पनौती

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adeswal
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Re: पनौती

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ठीक साढ़े आठ बजे उसने मीनाक्षी शर्मा के बंगले में कदम रखा।

सोलह श्रृंगारों से सुसज्जित मीनाक्षी उस घड़ी ड्राईंग रूम मे बैठी टीवी देख रही थी। उसने गुलाबी रंग की जींस की शॉर्ट और बिना बाजू वाली टी शर्ट पहन रखी थी जो कि उसके बदन पर खूब फब रहा था। अपने मौजूदा परिधान में उसकी उम्र पहले से कहीं ज्यादा छिप सी गई मालूम पड़ती थी।

“आओ बैठो” - वह खनकते स्वर में बोली – “मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।”

“थैंक्यू मैम” - कहकर पनौती उसके सामने बैठ गया – “देख लीजिये मैं ठीक टाइम पर यहां पहुंच गया। मगर एक बात समझ में नहीं आई।”

“क्या?”

“आपने मुझे ऐन साढ़े आठ बजे यहां आने को क्यों कहा था?”

“इसलिए क्योंकि ऑफिस से घर पहुंचने में मुझे वैसे ही साढ़े सात बज जाते हैं इसीलिये मैंने तुम्हें एक घंटे बाद का वक्त दिया था।”

पनौती के मन को चैन मिल गया।

“कुछ लेना पसंद करोगे?”

“फिलहाल नहीं।

“ओके, तो मैंने तुम्हारे लिये कुछ सोचा है।”

“ये तो बड़ी अच्छी खबर सुनाई आपने।”

“प्रियम की मौत के बाद हमारी कंपनी को एक जिम्मेदार शख्स की जरूरत है, जो कि मेरी निगाहों में तुम हो सकते हो। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तुम्हें कंपनी का मालिक बना दिया जायेगा, मगर तुम्हारा रूतबा उससे कम भी नहीं होगा, उम्मीद है तुम्हें मेरा ऑफर पसंद आया होगा।”

“जी बेशक पसंद आया।”

“और मुझे तुम पसंद आये।”

“शुक्रिया।”

“आगे तुम मेरी पसंद पर खरे उतरे तो समझ लो तुम्हारी लाइफ बन जायेगी। बस जरूरत है मेरे मन मुताबिक काम करने की।”

“मेरी तरफ से कोई कोताही नहीं होगी।”

“फिर तो समझ लो मेरे जैसी किसी रूतबे वाली लेडी के दिल का मालिक बनने की तुम्हारी ख्वाहिश भी जल्दी पूरी हो जायेगी” - कहकर वह तनिक पनौती की तरफ झुकी फिर मद भरे स्वर में बोली – “बनना चाहते हो न?”

“ऑफ कोर्स मैं ये रूतबा हासिल करना चाहता हूं मैडम।”

“गुड।” वह संतुष्टि भरे लहजे में बोली।

“तो मैं काम पर कब से आऊं?”

“जब मैं बुलाऊं, जहां मैं बुलाऊं। बस जरा ये कोमल वाला मामला निपट जाये फिर देखना मैं तुम्हें कहां-कहां के नजारे कराती हूं” - कहकर वह तनिक रूकी फिर उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली – “करना चाहोगे न राज साहब?”

“बिल्कुल करना चाहूंगा, सच पूछिये तो अब इंतजार भी भारी पड़ेगा।”

“बस कुछ दिनों की बात है, मैं लंबे अरसे से तुम जैसे किसी सजीले नौजवान की तलाश में थी, कल यादव के ऑफिस में तुम्हें देखा तो लगा कि मेरी तलाश पूरी हो गई है।”

“ये तो मेरी खुशकिस्मती है मैडम जो आपने मुझे किसी लायक समझा।”

उसकी बात के जवाब में कुछ कहने की बजाये मीनाक्षी ने कार्डलेस फोन उठाकर कर किसी को कॉफी लाने को कह दिया फिर बोली, “प्रियम मेरा बेटा था, मुझे जान से ज्यादा प्यारा था।”

“जी जरूर होगा।”

“किसी के साथ संबंध होने का मतलब ये तो नहीं हो जाता कि मां के दिल से बेटे की मोहब्बत खत्म हो जाये? बेशक वह मेरी सगी औलाद नहीं था, मगर दस साल का था जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी, तब से लेकर बड़ा होने तक मैंने जो उसकी परवरिश की है, उसके बाद क्या मुझे उससे मोहब्बत नहीं होनी चाहिये, या तुम ये समझते हो कि सौतेली मां किसी बच्चे को सगी मां जैसा लाड़-प्यार नहीं दे सकती?”

“नहीं तो खैर मैं नहीं समझता।”

“लेकिन यादव कहता है कि तुम ऐसा ही सोचते हो, तुम्हारा वह पुलिसिया यार भी कुछ ऐसा ही सोचता है। तभी तुम दोनों हाथ-धोकर मेरे और यादव के संबंधों के पीछे पड़े हो।”

“उन्हें गलतफहमी हुई है मैडम, हम भला ऐसा क्यों सोचेंगे?”

“सतपाल के साथ तुम्हारे अच्छे ताल्लुकात दिखाई देते हैं, क्या मैं तुमसे उम्मीद कर सकती हूं कि तुम उसे समझाओगे।”

“किस बारे में?” पनौती ने हैरानी जताई।

“इस बारे में कि वह इन्वेस्टीगेशन के दौरान खामख्वाह मेरे और यादव के संबंधों को कुरेदने की कोशिश ना करे।”

“मैं जरूर समझाऊंगा, आपके लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।”

“समझाना, अगर कामयाब हो गये तो ईनाम मिलेगा, ऐसा ईनाम जिसके बारे में तुमने सोचा भी नहीं होगा।”

“जी तलबगार तो मैं बराबर हूं, इसलिए मैं जी जान से कोशिश करूंगा कि दोबारा वह बात किसी भी तरह ना उठने पाये। सतपाल मेरा दोस्त है वह वही करेगा जो मैं कहूंगा। लेकिन कोमल के मामले में तो जैसे वह निश्चिंत हुआ बैठा है कि कातिल वह नहीं है।”

“क्या फर्क पड़ता है, जेल तो वह पहले ही जा चुकी है, पड़ी रहे कुछ सालों तक वहीं, सच पूछो तो ये काम भी तुमने कर के दिखाना है, उस इंस्पेक्टर को समझाना कि कातिल कोमल के अलावा कोई नहीं हो सकता, बल्कि सच में कोई नहीं हो सकता। इसके लिये अगर वह कोई डिमांड करेगा तो मैं तैयार हूं।”

“आपका मतलब है मुझे अपना ईनाम उसके साथ शेयर करना पडे़गा?” पनौती यूं बोला जैसा रो पड़ेगा।

“इडियट वह खास ईनाम तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है, उसके डिमांड से मेरा मतलब पैसों से था।”

पनौती खुश हो गया, “ठीक है मैं बात करूंगा उससे।”
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Re: पनौती

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“जरूर करना खासतौर से मेरे और यादव के संबंधों के बारे में उसे खामोशी अख्तियार करने को राजी करना, कोमल अगर उसे कातिल नहीं भी लगती तो चलेगा, उस बात से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।”

तभी कॉफी की ट्रे हाथ में लिये डॉली वहां पहुंची। उसने एक उड़ती सी निगाह पनौती पर डाली फिर ट्रे को सेंटर टेबल पर रखकर बिना कुछ कहे वापिस लौट गई।

“एक सवाल पूछने की इजाजत चाहता हूं” - पनौती बोला – “अब क्योंकि हम दोनों काफी नजदीक आ चुके हैं, इसलिए उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी।”

“पूछो।”

“आप कोमल को जेल क्यों भिजवाना चाहती हैं?”

“सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे यकीन है कि प्रियम का कत्ल उसी ने किया है, मैं नहीं चाहती कि पुलिस किसी संदेह में पड़कर या फिर रिश्वत खाकर उसके केस को हल्का कर दे। सतपाल से कहना, कोमल के घर वाले जो भी ऑफर करेंगे मैं उसका डबल दूंगी मगर किसी भी हाल में वह लड़की बचनी नहीं चाहिये।”

“मैं जरूर कहूंगा मैडम! यकीन रखिये सबकुछ वैसा ही होगा जैसा कि आप चाहेंगी।”

“कॉफी खत्म करो, फिर चलकर मैं तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं।”

“आपका कमरा?”

“हां मेरा कमरा, जहां हम ज्यादा इत्मीनान से बातें कर पायेंगे।”

“अभी लीजिये मैडम।”

कहकर पनौती ने हड़बड़ी का प्रदर्शन करते हुए यूं अपना कप खाली किया जैसे वह मीनाक्षी के बेडरूम में पहुंचने को बेताब हो रहा हो।

कॉफी खत्म होते ही दोनों उठ खड़े हुए।

मीनाक्षी के पीछे पीछे सीढ़ियां चढ़कर वह पहली मंजिल पर पहुंचा, जहां वह सीढ़ियों के दहाने पर बने कमरे को छोड़कर उससे अगले वाले कमरे में जा घुसी। कमरे कही सज-धज देखकर राज हैरान रह गया। बड़े ही ऐश्वर्यशाली ढंग से सजाये गये उस कमरे के ऐन बीच में एक खूब बड़ा बेड रखा हुआ था। जिसपर चटक लाल रंग का चमकीला बेडशीट बिछाया गया था। छत में फॉल्स सीलिंग बनाई गई थी, जिसमें लगी लाइटें यूं प्रकाश बिखेर रही थीं कि लगता ही नहीं था वह कृतिम था।

“कैसा लगा?”

“कमाल का! मैंने ताजिंदगी इतना खूबसूरत कमरा नहीं देखा।”

मीनाक्षी हंसी, खनकती हुई हंसी, हंसी।

“और” - वह पनौती की आंखों में आंखें डालती हुई बोली – “मैं कैसी लगती हूं तुम्हें?”

“एकदम कमरे की खूबसूरती से मैच करती हुई।”

“मेरे ख्याल से तुम कुछ देर यहां रूकना पसंद करोगे?”

पनौती हड़बड़ा सा गया, मगर मीनाक्षी की बात का जवाब देने की कोई कोशिश उसने नहीं की, उल्टा उसकी तरफ से निगाहें हटाकर कमरे में इधर-उधर देखने लगा।

“यहीं रूकना, मैं अभी आती हूं।” कहकर जवाब की प्रतीक्षा किये बगैर वह कमरे से बाहर निकल गई।

उसके पीठ पीछे पनौती बेड पर बैठ गया, बैठकर उसकी वापसी का इंतजार करने लगा। वह औरत यकीनन किसी तगड़े फिराक में थी, मगर उसकी मंशा अभी तक पनौती के समझ में नहीं आई थी।

दिमाग पर बहुत जोर देने के बाद एक चमत्कृत कर देने वाला ख्याल उसके जहन दिमाग में आया कि मीनाक्षी उसे अपने लटके-झटके में फंसाकर उसके जरिये सतपाल को अपने हक में करना चाहती थी।

एक बार वह बात जहन में आने की देर थी वह मन ही मन अपनी पीठ ठोंकने से बाज नहीं आया।

अभी वह मीनाक्षी के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक अजीब सी आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा, यूं लगा जैसे किसी भारी चीज को उठाकर जमीन पर फेंक दिया गया हो। वह अंदाजा लगाने कोशिश करने लगा कि वह आवाज कैसी थी और कहां से आई थी? मगर समझ में कुछ नहीं आया। तब अपनी जगह से उठकर उसने कमरे की खिड़की खोलकर बाहर झांका, आगे जो नजारा उसे दिखाई दिया, वह उसके होश उड़ाने के लिये पर्याप्त था।

खिड़की के बाहर फैले अंधेरे के बावजूद उसने साफ देखा कि उसके बगल वाले कमरे की खिड़की के एकदम नीचे कोई औरत पड़ी हुई थी। यूं पड़ी थी जैसे पड़े पड़े उसका दम निकल गया हो।

‘एक और कत्ल’ उसके जहन में कौंधा। कमरे से निकल कर वह आंधी तूफान की तरह सीढ़ियों की तरफ भागा मगर वहां पहुंचते ही ठिठक कर खड़ा हो गया। मीनाक्षी सीढ़ियां चढ़ती दिखाई दी।

वह सीढ़ियों पर थी तो बंगले के पीछे जमीन पर पड़ी लाश किसकी थी?

‘डॉली’ उसके दिमाग में कौंधा। वह तेजी से सीढियां उतरने लगा। मीनाक्षी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा मगर उसकी परवाह किये बगैर एक छलांग में चार-पांच सीढ़ियां फांदता वह नीचे पहुंचा और तेज गति से दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।

मिनट भर से भी कम समय में वह बंगले के पीछे पहुंच चुका था।

लाश मुंह के बल जमीन पर पड़ी हुई थी। वह किसी भी ऐंगल से डॉली नहीं लग रही थी मगर पनौती को तब तक चैन नहीं मिला जब तक कि उसने लाश की सूरत नहीं देख ली।

चेहरा उसका जाना-पहचाना नहीं निकला।

तभी उसके पीछे हॉल से बाहर निकली मीनाक्षी भी वहां पहुंच गयी।

“क्या हुआ?” - पूछते वक्त जैसे ही उसकी निगाह लाश पर पड़ी, वह हैरान होती हुई बोली – “कौन है ये?”

“ये तो आप बताइये।”

जवाब में मीनाक्षी लाश के करीब पहुंची, कद-काठ और कपड़ों पर निगाह पड़ते ही वह फौरन उसे पहचान गई।

“हे भगवान!” - उसके मुंह से सिसकारी निकल गई – “ये तो कल्पना है।”

“आपकी बड़ी बहू?”

“वही, क्यों मारा तुमने इसे?”

सुनकर पनौती का चेहरा एकदम से सख्त हो उठा, दिल हुआ उसका टेंटुआ दबा दे।

“मैंने मारा?” प्रत्यक्षतः वह बोला।

“और कौन है यहां?”

“मैं इसका कत्ल भला क्यों करूंगा?”

“होगी कोई वजह, मगर तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी।” कहकर उसने पनौती से सटने की कोशिश की तो उसने इतनी जोर से मीनाक्षी को परे धकेला कि वह गिरती-गिरती बची।
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Re: पनौती

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“तुम्हारी ये मजाल कि तुम मुझे धक्का दो।” वह एकदम से बिफर पड़ी।

“हां मेरी ही मजाल है ये, और कुछ कहना है आपको?”

“हां कहना है” - वह तिक्त लहजे में बोली – “मुझे ये कहना है कि अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ भी हमारे बीच तय हुआ था, उसे अब खत्म समझो और जेल जाने को तैयार हो जाओ।”

“कमाल की औरत हैं आप, बहू की लाश सामने पड़ी है और आपको अभी भी इश्क मुश्क की बातें सूझ रही हैं?”

“तमीज से बात करो, वरना मैं भूल जाऊंगी कि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्हारे बारे में कितना अच्छा-अच्छा सोच रही थी।”

“मैं तमीज से ही बात कर रहा हूं, और आपको क्या लगता है आप में सोने का वर्क चढ़ा हुआ है? थूकता हूं मैं आप जैसी औरतों की जात पर, डर लगता है इस बात से कि आपको छू भर लेने से कहीं मेरा चरित्र दागदार न हो जाये।”

“कमीने तेरी ये मजाल।”

“हां मेरी ये मजाल! बार-बार मेरी मजाल की दुहाई मत दीजिये, और अपनी गंदी जुबान को काबू में रखिये, गाली देना बुरी बात होती है, आप औरत है इसलिए आपके लिए और भी ज्यादा बुरी बात है।”

“तेरी मां की....! होता कौन है तू मेरी जुबान को काबू में करने वाला?”

“जबकि अभी अभी इतने पते की बात बता कर हटा हूं कि गाली देना बुरी बात होती है, आपकी समझ में नहीं आ रहा?”

“नहीं आ रहा रंडी की औ...।”

पनौती ने इतनी जोर का तमाचा उसके चेहरे पर जड़ा कि वह खड़े-खड़े फिरकनी की तरह घूम गई।

“कहा था गाली मत देना, गाली देना बुरी बात होती है, और कुछ नहीं तो कम से कम अपने औरत होने का तो लिहाज करो।”

“तूने मुझपर हाथ उठाया?”

“उसके लिये माफी चाहता हूं, आप बेशक एक की बजाये दो थप्पड़ जड़ लीजिये मुझे, मैं उफ तक नहीं करूंगा, मगर गाली मत दीजियेगा, रिक्वेस्ट ...।”

उसकी बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी उसपर झपट पड़ी, उसने पनौती के गालों को अपने नाखुनों से नोंच डाला, छाती पर दांत गड़ा दिये, फिर भी तसल्ली नहीं मिली तो उसपर मुक्के बरसाने लगी। पनौती ने वह सब बर्दाश्त किया, करता रहा, आखिरकार वह खुद ही थककर उससे दूर हो गई।

“अब अगर आपकी भड़ास निकल गई हो, तो बहू की लाश पर ध्यान दीजिये, आपको इसकी मौत का अफसोस नहीं भी है तो कम से कम दुनियादारी निभाने की खातिर ही दुखी होकर दिखाइये।”

“मुझे रोना-धोना नहीं आता।” वह बदले हुए स्वर में बोली।

“ना सही, इसके कत्ल के बारे में क्या कहती हैं?”

“अगर तुमने इसे नहीं मारा तो हो सकता है खिड़की से झांकते वक्त बैलेंस बिगड़ने की वजह से नीचे गिर गई हो।”

“जबकि खिड़की कम से कम भी फर्श के लेबल से ढाई फीट ऊंची होगी।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“आपके कमरे की खिडकी इतनी ही ऊंची है, प्रियम के कमरे में भी ऐसा ही देखने को मिला था, इसलिए अंदाजन कहा।”

“या फिर इसलिए कहा क्योंकि तुम्हीं ने इसके कमरे में पहुंचकर इसे नीचे धकेल दिया था, तभी तुम दौड़ते हुए यहां तक पहुंचे थे, वरना जिस बात की खबर घर में किसी को नहीं है, उस बारे में तुम्हें कैसे पता चल गया?”

“मैंने धम्म की तेज आवाज सुनी थी, इसकी बाद आपके कमरे की खिड़की से झांककर देखा तो यहां कोई पड़ा दिखाई दिया, इस कारण मैं नीचे को भागा था, इसका कत्ल अगर मैंने किया होता तो अभी भी आप के कमरे में बैठा आपकी वापसी का इंतजार कर रहा होता।”

“बकवास, ऐसा कहकर तुम खुद को बचा नहीं सकते। कल्पना का कमरा मेरे कमरे से ऐन पहले पड़ता है, जहां पहुंच कर कल्पना को नीचे धकेल देना तुम्हारे लिया बेहद आसान काम था। फिर सौ बातों की एक बात ये कि तुम्हारे अलावा उस वक्त ऊपर और कोई नहीं था।”

“अगर ऐसा है तो फिर ये कारनामा आपका ही क्यों नहीं हो सकता, एक अजनबी को अपने कमरे में बैठाकर आप खुद बाहर क्यों चली गईं?” - पनौती उसके चेहरे पर निगाहें गड़ाता हुआ बोला – “इसलिए गयीं क्यों कि आपको बगल के कमरे में पहुंचकर कल्पना का कत्ल करना था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपके बाहर जाने के मुश्किल से एक या डेढ़ मिनट बाद मैंने इसके नीचे गिरने की आवाज सुनी थी। अगर इसका कत्ल आपने नहीं किया है तो जवाब दीजिये क्योंकर मुझे अपने कमरे में बैठाकर आप बाहर निकल गई थीं?”

“मैं हमारे लिये कुछ लेने गई थी इडियट।”

“बकवास, आप कुछ लेने नहीं गई थीं, बल्कि अपने बेडरूम में मुझे अकेला छोड़कर आप बगल के कमरे में पहुंची, जहां किसी तरह आपने अपनी बहू को खिड़की से नीचे धकेल दिया, फिर कमरे से निकल कर नीचे पहुंच गयीं। ताकि बाद में ये साबित हो सके कि कत्ल के वक्त आप नीचे हॉल में थीं, इसलिए कातिल आप नहीं हो सकतीं, इसके विपरीत अगर आपने कुछ मंगाना ही था तो किसी नौकर को आवाज लगा सकती थीं, इंटरकॉम पर कह सकती थीं।”

“नहीं कह सकती थी, क्यों कि चीज मैं नीचे लेने गई थी, उसके बारे में किसी नौकर को खबर होने देना अफोर्ड नहीं कर सकती थी।”

“ऐसा है तो बताइये क्या लेने गई थीं आप?” पनौती चैलेंज भरे स्वर में बोला।

जवाब में पल भर को उसका हाथ अपने गरेबान में रेंग गया फिर वहां से कुछ निकालने के बाद उसने अपनी हथेली पनौती के सामने फैला दी, “ये लेने गई थी मैं।”

राज का मन वितृष्णा से भर उठा, मीनाक्षी की हथेली पर उस घड़ी कंडोम का एक पैकेट रखा हुआ था।

उसने हिकारत भरी निगाहों से उसे देखा फिर बोला, “जैसे आप कोई कुंवारी कन्या थी जिसे गर्भ ठहर जाने का खतरा था, जरा उम्र तो देखिये अपनी, चाहकर भी कोई उम्मीद नहीं बंधने वाली।”

“इडियट, कंडोम का इस्तेमाल सिर्फ गर्भ रोकने के लिये ही नहीं किया जाता, और भी बहुतेरे फायदे होते हैं इसके।”

“बेशक होते होंगे, मगर मैं नहीं जानना चाहता। ऐसी कोई चीज अगर घर में कहीं मौजूद थी तो वह आपके बेडरूम में होनी चाहिये थी, नीचे जाकर किसी से मांग तो लिया नहीं होगा आपने, ये कहकर कि मेरे पास खत्म हो गया है, बाद में लाऊंगी तो वापिस कर दूंगी।”

“तुम मेरे साथ यूं पेश नहीं आ सकते।”

“आना भी नहीं चाहता, आप कबूल कीजिये कि कल्पना का कत्ल आपने किया है, बात खत्म हो जायेगी। और कुछ कहना-सुनना बाकी नहीं बचेगा।”

“मैंने नहीं किया” - कहकर वह एकदम से पनौती से लिपट गई – “मेरा यकीन करो मैंने कुछ नहीं किया है।”

पनौती ने बड़ी बेरहमी से उसे खुद से परे धकेल दिया।
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Re: पनौती

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“मैडम प्लीज! दूर खड़े होकर बात कीजिये।”

“नहीं कर सकती, तुमने जैसे कोई जादू कर दिया है मुझपर। तुमसे इतनी जिल्लत झेलकर भी मेरे मन में तुम्हारे लिये नफरत पैदा नहीं हो रही। सच पूछो तो यादव के ऑफिस में तुमपर निगाह पड़ते ही मैं तुम्हें पाने को तड़प उठी थी। इसी कारण मैंने तुम्हें आज रात घर बुलाया था।”

पनौती ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

“बस एक बार कह दो कि तुम मेरे हो, मैं तुम्हारी खातिर कुछ भी करने को तैयार हूं, चाहो तो मेरा सबकुछ ले लो, मेरी तमाम दौलत अपने नाम करवा लो, लेकिन तुम मेरे बन जाओ, मैं वादा करती हूं कि कभी तुम्हारे किसी और रिलेशन के आड़े नहीं आऊंगी, तुम जिसके साथ मर्जी अपनी जिंदगी गुजारना, बस मुझे भूल मत जाना।”

“भूल तो मैं बेशक आपको नहीं पाऊंगा मैडम, मगर वह हरगिज नहीं हो सकता जो आप चाहती हैं। आगे कुछ कहूंगा तो आपको फिर से अपनी बेइज्जती महसूस होगी, इसलिए आखिरी बार चेतावनी देता हूं कि ये फिल्मी डॉयलाग बंद कीजिए, ये सोचकर कीजिये कि मुझपर इसका कोई असर नहीं होने वाला।”

“क्यों? मैं क्या खूबसूरत नहीं हूं, या किसी जवान लड़की की तरह मर्द को सम्मोहित करने की क्षमता नहीं है मेरे भीतर? क्यों तुम मेरे साथ यूं पेश आकर दिखा रहे हो?”

“बेशक आप खूबसूरत हैं और माशाअल्लाह सम्मोहन की भी कोई कमी नहीं है आपमें, मगर इन सब बातों से परे एक सच्चाई और भी है। वह ये है कि खंडहर की कितनी भी मरम्मत क्यों न कर ली जाये, रंग-रोगन के जरिये उसे चमकाने की कोशिश क्यों न कर ली जाये, रहता तो वह आखिर खंडहर ही है, क्योंकि उसके मूल में छिपी इमारत को सिरे से नहीं बदला जा सकता, ऐसी कोशिश की जायेगी तो खंडहर अपना बचा-खुचा वजूद भी खो बैठेगा।”

जवाब में मीनाक्षी कुछ क्षण तक उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती रही फिर बोली, “कहीं तुम इंपोटेंट तो नहीं हो?”

“आप वह लोमड़ी तो नहीं हैं, जो अंगूर तक पहुंच नहीं बना सकी तो उसे खट्टा बताने लगी?”

सुनकर मीनाक्षी तिलमिला कर रह गई।

“अब अगर आपके जहन पर सवार नामुराद नशा उतर चुका हो, तो दिखावे को ही सही, जरा गमगीन हो कर दिखाइये, मत भूलिये कि सामने आपकी बहू की लाश पड़ी है, भले ही वह आपके सौतेले बेटे की बीवी थी, मगर रिश्ता तो बराबर बनता है।”

हैरानी की बात ये रही कि पनौती के मुंह का आखिरी फिकरा सुनते ही मीनाक्षी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। पता नहीं वह आंसू पनौती के हाथों हुई बेइज्जती के थे या फिर सचमुच उसे अपनी बहू की मौत का अफसोस हो आया था।


“हां अब ठीक है, भगवान के लिये पुलिस के आने तक ये सिलसिला चलता रहने दीजियेगा, क्योंकि कत्ल का पहला शक उन्हें आप पर ही होने वाला है। ऐसे में हो सकता है आपके आंसुओं को देखकर ही इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर पिघल जाये और आपके साथ नर्मी से पेश आने लगे।”

इसके बाद पनौती ने सतपाल को फोन कर के संक्षेप में सारी कहानी कह सुनाई और कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद उसके वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा।

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Re: पनौती

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आधे घंटे बाद इंस्पेक्टर सतपाल सिंह दल-बल सहित वहां हाजिर हुआ।

तब तक राज शर्मा लाश के पास से हिला तक नहीं था। ये अलग बात थी कि पुलिस के आने तक बंगले में मौजूद तमाम लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे, जिनमें से एक डॉली शर्मा भी थी। उसने राज की तरफ नजर उठा कर देखने या उससे बात करने की कोई कोशिश नहीं की।

अनुराग शर्मा को कल्पना की मौत की सूचना दी जा चुकी थी, मगर पुलिस के आगमन तक वह घर नहीं पहुंच पाया था।
सतपाल लाश के पास पहुंचा।

कुछ देर तक उकड़ू बैठ कर डैड बॉडी का मुआयना करता रहा, वहां रोशनी का प्रत्यक्षतः कोई साधन नहीं था, थोड़ा बहुत जो उजाला वहां दिखाई दे रहा था, वह खिड़कियों से छन कर बाहर पहुंचती ट्युब लाइट की रोशनी का था, जो कि लाश का सूक्ष्म मुआयना करने के लिये नाकाफी जान पड़ता था।

उसने हाथ के इशारे से एक सिपाही को अपने करीब बुलाया।
“मोबाइल का टॉर्च जलाकर रोशनी का रूख इसके ऊपर कर।”

सिपाही ने किया। तब सतपाल ने एक बार फिर ज्यादा गौर से लाश के आस-पास की जगह का मुआयना किया, कहीं कोई सूत्र हासिल होता नहीं दिखा। उसने सिर उठाकर ऊपर की तरफ देखा था पहली मंजिल की खिड़की खुली दिखाई दी।

उसने सिपाही से टॉर्च बंद कर लेने को कह दिया।
फिर टहलने वाले अंदाज में चलता हुआ, राज के करीब पहुंचा।

“मैंने मना किया था” - वह धीरे से बोला – “साफ-साफ चेतावनी भी दी थी, मगर तू सुने तब न?”

“उन बातों के लिये ये सही वक्त नहीं है इंस्पेक्टर साहब, फिर किसी को चेतावनी देना एक सहज प्रक्रिया है, जबकि हत्या जैसी वारदात का घटित हो जाना जुदा बात होती है। मुझे अगाह करते वक्त क्या पल भर को भी तुम्हारे जहन में ये ख्याल आया था कि यहां एक और कत्ल हो जाने वाला था।”

सतपाल कुछ क्षणों तक उसे घूरकर देखता रहा, फिर मीनाक्षी शर्मा की तरफ आकर्षित हुआ, “मैडम! चार दिनों के भीतर आपके परिवार में दो कत्ल हो चुके हैं, कुछ कहना चाहती हैं आप इस बारे में?”

“नहीं लेकिन मुझे इस लड़के पर शक है” - उसने पनौती की तरफ उंगली उठा दी – “इसके अलावा कत्ल के वक्त बंगले की पहली मंजिल पर कोई दूसरा जना मौजूद नहीं था।”

“शक की कोई वजह।”

“कत्ल के एकदम बाद ये आंधी तूफान की तरह दौड़ता हुआ बंगले से निकल कर सीधा यहां आ खड़ा हुआ था। साफ जाहिर हो रहा था कि इसे पहले से पता था कि यहां कल्पना की लाश पड़ी हुई है। अब मेरा सवाल ये है कि क्यों पता था? घर के नौकर-चाकर किसी को भी खबर नहीं लगी थी कि कल्पना के साथ क्या गुजरी थी, मगर इस शख्स को पूरी पूरी खबर थी, और वैसा सिर्फ एक ही सूरत में हो सकता है जब कल्पना की हत्या इसने खुद की हो।”

“तर्क कमाल का दे लेती हैं आप।”

“थैंक्यू।”

“आप इसे पहले से जानती हैं?”

“नहीं, तुम्हें खूब पता है कि मैं इसे नहीं जानती।”

“इसके साथ आप लोगों की कोई दुश्मनी है?”

“मेरी नॉलेज में तो नहीं है, लेकिन कल्पना के साथ इसकी कोई ना कोई अदावत जरूर रही होगी, वरना ये उसे उठाकर खिड़की से नीचे न फेंक देता।”

“मैडम ये कत्ल का मामला है, इसलिए सोच समझ कर जुबान खोलिये। यूं ही आपके कहने भर से किसी को कातिल नहीं मान लिया जायेगा, या तो आप कोई वजह बयान कीजिये या फिर यूं ही किसी पर भी उंगली उठाना बंद कीजिये।”

“तुम तो ऐसा कहोगे ही, आखिरकार यार है ये तुम्हारा।”

“आप ऐसा सोचती हैं तो चलिये यही सही, अब बताइये कत्ल के वक्त आप कहां थी, क्या कर रही थीं?”

“मैं इसे ऊपर! कल्पना के ऐन बगल वाले कमरे में बैठा छोड़कर, नीचे हॉल में कुछ सामान लेने गई हुई थी, वापिस लौट ही रही थी कि ये शख्स मुझे तेजी से सीढ़ियां उतरता दिखाई दिया और मेरे देखते ही देखते दौड़ता हुआ हॉल से बाहर निकल गया।”
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