फरेब
माउंट आबू, राजस्थान का एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन। अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर, इसकी शान। लोग इसे राजस्थान का कश्मीर भी कहते हैं। वैसे यहाँ हर समय मौसम ठंडा और खुशनुमा रहता है, पर सर्दी के मौसम की बात ही अलग है। सर्दी में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। होटल भर जाने से वहाँ के लोग अपने घरों के कमरे ऊँची कीमत पर किराये पर दे देते हैं, जो उनकी आजीविका का एक साधन भी है।
वैसे तो यहाँ बारहों महीने पर्यटक आते हैं, पर सर्दी की बात ही अलग है। ऐसी ही अक्टूबर की एक रात सड़कें रात नौ बज कर तीस मिनट पर ही वीरान हो गयीं। सड़कों पर इक्का-दुक्का लोग ही थे। कभी-कभी कोई वाहन निकलने की आवाज सन्नाटे को भंग कर रही थी। दूर कहीं से कुत्ते के रोने की आवाज भयानकता बढ़ा रही थी। ऐसे में एक नवयुवक जिसका लम्बा कद और चौड़े कंधे, जो आगे की ओर झुके हुए थे, दोनों हाथ कोट की जेब में डाले वह पैदल ही चला जा रहा था। शरीर से आकर्षक लग रहे इस नवयुवक ने जीन्स की पेन्ट और सफेद टी-शर्ट पहन रखी थी। टी-शर्ट के ऊपर उसने फरदार जैकेट पहन रखी थी। जैकेट से जुड़ी टोपी ने उसका सिर ढ़क रखा था।
नवयुवक ने सिर से टोपी हटाई तो उसका खूबसूरत् चेहरा सामने आया। तीस से बत्तीस वर्षीय नवयुवक ने सामने नज़रें उठाई। सामने होटल ग्रीनपार्क का साईन बोर्ड चमक रहा था। अचानक उसके मोबाइल की रिंग टोन ने सन्नाटे को भंग किया। उसने अपना मोबाइल जेब से निकाला ग्रीन बटन को टच कर अपने कान से लगाया।
“हलो चंद्रेश! कहाँ हो यार?” दूसरी तरफ से आवाज कान में पड़ी।
“अरे राहुल, मैं टहलने निकला था यार। अब घर वापस जा रहा हूँ।” चंद्रेश ने जवाब दिया।
“घर आ जाओ। एक-एक घूँट लगा लेते हैं, काफी दिन हो गये हमको मिले हुए।” राहुल ने खुशी से कहा।
“नहीं यार, काम बढ़ गया है। पर्यटक भी ज्यादा आये हुए हैं इस बार।” चंद्रेश ने थके स्वर में कहा।
“हाँ भाई, नक्की झील में बोटिंग का ठेका मिलना बहुत बड़ी बात है।” राहुल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा।
“भाई बोटिंग का ठेका बड़ी कठिनाई से मिला।” चंद्रेश शांत स्वर में बोला।
“कितना खिलाया-पिलाया?”
“खिलाने-पिलाने से काम नहीं चलता भाई, सरकार टेंडर निकालती है। ठेका पाने के लिये चेक के साथ जैक भी जरूरी है।” चंद्रेश ने उत्साह से कहा।
“हाँ भाई, मल्होत्रा खानदान का एक मात्र चिराग तुझे चेक और जैक की क्या कमी है?” राहुल के स्वर में व्यंग्य झलका।
“हाँ यार, पैसों का क्या फायदा, जब पास में वंशिका ही नहीं है।” चंद्रेश ने उदास मन से कहा।
“भाई, भाभी के जाने का दु:ख तो हम सब को है, पर कोई क्या कर सकता है?” राहुल ने दुखी मन से कहा।
“भाई, अकेला घर काटने को दौड़ता है।”
“अच्छा भाई, अपने को संभाल। ईश्वर अच्छा ही करेगा गुडनाईट भाई।” कहकर राहुल ने फोन काट दिया।
चंद्रेश ने फोन बन्द कर कोट की जेब में रखा ओर उदास मन से आगे बढ़ गया।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐