#58
बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी .
“झोला दिखाओ मुझे बाबा ” मैंने कहा
बाबा- तेरे मतलब का सामान नहीं है इसमें
मैं- कब तक छुपाओगे बाबा ,
बाबा कुछ नहीं बोला. मैंने हाथ आगे बढाकर झोला ले लिया और खोला पर उसमे वो नहीं था जो मैंने सोचा था बल्कि कुछ ऐसा था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी .झोले में एक जिंदा दिल फडफडा रहा था . किसी कटे कबूतर जैसा .
“ये तो दिल है बाबा , मैंने सोचा था आपने झोले में नागिन छुपाई है ” मैंने कहा
बाबा- उसे छुपाने की जरुरत नहीं ,
मैं- तो इस दिल का क्या करेंगे, किसका है ये .
बाबा- ये प्रतिकृति है , मुझे लगता है ये कारगर होगा.
मैं- असली उपाय क्या है , नागिन को कैसे रक्तभ्स्म दी जाये.
बाबा- गूढ़ है रक्त्भास्म प्राप्त करना . नागो के नियम जादू के नियम से अलग होते है
मैं- मुझे बस ये जानना है कैसे मिलेगी वो भस्म क्योंकि वही नागिन को प्राणदान दे सकती है .
बाबा- उत्सुकता ठीक है परन्तु अधुरा ज्ञान सदैव हानिकारक होता है मुसाफिर .
मैं- मतलब
बाबा- मतलब ये की मैं आजतक समझ नहीं पाया हूँ की तुम कौन हो अस्तित्व क्या है तुम्हारा, तुम साधारण होकर भी असाधारन हो , तुम्हारे अन्दर जादू नहीं है पर कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है , तुम्हारे रक्त को पीकर नागिन के जख्म भरे, वो बेहतर हुई ये बड़ी हैरानी की बात है .
मैं- क्योंकि रक्तभ्स्म मेरे शरीर में है .
बाबा- और क्या ये तुम्हे साधारण लगता है . आखिर क्यों बड़ी आसानी से उस दिव्य भस्म को आत्मसात कर लिया तुमने , कभी सोचा .
मैं- मुझे लगा ऐसा ही होता होगा.
बाबा- रक्त भस्म इसलिए दिव्य है की स्वयं शम्भू के तन पर मली जाती है , शमशान की राख जब महादेव का अभिषेक करती है , तो वो उसका अंग हो जाती है , जिसे स्वयं शम्भू अपने बदन पर स्थान दे तो उसके गुण दिव्य होते है , एक खास वंश के नाग ही उसका तेज झेल पाते है .
मैं- तो क्या मैं नाग हूँ
बाबा- निसंदेह नहीं और यही बात मुझे खटक रही है .
मैं- पर मेरी प्राथमिकता नागिन को बचाना है
बाबा- सीधे शब्दों में मैं कहूँ तो हर दस दिन में यदि वो तुम्हारा खून पीती रहे तो उसे कुछ नहीं होगा.
मैं- पर ये हमेशा का उपाय नहीं है .
बाबा- तो फिर रक्त भस्म ले आओ ,
मैं- कहाँ मिलेगी ये तो बताओ
बाबा- मुझे क्या मालूम , मैं अपनी कोशिश करूँगा तुम अपनी करो . मैं प्रतिकृति को असली की जगह स्थापित करके छलावा कामयाब करने की कोशिश करूँगा.
मैंने झोला वापिस बाबा को दिया. बाबा चला गया और कुछ नए सवाल में उलझा गया मुझे, उसने तो मेरे अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे . मुझे आज मेरी माँ की बड़ी कमी महसूस हो रही थी काश वो होती तो मेरी समस्या यु सुलझा देती . पर वो नहीं थी, दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति होती है माँ, और माँ से मुझे घर की याद आई, नागिन का घर था वो मंदिर जो तोड़ दिया गया था .
“उसे वापिस खोदना होगा. ” मैंने अपने आप से कहा . घर किसी के लिए भी सबसे सुरक्षित होता है , अक्सर घर में ही सबसे चाहती वस्तुए रखी जाती है पर क्या वो हवेली मेरा घर नहीं थी . मेरी माँ सुहासिनी एक बड़ी जादूगरनी थी तो क्या ये मुमकिन नहीं था की मुझे हवेली में कुछ न कुछ मिले जो मेरे काम आ सके. बेशक मैंने वहां न जाने की कसम खाई थी पर नागिन के प्राणों के आगे मेरा अहंकार बहुत तुच्छ था . मैं तुरंत हवेली की तरफ चल दिया.
ये हवेली बाहर से जितना खामोश थी अपने अन्दर उतने ही तूफ़ान छुपाये हुई थी , जितनी बार भी मैं आता था यहाँ पर इसका स्वरूप हर बार बदला हुआ होता था . इस बार यहाँ पर सिर्फ एक ही मंजिल थी . तमाम मोमबतिया बुझी थी , बस एक जल रही थी उस बड़ी सी मेज के ऊपर . मैंने अपनी जैकेट उतारी और वहां गया . हमेशा की तरह गर्म चाय मेरा इंतजार कर रही थी .
“ये मेरा घर है और यहाँ जो भी जादुई अहसास है उसे मेरी बात जरुर माननी होगी ” मैंने सोचा .
मैं- मैं चाहता हूँ की थोड़ी और रौशनी हो जाये.
और तुरंत ही मोमबतिया जल गयी .
मैंने बस हवा में तीर मारा था पर वो तुक्का सही लगा था .
“मैं पहली मंजिल पर जाना चाहता हूँ ” मैंने कहा और सीढिया खुल गयी .
“दूसरी मंजिल ” मैंने कहा . पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. ये बड़ी हैरानी की बात थी . मैंने फिर दोहराया पर कुछ नहीं हुआ.
“मैं सुहासिनी के कमरे में जाना चाहता हूँ ” इस बार भी कुछ नहीं हुआ.
मैं- मैं मोना के कमरे में जाना चाहता हूँ,
कुछ देर ख़ामोशी छाई रही फिर चर्र्रर्र्र की एक जोर से आवाज आयी मेरी दाई तरफ वाला एक दरवाजा थोडा सा खुल गया था. मुझे बड़ी उत्सुकता हुई दौड़ता हुआ मैं उस कमरे में गया . छोटा सा कमरा था , कुछ खास नहीं था वहां पर दिवार पर कुछ कपडे टंगे थे, दो बैग पड़े थे और मैं जानता था की ये सामान मोना का था . मतलब मोना गायब होने से पहले यहाँ आई थी जरुर. कुछ और खास नहीं मिला तो मैं वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गया . मेरे दिमाग में बहुत सवाल थे.
“नागिन क्या तुम यहाँ पर हो , अगर हो तो सामने आओ, हम बात कर सकते है ” मैंने कहा . पर कोई जवाब नहीं आया. शायद वो यहाँ नहीं थी. अचानक से मेरे सीने में दर्द होने लगा. अब तो मुझे आदत सी हो चली थी इसकी पर दर्द तो बस दर्द होता है. न चाहते हुए भी मैं अपनी चीखो पर काबू नहीं रख पाया. मैं कुर्सी से गिर गया और फर्श पर तड़पने लगा. अभी इस दर्द से फारिग हुआ भी नहीं था की दरवाजे पर ऐसी तेज आवाज हुई जैसे की किसी ने कोई बड़ा पत्थर दे मारा हो .
खुद को सँभालते हुए मैं दरवाजे के पास गया उसे खोला और मेरे सामने एक लाश आ गिरी. वो लाश ............. .
Adultery गुजारिश
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Re: Adultery गुजारिश
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Re: Adultery गुजारिश
#59
वो लाश जब्बर की थी . दरअसल मुझे इस बात ने नहीं चौंकाया था की लाश जब्बर की थी , मेरा ध्यान इस बात पर था की लाश की हालत ठीक वैसी ही थी जैसी की लाला महिपाल की लाश थी , बिलकुल सफ़ेद, जैसे किसी ने सारा खून चूस लिया हो . पर कातिल ने इसे यहाँ पर क्यों फेंका. क्या कातिल को भी हवेली के बारे में पता था .
मेरे आस पास ये जो भी लोग थे एक एक करके मौत के मुह में जा रहे थे , कौन मार रहा था क्यों मार रहा था किसी को कुछ नहीं मालूम था . मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस हवेली के अन्दर आ गया. जब्बर की मौत से कुछ समीकरण बदल जाने थे . पर फिलहाल मुझे इंतजार था सुबह होने का . मैं एक कमरे में गया और सोने की कोशिश करने लगा. बिस्तर आरामदेह था . मालूम नहीं मैं नींद में था या सपने में था . पर ऐसा लगा की कोई तो है मेरे साथ .
मैंने हलके से आँखे खोली कमरे में घुप्प अँधेरा था . जबकि मैं सोया तब रौशनी थी , मुझे लगा की कमरे में दो लोगो की सांसे चल रही थी . कौन हो सकता है इस समय. आँखे जब अँधेरे की आदी हुई तो मैंने देखा , कुर्सी पर एक साया था जो शायद आराम कर रहा था , क्योंकि वो हलचल नहीं कर रहा था . मेरे सिवा इस हवेली में कौन हो सकता था .
“मोना क्या ये तुम हो ” मैंने आवाज दी.
साये की आँखे एक झटके से खुल गयी .और वो तेजी से बाहर की तरफ भागा मैं भी उसके पीछे भागा. पर मेरा पैर चादर में उलझ गया जब तक मैं बाहर आया वहां कोई नहीं था .
“सामने क्यों नहीं आते, क्यों सता रहे हो तुम अपनी पहचान उजागर क्यों नहीं करते तुम.” मैं चीख पड़ा.
कलाई में बंधी घडी पर नजर पड़ी तो देखा तीन पच्चीस हो रहे थे . मैं निचे आया थोडा पानी पिया और हवेली से बाहर जाने के लिए सीढियों से उतरा .न जाने क्यों मेरे दिल को ऐसा लग रहा था की वो मेरे आसपास ही है, यही कही है , दूर होकर भी मेरे पास है . इतनी शिद्दत पहले कभी नहीं हुई थी . पर वो जब पास थी तो ये दुरी क्यों थी. क्यों छिप रही थी मुझसे.
सुबह होते ही मैंने कुछ मशीन और मजदुर बुलवाए और मंदिर की खुदाई शुरू करवा दी. शकुन्तला ने भरपूर विरोध किया पर गाँव की पंचायत ने मेरा साथ दिया. गाँव वालो को भी लगता था की मंदिर का दुबारा से निर्माण होना चाहिए. दिन भर धुल मिटटी में बीत गया. शाम को मैं चाय पि रहा था की मैंने बाबा सुलतान को आते देखा.
बाबा- एक बार जो सोच लिया फिर रुकता नहीं तू.
मैं- बरसो से उपेक्षित मंदिर की शान दुबारा लौट आये तो बुरा क्या है .
बाबा- पर तेरे मनसूबे तो कुछ और है .
मैं- क्या फर्क पड़ता है .
बाबा- बेकार है तुझसे कुछ भी कहना अब , खैर तेरी बात सही है इसी बहाने हम भी शम्भू के दर्शन कर लेंगे.
बाबा मुस्कुराने लगे.
मैं- एक बात और कहनी थी .
बाबा- हाँ
मैं- मैं ब्याह करना चाहता हूँ
बाबा- बेशक, सब करते है तू भी कर ले
मैं- मैं चाहता हूँ आप लड़की के बाप से बात करे. ब्याह की तारीख आप पक्की करे.
बाबा- पर मैं कैसे.
मैं- मेरा कौन है आपके सिवा.
बाबा- मुझे लगता है तू तेरे ताऊ के पास जा
मैं- मैंने कहा न आप ही करेंगे ये काम.
बाबा- ठीक है मुसाफिर , अब तेरी मर्जी के आगे मेरी क्या , तू मुझे पता दे उसका मैं चला जाऊंगा.
मैंने बाबा को एक पर्ची लिख कर दी. बस रूपा का नाम नहीं लिखा मैं बाबा को देखना चाहता था जब वो वहां रूपा को पाएंगे. बाबा ने पर्ची झोले में रख ली . हम खुदाई देखते रहे. शाम को मजदूरो के जाने के बाद बाबा मुझे खंडित ईमारत में ले गए.
“जैसे बस कल ही की बात हो ” बाबा ने गहरी साँस ली .
मैंने पहली बार बाबा की आँखों में पानी देखा. उन आँखों में पानी था , उन होंठो पर मुस्कान थी , रमता जोगी अपने आप में जैसे खो गया था , बाबा को मेरा होना न होना जैसे एक ही था उस समय. कभी इस टूटी दिवार के पास जाते वो कभी उस दिवार से लिपट जाते. इतना तो मैं समझ गया था की बाबा का बड़ा गहरा नाता रहा हो गा इस जगह से.
वो बस अपने अतीत में खो गए थे, क्या कहा मैंने अपने अतीत में, पर बाबा का क्या लेना देना था यहाँ से ,कही बाबा नागिन के पिता तो नहीं जो शायद किसी तरह से बच गए थे . मैंने सोचा. शायद हो भी सकता है क्योंकि नागिन को उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था . अब सीधा सीधा तो मेरी हिम्मत नहीं थी उनसे पूछने की पर इस बात को पुख्ता करने का मैंने निर्णय ले लिया था.
“इधर आ बेटे, ” बाबा ने मुझे पुकारा .
मैं दौड़ कर उनके पास गया .
बाबा- ये मिटटी हटाने में मदद कर मेरी .
मैं- सुबह मजदुर हटा देंगे न
बाबा- तुझसे कहा न मैंने
मैं- ठीक है , आप रौशनी करो मैं मशीन चालू करता हूँ
बाबा के कहे अनुसार मैंने मिटटी हटाना शुरू किया करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे वो दिखने लगा जो बाबा देखना चाहते थे . वो एक टूटा कमरा था शायद मंदिर का मुख्य कमरा रहा होगा. क्योंकि पास में एक टूटा जलपात्र पड़ा था. एक नंदी की छोटी मूर्ति थी . बाबा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे.
पर जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा था वो ये था की शिव की मूर्ति नहीं थी वहां पर.
“मूर्ति कहाँ है बाबा ” मैंने सवाल किया .
पर बाबा को जैसे कोई सरोकार नहीं था. बाबा मूझे न जाने क्या बता रहे थे , अपने अतीत की बाते, यहाँ ये होता था यहाँ वो होता था आदी, ऐसे ही काफी समय बीत गया अचानक से बाबा की तबियत कुछ ख़राब सी होने लगी . बाबा असहज होने लगे.
मैं- क्या हुआ बाबा,
बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया , अपना झोला लिया और लगभग वहां से दौड़ पड़े मैं आवाज देता रह गया . और मेरे साथ रह गयी ये ख़ामोशी. ये तन्हाई. मैंने नंदी की मूर्ति को उठाया और साफ़ करके एक तरफ रख दिया. तभी मेरे पैरो के निचे कुछ आ गया . मैंने मिटटी हटाई तो देखा की......................
वो लाश जब्बर की थी . दरअसल मुझे इस बात ने नहीं चौंकाया था की लाश जब्बर की थी , मेरा ध्यान इस बात पर था की लाश की हालत ठीक वैसी ही थी जैसी की लाला महिपाल की लाश थी , बिलकुल सफ़ेद, जैसे किसी ने सारा खून चूस लिया हो . पर कातिल ने इसे यहाँ पर क्यों फेंका. क्या कातिल को भी हवेली के बारे में पता था .
मेरे आस पास ये जो भी लोग थे एक एक करके मौत के मुह में जा रहे थे , कौन मार रहा था क्यों मार रहा था किसी को कुछ नहीं मालूम था . मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस हवेली के अन्दर आ गया. जब्बर की मौत से कुछ समीकरण बदल जाने थे . पर फिलहाल मुझे इंतजार था सुबह होने का . मैं एक कमरे में गया और सोने की कोशिश करने लगा. बिस्तर आरामदेह था . मालूम नहीं मैं नींद में था या सपने में था . पर ऐसा लगा की कोई तो है मेरे साथ .
मैंने हलके से आँखे खोली कमरे में घुप्प अँधेरा था . जबकि मैं सोया तब रौशनी थी , मुझे लगा की कमरे में दो लोगो की सांसे चल रही थी . कौन हो सकता है इस समय. आँखे जब अँधेरे की आदी हुई तो मैंने देखा , कुर्सी पर एक साया था जो शायद आराम कर रहा था , क्योंकि वो हलचल नहीं कर रहा था . मेरे सिवा इस हवेली में कौन हो सकता था .
“मोना क्या ये तुम हो ” मैंने आवाज दी.
साये की आँखे एक झटके से खुल गयी .और वो तेजी से बाहर की तरफ भागा मैं भी उसके पीछे भागा. पर मेरा पैर चादर में उलझ गया जब तक मैं बाहर आया वहां कोई नहीं था .
“सामने क्यों नहीं आते, क्यों सता रहे हो तुम अपनी पहचान उजागर क्यों नहीं करते तुम.” मैं चीख पड़ा.
कलाई में बंधी घडी पर नजर पड़ी तो देखा तीन पच्चीस हो रहे थे . मैं निचे आया थोडा पानी पिया और हवेली से बाहर जाने के लिए सीढियों से उतरा .न जाने क्यों मेरे दिल को ऐसा लग रहा था की वो मेरे आसपास ही है, यही कही है , दूर होकर भी मेरे पास है . इतनी शिद्दत पहले कभी नहीं हुई थी . पर वो जब पास थी तो ये दुरी क्यों थी. क्यों छिप रही थी मुझसे.
सुबह होते ही मैंने कुछ मशीन और मजदुर बुलवाए और मंदिर की खुदाई शुरू करवा दी. शकुन्तला ने भरपूर विरोध किया पर गाँव की पंचायत ने मेरा साथ दिया. गाँव वालो को भी लगता था की मंदिर का दुबारा से निर्माण होना चाहिए. दिन भर धुल मिटटी में बीत गया. शाम को मैं चाय पि रहा था की मैंने बाबा सुलतान को आते देखा.
बाबा- एक बार जो सोच लिया फिर रुकता नहीं तू.
मैं- बरसो से उपेक्षित मंदिर की शान दुबारा लौट आये तो बुरा क्या है .
बाबा- पर तेरे मनसूबे तो कुछ और है .
मैं- क्या फर्क पड़ता है .
बाबा- बेकार है तुझसे कुछ भी कहना अब , खैर तेरी बात सही है इसी बहाने हम भी शम्भू के दर्शन कर लेंगे.
बाबा मुस्कुराने लगे.
मैं- एक बात और कहनी थी .
बाबा- हाँ
मैं- मैं ब्याह करना चाहता हूँ
बाबा- बेशक, सब करते है तू भी कर ले
मैं- मैं चाहता हूँ आप लड़की के बाप से बात करे. ब्याह की तारीख आप पक्की करे.
बाबा- पर मैं कैसे.
मैं- मेरा कौन है आपके सिवा.
बाबा- मुझे लगता है तू तेरे ताऊ के पास जा
मैं- मैंने कहा न आप ही करेंगे ये काम.
बाबा- ठीक है मुसाफिर , अब तेरी मर्जी के आगे मेरी क्या , तू मुझे पता दे उसका मैं चला जाऊंगा.
मैंने बाबा को एक पर्ची लिख कर दी. बस रूपा का नाम नहीं लिखा मैं बाबा को देखना चाहता था जब वो वहां रूपा को पाएंगे. बाबा ने पर्ची झोले में रख ली . हम खुदाई देखते रहे. शाम को मजदूरो के जाने के बाद बाबा मुझे खंडित ईमारत में ले गए.
“जैसे बस कल ही की बात हो ” बाबा ने गहरी साँस ली .
मैंने पहली बार बाबा की आँखों में पानी देखा. उन आँखों में पानी था , उन होंठो पर मुस्कान थी , रमता जोगी अपने आप में जैसे खो गया था , बाबा को मेरा होना न होना जैसे एक ही था उस समय. कभी इस टूटी दिवार के पास जाते वो कभी उस दिवार से लिपट जाते. इतना तो मैं समझ गया था की बाबा का बड़ा गहरा नाता रहा हो गा इस जगह से.
वो बस अपने अतीत में खो गए थे, क्या कहा मैंने अपने अतीत में, पर बाबा का क्या लेना देना था यहाँ से ,कही बाबा नागिन के पिता तो नहीं जो शायद किसी तरह से बच गए थे . मैंने सोचा. शायद हो भी सकता है क्योंकि नागिन को उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था . अब सीधा सीधा तो मेरी हिम्मत नहीं थी उनसे पूछने की पर इस बात को पुख्ता करने का मैंने निर्णय ले लिया था.
“इधर आ बेटे, ” बाबा ने मुझे पुकारा .
मैं दौड़ कर उनके पास गया .
बाबा- ये मिटटी हटाने में मदद कर मेरी .
मैं- सुबह मजदुर हटा देंगे न
बाबा- तुझसे कहा न मैंने
मैं- ठीक है , आप रौशनी करो मैं मशीन चालू करता हूँ
बाबा के कहे अनुसार मैंने मिटटी हटाना शुरू किया करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे वो दिखने लगा जो बाबा देखना चाहते थे . वो एक टूटा कमरा था शायद मंदिर का मुख्य कमरा रहा होगा. क्योंकि पास में एक टूटा जलपात्र पड़ा था. एक नंदी की छोटी मूर्ति थी . बाबा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे.
पर जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा था वो ये था की शिव की मूर्ति नहीं थी वहां पर.
“मूर्ति कहाँ है बाबा ” मैंने सवाल किया .
पर बाबा को जैसे कोई सरोकार नहीं था. बाबा मूझे न जाने क्या बता रहे थे , अपने अतीत की बाते, यहाँ ये होता था यहाँ वो होता था आदी, ऐसे ही काफी समय बीत गया अचानक से बाबा की तबियत कुछ ख़राब सी होने लगी . बाबा असहज होने लगे.
मैं- क्या हुआ बाबा,
बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया , अपना झोला लिया और लगभग वहां से दौड़ पड़े मैं आवाज देता रह गया . और मेरे साथ रह गयी ये ख़ामोशी. ये तन्हाई. मैंने नंदी की मूर्ति को उठाया और साफ़ करके एक तरफ रख दिया. तभी मेरे पैरो के निचे कुछ आ गया . मैंने मिटटी हटाई तो देखा की......................
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Re: Adultery गुजारिश
#६०
मैंने पाया ये एक संदूक था , कुछ कपडे भरे थे उसमे , एक तस्वीर थी जिसमे तीन लोग थे. और एक बीन थी . हैरानी इस बात थी की नाग अपने सामान में बीन क्यों रखेंगे. क्या खिचड़ी बिखरी पड़ी थी यहाँ पर. मैंने वो तस्वीर अपनी जेब में रख ली.
मैं सोचने लगा की बाबा ऐसे अचानक से क्यों भागा, क्या देखा था उसने .खैर, रात थी बीत गयी अगला दिन भी मेरा मंदिर में ही लगा रहा . मुझे उम्मीद थी की बाबा आएगा पर वो नहीं आया. आज बड़ी सावधानी से काम करवाया पर कुछ खास नहीं मिला. शाम को मैं रूपा से मिलने गया पर वो वहां नहीं थी . ऐसे ही कुछ दिन बीत गए. एक तरफ मेरे घर का काम चल रहा था दूसरी तरफ मंदिर का निर्माण भी हो रहा था . मैं दोनों जगह ही उलझा था . उस रात मैं थोडा बेचैन सा था तो मैं मजार पर चला गया .
“बड़े सही समय पर आया है तू मुसाफिर , मैं सोच ही रहा था मुलाकात को ” बाबा ने कहा .
मैं- आप तो आते नहीं सो मैं ही आ गया .
बाबा- मैं तो फक्कड हूँ जाने किस ओर निकल जाऊ. बात ये है की न्योता आया है जूनागढ़ से तो चलेंगे जीमने .
मैं- सतनाम के लड़के की शादी है मालूम है मुझे आप ही जाना वैसे भी वो लोग मुझे क्यों बुलाने लगे.
बाबा- ऐसी बात नहीं है तेरा भी न्योता है
मैं- फिर भी मेरा मन नहीं करता
बाबा- चल तो सही मुसाफिर. कभी कभी ब्याह शादियों में भी चक्कर लगा लेना चाहिए
मैं- बाबा, आप तो जानते है की मोना जबसे लापता हुई है मेरा मन कही नहीं लगता ,
बाबा- मन का क्या है मन तो बावरा है , अब तू ही देख दो नावो की सवारी कर रहा है ब्याह तू रूपा संग करना चाहता है मन में तेरे मोना है .
मैं- दारू पियोगे बाबा
बाबा- नहीं रे, अपन तो अपनी चिलम के साथ ही ठीक है . वैसे भी दारू मुझे झिलती नहीं नशे में काबू रहता नहीं मेरा
मैं- क्या बाबा तुम भी नशा और तुम्हे , किसी और को बनाना
बाबा- रहने दे मुसाफिर, नशे में मेरे पुराने जख्म हरे हो जाते है , बीता हुआ कल सबसे ज्यादा दुःख देता है.
मैं- लोग कहते है बाँटने से कम हो जाते है दुःख
बाबा- काश ऐसा होता. खैर, हम चलेंगे ब्याह में .
मैं- ठीक है पर रूपा के बाप से कब बात करने जाओगे.
बाबा- जूनागढ़ से आने के बाद.
मैं- क्या नागेश सच में लौट आया है
बाबा- संकेत है बस , हो सकता है की उसका कोई अनुयायी उसके नाम से दहशत फैला रहा हो .
मैं- पर वो ऐसा क्यों करेगा
बाबा -ये दुनिया मादरचोद है ,लोग कुछ भी करते रहते है
मैं- पर वो तिबारा नागेश ने नहीं तोडा था .
बाबा- जानता हूँ वो किसी और की करतूत थी
मैं- तो अपने बात की उस से
बाबा- अब क्या कहना क्या सुनना,हमारा किस पर जोर है
मैं- आपने इश्क किया कभी बाबा
बाबा- तुझे क्या लगता है
मैं- दीवाने लगते हो
बाबा- नहीं मुसाफिर नहीं . देर हो रही है मैं चलता हूँ भूख लगे तो आ जाना आज खास चीज़ होगी खाने में
मैं- आ जाऊंगा घंटे भर में
बाबा- ठीक है तो फिर चलेंगे जूनागढ़
मैं-जैसी आपकी मर्जी.
बाबा के जाने के बाद मैं बस बैठा ही था की शकुन्तला को आते देखा .
मैं- तू इस वक्त
सेठानी- तुझे क्या दिक्कत है
मैं - मुझे क्या दिक्कत है जहाँ चाहे वहां गांड मरवा
सेठानी- तमीज से बात कर देव
मैं- तमीज की तो तू बात ही न कर , सब जानता हूँ कितने यार है तेरे विक्रम, जब्बर, सतनाम
सेठानी- तुझे जो समझना है समझ मुझे झांट का फर्क भी नहीं पड़ता
मैं- पर मुझे पड़ता है , तांत्रिक को बुलाकर जो तूने तेरी औकात दिखाई है न
सेठानी- उस सर्प को तो मैं मार कर रहूंगी, मैंने कसम खाई है .
मैं- कोशिश कर के देख ले जबतक मैं हूँ तू कुछ नहीं कर सकती
सेठानी- गुमान तो रावन का भी नहीं चला था तेरा क्या रहेगा देव, आज नहीं तो कल मैं उसे मार दूंगी उसके टुकड़े भेजूंगी तुझे. और तू क्या ये मंदिर के गड़े मुर्दे खोद रहा है कुछ नहीं मिलेगा तुझे.
मैं- सकूं मिलेगा मुझे, जो पाप तेरे पति और तेरे यारो ने किया था उसका फल इसी जन्म में मिलेगा तुम सबको पति तो गया, तेरे यार भी जायेंगे, उनसे जाके कह मंदिर की अमानत लौटा दे वापिस .
सेठानी- तू मेरा पति वापिस लौटा सकता है क्या
मैं- उसने गलती की थी सजा मिली उसे , मंदिर में रहने वाले दो गरीबो को मारा था उसने .
सेठानी- चल एक सौदा करते है तू मुझे उस सांप की लाश लाकर दे मैं तुझे मंदिर का लुटा हुआ सामान लाकर दूंगी.
मैं- चुतिया की बच्ची ये खेल किसी और के संग खेलना , मैं जानता हु की तुझे और विक्रम दोनों को ही नहीं मालूम की वो लूट का सामान कहा है .
मेरी बात सुनकर शकुन्तला के चेहरे पर हवाई उड़ने लगी.
मैं- जब्बर की मौत का तो तुझे मालूम ही होगा. रही बात तेरे यहाँ आने की तो यहाँ भी तू कुछ तलाशने ही आई होगी, जा कर ले जो तू कर सकती है . बस इतना याद रखना दुश्मनी की आग में सबको झुलसना ही पड़ता है तू नागिन से माफ़ी मांग ले और बढ़िया जीवन जी सब कुछ है तेरे पास , विचार कर .
सेठानी- मैंने अपना रास्ता चुन लिया है आग सीने में लगी है दुनिया में लगा दूंगी , मैं झुलस रही हु तो तुम भी महसूस करोगे इस आग को .
मैं- वो तेरी मर्जी है
मैं वहां से उठा और मजार की तरफ चल दिया. बाबा ने मुर्गा पकाया था छक कर खाना खाया और वही सो गया. अगले दिन हमें जूनागढ़ जाना था . एक बेहतर कल की उम्मीद लिए मैं आँखे बंद किये हुए था पर मैं कहाँ जानता था की आने वाला कल क्या लाने वाला था अपने साथ.
दोपहर होते होते मैं बाबा के साथ जूनागढ़ के लिए निकल गया . सतनाम ने बड़ी बढ़िया दावत दी थी . मैं नानी से मिला उन्होंने पूछा मोना के बारे में और मेरे पास देने को कोई जवाब नहीं था. भोज के बाद हमें निकलना ही था पर नानी ने हमें रोक लिया ये कहकर की प्रोग्राम में ठहरो . बाबा न जाने कहा रमता राम हो गया था . शाम हो रही थी पर दिल में बेचैनी सी थी . मोना की याद आ रही थी .
मैं बस वहां से खिसक ही जाना चाहता था , की नानी मुझे अपने साथ अन्दर ले गयी और अन्दर जाते ही मैंने जो देखा मेरी आँखों ने उसे मानने से इनकार कर दिया. दिल ने बस इतना कहा ये नहीं हो सकता.
मैंने पाया ये एक संदूक था , कुछ कपडे भरे थे उसमे , एक तस्वीर थी जिसमे तीन लोग थे. और एक बीन थी . हैरानी इस बात थी की नाग अपने सामान में बीन क्यों रखेंगे. क्या खिचड़ी बिखरी पड़ी थी यहाँ पर. मैंने वो तस्वीर अपनी जेब में रख ली.
मैं सोचने लगा की बाबा ऐसे अचानक से क्यों भागा, क्या देखा था उसने .खैर, रात थी बीत गयी अगला दिन भी मेरा मंदिर में ही लगा रहा . मुझे उम्मीद थी की बाबा आएगा पर वो नहीं आया. आज बड़ी सावधानी से काम करवाया पर कुछ खास नहीं मिला. शाम को मैं रूपा से मिलने गया पर वो वहां नहीं थी . ऐसे ही कुछ दिन बीत गए. एक तरफ मेरे घर का काम चल रहा था दूसरी तरफ मंदिर का निर्माण भी हो रहा था . मैं दोनों जगह ही उलझा था . उस रात मैं थोडा बेचैन सा था तो मैं मजार पर चला गया .
“बड़े सही समय पर आया है तू मुसाफिर , मैं सोच ही रहा था मुलाकात को ” बाबा ने कहा .
मैं- आप तो आते नहीं सो मैं ही आ गया .
बाबा- मैं तो फक्कड हूँ जाने किस ओर निकल जाऊ. बात ये है की न्योता आया है जूनागढ़ से तो चलेंगे जीमने .
मैं- सतनाम के लड़के की शादी है मालूम है मुझे आप ही जाना वैसे भी वो लोग मुझे क्यों बुलाने लगे.
बाबा- ऐसी बात नहीं है तेरा भी न्योता है
मैं- फिर भी मेरा मन नहीं करता
बाबा- चल तो सही मुसाफिर. कभी कभी ब्याह शादियों में भी चक्कर लगा लेना चाहिए
मैं- बाबा, आप तो जानते है की मोना जबसे लापता हुई है मेरा मन कही नहीं लगता ,
बाबा- मन का क्या है मन तो बावरा है , अब तू ही देख दो नावो की सवारी कर रहा है ब्याह तू रूपा संग करना चाहता है मन में तेरे मोना है .
मैं- दारू पियोगे बाबा
बाबा- नहीं रे, अपन तो अपनी चिलम के साथ ही ठीक है . वैसे भी दारू मुझे झिलती नहीं नशे में काबू रहता नहीं मेरा
मैं- क्या बाबा तुम भी नशा और तुम्हे , किसी और को बनाना
बाबा- रहने दे मुसाफिर, नशे में मेरे पुराने जख्म हरे हो जाते है , बीता हुआ कल सबसे ज्यादा दुःख देता है.
मैं- लोग कहते है बाँटने से कम हो जाते है दुःख
बाबा- काश ऐसा होता. खैर, हम चलेंगे ब्याह में .
मैं- ठीक है पर रूपा के बाप से कब बात करने जाओगे.
बाबा- जूनागढ़ से आने के बाद.
मैं- क्या नागेश सच में लौट आया है
बाबा- संकेत है बस , हो सकता है की उसका कोई अनुयायी उसके नाम से दहशत फैला रहा हो .
मैं- पर वो ऐसा क्यों करेगा
बाबा -ये दुनिया मादरचोद है ,लोग कुछ भी करते रहते है
मैं- पर वो तिबारा नागेश ने नहीं तोडा था .
बाबा- जानता हूँ वो किसी और की करतूत थी
मैं- तो अपने बात की उस से
बाबा- अब क्या कहना क्या सुनना,हमारा किस पर जोर है
मैं- आपने इश्क किया कभी बाबा
बाबा- तुझे क्या लगता है
मैं- दीवाने लगते हो
बाबा- नहीं मुसाफिर नहीं . देर हो रही है मैं चलता हूँ भूख लगे तो आ जाना आज खास चीज़ होगी खाने में
मैं- आ जाऊंगा घंटे भर में
बाबा- ठीक है तो फिर चलेंगे जूनागढ़
मैं-जैसी आपकी मर्जी.
बाबा के जाने के बाद मैं बस बैठा ही था की शकुन्तला को आते देखा .
मैं- तू इस वक्त
सेठानी- तुझे क्या दिक्कत है
मैं - मुझे क्या दिक्कत है जहाँ चाहे वहां गांड मरवा
सेठानी- तमीज से बात कर देव
मैं- तमीज की तो तू बात ही न कर , सब जानता हूँ कितने यार है तेरे विक्रम, जब्बर, सतनाम
सेठानी- तुझे जो समझना है समझ मुझे झांट का फर्क भी नहीं पड़ता
मैं- पर मुझे पड़ता है , तांत्रिक को बुलाकर जो तूने तेरी औकात दिखाई है न
सेठानी- उस सर्प को तो मैं मार कर रहूंगी, मैंने कसम खाई है .
मैं- कोशिश कर के देख ले जबतक मैं हूँ तू कुछ नहीं कर सकती
सेठानी- गुमान तो रावन का भी नहीं चला था तेरा क्या रहेगा देव, आज नहीं तो कल मैं उसे मार दूंगी उसके टुकड़े भेजूंगी तुझे. और तू क्या ये मंदिर के गड़े मुर्दे खोद रहा है कुछ नहीं मिलेगा तुझे.
मैं- सकूं मिलेगा मुझे, जो पाप तेरे पति और तेरे यारो ने किया था उसका फल इसी जन्म में मिलेगा तुम सबको पति तो गया, तेरे यार भी जायेंगे, उनसे जाके कह मंदिर की अमानत लौटा दे वापिस .
सेठानी- तू मेरा पति वापिस लौटा सकता है क्या
मैं- उसने गलती की थी सजा मिली उसे , मंदिर में रहने वाले दो गरीबो को मारा था उसने .
सेठानी- चल एक सौदा करते है तू मुझे उस सांप की लाश लाकर दे मैं तुझे मंदिर का लुटा हुआ सामान लाकर दूंगी.
मैं- चुतिया की बच्ची ये खेल किसी और के संग खेलना , मैं जानता हु की तुझे और विक्रम दोनों को ही नहीं मालूम की वो लूट का सामान कहा है .
मेरी बात सुनकर शकुन्तला के चेहरे पर हवाई उड़ने लगी.
मैं- जब्बर की मौत का तो तुझे मालूम ही होगा. रही बात तेरे यहाँ आने की तो यहाँ भी तू कुछ तलाशने ही आई होगी, जा कर ले जो तू कर सकती है . बस इतना याद रखना दुश्मनी की आग में सबको झुलसना ही पड़ता है तू नागिन से माफ़ी मांग ले और बढ़िया जीवन जी सब कुछ है तेरे पास , विचार कर .
सेठानी- मैंने अपना रास्ता चुन लिया है आग सीने में लगी है दुनिया में लगा दूंगी , मैं झुलस रही हु तो तुम भी महसूस करोगे इस आग को .
मैं- वो तेरी मर्जी है
मैं वहां से उठा और मजार की तरफ चल दिया. बाबा ने मुर्गा पकाया था छक कर खाना खाया और वही सो गया. अगले दिन हमें जूनागढ़ जाना था . एक बेहतर कल की उम्मीद लिए मैं आँखे बंद किये हुए था पर मैं कहाँ जानता था की आने वाला कल क्या लाने वाला था अपने साथ.
दोपहर होते होते मैं बाबा के साथ जूनागढ़ के लिए निकल गया . सतनाम ने बड़ी बढ़िया दावत दी थी . मैं नानी से मिला उन्होंने पूछा मोना के बारे में और मेरे पास देने को कोई जवाब नहीं था. भोज के बाद हमें निकलना ही था पर नानी ने हमें रोक लिया ये कहकर की प्रोग्राम में ठहरो . बाबा न जाने कहा रमता राम हो गया था . शाम हो रही थी पर दिल में बेचैनी सी थी . मोना की याद आ रही थी .
मैं बस वहां से खिसक ही जाना चाहता था , की नानी मुझे अपने साथ अन्दर ले गयी और अन्दर जाते ही मैंने जो देखा मेरी आँखों ने उसे मानने से इनकार कर दिया. दिल ने बस इतना कहा ये नहीं हो सकता.
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