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क्रेजी ज़िंदगी

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क्रेजी ज़िंदगी

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क्रेजी ज़िंदगी

‘रूम नहीं हैं? क्या मतलब कि रूम नहीं हैं?’ मैंने गोवा मैरियट के लॉबी मैनेजर पुनीत बनर्जी से कहा।
‘देखिए मैं आपको यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि...’ पुनीत ने अपनी नपी-तुली आवाज़ में बोलना शुरू ही किया था कि मॉम ने उसे बीच में टोक दिया।
‘ये मेरी बेटी की शादी है। क्या आप हमारी नाक कटवाओगे?’ उन्होंने इतनी ऊँची आवाज़ में कहा कि रिसेप्शन स्टाफ के बाकी के तमाम लोग चौंक गए।
‘नो मैम, केवल 20 रूम्स की शॉर्टेज है। आपने सौ रूम्स बुक कराए थे, लेकिन हमने तब भी 80 रूम्स देने का ही प्रॉमिस किया था। हम आपको और भी रूम देना चाहते थे, लेकिन चीफ मिनिस्टर के फंक्शन के कारण...’
‘लेकिन हम अपने गेस्ट्स को क्या बोलें, जो अमेरिका से यहाँ आ रहे हैं?’ मॉम ने कहा।
‘मैं तो सजेस्ट करूंगा कि यहां से दो किलोमीटर दूर एक और होटल है, ’ पुनीत ने कहा।
‘हम सब लोग यहाँ एक साथ ही रहेंगे। तुम एक सरकारी फंक्शन के लिए मेरी बेटी की शादी खराब कर दोगे क्या!’ मॉम ने कहा। उनकी साँसें फूलने लगी थीं, जो कि आने वाले तूफान का साफ इशारा था।
‘मॉम, आप प्लीज़ डैड के पास जाकर बैठो, मैं इधर संभाल लूँगी, ’ मैंने कहा। माँ ने घूरकर मेरी ओर देखा। मैं दुल्हन थी। मैं ये सारे काम कैसे संभाल सकती थी! मुझे तो रूम्स के बजाय अपने फेशियल की फिक्र करनी चाहिए।
‘लड़के वाले तीन घंटे में यहाँ पहुँच रहे हैं। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि यहाँ हो क्या रहा है, ’ उन्होंने लॉबी के बीचोबीच रखे सोफे की तरफ जाते हुए बड़बड़ाते हुए कहा। मेरे पिता वहाँ पर अपनी बड़ी बहन कमला बुआ के साथ बैठे थे। लॉबी के बाकी काउचेस पर दूसरे अंकल और आंटी जमकर बैठे थे। मैरियट पर मेहताओं का कब्ज़ा हो चुका था! माँ ने मेरे पिता को भी तनिक घूरकर देखा, जिसका मतलब यह था कि तुम कभी किसी मामले में खुद कुछ करोगे या नहीं!
पिता पलटकर बैठ गए। मैं फिर लॉबी मैनेजर की ओर मुखातिब हुई।
‘क्या किया जा सकता है, पुनीत? मेरी पूरी फैमिली यहाँ पर है।’ मैंने कहा।
हम दिल्ली से सुबह की फ्लाइट से आए थे। शर्मा परिवार, यानी लड़के वाले, मुंबई से 3 बजे उड़कर 4 बजे गोवा पहुँचने वाले थे। उन्हें 5 बजे तक होटल ले आने के लिए 20 इनोवा हायर की गई थीं। मैंने टाइम चेक किया : ढाई बज चुके थे।
‘देखिए मैम, हमने मेहता-शर्मा वेडिंग के लिए एक स्पेशल डेस्क सेट की है और अभी हम आपके फैमिली मेम्बर्स के लिए ही चेक-इन कर रहे हैं, ’ पुनीत ने कहा।
उसने लॉबी के एक कोने की ओर इशारा किया, जहां मैरियट स्टाफ की तीन लड़कियाँ चेहरे पर परमानेंट स्माइल लिए बैठी थीं। वे सभी का हाथ जोड़कर स्वागत कर रही थीं। हर गेस्ट का सीपियों की माला पहनाकर स्वागत किया जाता और उन्हें रूम की चाबियाँ, मैरियट गोवा का नक्शा और एक वेडिंग इंफॉर्मेशन बुकलेट दी जाती। बुकलेट में आने वाले सप्ताह का पूरा कार्यक्रम लिखा होता, जिसमें सेरेमनीज़ के समय-स्थान वगैरह की सूचनाएँ होतीं।
‘हमारी साइड के लोग 50 रूम्स लेंगे तो शर्माज़ को भी इतने ही रूम्स लगेंगे।’ मैंने कहा।
‘मैम, यदि आप 50 रूम्स ले लेंगी तो हमारे पास उनके लिए 30 रूम्स ही रह जाएँगे, ’ पुनीत ने कहा।
‘सूरज कहाँ है?’ मैंने कहा। सूरज मूनशाइन इवेंट्‌स का ओनर था, हमने इसी इवेंट मैनेजर को शादी के लिए अप्वॉइंट किया था। ‘हम आखिरी वक्त में कुछ मैनेज कर लेंगे, ’ ऐसा उसने मुझसे कहा था।
‘एयरपोर्ट पर, ’ पुनीत ने जवाब दिया।
मेरे पिता रिसेप्शन डेस्क पर पहुँचे और पूछा : ‘सब ठीक तो है ना, बेटा!’
मैंने उन्हें पूरी सिचुएशन समझाई।
‘30 रूम्स! शर्माज़ के साथ 120 गेस्ट्स हैं।’ उन्होंने कहा।
‘एग्जैक्टली!’ मैंने अपने हाथ पटकते हुए कहा।
अब मॉम और कमला बुआ भी रिसेप्शन डेस्क पर आ गए। कमला बुआ ने कहा : ‘ मैंने सुदर्शन से पहले ही कहा था, गोवा में क्या रक्खा है? दिल्ली में मैरिज हॉल और फार्म हाउसेस का कोई टोटा है क्या! लेकिन लगता है तुम लोगों के पास फिज़ूलखर्ची करने के लिए बहुत सारा पैसा है!’
मैं उन्हें पलटकर जवाब देना चाहती थी, लेकिन माँ ने मुझे एक ‘मदर लुक’ दी तो मैं चुप रही।
आखिरकार वे हमारी मेहमान हैं, मैंने खुद को दिलासा दिया और एक लंबी साँस छोड़ी।
‘हमारी तरफ से कितने मेहमान हैं?’ माँ ने पूछा।
‘मेहता फैमिली की तरफ से 117 गेस्ट्स हैं, ’ पुनीत ने अपनी रिजर्वेशन शीट में से गिनती करते हुए कहा।
‘यदि हम 80 लोग होते तो दोनों साइड के लोग एडजस्ट कर लेते, ’ मैंने कहा। ‘लेकिन अब तो कहीं और जाना होगा। मेहताज़ के लिए चेक-इन फौरन बंद कर दो।’
पुनीत ने कोने में बैठी स्माइल करने वाली लड़कियों को इशारा किया। उन्होंने स्माइल करना बंद कर दिया और चेक-इन्स रोकते हुए सीपियों की माला अपनी दराजों में रखने लगीं।
‘लेकिन हम लड़के वालों के लिए कमरों की संख्या कम कैसे कर सकते हैं?’ माँ ने शॉक्ड आवाज़ में कहा।
‘हमारे पास कोई और चारा नहीं है।’ मैंने कहा।
‘उन्हें कितने रूम्स की उम्मीद थी?’ उन्होंने पूछा।
‘पचास।’ मैंने कहा। ‘उन्हें अभी फोन लगाओ। वे यहाँ तक आने से पहले री-एडजस्ट कर लेंगे।’
‘लेकिन हम लड़के वालों से एडजस्ट करने को कैसे बोल सकते हैं?’ कमला बुआ ने कहा। ‘अपर्णा, आर यू सीरियस?’
माँ ने कमला बुआ और मेरी तरफ देखा।
‘लेकिन हम केवल 30 रूम्स में कैसे मैनेज करेंगे?’ मैंने कहा और अपने पिता की ओर मुड़ते हुए उनसे बोली, ‘डैड, उन्हें अभी फोन लगाओ!’
‘सुदर्शन, उनके यहाँ पहुँचने से पहले ही उनकी इनसल्ट मत करो।’ कमला बुआ ने कहा। ‘हम 30 कमरों में ही मैनेज कर लेंगे। ठीक है। हममें से कुछ लोग फर्श पर सो जाएँगे।’
‘किसी को भी फर्श पर सोने की ज़रूरत नहीं है, बुआ।’ मैंने कहा। ‘आई एम सॉरी कि ऐसे हालात बन रहे हैं। लेकिन अगर हमारे पास 80 रूम्स हैं, तो सीधा हिसाब यही है कि एक रूम में तीन लोग रहेंगे। फिर इतने सारे बच्चे भी आ रहे हैं, तो कोई दिक्कत नहीं होगी।’
‘हम 30 में ही मैनेज कर लेंगे।’ माँ ने कहा।
‘मॉम, तब हमें एक रूम में चार लोगों को एडजस्ट करना होगा, जबकि शर्माज़ के पास इतना सारा स्पेस होगा। उन्हें बता देते हैं।’
‘नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते।’ माँ ने कहा।
‘क्यों?’
‘अरे वो लड़के वाले हैं, तुम्हें क्या इतनी बात समझ नहीं आती?’
मैं अपनी ही शादी में हार का सामना नहीं करना चाहती थी। ख़ासतौर पर उन लोगों के यहाँ पहुँचने के एक घंटे के भीतर ही। लिहाजा मैंने अपने पिता से कहा, ‘डैड, ये कोई बड़ी बात नहीं है। उनकी फैमिली हमारी बात को समझ जाएगी। आखिर हम लोग यहाँ पर पूरे छह दिनों के लिए हैं। हमें बहुत दिक्कत हो जाएगी।’
ज़ाहिर है, डैड ने कुछ नहीं सुना। उनकी पत्नी और उनकी बहन, ये दो औरतें उन्हें रिमोट से चलाती थीं। और ऐसा पहली बार हो रहा था कि वे दोनों किसी बात पर सहमत थीं।
‘बेटा, ये रस्मो-रिवाज़ हैं। तुम अभी नहीं समझतीं। हमें उन लोगों का ख्याल रखना होगा। हमेशा लड़की वालों से ही उम्मीद की जाती है कि वे एडजस्ट करेंगे।’
मैंने और पाँच मिनट तक बहस की, लेकिन जब कोई नतीजा निकलता नज़र नहीं आया तो मैंने हार मान ली। हम एडजस्टमेंट के बारे में बात करने लगे।
‘तुम और अदिति एक कमरे में हो जाना, ’ माँ ने मेरी बहन की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘नहीं, उसे अपने हसबैंड के साथ ही रहने दो। जीजू क्या सोचेंगे?’ मैंने कहा।
‘अनिल दूसरे जेंट्‌स के साथ एडजस्ट कर लेगा, ’ कमला बुआ ने कहा।
अगले बीस मिनटों तक ये दो औरतें 117 लोगों वाली मेहता फैमिली को 30 कमरों में एडजस्ट करने की प्लानिंग बनाती रहीं। उनके मानदंड बहुत अजीबोगरीब थे, जैसे रूम शेयर करने वालों को एक-दूसरे से नफरत नहीं होनी चाहिए (इसके लिए आपस में लड़ाई-फसाद वाले रिश्तेदारों को अलग-अलग ठहराया जाना था), या ऐसे लोगों को साथ नहीं रखा जाना था, जो एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो सकते हों (इसके लिए मिक्स्ड जेंडर वालों को अलग रखा जाना था, फिर चाहे वे अस्सी साल से ऊपर के ही क्यों ना हों)। पाँच बच्चों को एक रूम में पैक किया जाना था, अकसर किसी बुज़ुर्ग के साथ। कमला बुआ, जो कि एक विधवा हैं, ने बहुत ही नाटकीय तरीके से कहा कि वे मेरे माता-पिता के कमरे में फर्श पर सो जाएँगी, जिस पर मेरे पिता को मजबूरन कहना पड़ा कि फर्श पर वे सोएँगे, वे उनके बेड पर सो सकती हैं। पुनीत लगातार कहता रहा कि वह रूम्स में एक्स्ट्रा बेड लगवा देगा। लेकिन फर्श पर सोने को तैयार एक पंजाबी बुआ के त्याग के सामने मैरियट होटल का एक्सट्रा बेड क्या चीज़ है!’
‘मैं तो रोटी और अचार खाकर ही अपना गुजारा कर लूँगी, ’ कमला बुआ ने कहा।
‘ये मैरियट है बुआ। यहाँ सभी के लिए काफी खाना है, ’ मैंने कहा।
‘मैं तो बस यूँ ही कह रही थी।’
‘इससे तो अच्छा होगा कि हम री-लोकेशंस पर ध्यान दें। हमें शर्माज़ के आने से पहले ही चेक-इन करना होगा, ’ मैंने कहा।
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Re: क्रेजी ज़िंदगी

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इस अफरातफरी के बीच मैं यह भूल ही गई कि मैं यहाँ किसलिए आई थी। मैं यहाँ अपनी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल देने को आई थी। मैं यहाँ वह करने आई थी, जो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि मैं करूँगी : अरेंज्ड मैरिज!
मैं यहाँ हज़ार इंतजामों और बंदोबस्तों के बीच उलझी हुई थी। मैंने पलभर को ठहरकर सोचा कि महज़ एक हफ्ते के भीतर मेरी शादी हो जाएगी, एक ऐसे आदमी के साथ, जिसे मैं ठीक से जानती तक नहीं हूँ। फिर ताउम्र मुझे उसके साथ अपना घर, बिस्तर और ज़िंदगी साझा करनी होगी।
लेकिन मैं अभी तक इस सच का सामना क्यों नहीं कर पाई थी? इसके बजाय मैं चैट पर सूरज से उलझ क्यों रही थी?
मैं : रूम्स को लेकर बहुत प्रॉब्लम हुई, सूरज। यह ठीक नहीं है।
सूरज : सॉरी, रियली सॉरी। पोलिटिकल रीज़न्स थे! मैंने कोशिश की, सचमुच!
मैं : तुमने तो कहा था कि तुम रूम्स का इंतज़ाम करवा दोगे।
सूरज : हाँ, मैंने कहा था। लेकिन गोवा के सीएम को रूम्स की ज़रूरत आन पड़ी। मैरियट एक सीएम को तो मना नहीं कर सकता है ना।
मैं : अभी और कौन-कौन-सी चीज़ों पर इसी तरह से दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?
सूरज : अब और कुछ नहीं होगा। मुंबई से इंडिगो लैंड कर चुकी है। हम गेस्ट्स को रिसीव करने जा रहे हैं। सी यू सून।
मैं मेहता-शर्मा चेक-इन्स डेस्क पर पहुँची। मेरी फैमिली के सभी गेस्ट्स चेक-इन कर चुके थे। कुछ ने जरूर तीन-तीन लोगों के साथ रूम शेयर करने की बात पर मुँह बनाया, लेकिन अधिकतर को इससे कोई दिक्कत नहीं थी। माँ का कहना था कि मुँह बनाने वाले लोग वे ही थे, जो हमसे जलते थे। वे लोग, जो इस बात को अभी तक स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके थे कि गोवा में डेस्टिनेशन वेडिंग कर सकें। वहीं माँ के मुताबिक, जो लोग चुपचाप राज़ी हो गए थे, ये वे लोग थे, जो समझते थे कि लड़की वालों को तो हमेशा झुकना ही पड़ता है।
‘मेरे सामने ये लड़के वाले-लड़की वाले मत किया कीजिए, मुझे पसंद नहीं, ’ मैंने कहा। मॉम और मैं लॉबी में बैठे थे और यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे थे कि होटल स्टाफ ने शर्माज़ के लिए स्पेशल चेक-इन डेस्क तैयार कर रखी है या नहीं।
‘क्या तुम एक हफ्ते के लिए अपना यह फेमिनिज़म का झंडा फहराना बंद सकती हो? यह शादी है, कोई एनजीओ एक्टिविस्ट वेन्यू नहीं है, ’ माँ ने कहा।
‘लेकिन...’
‘मैं जानती हूँ कि ये पूरा खर्चा तुम ही उठा रही हो, फिर भी रीति-रिवाजों का लिहाज़ तो करना ही होता है।’
‘लेकिन ये रीति-रिवाज़ जेंडर डिस्क्रिमिनेशन से भरे हुए हैं!’
‘तुमने अपने पार्लर की अप्वॉइंटमेंट्‌स चेक की या नहीं। अदिति भी पूरे सात दिनों तक हेयर-डू और मेकअप चाहती थी।’
जब भी माँ किसी बात का जवाब नहीं देना चाहती थी तो वो इसी तरह से बातचीत का रुख मोड़ दिया करती थी।
‘हाँ, अदिति दीदी बिलकुल ऐसा ही चाहती हैं, ’ मैंने कहा।
‘तो जाओ और चेंज कर लो, ’ मॉम ने कहा।
‘क्या!’
‘तुम ये जींस और टी-शर्ट में लड़के वालों से मिलोगी? और अपने गले को तो देखो।’
‘आपने फिर लड़के वाले कहा! और मेरे गले में क्या खराबी है?’
‘तुमने कोई ज्वेलरी नहीं पहनी है! जाओ, जाकर सलवार-कमीज़ पहन लो और मेरे ज्वेलरी बॉक्स से लेकर एक चेन गले में डाल लो।’
‘मैं अभी-अभी यहाँ आई हूँ और तभी से गेस्ट्स के लिए रूम्स के अरेंजमेंट में लगी हुई हूँ। अभी मुझे बन-ठनकर रहने की क्या ज़रूरत है? क्या लड़का भी फ्लाइट से उतरने के बाद सज-सँवरकर यहाँ पर आएगा?’
मेरी माँ ने हाथ जोड़ लिए। जब उनके तमाम तर्क नाकाम हो जाते, तो वे यही करतीं। अजीब बात है कि अकसर उनकी यह जुगत कामयाब भी रहती थी।
मैं हार मानकर उठ खड़ी हुई। उन्होंने मुझे अपने और मेरे रूम की चाबियाँ थमाईं। मैं पहले उनके रूम में गई और उनके ज्वेलरी बॉक्स से एक सबसे पतला सोने का हार निकाला। मैं यह सब करने के लिए क्यों राज़ी हो रही हूँ, नेकलेस पहनते समय मैंने सोचा। शायद इसलिए कि मैं चीज़ों को अपनी तरह से करके कामयाब नहीं हो पाई। वीमन एम्पॉवरमेंट और फेमिनिज़म की तमाम बातों से मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। शायद कमला बुआ और मॉम का तरीका ही ज़्यादा सही था।
मैं अपने कमरे में पहुँची। कॉरिडोर में चार बड़े-बड़े सूटकेस ठसे हुए थे। उनमे से दो बड़े बैग मेरी बहन के थे, जो अपने साथ इतनी ड्रेसेस लेकर आई थी कि उतनी कीमत में एक पूरा रीटेल स्टोर खरीदा जा सकता था।
मैंने अपना एक सूटकेस खोला और उसमें से पीले रंग की सिल्क सलवार-कमीज़ निकाली, जिसकी बॉर्डर पर जरी का महीन काम था। मेरी माँ ने कहा था कि इस पूरे हफ्ते कॉटन नहीं पहनना है। मैंने कपड़े उतारे और अपने को आईने में देखा। मेरे लहरदार बाल बड़े हो गए थे और अब मेरे कंधों तक आ रहे थे। मैं पतली-दुबली नज़र आ रही थी। शादी से पहले की गई दो महीनों की डाइट का यह नतीजा था। मैंने हांगकांग में जो ब्लैक ला पेर्ला लॉन्जरी खरीदी थी, उसने भी मेरे फिगर के उतार-चढ़ावों को उभारने में मदद की थी। महंगी अंडरवियर किसी को भी सेक्सी बना सकती है, मैंने मन-ही-मन खुद से कहा। अतीत में कुछ मर्द मुझे सेक्सी कहकर पुकार चुके थे, लेकिन शायद वे सच नहीं कह रहे थे। आखिर मैं अपने आपको लेकर इतनी सख्त क्यों हूँ? आख़िर कुछ मर्द मुझे सच में सेक्सी क्यों नहीं समझ सकते? वेल, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं रह गया है। बहुत जल्द मुझे एक नए मर्द के सामने अपने कपड़े उतारने होंगे। इस ख्याल से ही मैं सिहर गई।
मैं आईने के और करीब आई। मैंने अपने चेहरे को नज़दीक से देखा। ‘इट्‌स ऑल हैपनिंग, सुषमा, ’ मैंने ज़ोरों से कहा।
हाय, मैं सुषमा मेहता हूँ और इसी हफ्ते मेरी शादी होने जा रही है। मैं सत्ताइस साल की हूँ और मेरी परवरिश दिल्ली में हुई है। मैं लंदन में एक इंवेस्टमेंट बैंक गोल्डमान साक्स के लिए काम करती हूँ। मैं डिस्ट्रेस्ड डेट ग्रुप की वाइस प्रेसिडेंट हूँ। मेरी कहानी पढ़ने के लिए शुक्रिया। बहरहाल, मैं आपको एक बात बता देना चाहती हूँ। शायद आप मुझे बहुत ज़्यादा पसंद ना करें। कारण? अव्वल तो यही कि मैं बहुत पैसा कमाती हूँ। दूसरा यह कि दुनिया-जहान की हर चीज़ को लेकर मेरा एक ओपिनियन है। और तीसरा यह कि मैं पहले सेक्स कर चुकी हूँ। नाऊ, अगर मैं लड़का होती तो आपको इन तमाम बातों से कोई तकलीफ नहीं होती। लेकिन चूँकि मैं लड़की हूँ, इसलिए ये तमाम बातें मुझे बहुत हरदिलअज़ीज़ तो नहीं ही बनाती होंगी, है ना?
मैं थोड़ी नर्ड (पढ़ाकू) भी हूँ। मैं और मेरी बहन अदिति की पढ़ाई दिल्ली में पूसा रोड पर स्प्रिंगडेल्स स्कूल में हुई है। वह मुझसे एक साल ही बड़ी है। मेरे पैरेंट्‌स चाहते थे कि उनकी पहली संतान बेटा हो। जब अदिति दीदी का जन्म हुआ तो उन्होंने तय किया कि इस नुकसान की भरपाई जल्दी-से-जल्दी की जाए। इसीलिए मेरे पिता, एसबीआई नारायणा विहार के ब्रांच मैनेजर सुदर्शन मेहता ने तय किया कि उनकी होममेकर बीवी अपर्णा मेहता एक और संतान को जन्म देगी। अफसोस कि दूसरी संतान भी बेटी हुई यानी कि मैं। बताया जाता है कि उसके बाद उन्होंने दो बार फिर कोशिश की और दोनों ही बार मेरी माँ को एबॉर्शन करवाना पड़ा, क्योंकि यह पाया गया था कि उनके पेट में फिर बेटियाँ पल रही थीं। कुछ साल पहले मैंने इस विषय पर माँ को घेरना चाहा था, लेकिन उन्होंने बात को टाल दिया।
‘मुझे अब कुछ याद नहीं है, ’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ खुश हूँ।’
‘आपने दो बार एबॉर्शन करवाए और आप कह रही हैं कि आपको याद नहीं!’
‘तुम मुझे जज करने लगोगी, इसलिए तुम्हें इस बारे में बताने से कोई फायदा नहीं है। तुम्हें पता नहीं है कि बेटा नहीं होने का क्या मतलब होता है!’
उसके बाद मैंने उनसे यह सवाल पूछना ही बंद कर दिया।
स्कूल में अदिति दीदी मुझसे कई गुना अधिक पॉपुलर थी। लड़कों को उस पर क्रश होता था। जबकि मैं ऐसी लड़की थी, जो छठी क्लास से ही चश्मा लगाने लगी थी। अदिति दीदी का रंग गोरा था! जबकि मेरा रंग गेहुँआ था। हम दोनों किसी फेयरनेस क्रीम के एड में दिखाई जाने वाली बिफोर और आफ़्टर तस्वीरों की तरह थीं। ज़ाहिर है, मैं बिफ़ोर वाली तस्वीर की तरह थी। अदिति दीदी ने बारह साल की उम्र से ही डाइटिंग शुरू कर दी थी। तेरह की उम्र से वे अपनी टांगों को वैक्स करने लगी थीं। जबकि मैंने बारह की उम्र में अपनी क्लास में टॉप किया था और तेरह की उम्र में मैथ्स ओलिंपियाड जीता। ज़ाहिर है, मेरी दीदी मुझसे ज़्यादा कूल थीं। स्कूल में लोग या तो मुझे नोटिस ही नहीं करते थे या मेरा मज़ाक बनाया करते थे। ऐसे में मैं यही पसंद करती थी कि लोग मुझे नोटिस ही ना करें। मैं अपनी किताबों की दुनिया में खोई रहती। एक बार, दसवीं क्लास में मुझे एक लड़के ने भरी क्लास में प्रपोज़ कर दिया। उसने मुझे आर्चीज़ ग्रीटिंग के साथ एक रेड रोज़ दिया। मारे खुशी के मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े, लेकिन पल भर में पता चल गया कि वह मज़ाक था। उसने फूल को दबाया तो उसमें से स्याही की पिचकारी छूट गई। मेरा चेहरा स्याह हो गया। पूरी क्लास हँस पड़ी। गनीमत थी कि मैंने चश्मा पहन रखा था, नहीं तो स्याही मेरी आँखों में चली जाती।
उस दिन मैंने समझ लिया कि मेरी लाइफ केवल पढ़ाई-लिखाई में ही है। बारहवीं क्लास में मैंने स्कूल में टॉप किया था। दिल्ली में टॉप फाइव रैंक मेरी थी। इसके उलट अदिति दीदी ने बामुश्किल बारहवीं पास की थी, अलबत्ता फेयरवेल में उन्होंने ‘मिस हॉटनेस’ का अनॉफिशियल टाइटिल जरूर जीता था। कुछ मायनों में, या शायद हर मायने में, यह सीबीएसई टॉप करने से बड़ा अचीवमेंट था!
आपने डीयू कट-ऑफ के बारे में तो सुना ही होगा। वैसे हालात मेरे जैसे स्टूडेंट्‌स के कारण ही बनते हैं। मैंने बारहवीं में 98 परसेंट एग्रीगेट स्कोर किया था। इसके बाद मैंने श्रीराम कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स या एसआरसीसी ज्वॉइन कर लिया। कहते हैं कि वह पढ़ाकुओं के लिए बेस्ट कॉलेजों में से एक है। एसआरसीसी में ही मुझे पता चला कि मैं तो पढ़ाकुओं में भी और बड़ी वाली पढ़ाकू हूँ। मैंने वहाँ भी टॉप किया। मैंने कभी कोई क्लास बंक नहीं की। बामुश्किल ही कभी लड़कों से बात की। मैंने ना के बराबर दोस्त बनाए। स्कूल के दिनों की यादें ही इतनी बुरी थीं कि मैं चाहती थी कि कम-से-कम कॉलेज में ऐसी कोई नौबत ना बने।
कॉलेज खत्म कर मैंने एमबीए एंट्रेंस के लिए कैट लिया। जैसी कि मेरे जैसी पढ़ाकू से उम्मीद की जा सकती है, मैंने 99.7 परसेंट स्कोर किया। वहाँ से मैं सीधे आईआईएम अहमदाबाद पहुँची। दूसरी तरफ अदिति दीदी ने एमिटी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और उसके बाद शादी करने का मन बना लिया। एक अच्छे दूल्हे को लेकर उनके दिमाग में दो क्राइटेरिया थे : एक, लड़का अमीर होना चाहिए और दूसरा, वेल, इसके सिवा कोई और क्राइटेरिया था ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि वह एक हाउसवाइफ बनकर अपने हसबैंड की देखभाल करना चाहती हैं। दिल्ली के अमीर पंजाबी मर्द, जो खुद कभी कोई लड़की नहीं पटा सकते, इस तरह की लड़कियों की मुराद पूरी करने के लिए ही बने होते हैं। अदिति दीदी ने अनिल से शादी कर ली, जो पहाड़गंज में तीन सेनिटरीवेयर दुकानों और दो होंडा सीआरवी का मालिक था। जिस साल मैंने आईआईएमए में दाखिला लिया, उसी साल दीदी की शादी हुई।
‘अब तुम भी जल्द शादी कर लो, ’ दीदी ने मुझसे कहा था। ‘हर लड़की की शादी की एक उम्र होती है। उसमें देरी मत करो।’
‘मैं अभी केवल इक्कीस साल की हूँ, ’ मैंने कहा। ‘ मैंने अभी अपना मास्टर्स भी नहीं किया है।’
‘जितनी कम उम्र में शादी कर लो, उतना ही अच्छा है। खासकर तुम्हारे जैसी लड़की के लिए, ’ उन्होंने कहा।
‘व्हाट डू यू मीन, मेरे जैसी लड़की?’
उन्होंने एक्सप्लेन नहीं किया। लेकिन मेरे खयाल से उनका इशारा मेरे जैसी उन लड़कियों की तरफ था, जो पढ़ाकू होती हैं, या जिनका रंग गेहुँआ होता है, या फिर जिनके ब्रेस्ट फुटबॉल जितने बड़े नहीं होते, जो कि पंजाबी मर्दों को पसंद है।
मैंने आईआईएमए ज्वॉइन कर लिया। आखिरकार मुझे अपना नर्ड-हेवन मिल गया। यहाँ पर हर कोई पढ़ाई करने में लगा हुआ था। और जैसे ही आपको लगता कि आपने ख़ासी पढ़ाई कर ली, आपको और असाइनमेंट्‌स दे दिए जाते। मेरी माँ मुझे अकसर फोन लगाती थीं, खासतौर पर उनके पसंदीदा विषय पर बात करने के लिए। ‘अब तो लड़कों से नजरें मिलाना शुरू कर दो। अनिल के सर्कल में बहुत सारे अच्छे अमीर लड़के हैं।’
‘मॉम, मैं एक सेनिटरीवेयर शॉपओनर्स के सर्कल में शादी नहीं करने वाली।’
‘क्यों?’ माँ ने हैरानी से पूछा।
‘यू नो वॉट, मैं वैसे भी अभी कई साल तक शादी नहीं करने वाली हूँ। भूल जाइए। अभी मेरी क्लास है। बाय।’
मैंने आईआईएमए पूरा किया। मेरे जैसी ओवरअचीवर को डे-ज़ीरो से ही जॉब का ऑफर मिल गया। यह न्यूयॉर्क के गोल्डमान साक्स के लिए एक एसोसिएट के रूप मे काम करने का ऑफर था। सालाना आमदनी थी एक लाख बीस हज़ार डॉलर्स!
‘यानी चार लाख रुपया महीना और अड़तालीस लाख रुपया सालाना!’ मैंने फोन पर माँ को बताया।
मुझे जवाब में कुछ सुनाई नहीं दिया। बहुत संभव है कि वे यह सुनकर गश खाकर गिर गई होंगी। मेरे पिता को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पच्चीस साल के कैरियर में कभी इससे एक-तिहाई सैलेरी भी नहीं मिली थी।
‘आर यू देयर, मॉम?’
‘अब मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा लड़का कहाँ से ढूँढूंगी?’ उन्होंने कहा।
ये उनकी बुनियादी चिंता थी। उनकी तेईस साल की लड़की, जिसकी परवरिश वेस्ट दिल्ली के मिडिल क्लास में हुई, को दुनिया के सबसे बड़े इंवेस्टमेंट बैंक्स में से एक में जॉब मिला था और उन्हें केवल इस बात की चिंता खा रही थी कि अब उनकी बेटी के लिए अच्छा वर कैसे मिलेगा!
‘स्टॉप इट, मॉम। ऐसा क्यों सोच रही हो?’
‘अरे इतना पैसा कमाने वाली लड़की से कौन शादी करेगा? यदि लड़का इससे कम कमाता है, तो वह शादी करने से रहा। और अगर ज़्यादा कमाता है, तो वह एक कामकाजी लड़की को अपने लिए क्यों चुनेगा?’
‘मुझे नहीं मालूम, आप क्या बोल रही हैं। लेकिन मैं अमेरिका जा रही हूँ। मुझे एक बहुत अच्छा जॉब मिला है। क्या आप अपने मेलोड्रामा को किसी और वक्त के लिए बचाकर रख सकती हैं?’
‘तुम्हारे पिता तुमसे बात करना चाहते हैं, ’ उन्होंने कहा और फोन उनकी ओर बढ़ा दिया।
‘गोल्डमान साक्स? यह तो कोई अमेरिकी कंपनी जान पड़ती है, नहीं?’ उन्होंने कहा।

मेरे कमरे की घंटी बजी मैं चौंक गई। अभी मैं गोवा में हूँ, आईआईएमए में नहीं, मैंने खुद को याद दिलाया।
‘कहाँ हो तुम? शर्माज़ केवल दस मिनट में यहाँ पहुँच रहे हैं, ’ मेरी माँ ने कहा।
‘मैं अपने कमरे में हूँ, मॉम।’
‘तुमने कपड़े बदल लिए?’
मैंने आईने में देखा।
‘हाँ, तकरीबन।’
‘फिर जल्दी से नीचे आ जाओ। तुम क्या पहन रही हो?’
‘पीली सलवार-कमीज़। जरी बॉर्डर वाली।’
‘सिल्क?’
‘हाँ।’
‘ चेन पहनी?’
‘हाँ।’
‘ठीक है, चली आओ।’

‘हे, रिमेम्बर मी?’ मुझे अपने पीछे किसी की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलटकर देखा।
‘राज, ’ मैंने अपने होने वाले पतिदेव से कहा। ‘हाय।’
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसके बाद अब क्या करूँ। क्या मुझे शरमाना चाहिए? क्या मुझे हँसना चाहिए? क्या मुझे उसे गले लगाना चाहिए? लेकिन भोंदुओं की तरह मैंने उससे हाथ मिला लिया, जबकि वह अपने बाएँ हाथ से अपने काली कमानी वाले चश्मे को दुरुस्त ही कर रहा था। पिछले कुछ हफ्तों से मैं उससे स्काइप पर बात कर रही थी, लेकिन अभी वह उसकी तुलना में जरा दुबला नज़र आ रहा था। उसका सफेद कुर्ता और नीली जींस कुछ ढीली नज़र आ रही थीं। उसने अपने बाल करीने से साइड में काढ़ रखे थे और वह उनमें स्कूली बच्चों जैसा लग रहा था। मुझे आफ्टरशेव की एक तीखी गंध आई।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: क्रेजी ज़िंदगी

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मैं लॉबी में थी। लड़के वाले आ गए थे। स्पेशल चेक-इन डेस्क के इर्द-गिर्द वे घेरा बनाकर बैठे थे। होटल स्टाफ ट्रे में कोकोनट वॉटर से भरे गिलास ले आया।
‘कोकोनट वॉटर हमारे पैकेज का हिस्सा नहीं था, लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने ऐसा किया, ’ सूरज ने मुझसे कहा। वह रूम्स को लेकर हुई दिक्कत की भरपाई करने की भरसक कोशिश कर रहा था। उसने मुझे पूरे हफ्ते के कार्यक्रम का एक प्रिंट-आउट दिया। मैंने उस पर एक नज़र डाली।
सुषमा वेड्स राज : सप्ताह का कार्यक्रम
पहला दिन:
अराइवल, चेक-इन्स, ब्रीफिंग, रिसोर्ट में आराम
दूसरा दिन:
बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए गोवा दर्शन टूर (सुबह 11 से शाम 6 बजे तक)
क्लब क्यूबाना में मिस्टर राज शर्मा के लिए बैचलर पार्टी (रात 8 बजे) मिस सुषमा मेहता के लिए एलपीके में बैचलरेट पार्टी (रात 8 बजे) ‘तुमने बैचलरर्स पार्टी के लिए बसों का इंतज़ाम कर लिया?’ मैंने पूछा। ‘हाँ मैम। बसें 7.30 बजे तक एंट्रेंस पर पहुँच जाएँगी।’
मैंने आगे पढ़ा।
तीसरा दिन:
फंक्शन रूम में भजन और पूजा (शाम 4 बजे)
चौथा दिन:
फंक्शन रूम में सभी लेडीज़ के लिए मेहंदी काउंटर्स (दोपहर 12 से शाम 6 बजे तक)
पाँचवाँ दिन:
फंक्शन रूम में संगीत (रात 8 बजे)
‘संगीत प्रैक्टिस के लिए कोरियोग्राफर आ गया?’ मैंने पूछा।
‘नहीं मैडम, वह दो दिन बाद आएगा। उसने कहा है कि प्रैक्टिस के लिए खासा समय मिल जाएगा।’
मैंने एक बार फिर कार्यक्रम को गौर से देखा।
छठा दिन :
ग्रैंड बॉलरूम और मेन लॉन्स में वेडिंग (रात 8 बजे से)
सातवाँ दिन :
चेकआउट और डिपार्चर (दोपहर 12 बजे)
सूरज ने हर फंक्शन और वेन्यू के डिटेल्स वाली दूसरी शीट मुझे थमा दीं।
‘रूम्स को लेकर हुई गड़बड़ी के लिए सॉरी, मैडम। अभी सब कुछ अंडर कंट्रोल है, ’ उसने कहा।
सूरज के जाते ही राज मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया।
‘यह जगह बहुत खूबसूरत है। गोवा में शादी एक बेहतरीन आइडिया साबित हो रहा है, ’ उसने कहा। उसका एक्सेंट 90 प्रतिशत भारतीय और 10 प्रतिशत अमेरिकन था। दूर से मैंने अपने पैरेंट्‌स को मैरियट के एंट्रेस पर देखा। वे हाथ जोड़कर राज के पैरेंट्‌स और दूसरे मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। मैं फिर राज से मुखातिब हुई। ‘थैंक्यू। मैंने हमेशा से एक डेस्टिनेशन वेडिंग चाही थी, ’ मैंने कहा।
अगले दस लंबे-धीमे सेकेंडों तक अजब खामोशी छाई रही। आखिर हम एक-दूसरे से क्या बात करें? क्या मैं झिझक तोड़ने की शुरुआत करूँ? क्या मैं यह कहूँ कि हे, एक हफ्ते बाद हम लोग ऑफिशियली सेक्स करना शुरू कर देंगे? चुप रहो, सुषमा! अब बस भी करो!
‘आप बहुत...’ राज ने सही शब्द खोजते हुए कहा, ‘...खूबसूरत लग रही हैं।’
‘तुम्हें इससे बेहतर कोई और वाक्य नहीं सूझा, दूल्हे मियाँ?’ मैंने मन-ही-मन कहा, और फिर खुद को डाँटने लगी : ‘चुप रहो, सुषमा!’ मैं आपको अपनी इस बुरी आदत के बारे में बताना चाहती हूँ। मेरे भीतर एक आवाज़ लगातार चलती रहती है, हर चीज़, हर इंसान के बारे मे बोलती हुई। एक मिनी-मी। कभी-कभी यह आवाज़ मुझ पर इतनी हावी हो जाती है कि मुझे ज़ोर लगाकर सोचना पड़ता है और खुद को याद दिलाना पड़ता है कि हकीकत में हो क्या रहा था।
‘थैंक्यू, ’ मैंने कहा। ‘थैंक्यू, राज।’
‘राज, ’ ये भी भला कोई नाम हुआ! इससे अनफैशनेबल नाम और क्या होगा? सुषमा, तुम एक ऐसे इंसान से ब्याह करने जा रही हो, जिसका नाम राज है। अब तुम्हें मिसेज राज शर्मा के नाम से जाना जाएगा। छी, कितना गंदा! ओके, ओके, चुप हो जाओ! एकदम चुप! कुल-मिलाकर वह एक भला इंसान है और बहुत दूर से यहाँ आया है। आखिर यही बात तो मायने रखती है ना?
‘तुम पर येलो अच्छा लगता है, ’ राज ने अपनी बात जारी रखी।
‘एक्चुअली, येलो से बदतर मेरे लिए कोई और कलर नहीं है। मेरे गेहुँआ रंग से वह कतई मैच नहीं खाता। मैंने तो इसे इसलिए पहना, क्योंकि मॉम चाहती थी कि जब शर्माज़ आएँ तो उन्हें लॉबी में एक सनफ्लॉवर नज़र आए।’ मैं कहना चाहती थी।
‘शुक्रिया, ’ मैंने कहा। कुछ और बोलो, स्टुपिड गर्ल! ‘आपका कुरता भी अच्छा लग रहा है, ’ मैंने कहा। उफ्फ, इससे ज़्यादा स्टुपिड बात और क्या बोली जा सकती थी!
‘हैलो बेटा।’ पचास से ज़्यादा का एक आदमी अपनी पत्नी के साथ मेरे पास आया। मेरे लिए पूरी तरह अजनबी होने के बावजूद वे मुझे बहुत एक्साइटेड नज़र आ रहे थे। मुझे यह समझने में जरा समय लगा कि वे कौन थे। अच्छा, तो ये हैं मेरे इन-लॉज! मि. आदर्श शर्मा और मिसेज सुलोचना शर्मा। सुषमा, कम-से-कम अब कोई स्टुपिड बात मत कहना। मॉम से कुछ सीखो। अदिति से कुछ सीखो। ऐसे मौकों पर अदिति दीदी क्या करतीं, यह सोचो। वे झुककर उनके पैर छू लेतीं। तुम भी ऐसा करो। कम ऑन, लगाओ डाइव!
मैं नीचे झुकी। मैंने उन लोगों के पैर छुए, जिन्हें मैंने इससे पहले केवल दो बार स्काइप किया था, लेकिन अब जो अचानक मेरे सम्मान के हकदार बन गए थे। मेरे पैरेंट्‌स जरूर उनसे कई बार मिल चुके थे। डैड ने मुझे बताया था कि भले लोग हैं। भले लोग! आखिर इस बात का पता कैसे लगाया जाता है कि कौन भला है और कौन नहीं? क्या इस दुनिया में सच में कोई भले लोग हैं भी? देखो, मेरा दिमाग फिर काम करने लगा, यह पलभर को भी चुप नहीं बैठता!
‘आपकी फ्लाइट कैसी थी, अंकल?’ मैंने कहा।
‘मुंबइ से बस एक ही घंटे की तो फ्लाइट है। राज की तरह नहीं, जो कि आधी दुनिया का चक्कर लगाकर यहाँ आया है।’ आदर्श अंकल ने कहा।
‘केवल तुम्हारे लिए, ’ सुलोचना आंटी ने कहा और मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया। फिर उन्होंने मेरे माथे पर एक चुंबन दिया। ज़ाहिर है, जिस मुल्क में कुछ सासू माँ दहेज के लिए बहुओं को जला देती हैं, उसकी तुलना में तो वे भले लोग ही मालूम हो रहे थे।
राज के रिश्तेदारों ने हमें चारों ओर से घेर लिया।
‘आओ, आओ, दुल्हन को देखो, ’ उनमें से एक आंटी ने कहा। बंदर पिंजरे से बाहर आ चुका था और लॉबी में इस नज़ारे को मुफ्त में देखने के लिए मजमा लग चुका था। मेरे आस-पास कई लोग जमा हो गए थे और मैं उनमें से ज़्यादा-से-ज़्यादा नामों को याद रखने की कोशिश करने लगी।
‘ये हैं मेरी माँ की बहनें, रोहिणी मासी और गुंजन मासी, ’ राज ने कहा, ‘और ये हैं मेरे डैड के भाई, पुरोहित चाचा और अमित चाचा।’
मैं सभी को झुक-झुककर प्रणाम करती रही। जैसे ही मुझे किसी के सिर में सफेद या हिना से डाई किए हुए बाल नज़र आते, मैं तुरंत झुककर उसके पैर छू लेती। ठीक वैसे ही, जैसे मेरी माँ मुझसे उम्मीद करती हैं। इस सबके बीच ही राज पलभर को मुझे एक तरफ ले गया।
‘हे, तुम्हें इस सबसे कोई दिक्कत तो नहीं हो रही है?’
मैंने सिर हिलाकर मना कर दिया।
‘क्या हम कहीं थोड़ी देर को टहलने जा सकते हैं?’ उसने कहा।
वह मुझसे मेलजोल बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। मैंने उससे पहले ही कह दिया था कि मैं उसे अच्छे-से जानना चाहती हूँ और वह इसी कोशिश में लगा था कि हम दोनों एक-दूसरे को अच्छे-से जान लें।
‘हाँ क्यों नहीं? चलो पूल की तरफ चलते हैं।’ मैंने कहा।





2
मैरियट पूल के आसपास पाम के हरे दरख्त हवा में लहरा रहे थे। शाम के पाँच बजे थे। दिसंबर की रोशनी में होटल के कॉटेज डूबे हुए थे और उनकी मुलायम छायाएँ जैसे हर तरफ गिर रही थीं। हम वॉकिगं पाथ की ओर चले गए। होटल हमारे बाएँ हाथ की ओर था और दाएँ तरफ अरब सागर था। मुझे लगा कि मैं गलत कपड़े पहनकर यहाँ आ गई हूँ, क्योंकि होटल के दूसरे मेहमान शॉर्ट्स और वेस्ट में यहाँ-वहाँ घूम रहे थे।
‘तो आप कल ही सैन फ्रांसिस्को से यहाँ पहुँचे हैं?’ मैंने कहा।
‘हाँ, कल रात को ही तो पहुँचा, ’ उसने कहा। ‘मैं अपनी छुटि्‌टयों का ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा उठाना चाहता था। शादी के लिए एक हफ्ता काफी है। उसके बाद एक-दो दिन मुंबई में, फिर अपने घर में। फिर बाली में हनीमून। यानी एक-एक पल का इस्तेमाल।’
हनीमून शब्द सुनते ही मुझे झटका लगा। मेरे भीतर मिनी-मी की आवाज़ जाग गई।
‘हनीमून! एक दर्जन स्काइप कॉल्स और एक बार की मुलाकात के बाद? इस आदमी के साथ बाली में एक पूरा हफ्ता, जो अभी मेरे साथ चल रहा है? जबकि वहाँ तो हम एक-दूसरे के साथ नेकेड रहेंगे। चुप करो सुषमा, कल की मत सोचो, आज पर अपना ध्यान लगाओ!
‘इतनी लंबी उड़ान थका देने वाली होगी ना?’ मैंने कहा।
‘तुम्हें देखते ही मेरी सारी थकान छू-मंतर हो गई।’
मैं मुस्करा दी। यह आदमी पूरी कोशिश कर रहा है, मुझे भी थोड़ी कोशिश करनी चाहिए।
राज भी मुस्करा दिया। उसकी आँखें बच्चों की तरह मासूम थीं। ‘फ़ेसबुक कैसा चल रहा है?’ मैंने पूछा।
‘ये महीना बहुत बिज़ी रहा। एक पूरा प्रोजेक्ट मैंने पूरा किया। बहुत काम था, फ्रंट एंड इंटरफेसेस, बैकएंड सिस्टम्स, अंडरलाइंग एपीआई।’
‘एपीआई?’
‘एप्लिकेशन प्रोग्राम इंटरफेस। सॉफ्टवेयर एप्लिकेशंस बनाने के लिए रूटीन्स, प्रोटोकॉल और टूल्स का एक सेट। बेसिकली, सॉफ्टवेयर कंपोनेंट्स के इंटरेक्शंस का सिस्टम।’
मैंने सिर हिला दिया, हालाँकि मुझे कुछ भी समझ नहीं आया था।
‘तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आ रही है ना?’
मैं हँस पड़ी।
‘मैं जानता हूँ। यह दुनिया का सबसे एक्साइटिंग जॉब तो नहीं ही है, ’ उसने सपाट स्वर में कहा।
‘कम ऑन, आखिरकार तुम फ़ेसबुक में काम करते हो। दैट्स कूल।’
‘लोगों को लगता है कि फ़ेसबुक में कोई काम नहीं होता है। वे लोग दिनभर अपनी डीपी ही अपडेट करते रहते हैं।’
क्या मुझे उससे पर्सनल बातें करनी चाहिए। क्योंकि अगर मैंने उसे रोका नहीं तो वह तो मजे से अगले दो घंटे तक कंप्यूटर कोड के बारे में बातें करता रहेगा। सुषमा, कुछ करो!
‘तुम्हें अपना जॉब पसंद है?’ मैंने पूछा।
राज ने कंधे उचका दिए। ‘ठीक है। वहाँ बहुत सारे स्मार्ट लोग है। हमेशा कुछ-ना-कुछ वहाँ होता रहता है। पैसा भी अच्छा मिलता है। स्टॉक ऑप्शंस। फ्लेक्सी टाइम...’
‘और स्टार्ट-अप वाले आइडिया के बारे में क्या?’ मैंने कहा। उसने एक बार पहले अपनी खुद की एक सॉफ्टवेयर कंपनी लॉन्च करने की बात कही थी।
‘हाँ, वह भी है। मैं अब भी उसे करना चाहता हूँ, ’ राज ने जवाब दिया।
‘तो फिर?’
‘फ़ेसबुक को छोड़ना बहुत मुश्किल है। सैलरी, स्टॉक ऑप्शन्स, बेनेफिट्‌स। प्लस, मुझे फंडिंग की भी ज़रूरत होगी। उस लेवल की सिक्योरिटी को छोड़ना और फिर इतना सब अरेंज करना आसान नहीं है।’
मैंने सिर हिला दिया। हमें काम के अलावा दूसरों मसलों पर भी बातें करनी थीं। शुक्र है कि उसने विषय बदल लिया।
‘मुझे गोवा बहुत अच्छा लगता है, ’ उसने कहा। ‘मैं यहाँ कोई दस साल बाद आया हूँ। हम यहाँ इंजीनियरिंग कॉलेज से आए थे। ज़ाहिर है, ऐसे आलीशान रिसोर्ट्स में नहीं। हम एक बहुत मामूली-सी जगह पर ठहरे थे, शैक्स में खाना खाया था।’
‘मुझे शैक्स पसंद हैं।’
‘तुम्हें सैन फ्रांसिस्को भी बहुत अच्छा लगेगा, ’ उसने कहा।
‘मैं न्यूयॉर्क में रह चुकी हूँ, लेकिन वेस्ट कोस्ट में नहीं।’
‘कैलिफोर्निया न्यूयॉर्क से बहुत अलग है। वहाँ ज़िंदगी ज़्यादा सरल है।’
‘सैन फ्रांसिस्को में गोल्डमान का जो ग्रुप है, उसे भी ज़्यादा चिल्ड माना जाता है।’
‘सब कैसा चल रहा है? तुम्हारा ट्रांसफर हो गया?’
मेरे फोन की घंटी दो बार बजी।
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Re: क्रेजी ज़िंदगी

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‘सॉरी, फोन। शायद मॉम को किसी चीज़ की जरूरत है, ’ मैंने कहा।
‘श्योर, ’ राज ने कहा।
मुझे एक अननोन नंबर से दो मैसेज आए थे। नंबर ‘+1’ से शुरू हो रहा था। मैंने सोचा, शायद किसी ने अमेरिका से मैसेज भेजा है।
‘हे, मैंने सुना तुम शादी कर रही हो, क्या सच?’ यह था पहला मैसेज।
‘दिस इज़ देबू, बाय द वे। उम्मीद है तुम्हें याद होगा, ’ यह था दूसरा।
देबू? देबाशीष सेन! पूरे तीन साल बाद? देबू मुझे मैसेज कर रहा था!
‘हाय’, मैंने जवाब दिया। तुरंत उसका जवाब आया।
‘हाय सुषमा, कैसी हो? तुम्हारा नंबर ढूँढने में मुझे पसीना आ गया। लेकिन मैं तुमसे बात करना चाहता था।’
‘सब ठीक तो है?’ राज ने मुझे फोन में खोई हुई देखकर कहा।
‘हाँ, सब ठीक है, ’ मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज़ नर्वस थी। मैंने फोन को झुकाया और अपनी हथेलियों में दबा लिया।
‘सो ऑल डन?’ राज ने कहा।
‘क्या?’
‘अरे भई, तुम्हारा ट्रांसफर। हम उसी बारे में तो बात कर रहे थे।’
‘यस यस। हो गया है तकरीबन। मुझे कुछ समय लंदन और सैन फ्रांसिस्को के बीच शटल करना होगा, लेकिन मान लो कि हो गया है।’
मेरा फोन मेरे हाथ में ही तीन बार और वाइब्रेट हुआ। मुझे उसे नजरअंदाज़ कर देना चाहिए था, लेकिन अपने ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के चलते मैं उन्हें नजरअंदाज़ नहीं कर पाती। आखिर, वह मॉम या अदिति दीदी का भी मैसेज हो सकता था। लेकिन ऐसा था नहीं।
‘हे बेबी! मैं बस तुमसे सॉरी कहना चाहता हूँ, ’ देबू का मैसेज था। आगे लिखा था : ‘जब मुझे पता चला कि तुम्हारी शादी हो रही है, तो मैं यकीन ही नहीं कर पाया।’
मुझे इसका जवाब देना था, इसलिए लिखा : ‘क्यों? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि ऐसा नहीं हो सकता?’
हम गार्डन के आखिरी कोने तक पहुँच गए थे, इसलिए फिर वापस लौटकर जाने के लिए मुड़ गए।
‘हमें रहने के लिए कोई अच्छी जगह ढूँढनी होगी। फ़ेसबुक मेनलो पार्क में है, गोल्डमान साक्स डाउनटाउन है, राइट?’ राज ने कहा।
‘हूँ, डाउनटाउन में क्या है?’ मैंने कहा। मेरा दिमाग अब भी देबू के मैसेज में उलझा हुआ था।
‘गोल्डमान साक्स का कैलिफोर्निया ऑफिस, ’ राज ने एक-एक शब्द जान बूझकर धीरे-धीरे कहा।
मेरा फोन बार-बार वाइब्रेट होता रहा। मैंने तय कर लिया था कि अब मैं अपना फोन चेक नहीं करूंगी और राज पर ही फोकस करूंगी।
‘तो हमें यह डिसाइड करना होगा कि हमें डाउनटाउन रहना है या फिर मेनलो पार्क के पास, जो कि पालो आल्टो में है, ’ राज ने कहा।
‘यस, श्योर।’
‘श्योर, व्हाट?’
‘तुम ठीक कह रहे हो।’ मैंने कहा, जबकि मुझे बिलकुल नहीं पता था कि उसने क्या कहा है।
‘ मैंने कहा कि तुम्हें चुनना होगा : डाउनटाउन या पालो आल्टो?’
‘मुझे क्या चुनना होगा?’
‘सुषमा, आर यू ओके? मैं इतनी देर से कह रहा हूँ कि हमें अपने रहने की जगह चुनना होगी।’
अब जाकर मुझे समझ आया कि माजरा क्या है।
‘ओह हाँ। वेल, तुम पहले ही मेनलो पार्क में रह रहे हो ना?’
‘हाँ, लेकिन लीज़ दो महीनों में खत्म होने जा रही है।’
फोन पर एक और मैसेज आया। बस एक नज़र देख लूँ, मैंने खुद से कहा। मैं जल्दी से अपना फोन चेक करूँगी और फिर राज पर पूरी तरह से फोकस करूँगी।
मैंने फोन उठाया। देबू के अनेक मैसेज थे। उनमें से एक यह था :
‘आई लव यू!’
फ़क! मेरे दिमाग में गूंजा। गनीमत है कि मैंने यह कहा नहीं। मैंने तुरंत फोन बंद कर दिया और चेहरे पर अपना हाथ रख लिया।
‘मैं वैसे भी वहाँ से जाना चाहता था, ’ राज ने कहा और फिर मुझसे पूछा : ‘सुषमा, आर यू ओके? सबकुछ कंट्रोल में है ना?’
‘एक्चुअली, मुझे वापस जाना होगा। मॉम को कोई चीज़ चाहिए। ज्वेलरी की प्रॉब्लम, ’ मैंने कहा।
‘आह, इंडियन वेडिंग्स!’ राज ने कहा।
बिलकुल ठीक। मुझे अपने होने वाले पति से एक घंटे के भीतर ही झूठ बोलना पड़ा था। मैं बहुत अच्छी दुल्हन तो साबित नहीं ही होने जा रही थी। मैंने तो आपको पहले ही बोल दिया था कि आप मुझे ज़्यादा पसंद नहीं करेंगे।
‘तो हम जल्द ही मिलेंगे?’ मैंने कहा।
‘ऑफकोर्स, ’ राज ने कहा। उसकी आँखों में चमक थी। ‘आखिर हमारी शादी होने वाली है। अब तो हमें साथ ही रहना है। चलो, लौट चलते हैं।’
मैंने अपने फोन को कसकर पकड़ लिया, मानो उसमें से कोई मैसेज निकलकर बाहर गिर पड़ेगा। राज ने मुझे लिफ्ट लॉबी मे छोड़ा, जहाँ हमें उसका एक कज़िन मिला, जो उससे बात करना चाहता था। लिफ्ट का दरवाज़ा बंद हुआ। मैंने चौथे फ्लोर का बटन दबाया और गहरी साँस ली। फिर मैंने अपना फोन चेक किया, जिसमें देबू के बीसियों मैसेज थे।
‘पिछले कुछ महीनों से मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा हूँ। आज ही तुम्हें टेक्स्ट करने की हिम्मत जुटा पाया। मैंने तुम्हारी कद्र नहीं की, यह एक बहुत बड़ी भूल थी। आई लव यू!’
आखिरकार वो कहना क्या चाहता है?
लिफ्ट मेरे फ्लोर पर पहुँच गई। मैं अपने रूम तक गई और घंटी बजा दी। अदिति दीदी ने दरवाज़ा खोला।
‘तुम थीं कहाँ?’ उसने मुझे शरारती नजरों से देखते हुए पूछा। ‘राज के साथ?’
मैं मुस्करा दी, मानो रंगे-हाथों पकड़ गई हो। आखिर मुझे अपने होने वाले पति के नाम का ज़िक्र होने पर हर बार शरमाकर मुस्कराना जो था।
अदिति दीदी ने अपना एक सूटकेस खोल रखा था। वह इतना बड़ा सूटकेस था, जैसा कि मर्डरर लोग लाश छुपाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उसने बेड पर तीन ड्रेस फैला रखी थीं।
‘राज है कैसा?’ उसने एक लाल साड़ी को फोल्ड करते हुए कहा।
‘डिसेंट। अभी हम एक-दूसरे को समझ ही रहे हैं, ’ मैंने सोफे पर लेटते हुए कहा। फिर अपना फोन निकाल लिया। आखिर मैं बार-बार अपना फोन क्यों निकाल रही थी?
अदिति दीदी ने बोलना जारी रखा। ‘मैं तो शादी से पहले अनिल को बिलकुल भी नहीं जानती थी। तुम भी शादी के बाद ही उसे ठीक से जानोगी। इसमें हनीमून मददगार साबित होगा।’ उसने आँख मारते हुए कहा।
मैंने सिर हिला दिया, जबकि मैं सोच रही थी कि देबू को क्या जवाब दूँ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: क्रेजी ज़िंदगी

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‘मैं सच में तुम्हें प्यार करता हूँ, ’ देबू ने फिर मैसेज किया। जो इंसान पहले एक मैसेज का जवाब देने में दस दिन लगाता था, वो अब एक मिनट में दस मैसेज भेज रहा था।
‘तुम होश में तो हो?’ मैंने जवाब दिया। इसके बाद देबू से मेरी चैट पर बातचीत हुई।
‘नहीं, यहाँ अभी सुबह के पाँच बज रहे हैं। मैं कॉफी पी रहा हूँ, नशे में बात नहीं कर रहा हूँ।’
‘गुड। तब तो तुम्हें यह पता होना चाहिए कि मैं पाँच दिन बाद शादी कर रही हूँ।’
‘क्या!! इतनी जल्दी!!’
‘यस, मेहमान यहाँ पहुँच चुके हैं।’
‘किससे शादी कर रही हो?’
‘उससे, जो तुम्हारे जितना इनसिक्योर नहीं है...’ मैंने लिखा और फिर मिटा दिया।
‘राज शर्मा।’ मैंने लिखा और फिर इसे भी मिटा दिया।
फिर मैंने सोचा कि कोई जवाब नहीं देना ही ठीक होगा। दीदी ने दो ड्रेस उठाईं, एक नीली और दूसरी लाल।
‘कल के बैचलरेट के लिए इनमें से क्या पहनूँ? ऑनेस्टली बताना, ’ उसने कहा।
‘दोनों अच्छे हैं। तुम्हें क्या पसंद है?’ मैंने कहा।
‘मुझे तो लाल वाली ड्रेस पसंद है, लेकिन ये बहुत शॉर्ट है। ये ज़्यादा अटेंशन तो नहीं खींचेगी ना?’ उसने कहा।
बिलकुल खींचेगी। लेकिन मेरी बहना, तुमने हमेशा यही तो चाहा है। तो अब क्यों खुद को रोक रही हो?
‘यह ठीक है। जो तुम्हे पसंद हो, वही पहनो, ’ मैंने कहा।
‘तब मैं ब्लू वाली ही पहन लेती हूँ। वह घुटनों तक आती है। दुल्हन की बड़ी बहन वाले लुक वाली ड्रेस।’
‘तुम मुझसे केवल एक साल ही बड़ी हो, ’ मैंने कहा।
‘हाँ, यह तो है। फिर कल इकलौता ऐसा दिन है, जब मुझे एक वेस्टर्न ड्रेस पहनने का मौका मिलेगा। उसके बाद तो ट्रेडिशनल ही पहनना हैं। मैं यहाँ मौजूद बहुत थोड़ी ऐसी लड़कियों में से हूँ, जो इस तरह की ड्रेस पहनकर कॉन्फिडेंस के साथ चल सकती है।’
उसने अपनी रेड ड्रेस उठाकर दिखाई। हाँ, अपने सुपर-स्लिम फिगर के चलते अदिति दीदी ही ऐसी ड्रेस पहन सकती थी।
‘रेड, दीदी। डिबेट यहीं खत्म करो।’ मैंने कहा।
मेरा फोन घनघनाया।
‘बेब्स, तुम किससे शादी कर रही हो?’ देबू पूछ रहा था।
‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कम-से-कम तुम तो मेरी ज़िंदगी में अब नहीं हो, देबाशीष।’ मैंने जवाब दिया।
‘कम-से-कम मुझको देबू कहकर तो पुकारो।’
‘मैं बिज़ी हूँ, देबाशीष। अभी मेरे पास इस सबके लिए वक्त नहीं है।’
‘शादी कहाँ हो रही है?’
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
‘तुमने मुझे इनवाइट नहीं किया, ’ उसने ताना मारते हुए कहा।
‘ऐसहोल, तुमने मेरे फोन तक नहीं उठाए’, मैं कहना चाहती थी, लेकिन कहा नहीं। फोन की घंटी बजी। देबू ने मुझे फोन लगाने की कोशिश की थी। मैंने फोन काटा और एक मैसेज भेज दिया।
‘मुझे फोन मत लगाओ। मैं तुम्हें पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं बिज़ी हूँ। मेरे आस-पास लोग हैं।’
‘तो केवल मुझे इतना ही बता दो कि शादी कहाँ हो रही है?
‘क्यों?’
‘बस जानना है।’
‘व्हाटेवर, ’ मैंने जवाब भेजा।
‘मैं किसी भी दोस्त से फोन करके पूछ सकता हूँ, फिर तुम ही क्यों नहीं बता देतीं?’
‘गोवा।’
‘वॉव! डेस्टिनेशन वेडिंग एंड ऑल।’
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। अपना ध्यान भटकाने के लिए मैंने अदिति दीदी से पूछा : ‘आप इसके साथ कौन-सी जूतियाँ पहनेंगी?’
‘ओह हाँ, ये तो एक इशू है। मेरे पास ये चार इंच हील वाली स्टिलेट्‌टो है और ये तो ज़रूर ही सबका ध्यान खींचेंगी।’
‘हाँ। प्लस, हमें डांस भी करना है। इसमें मुश्किल होगी। मैं तो फ्लैट्‌स पहन रही हूँ।’ मेरी बहन को लगता है कि हमारे बीच सबसे करीबी रिश्ता तभी बनता है, जब हम कपड़ों और जूतियों की बातें कर रहे होते हैं। वो मेरे पास आई और मेरे गाल खींचे। ‘तुम अपनी बैचलरेट में फ्लैट्‌स नहीं पहन सकतीं। तुम कितनी क्यूट हो, कुछ भी नहीं समझतीं।’
मैं भले ही डिस्ट्रेस्ड डेट्‌स की एक्सपर्ट होहूं। मैंने भले ही दिवालिया हो चुकी कंपनियों को बचाया हो। भले ही स्ट्रक्चर्ड कॉम्प्लेक्स टेकओवर किए हों। मैं भले ही गोल्डमान साक्स में वाइस प्रेसिडेंट होहूं। लेकिन अगर मैं कंफर्टेबल फ्लैट्‌स पहनना पसंद करती हूँ, तो मुझे यही कहा जाएगा कि मैं कुछ भी नहीं जानती। मैंने कल की पार्टी के लिए एक ब्लैक ड्रेस निकालकर रखी थी। दीदी ने उसे देखा और कहा, ‘यह तो बहुत सिंपल है।’ फिर वे उसे एसेसराइज करने लगीं। मैंने फिर अपना फोन चेक किया।
‘गोवा में कहाँ?’ देबू का मैसेज था।
‘क्यों?’
‘क्या मैं कॉल कर सकता हूँ, प्लीज़।’
‘नहीं।’
‘क्या यह कोई रिसोर्ट है?’
‘देबू, तुम न्यूयॉर्क में हो और अपना ध्यान वहीं लगाओ। क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?’
‘आई एम सॉरी, सुषमा।’
‘इट्स ओके। लाइफ गोज़ ऑन।’
‘हाँ, सच है। लेकिन मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। और अब तुम्हारी शादी हो रही है।’
मैंने एक स्माइली बनाकर भेज दी।
‘तुम शादी के बाद कहाँ रहोगी? हांगकांग?’
‘नहीं, मैं एक साल पहले हांगकांग से लंदन चली आई हूँ।’
‘ओह, तो लंदन में?’
‘सैन फ्रांसिस्को।’
‘आह, कोई आईटी वाला बंदा है?’
‘देबाशीष मुझे जाना है।’
‘अब भी मुझ पर गुस्सा हो?’
‘हूँ तो नहीं, लेकिन अब हो जाऊँगी। मुझे मेहमानों के साथ डिनर के लिए तैयार होना है।’
‘ओके। मैं कैजुअली ही पूछ रहा हूँ। शादी कहाँ पर है?’
‘मैरियट।’
‘नाइस! वह तो बहुत खूबसूरत जगह होगी।’
‘चैटिंग करना बंद करो। वैसे तुम बात किससे कर रही हो? लोगों को हम जानते हैं, वे तो यहीं हैं, गोवा में, ’ अदिति दीदी ने कहा।
‘हूँ, कोई नहीं। बस कुछ काम था, ’ मैंने कहा और फोन एक तरफ रख दिया। दुल्हन ने पहले दूल्हे और अब अपनी बहन से झूठ बोला था।
‘यह लो, मेरा बॉडी नेकलेस। इससे तुम्हारी डल ड्रेस चमक उठेगी, ’ उसने कहा।
‘जिसे तुम डल ड्रेस कह रही हो, वो प्रादा है दीदी, ’ मैंने कहा।
‘मुझे फर्क नहीं पड़ता, वो चाहे जो भी, उसका कोई गेटअप तो होना चाहिए ना। यह बहुत सोबर है। तुम बहुत सोबर हो।’
लेकिन लगता नहीं था कि मैं ज़्यादा देर तक सोबर रह सकूँगी, खासतौर पर देबू के अगले मैसेज के बाद।
‘मैं आ रहा हूँ’ उसने कहा।
‘क्या?’ मैंने खुले मुँह के साथ लिखा।
‘मैं इंडिया आ रहा हूँ। मुझे फ्लाइट्‌स चेक करने दो।’
‘तुम पागल हो गए हो!’
‘नो रियली, मुझे सच में तुमसे बात करनी है।’
‘देबू, काम डाउन, ओके? ये कोई मज़ाक नहीं है।’
‘कम-से-कम तुमने अब मुझे देबू तो कहा।’
‘व्हाटेवर। मुझे जाना है, प्लीज़ अब मैसेज मत करना।’
‘सी यू सून। बाय।’
‘गो टू वर्क। बाय।’
‘तुम फिर अपने फोन में लग गईं। ये चक्कर क्या है?’ अदिति दीदी ने कहा। ‘सभी लोग डिनर के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। तैयार हो जाओ।’
‘क्या मैं ऐसे ही चल सकती हूँ?’
‘नहीं। तुम दुल्हन हो।’
‘तो क्या मुझे हर दो घंटे में कपड़े बदलने होंगे?’
‘जाओ और जल्दी से नहा लो। और प्लीज़ बाथरूम में फोन लेकर मत जाना।’
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