Thriller फरेब

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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

नेता सुन्दर लाल अवस्थी बेचैनी से अपने कमरे में टहल रहा था। उसकी सबसे बड़ी समस्या थी, सरकार के द्वारा पांच सौ और हज़ार रूपए के नोट बंद करना। इस घोषणा ने उसके हाथ-पैर फुला दिये थे। उसके पास कितनी दौलत है, वह खुद भी नहीं जानता था। नेता के तौर पर उसने खूब काली कमाई जमा कर रखी थी। साथ ही खान के साथ पार्टनर होने में ड्रग्स के धंधे में भी मोटी कमाई की थी। यह तो सुमित अवस्थी की मौत के बाद खान और उसके सम्बन्ध में दरार पड़ गयी थी, पार्टनरशिप टूट गयी थी जिससे उसकी काली कमाई में कुछ कमी आयी थी।
फिलहाल उसकी एक ही चिंता थी, कि इस काली कमाई को कैसे ठिकाने लगाया जाये। यूँ तो उसने सारी सैटिंग कर रखी थी, क्योंकि सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री था। कई बैंक मैनेजर और पुलिस अफसरों तक को उसने सेट कर रखा था, फिर भी उसका मन घबरा रहा था। तभी उसके मोबाइल पर रिंगटोन बजी। उसने स्क्रीन पर नंबर देखा और फ़ोन को कान से लगाया, “बोल शिंदे, कैसे फ़ोन किया?”
“सर जैसा आप चाहते थे, रूपए का वैसा ही इंतजाम हो गया है।”
“कितने बोरे तैयार हुए?”
“टोटल ग्यारह बोरे भरे हैं।” उधर से जवाब आया।
सोचते हुए नेताजी ने कहा, “ ठीक है आगे मेरे आदेश का इंतज़ार करना। सुबह दूध की गाड़ी और अखबार की गाड़ियों का इंतजाम करके रखना। हमें अपनी दौलत इन्ही गाड़ियों के माध्यम से ट्रान्सफर करनी है। समझ गये।”
“जी सर, कब ट्रान्सफर करना है?” उधर से सवाल पूछा गया।
“तुम गाड़ियों का बंदोबस्त करो। पैसा इकठ्ठा हो गया है। अब ज्यादा देर करना उचित नहीं। परसों सुबह ट्रान्सफर की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। कल मैं सबको इनफार्मेशन दे देता हूँ।” यह कह कर नेताजी ने फ़ोन काट दिया और देसाई के नंबर पर कॉल करके उससे बात की।
“देसाई सारी तैयारी हो गयी है।”
“जी नेताजी।” संक्षिप्त जवाब देसाई ने दिया।
“कब हरकत में आना है?” देसाई ने पूछा।
“परसों सुबह यह रकम दूध और अखबार की गाड़ियों में ट्रान्सफर की जायेगी, जिससे किसी को भनक भी ना लगे। यह काम सुबह छह से नौ बजे के बीच हो जायेगा।”
“बढ़िया है।” देसाई बोला।
“तुम अपनी तैयारी करके रखो। राहुल मकरानी से बात करो। मैं किसी भी तरह से इस मामले में ढील नहीं चाहता।”
“आप चिंता ना करे नेताजी। मैं सब संभाल लूँगा।” देसाई ने शांत स्वर में कहा दूसरी तरफ से फ़ोन कट गया।
देसाई कुछ सोचने लगा, फिर राहुल मकरानी को फ़ोन लगाया, “राहुल तैयार रहना। सारी तैयारी हो चुकी है।” राहुल की आवाज सुनते ही देसाई ने फ़ोन पर हुक्म सुना दिया।
“कब एक्शन में आना है?” राहुल मकरानी ने सामान्य स्वर में पूछा।
“परसों सुबह चार से छह के बीच सारे काम को अंजाम देना है।”
“ठीक है, कहाँ से कहाँ भेजना है यह तो बता दो।” राहुल अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए बोला।
“यह बात तो नेताजी ने अभी मुझे भी नहीं बताई, तुझे कैसे बता दूं।” देसाई चिढ़कर बोला।
“ठीक है, मैं तैयार हूँ। जो भी करना हो, मुझे खबर कर देना।” कहकर राहुल मकरानी ने फ़ोन काट दिया और मन ही मन बड़बड़ाया, “साले, कमीने नेता को किसी पर भी विश्वास नहीं है। घिसा हुआ बंदा है, लेकिन मुझे अपनी गर्दन बचानी है, तो खान को खबर करनी ही पड़ेगी।”
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खान एक मीटिंग में व्यस्त था, तभी उसका फ़ोन बजा। स्क्रीन में राहुल मकरानी का नम्बर दिखा।
“खान साहब, तैयारी पूरी हो चुकी है।”
“मैं तुमसे थोड़ी देर में बात करता हूँ। अभी मीटिंग में व्यस्त हूँ।” कह कर खान ने फ़ोन काट दिया।
“साला कुत्ता।” राहुल मकरानी के मुँह से भद्दी सी गाली निकली, “साला रुआब झाड रहा है।
आधे घंटे बाद खान का रिटर्न फ़ोन आया, “कहो, क्या कहना चाहते हो?”
“माल ट्रांसफ़र की पूरी तैयारी हो गयी है खान साहब। शायद परसों सुबह कार्य शुरू हो।” जल्दी में राहुल मकरानी बोला।
“माल कहाँ से निकल कर कहाँ जायेगा।” सोचते हुए खान बोला।
“खान साहब यह जानकारी तो अभी हमें भी नहीं है। शायद नेता को शक हो, वह हद से ज्यादा सावधानी रख रहा है।” शब्दों में लाचारी भरते हुए राहुल ने कहा।
खान के मुँह से गाली निकली, “कमीने कुत्ते आधी जानकारी का क्या मैं अचार डालूँगा। तू किसी काम का नहीं रहा लगता है। बागडोर मुझे अपने हाथ में लेनी पड़ेगी।” गुस्से में खान बोला।
“मुझे जो भी पता था, आपको बता दिया।” मकरानी ने डरते हुए कहा।
“तेरी नीयत साफ़ नहीं हैं मकरानी। शायद तू सब जानता है लेकिन बताना नहीं चाहता।” खान गुस्से में बोला। मैंने तेरे पर दया करके भारी भूल की। तू हमारे किसी काम का नहीं है। अब तेरी मुझे जरूरत नहीं है।” गुस्से में फ़ोन रखते हुए खान बोला।
राहुल मकरानी का पूरा शरीर पसीने से नहा गया, “लगता है खान का भी इंतजाम करना ही पड़ेगा।” मन ही मन कुढ़ता हुआ राहुल बोला।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

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दिन के दस बज रहे थे। नेताजी अपने फार्म हाउस में धूप का आनंद ले रहे थे। सामने चेयर पर राहुल मकरानी और देसाई बैठे थे। दौलत ठिकाने लगाने का नेताजी प्लान बना रहे थे। सामने टेबल पर चाय और नास्ता रखा था, जिसकी तरफ राहुल और देसाई का ध्यान नहीं था।
नेताजी गला खंखार कर बोले, “देसाई कल सुबह जब सब लोग नींद के आगोश में होंगे, तो दूध और अखबार की गाड़ियों में हमारा माल निश्चित ठिकाने पर निकल चुका होगा।” देसाई का सिर सहमति से हिला।
“लेकिन इसमें हम लोग कहाँ फिट बैठते हैं?” देसाई की नजरें नेताजी पर टिकी हुई थी।
“यूँ तो सावधानी का पूरा ध्यान रखा गया है, लेकिन अगर पुलिस को कहीं से इनफार्मेशन पहुँच जाती है, तो भी वह चुप बैठी रहेगी। सब सेटिंग हो चुकी है।” नेताजी ने शांत स्वर में कहा।
“हम लोगों की क्या भूमिका रहेगी?” राहुल उत्तेजित स्वर में बोला।
“जब सब तैयारी है, तो हमारी कहाँ जरूरत है?” देसाई ने भी अपना मुँह खोला।
नेताजी ने दोनों को देखा, “हमारे दुश्मनों की कमी नहीं है। हो सकता है कोई दौलत लूट ले या कोई नष्ट करने की तैयारी करे, जो ज्यादा सरल हो, इसलिये आप दोनों की आवश्यकता है।”
नेता कुछ क्षण रुका फिर बोला, “क्योंकि गाड़ी डेयरी और अखबार वालों की ही है, इसलिये ज्यादा सिक्योरिटी भेद खोल सकती है। अतः गाड़ी को कोई सिक्योरिटी नहीं दी गयी है। लेकिन दूर से देसाई तुम और तुम्हारे आदमियों की नज़रें वैन पर ही रहेंगी। ये कैसे करना है वह तुम्हारी जिम्मेदारी?” देसाई का सिर सहमती से हिला।
“सुबह जब ज्यादा भीड़-भाड नहीं होगी, तो तुम दूर से नजरें रखने का इंतज़ाम अच्छी तरह कर सकते हो ताकि कोई लूट-पाट ना हो सके।”
“ठीक है मेरी तरफ से पूरी तैयारी रहेगी।” देसाई ने गंभीर स्वर में कुर्सी से पहलू बदलते हुए कहा।
नेताजी का सिर हिला।
“और मैं कहाँ फिट बैठता हूँ इस योजना में?” राहुल ने पूछा।
“तुम गाड़ी के साथ उसके अन्दर होंगे राहुल, गाड़ी सही जगह पहुँचे, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। यह मेरे जीवन भर की पूँजी है। इसलिये सब तरफ ध्यान रखना होगा। तुम और ड्राइवर हथियारों से लैस होगे। किसी भी स्थिति से निपटने के लिये।” राहुल मकरानी ने सहमति से सिर हिलाया।
पर मन ही मन सोच रहा था, “साले नेता ने मुझे बलि का बकरा बनाया है। खान अगर अटैक करता है, तो सूली पर मुझे ही चढ़ना पड़ेगा।” उसके मन में भय के भाव थे, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका।
नेता ने उन दोनों को घूरा, “किसी के मन में कोई सवाल हो, तो पूछ ले।” देसाई ने नकारात्मक ढंग से सिर हिलाया।
राहुल बोला, “यह दौलत हमें कहाँ लेकर जानी है।” नेता मंद-मंद मुस्कुराया।
कल सुबह तीन बजे तुम्हारे पास एक फ़ोन कॉल आयेगी। उसमें जो निर्देश दिये जाएँ, तुम्हें उसके मुताबिक़ ही चलना है।”
मन ही मन राहुल ने नेता को गन्दी-सी गाली दी। साले अभी तक विश्वास नहीं कर रहा, पर उसने सहमति से सिर हिलाया।
अचानक नेता का ध्यान चाय की तरफ गया, “अरे ! चाय तो ठंडी हो गयी।”
लेकिन अब किसी का ध्यान चाय की तरफ नहीं था। दोनों ने विदा ली। नेता ने हाथ उठा कर आज्ञा दी और फिर गंभीर रूप से सोच में डूब गया।
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अयूब खान अपने ड्राइंग रूम में बैठा था। उसके हाथ में आधा भरा गिलास था। सामने दो व्यक्ति बैठे खान को देख रहे थे। खान ने घूँट भरा, फिर बुरा-सा मुँह बना कर बोला, “राहुल पर अब मुझे ज़रा भी भरोसा नहीं है। जोशी, तुम अपने आदमियों को राहुल की निगरानी में लगाओ। मुझे उसके हर एक मूवमेंट की खबर होनी चाहिये।”
“जी खान साहब, मैंने इंतजाम कर दिया है। जागृति अपार्टमेंट के बाहर मेरे दो आदमी उस पर निगाहें रखे हुए हैं। एक आदमी लगातार उसका पीछा कर रहा है। तीनों आदमी अदल-बदल कर पीछा कर रहे हैं।” जोशी ने आदर भरे स्वर में कहा।
“बहुत अच्छे।” मुंडी हिलाते हुए खान बोला।
“अभी थोड़ी देर पहले हमारे आदमियों ने खबर दी है कि राहुल और देसाई नेता सुन्दर लाल अवस्थी के घर से निकले हैं।” जोशी शांत स्वर में बोला।
“क्या इसका मतलब है कि जल्द ही एक्शन शुरू होने वाला है। राहुल मकरानी की एक-एक गतिविधि की खबर मुझे तुरंत होनी चाहिये, चाहे रात हो या दिन।”
“जी खान साहब।” जोशी के स्वर में आदर के भाव थे।
“तुम लोग पूरी तैयारी रखो। कभी भी एक्शन में आना पड़ सकता है। नेता अपनी काली कमाई को ठिकाने लगा रहा है, तो सिक्योंरिटी तगड़ी होगी। हमें हर हालत में मुकाबला करना है। या तो दौलत लूटनी है या फिर नष्ट करनी है।” खान की नज़रों में खूंखार भाव उभरे “और गद्दार देसाई को तो मैं देखता हूँ।“
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राहुल मकरानी अपने आलीशान फ्लैट में पहुँचा। उसे रात में काम को अंजाम देना था, तो उसने नींद लेना उचित समझा। उसे यह नहीं पता था कि बाहर दो आदमी उसकी हर गतिविधि की खबर रख रहे हैं। उसके पल-पल की खबर जोशी के पास पहुँच रही है।
तभी अपार्टमेंट के बाहर निशा ओबरॉय की कार रुकी, जिसमें से शानदार ढंग से निशा उतरी। लोगों की नज़रें उस पर टिक गयी। बला सी हसीं लग रही थी। निशा ने अपने बालों को झटका दिया और बलखाती हुई राहुल मकरानी के फ्लैट पर पहुँची।
उसने कॉल बेल बजाई। अंदर से राहुल की आवाज आयी, “कौन है?”
गुस्से में निशा ने कॉल बेल से ऊँगली नहीं हटाई। वह लगातार बजती रही। झुंझलाकर राहुल ने दरवाजा खोल दिया। सामने खूबसूरत निशा को देखकर उसके होश उड़ गये।
“तुम, इस वक़्त क्या काम है?” राहुल ने दरवाजे पर खड़े-खड़े ही पूछा।
“जालिम, अन्दर आने के लिये भी नहीं कहोगे?” मुस्कुरा कर निशा बोली।
राहुल एक तरफ हट गया। निशा अन्दर आयी। उसके सुन्दर होंठ गोल हो गये, “वाह ! शानदार फ्लैट है। क्या कहने, तुम अफोर्ड कर लेते हो?” मुस्कुराकर निशा बोली।
“क्या यही कहने तुम यहाँ आयी हो। देखो मुझे नींद आ रही है, जो कहना है, जल्दी कहो और टलो।” राहुल एक प्रकार से डंडा मारने वाले लहजे में बोला।
निशा तिलमिला गयी।
“दिन में सोने की तैयारी रात में क्या पहाड़ तोड़ते हो?” व्यंग्य से निशा बोली।
राहुल चौंक पड़ा, उसे लगाकि उसकी चोरी पकड़ी गयी है।
“नहीं, ऐसी बात नहीं है।” उसने अचकचा कर कहा।
निशा उसके चेहरे के भाव देखकर ऐसे मुस्कुराई, जैसे उसने चोरी पकड़ ली हो।
राहुल झेंप गया।
“आज से तुम्हारा-मेरा मिलना बंद।” निशा बोली।
“क्यों? क्या हो गया? क्यों मिलना बंद?” हैरानी से राहुल मकरानी बोला।
“कल मेरे पति अमन ओबरॉय लौट रहे हैं। मैं नहीं चाहती कि कोई हमें डिस्टर्ब करे।” निशा शांत स्वर में राहुल के चेहरे को देखती हुई बोली।
“ओह, अमन साहब की घर वापसी हो रही है और उनकी सती-सावित्री चाहती हैं कि कोई उनको डिस्टर्ब ना करे।” व्यंग्य से राहुल बोला।
राहुल की बातों का मर्म समझ कर निशा तिलमिला उठी, “मैं जैसी भी सती-सावित्री हूँ, तुमसे तो बेहतर हूँ। लोगों के पीछे दुम हिलाती तो नहीं भागती। लोगों से डर कर तो नहीं रहती।” गुस्से में निशा बोली।
“तुम्हारा लैक्चर ख़त्म हो गया हो, तो जाओ, मुझे आराम करना है।”
“मुझे भी कोई ख़ास शौक नहीं है तुम्हारा मनहूस चेहरा देखने का।” निशा के तन-बदन में आग लग गयी।
वह तिलमिला कर खड़ी हो गयी। बिना उसकी तरफ देखे वह बाहर निकल गयी।
राहुल ने मुस्कुरा कर दरवाजा बंद किया और सोने की तैयारी करने लगा।
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Re: Thriller फरेब

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रात के ढ़ाई बज रहे थे। जागृति अपार्टमेंट पूरी तरह से अंधेरे में खोया हुआ था। राहुल पर नजर रखने वाले भी आधे जगे, आधे सोये हुए थे। राहुल मकरानी के फ्लैट में शाम से ही हलचल नहीं थी। उसका फ्लैट शाम से ही अंधेरे में डूबा हुआ था। निगरानी रखने वाले भी बोर हो चुके थे। उन्हें उम्मीद नहीं थी, कि कुछ होगा, तभी राहुल के फ्लैट में कुछ हलचल हुई। कमरे की बत्ती जल गयी। निगरानी रखने वालों की आँखें उल्लू की तरह खुल गयी। वे समझ गये, उनकी मेहनत पर पानी नहीं फिरा। जल्द ही कुछ होगा, उन्होंने तुरंत जोशी को खबर दी।
सुबह के तीन बज रहे थे। जब अधिकतर लोग सो रहे थे, राहुल का मोबाइल बजा। राहुल ने स्क्रीन पर देखा और मोबाइल उठाया, “आधे घंटे में तुम अपने फ्लैट से निकलो। दायी तरफ थोड़ी दूर एक काली कार खड़ी मिलेगी, उसमें सवार हो जाना। चाभी उसी में लगी मिलेगी।” नेताजी की भारी आवाज राहुल के कान में पड़ी।
राहुल ने गहरी सांस ली और फ्रेश होने चला गया। आधे घंटे बाद राहुल अपार्टमेंट से बाहर निकला। उस तरफ में चलने के बाद उसे काली कार दिखायी दी। राहुल उसमें बैठ गया। उस पर निगाह रखने वालों ने तुरंत जोशी को खबर दी। जोशी ने खान को तुरंत उठाया और सारी जानकारी दी।
“ओह तो एक्शन शुरू हो गया। तुम तैयारी करो, मैं अभी आता हूँ। इस मामले में मुझे किसी पर भरोसा नहीं।” कह कर खान ने फ़ोन काट दिया।
उसकी आँखों से नींद गायब हो गयी थी। वह फ़ौरन उठा और तैयार हो गया। राहुल मकरानी कार में बैठा ही था कि उसका मोबाइल बजा, “सीधे महावीर टाकीज चलो। वहाँ तुम्हें दूध और अखबार की वैन खड़ी मिलेगी। उन्हें अपने पीछे लेकर आना हैं। महावीर चौराहे पर एक आलू का गोदाम है। सवेरा मर्चेंट शॉप पर जाकर कार छोड़कर तुम दूध वैन में बैठ जाना। वहीं कुछ बोरे वैन में और कार में रखे जायेंगे।”
राहुल मकरानी ने समझने वाले ढंग से कहा, “ठीक है।”
राहुल इस बात से बेखबर था कि एक कार थोड़ा-सा फासला रख कर उसका पीछा कर रही है। राहुल ने निर्देश का पालन किया। महावीर चौराहे पर सवेरा मर्चेंट दुकान के बाहर गाड़ी रोक दी। अचानक दुकान का दरवाजा बेआवाज खुला और तीन-चार बदमाश टाइप के आदमी दिखे। उन्होंने वैन और जीप में बोरे रखने शुरू कर दिये। आधे घंटे के अन्दर वैन और जीप नोटो के बैग से भर गयी। राहुल कार से उतरा और कार को वहीं छोड़, वैन में आकर बैठ गया। वैन एक झटके से आगे बढ़ गयी और अखबार की वैन भी पीछे चल पड़ी।
राहुल ने रिसीव फ़ोन बॉक्स में जाकर फ़ोन किया, “अब हमें कहाँ जाना हैं?”
दूसरी तरफ से भारी आवाज कानों में पड़ी, “ड्राइवर को बता दिया है। तुम बस यह ध्यान में रखो कि रास्ते में कोई गड़बड ना हो।” कह कर फ़ोन काट दिया।
राहुल ने नेता जी को एक गन्दी गाली दी और सोचा, “साले को अभी तक विश्वास नहीं हो रहा।”
फिर उसने जेब में हाथ डाला तो उसका हाथ रिवाल्वर से टकराया। गहरी सांस लेकर उसने हालतों पर खुद को छोड़ दिया। जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और शांत भाव से सिगरेट सुलगाने लगा। उसने ड्राइवर की तरफ देखा। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था। वह कठपुतली की तरह काम कर रहा था। राहुल ने उसे सिगरेट का ऑफर दिया। उसकी गर्दन ना में हिली। राहुल ने कुछ बोलना चाहा, लेकिन ड्राइवर के मूड को देखकर अपने होंठ सी लिये। ड्राइवर दाँत भींच कर वैन चला रहा था। जैसे उसे पहले बता दिया हो कि काम खतरे का है। राहुल की नज़रें सामने विंड स्क्रीन पर टिकी थी। हर तरफ अँधेरा छाया हुआ था। वह यह जानता था, कि उसकी निगरानी हो रही है। देसाई दूर से दोनों गाड़ियों को कवर किये हुए है। वैसे दुर्घटना होने की उम्मीद नहीं थी। रात में किसको सपना आना था कि क्या हो रहा है।
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