पनौती
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सुबह नौ बजे के करीब डॉली शर्मा के फोन कॉल के जवाब में पनौती नहा धोकर तैयार हुआ और उससे मिलने के लिये निकल पड़ा। डॉली का घर वहां से बमुश्किल पांच-सात किलोमीटर की दूरी पर था, इस लिहाज से उसे वहां पहुंचने में बीस मिनट भी नहीं लगने थे।
मुलाकात का वक्त दोनों के बीच ग्यारह बजे का तय हुआ था, मगर वह घर से दस बजे ही निकल गया। क्योंकि किसी भी हाल में वह लेट नहीं होना चाहता था।
इन दिनों वह घर में अकेला था, मां कानपुर स्थित अपने मायके गई हुई थी। जहां उसकी नानी का अस्सी की उम्र में देहावसान हो गया था। आगे सप्ताह भर तक मां ने वहीं रहना था, लिहाजा घर में उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था।
पनौती का पूरा नाम राज शर्मा था, छह फीट से उभरते कद वाला वो खूब हट्टा-कट्टा कड़ियल नौजवान था। जो इत्तेफाक से कभी शेव कर लेता था तो सहज ही किसी बड़ी कम्पनी का एग्जीक्यूटिव दिखाई देने लगता था। मगर ऐसा सिर्फ होली-दीवाली ही होता था, वरना तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन वो अपने सदाबहार परिधान और अलमस्त रूप में ही नजर आता था। बनाने वाले ने उसके सभी कल-पुर्जे यथा स्थान फिट किये थे। लंबा चेहरा, सुतवां नाक, बड़ी-बड़ी आंखें और कान के नीचे तक पहुंचती कलमें! कुल मिलाकर वो बड़ा ही हैंडसम युवक था जो किसी खूबसूरत युवती के सपनों का शहजादा हो सकता था। या सोलह सोमवार का व्रत रखने वाली किसी युवती को उसमें अपने भावी पति की छवि दिखाई दे सकती थी।
मगर क्या मजाल जो उसने ऐसी बातों की कभी परवाह की हो।
उसका नाम राज शर्मा था मगर दोस्तों में वो ‘पनौती’ के नाम से खूब जाना-पहचाना जाता था। कई दोस्त ऐसे भी थे जिन्होंने उसका असली नाम कभी सुना ही नहीं था, या फिर सुनकर भूल गये थे। उसका नाम राज से पनौती में कब तब्दील हो गया, इसका पता तो खुद राज शर्मा को भी नहीं था। अलबत्ता वो नाम उसके व्यक्तित्व से पूरी तरह मैच करता था।
वजह?
जहां भी उसके कदम पड़ते, बने बनाये काम बिगड़ जाते। जिस काम में हाथ डालता मुसीबतें गले पड़ जातीं। किसी दोस्त की गर्लफ्रेंड से मिलता तो अगले ही दिन वो उसकी एक्स गर्लफ्रेंड बन जाती। किसी शादीशुदा दोस्त के घर में आना-जाना करता तो मियां-बीवी में लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते। किसी की रूठकर मायके गई बीवी को मनाने पहुंचता तो नौबत तलाक तक जा पहुंचती थी।
उसकी मित्र-मंडली में दो ऐसे युवक भी शुमार थे जिनकी नौजवान बीवियां भरी जवानी में खुदा को प्यारी हो गई थीं! जिसका पूरा-पूरा श्रेय वे दोनों पनौती को ही देते थे। मगर मजाल क्या जो उसके चेहरे पर शिकन तक दिखाई दे जाये।
लिहाजा मस्तमौला इंसान था।
पनौती की वजह से मुसीबत में जा फंसने वाले उसके मित्रों की संख्या भी कोई कम नहीं थी, मगर उनमें से एक भी ऐसा नहीं था, जिसने चोट खाने के बाद पनौती से नाता तोड़ लिया हो। उसकी असल वजह ये रही हो सकती है, कि राज की पनौतीगिरी आज तक उनमें से किसी के भी स्थाई नुकसान का वायस नहीं बनी थी। लिहाजा उसके मित्र हर वक्त! हर हाल में - यहां तक कि गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप के बाद भी - उसके साथ खड़े रहते थे, बीवी तो खैर किसी गिनती में आती ही नहीं थी।
ऐसा ही किरदार था राज शर्मा उर्फ पनौती का!
बाप बचपन में ही उसे मां के हवाले करके दुनिया से चलता बना था। तब वो दो या तीन साल का रहा होगा। दर-दर की ठोकरें खाते मां-बेटे की जिंदगी में उस वक्त ठहराव आया, जब मां अपनी मेहनत और लगन के बूते पर एक सरकारी स्कूल की टीचर बन गयी। एक बार मुफलिसी का दौर खत्म हुआ तो उसने बड़ी लगन से अपने इकलौते-लाड़ले बेटे का पालन-पोषण शुरू किया। जो कि आज छब्बीस साल बाद भी मुतवातर जारी था।
मां आज भी अपने बेटे के पालन-पोषण में उतनी ही लगन से जुटी हुई थी।
ऐसे में ये कम हैरानी की बात नहीं थी कि पनौती ने ना सिर्फ क्रिमिनॉलजी ऐंड पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में अस्सी फीसदी मॉर्क्स के साथ पोस्टग्रेज्युएशन किया था बल्कि फरीदाबाद में जिला स्तर पर बॉक्सिंग और निशानेबाजी की दो चैम्पियनशिप भी जीत चुका था।
उसके पास ताकत भी थी और अक्ल भी! बस उसे खर्च कर करने के मामले में वह अव्वल दर्जे का लापरवाह था। सूरत से पढ़ा-लिखा, अक्लमंद शख्स दिखाई देना तो दूर की बात थी, उल्टा उसकी हरकतों और तौर-तरीकों से सहज ही ये पता लग जाता था कि उससे बड़ा अहमक इस दुनिया में ढ़ूढने से भी नहीं मिलने वाला था। इसलिए उसकी गिनती आज भी बेवकूफों की ही श्रेणी में होती थी।
डॉली शर्मा की जगह उसकी जिंदगी में कुछ-कुछ मंगेतर जैसी थी। कुछ-कुछ इसलिए क्योंकि अभी उनकी मंगनी नहीं हुई थी। अलबत्ता पनौती की मां की एक ही ख्वाहिश थी कि उसका निकम्मा बेटा डॉली से शादी कर के अपना घर बसा ले। जिसकी उम्मीद खुद उसकी मां को भी ना के बराबर ही थी।
बहरहाल ठीक दस बजे उसने घर छोड़ दिया।
पैदल चलता वह पल्ला की पुलिया तक पहुंचा जहां एक ऑटो रूकवा कर उसमें सवार हो गया।
“जरा जल्दी चल भाई।” बैठते के साथ ही वह बोल पड़ा।
“अरे साहब पहले ये तो बताओ की जाना कहां है?”
“डॉली के घर।”
“मुझे क्या मालूम डॉली कौन है?”
“लेकिन मुझे मालूम है, इसलिए तू ऑटो चलाने पर ध्यान दे, लेट हो गया तो आफत आ जायेगी।”
ड्राइवर ने यही समझा कि आगे चलकर वह रास्ता बताने वाला था, इसलिए उसने फौरन ऑटो आगे बढ़ा दिया।