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पनौती

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adeswal
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पनौती

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पनौती

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सुबह नौ बजे के करीब डॉली शर्मा के फोन कॉल के जवाब में पनौती नहा धोकर तैयार हुआ और उससे मिलने के लिये निकल पड़ा। डॉली का घर वहां से बमुश्किल पांच-सात किलोमीटर की दूरी पर था, इस लिहाज से उसे वहां पहुंचने में बीस मिनट भी नहीं लगने थे।

मुलाकात का वक्त दोनों के बीच ग्यारह बजे का तय हुआ था, मगर वह घर से दस बजे ही निकल गया। क्योंकि किसी भी हाल में वह लेट नहीं होना चाहता था।

इन दिनों वह घर में अकेला था, मां कानपुर स्थित अपने मायके गई हुई थी। जहां उसकी नानी का अस्सी की उम्र में देहावसान हो गया था। आगे सप्ताह भर तक मां ने वहीं रहना था, लिहाजा घर में उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था।

पनौती का पूरा नाम राज शर्मा था, छह फीट से उभरते कद वाला वो खूब हट्टा-कट्टा कड़ियल नौजवान था। जो इत्तेफाक से कभी शेव कर लेता था तो सहज ही किसी बड़ी कम्पनी का एग्जीक्यूटिव दिखाई देने लगता था। मगर ऐसा सिर्फ होली-दीवाली ही होता था, वरना तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन वो अपने सदाबहार परिधान और अलमस्त रूप में ही नजर आता था। बनाने वाले ने उसके सभी कल-पुर्जे यथा स्थान फिट किये थे। लंबा चेहरा, सुतवां नाक, बड़ी-बड़ी आंखें और कान के नीचे तक पहुंचती कलमें! कुल मिलाकर वो बड़ा ही हैंडसम युवक था जो किसी खूबसूरत युवती के सपनों का शहजादा हो सकता था। या सोलह सोमवार का व्रत रखने वाली किसी युवती को उसमें अपने भावी पति की छवि दिखाई दे सकती थी।

मगर क्या मजाल जो उसने ऐसी बातों की कभी परवाह की हो।

उसका नाम राज शर्मा था मगर दोस्तों में वो ‘पनौती’ के नाम से खूब जाना-पहचाना जाता था। कई दोस्त ऐसे भी थे जिन्होंने उसका असली नाम कभी सुना ही नहीं था, या फिर सुनकर भूल गये थे। उसका नाम राज से पनौती में कब तब्दील हो गया, इसका पता तो खुद राज शर्मा को भी नहीं था। अलबत्ता वो नाम उसके व्यक्तित्व से पूरी तरह मैच करता था।

वजह?

जहां भी उसके कदम पड़ते, बने बनाये काम बिगड़ जाते। जिस काम में हाथ डालता मुसीबतें गले पड़ जातीं। किसी दोस्त की गर्लफ्रेंड से मिलता तो अगले ही दिन वो उसकी एक्स गर्लफ्रेंड बन जाती। किसी शादीशुदा दोस्त के घर में आना-जाना करता तो मियां-बीवी में लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते। किसी की रूठकर मायके गई बीवी को मनाने पहुंचता तो नौबत तलाक तक जा पहुंचती थी।

उसकी मित्र-मंडली में दो ऐसे युवक भी शुमार थे जिनकी नौजवान बीवियां भरी जवानी में खुदा को प्यारी हो गई थीं! जिसका पूरा-पूरा श्रेय वे दोनों पनौती को ही देते थे। मगर मजाल क्या जो उसके चेहरे पर शिकन तक दिखाई दे जाये।
लिहाजा मस्तमौला इंसान था।

पनौती की वजह से मुसीबत में जा फंसने वाले उसके मित्रों की संख्या भी कोई कम नहीं थी, मगर उनमें से एक भी ऐसा नहीं था, जिसने चोट खाने के बाद पनौती से नाता तोड़ लिया हो। उसकी असल वजह ये रही हो सकती है, कि राज की पनौतीगिरी आज तक उनमें से किसी के भी स्थाई नुकसान का वायस नहीं बनी थी। लिहाजा उसके मित्र हर वक्त! हर हाल में - यहां तक कि गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप के बाद भी - उसके साथ खड़े रहते थे, बीवी तो खैर किसी गिनती में आती ही नहीं थी।

ऐसा ही किरदार था राज शर्मा उर्फ पनौती का!

बाप बचपन में ही उसे मां के हवाले करके दुनिया से चलता बना था। तब वो दो या तीन साल का रहा होगा। दर-दर की ठोकरें खाते मां-बेटे की जिंदगी में उस वक्त ठहराव आया, जब मां अपनी मेहनत और लगन के बूते पर एक सरकारी स्कूल की टीचर बन गयी। एक बार मुफलिसी का दौर खत्म हुआ तो उसने बड़ी लगन से अपने इकलौते-लाड़ले बेटे का पालन-पोषण शुरू किया। जो कि आज छब्बीस साल बाद भी मुतवातर जारी था।

मां आज भी अपने बेटे के पालन-पोषण में उतनी ही लगन से जुटी हुई थी।

ऐसे में ये कम हैरानी की बात नहीं थी कि पनौती ने ना सिर्फ क्रिमिनॉलजी ऐंड पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में अस्सी फीसदी मॉर्क्स के साथ पोस्टग्रेज्युएशन किया था बल्कि फरीदाबाद में जिला स्तर पर बॉक्सिंग और निशानेबाजी की दो चैम्पियनशिप भी जीत चुका था।

उसके पास ताकत भी थी और अक्ल भी! बस उसे खर्च कर करने के मामले में वह अव्वल दर्जे का लापरवाह था। सूरत से पढ़ा-लिखा, अक्लमंद शख्स दिखाई देना तो दूर की बात थी, उल्टा उसकी हरकतों और तौर-तरीकों से सहज ही ये पता लग जाता था कि उससे बड़ा अहमक इस दुनिया में ढ़ूढने से भी नहीं मिलने वाला था। इसलिए उसकी गिनती आज भी बेवकूफों की ही श्रेणी में होती थी।

डॉली शर्मा की जगह उसकी जिंदगी में कुछ-कुछ मंगेतर जैसी थी। कुछ-कुछ इसलिए क्योंकि अभी उनकी मंगनी नहीं हुई थी। अलबत्ता पनौती की मां की एक ही ख्वाहिश थी कि उसका निकम्मा बेटा डॉली से शादी कर के अपना घर बसा ले। जिसकी उम्मीद खुद उसकी मां को भी ना के बराबर ही थी।

बहरहाल ठीक दस बजे उसने घर छोड़ दिया।

पैदल चलता वह पल्ला की पुलिया तक पहुंचा जहां एक ऑटो रूकवा कर उसमें सवार हो गया।

“जरा जल्दी चल भाई।” बैठते के साथ ही वह बोल पड़ा।

“अरे साहब पहले ये तो बताओ की जाना कहां है?”

“डॉली के घर।”

“मुझे क्या मालूम डॉली कौन है?”

“लेकिन मुझे मालूम है, इसलिए तू ऑटो चलाने पर ध्यान दे, लेट हो गया तो आफत आ जायेगी।”

ड्राइवर ने यही समझा कि आगे चलकर वह रास्ता बताने वाला था, इसलिए उसने फौरन ऑटो आगे बढ़ा दिया।
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Re: पनौती

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“थोड़ा तेज चल भाई, स्पीड लिमिट क्रॉस मत करना, मगर तीस-चालीस की स्पीड में तो दौड़ाकर दिखा।”

“मैं ऑलरेडी पैंतालिस की स्पीड में हूं सर।” ड्राइवर बोला।

“शादी हो गई है?”

“नहीं साहब, अभी तो अकेले ही चल रहा है इधर।”

“मत करना।”

“क्या शादी?”

“वही, खामख्वाह ऑटो वाले को तेज चलने को कहना पड़ता है, समझा?”

ड्राइवर ने सिर हिलाकर हामी भर दी, ये अलग बात थी कि उसके पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा था।

“आपकी हो गई है इसलिए आप ऐसा कह रहे हो साहब, वरना कुंवारा कौन मरना चाहता है।”

“नहीं हुई भाई, मगर फांसी पर चढ़ाने की प्लानिंग जोरों पर है आजकल।”

ऑटो वाला हंसा, फिर बोला, “जाना कहां है?”

“बताया तो था डॉली के घर।”

“साहब क्यों मजाक कर रहे हो, एड्रेस क्यों नहीं बता देते?”

“कमाल है बिना एड्रेस पूछे ही तू चला जा रहा है” - वह हैरान होता हुआ बोला – “पहले सेक्टर बीस पहुंच, फिर बताता हूं।”

ठीक तभी अस्सी-नब्बे की स्पीड से दौड़ती एक फोरच्यूनर यूं ऑटो के बगल से गुजरी कि उसका दाई तरफ का साईड व्यू मिरर टूटकर नीचे गिर गया।

ड्राइवर ने जोर से फोरच्यूनर वाले को मां की गाली दी।

“गाली मत दे भाई, गाली देना बुरी बात होती है, फिर उसकी मां ने तेरा क्या बिगाड़ा है?”

“शीशा तोड़ गया, दिखाई नहीं देता।” ड्राइवर झल्लाकर बोला।

“आगे जाकर साइड लगा तो रहा है” - पनौती दूर सड़क पर देखता हुआ बोला – “शायद तेरे नुकसान की भरपाई करना चाहता है।”

“पता नहीं क्या माजरा है?” ड्राइवर अनमने स्वर में बोला।

तभी फोरच्यूनर से निकल कर दो पहलवानों जैसे डील-डोल वाले लड़के सड़क पर आ खड़े हुए। उन्होंने ऑटो को रूकने का इशारा किया तो ड्राइवर ने फोरच्यूनर के पीछे अपना ऑटो खड़ा कर दिया।

इससे पहले कि पनौती या ऑटो वाला कुछ समझ पाते, एक लड़के ने ड्राइवर का गिरेबान पकड़कर उसे ऑटो से बाहर घसीट लिया।

दूसरे ने उसके बाल अपनी मुट्ठी में भींचे और पूरी ताकत से सड़क पर धकेल दिया, वह मुंह के बल नीचे गिरा, उसका थुथना फूट गया। तभी दोनों में से एक ने उसकी पसलियों में जोर की लात जमा दी। ड्राइवर के हलक से जोर की चीख निकल गई।

पनौती ऑटो से नीचे उतरा, दोनों लड़कों पर निगाह डाले बिना वह सड़क पर पड़े ड्राइवर के पास पहुंचा और झुक कर उसको उठाने की कोशिश करने लगा। तभी एक लड़के ने उसकी बांह पकड़ ली फिर तैश से बोला, “क्यों दूसरे के पंगे में पड़ता है, कोई और ऑटो देख ले।”

उसकी बात का जवाब देने की बजाये पनौती ने झटका दे कर अपनी बांह छुड़ाई, नीचे पड़े ड्राइवर को उठाकर खड़ा किया फिर उसे ले जाकर ऑटो की ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया।
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Re: पनौती

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उस काम से फारिग होकर वह दोनों लड़कों की तरफ वापिस घूमा।

“क्यों मार रहे हो इसे? अच्छे भले शरीफ लोग दिखाई दे रहे हो, यूं सड़क पर दंगा-फसाद करना क्या कोई अच्छी बात है?”

“लो एक और गांधी पैदा हो गया हमारे देश में” - एक युवक जोर से हंसता हुआ बोला – “चल ठीक है उसके बदले तू मार खा ले, तो हम उसे कुछ नहीं कहेंगे।”

“जब की उसकी कोई गलती नहीं थी।” पनौती का लहजा एकदम शांत था।

“थी बराबर थी, देखा नहीं कितनी लापरवाही से ऑटो चला रहा था, हमारी गाड़ी ठोक दी, बड़ा डेंट आया है, उसका खर्चा क्या इसका बाप भरेगा।”

“जबकि ओवर स्पीड में तुम लोग थे, ऑटो का साइड व्यू मिरर भी तुम्हारी लापरवाही से टूटा था, अपना दोष दूसरे पर मढ़ते हुए शरम नहीं आती।”

“सुना तूने पतंगी” - वह अपने साथी की तरफ देखकर हंसता हुआ बोला – “इसने तो सच में हमें शराफत का पुतला ही समझ लिया है, जो भाषण पर भाषण झाड़े जा रहा है।”

“गलती किसी से भी हो सकती है भाई” - पनौती बड़े ही सहज लहजे में बोला – “मुझसे भी हो गयी। मैं अभी अपने शब्द वापिस लेता हूं, क्योंकि मैं समझ चुका हूं कि तुम दोनों अव्वल दर्जे के बद्दिमाग लड़के हो, साथ ही बद्गुमान भी, अब इसके साइड व्यू मिरर का खर्चा दे दो तो हम अपनी राह लगें, तुम भी लगो। कहीं जाने को लेट हो रहे होगे, वरना इतनी तेज रफ्तार से गाड़ी नहीं चलाते।”

जवाब में वह फिर से हैरानी जताता हुआ पतंगी से बोला, “पागल लगता है स्साला।”

“गाली मत दो भाई” - पनौती ने उसे समझाने की कोशिश की – “गाली देना बुरी बात होती है।”

“क्यों खामख्वाह हाथ-पांव तुड़वाने पर तुला है, जो बात हमें समझाने की कोशिश कर रहा है, उसे खुद भी तो समझ, खिसक क्यों नहीं लेता यहां से?”

“नुकसान की भरपाई कर दो, हम चले जायेंगे।”

“लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा।”

“ठीक समझे नुकसान की भरपाई हुए बिना नहीं मानूंगा मैं” - कहकर पनौती ने ऑटो वाले की तरफ देखा और उच्च स्वर में बोला – “कितने का आता है तुम्हारा साइड व्यू मिरर?”

“डेढ़ सौ का” - वह जल्दी से बोला – “मगर कोई बात नहीं मैं खुद खरीद लूंगा, आप चलिये यहां से।”

तभी फोरच्यूनर से एक तीसरा शख्स नीचे उतरा। वह झक सफेद शर्ट-पैंट पहने था। एक नजर देखने पर नेता-वेता टाइप जान पड़ता था। चेहरा उसका खूब बड़ा था, यूं लगता था जैसे किसी पहलवान की मुंडी काटकर उसकी गर्दन पर लगा दी गई हो। आंखें भी बड़ी-बड़ी और लाल भभूका थीं, दोनों गालों पर मुहांसों के स्थाई दाग थे, जो कि उसके भयानक चेहरे को चार चांद लगाते जान पड़ते थे।

“क्या चल रहा है वीरपाल?” वह बेहद रौबदार लहजे में बोला।

तो दूसरे का नाम वीरपाल था।

उसने संक्षेप में सारी कहानी सुना दी।

“इधर आ।” पूरी बात सुनकर उसने पनौती को अपने पास आने का इशारा किया।
वह निःसंकोच उसके करीब चला गया।

सफेद शर्ट वाले ने तेजी से अपना हाथ उसकी तरफ चलाया, उसका इरादा पनौती को थप्पड़ मारने का था मगर कामयाब नहीं हो सका।

उसने बीच रास्ते में ही उसकी बांह थाम ली, सफेद शर्ट वाले ने बहुतेरी कोशिश कर ली मगर पनौती की गिरफ्त से अपना हाथ नहीं छुड़ा सका।

वह नजारा देखते ही मारे गुस्से के पतंगी ने पूरी ताकत से अपनी लात पनौती पर चला दी, उसी वक्त पनौती ने सफेद शर्ट वाले की कलाई को तेजी से अपनी तरफ खींचा नतीजा ये हुआ कि पनौती पर चलाई गई लात जोर से उसकी कमर पर जाकर लगी, ठीक तभी पनौती ने उसकी कलाई छोड़ दी। नतीजा ये हुआ कि वह अपना संतुलन बनाये नहीं रख सका और कंधे के बल जमीन पर जा गिरा।
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Re: पनौती

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पतंगी बौखला कर अपने बाप को उठाने के लिये आगे बढ़ा, उसी वक्त वहां खड़े वीरपाल ने पनौती के चेहरे को लक्ष्य कर के घूंसा चला दिया, जो कि बचने की कोशिश में उसके चेहरे की बजाये खोपड़ी से टकराया।

“चौधरी बनता है ब...नचो...।” कहते हुए उसने फिर से उसपर वार करने की कोशिश की, तब तक पनौती उसकी तरफ से सावधान हो चुका था, उसने ना सिर्फ चेहरे की तरफ बढ़ती उस शख्स की कलाई थाम ली बल्कि दायें हाथ का वजनी घूंसा उसकी पसलियों में जमा दिया, वह जोर से डकारा, मगर उसकी कलाई छोड़ने की बजाये पनौती ने पूरी निर्दयता के साथ अपना घुटना उसके पेट में दे मारा।

“कहा था गाली देना बुरी बात होती है” - वह दांत पीसता हुआ बोला – “मगर बाज आना तो तुम जैसे लोगों ने सीखा ही नहीं है।” कहकर उसने वीरपाल की कलाई को उसके पीठ पीछे ले जाकर इतनी जोर से उमेठा की उसकी आंखों से आंसू छलक आये।

उसी वक्त अपने बाप को जमीन से उठाकर खड़ा कर चुकने के बाद पतंगी वहां पड़ी एक ईंट उठाकर पनौती के पीछे लपका। ऑटो वाले ने वह नजारा देखा तो तत्काल एक रॉड निकाल कर पूरी ताकत से पतंगी की पीठ पर दे मारा, उसके हलक से एक जोरदार चीख निकली और मुंह के बल वह जमीन पर जा गिरा। उस दौरान पनौती ने वीरपाल की यूं मरम्मत कर डाली की वह लुंज पुंज हुआ सड़क पर गिर पड़ा।

अब तक वहां आते-जाते वाहनों का घेरा सा बन गया था, लोग बाग रूककर माजरा जानने की कोशिश करने लगे। मगर किसी ने दखलअंदाज होने की कोशिश नहीं की।

अपने दोनों आदमियों को धूल चाटता देखकर तीसरा शख्स लपक कर फोरच्यूनर में जा घुसा। मगर उसने भाग निकलने की कोशिश नहीं की। दस सेकेंड बाद जब वह दोबारा अपनी गाड़ी से बाहर आया तो उसके हाथ में रिवाल्वर थमी हुई थी, जिसे उसने पनौती पर तान दिया।

“आपकी प्रोब्लम क्या है सर!” - पनौती यूं बोला जैसे वहां कुछ हुआ ही ना हो – “जरा सी बात पर कोई पिस्तौल निकालता है क्या?”

“बेटा तेरे लिये ये छोटी बात हो सकती है, क्योंकि तू जानता नहीं है कि अंजाने में तूने किससे पंगा ले लिया है।”

“ऐसा नहीं है जनाब, पहचान तो मैं आपको तभी गया था, जब आपने मुझे अपने पास बुलाकर थप्पड़ मारने की कोशिश की थी।”

“तुझे मालूम है मैं कौन हूं” - वह हैरानी से बोला – “इसके बावजूद मेरे आदमियों पर हाथ उठाने की हिम्मत हो गई तेरी?”

“बिल्कुल मालूम है साहब! गुंडे हो आप! सड़क पर पड़े अपने चमचों से थोड़े बड़े गुंडे हो सकते हो, मगर गुंडा रहता तो आखिर गुंडा ही है, उससे भला क्या डरना।”

“कमीने मुझे गुंडा कहता है” - वह ट्रिगर पर उंगली रखता हुआ बोला – “निरंजन राजपूत नाम है मेरा, बड़े बड़े लोग मेरी चौखट पर मत्था टेकना अपने लिये फख्र की बात समझते हैं और तेरी ये मजाल की तू मुझे गुंडा कहे।”

“जो खिलौना आपने हाथ में थाम रखा है” - पनौती ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं – “उसका लायसेंस है आपके पास?”

“क्या करेगा जानकर, या तू ये समझता है कि बिना लायसेंस वाली रिवाल्वर से चली गोली तेरी जान नहीं ले सकती?”

“बगैर लायसेंस के पिस्तौल रखना कितना बड़ा जुर्म है मालूम है आपको?”

“नहीं मालूम, तू खुद क्यों नही बता देता?”

“आर्म्स एक्ट 1959 की धारा 5 के तहत बिना लायसेंस के हथियार रखना गैरकानूनी है। इसके लिये भारतीय दंड विधान की धारा 27 के तहत तीन से सात साल की सजा का प्रावधान है। क्या आप इतनी लंबी सजा काटने के लिये तैयार हैं, अगर नहीं तो बराय मेहरबानी रिवाल्वर को कहीं ठूंस लीजिये, ताकि ये मुझे दिखाई देनी बंद हो जाये।”

“तू वकील है?”

“नहीं मैं सिविलियन हूं, और मैं ही क्या यहां आस-पास खड़े होकर आपकी गुंडागर्दी का नजारा करता हर शख्स एक आम आदमी है। इससे पहले कि आस पास मौजूद भीड़ अपना धैर्य खो बैठे, रिवाल्वर का लायसेंस दिखाईये, या फिर मैं पुलिस को फोन करता हूं।”

“मुझे नहीं लगता कि गोली खा चुकने के बाद तू पुलिस को फोन करने तक जिंदा रह पायेगा।”

“और मुझे भी नहीं लगता कि आप मुझपर गोली चलाने की हिम्मत कर सकते हैं, शक्ल से पढ़े लिखे तो नहीं जान पड़ते, मगर फिर भी उर्दू में एक कहावत सुनिये, ‘जो गरजते हैं वह बरसते नहीं’ कुछ समझ में आया? नहीं आया तो भी कोई बात नहीं, अब अपनी पिस्तौल को जेब के हवाले कीजिये और अपने आदमियों को गाड़ी में डालकर यहां से चलते फिरते नजर आइये, वरना यहां इकट्ठी हुई पब्लिक का भेजा फिर गया तो भगवान ही जानें आपका क्या होगा? और हां जाने से पहले ऑटो वाले का जो साइड व्यू मिरर आपके ड्राइवर की लापरवाही से टूटा है, उसकी भरपाई कर के जाईये।”

“यूं आसानी से तो मैं तेरा पीछा नहीं छोड़ने वाला छोकरे।”
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Re: पनौती

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“बेशक मत छोड़ियेगा, मगर इस वक्त यहां से दफा हो जाने में ही आपकी भलाई है, डेढ़ सौ रूपये ऑटो वाले को दीजिये ताकि हम अपनी राह लग सकें। अगर मन ना भरा हो तो पल्ला वाली पुलिया पार करके सामने की गली में किसी से भी राज शर्मा का नाम पूछ लीजियेगा, आपका थोबड़ा दोबारा देखकर मुझे कोई खुशी तो नहीं होगी, मगर तब आप मेरे मेहमान होंगे, इसलिए झेल लूंगा मैं किसी तरह।”

“कहीं नहीं जा रहा तू।” कहकर एक हाथ से रिवाल्वर का रूख उसकी तरफ रखते हुए दूसरे हाथ से उसने जेब से मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर डॉयल किया फिर तीस सेकेंड के वार्तालाप के बाद मोबाइल वापिस जेब के हवाले करता हुआ बेहद रौब से बोला, “अब देखना क्या होता है?”

पनौती ने जोर की जम्हाई ली, फिर बोला, “कितने आदमी बुलाये हैं?”

“देखना, बस पांच मिनट इंतजार कर।”

पनौती फिर कुछ नहीं बोला।
तब तक सड़क पर जाम लग चुका था।

अभी पांच मिनट भी नहीं बीते थे कि जोर से सायरन बजाती पुलिस की दो गाड़ियां वहां आन खड़ी हुईं। उसमें से उतरकर छह पुलिस वाले तत्काल उनकी तरफ बढ़े।

सबसे आगे सेक्टर इक्कीस के थाने का इंचार्ज वीर सिंह था, जिसे पनौती बखूबी पहचानता था।

जीप से उतरकर वीर सिंह तेज कदमों से चलता, निरंजन राजपूत के पास पहुंचा, “क्या हो गया निरंजन साहब?”

“गुंडागर्दी हुई है और क्या हुआ” - वह झल्लाता हुआ बोला – “मामूली सी बात पर तुम्हारे पीछे खड़े शख्स ने मेरे दो आदमियों को मार-मार कर लहूलुहान कर दिया। तब इसे भागने से रोकने की खातिर मुझे पिस्तौल निकालनी पड़ी।”

वीर सिंह तत्काल एड़ियों के बल पीछे घूम गया, राज शर्मा पर निगाह पड़ते ही वह बुरी तरह से चौंक गया।

“तुमने मारा है साहब के आदमियों को?” प्रत्यक्षतः वह बोला।

“जी हां मैंने ही मारा है, इसलिए मारा...।”

“उतना ही बोलो जितना पूछा जाये।”

“खामख्वाह!” - पनौती भड़क गया – “आपके सामने एक शख्स मुझपर रिवाल्वर ताने खड़ा है, जिसने गुंडागर्दी की तमाम हदों को पार करते हुए यहां खड़े पचासों आदमियों के सामने मुझे जान से मारने की धमकी दी, और आप कहते हैं कि मैं उतना ही बोलूं जितना पूछा जाये।”

“तुम्हारी भी तो गलती है” - वीर सिंह तनिक दबे स्वर में बोला – “क्या जरूरत थी बीच सड़क पर बवेला करने की?”

“जबकि सारा बवेला इनके आदमियों ने मचाया था।”

“ठीक है पहले पूरी बात बताओ” - वीर सिंह नम्र लहजे में बोला – “क्या हुआ था यहां और नौबत मारपीट तक कैसे पहुंची?”

पनौती ने बताया। ऑटो ड्राइवर ने हाथ के हाथ उसके कहे की पुष्टि भी कर दी।

“ठीक है थाने चलते हैं, आगे जो कार्रवाई होगी वहीं होगी।”

“अभी नहीं” - पनौती बोला – “पहले आप यहां खड़े तमाशबीनों में से कुछ लोगों का बयान लीजिये, इसके बाद आप जहां कहेंगे मैं चलने को तैयार हूं।”

तत्काल भीड़ में खड़े लोग एक दूसरे के पीछे होने लगे। कुछ तो अपनी गाड़ी स्टार्ट कर के वहां से चलते भी बने।

“देख लिया?” - वीर सिंह बोला – “कोई आगे नहीं आने वाला।”

“नहीं अभी नहीं देखा, कोई तो भीड़ में ऐसा होगा, जिसे इंसाफ की कद्र होगी, मुझे बस उसी आदमी का इंतजार है, इसलिए वेट कीजिये।”
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