Thriller फरेब

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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

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(^%$^-1rs((7)
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

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यह बात पहले ही क्लीयर हो जाती तों नकली वंशिका का ड्रामा ज्यादा देर नही चलता सभी इसी उलझन में भाटी की तरफ देख रहे थें।

भाटी कुर्सी से खड़ा हुआ " वैसे में यह राज जानता हूं फिर भी चंद्रेश अपने मुँह से कहें की क्या कारण था की एक भी तस्वीर वंशिका की इनके मोबाइल और लेपटॉप में नही थी " भाटी चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।

चंद्रेश खड़ा हुआ और गंभीर स्वर में बोला " जब मुझे वंशिका के फरेब का पता चला तो मुझे वंशिका की सूरत से नफरत हो गयी मैने वंशिका की सारी इमेज डिलीट कर दी ताकि उसकी यादें मेरे जहन में ना रहें। जब जब उसकी सूरत सामने आती तो उसका दिया हुआ फ़रेब आँखों के आगे आ जाता इसलिये उसकी सारी इमेज मैने हटा दी। एलबम के बारे में मुझे तब ध्यान आया जब निरंजन पूछताछ के लिये आये। तब मेरे सामने एलबम के अलावा कोई विकल्प ना था पर पता नही मिस कोमल नें उसे कैसे बदल दिया " चंद्रेश ने सब की तरफ देख कर कहा।

सब का सिर सहमती से हिला भाटी समान्य स्वर में बोला " हम सब को ट्रैनिंग के समय यह सिखाया जाता है। सब से पहले चैकिंग करो। मिस कोमल जब आपके घर वंशिका का ड्रामा करने गयी। तो सबसे पहले कोमल ने उन सबूतों को मिटाया जो असली वंशिका के होने का प्रमाण थें और वैसे भी मोबाईल की इमेज से यह सबित नही होता कि असली वशिंका कौन है। कानून मोबाइल इमेज को सबूत के तौर पर नही मानता। "कहकर भाटी ने सब की तरफ देखा। कोई कुछ ना बोला ना ही कोई सवाल उठा।

“वंशिका का क्या हुआ सर?” चंद्रेश ने संक्षेप में सवाल किया।

“अब मैं उसी तरफ आ रहा हूँ मि. चंद्रेश, आप हमें बताएँ, वंशिका कब से लापता है?” भाटी ने पूछा।

“सुमित अवस्थी के मर्डर के अगले दिन से।” चंद्रेश ने कहा।

“आप पूरी घटना संक्षेप में बताएँ।” भाटी बोला।

“चूँकि मुझे सुमित अवस्थी द्वारा भेजी गयी तस्वीर मिल गयी थी और अगले दिन ही सुमित का मर्डर हो गया तो मुझे सारा शक वंशिका और विमल पर था। शाम को गुस्से में हमारे बीच गरमा-गरमी हो गयी थी। मैंने गुस्से में सारी तस्वीर उसके सामने डाली और विमल और उसका रिश्ता पूछा। मैंने उससे कहा कि तुमने मेरे साथ फरेब किया है। उल्टा वह मुझे कोसने लगी। गुस्से में मैंने उस दिन उसकी जम कर कुटाई कर दी और गुस्से में बाहर निकल गया। यह कहकर कि अब तुम्हें पुलिस से कोई नहीं बचा सकता। मैं जा रहा हूँ। पुलिस को खबर करने। फिर मैं नक्की झील चला गया। मेरा गुस्सा ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा था। नक्की पर चहल-पहल अच्छी थी। रात के नौ बजे भी वहाँ बहुत भीड़ थी। आधा-एक घंटे के बाद मेरा गुस्से पर काबू आ गया। मैंने फिर सोचा कि गलती मेरी ही थी। मैंने व्यापार की तरफ ज्यादा ध्यान दिया और वंशिका को भूल ही गया। अगर गलती मैंने की जिससे वह बहक गयी तो उसे मुझे ही संभालना है। मैंने उस पर हाथ उठा कर ज्यादती की। यह सोचकर मैं एक घंटे बाद वापस अपने घर पहुँचा, तो घर को खाली पाया। वहाँ वंशिका नहीं थी। तबसे अभी तक वंशिका मुझे नहीं दिखी है।” चंद्रेश ने अपनी बात खत्म की।

“या हो सकता है मि.चंद्रेश गुस्से में आपने वंशिका का मर्डर कर दिया हो?” कोमल श्रीवास्तव ने उठ कर कहा।

सबकी नजरें कोमल की तरफ मुड़ गयी।

“हमारी जानकारी में आपने अपनी पत्नी वंशिका के नाम से एल.आई.सी. करा रखी थी- पूरे पाँच करोड़ रुपए की। शायद उसी लालच में आपने अपनी बीवी का मर्डर कर दिया हो।” कोमल श्रीवास्तव ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ चंद्रेश की ओर देख कर कहा।

“हाँ भई, आपके तो एक पंथ, दो काज हो जाते। फरेबी बीवी से छुटकारा भी मिल जाता, साथ में पाँच करोड़ की रकम भी आ जाती।” सागर ने पहली बार जुबान खोली।

चंद्रेश ने नाराजगी से दोनों की तरफ देखा, बोला, “आप दोनों सरकारी पोस्ट पर रहते हुए इतना भी नहीं जानते कि एल.आई.सी. प्राप्त करने के लिये डैड-बॉडी मिलना बहुत जरुरी है।”

भाटी ने घूरकर चंद्रेश को देखा।

“वाकई मुझे अपनी बीवी से प्यार था। यह बात सच है कि दौलत कमाने के लिये मैंने अपनी वाईफ वंशिका की तरफ ध्यान नहीं दिया, पर इसका मतलब यह नहीं है कि मैंने अपनी बीवी का कत्ल किया है और आप इतने दिनों से मेरे साथ हो, तो आपने इन्वेस्टिगेशन भी की होगी। आपका काम मैं आपको समझा नहीं सकता।” चंद्रेश ने लाचारी से कहा।

सागर और कोमल के प्रति अब उसके दिल में कोई मैल नहीं था। वह समझ गया था कि जो कोमल और सागर कर रहे थे, वह उनकी ड्यूटी का हिस्सा था।

कोमल ने टहलते हुए कहा, “ वंशिका के कातिल का पता हम लगा चुके हैं।”
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

अब चौंकने की बारी चंद्रेश की थी। उसने चौंक कर सागर की तरफ देखा। सागर उठा और भाटी की तरफ बढ़ गया। उसने भाटी से कुछ देर बात की, फिर कुर्सी पर आकर बैठ गया।

भाटी ने सबको देखा और कहा, “साहेबान ! अभी केवल एक कत्ल का पर्दाफाश हुआ है। अब मैं आपको दूसरे कत्ल का राज बताता हूँ।”

सब दम साधे भाटी की तरफ देख रहे थे कि अब क्या धमाका होने वाला है। भाटी ने चंद्रेश की तरफ देखा क्योंकि सुमित अवस्थी के केस से कई सबूत हमारे हाथ लगे, जो साबित कर रहे थे कि कातिल चंद्रेश मल्होत्रा है। चंद्रेश के बारे में छानबीन की, तो पता चला चंद्रेश के व्यक्तित्व में किसी तरह की कोई कमी नहीं हैं। जितनी जानकारी निकाली, सब उसके फेवर में जा रही थी लेकिन छानबीन जरूरी थी। शुरुवात कहाँ से करें, यह समझ में नहीं आ रहा था। हमारे फेवर की एक बात हमें यह पता चली कि चंद्रेश की पत्नी सुमित अवस्थी के मर्डर के अगले दिन से गायब है, तो हमें लगा, हो ना हो, वंशिका का इस केस से कहीं न कहीं से लेना-देना हैं। तभी हमारे मन में विचार आया कि चंद्रेश और उसकी बीवी के बारे में जानना है, तो उनके घर में जगह बनाना जरूरी है।

तब हमने कमिश्नर सर की मदद से वह ड्रामा खेला, जिसमें कोमल और सागर ने शानदार अभिनय किया। सुमित के बारे में जानने का हमारे पास कोई स्रोत नहीं था, तो शुरुवात हमने सुखाड़िया कॉलेज से की। आपकी जानकारी के लिये बता दें जो स्टोरी चंद्रेश ने हमें सुनाई, वह स्टोरी हमें इनके एक मित्र द्वारा पहले ही पता चल गयी थी।”

चंद्रेश ने हैरानी से भाटी को देखा।

भाटी बोलता गया, “इनके दोस्त का नाम है- बल्लू यानि बलवंत, जो आज हीरा प्राईवेट फर्म में कैमिस्ट के पद पर कार्य कर रहे हैं। निशा के मनोभाव से हम अन्जान थे। वह हमें चंद्रेश की कहानी से पता चली। चूंकि कोमल यहाँ रम गयी, तो उसने घर की तलाशी ली। जहाँ वह सबूत मिले, जिससे बिमल और वंशिका के सम्बन्धों का पता चलाता है। चूंकि वंशिका गायब थी, तो हमारा पूरा शक चंद्रेश की तरफ था। उसने गुस्से में वंशिका का मर्डर कर दिया हो। अब हमारा उद्देश्य दो-दो मर्डर को सुलझाना था। तो शुरूवात की वंशिका से। हमें पूछताछ में पता लगा कि जिस दिन से वंशिका गायब हुई, उस दिन वंशिका और चंद्रेश का भंयकर झगड़ा हुआ था। फोटो देख कर हम समझ गये, क्या कारण होगा झगड़े का। पहले हमारा विचार था- चंद्रेश ने गुस्से में वंशिका का मर्डर कर दिया, लेकिन पूछ्ताछ में पता चला कि लड़ाई के आधे घंटे बाद वंशिका अपने घर से सही सलामत निकली।

कई लोग इस बात के गवाह के तौर पर मिले तो हमारा ध्यान चंद्रेश के आसपास के लोगों की तरफ गया। चंद्रेश ज्यादा लोगों के सम्पर्क में नहीं था। एक-दो को छोड़कर, तो हमने उनके दोस्तों की तरफ ध्यान देना शुरु किया। हमारी नजरें अटकी चंद्रेश के परम मित्र राहुल मकरानी पर, क्योंकि इसके पास इनकम का सोर्स नहीं था और राहुल के रहने का ढंग राजा-महाराजाओं की तरह था। हमने गुप्त रूप से छानबीन कराई, तो हमें कई और हैरतभरी बातों का पता चला। मसलन इसके ऊपर कई लोगों के कर्जे हैं। खान इसकी जान के पीछे पड़ा हुआ है। दूसरा, किक्रेट का शौक और सट्टा लगाने के शौक के कारण यह पूरी तरह बर्बाद हो गया है। इसलिये हमने इसके घर की चोरी-छिपे तलाशी ली, तो हमें ऐसे-ऐसे राज का पर्दाफाश हो गया, जो हमने सोचा भी नहीं था। सबसे बड़ी बात हमें वंशिका के कतिल का पता चल गया। क्यों राहुल साहब? मैंने सच कहा ना। भाटी ने राहुल की तरफ देख कर कहा।

चंद्रेश ने हैरानी से राहुल को देखा।

राहुल की गर्दन झुक गयी।

“तो इसका मतलब राहुल ही कातिल है।” चंद्रेश ने चिल्लाकर कहा।

“मिस्टर चंद्रेश, शान्ति बनाये रखें।” भाटी बोला।

चंद्रेश ने बेबसी से अपने होंठ सी लिये।

“राहुल एक ब्लैकमेलर है, था और कातिल को वह ब्लैकमेल कर रहा था। उसके यहाँ मिले सबूत से हम कातिल तक पहुँच गये।” भाटी ने कहा।

“यह क्या बकवास लगा रखी है आपने? कभी आप मेरे पति को कातिल बताते हो, तो कभी मुझे।” निशा गुस्से में बोली।

भाटी, कोमल, सागर के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, “मैंने तो अभी आपका नाम भी नहीं लिया मिसेज ओबरॉय?” भाटी ने रहस्य भरे स्वर में बोला।

निशा के होंठ भिंच गये। वह समझ गयी। गलती हो चुकी है। वह बेबसी से इधर-उधर देखने लगी।

“हाँ तो भाइयो! कातिल ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है। जब वंशिका पश्चाताप में घर से निकली, तो उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी, चंद्रेश से नजर मिलाने की। सो उसने घर छोड़ने का निर्णय लिया। रास्ते में उसे निशा मिल गयी। वंशिका, निशा की पुरानी बातें भूल चुकी थी। सो, वह निशा से प्रेमभाव से मिली। निशा उसे अपने घर ले गयी। उसने वंशिका से उसके घायल होने का कारण पूछा। भोली-भाली वंशिका ने सारी बात बिना छल-कपट के बता दी। चूँकि निशा आज भी वंशिका से नफरत करती थी और चंद्रेश को मन ही मन चाहती थी, तो उसके सामने बढ़िया मौका था, वंशिका को अपने रास्ते से हटाने का। उसने वंशिका के खाने में तेज जहर दे दिया। थोड़े समय उपरान्त जहर ने अपना रंग दिखाया और आधे घंटे बाद उसका शरीर निर्जीव हो गया। निशा ने वंशिका का मुआयना किया। तसल्ली की, कि उसकी सांसे बन्द हो गयी, कि नहीं। सन्तुष्ट होने के बाद उसने बॉडी को ठिकाने लगाने की कोशिश की, पर वह नहीं जानती थी कि वह जो कर रही है, उसकी पूरी फिल्म राहुल मकरानी अपने मोबाइल पर बना रहा था और उसको जहर देकर मारने की सारी फुटेज राहुल के पास थी, जिसके बिना पर राहुल ने निशा को ब्लैकमेल करना शुरु कर दिया। उसका खर्चा निशा के द्वारा दिये गये पैसों पर ही चल रहा था।” अचानक भाटी को चुप हो जाना पड़ा।
निशा गुस्से में उठ खड़ी हुई। उसके हाथ में छोटा-सा पिस्टल कहाँ से आ गया, किसी को मालूम ही नहीं पड़ा। भाटी की बातों पर ब्रेक लग गया। सबका ध्यान निशा की तरफ था। उसने पहले पिस्टल की नाल चंद्रेश की तरफ की, जो शांत-भाव से उसे देख रहा था। फिर उसने पिस्टल की नाल अपने सिर पर की। सब के मन में भय समा गया। जब उसकी अंगुली ट्रिगर पर कस रही थी, तो अमन ओबरॉय झटके से खड़ा हो गया और निशा ओबरॉय का हाथ को सीधा कर दिया। गोली छत से टकराई, तभी बाहर से महिला कॉस्टेबल ने निशा पर काबू पा लिया।

सारे केस का राज खुल चुका था। राहुल मकरानी की निशानदेही पर पुलिस ने वंशिका की बॉडी का पता कर लिया। पुलिस ने निशा ओबरॉय, अमन ओबरॉय, राहुल मकरानी और विमल को गिरफ्तार कर लिया। उन पर केस चला।
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

अन्त में राहुल मकरानी को ब्लैकमेल करने के लिये कोर्ट ने
पाँच साल की सजा सुनाई। विमल को हत्या का षडयन्त्र रचने के लिये पाँच साल की सजा सुनाई गयी। निशा ओबरॉय और अमन ओबरॉय को कत्ल करने के लिये चौदह-चौदह साल की सजा सुनाई।

चूँकि निशा ओबरॉय और अमन ओबरॉय को चौदह साल जेल में बिताने थे और उनकी जायदाद की देखभाल करने वाला कोई नहीं था, तो अमन ओबरॉय ने अपनी संपत्ति की देखभाल का अधिकार एक ट्रस्ट को दे दिया। अमन ओबरॉय जिन्दगी से बेजार हो चुका था।

निशा को अपनी गलती पर कोई पश्चाताप नहीं था। यहाँ तक की अमन ओबरॉय से किये गये फरेब पर भी उसे कोई दुख नहीं था। उसको मानसिक तौर पर बहुत बड़ा झटका लगा। धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति खराब होती गयी। तीन साल बाद उसकी मानसिक स्थिति देख उसे पागलखाने शिफ्ट कर दिया गया। अमन ओबरॉय अपनी सजा काट रहा था। विमल और राहुल भी अपनी सजा काट रहे थे।

सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। सुन्दर लाल अवस्थी को। उसके बेटे के काले कारनामे पूरी दुनिया जान गयी थी, जिससे उसकी भंयकर बदनामी हुई। साथ ही साथ लोगों में यह खबर भी फैल गयी कि वैन में जलने वाली दौलत भी सुन्दर लाल अवस्थी की है। भले इस बात के सबूत नहीं थे, पर लोगों को विश्वास था, कि दौलत सुन्दर लाल अवस्थी की ही है। मजबूरन उसे अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव पड़ा। हाई कमान ने उससे इस्तीफा माँगा, जो उसने सहज दे दिया। उसका पैसा तो पहले ही नष्ट हो गया था। साथ में उसका पॉलिटिकल कैरियर भी खत्म हो गया।

देसाई ने खान की जगह लेने की कोशिश की, पर पुलिस की सख्ती के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ। जब-जब किसी गुंडे ने सिर उठाना चाहा, पुलिस ने बड़ी बेदर्दी से दमन कर दिया।

चंद्रेश मल्होत्रा वंशिका की मौत से और उसके द्वारा दिये गये फरेब से इतना ज्यादा दुखी था, कि उसने सारी जिन्दगी दोबारा शादी नहीं करने का निर्णय लिया। निशा के लिये उसके मन में कोई बैर नहीं था। जब उसे पता चला, वह पागल हो गयी है तो वह उसे मिलने अक्सर पागलखाने जाया करता था। सागर और कोमल के चंद्रेश से अच्छे सम्बन्ध थे। वह अक्सर साथ में बैठा करते थे। पुरानी बातों को सब भूल चुके थे। चंद्रेश का पूरा ध्यान अपने बिजनेस की तरफ ही था। कोमल और सागर ने कई बार उस पर शादी करने का दबाव डाला, पर उसने सख्ती से मना कर दिया।

भाटी और निरंजन को केस का शानदार ढंग से हल करने का तोहफा मिला। दोनों का प्रमोशन हो गया। निरंजन ने घरवालों की जिद के आगे घुटने टेक दिये। जल्द ही उसकी शादी हो गयी। वह अपना जीवन शान से गुजार रहा था।

इस केस में किसी को फायदा नहीं हुआ, तो वह शंकर दयाल और राम सेवक थे, जो रोजमर्रा की तरह अपनी ड्यूटी निभा रहे थे।

अमन ओबरॉय के अच्छे चाल-चलन के कारण जेलर ने उनकी सजा कम करने के लिये ऊपर सिफारशी चिट्ठी भेजी, जिसके जबाव का उन्हें इंतजार था।



समाप्त
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rajan
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Re: Thriller फरेब

Post by rajan »

कुछ झलकियाँ फिर बाजी पाजेब की


Read फिर बाजी पाजेब



राजेश कार में बैठ गया और बोला-"पूछ, क्या पूछना है ?"
.
"ठहर, याद कर लूं।" फिर अचानक बोला-"हां, याद आ गया....तुझे मालूम है, ताजमहल होटल किसने बनवाया था ?"
"अबे ताजमहल होटल तेरे डैडी ने नहीं बनवाया, बहुत पुराना बना हुआ है। मगर किसने पूछा था

"प्रोफेसर ने।
"ताजमहल होटल नहीं-खाली ताजमहल पूछा होगा-वो ताजमहल जो आगरा में है.पर्यटकों के लिए है-संसार का सातवां बड़ा अजूबा है जो मुगल शहनशाह शाहजहां ने अपनी बेगम की याद में बनवाया था...वह उससे बहुत मुहब्बत करता था।"
"हां, बाद में प्रोफेसर ने बताया था.. तो मैं क्या आठवां अजूबा हूं ?"

"यह किसने कहा था तुझे?' राजेश हंसकर बोला।
"मेरे जवाब न देने पर एक लड़की ने खड़ी होकर कहा था।"
"किस लड़की ने ?"
"शायद सुनीता नाम था उसका। मेरी क्लासमेट है।"
"अरे ! तू लड़कियों से मजाक उड़वाता है।"
"छोड़ यार ! कोई मजाक उड़ाए तो क्या बिगड़ता है ?"
"अच्छा आगे बोल।"
"आज ही संयोग से मैंने उसी लड़की की इज्जत बचाई है।"
राजशे संभलकर बैठ गया और बोला-"कब ?"

"बस थोड़ी देर पहले।"
"किससे ?"
"अरे ! अपने ही कॉलेज का एक लड़का है।"

"क्या तूने उसे मारा भी ?"
"बस एक थप्पड़ हाथ घुमाकर-गाल पर जड़ दिया-तुमने ही यह गुर सिखाया था।"
"काफी था मगर तूने आज मार कैसे लिया ? तू तो किसी पर हाथ नहीं उठाता।"
"डैडी की शान और सम्मान का ख्याल आ गया।"
"फिर क्या हुआ ?"
"वह लड़की बच गई....और सिसककर मुझसे लिपट गई... कहने लगी-आपने मेरी इज्जत लुटने
से बचा ली–में आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगी।"
"तूने क्या कहा?"
"मुझे एक फिल्म का डायलॉग याद आ गया-'मेरा फर्ज था'- बस वही दोहरा दिया।"
"फिर क्या हुआ ?"
"उसने कहा-यह बदमाश होश में आकर मेरे पीछे न लग जाए..आप मुझे बस स्टॉप तक छोड़ दीजिए...और मैंने उसे बस स्टॉप पर छोड़ दिया।"
.
राजेश ने उसे एक धप्प मारी और कहा-"गधा है तू....उसे घर तक पहुंचाना चाहिए था।"
"अपने घर तक ?"
"नहीं...उसके घर तक।"
"इससे क्या होता ?"
"अरे तू फिल्में देखता है-ऐसे ही दृश्यों से हीरो हीरोइन की मुलाकात शुरू होती है। जब वह । तुझसे लिपट गई थी तो तुझे कुछ नहीं हुआ था
.
"क्या होता ?"
"अरे हाड़-मांस के पहाड़! तेरे शरीर में दिल नहीं, भाव नहीं। कोई नौजवान सुन्दर लड़की तेरे जैसे नौजवान शरीर से लिपट जाए तो क्या होना चाहिए ? तुझे यह भी नहीं मालूम ।'
.
"हमसे पहले कभी कोई लड़की नहीं लिपटी।"
"अरे तुझे कोई सनसनी महसूस नहीं हुई-खून में कोई गरमी नहीं आई...कोई जोश नहीं आया ?"
"क्या ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है ?"
"अरे ! यहीं से तो मुहब्बत की शुरूआत होती है।"
"तौ क्या वह लड़की हमसे मुहब्बत शुरू कर देगी
"सेंट-परसेंट....तूने उसकी इज्जत बचाई है न।"

उसने एकदम गाड़ी रोक ली तो राजेश ने पूछा-"क्या हुआ ?"
.
.
"शायद वह लड़की अभी स्टॉप पर खड़ी हो।"
"तुमसे मुहब्बत जाहिर करने का इन्तजार कर रही हो। कल कॉलेज में मिल लेना।"
"तो क्या उसी सीन की सेम रिहर्सल-शक्ति उसकी इज्जत पर हमला करे और मैं उसे मजा चखऊं?"
"नहीं-उस लड़की को कार में लिफ्ट देना और रास्ते में धीरे से उसके कान में कहना-मैं तुमसे प्यार करता हूं।"
"अरे, बाप रे बाप-!"
जगमोहन ने स्टेयरिंग छोडनकर दिल थाम लिया और राजेश ने जल्दी से स्टेयरिंग संभाल लिया।
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