Thriller फरेब

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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

राहुल मकरानी ने अपनी कार एक आलीशान इमारत ‘जागृति’ के सामने रोकी। जागृति एक लग्जरी अपार्टमेंट था, जिसमें हर फ्लैट की कीमत करोड़ों रुपए में थी। सभी फ्लैट वैल फर्निश्ड थे। जागृति के पाँचवे फ्लोर पर राहुल मकरानी रहता था, जो उसने अपनी शान दिखाने के लिये मंहगे दाम पर किराये पर लिया हुआ था। पर अब हालात ऐसे थे कि वह उसका किराया तक नहीं दे पा रहा था। मालिक ने उसको दो महीने का टाइम दे रखा था। मकान खाली करने को। राहुल के अपार्टमेंट में कदम रखते ही सामने विशाल होटल से दो दादा टाईप के आदमी बाहर निकले। पहलवान टाईप के आदमी ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर डायल किया
“हैलो, भाई वह आ गया।”
“आधे घण्टे तक खबर लेने के बाद मुझ से बात कराना।” दूसरी तरफ से शांत स्वर उभरा।
“ठीक है भाई।” पहलवान बोला।
“खबर लेने में कोई कंजूसी नहीं होनी चाहिये।” दूसरी तरफ से क्रूरता से कहा गया।
“ठीक है भाई, जमकर खातिर करेंगे। दो-तीन दिन तक किसी काबिल नहीं रहेगा।” पहलवान ने क्रूरता से हँसते हुए कहा।
सामने से फोन काट दिया गया। पहलवान ने फोन बन्द कर अपने कुरते की जेब में रखा और इधर-उधर देखते हुए कहा, “कहाँ मर गया रे बिल्ला।”
सामने से बिल्ला आता हुआ दिखायी दिया। उसके चेहरे पर चाकू के पुराने घाव थे। चोरी, डकैती, हत्या, लूटपाट, अपह२ण सब कामों में एक्सपर्ट थे ये दोनों। बिल्ला के चेहरे पर चाकू के घाव उसकी भयानकता को बढ़ा रहे थे।
“चल हाथ साफ करने का मौका आ गया।” पहलवान बोला।
राहुल मकरानी ने अपने फ्लैट में पहुँचने के बाद रुम को अन्दर से लॉक किया और कपड़े बदलने लगा। तभी अचानक कालबेल की आवाज सुनाई दी।
“कौन मर गया इस समय।” राहुल मन ही मन बड़बड़ाया।
“कौन?” राहुल जोर से चिल्लाया।
“कूरियर वाले साहब।” बाहर से आवाज़ आयी।
“पता नहीं कौन-सा कूरियर आ गया इस समय।” मन ही मन बडबड़ाते हुए उसने दरवाजे से लॉक हटा कर दरवाजा खोला ही था कि बाहर से किसी ने उसे जोर का धक्का दिया। वह लड़खड़ाते हुए फर्श पर गिर गया। तभी पहलवान और बिल्ला फुर्ती से अन्दर घुसे और अन्दर से लॉक लगा दिया।
“ये क्या बदतमीजी है?” राहुल ने उठते हुए कहा।
“बदतमीजी तो अब होगी।” पहलवान ने मुस्कराते हुए कहा।
“क्या चाहते हो?” राहुल ने डरते हुए कहा।
“हम जो चाहते हैं, वह तुम्हें कबूल ना होगा।” बिल्ला ने जेब से चाकू निकालते हुए कहा।
राहुल ने चिल्लाने के लिये मुँह खोला, तो पहलवान ने आगे बढ़ कर उसके मुँह पर हाथ रख दिया।
“अगर चिल्लाये, तो यह रामपूरी भी चिल्लायेगा।” बिल्ला ने कहा।
“मेरे पास जो है, वह तुम रख लो।” राहुल ने व्यग्र भाव से कहा।
“भाई हम कुछ लेने नहीं देने आये हैं।” यह कह कर बिल्ला और पहलवान ने उसे कुछ कहने का मौका नहीं दिया और दस मिनट तक तबियत से उसे धुनते रहे। राहुल ने चिल्लाने की कोशिश की, तो पहलवान ने उसका मुँह रुमाल से बांध दिया। दस मिनिट रुई की तरह धुनने के बाद जब वह रुके, तो राहुल की चेतना लुप्त हो चुकी थी।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

आधे घण्टे बाद राहुल की चेतना लौटी, तो अपने को बहुत बुरे हाल में पाया। हाथ-पैर ऐसे हो गये, जैसे कभी अस्तित्व में थे ही नहीं। उसने बड़ी मुश्किल से गर्दन हिलाई, तो देखा सामने सोफे पर बिल्ला और पहलवान पिज्जा खा रहे थे और उनका ध्यान उसी की तरफ था।
“बडी जल्दी होश आ गया पहलवान। अब तेरे में दम नहीं रहा, कुछ डाईट बढ़ा।” बिल्ला ने व्यंग्य से पहलवान के शरीर की तरफ देखते हुए कहा।
“चल भाई बन्दे से बात करें, नाश्ता तो बन्दे को खिला दिया, शायद भाई की डिनर की भी इच्छा है।” पहलवान ने सोफे से उठते हुए कहा।
बिल्ला और पहलवान राहुल मकरानी के पास जमीन पर बैठ गये।
“क्या हाल हैं भाई, अभी तो वन पीस ही हो।” पहलवान ने खूंखार हँसी में हँसते हुए कहा।
“भाई ब्रेक फास्ट तो हो गया, लन्च या डिनर अभी करोगे या थोड़ी देर आराम करने के बाद।” बिल्ला ने चाकू से अपनी ठोड़ी खुजलाते हुए कहा।
“मेरा क्या कसूर है?” राहुल के मुँह से बड़ी मुश्किल से टूटे-फूटे शब्द निकले।
“भाई मैं अपने ग्राहक की उतनी ही सेवा करता हूँ, जितना की दाम वसूल करता हूँ।”
“आज के लिये इतना ही काफी है या पेमेन्ट ज्यादा हुई है रंगा भाई?”
“पहलवान, जिसका नाम रंगा था, “पेमेन्ट टुकड़े-टुकड़े में देनी है।” रंगा ने कहा और अपनी जेब से मोबाइल निकाला और फोन लगाने लगा।
दूसरी तरफ से आवाज आयी, “बात करने लायक है कि नहीं?” दूसरी तरफ से भारी आवाज कानों में पड़ी।
“अभी तो वन पीस है आप कहें तो.....”
“रहने दे फोन दे उसे।” दूसरी तरफ से आवाज आयी।
पहलवान ने फोन उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “ले बात कर ले भाई, शायद शगुन सही नहीं था, हाथ साफ करने का पूरा मौका ना मिला। तेरी किस्मत बुलंदी पर है।” बिल्ला बोला।
“फोन ले लेगा या कान में लगाना पड़ेगा।” बिल्ला ने क्रूर स्वर में कहा।
राहुल ने हाथ बढ़ा कर बड़ी मुश्किल से फोन उठाया।
“पहचाना।” दूसरी तरफ से एक मात्र स्वर सुनाई दिया।
“खान भाई।” राहुल के स्वर में डर भर गया।
“पहचान गया मेरे को, कितना कहा मेरे से पंगा नहीं लेने का।” खान का शांत स्वर उसके कानों से टकराया।
“खान भाई गलती हो गयी, आप का पेमेंट जल्द ही कर दूँगा, बस कुछ मोहलत दे दो।” राहुल मिमियाया।
“अब मोहलत का टाइम खत्म अब केवल हिसाब होगा।”
“बस भाई, एक महीने का टाइम और दे दो। आप का पैसा ब्याज के साथ लौटा दूँगा।” राहुल ने डरते हुए कहा।
“ब्याज तो तू देगा ही और आज से ब्याज डबल। तूने मुझे बहुत बेवकूफ बना लिया। अब तेरा टाइम खत्म।” खान क्रोधित स्वर में बोला।
“बस भाई, थोड़ा समय और दे दो, फिर भले आप मुझे खत्म कर देना। मेरे पास कुछ दिनों में पेमेंट आ रही है। आपको पूरी दे दूँगा।” राहुल ने धीरे स्वर में कहा।
“ठीक है। आज से बीस दिन तेरे। ईक्कीसवाँ दिन मेरा। आज से ब्याज ङबल। रंगा और बिल्ला का पेमेन्ट भी तू देगा। आज से हर एक दिन छोड़कर ये तेरे पास आयेंगे और तेरे को प्रसाद देंगे, ताकि तुझे यह एहसास हो कि तू खान बिरादर की नज़रों से दूर नहीं।” राहुल के कानों में खान का स्वर टकराया।
“नहीं खान भाई, इन दोनों की क्या जरूरत थी। मैं टाइम से आप का पेमेन्ट कर दूँगा।” राहुल के मुँह से घबराया स्वर निकला।
“नहीं, इसकी तो ज्यादा जरूरत है, ताकि तेरे मन में खान से फरेब करने का विचार ना आ सके। ये तुझे याद दिलायेंगे कि खान क्या चीज है?” कह कर खान ने फोन काट दिया।
राहुल के हाथ से फोन छूट कर गिर गया। उसकी आँख से आँसू बाहर आ गये।
“चल भाई, आज का खेल खत्म।” बिल्ला ने कहा।
रंगा-बिल्ला उठते हुए दरवाजे के पास पहुँचे। अचानक रंगा ने घूम कर उस से मजाक में कहा, “भाई दरवाजा बन्द कर लो, कहीं कोई हमारी बिरादरी का दूसरा आ गया, तो तुम्हारा लंच और डिनर साथ में हो जायेगा।” राहुल ने फर्श में लेटे-लेटे ही दोनों को देखा।
“हम फिर आयेंगे आपकी सेवा में।” कह कर बिल्ला ने अपनी बाँई आँख दबा दी।
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

चंद्रेश ने कार को कॉटेज के बाहर रोका। कार से उतरकर चंद्रेश ने निरंजन की ओर देख कर बोला, “आइये सर।”
निरंजन ने कॉटेज का बहुत बारीकी से मुआयना किया। फिर बोला, “चलिये।”
गार्डन पार कर के अन्दर आये, तो शान्ति थी। किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं थी। चंद्रेश ने जल्दी ही पूरी कॉटेज का चक्कर लगाया। कहीं कोई नहीं था। चंद्रेश का दिमाग चकरा गया।”कहाँ गयी” मन ही मन सोचा निरंजन ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। सामने रखे सोफे पर बैठता हुआ बोला, “मुझे तो कॉटेज में कोई नहीं दिखा।”
“मैं जब गया, वह यही थी।” चंद्रेश ने आश्चर्य से कहा।
“एक बात बताओ मिस्टर मल्होत्रा, जब आप यहाँ से गये थे, तो कॉटेज खुली छोड़ कर गये थे या लॉक लगा के गये थे?” निरंजन ने कुछ सोचते हुए पूछा।
“कॉटेज तो खुली ही छोड़ कर गया था, क्योंकि वह यहाँ से जाने को तैयार नहीं थी। मेरी उससे इसी बारे में बहस हो रही थी।”
“क्या बात कर रहे हैं मल्होत्रा साहब? अन्जान महिला को अपने घर में कैसे छोड़ा आपने? यहाँ से पुलिस को फोन कर के बुला सकते थे।” निरंजन ने आश्चर्य से उसकी और देखते हुए कहा।
“मैंने पुलिस स्टेशन फोन लगाया, लेकिन वहाँ से जवाब आया यह रेलवे स्टेशन है।” चंद्रेश ने उत्तर दिया।
“अब सारी बात मेरी समझ में आ गयी। यह सारा ड्रामा शायद किसी कीमती चीज के कारण हुआ है। आप अपनी सब चीजें देख लें, कहीं कुछ गायब तो नहीं हुआ?” अपने सिर की कैप हटा कर सोफे पर रखते हुए निरंजन बोला।
“नहीं सर सब कुछ वैसा ही है, जैसा की मैं छोड़ कर गया था।” चंद्रेश ने जल्दी से कहा।
“इतनी जल्दी जवाब मत दीजिये। पहले आप एक बार चेक कर लीजिये। उसके बाद मैं चला जाऊँगा।”
“ठीक हैं सर, मैं चेक कर लेता हूँ। वैसे उसे ले जाना होता, तो पहले ही ले जा सकती थी, जब वह दरवाजा खोल चुकी थी। मुझ से मिलने की आवश्यकता नहीं थी।” चंद्रेश पिछले कमरे की तरफ जाता हुआ बोला।
चंद्रेश ने अपने कमरे का पूरा निरीक्षण किया। गुप्त तिजोरी खोली उसमें कैश वैसा ही था। कुछ भी गायब नहीं हुआ था। घर का कीमती सामान भी वैसा ही था, जैसा कि वह छोड़ कर गया था।
वह वापस बैठक में आया। सामने सोफे पर बैठते हुए निरंजन को देखता हुआ बोला।”सब ठीक है सर, कुछ भी गायब नहीं हुआ है।”
“चक्कर समझ में नहीं आया। ठीक हैं मैं चलता हूँ।” निरंजन ने सोफे से उठते हुए कहा।
“अरे सर, ऐसे कैसे जाओगे, आपने हमारे लिये इतना कष्ट किया है तो एक कॉफी मेरे साथ पीनी ही पड़ेगी।” चंद्रेश ने उठते हुए कहा।
“अरे नहीं चंद्रेश जी।” निरंजन ने उसे रोकने की कोशिश की, पर चंद्रेश नहीं रुका, बोला, “बस दो मिनट में तैयार हो जायेगी। वैसे मुझे अपने लिये भी बनानी हैं।” अन्दर से चंद्रेश की आवाज आयी।
निरंजन वापस सोफे पर बैठ गया और न्यूज पेपर के पेज पलटने लगा। दस मिनिट बाद चंद्रेश बिस्कुट, नमकीन और मिठाई के साथ हाजिर हुआ।
“अरे इसकी क्या जरूरत थी।” निरंजन शान्त स्वर में बोला।
चंद्रेश ने सेन्टर टेबल पर ट्रे रख दी और वे लोग बातें करते कॉफी पीने लगे। कॉफी समाप्त करके चंद्रेश ने कप रखा ही था कि उसकी नजर मेन डोर पर चली गयी, तो वह हैरान रह गया। चंद्रेश की नज़रों का पीछा करते हुए निरंजन ने मेन डोर पर नजरें गड़ाई तो वह भी हैरान हो गया।
उन्होंने देखा सामने एक खूबसूरत कयामत खड़ी थी। निरंजन भी उसकी सुन्दरता में खो गया। एक शानदार परी-सा चेहरा लिये हुए वंशिका खड़ी थी। चंद्रेश ने उसे कोहनी से हिलाया। निरंजन महिला के जादू से बाहर निकला।
“सर वह ही है।” चंद्रेश बोला
निरंजन ने वंशिका के चेहरे पर नजर गड़ायी। वंशिका ने भी पलके ना झपकायीं और अदा से निंरजन को देखा
“आपकी तारीफ?” निरंजन पुलिसिया अन्दाज में बोला।
“तारीफ उस खुदा की कीजिये, जिसने हमें बनाया।” महिला ने व्यंग्य से कहा।
“जो पूछा जाये, उसका सही तरीके से जवाब दो।” निरंजन का स्वर कठोर हो गया।
“मेरे घर में खड़े होकर ऐसे सवाल पूछोगे, तो ऐसे ही जवाब मिलेंगे।’’ महिला के स्वर में अकड़ के भाव आ गये। उसके चेहरे से नहीं लग रहा था कि वह पुलिस की वर्दी देख कर घबराई हो या उसके चेहरे पर कोई बेचैनी या परेशानी के भाव आये हों। निरंजन भी हैरान रह गया, ऐसी दंबगई उसने पहली बार देखी। वरना पुलिस को देख कर सच्चे लोग भी घबरा जाते हैं।
“आप का नाम क्या है?” निरंजन ने पूछा।
“क्यों मेरे पतिदेव ने नहीं बताया?” उसके स्वर में व्यंग्य के भाव आ गये।
“यह आपको अपनी पत्नी नहीं मान रहे हैं। इन्होंने आपके विरूद्ध रिपोर्ट लिखवाई है।”
“इस बारे में आप का क्या कहना है?”
“कलयुग में पतिदेव ऐसे ही होते हैं।”
“आप ढंग से जवाब दें, यह कानूनी कार्यवाही है। कोई आप स्टेज पर खड़ी होकर ड्रामा नहीं कर रही, समझीं आप।”
“ठीक है पूछो क्या पूछना चाहते हो?” महिला ने हथियार डालते हुए कहा।
“आप का नाम क्या है?”
“वंशिका अरोड़ा मल्होत्रा।”
“यह अरोड़ा और मल्होत्रा दोनों साथ में कैसे?”
“शादी से पहले मेरा नाम वंशिका अरोड़ा था, जो शादी के बाद मल्होत्रा हो गया।”
“क्या ये सच बोल रही है?” निरंजन ने चंद्रेश को देखते हुए कहा।
“हाँ सर, यह सही कह रही है, पर यह वंशिका नहीं है।” चंद्रेश ने व्यग्र भाव से कहा।
“इसका फैसला करने वाले आप कौन होते हैं? यह फैसला करना मेरा काम है।” निरंजन ने मल्होत्रा को देखते हुए कहा।
“अब मैं आपसे जो सवाल पूछूँगा, उसका जवाब ‘हाँ’ या ‘ना’ में देना। बीच में कुछ भी नहीं बोलना।’’ निरंजन ने मल्होत्रा से कहा।
“जी सर।” मल्होत्रा ने मरे स्वर में जवाब दिया।
“आपकी लव मैरिज है या अरेंज?” निरंजन ने वंशिका की तरफ देख कर पूछा।
“पहले लव, उसके बाद अरेंज।” वंशिका ने जवाब दिया।
निरंजन ने चंद्रेश की तरफ देख कर बोला, “सही या गलत?”
“सही, लेकिन.....?” मल्होत्रा ने जवाब दिया।
“बस।” निरंजन ने वंशिका की तरफ देख कर कहा।
“यह तो कह रहे हैं, मेरी वाईफ काफी दिनों से लापता है, आप का क्या कहना है?”
“मेरा एक्सीडेन्ट हो गया था। होश परसों ही आया, तो चली आयी।” वंशिका ने जवाब दिया।
“कहाँ थी इतने दिन आप?”
“एक वकील ने मेरी जान बचाई। मैं उन के यहाँ सात-आठ दिन थी।”
“आप उनका एड्रैस दे सकती हैं?”
“जी बिलकुल, आप उन से पूछ सकते हैं।”
“ठीक है, मैं पूछताछ करता हूँ।”
“सबसे अहम बात, आप अन्दर कैसे आयी? दरवाजा तो लॉक था।” निरंजन ने पूछा।
“हाँ-हाँ पूछिए निरंजन सर, ये अन्दर कैसे आयी?”
“आप चुप रहिये, आपको भी मौका मिलेगा। पहले मोहतरमा से पूछताछ करने दो।” निरंजन ने मल्होत्रा को रोकते हुए कहा।
“हाँ, तो आप बताइये वंशिका जी?”
“यह वंशिका नहीं है इंस्पेक्टर साहेब।” चंद्रेश जोर से चिल्लाया।
“चुप।” निरंजन खड़ा होकर उसकी आवाज दबाते हुए जोर से चिल्लाया, “एकदम चुप, जब तक आप से न बोला जाये, आप नहीं बोलेंगे।” निरंजन गुस्से में बोला।
चंद्रेश ने नजरें झुकाते हुए पहलू बदला। वंशिका के होंठ पर कुटिल मुस्कान उभरी, जो निरंजन की उस पर पड़ते ही लुप्त हो गयी।
“हाँ, तो मोहतरमा जी, आप अन्दर कैसे आयी?”
“वह भी इनके कारण?” वंशिका ने जबाव दिया।
“मेरे कारण? कैसे?” मल्होत्रा हैरानी से बोला।
“इंस्पेक्टर इनके भूलने की आदत की वजह से हमने घर के मेन डोर की दो चाभी बना रखी हैं, जिसकी एक चाभी बाहर पड़े गमलों में रखी रहती थी। अगर चाभी गिर जाये, तो वहाँ से निकाल ली जाती है। मैं उसी चाभी से मेन डोर खोल कर अन्दर आयी।” वंशिका ने कहा।
“क्या यह सही कह रही है?” निरंजन ने चंद्रेश से पूछा।
“जी सर, पर यह बात इन को कैसे पता चली?” चंद्रेश का स्वर हैरानी से भर गया।
“और तो और मैं कई बात बता सकती हूँ, जो केवल पति-पत्नी के बीच रहती हैं। उदाहरण के तौर पर इनकी दायी जाँघ में तिल का निशान है।” वंशिका ने कहा।
“यह सही कह रही हैं।” निरंजन ने चंद्रेश को देख कर कहा।
“हाँ, यह बात तो है, पर यह कोई भी बता सकता है। इसमें नई बात नहीं।” चंद्रेश ने कहा।
“हाँ ये तो है।” निरंजन ने उसका समर्थन किया।
“हाँ अब आप साबित करो कि यह आपकी पत्नी वंशिका नहीं है।” निरंजन ने चंद्रेश को देख कर कहा।
“यह तो मैं जानता हूँ कि ये मेरी पत्नी नहीं है।” चंद्रेश निरंजन से बोला।
“साबित करो।”
“अभी साबित हो जायेगा, मेरे पास शादी के कुछ फोटो ग्राफ्स हैं। मैं उन्हें आपको दिखाता हूँ।” चंद्रेश सोफे से उठते हुए बोला।
“लेकर आइये।” निरंजन ने कहा।
निरंजन सोफे से उठा और अन्दर कमरे में चला गया।
वंशिका के चेहरे पर खौफ उभरा।
“मैं भी जा सकती हूँ।” वंशिका ने उठते हुए कहा।
“जी नहीं मोहतरमा, आप यहीं विराजिये।” निरंजन ने शान्त स्वर में कहा।
वंशिका पुनः सोफे पर बैठ गयी और आँख बन्द कर कुछ सोचने लगी। थोड़ी देर में हड़बड़ाते हुए चंद्रेश बाहर निकला। उसके हाथ में एक बीफ्रकेस था, जो उसके हाथ में लटक रहा था। पास में वह निराश होकर बैठ गया। उसका चेहरा लटका हुआ था।
“क्या हुआ मि. चंद्रेश?” निरंजन ने उसकी ओर देख कर पूछा।
“निरंजन सर, इसकी चाभी मिल नहीं रही है और फोटो की एलबम इसके अन्दर है।”
वंशिका के चेहरे पर रौनक लौटी, “यह बहानेबाजी है। कोई सबूत नहीं है मेरे खिलाफ। यह सब झूठ है।” वंशिका बोली।
“तो चाभी नहीं है आप के पास। अब क्या चाहते हैं आप?” निंरजन ने कहा।
“मैं क्या करूं, समझ नहीं पा रहा हूँ।” चंद्रेश उदास स्वर में बोला।
“आपकी इस समस्या को मैं हल कर देता हूँ।” निरंजन ने कहा।
“वह कैसे इंस्पेक्टर साहब?”
“ऐसे समय के लिये हमारे पास मास्टर की नाम की वस्तु पायी जाती है, जो कोई भी ताला खोल देती है।” निरंजन ने मजे लेते हुए कहा।
निरंजन ने अपनी पिस्तौल से एक फायर कर अटैची का ताला तोड़ दिया।
मल्होत्रा खुशी से उछल पड़ा, “अब आयेगा मजा?”
निरंजन ने वंशिका का चेहरा देखा। उसका चेहरा उतर गया। वह बेचैनी से इधर-उधर देखने लगी।
“गई भैंस पानी में। हो गया दूध का दूध पानी का पानी।” चंद्रेश ने अटैची खोली और एक एलबम निकाल कर निरंजन के हाथ में रख दी।
“देख लो सर मेरी सच्चाई सामने आ गयी।” चंद्रेश चहका।
निरंजन ने एलबम खोली और आश्चर्य से वंशिका के लटके चेहरे को देखता रहा। जैसे-जैसे वह एलबम देखता उसका गुस्सा बढ़ता चला जाता। वंशिका का चेहरा उत्तरा हुआ था।
“यह क्या मजाक बना रखा हैं आपने मि. चंद्रेश? आपको मैं पागल दिखायी देता हूँ।” उसने गुस्से में मल्होत्रा को देखते हुए कहा।
“क्या हुआ निरंजन सर?” चंद्रेश बोला।
“आप खुद पहले एलबम देख लें, फिर मुझ से बात करें।” निरंजन ने गुस्से में चंद्रेश से कहा।
चंद्रेश ने एलबम उठाई और ध्यान से एक एक पेज पलटने लगा। उसकी हैरानी बढ़ने लगी।
“यह नहीं हो सकता?” वह जोर से चिल्लाया।
“क्यों नहीं हो सकता?” निरंजन उससे भी तेज स्वर में चिल्लाया।
“क्यों नहीं हो सकता? अटैची आपकी, घर आपका?” निरंजन तेज आवाज में बोला।
निरंजन गुस्से में चंद्रेश को देख रहा था। एलबम में वंशिका और चंद्रेश की तस्वीरें थीं। सारी तस्वीरों में वही वंशिका थी, जो इस वक्त उनके सामने बैठी थी।
वंशिका के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभरी और पल भर में लुप्त हो गयी। उसने आखों में आँसू भरते हुए कहा, “देख लिया सर आपने, पता नहीं ये किस बात से मुझ से नाराज हैं।” उसके स्वर में भोलापन उभरा, “पहले तो ये ऐसे नहीं थे।” रोते हुए वंशिका बोली।
चंद्रेश मल्होत्रा का जी चाह रहा था कि वह अपने बाल नोच ले। बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप पर काबू पाया।“यह एक चाल है इंस्पेक्टर साहब। यह फोटो ट्रिक फोटोग्राफी है।”
“अब आपके द्वारा पेश किये गये सबूत ही झूठे हैं। वाह चंद्रेश साहेब, बेशर्मी की भी हद है।” निरंजन ने गुस्से में कहा।
“पता नहीं कैसे फोटोग्राफ बदल गये, मैं नहीं जानता। शायद, मेरे पुलिस स्टेशन जाने के बाद इसने बदल दिये होंगे।’’ चंद्रेश ने वंशिका की तरफ अगुंली उठा कर कहा।
“यह मेरे ऊपर गलत इल्जाम है।” वंशिका बोली।
“चुप कर।” गुस्से में चंद्रेश वंशिका पर डपटा।
“आप मेरी बात समझिए निरंजन सर, यह मेरे खिलाफ कोई गहरी साजिश है।” चंद्रेश निरंजन से बोला।
“मैं सब समझ गया चंद्रेश साहेब। यह आप का पारिवारिक मामला है। इसमें पुलिस का कोई दखल नहीं।”
“यह गलत हो रहा है।” चंद्रेश गुस्से में तेज स्वर में बोला।
“अगर आपकी अपनी पत्नी से नहीं बन रही है, तो इसमें पुलिस क्या कर सकती है? यह आपके घर का मामला है। इसे आपको ही सुलझाना होगा।” निरंजन ने टोपी पहनते हुए शान्त स्वर में कहा।
“लगता है मुझे ऊपर कमिश्नर से बात करनी होगी।” मल्होत्रा ने हताश स्वर में कहा।
“वह आप का अधिकार है। अब मुझे इजाजत दीजिये।” कहकर निंरजन ने बाहर की तरफ कदम बढ़ाये।
अचानक घूम कर बोला, “एक बात कान खोल कर सुन लीजिये चंद्रेश साहेब। मेरे इलाके में किसी भी तरह का क्राइम में सहन नहीं करुँगा। यह आप दोनों को मेरी वैधानिक चेतावनी है।”
कह कर निरंजन मुड़ा और लम्बे कदमों से बाहर की तरफ निकल गया। चंद्रेश का चेहरा मुरझा गया और वंशिका का चेहरा खिल गया।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

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पुलिस कमिश्नर की कार स्वास्थ्य मंत्री सुन्दर लाल अवस्थी के बँगले की तरफ उड़ी जा रही थी। ड्राइवर कार चलाने में मगन था। पीछे हो रही बातचीत पर उसका ध्यान नहीं था।
पीछे बैठे कमिश्नर से भाटी बोला, “हम दोनों को मंत्रीजी ने एक साथ बुलाया है। जरूर कोई आवश्यक बात होगी?”
कमिश्नर ने सामने काँच की तरफ देखते हुए कहा, “उनके बेटे का मर्डर हुआ है भाटी। उसी सिलसिले में लिये बुलाया होगा।”
“हो सकता है वही बात हो सर, पर आप मुझे वहाँ ले जाकर ठीक नहीं कर रहे हैं।” भाटी ने व्याकुलता से कहा।
“क्यों....?” कमिश्नर ने पूछा
“सर आप जानते हैं मेरा मिजाज गर्म है। अगर मंत्रीजी ने कोई गलत बात कह दी, तो मैं अपने आपको जबाव देने से रोक नहीं पाऊँगा।” भाटी कमिश्नर को देखता हुआ बोला।
कमिश्नर ने इलायची जेब से निकाली और भाटी से कहा, “लो इलायची खाओ।”
“नहीं सर, आप ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।” भाटी ने कहा।
“भाटी तुम शान्त रहना, जो भी बात होगी मैं सँभाल लूँगा। तुम अपने जज्बात पर काबू रखना।” कमिश्नर ने इलायची मुँह में डाल कर कहा।
“लेकिन सर....?”
“तुम कुछ नहीं बोलोगे। संभल जाओ सामने बँगला दिख रहा है।”
ड्राइवर ने कार शानदार बँगले के सामने रोकी। सामने गेट से दरबान दौड़ता हुआ बाहर आया। ड्राइवर ने काँच खोलते हुए कहा, “कमिश्नर साहब है। मंत्रीजी से मिलना चाहते हैं।”
“ठीक है मैं पता करता हूँ। आप गाड़ी अंदर ले आइये।” गेट खोलकर थोड़ी देर तक वह इन्टरकॉम में व्यस्त रहा, फिर बोला, “जाइये सर, मंत्री साहेब आपका ही इन्तजार कर रहे हैं।” दरबान बोला।
ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी। कार मेन दरवाजे से होते हुए बंगले के पोर्च में रुकी। कमिश्नर और भाटी दोनों कार से बाहर निकले। बाहर मंत्रीजी का पी.ए. उन्हें रिसीव करने खड़ा था।
“आइये सर, मंत्रीजी आप का ही इंतजार कर रहे हैं।”
“आप कौन हैं?” भाटी ने पूछा।
“मैं उनका पी.ए. हूँ।” वह उन्हें लेकर ड्राइंगरूम में पहुँचा।
“आप बैठिये, मैं नेताजी को आप के आने की खबर दे देता हूँ।” कमिश्नर का सिर सहमति से हिला।
भाटी ने कमरे में नज़रें दौड़ाई। भव्यता का सारा सामान वहाँ मौजूद था। एक-एक चीज कीमती थी। कमरा सजाने में किसी तरह की कंजूसी नहीं की गयी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी पुराने राजा-महाराजा की कोठी में आ गये हों।
“सर, ऐसा लगता है काली कमाई खूब है नेताजी के पास।” भाटी कमिश्नर के कान में फुसफुसाया।
“चुप करो भाटी, दीवारों के भी कान होते हैं।” कमिश्नर ने धीमे स्वर में गुर्राते हुए कहा।
तभी स्वास्थ्य मंत्री सुन्दर लाल अवस्थी ने वहाँ कदम रखा। पचास से पचपन के बीच की उम्र के नेताजी, थुलथुल शरीर, पेट बाहर निकला हुआ, सिर सफाचट, छोटी मक्कारी से भरी आँखें, क्लीन शेव, छोटा कद, साँवला चेहरा, मोटी गर्दन, जिसमें मोटी-सी सोने की चेन लटक रही थी। नेताजी का जगमग करता सफेद खादी का कुरता-पजामा फब रहा था। सिर पर सफेद टोपी लगाए वे अन्दर आये। भाटी और कमिश्नर उनके सम्मान में उठ खड़े हुए।
“बैठिये कमिश्नर साहब और तुम भी बैठो भाटी।” मंत्रीजी ने शान्त स्वर में कहा।
“जी सर।” कमिश्नर बोला।
“जानते हो हमने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया?” मंत्रीजी ने दोनों हाथ सोफे पर घुमाते हुए कहा।
“जी सर, सुमित अवस्थी के मर्डर केस की प्रोसेस जानना चाहते होंगे आप।” कमिश्नर के बोलने से पहले भाटी बोल उठा।
कमिश्नर ने घूर कर उसे देखा।
“सॉरी सर।” भाटी जल्दी से बोला।
मंत्री जी ने भाटी की तरफ ध्यान न देकर अधेड़ श्रीवास्तव की तरफ नजरें घुमाई।
“आज मुझे अपने बेटे के कातिल की फिक्र नहीं है। वह तो तुम एक न एक दिन पता लगा ही लोगे, पर आज समस्या दूसरी है।” नेताजी बोले।
नेताजी ने एक नौकर को बुला कर चाय-नाश्ता लाने को कहा।”जब तक मैं ना कहूँ, इधर मत आना।” मंत्रीजी ने नौकर से कहा।
“जी मालिक।” नौकर ने सम्मानित लहजे में कहा।
“हाँ तो कमिश्नर साहब, मैं कह रहा था कि मेरे बेटे के कातिल को पकड़ना तो आप लोगों को होगा ही, क्योंकि वह मेरा इकलौता पुत्र था और मुझे उससे बहुत लगाव था।” मंत्री जी ने रुमाल निकालते हुए कहा।
“अगर पुत्र नालायक होता तो और बात थी, पर मैं जानता हूँ सुमित में कोई ऐब नहीं था। उसे तो मेरे नाम, शोहरत और पैसे भी नहीं लुभाते थे। वह अपने में मग्न रहने वाला लड़का था। किसी से कोई बात नहीं करता था। घर में भी शान्त रहता था।” कहते हुए मंत्रीजी की आँखों से आँसू आ गये। उन्होंने रुमाल से उसे पोंछा।
“जी सर, हम आपके जज्बात को समझते हैं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कातिल कोई भी हो, जल्द से जल्द कानून के हवाले होगा। आप मेरी बात पर यकीन करें।” भाटी नरम स्वर में बोला।
“मुझे तुम्हारी योग्यता पर पूरा भरोसा है भाटी। आप लोगों को यहाँ बुलाने का दूसरा कारण है।” मंत्रीजी ने कहा।
“फरमाइये सर, ऐसा कौन-सा कारण है, जिसने आपको इतना विचलित कर रखा है?” कमिश्नर ने मंत्रीजी को देखते हुए कहा।
भाटी की नजरें भी मंत्रीजी से टकराई। मंत्रीजी खुद को रोकते हुए बोले, “मिस्टर खान का नाम आप लोगों ने सुन रखा है?”
कमिश्नर ने चौंकते हुए कहा, “आप मिस्टर सोनू खान की बात तो नहीं कर रहे हैं।”
“हाँ, मैं उसी सोनू खान की बात कर रहा हूँ कमिश्नर साहब।”
“लेकिन वह तो अहमदाबाद में सक्रिय था और सुना है की वहाँ की पुलिस ने उसका एनकांउटर कर दिया।” कमिश्नर बोला।
“आपने ठीक सुना है कमिश्नर साहब, पर मसला सोनू खान का नहीं, उसके छोटे भाई अयूब खान का है।” मंत्रीजी पहलू बदलते हुए बोले।
“वह कैसे सर?” भाटी ने पूछा।
“अयूब खान मैच फिक्सिंग से लेकर सट्टा और ड्रग्स के धन्धे में सक्रिय है। उसका आज कल ड्रग्स का कारोबार फल फूल रहा है।” मंत्रीजी बोले।
“यह तो गलत हो रहा हैं सर।” भाटी बोला।
“एक बात शायद आपको मालूम न हो, पर मुझे लगता है कि सुमित को भी ड्रग्स की लत लग गयी थी।” मंत्रीजी बोले।
“आपको कैसे मालूम पड़ा सर?” भाटी ने पूछा।
“उसके व्यवहार से मुझे लगा।” मंत्रीजी बोले।
कमिश्नर का सिर सहमति से हिला।
“जहाँ तक मुझे जानकारी मिली है कि अयूब खान अब स्कूली बच्चों में यह जहर भर रहा है। उसके एजेन्ट स्कूल, कालेज और थियेटर के आगे अपना माल सप्लाई करते हैं।”
“यह तो बहुत बुरा हो रहा है सर।” भाटी बोला।
“इसलिये मैंने तुम दोनों को यहाँ बुलाया है। मेरी चीफ मिनिस्टर सर से बात हो गयी है। उन्होंने ही मुझे आपको यह केस सौंपने के लिये कहा है।”
“यह आप ने अच्छा किया इससे हमें सुमित अवस्थी वाले केस सुलझाने में मदद मिलेगी” भाटी बोला।
“तुम निर्भय होकर काम करो भाटी, अगर कभी मेरी जरुरत हो, तो मुझसे सम्पर्क कर सकते हो।” मंत्रीजी ने कहा।
“ठीक है सर। आपके इतना कह देने भर से मेरी हिम्मत बढ़ गयी है।” भाटी बोला।
“कमिश्नर श्रीवास्तव, अगर तुम इस केस में किसी स्पेशल ऑफिसर को लेना चाहते हो, तो मुझे इन्फॉर्म कर देना।”
“जी सर, अब हमें आज्ञा दीजिये।” कमीशनर ने उठते हुए कहा।
“ओके, मुझे भी एक मीटिंग में जाना था। बस आप लोगों का इंतजार कर रहा था।” यह कहकर मंत्रीजी उठ खड़े हुए।
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Re: Thriller फरेब

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रानो का अड्डा। वहाँ एक गन्दी सी टेबल पर रंगा-बिल्ला बैठे थे। सामने टेबल पर देशी ठर्रे की बोतल और काँच के दो गिलास रखे थे। एक नमकीन का पैकट और भुने चने रखे थे, जो अब खत्म होने की कगार पर थे। बिल्ला भुना हुआ चना मुँह में डालते हुए बोला, “यार तेरी एक बात मुझे समझ में नहीं आती। तू जिसको भी कूटता है, उसे भाई क्यों कहता है।”
कुटिल मुस्कान से रंगा ने जवाब दिया, “कूटना तो उसे है ही, उससे पहले उसे सम्मान दिया जाये, तो मजा ही कुछ और है।”
“तेरी बात मेरी समझ से बाहर है।” बिल्ला ने एक और पैग लेते हुए कहा।
अचानक बोतल खत्म हो गयी। रंगा जोर से चिल्लाया, “अरे कलुवा! कहाँ मर गया रे?”
तभी बाहर से एक बारह बर्षीय लड़का भागते हुए आया। उसने हाफ पेन्ट और सफेद बनियान पहन रखी थी। बनियान का कलर कभी सफेद रहा होगा। अभी वह काला पड़ चुका था।
“क्या हुआ उस्ताद?” आते ही वह बोल पड़ा।
“उस्ताद के बच्चे, बोतल खाली नहीं दिखायी दे रही। जाकर एक बोतल और कुछ बायल अण्डे ले आ।” लड़का जिस तेजी से आया था, उसी तेजी से वापस चला गया।”
“यार, ये इन्तजार के काम से मैं बोर हो जाता हूँ।” बिल्ला ने गुस्से से मुक्का मेज पर मारते हुए कहा।
“खान की बात को मना करने का अन्जाम जानता है ना।” रंगा बोला।
तभी रानो के अड्डे के अन्दर राम सवेक और शंकर दयाल ने प्रवेश किया। दोनों के चेहरे पर मुर्दानगी छाई हुई थी।
काउंटर पर बैठा रानो कह उठा, “आइये हवलदार साहब।”
“अरे काहे का हवलदार, हालत तो कुत्ते से भी बेकार है।” शंकर दयाल ने बुरा-सा मुँह बनाते हुए कहा।
तभी राम सेवक ने चारों तरफ नज़रें घुमाई। रंगा-बिल्ला पर आकर उसकी नज़रें ठहर गयी।
“ओह तो उस्तादों की फौज यहाँ विराजी हुई है।” शंकर दयाल बोला।
तभी रंगा की निगाह भी दोनों पर पड़ गयी, “आ गये हरामखोर, मुफ्त की दारू पीने।” रंगा धीरे से फुसफुसाया। बिल्ला ने नजरें घुमाई। राम सेवक उसी को घूर रहा था।
बिल्ला खिसियानी हँसी हँसता हुआ बोला।”आइये हवलदार साहेब, एक-एक पैग हो जाये।”
“लगता है, दिन पूरे हो गये तुम्हारे।” राम सेवक डपट कर बोला।
“तुम जैसे गुण्डे के साथ जल्लाद ने हमें बैठा देख लिया, तो तुम्हारा तो क्या करे मालूम नहीं, लेकिन हमें उल्टा लटका देगा।” राम सेवक उसे घूरता हुआ बोला।
“हा, हा, हा... कैसा समय आ गया पुलिसवाला पुलिसवाले से डर रहा है।” हँसते हुए बिल्ला ने कहा।
“चुप कर कुत्ते, नहीं तो खाल खींच लूँगा मैं तेरी।” राम सेवक बोला।
“कुत्ता किसको बोला बे?” बिल्ला उठते हुए बोला।
“बैठ जा भाई, आज हवलदार फुलफॉर्म में है।” रंगा बोला।
“खाल खींच के दिखा साले।” बिल्ला ने आँस्तीन की बाँह चढ़ाते हुए कहा।
तभी शंकर दयाल बीच में आ गया, “क्यों बात को बढ़ा रहा है राम सेवक” और वह उसको घसीट कर बाहर ले जाने लगा।
“तू मुझे क्यों खींच रहा है?”
“देखा नहीं पहलवान ने तुझे भाई कहा और जब पहलवान किसी को भाई बोलता है। इसका मतलब उसकी धुनाई पक्की है।” शंकर ने बोला।
“तू मुझे डरा रहा है।?” राम सेवक ने शंकर दयाल को घूरा।
“तुझे मरने का शौक है, तो जाकर खुशी से मर, मैं चला।”
“अरे रुक, मैं भी आता हूँ।” राम सेवक ने भागते हुए शंकर दयाल का पीछा किया।
“तू तो नाराज हो जाता है।” राम सेवक मस्का लगाते हुए बोला।
“जब पहलवान चटनी बनाता तो मालूम होता।” शंकर दयाल व्यंग्य से बोला।
“अब छोड़ वह बात।” राम सेवक उत्सुकता से बोला।
“हम रानो के अड्डे पर जिस काम से आये थे, वह तो हुआ ही नहीं।” राम सेवक ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
शंकर ने उसका हाथ छुड़ाया, “आज तेरे कारण ही हमारा बना बनाया प्लान बिगड़ गया। फिर कभी प्रोगाम बनायेंगे।” शंकर बोला।
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