Romance लव स्टोरी

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rajsharma
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Re: लव स्टोरी / राजवंश

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मित्रों ने राज को कंधों पर उठा लिया और जोर-जोर से नारे लगाने लगे, “प्रिंस राज...जिन्दाबाद...प्रिंस राज जिन्दाबाद....”

वे लोग राज को उठाये-उठाये फाटक तक ले आए। बड़ी कठिनता से राज नीचे उतर सका। उसी समय भीड़ को चीरती हुई संध्या राज के पास पहुंची‒
“बधाई हो राज...तुम फर्स्ट डिवीजन में पास हुए हो...”

“तुम्हें भी बधाई हो संध्या...” राज ने संध्या का हाथ दबाकर कहा, “आज की विजय उस मार्ग का आरंभ है जिस पर चलकर हम दोनों एक मंजिल पर पहुंचेंगे.”

“किन्तु आज राज हमारा है...” अनिल ने राज का हाथ संध्या से छुड़ाते हुए कहा, “आज राज ने अपने मित्रों का सिर मान से ऊंचा कर दिया है...जो लोग राज को हमारे संग घूमते-फिरते देखते थे, वे समझते थे कि हम राज को पास न होने देंगे..और आज उन लोगों की पराजय का उत्सव हम मनाएंगे...संध्या देवी! आप तो जीवन-भर राज के साथ उत्सव मनाती रहेंगी...”

उन लोगों ने फिर राज को उठा लिया और उसे उठाए-उठाए कार की ओर ले गए। संध्या मुस्कराकर कुछ संकोच में उन लोगों की ओर देखती रही। इस मित्र-मंडली ने राज को कार में ठूंस दिया और उसी क्षण कार फर्राटे भरने लगी। कार में ठहाके गूंजने लगे। अनिल ने कार एक बार के सामने रोक दी। राज ने चौंककर पूछा, “यहां क्यों रोकी है गाड़ी?”

“वह उत्सव उत्सव नहीं होता दोस्त! जिसमें लाल परी का नशा सम्मिलित न हो...”

“शराब?” राज चौंक पड़ा।

“पीकर तो देखो आज....जीवन-भर हमें दुआएं दोगे कि अमृत से परिचय करा दिया।”

राज असमंजस में पड़ गया। अनिल के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुस्कान थी।

“क्या जय भैया का चेहरा देख रहे हो कल्पना में...?” अनिल ने पूछा।

“क्यों?” राज को अचानक क्रोध आ गया।

“जो मूर्ख इस आनन्द से परिचित नहीं होते, वे सदा ही इसे बुरा कहते हैं...वे दूसरों को भी इस आनन्द से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं।”

“कौन रोकेगा मुझे?” राज क्रोध में बोला, “मैं किसी का बन्दी नहीं हूं....स्वतन्त्र हूं...”

“तो फिर आओ मेरी जान! विलम्ब क्यों?”

थोड़ी देर बाद पूरी मंडली शराब में विभोर थी....राज ने इतना आनन्द शायद कभी पहले अनुभव नहीं किया था। वह नशे में झूमकर बोला, “अरे निर्दयी, अब तक तूने क्यों इस लालपरी से मुझे इतना दूर रखा था।”

“अब तो तुम्हारे पहलू में है....जितना चाही आनन्द उठाओ...” अनिल ने फिर राज का गिलास भर दिया।
थोड़ी देर बाद वे लोग उठे। राज ने लड़खड़ाते हुए जेब में से पर्स निकाला और काउंटर पर फेंकते हुए बोला, “निकाल लो....इस स्वर्ग के टिकट की कीमत निकाल लो....” \

काऊंटर-क्लर्क ने मुस्कराकर पर्स उठाया और उसमें से बिल के पैसे निकालकर पर्स वापस राज को देते हुए वेटर से बोला, “वेटर! साहब को द्वार तक पहुंचा दो....कोई मेज-कुर्सी न तोड़ दें....”

राज ने क्रोध में काउंटर क्लर्क को घूरा और पर्स काउंटर पर पटककर बोला, “निकाल लो....अपने पैसे पूरे कर लो। आज हम यहां की सारी कुर्सियां-मेजें तोड़कर जाएंगे....”

“अरे-अरे....साहब....यह तो मैंने यूंही कह दिया था....” काउंटर-क्लर्क बौखलाकर बोला।

“कैसे कहा तुमने? जानते नहीं हम कौन हैं....प्रिंस हैं प्रिंस....आज इस बार में एक भी मेज-कुर्सी साबुत न बचेगी....”

बड़ी कठिनता से अनिल, फकीरचन्द, धर्मचन्द और कुमुद ने मिलकर राज को उपद्रव मचाने से रोका। अनिल ने काउंटर से राज का पर्स उठाकर उसकी जेब में रख दिया और उसे घेरकर कार में ले आए। कार फिर सड़क पर दौड़ने लगी, स्टेयरिंग राज ही के हाथ में था और मदिरा के प्रभावाधीन झूम रहा था। शेष मित्र जोर-जोर से ठहाके लगा रहे थे। कार एक लड़की के पास से गुजरी तो अनिल ने खिड़की से सिर निकालकर एक चुम्बन वातावरण में उछाल दिया। लड़की भिन्नाकर कुछ दूर तक कार के पीछे दौड़ी और उन लोगों ने ठहाके लगाए। फिर एक गुजरते हुए राही के सिर से कुमुद ने झपटकर हैट उतार लिया.....राही दूर तक दौड़ा और कुमुद हैट सिर पर लगाकर जोर-जोर से हंसने लगा।

राज ने कार की गति और तेज कर दी। अनिल उसका कंधा हिलाकर बोला, “और तेज....मेरे यार और तेज.....आज इतनी तेज कार चलाओ जितनी तेज पहले कभी न चलाई हो....आज की शाम हमारी है....”

राज ने कार की गति और भी तेज कर दी और कार लहराती हुई दूसरी आती-जाती गाड़ियों से बचती-बचाती आगे निकल गई। एक मोड़ पर मुड़ते हुए कार अचानक एक टैक्सी के सामने आ गई। टैक्सी-ड्राइवर ने बड़ी फुर्ती से टैक्सी बचा ली, फिर भी उसका पिछला बम्पर कार से रगड़ता चला गया और टैक्सी उलटते-उलटते बची। पिछला बम्पर टूटकर गिर गया। इस सड़क पर अधिक भीड़ भी न थी।

राज ने कार रोक ली। टैक्सी भी रुक गई। राज खिड़की खोलकर लड़खड़ाता हुआ नीचे उतरा। उधर से टैक्सी-ड्राइवर भी नीचे उतरा। राज ने क्रोधित दृष्टि से उसे घूरकर देखा‒
“इडियट....नानसेंस....मर्सिडीज का सत्यनाश कर डाला....”

फिर उसने ड्राइवर को मारने के लिए हाथ घुमाया....ड्राइवर ने फुर्ती से उसकी कलाई पकड़ ली और उसे चांटा मारने के लिए हाथ उठाया, पर ठिठककर रुक गया और बोला, “जाइए बाबूजी! यदि ये गालियां आपने दी होतीं तो गाली का भी उत्तर देता और चांटे का भी।”

“तू उत्तर देता?” राज क्रोध से मुट्ठियां भींचकर बोला।

“हां मैं उत्तर देता....” ड्राइवर कठोर स्वर में बोला, “टैक्सी चलाता हूं भीख नहीं मांगता.....तुम कोई आकाश से उतरे हो....या संसार भर की इज्जत खरीदकर अपने खजाने में भर ली है? आधा गिलास दारू पी ली और समझने लगे स्वयं को राजकुमार....”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: लव स्टोरी / राजवंश

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अनिल, फकीरचन्द, कुमुद और धर्मचन्द भी नीचे उतर आए थे। उन्होंने राज को पकड़ लिया और बलपूर्वक उसे कार में धकेल दिया। ड्राइवर खिड़की के पास पहुंचकर बोला, “जाते कहां हो बाबू? मरम्मत के दाम तो देते जाओ....टैक्सी है टैक्सी मर्सिडीज नहीं जिसे नौकर के हाथ वर्कशाप पहुंचा दोगे और वर्कशाप से बिल बनकर आ जाएगा....आज की मरम्मत का बिल मेरी चार दिन की मजदूरी से भी नहीं पूरा होगा....”

“तू जाता है या मजा चखाऊं?” राज ने फिर खिड़की खोलनी चाही।

अनिल ने फिर उसकी बांह पकड़ ली। ड्राइवर ने कहा, “मजा तुम क्या चखाओगे.....कहो तो मैं चखाऊं....एक साधारण पुलिस वाला ही इस नई मर्सिडीज को खींचकर थाने ले जाएगा और पीकर गाड़ी चलाने के अपराध में क्या दण्ड मिलेगा, यह स्वयं सोच लो...?”

अनिल ने बड़ी कठिनता से राज को वश में किया और उसकी जेब से पर्स निकालकर सौ का नोट टैक्सी ड्राइवर की ओर बढ़ाया। ड्राइवर ने नोट को झपट लिया और बुरा सा मुंह बनाकर बोला, “जाओ....और नुकसान मैं स्वयं भुगत लूंगा....।”

थोड़ी देर बाद मर्सिडीज फिर सड़क पर भाग रही थी और चारों मित्र राज का मूड ठीक करने का यत्न कर रहे थे।

रात को लगभग ग्यारह बजे कार कोठी के कम्पाउंड में पहुंची। ठहाकों का शोर सुनकर जय ने अपने कमरे की खिड़की से नीचे देखा। राज अपने मित्रों के साथ झूमता, लड़खड़ाता हुआ सबसे आगे-आगे था.....जय ने ध्यानपूर्वक देखा और वह भाई को इस दशा में देखकर चौंका। फिर पास ही से उसे राधा की आवाज सुनाई दी, “देख रहे हैं अपने लाड़ले की करतूत....आज शराब पीकर आया है....वह भी गुंडों की टोली के साथ....भगवान की कृपा है कि राजा सो रहा है....वरना न जाने बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ता.....किन्तु, अभी क्या है.....आज तो द्वार खुला ही है....”

जय कुछ न बोला। उसके चेहरे पर फैली हुई गंभीरता में दुख और क्रोध दोनों सम्मिलित थे। नीचे हॉल में शोर गूंज रहा था और राज चीख कर नौकर को पुकार कर कह रहा था, “अरे....कहां मर गया? खाना लगा मेज पर।”

“साहब....” नौकर की आवाज आई, “खाना तो केवल आपका रखा है....”

“तो क्या हुआ?” राज मेज पर हाथ मारकर बोला, “अभी तैयार कर जाकर...देखता नहीं हमारे दोस्त आए हुए हैं....”

“जी....मालिक.....अभी तैयार करता हूं....”

फिर हँसी और धमाधम का शोर गूंजने लगा। जय के माथे की सलवटें कुछ गहरी हो गई थीं।


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Re: लव स्टोरी

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राज ने अचानक कार रोक ली। संध्या ने चौंककर पूछा, “अरे....यहां क्यों रुक गए?”

“आओ....” राज उतरता हुआ मुस्कराकर बोला।

संध्या उतर गई। राज ने दुकान के साइन बोर्ड की ओर संकेत किया।

“यह तो ज्यूलरी की दुकान है....” संध्या ने कहा।

“हां....” राज संध्या का हाथ अपने हाथ में लेकर मुस्कराया, “तुम भूल रही हो.....आज शाम को मेरे पास होने की खुशी में जो पार्टी होने वाली है....उसी में हमारी सगाई की घोषणा भी होगी....और मैं तुम्हारी उंगली में अंगूठी भी पहनाऊंगा....”

संध्या के होंठों पर मुस्कराहट दौड़ गई। राज ने उसका हाथ थामे हुए दुकान में प्रवेश किया। काउंटर पर पहुंचकर उसने देखने के लिए अंगुठियां मांगीं। दुकानदार ने अगूंठियों के कई डिब्बे सामने रख दिए। राज अंगूठियां देखता रहा और संध्या की दृष्टि एक शो केस पर टिक गई। उसने उंगली के संकेत से दुकानदार को बता कर कहा, “जरा यह टाई-पिन निकालिए....”

“क्या परख वाली दृष्टि है आपकी....,” दुकानदार शो केस खोलता हुआ प्रशंसनीय स्वर में बोला, “साधारण व्यक्ति की दृष्टि तो इसकी सुन्दरता का मूल्य ही नहीं पा सकती....दो ही पीस तैयार किए गए थे नमूने के लिए.....एक पीस तो कल ही बेचा है.....दुर्गापुर स्टेट के पूर्व राजकुमार की मंगेतर महाराजकुमार की सालगिरह पर उपहार देने के लिए ले गई हैं....”

टाई-पिन निकालकर दुकानदार ने संध्या के सामने रखते हुए कहा, “कीमत भी कोई अधिक नहीं.....केवल डेढ़ हजार रुपये....”

संध्या ने टाई-पिन को ध्यान से देखा, फिर राज की ओर मुड़ी। इसी समय राज एक अंगूठी चुनकर संध्या की ओर मुड़ा। दोनों ने एक-दूसरे के हाथों में उपहार की ओर देखा और फिर एक साथ एक-दूसरे की आंखों में। संध्या मुस्कराकर बोली, “अति सुन्दर....”

“बहुत हसीन....” राज भी मुस्कराया।

दोनों ने अपने-अपने उपहार पैक कराए और दुकान से बाहर निकल आए। राज साथ वाली दुकान की ओर बढ़ा.....दोनों इस दुकान ने घुस गए। राज ने अपने लिए एक दर्जन जरसियाँ खरीदीं। थोड़ी देर बाद वे इस दुकान से निकलकर एक तीसरी दुकान में घुस गए, कोई दो घंटे बाद जब कार चली तो उसकी पिछली सीट पर पैकेटों के ढेर पड़े हुए थे।


राज ने गिलास उठाकर आगे बढ़ाया और उनके चारों दोस्तो ने अपने-अपने गिलास राज के गिलास से टकराए। अनिल ने मुस्कराकर कहा, “हमारे दोस्त.....प्रिंस राज की सफलता के नाम....”

सबने अपने गिलास होंठों से लगा लिए और एक ही सांस में गटागट पी गए। अनिल ने दूसरी बोतल खोली और गिलासों में उड़ेलने लगा। राज ने एक सेब उठाया और खाने लगा। अनिल ने आखिरी गिलास में शराब उड़ेली ही थी कि एक और गिलास मेज पर आ गया। अनिल ने चौंककर कहा, “अरे....यह कौन है?”


धर्मचन्द और फकीरचन्द इधर-उधर हट गए। उनके बीच गिलास वाला हाथ बढ़ाए राजा खड़ा था। राज ने चौंक कर कहा, “अरे राजा.....तू।”


“अंकल!” यह स्वादिष्ट शर्बत अकेले ही अकेले पी रहे हैं....हम पी पिएंगे....”

‘‘शर्वत....’’ अनिल ने ठहाका लगाया। दूसरों के साथ राज भी हंसने लगा। इसी समय पीछे से राधा ने राजा को कंधे से पकड़कर खींच लिया। राजा मचलकर बोला, ‘‘मैं भी पियूंगा शर्बत....अभी.... मैं भी पियूंगा.....’’

राधा खींचती हुई राजा को बाहर ले गई। क्रोध से उसकी आंखें लाल हो रही थीं। राजा लगातार मचले जा रहा था। राधा उसे खींचती हुई जय के कमरे में ले गई और जोर से उसे जय की ओर धकेल दिया। जय घबरा कर राजा को संभालता हुआ आश्चर्य से बोला, “अरे....अरे.....क्या कर रही हो यह?”

“शर्बत मांग रहा है....तो यह भी गुस्से की बात है कोई....सैकड़ों कोका-कोला की बोतलें भरी पड़ी हैं अतिथियों के लिए....एक दे दो...”

“कोका-कोला भी कोई शर्बत है.....” राधा विषैले ढंग से मुस्कराई, “आपका लाड़ला वह शर्बत मांग रहा है जो आपके भाई साहब अपने मित्रों के साथ पी रहे हैं....”

“क्या?” जय ने आश्चर्य से घबराकर पूछा, “राज घर में शराब पी रहा है?”
“दूसरी बोतल खोली गई है मेरे सामने.....” राधा ने घृणा प्रकट करते हुए कहा, “दोस्तों की पूरी सेना है राजकुमार जी के साथ....उन्हें डर ही किसी बात का है? आज दोस्तों की आवभगत के लिए लाई गई है, कल घर में अपने पीने के लिए लाकर रखी जाएगी। आज बच्चा मांग कर पी रहा है, कल चुरा कर और छिपकर पिएगा.....हानि ही क्या है इसमें....?”


जय कुछ न बोला। उसकी भवें सिकुड़ गई थीं....माथे पर सलवटों का जाल-सा बिछ गया था। वह राधा और राजा को वहीं छोड़कर कमरे से निकल गया। अभी वह राज के कमरे की ओर बढ़ ही रहा था कि राज की मित्र-मण्डली में से उसे किसी की आवाज सुनाई दी, “इसके गुण धीरे-धीरे खुलते हैं, मेरे लाल! बकरी को एक घूंट पिला दो और उसे शेर के सम्मुख खड़ा कर दो...”
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