उसने मीनाक्षी को अपने पैरों के बीच खड़ा कर लिया। इतने दिनों से खुद पर संयम रखने वाला समीर इस समय अधीर हो रहा था - लग रहा था कि उसको अब किसी भी चीज़ की परवाह नहीं है। मीनाक्षी के दोनों हाथ, अपने दोनों हाथ में लिए उसको कई पल निहारता रहा। मीनाक्षी समझ रही थी कि समीर के मन में क्या चल रहा है। उसको यह भी मालूम था कि आज उसके यौवन का उद्घाटन होने वाला है। फिर उसके मन में थोड़ी सी घबड़ाहठ उठी - कहीं समीर ने उसको पसंद न किया तो? कहीं उसको सम्भोग की मनोवाँछित संतुष्टि नहीं मिली तो?

समीर यह सब नहीं सोच रहा था। मीनाक्षी के सौंदर्य सागर में गोते लगाता हुआ वह वह उसे चूम लेना चाहता था। मीनाक्षी उसके होठों से बस हाथ भर की ही दूरी पर थी। इस समय समीर की मनःस्थिति ऐसी थी कि वो मीनाक्षी को चूमे बिना नहीं रह सकता। मीनाक्षी को चूमना, उसके रूप और मदमाते यौवन का जाम चखने जैसा है। समीर ने मीनाक्षी की ठोढ़ी पकड़ कर उसके होंठों को चूम लिया। मीनाक्षी ने चुम्बन के पूर्वानुमान में अपनी आँखें बंद कर ली थीं; जैसे ही उसके होंठ समीर के होंठों से छुए, दोनों के शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई।

चुम्बन भी एक अद्भुत वस्तु है - चुम्बन की प्रक्रिया में आपका कुछ अंश दूसरे की त्वचा में समां जाता है, सदा के लिए। सदा के लिए इसलिए कहा क्योंकि आप चुम्बन समाप्त हो जाने के बाद भी उसको हमेशा महसूस कर सकते हैं। यह एक चमत्कारिक क्रिया है, जिसमें प्रेम के संकेतों का इतने अंतरंग प्रकार से आदान प्रदान होता है। संभव है कि इसी कारण बहुत सारे लोग चुम्बन करते समय अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। बस एक चुम्बन।

मीनाक्षी की आँखें खुलीं। समीर उसके हाथों को अपने हाथ में ले कर न जाने क्या निरीक्षण कर रहा था।

समीर ने कुछ देर उसके हाथों को देखा और फिर कहा, “नाइस!”

“क्या हुआ?” मीनाक्षी ने कौतूहलवश पूछ लिया।

“आप इसको देख रही हैं? इसको शुक्र पर्वत कहते हैं। माउंट ऑफ़ वीनस। इसका साइज सेक्स संबंधों की क्वालिटी और कैपेसिटी के बारे में बताता है। आपका देखिए - कितना उभरा हुआ है? इसका मतलब समझीं?”

मीनाक्षी ने ‘न’ में सर हिलाया।

“इसका मतलब है कि हमारी सेक्स लाइफ एकदम मज़ेदार, एकदम धमाकेदार होने वाली है!”

“धत्त!” मीनाक्षी शरमा गई।

“अरे! इसमें धत्त वाली क्या बात है? ये… मेरा भी देखिए! आप जैसा ही है! उभरा हुआ। एकदम बढ़िया मेल है हमारा!”

समीर की ऐसी निर्लज्ज बात का मीनाक्षी क्या जवाब दे? वो बस चुपचाप नज़रें झुकाए बैठी रही - अंदर ही अंदर मुस्कुराती रही। समीर ने आज तक किसी भी लड़की के साथ ऐसी बातचीत नहीं करी थी - इंजीनियरिंग कॉलेज में ज्यादा मौका नहीं मिला; और नौकरी लगने के लगभग साथ ही साथ उसकी शादी हो गई। अपनी उम्र के बाकी लड़कों के समान समीर भी मस्तराम जैसे साहित्य और नीले-फीते वाले चलचित्रों से प्रभावित रहा था। उन्ही से मिली सीख के कारण उसको लगता था कि प्रथम मिलन के खेल को देर तक चलाना है - तभी पत्नी उसकी मुरीद बनेगी। और अगर मिलन का खेल खेलना है तो बीवी को भी तो शीशे में उतारना ही पड़ेगा। इतनी अंतरंग बात समीर ने, मीनाक्षी से आज पहली बार करी थी। वैसे भी पति पत्नी में छुपाने जैसा कुछ होना भी नहीं चाहिए।

“लेट अस सेलिब्रेट?” समीर ने शेम्पेन की बोतल निकालते हुए पूछा।

“वाइन नहीं, चाय पियूँगी।”

“अरे! आज की रात चाय! न न न न न न! बिलकुल नहीं.. चाय तो नहीं मिलेगी आज! ये स्पार्कलिंग वाइन है। शेम्पेन! चाय से बढ़िया! बहुत बढ़िया। पी कर बताइए - बढ़िया है या नहीं?”

“अभी कुछ देर पहले ही तो पिया है मैंने! और मत पिलाइए।”

“हम्म.. ओके!”

समीर ने उठ कर संगीत की आवाज़ थोड़ी बढ़ाई। वाइन ग्लास में शेम्पेन भर कर चुस्कियाँ लेते हुए संगीत की ताल पर उसने मीनाक्षी की तरफ कदम बढ़ाए। मीनाक्षी मुस्कुराते हुए अपने पति को देख रही थी।

‘आज न जाने क्या क्या बदमाशियाँ करने वाले हैं!’

एक हाथ में वाइन लिए समीर से दुसरे हाथ से मीनाक्षी को बिस्तर पर लिटाया और धीरे धीरे उसके कुर्ते के बटन खोलने लगा। एक हाथ से बटन खोलना आसान है, लेकिन एक हाथ से कुर्ते को उतारना बहुत मुश्किल काम है। मीनाक्षी को समीर का मंतव्य समझ में आ रहा था। लेकिन वो अपने खुद के ही चीर-हरण में बढ़ चढ़ कर हिस्सा नहीं लेना चाहती थी। एक तो उसको शरम आ रही थी, और दूसरा वो इस बात से झिझक रही थी कि न जाने समीर क्या सोचे!
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Rohit Kapoor
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समीर स्टाइल मारने के चक्कर में वाइन ग्लास छोड़ नहीं रहा था। वैसे उसको समझ में आ गया था कि मीनाक्षी का कुर्ता ऐसे एक हाथ से ही तो उतरने वाला नहीं था। फिर उसको ख़याल आया कि अपनी बीवी को उसने ढंग से चूमा तक नहीं है। यह ख़याल आते ही उसने मीनाक्षी के अधरों पर एक बार और चुम्बन जड़ दिया। मीनाक्षी भी उसको चूमना चाहती थी, लेकिन झिझक के कारण वो पहल नहीं कर पा रही थी। समीर कभी उसके होंठों को चूमता, तो कभी चूसने लगता। कभी वो उसके गालों को चूमता, तो कभी गले को। प्रत्युत्तर में मीनाक्षी कसमसाती हुई बस उम्… उम्… ही कर रही थी। उससे जैसा बन पड़ रहा था, समीर को चूम रही थी।

उत्तेजना में समीर का खाली हाथ मीनाक्षी के स्तनों पर भी फिरने लगा। समीर की इस हरकत ने मीनाक्षी की कामेक्षा जगाने के लिए एक स्विच का काम किया - उसको अपनी जाँघों के बीच कुछ कसमसाहट सी, कुछ गीलापन सा महसूस होने लगा। जब समीर उसके स्तनों को दबा कर उनका जायज़ा ले चुका, तब वो नीचे झुक कर वक्ष-विदरण में अपना मुँह डाल कर चूमने लगा। यह सब मीनाक्षी के लिए बिलकुल अनूठा अनुभव था - उसको उम्मीद ही नहीं थी कि यह सब करने में इतना आनंद आ सकता है। मीनाक्षी के कंठ से मीठी सिसकियाँ निकलने लग गई।

फिर उसका हाथ मीनाक्षी की पीठ पर आ गया, और कुर्ते के अन्दर हाथ डाल कर उसकी पीठ को सहलाने लगा।

“मिनी?”

“हम्म?”

“मेरे पास आपके लिए कुछ है।”

कह कर समीर मीनाक्षी के ऊपर से हट गया। सच कहें तो मीनाक्षी का मन समीर से अलग होने को बिलकुल भी नहीं हुआ। लेकिन उसने धीरज रखा और समीर क्या दिखाने वाला था, उसका इंतज़ार लगी। समीर ने कमरे की अलमारी में रखी सेफ खोली, और उसमे से एक सुनहरे रंग का मखमली बटुआ निकाला। प्लान के मुताबिक समीर ने यह पहले ही होटल के सुपुर्द कर दिया था। बिस्तर पर वापस आ कर उसने उस बटुए में से सोने की एक लम्बी जंजीर निकाली - साधारण सा डिजाइन था - लम्बी जंजीर और उसके बीच में पतली जंजीरों की तीन लड़ियाँ। उसकी बनावट देख कर लग रहा था कि वो एक करधन है।

समीर ने मीनाक्षी के कुर्ते को थोड़ा ऊपर करके उसकी कमर पर वो करधन बांध दी। फिर उसकी नाभि के नीचे वाले हिस्से पर एक चुम्बन लेते हुए बोला, “अगर आप यह (कुर्ते को पकड़ कर) निकाल दें, तो आपकी कमर से इस करधन की लटकन बहुत सुन्दर लगेगी।”

मीनाक्षी अच्छी तरह समझ रही थी कि समीर क्या चाहता था। वो चाहता तो खुद ही मीनाक्षी के कपड़े उतार सकता था, और वो उसको मना न करती। बिलकुल भी मना न करती। लेकिन समीर चाहता था कि इस खेल में मीनाक्षी की भी बराबरी की हिस्सेदारी हो। लेकिन मीनाक्षी तो आज शर्मीली दुल्हन जैसा ही बर्ताव करना चाहती थी। वो चाहती थी कि पहली बार समीर ही उसको निर्वस्त्र करे। मीनाक्षी बहुत हलके से मुस्कुराई और फिर उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए। इशारा समझते हुए समीर ने बिना कोई देर किये उसके कुर्ते को निकाल फेंका।

मीनाक्षी वैसे तो रोज़मर्रा पहनने वाली कॉटन की सफ़ेद ब्रा पहनती थी, लेकिन आज उसने न जाने क्या सोच कर काले रंग की लेस वाली ब्रा पहनी हुई थी। उसके शरीर के रंग और आकार पर वो काले रंग का छोटा सा वस्त्र वाकई कामुक लग रहा था। मीनाक्षी को लगा कि समीर की तवज्जो पा कर उसके स्तन थोड़े भारी से हो गए थे। शर्म से उसने अपनी आँखें बंद कर ली। स्तनों के बीच फँसा हुआ उसका मंगलसूत्र उसकी नग्नता को और भी कामुक बना रहा था।

स्वयं रति का रूप इस समय धीरे धीरे अनावृत हो रही थी, और समीर पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था। कामावेश से अधीर हो कर समीर ने मीनाक्षी को अपने सीने से लगा लिया। वो कभी उसको चूमता, तो कभी चूसता और साथ ही साथ उसकी पीठ को सहलाता। मीनाक्षी का शरीर एक अनूठे रोमांच में डूबने लगा।

“मिनी, मेरी जान! अपनी आँखें खोलो ना।” समीर ने उसकी ठोड़ी छूते हुए कहा।
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मीनाक्षी क्या विरोध करती? और क्यों करती? उसने अपनी आँखें खोल दीं। समीर के आलिंगन में वो पहले ही समाई हुई थी। इसी कारण मीनाक्षी को पता ही नहीं चला कि उसकी ब्रा का हुक कब खुल गया। मालूम पड़ता भी, तो भी वो क्या करती? आज की रात, और अब आगे आने वाली अनेक रातों में विरोध करने जैसा कुछ नहीं। जैसे ही आलिंगन थोड़ा ढीला हुआ, समीर ने मीनाक्षी की ब्रा खींच कर उसके शरीर से अलग कर दी। नग्नता का प्रदर्शन होने से पहले ही मीनाक्षी ने मारे शर्म के अपने स्तनों को अपनी बाहों में भींच लिया। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

‘बदमाश कहीं के!’

समीर ने उसकी हथेलियां हटाने का कोई प्रयास भी नहीं किया। बस, उसके स्तनों के खुले हुए गोलार्धों को बारी बारी से चूमने लगा। उसके चुम्बनों से मीनाक्षी के निप्पल कड़े हो कर उसकी हथेलियों में चुभने लगे। मीनाक्षी को लगता था कि उसको अपने शरीर के बारे में सब मालूम है। लेकिन समीर की हरकतों से उसको अपना एक अलग, एक नया ही रूप देखने और महसूस करने को मिल रहा था। उसकी योनि में आग सी लग गई।

‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।’

इन विचारों में खोई हुई मीनाक्षी के हाथ कब अपने स्तनों से हट गए, उसको पता ही नहीं चला। समीर ने आज पहली बार किसी लड़की के स्तन वास्तविकता में देखे थे। एक बात उसने तुरंत देखी और वो यह कि मीनाक्षी के शरीर में यौवन की समुचित कसावट थी - वो न तो पतली थी, और न ही मोटी। एक सुन्दर, स्वस्थ शरीर! कसावट के साथ साथ उसके शरीर में स्त्र्योचित कोमलता भी थी। समीर ने मन भर कर मीनाक्षी के नग्न स्तनों को देखा - उसके अनुमान में मीनाक्षी के स्तन 34C साइज के होंगे। सुन्दर गहरे, लाल-भूरे रंग (टेरा रोज़ा रंग) के निप्पल मीनाक्षी के स्तनों की शोभा बढ़ा रहे थे। उनका इस समय बस एक ही उपयोग हो सकता था - उनको चूसना!

मीनाक्षी को अपने स्तनों की नितांत नग्नता का पता तब चला जब समीर उसका दाहिना निप्पल अपने मुँह में ले कर चूसने लगा। मीनाक्षी की एक मीठी किलकारी निकल गई। मीनाक्षी ने अपनी सुहागरात की परिकल्पना करी थी; लेकिन जो यह सब हो रहा था वैसे तो उसने कभी सोचा ही नहीं था। समीर मग्न हो कर बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को पी रहा था। चूचकों से रोमाँच की ऐसी तरंगें निकल रही थीं जो मीनाक्षी के पूरे अस्तित्व को कम्पित कर दे रही थीं। इतने में ही मीनाक्षी की पूरी देह लहरा कर काँपने लगी। उसकी योनि में से रति-निष्पत्ति का मधु बह निकला। लेकिन समीर इस बात से पूरी तरह से अनजान था। मीनाक्षी भी नहीं समझ सकी कि उसको क्या हो गया - उसको एक अद्भुत आनंद की अनुभूति तो अवश्य हुई, लेकिन वो अनुभूति क्या थी और क्यों थी, उसको कुछ समझ नहीं आई। उधर समीर का सारा ध्यान स्तनपान के आनंद पर केंद्रित था। मीनाक्षी भी आज समीर को अपना सर्वस्व देने को तत्पर थी। समीर तभी रुका, जब उसका मन भर गया।

मीनाक्षी ने देखा कि उसके स्तनों का रंग और रूप दोनों ही बदल गया था। दोनों स्तनों पर चूसने, चूमने और काटने के निशान स्पष्ट दिख रहे थे। चूचकों का रंग गहरा हो गया था और दोनों चूचक उत्तेजनावश एक एक इंच लम्बे हो चले थे। लेकिन फिलहाल इस बात की शिकायत करने का कोई मतलब नहीं था। सम्भोग तो होना अभी बाकी ही था।

मीनाक्षी ने चूड़ीदार शलवार पहना हुआ था। जाहिर सी बात थी कि अगली बारी शलवार की थी। मीनाक्षी को इस बात पर अधिक आश्चर्य हो रहा था कि वो समीर के सामने समुचित नग्नावस्था को प्राप्त थी, लेकिन उसको जितनी शर्म आनी चाहिए थी, उतनी आ नहीं रही थी। खैर, समीर ने बिना देर लगाए उसकी शलवार का नाड़ा ढीला कर के शलवार को नीचे की तरफ खिसका दिया - ऐसा लगा कि वो मीनाक्षी को किसी भी तरह का विरोध करने का मौका नहीं देना चाहता हो।

शादी को ले कर मीनाक्षी ने नए नए वस्त्र खरीदे थे - जाहिर है कि उसके अन्तः वस्त्र भी नए ही थे। मीनाक्षी की पैंटी थी तो कॉटन की, लेकिन बहुत पतले कपड़े की थी। अलका ने ज़बरदस्ती कर के ख़रीदवाई थी ऐसी ही तीन जोड़ी पैंटी। बोली कि मीनाक्षी ‘माल’ लगेगी उसको पहने हुए। कैसा संयोग है, शादी के बाद आज ही पहली बार उसने उन अधोवस्त्रों को पहना, और आज ही उसका पति उसको निर्वस्त्र कर रहा है! समीर ने कुछ सोचा नहीं - उसका एक हाथ मीनाक्षी की जाँघों के बीच में योनि को छेड़ने लगा। इतनी पतली पैंटी में दिक्कत यह है कि वो हमेशा पारदर्शी ही रहती है - चाहे सूखी हो, चाहे गीली। और अगर एक बार काम-रस निकल गया हो, जैसा कि मीनाक्षी के साथ हुआ, तो योनि की सारी बनावट दिखने लगती है। उस समय भी यही हो रहा था - मीनाक्षी की योनि के दोनों होंठ साफ़ दिखाई दे रहे थे। पैंटी होने या होने का क्या फायदा जब उसकी सामने वाली पट्टी, उन दोनों होंठों के बीच धंस जाए!

समीर की छेड़खानी बढ़ती जा रही थी - उसके होंठ मीनाक्षी को चूमने में, एक हाथ उसके स्तन को दबाने कुचलने में, और दूसरा हाथ उसकी योनि को छेड़ रहा था। बीच बीच में कभी वो एक निप्पल मुँह में भर लेता, तो कभी दूसरा मुँह में लेकर चूसने लग जाता। उसके हाथों की छेड़खानी से ना सोचते हुए भी मीनाक्षी की जांघें खुद ब खुद खुलने लगी। जब समीर का हाथ उसकी योनि के चीरे पर पड़ा, तब जा कर मीनाक्षी को समझा कि वो अब समीर के सामने पूरी तरह से नंगी पड़ी है।

उसने थोड़ा चैतन्य हो कर अपने चारों तरफ का जायज़ा लिया - वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी; पूर्णतया नग्न थी; उसके सारे कपड़े कमरे में इधर उधर इस प्रकार फैले हुए थे जैसे वो कोई फ़ालतू चीज़ हों।

‘आज सचमुच में मेरा ‘मिस’ वाला स्टेटस गया’ यह सोच कर मीनाक्षी ने खुद को थोड़ा संयत करते हुए, खुद को अपने निकट भविष्य के लिए तैयार कर लिया। समीर उसके होंठो पर लम्बा लम्बा चुबन देते हुए चूसने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वो मीनाक्षी के होंठों को ही नहीं, बल्कि उनकी लालिमा को भी चूस लेना चाहता हो।

इस फोरप्ले के दौरान न जाने क्यों, मीनाक्षी को अपने और समीर के बीच के उम्र के फासले का ध्यान हो आया। समीर उससे कोई नौ साल छोटा था; और आदेश आठ साल! मीनाक्षी को याद हो आया कि वो आदेश के बचपन में उसकी देखभाल ऐसे करती थी जैसे कि वो खुद उसकी माँ हो। और आदेश भी उसको अक्सर माँ जैसा ही मान और प्यार देता था। उसके छुटपन में मीनाक्षी ने न जाने कितनी ही बार उसकी तेल-मालिश करी, और उसको नहलाया, धुलाया। उस समय की बात याद आ गई - कैसे वो आदेश के नन्हे से छुन्नू से खेलती थी, उसको चुम्मियाँ देती थी। समीर का छुन्नू कैसा होगा? समीर तो आदेश से भी एक साल छोटा है। लेकिन देखो, कैसे उस पर अपना अधिकार जता रहा है! न उसकी उम्र का लिहाज़, और न ही कोई वर्जना। और समीर यह सब सोचे भी क्यों? आख़िर उसका पति जो ठहरा!
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