Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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उसके होंठों पर अपने होंठ रखे हुए समीर ने अपने दोनों हाथ उसके स्तनों पर जमा लिए। मीनाक्षी को पुरुषों में मन में स्तनों के लिए होने वाली आसक्ति का ज्ञान था। घर के बाहर वो जब भी निकलती थी, वो देखती थी कि कैसे पुरुषों की आँखें उसकी छातियों पर चिपकी हुई रहती थीं। कैसे राह चलने वाले जवान, अधेड़ और बूढ़े लोग या तो चोरी छुपे, या पूरी निर्लज्जता से उसके और अन्य लड़कियों और महिलाओं के शरीरों की वक्रताओं की नाप-जोख करते रहते थे। उनकी नज़रें अपने शरीर पर चिपकी महसूस करके मीनाक्षी को बहुत घिनौना लगता था - लेकिन समीर इस समय जो कुछ भी कर रहा था, उसको बहुत अच्छा लग रहा था। अच्छा ही नहीं, वह चाहती थी कि समीर उसको ऐसे देखे, और यही सब करे। प्रेम और गन्दी वासना में शायद यही अंतर है।

मीनाक्षी ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं, और खुद को चादर से ढक लिया। समीर ने उस चादर को हटा दिया। लेकिन लज्जा के मारे मीनाक्षी ने अपनी छाती पर अपने हाथ आड़े तिरछे रख लिए। समीर उसके दोनों हाथों को हटा कर मन्त्र-मुग्ध होकर उसके शरीर को देखने लगा।

जब समीर अपनी सुहागरात की कल्पना करता, तो उसमे उसकी पत्नी पूर्ण नग्न अवस्था में होती - न तो वस्त्र का एक भी धागा होता, और न ही कोई आभूषण। और तो और वो तो अपनी पत्नी की योनि भी पूरी तरह से क्लीन-शेव्ड हुई सोचता था। लेकिन मीनाक्षी की वैसी अवस्था नहीं थी। उसके शरीर पर कपड़े तो खैर नहीं थे, लेकिन आभूषण थे - उसने मंगलसूत्र पहना हुआ था, छोटी सी बिंदी लगाई हुई थी (जो अपनी जगह से खिसक गई थी), उसने नाक की कील और कानों में बालियाँ पहनी हुई थीं। सुहाग की लाल चूड़ियाँ उसकी कलाइयों की शोभा बढ़ा रही थीं, उँगलियों में अँगूठी, और पैरों में पायल, और उनकी उँगलियों में बिछिया। अभी अभी समीर ने जो करधन पहनाई वो भी थी। और उसकी योनि पर बाल भी थे। कल्पना से इतनी भिन्न अवस्था के बाद भी मीनाक्षी इस समय जैसे साक्षात् रति का ही अवतार लग रही थी।

कुछ देर ऐसे ही मीनाक्षी को देखने के बाद वो कांपते हुए स्वर में बोला,

“तुम कितनी खूबसूरत हो, मीनाक्षी!”

पहले ही वो शर्मसार हो रखी थी, लेकिन अपने सौंदर्य की बढ़ाई सुन कर उसके पूरे शरीर में लज्जा की एक और लालिमा चढ़ गई। मीनाक्षी ने करवट बदलकर खुद को छुपाते हुए कहा, “क्या सुन्दर है मुझमें?”

“तुम्हारा रंग…” समीर की आवाज़ में अब उत्तेजना सुनाई देने लगी थी।

“ऐसा कोई गोरा रंग तो नहीं है…” वो बोली।

“इसीलिए तो सुन्दर है..” फिर कुछ रुक कर वो आगे बोला, “तुम्हारा पूरा शरीर ही गज़ब का है! कैसी सुन्दर, कैसी चिकनी स्किन... कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं! … और कितने सुन्दर स्तन हैं तुम्हारे (वो बूब्स कहना चाहता था)! बहुत सुन्दर! गोल गोल और… सॉफ्ट! और ये निप्पल तो देखो! आह! इतने सुन्दर मैंने पहले कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”

कहते हुए उसने मीनाक्षी के स्तनों को बारी बारी चूम लिया। फिर उसने वाइन ग्लास से बूँद बूँद कर मीनाक्षी के स्तनों पर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा। उसके इस खेल पर मीनाक्षी को हंसी आ गई,

“इससे वाइन का स्वाद बढ़ गया क्या?”

“हाँ..”

“ह्म्म्म..”

उसके बाद समीर वाइन को मीनाक्षी के पूरे शरीर - स्तनों, पेट, पेडू, पर डाल कर चाटने लगा। सच में, मीनाक्षी के सौंदर्य में घुल कर वाइन और भी शराबी हो गई और समीर पर उन्मादक मदहोशी सी छाने लगी। उधर मीनाक्षी समीर के बालों में उंगलियाँ डाले आनंद लेने लगी। समीर ने अपनी उंगली से उसके चूचकों को कोमलता से स्पर्श किया, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी की चोंच के समान सहलाया और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में लेकर जी भर चूसा। मीनाक्षी के दोनों निप्पल इस समय सतर्क द्वारपालों जैसे सावधान मुद्रा में खड़े हुए थे।

“तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद ‘चेरी’ खानी चाहिए?”

“अच्छा? मुझे नहीं मालूम... लेकिन यहाँ ‘चेरी’ तो नहीं है…” मीनाक्षी समझ रही थी कि वो शरारत कर रहा था।

“अरे है तो! ये (उसने मीनाक्षी के निप्पलों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”

“हा हा! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”

“हाँ! इतने स्वादिष्ट जो हैं! अब से ये मेरे! वादा करो - जब इनसे दूध निकलेगा न, तब तुम मुझे जी भर के पीने दोगी?”

“धत!” मीनाक्षी इस बात पर बुरी तरह शरमा गई।

“अरे! धत क्यों?”

“दूध तो बच्चे पीते हैं”

“दूध बच्चे पीते हैं, तभी तो वो तगड़े आदमी बनते हैं! और आदमी इसलिए पीते हैं, कि वो तगड़े बने रहें!”

“हा हा! ठीक है बाबा - मेरे तगड़े आदमी - आपका जब मन करे, जितना मन करे, पी लीजिएगा।”

..................

समीर ने कुछ देर मीनाक्षी के स्तनों को पिया, और फिर धीरे धीरे स्तनों और पेट का चुम्बन करते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों तक आ गया। मीनाक्षी ने सख्ती से अपनी दोनों जांघें जोड़ी हुई थीं। उनको समीर ने अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए कहा,

“अपना स्वाद लेने दो!”

“छी! नहीं..!” मीनाक्षी ने वापस अपनी जांघें आपस में भींच लीं।

“क्यों?”

“अरे! कितना गन्दा काम है!”

“गन्दा काम! अरे देखो तो! कितनें सुन्दर हैं तुम्हारी चूत के होंठ! इनके अन्दर अमृत भरा हुआ है… प्लीज़ मुझे पीने दो!”

‘चूत? ये तो गाली होती है!’ मीनाक्षी ने सोचा। उसको थोड़ा बुरा सा लगा, लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं करी।

समीर ने इस बार धीरे धीरे उसकी जाँघों को अलग किया। मीनाक्षी ने इस बार विरोध नहीं किया, लेकिन उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। उत्तेजनावश उसकी योनि में से पहले ही काम-रस रिस रहा था। समीर ने मीनाक्षी की योनि में अपने मुँह को पूरी तरह से अन्दर डाल दिया और मन भर कर उसका रस पीने लगा। कुछ देर में उसने मीनाक्षी का सारा अमृत पी लिया..

‘ओह कैसी प्यास!’

मीनाक्षी आँखें बंद किये इस अनोखे अनुभव को जी रही थी.. उसको नहीं मालूम हुआ कि उसका योनि रस-पान करते हुए समीर ने खुद को पूरी तरह से अनावृत कर लिया।

“आँखें खोलो मिनी.. मुझे देखो!”

मीनाक्षी ने आँखें खोलीं। सामने का दृश्य देख कर वो एक पल को डर गई। उसने सुना तो था कि मर्दों का पुरुषांग, बच्चों के अंग से बड़ा होता है, लेकिन ऐसा…? उसको आदेश के छोटे से लिंग की याद आ गई।

‘कितना मुलायम सा, कितना छोटा सा था आदेश का छुन्नू! लेकिन ये? यह तो जैसे राक्षस की प्रजाति का है!’

लगभग सात इंच लम्बा, और कोई दो इंच मोटा! पूरी तरह उन्नत।

‘और उसकी नसें! बाप रे! कैसा डरावना अंग!’

और यह अंग उसके भीतर जाने वाला था। इसको वो अपने भीतर महसूस करने वाली थी। समीर इसके द्वारा उसको भोगने वाला था। भय और लज्जा से उसने फिर से अपनी आँखें मूँद लीं। समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया।
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Rohit Kapoor
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“डरो मत! इसको मन भर कर महसूस करो.. आज से यह तुम्हारा है!”

स्वतः प्रेरणा से मीनाक्षी ने अपनी हथेली समीर के लिंग पर लिपटा ली। उसके हाथ अभी भी कांप रहे थे।

“क्या हुआ मिनी?”

“हे भगवान! कितना बड़ा है यह!” मीनाक्षी मंत्रमुग्ध सी और डरी हुई समीर के लिंग को स्पर्श कर रही थी... “मेरे अंदर तो यह बिलकुल भी फिट नहीं हो सकता।” वह बेसुध सी हो कर कुछ भी बोल रही थी – संभवतः उसको ध्यान भी न हो।

“ऐसे मत कहो! इसको ठीक से देखो और महसूस करो... इतना डर नहीं लगेगा! आँखें खोलो... ये देखो..” कह कर समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग की पूरी लम्बाई पर फिराया।

“ठीक से महसूस करो... इसको ऐसे दबाओ (समीर ने मीनाक्षी की हथेली से अपने लिंग को दबाया).. अपने गालों से लगाओ (उसने लिंग को मीनाक्षी के गाल पर फिराया).. सीने से लगाओ (उसने मीनाक्षी के दोनों स्तनों के बीच में अपने लिंग को टिकाया और स्तनों से ही दबाया)... मुँह में लो.. (उसने लिंग को उसके होंठों पर फिराया) आनंद लो!”

मीनाक्षी के चेहरे पर घबराहट और संकोच साफ़ दिख रहे थे, लेकिन इस समय वह उत्सुकता के वशीभूत थी। अपने पति को अपना सर्वस्व सौंपने की इच्छा उसमें बलवती थी। उसकी उँगलियों ने समीर के लिंग को पहले हल्के से छुआ और फिर दबाया,

“कितना कड़ा है, लेकिन फिर भी कितना सॉफ्ट!” उसने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, “और कितना गरम भी” यह सब मीनाक्षी के लिए एकदम नया था। कामुक कौतूहल ने उसकी वर्जनाओं का बाँध तोड़ दिया था।

समीर ने प्यार से मीनाक्षी के सीने पर हाथ फिराया। उसकी इस हरकत पर मीनाक्षी की आँख फिर से बंद हो गई... समीर ने उसकी बंद आँखों पर चूम लिया, फिर उसके गालों पर.. मीनाक्षी अब पूरी तरह से तैयार थी, इतना तो दोनों को ही मालूम था। वैसे दोनों ही इस रात के आरम्भ से ही सम्भोग के लिए पूरी तरह से तैयार थे। वो तो समीर ने इतनी देर तक अपने आप पर संयम बनाए हुए रखा था। लेकिन अब उससे भी रहा नहीं जा रहा था। उसने अपने लिंग की त्वचा को पीछे की तरफ खींच कर लिंग का शिश्नमुण्ड खोल दिया, और उसको मीनाक्षी के योनि-द्वार पर छेड़ते हुए चलाने लगा। कामोन्माद के मारे मीनाक्षी छटपटा रही थी। वासना की ज्वाला अब उसको कष्ट देने लगी थी। उसने आँखें खोल कर समीर को देखा.. और वो, बस मुस्कुराया।

फिर आगे जो हुआ वो बहुत अप्रत्याशित था! उसने दोनों हाथों से मीनाक्षी की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।

“बोलो.. क्या चाहती हो?” उसने मीनाक्षी को छेड़ा।

कामोद्दीपन के चरम पर पहुँच कर मीनाक्षी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसका पूरा शरीर वासना के अधीन हो कर कांप रहा था। एक सुन्दर सी लालिमा उसके पूरे शरीर पर फ़ैल गई थी। वो चाह रही थी कि कह दे समीर से कि वो उसको भोगना शुरू करे। आखिर कितनी देर वो इंतज़ार करे? लेकिन वो कुछ कह नहीं पाई।

“बताओ.. क्या चाहती हो?” समीर ने फिर कुरेदा।

मीनाक्षी अभी भी कुछ नहीं कह रही थी। बस अपने सर को धीरे धीरे, दाएँ बाएँ हिला रही थी। उसकी योनि ऐसी तरंगें छोड़ रही थी कि अब वो बेबस हुई जा रही थी। उसको मालूम ही नहीं था कि उसका शरीर ऐसे अजायब हरकतें कर सकता है।

"देर सही नहीं जा रही है क्या?" समीर ने कुछ और छेड़ा।

‘अरे इसको मेरे मन की बात कैसे पता चली?’

इस पूरे दरम्यान समीर उसकी योनि को छेड़ता रहा।


वाकई मीनाक्षी से देर सही नहीं जा रही थी। लेकिन, कैसे कह दे मीनाक्षी समीर से कि देर नहीं सही जा रही है! यह सब कहना तो उसने कभी सीखा ही नहीं। उसको तो सच कहो तो अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि उसका अपना शरीर इस समय उसके अधीन क्यों नहीं है। क्यों वो समीर की ताल पर नाच रही है? समीर, जो उसके सामने बच्चा है! समीर, जो उसका पति है! समीर, जो उसका सबसे अच्छा दोस्त है! समीर, जो उसका अंतरंग प्रेमी है! समीर, जो उसकी होने वाली सन्तानो का पिता भी है! दाम्पत्य की सीढ़ी के इस पहले पायदान पर पैर रखने में समीर ने कितना धैर्य रखा! उसकी सहेलियाँ मीनाक्षी को कहतीं कि वो बहुत लकी है। उनके पतियों ने तो पहली रात में ही उनको भोग लिया था - न उनकी मर्ज़ी की परवाह करी और न ही उनके दर्द की!

और समीर! उसने पति बनने से पहला उसका दोस्त बनना ठीक समझा। वो उसका सहारा बना। उम्र में इतना फासला होते हुए भी वो उसका गार्जियन है! और आज जब वो मीनाक्षी को पूरी तरह से अपनी बना लेना चाहता है, तो वो भी तो यही चाहती है! अब समीर के प्रश्न पर वो क्या बोले? लड़कियाँ यह सब कैसे कहें! लज्जा की चादर ने उसको पूरी तरह से ढँक लिया था। वो देख रही थी.. समीर की आँखों में अपने लिए प्यास! उसके होंठों पर अपने लिए प्यास!

समीर ने अपना लिंग मीनाक्षी की योनि पर टिकाया - वो इतना कड़ा था कि मीनाक्षी को समीर का लिंग चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। दोनों की ही साँसें बहुत तेज़ हो रही थी। दोनों ही जानते थे कि पूर्ण मिलन के क्षण आने ही वाले थे। आदि काल से चली आ रही इस क्रिया के शुरू होने में अब देर नहीं थी।

“मीनाक्षी…?”

“हम्म?”

“कुछ बोलो?”

मीनाक्षी का मन हुआ कि वो ज़ोर से हँसे। वो समझ रही थी कि समीर चाहता था कि वो अपने मुँह से उसको अपने से सम्भोग करने को कहे। चाहती तो वो भी थी यह कहना, लेकिन चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाई। उसके होंठ कांप रहे थे, आँखें बंद हो रही थीं, और दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। वो कुछ कह तो नहीं सकी, लेकिन उसने समीर को अपनी बाहों में ज़ोर से कस लिया। समीर को संकेत मिल गया था।

“शायद थोड़ा सा दर्द होगा... लेकिन तुम सह लेना?”

मीनाक्षी ने उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया और प्रहार के लिए तैयार हो कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। समीर ने भी बिना और देर किये अपने लिंग को मीनाक्षी की योनि में ठेल दिया। मीनाक्षी को समीर का मोटा सा लिंग अपने अंदर धंसता हुआ महसूस हुआ - उसको लगा जैसे उसकी योनि-छल्ले के ऊतक फट गए हों - जैसे अनगिनत चीटियों ने एक साथ ही उसकी योनि को काट खाया हो। तीस वर्षों तक अभेद्य रहे मीनाक्षी के कौमार्य को समीर ने अब जीत लिया था। सरसराता हुआ उसका लिंग मीनाक्षी की चिकनी, संकरी सुरंग को रौंदता हुआ योनि के अंदर तक समां गया। मीनाक्षी के गले से चीख निकल गई।

उसकी जैसे साँसें ही जम गई थी; वो दर्द से बिलबिला उठी और समीर की बाहों में कसमसाने लगी। उसको अनुमान था कि दर्द होगा, लेकिन इतना होगा- इस बात का अंदाजा नहीं था। शरीर के भीतर तो कुछ अंदाजा लगता भी नहीं। मीनाक्षी को लगा कि समीर का लिंग उसकी नाभि तक आ गया है। उसका सात इंच लम्बा लिंग पूरी तरह से मीनाक्षी के अंदर तक पैवस्त था। दरअसल मीनाक्षी को जो दर्द हो रहा था वो मन के नहीं, बल्कि शरीर के विरोध के कारण था। उसकी आँखों से आँसू की कुछ बूँदें उसके गालों पर लुढ़क आई।
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अलका ने बताया था कि कौमार्य भेदन के बाद ही सम्भोग का असली आनंद आता है। मतलब, जो बुरा होना था, वो हो चुका। अब वो इस क्षणिक दुःख दर्द को भूल कर उन्मुक्त भाव से सम्भोग के सुख को भोगना चाहती थी। समीर उसको चूमते सहलाते हुए कह रहा था,

“बस बस… हो गया… हो गया… शायद अब और दर्द नहीं होगा।”

यह कह कर समीर ने धक्के लगाने शुरू कर दिए। हर धक्के के साथ मीनाक्षी की जाँघें और खुलती जातीं और अंततः उतनी खुल गईं, जितना कि वो खोल सकती थी। कुछ देर के बाद, समीर ने धक्कों की गति कुछ और बढ़ा दी। मीनाक्षी का दर्द पूरी तरह ख़त्म तो नहीं हुआ, लेकिन कम ज़रूर हो गया था। समीर मीनाक्षी को पूरी तरह भोग रहा था - उसके स्तनों को अपने हाथों से; उसके होंठों को अपने होंठों से; और उसकी योनि को अपने लिंग से। मीनाक्षी पुनः रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच गई थी और उसकी देह कांपने लगी।

“आह….”

उधर समीर लयबद्ध तरीके से धक्के लगाए जा रहा था। साथ ही साथ मीनाक्षी को चूमता भी जा रहा था। उसने महसूस किया कि मीनाक्षी की साँसे उखड़ने लगी और देह थिरकने लगी। मीनाक्षी ने महसूस किया कि पहले जैसा ही, लेकिन अधिक तीव्रता से उसकी योनि में उबाल आने लगा। कामोद्दीपन के शिखर पर पहुँच कर कैसा महसूस होता है, आज उसको पहली बार महसूस हुआ था। वो छटपटाने लगी और उसकी योनि से कामरस छूट गया। मीनाक्षी ने समीर के होंठों को अपने मुँह में ले लिया, और उसकी कमर को अपनी टांगों में कस लिया। स्खलन के साथ ही मीनाक्षी की आहें निकलने लगी - आज अपने जीवन में पहली बार वो इस निर्लज्जता से आनंद ले रही थी। मीनाक्षी ने महसूस किया कि सम्भोग में वाकई पर्याप्त और अलौकिक सुख है। विवाहित जीवन अगर ऐसा होता है, तो वो सदा विवाहित रहना चाहेगी!

उधर समीर भी कमोवेश इसी हालत में था। वो जल्दी जल्दी धक्के लगा रहा था। उसकी साँसें और दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी थी। आवेश के कारण उसके चेहरे पर लालिमा आ गई थी। उसने भी महसूस कर लिया था कि उसका स्खलन होने वाला है; और वो अब मीनाक्षी को जोर जोर से चूम रहा था और उसके स्तनों को कुचल मसल रहा था। उसी समय समीर के लिंग ने भी अपना वीर्य मीनाक्षी की योनि में छोड़ना शुरू कर दिया। आश्चर्य है कि मीनाक्षी की योनि स्वतः संकुचन करने लगी कि जैसे समीर के लिंग से निकलने वाले प्रेम-रस का हर बूँद निचोड़ लेगी। समीर ने सात आठ आखिरी धक्के और लगाए, और मीनाक्षी के ऊपर ही गिर गया। उसने मीनाक्षी को अपने आलिंगन में कस कर भर लिया, और कुछ देर उस पर ही लेटा रहा।


वो दोनों ही कोई दो तीन मिनट तक बिना कुछ बोले इसी तरह पड़े रहे। यह भावनाओं का ज्वार था, जो अपने शिखर पर पहुँच कर अब शिथिल पड़ रहा था। सम्भोग की यह आखिरी अभिव्यक्ति है - जिन क्षणों में दो शरीर जुड़ गए हों, उनके रसायन मिल गए हों, और दो आत्माएँ जुड़ गयी हों, उन क्षणों में कुछ कहने सुनने को क्या रह जाता है? यह एक अनूठा अनुभव है, जिसका आस्वादन बस चुप चाप रह कर किया जा सकता है।

मीनाक्षी ने महसूस किया कि समीर का लिंग बड़ी तेजी से आकार में घट रहा था। और कुछ देर में वो फिसल कर उसकी योनि से खुद ब खुद बाहर आ गया। फिर भी समीर ने मीनाक्षी को अपने आलिंगन में ही पकड़े रहा। मीनाक्षी को लगा कि उसकी योनि से कुछ गर्म सा द्रव बह कर बाहर आने लगा। मीनाक्षी के लिए यह बिलकुल अशुद्ध भावना थी। बिस्तर तो उसने अपनी याद में कभी गीला नहीं किया था, और तीस की उम्र में वो यह काम शुरू नहीं करने वाली थी। उसने अपनी योनि को हाथ से ढँका और बिस्तर से उठने लगी। वो जैसे ही उठने को हुई, समीर ने उसे रोक दिया।

“अरे यार! थोड़ा रुको!”

“जाने दीजिए प्लीज! इसमें से कुछ निकल रहा है!”

“किसमें से क्या निकल रहा है?” समीर ने उसको छेड़ा।

“इसमें से!” मीनाक्षी थोड़ा अधीर होते हुए, आँखों से नीचे की ओर इशारा करते हुए बोली।

“इसको क्या कहते हैं?”

“जाने दीजिए न!”

“नहीं - पहले बताइए!”

“देखिए - बिस्तर गीला हो जाएगा!”

“छीः छीः! इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो! हा हा!”

“धत्त!”

“अरे बोलो न! मुझसे क्या शर्माना?”

“क्या बोलूँ?”

“इसको क्या कहते हैं?”

“ओह्हो! आप भी न! बस एक ही रट लगा कर बैठ गए!”

“तुम भी ज़िद्दी हो!”

“हम्म - इसको वजाइना बोलते हैं! अब खुश? चलिए छोड़िए, अब जाने दीजिए!”

“आओ - साथ साथ ही चलते हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ कहा।

“नहीं! अभी जाने दीजिए मुझे! मैं इसको धो लूँ!”
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मीनाक्षी ने विनती करते हुए कहा और बाथरूम की ओर जाने लगी। बिना एक भी कपड़े के बाथरूम जाने में उसको संकोच भी हो रहा था, और शर्म भी आ रही थी। शरीर पर कुछ ओढ़ने के लिए नहीं था, इसलिए मीनाक्षी अपनी योनि पर हाथ लगाए हुए, वैसी ही नग्न अवस्था में ही लगभग दौड़ कर बाथरूम में चली गई। उसको यह नहीं मालूम था कि उसके ऐसा करने से समीर को उसके उछलते कूदते स्तनों का मजेदार दर्शन हुआ। बाथरूम में जा कर मीनाक्षी ने अपनी योनि का हाल देखा। उसकी योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ बढे हुए रक्त प्रवाह, और प्रथम सम्भोग के घर्षण के कारण सूजी हुई लग रही थीं। योनि की झिर्री खुल गई थी। उसी खुले हुए मुँह से उसके और समीर के काम रस का सम्मिश्रण बह रहा था।

‘ओ गॉड! कैसी हालत करी है इसकी बदमाश ने! छुन्नू है कि मूसल!’ सोच कर मीनाक्षी हल्का सा मुस्कुराई और प्रत्यक्ष में दबी हुई आवाज़ में खुद से कहा, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स मिसेज़ मीनाक्षी सिंह!”

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साफ़ सफ़ाई कर के जब मीनाक्षी बाथरूम से बाहर आई तो उसने देखा कि समीर उसी की दिशा में देख रहा था। तौलिए से अपना तन ढँकना वो भूल गई थी। समीर ने भी खुद को ढँकने की कोई कोशिश नहीं करी थी। वो वैसे ही नंगा बिस्तर पर लेटा हुआ था। जब वो बिस्तर के पास आई तो समीर ने प्यार से उसका हाथ पकड़ कर अपने बगल बैठा लिया और उसकी गोद में अपना सर रख कर लेट गया। उसके लेटने का तरीका ऐसा था कि उसका चेहरा मीनाक्षी की योनि की तरफ था।

“मिनी?”

“हम्म”

“तुम बहुत सुन्दर हो!”

मीनाक्षी ने देखा कि यह कहते हुए समीर उसकी योनि को देख रहा था।

‘एक नंबर का बदमाश है!’

“तुम बहुत सुन्दर हो! जैसा सोचा था, उससे भी कहीं अधिक!”

‘समझ आ रहा है कि साहब को क्या सुन्दर लग रहा है!’ उसने मन में सोचा।

“क्या सुन्दर लगा आपको?” और प्रत्यक्ष में कहा।

“तुम्हारा कुछ! कोई एक ही चीज़ हो तो बताऊँ! अब इसको ही ले लो.... तुम्हारी चूत.... इसकी बनावट - जैसे दो पल्लों का दरवाज़ा कस कर भेड़ लिया गया हो! और अभी, जब तुम ऐसे बैठी हो, तो इसको देखने पर ये गुलाब के फूल की पंखुड़ियों जैसी लग रही हैं। सच में, अंदर जा कर मज़ा आ गया!”

जिस तरह समीर ने यह सब कहा, मीनाक्षी हँसे बिना न रह सकी।

“आप इसको चूत क्यों कहते हैं? चूत तो गाली होती है न?”

“ओहहह! अच्छा वो? वो तो देहाती और आवारा लोगों के लिए गाली होती है। असल में चूत तो फल होता है। संस्कृत में ‘चूतफल’ मतलब आम! मैं तो इसको आम कह रहा हूँ! ऐसी प्यारी सी चीज़ को मैं गाली क्यों दूँगा भला?”

“बातें बनाना कोई आपसे सीखे!”

“अरे! अब किसकी कसम लूँ मैं! आम जैसी ही रसदार है ये!”

“हा हा बदमाश! लोग तो ब्रेस्ट्स को आम कहते हैं।”

“क्या बात है! इसका मतलब यह है कि मेरी बीवी आम की टोकरी है पूरी - एक जोड़ी राजापुरी आम ऊपर, और दशहरी आम के रस की प्याली नीचे!”

“धत्त गंदे!”

“मिनी, आज तुमने मुझे कम्पलीट कर दिया! थैंक यू!” कह कर समीर ने उसकी योनि को चूम लिया।

“आप ने भी तो मुझे कम्पलीट कर दिया!”

मीनाक्षी की बात पर समीर मुस्कुराया, और उसने मीनाक्षी के सर को थोड़ा सा नीचे करने की कोशिश की। मीनाक्षी ने भी अपना सर थोड़ा नीचे कर, उसको चूमने में सहयोग किया। जब चुम्बन टूटा, तो उसके स्तन समीर के चेहरे से जा लगे। उसने झट से मीनाक्षी का एक निप्पल अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।

मीनाक्षी समीर को मना करने की स्थिति में नहीं थी। समीर के प्रेम करने के तरीके की वो अब मुरीद बन चुकी थी। समीर जहाँ चाहता, जैसे चाहता, और जो भी चाहता, मीनाक्षी उसको वो सब करने से मना नहीं कर सकती थी। अलका ने एक बार मीनाक्षी को कहा था कि उन पुरुषों को अपनी पत्नियों के स्तनपान में ख़ास रूचि होती है, जिन्होंने अपनी माँ का या तो बहुत ही कम, या बहुत ही अधिक स्तनपान किया हो।
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