दोनों की अगली मंजिल निशा ओबरॉय का बँगला था। जीप बाहर रोक कर भाटी ने दरबान से कहा, “अपनी मैडम से बोलो, इंस्पेक्टर भाटी मिलना चाहते हैं।”
दरबान ने तत्काल आज्ञा का पालन किया। थोड़ी देर में वे दोनों निशा ओबरॉय के सामने बैठे थे।
निरंजन ध्यान से निशा ओबरॉय को देख रहा था।
“ऐसे क्या देख रहे हो इंस्पेक्टर?” निशा ने नजरें मिलाकर निंरजन से पूछा।
“आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ मैडम। जितना सुन्दर आपका चेहरा है, उतना ही तेज आपका दिमाग।” निरंजन व्यंग्य भरे स्वर में बोला।
“क्या बक रहे हो इंस्पेक्टर? दिमाग ठिकाने पर हैं या नहीं? जानते हो किस से बात कर रहें हो?” निशा क्रोध में बोली।
“आपकी कॉलेज हिस्ट्री चंद्रेश मल्होत्रा और विमल से सुनी। काफी रोमांटिक इतिहास रहा है आपका?” निरंजन ने व्यंग्य से कहा।
“आपको उससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिये। इंस्पेक्टर वह मेरा पर्सनल मामला था।” निशा तेज स्वर में बोली।
“जब कोई मर्डर होता है, तो कोई मामला पर्सनल नहीं होता मोहतरमा।” भाटी कठोर स्वर में बोला।
“मर्डर ! कैसा मर्डर?” निशा हैरानी से बोली।
“ओह तो मैडम को यह भी बताना पड़ेगा कि सुमित अवस्थी साहब का मर्डर हो गया और आप उनकी नजदीकी मित्र यह भी नहीं जानती हैं?” निरंजन ने निशा को घूरते हुए कहा।
“मुझे सुमित अवस्थी से क्या लेना-देना? कॉलेज खत्म होने के बाद से मैं उससे मिली भी नहीं।” निशा सपाट स्वर में बोली।
“बहुत खूब, तो होटल हिलटाउन में आपका भूत सुमित से मिलता था।” कहकर भाटी ने उसकी तस्वीर निकाल कर टेबल पर पटक दी।
निशा ओबरॉय के चेहरे का रंग उतर गया। फिर एक पल में उसने खुद पर काबू पाया।
“तो क्या हुआ? सुमित से मिलने का मतलब यह तो नहीं हो गया कि मैंने उसका मर्डर कर दिया।” व्यंग्य से निशा बोली।
“लेकिन अभी तो आप कह रही थी कि कॉलेज के बाद आप उससे मिली ही नहीं।” व्यंग्य भरे स्वर में निरंजन बोला।
निशा ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि सख्ती से अपने होंठ भींच लिये।
“खैर जाने दीजिये। हम आप से जानना चाहते हैं कि सुमित की मौत के दिन आप में और सुमित में क्या-क्या बातें हुई थी?
“यह हमारा पर्सनल मैटर है। इससे तुम्हें कोई लेना-देना नहीं। जो पूछना है जल्दी पूछो। मेरे पति बाहर से आ रहे हैं। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारा सामना उनसे हो।” खड़े होकर निशा क्रोधित स्वर में बोली।
“मैडम, अब कोई मामला पर्सनल नहीं।” गुस्से में भाटी बोला।
अपमान से उसका चेहरा जलने लगा। फिर भाटी ने अपने आपको थोड़ा संयम किया और बोला, “एक अन्तिम सवाल, इसे आप पहचानती हैं?”
कहकर भाटी ने वहाँ मिली एक तस्वीर, जिसमें दूसरी औरत की इमेज थी, निशा को दिखायी।
निशा ने एक उचटती दृष्टि फोटो पर डाली, फिर जोर से चौंकी, पर फौरन अपने भावों पर उसने काबू कर लिया।
निरंजन और भाटी ने उसके बदलते भावों को देखा। निशा ने इन्कार में सिर हिलाया।
“मैडम निशा, वैसे हमारा अन्दाजा सही है कि यह असली वंशिका है। इसकी पुष्टि तो विमल और चंद्रेश कर ही देंगे, जिसे तुम मानने के लिये तैयार नहीं हो क्योंकि तुम नकली वंशिका को असली वंशिका साबित कर चुकी हो।” भाटी ने उठते हुए कहा।
“चलो निरंजन।” निरंजन मुड़ा।
“अब अपने को बचा कर दिखाना मिस निशा।” कहकर निरंजन और भाटी बाहर निकल गये।
निशा के चेहरे पर उलझन के भाव थे। वह बेचैनी से दोनों को जाता हुआ देख रही थी।
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Thriller फरेब
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Re: Thriller फरेब
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: Thriller फरेब
“क्या मास्टर स्ट्रोक मारा आपने सर। निशा एक झटके में ढेर।” निरंजन ने उत्साह से कहा।
“अन्धेरे में तीर चलाया है निरंजन। मुझे नहीं मालूम यह असली वंशिका है। केवल हाथ पैर मारे हैं।” भाटी ने अपना शरीर ढीला छोड़ते हुए कहा।
“अब कहाँ चलने का इरादा है सर?” निरंजन ने गाड़ी चलाते हुए कहा।
“गाड़ी सीधे चंद्रेश मल्होत्रा के कॉटेज की तरफ मोड़ो। मेरा ख्याल शायद सही है। यही है असली वंशिका।” निरंजन का सिर सहमति में हिला।
उसने गाड़ी चंद्रेश मल्होत्रा के कॉटेज की तरफ मोड़ दी। चंद्रेश मल्होत्रा के घर का सीन बहुत विचित्र था। जब भाटी और निरंजन उसके घर के अन्दर पहुँचे, तो चंद्रेश मल्होत्रा ड्राईंग रुम में बैठा अखबार पढ़ रहा था।
भाटी को देख कर अचानक वह खड़ा हो गया।
“अरे ! आप लोग। आइये सर, आइये।” वह आदर भरे स्वर में बोला।
“भई तुम्हारी वाईफ वंशिका और तुम्हारा साला सागर नजर नहीं आ रहे हैं?” कहता हुआ भाटी सोफे पर बैठ गया।
“तभी ऊपर से आवाज आयी, “अब तो बिन बुलाये भी हाजरी देने लगे इंस्पेक्टर, लगता है आज तुम्हारे पास कोई काम नहीं है?” वंशिका का व्यंग्य भरा स्वर सुनाई दिया।
भाटी की नजरें ऊपर उठ गयी। सागर और वंशिका साथ में नीचे उतर रहे थे। भाटी ने उनकी तरफ देखा। चेहरे पर कोई भाव न लाकर बोला।
“क्या सीन है? पतिदेव नीचे बैठे हैं और भाई-बहन ऊपर रक्षा-बन्धन का त्यौहार मना रहे हैं।” व्यंग्य से भाटी बोला।
वंशिका तिलमिला के रह गयी, “आपको हमारी चिन्ता करने की जरूरत नहीं मिस्टर भाटी।” शुष्क स्वर में सागर बोला।
भाटी ने चंद्रेश की तरफ देखा।
“आपको बहुत जल्द एक खुशखबरी मिलने वाली है मिस्टर चंद्रेश।” भाटी ने कहा।
चंद्रेश ने नजरें उठा कर भाटी को देखा। भाटी ने एक तस्वीर निकाल कर मेज पर पटक दी, “इसे आप जानतें हैं?”
चंद्रेश ने तस्वीर पर गौर से नजर गड़ाई। फिर अचानक उसके चेहरे के भाव बदलने लगे। अचानक वह खुशी से उछल कर बोला, “सर, सर “उसके मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी।
भाटी ने कहा, “यही असली वंशिका है।”
चंद्रेश खुशी के कारण केवल अपना सिर सहमति में हिलाने लगा।
“तस्वीर ध्यान से देखो चंद्रेश, वंशिका के साथ कौन है?”
पहली बार चंद्रेश ने तस्वीर ध्यान से देखी। वंशिका और सुमित नशे की हालत में दिखायी दे रहे थे। चंद्रेश की आँखें सिकुड़ गयी, “यह तो वंशिका और सुमित हैं।”
भाटी ने तस्वीर वापस जेब में रख ली, “जल्द ही तुम इनकी चंगुल से आजाद होने वाले हो चंद्रेश। खुशी मनाओ।”
भाटी नकली वंशिका और सागर की ओर देखने लगा। दोनों ने नकली अंगड़ाई ली। भाटी और निंरजन उठे।
“जल्द हमारी वापसी होगी सरकार।” निरंजन सागर की तरफ देख कर बोला।
सागर ने सिर झुका कर उसका अभिनन्दन किया।
निरंजन और भाटी उन्हें उसी अवस्था में छोड़ कर चले गये। चंद्रेश के दिल में खुशी के लड्डू फूट रहे थे, वहीं सागर और वंशिका का चेहरा भाव हीन था।
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“अन्धेरे में तीर चलाया है निरंजन। मुझे नहीं मालूम यह असली वंशिका है। केवल हाथ पैर मारे हैं।” भाटी ने अपना शरीर ढीला छोड़ते हुए कहा।
“अब कहाँ चलने का इरादा है सर?” निरंजन ने गाड़ी चलाते हुए कहा।
“गाड़ी सीधे चंद्रेश मल्होत्रा के कॉटेज की तरफ मोड़ो। मेरा ख्याल शायद सही है। यही है असली वंशिका।” निरंजन का सिर सहमति में हिला।
उसने गाड़ी चंद्रेश मल्होत्रा के कॉटेज की तरफ मोड़ दी। चंद्रेश मल्होत्रा के घर का सीन बहुत विचित्र था। जब भाटी और निरंजन उसके घर के अन्दर पहुँचे, तो चंद्रेश मल्होत्रा ड्राईंग रुम में बैठा अखबार पढ़ रहा था।
भाटी को देख कर अचानक वह खड़ा हो गया।
“अरे ! आप लोग। आइये सर, आइये।” वह आदर भरे स्वर में बोला।
“भई तुम्हारी वाईफ वंशिका और तुम्हारा साला सागर नजर नहीं आ रहे हैं?” कहता हुआ भाटी सोफे पर बैठ गया।
“तभी ऊपर से आवाज आयी, “अब तो बिन बुलाये भी हाजरी देने लगे इंस्पेक्टर, लगता है आज तुम्हारे पास कोई काम नहीं है?” वंशिका का व्यंग्य भरा स्वर सुनाई दिया।
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“क्या सीन है? पतिदेव नीचे बैठे हैं और भाई-बहन ऊपर रक्षा-बन्धन का त्यौहार मना रहे हैं।” व्यंग्य से भाटी बोला।
वंशिका तिलमिला के रह गयी, “आपको हमारी चिन्ता करने की जरूरत नहीं मिस्टर भाटी।” शुष्क स्वर में सागर बोला।
भाटी ने चंद्रेश की तरफ देखा।
“आपको बहुत जल्द एक खुशखबरी मिलने वाली है मिस्टर चंद्रेश।” भाटी ने कहा।
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चंद्रेश ने तस्वीर पर गौर से नजर गड़ाई। फिर अचानक उसके चेहरे के भाव बदलने लगे। अचानक वह खुशी से उछल कर बोला, “सर, सर “उसके मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी।
भाटी ने कहा, “यही असली वंशिका है।”
चंद्रेश खुशी के कारण केवल अपना सिर सहमति में हिलाने लगा।
“तस्वीर ध्यान से देखो चंद्रेश, वंशिका के साथ कौन है?”
पहली बार चंद्रेश ने तस्वीर ध्यान से देखी। वंशिका और सुमित नशे की हालत में दिखायी दे रहे थे। चंद्रेश की आँखें सिकुड़ गयी, “यह तो वंशिका और सुमित हैं।”
भाटी ने तस्वीर वापस जेब में रख ली, “जल्द ही तुम इनकी चंगुल से आजाद होने वाले हो चंद्रेश। खुशी मनाओ।”
भाटी नकली वंशिका और सागर की ओर देखने लगा। दोनों ने नकली अंगड़ाई ली। भाटी और निंरजन उठे।
“जल्द हमारी वापसी होगी सरकार।” निरंजन सागर की तरफ देख कर बोला।
सागर ने सिर झुका कर उसका अभिनन्दन किया।
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Re: Thriller फरेब
“अब कहाँ चलें सर?” निरंजन ने पूछा।
“पहले किसी अच्छे होटल में चलो लंच करने। फिर हमारी मंजिल टोल नाका होगी।” भाटी शांत स्वर में मूंछो पर हाथ फेर कर बोला।
निरंजन का सिर हौले से हिला। उसने होटल हिलटाउन की तरफ गाड़ी मोड़ी। थोड़ी देर में वे होटल हिलटाउन में लंच कर रहे थे। इस दौरान उनके मध्य शान्ति छाई रही। शांत ढंग से दोनों ने लंच किया। फिर आईसक्रीम खातें समय निरंजन ने खामोशी तोड़ी।
“सर आज तो काफी कुछ हाथ लगा लगता है। जल्द ही कातिल का सुराग मिल जायेगा।”
“हाँ, बहुत कुछ तस्वीर का रुख साफ हो चुका है। जल्द से जल्द पूरी तस्वीर साफ हो जायेगी।” भाटी ने जल्दी से कहा।
दोनों लंच करने के बाद होटल से बाहर निकले। अब उनकी मंजिल टोल नाका थी।
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भाटी और निरंजन की जीप टोल नाका के पास आकर रुकी। भाटी और निरंजन जीप से उतरे। टोल नाका ऑफिस की तरफ बढ़े। वहाँ उस समय तीन व्यक्ति बैठे थे। वह किसी बात पर बैठे हँस रहे थे। निरंजन और भाटी को अपनी और आता पाकर उनकी बातों में ब्रेक लग गया। उनकी हँसी गायब हो गयी, उसकी जगह चुप्पी ने ले ली।
“यहाँ का इंचार्ज कौन है?” भाटी ने पूछा।
“इंस्पेक्टर साहब, मैनेजर साहब तो बाहर गये हैं।”
“अभी ड्यूटी पर कौन है?” निरंजन ने डपटते हुए पूछा।
भाटी ने तीनों व्यक्ति का पुलिसिया नजरों से निरीक्षण किया, तो तीनों के प्राण कांप गये।
“माई-बाप कोई गलती हो गयी है क्या?” लाल जाकेट वाला बोला।
“तुम्हारी ड्यूटी कब तक है?” निरंजन ने कहा।
“शाम सात बजे तक साहब।” लाल जाकेट वाले ने निरंजन के सवाल का जबाव दिया।
“सात बजे के बाद कौन आयेगा?” भाटी ने फिर सवाल किया।
“सात बजे के बाद शिफ्ट चैन्ज हो जाती है साहब, दूसरे कर्मचारी आ जाते हैं। हमारी बारह-बारह घंटे की ड्यूटी होती है साहब।” उसने कुछ पूछने से पहले ही अपनी स्थिति साफ कर दी।
भाटी ने ध्यान से उन्हें देखा, “तुम्हें सुमित साहब के मर्डर के बारे में मालूम है क्या?”
तीनों की गर्दन सहमति से हिली।
“उस दिन तुम लोगों की ड्यूटी की क्या स्थिति थी?” भाटी ने पूछा।
“सर, उस दिन हमारी नाईट शिफ्ट थी।” लाल जाकेट वाले को छोड़ कर दोनों बोले।
“क्या? तुम नाईट ड्यूटी पर थे।” भाटी हैरानी से बोला।
“हाँ साहब! उस दिन नाईट वाले की तबियत खराब थी, तो हमें चौबीस घंटे ड्यूटी करनी पड़ी।” उसने गंभीर स्वर में कहा।
“उस दिन नाईट वाले सुबह सात बजे ड्यूटी पर आये थे।” दूसरा बोला।
“तो तुम लोग ड्यूटी पर थे?” निरंजन उन्हें घूरता हुआ बोला।
“जी साहब।”
“घूँट लगाते हो?” निरंजन ने घुड़कते हुए पूछा।
“जी साहब, कभी-कभी लगा लेते हैं।” डरते हुए एक ने कहा।
“ड़यूटी पर ही लगा लेते हो, फिर सो जाते होगे?” भाटी गुस्से में तीनों को घूरते हुए बोला।
“नहीं सर, ऐसा नहीं होता, क्योंकि गाडियाँ रात-भर आती-जाती रहती हैं, तो जागना पड़ता है।” लाल जाकेट वाला सहमते हुए बोला।
“उस दिन तुमने घूँट लगाया था, जिस दिन सुमित अवस्थी का मर्डर हुआ था?” भाटी ने घूरते हुए पूछा।
“जी सर। उस दिन सर्दी ज्यादा थी। एक-एक हमने मार लिया था, डबल ड्यूटी जो करनी थी।” लाल जाकेट वाले को छोड़ दूसरे ने जबाव दिया।
“तभी तुमको पता नहीं लगा कि सुमित अवस्थी की गाड़ी कब यहाँ से निकल गयी।” डपटते हुए निरंजन बोला।
दोनों कर्मचारी घबरा गये और थर-थर काँपने लगे।
“क्या हुआ? ज्यादा चढ़ा ली थी क्या, जो उनके निकलने का ध्यान नहीं रहा?” भाटी दोनों कर्मचारियों पर लगभग चढ़ गया।
“निरंजन, इन्हें पकड़ो। डंडा-परेड करनी पड़ेगी शायद।” क्रोधित होकर भाटी गरजा।
“नहीं सर, हम पूरे होश में थे। हमने सुमित सर की कार देखी थी। उन्हें भी देखा था।” एक ने घबरा कर कहा।
“डंडे के डर से झूठ बोल रहे हो ना?” निरंजन बोला।
“नहीं सर। जिस समय सुमित सर की कार निकली, उस समय हमने नहीं पी थी। उसके बाद हमने पी। जब अमन साहब की गाड़ी निकली।”
“कौन अमन साहब?” भाटी ने गुस्से से पूछा।
“अमन ओबरॉय सर। कई होटलों के मालिक हैं अमन साहब।” जल्दी से एक बोला।
“ठीक है, ठीक है। जल्दी से यह बताओ, सुमित अवस्थी गाड़ी चला रहे थे? “ भाटी ने पूछा।
“नहीं सर। गाड़ी तो एक लड़की चला रही थी। सुमित साहब तो पीछे वाली सीट पर बैठे थे। शायद उनकी तबियत ठीक नहीं थी।”
निरंजन ने भाटी को गुप्त इशारा किया। वह कामयाबी का संकेत था।
“मैडम और सुमित अवस्थी के अलावा तो गाड़ी में कोई नहीं होगा?” निरंजन ने शांत स्वर में पूछा।
“नहीं। एक साहब और बैठे थे। आगे मैडम के पास। सुमित साहब तो पीछे की सीट पर अधलेटे थे।” अब चौंकने की बारी भाटी की थी।
निरंजन ने भी आश्चर्य से भाटी को देखा, “तुम साहब, मेमसाहब को पहचान लोगे?” निरंजन ने सवाल किया।
“हाँ साहब, पहचान लेंगे।” एक बोला।
“कैसे पहचान लोगे? उस समय तो बहुत से लोग निकले होंगे?” भाटी का स्वर नरम हो गया।
“उस दिन ठंड अधिक थी। उस समय केवल दो ही गाडियाँ यहाँ से निकली थी। इसलिये हम पहचान सकते हैं साहब।” एक कर्मचारी बोला।
“ऐसा हो ही नहीं सकता, कि एक बार अंधेरे में देखने के बाद तुम उसे पहचान लो।” भाटी ने विश्वास से कहा।
“सर, एक घटना हुई थी जिस कारण हम उसे पहचान सकते हैं।” एक ने डरते हुए कहा।
“कौन-सी घटना हुई थी?” भाटी ने पूछा।
“साहब टोल टैक्स देने के लिये मैडम के पास खुल्ले नहीं थे, तो साहब ने बाहर आकर हमें हजार रुपए दिये। हमारे पास खुल्ले नहीं थे, तो हमने लेने से मना कर दिया और खुल्ले माँगे तो उन्होने हजार का नोट देकर कहा, ‘अभी रख लो, बाद में रिटर्न आते समय लें लेगें।’ इसलिये उनका नम्बर चेहरा याद रह गया।” कर्मचारी ने भाटी की तरफ देख कर शराफत से कहा।
“फिर कितनी देर में वह रिटर्न हुए?” भाटी ने पूछा।
“नहीं सर। वे पूरी रात वापस नहीं आये और न ही उनकी गाड़ी वापस आयी। वह हजार रुपए हमारे पास ही हैं। शायद वे वापस आएं, तो हम उन्हें दे दें।”
“वे दोबारा अगले दिन तो आये होंगे?” भाटी बोला।
“नहीं सर। उसके बाद वह हमसे नहीं मिले।”
“यानी हजार रूपए तुम्हें मुफ्त में मिल गये?” भाटी ने व्यंग्य से पूछा।
दोनों की नजरें झुक गयी।
“एक बात बताओ, दूसरे दिन एक्सीडेन्ट की खबर तुमने सुनी, तो गाड़ी के बारे में भी पता चला होगा। फिर भी तुम लोगों ने पुलिस में ख़बर नहीं दी।” निरंजन गुस्से में घूरता हुआ बोला।
दोनों की नजरें झुक गयी।
“सर पुलिस के चक्कर में कौन सीध-सादा आदमी फँसता है?” दबे स्वर में एक कर्मचारी बोला।
भाटी को ताव आ गया, “निरंजन, लगाओ सालों को हथकड़ी।”
दोनों की रुह काँप गयी। दोनों निरंजन और भाटी के हाथ-पैर जोड़ने लगे।
“एक शर्त पर हमारे साहब तुम्हें माफ कर सकते हैं।” निरंजन ने रहस्यमय स्वर में कहा।
दोनों की नजरें भाटी से मिली, जो गुस्से में उन्हें घूर रहा था। दोनों की साँस अटक गयी।
“किस शर्त पर साहब? एक ने डरते हुए पूछा।
“तुम उस औरत और आदमी की शिनाख्त कर दो।” निरंजन बोला।
दोनों आदमी के सिर सहमति से हिले।
भाटी ने अपनी जेब से सात-आठ तस्वीर निकाल कर उनके सामने रख दी। एक ने बेहिचक ओरिजनल वंशिका की तस्वीर पर ऊँगली रख दी।
“बहुत खूब। और आदमी?”
उसने फिर एक आदमी पर ऊँगली रख दी। निरंजन और भाटी का चेहरा जुगनुओं की तरह चमकने लगा।
“सही कह रहे हो? पहचानने में भूल तो नहीं नहीं कर रहे।” भाटी ने खुश होते हुए पूछा।
दोनों की गर्दन सहमति में हिली।
“मुंडी मत हिला, मुँह से बक।” भाटी सख्ती से बोला।
“जी साहब, सौ प्रतिशत यही आदमी है।” कहकर दोनों चुप हो गये।
“जाओ! तुम्हारे सारे गुनाह माफ। अब जब हम बुलाएं, गवाही देने के लिये चले आना।” दोनों ने सहमति से सिर हिलाया।
भाटी और निरंजन उठे और अपनी जीप की और बढ़ गये।
“सर ! फतह।” निरंजन मुस्कुरा कर बोला।
“उम्मीद नहीं थी कि कातिल यह निकलेगा।” भाटी जीप पर चढ़ते उत्साह भरे स्वर में बोला। दोनों जीप में चढ़ गये। जीप आगे बढ़ गयी।
शाम के पाँच बज रहे थे। हर तरफ धूप निखर रही थी। निरंजन, भाटी और शंकर दयाल जीप में बैठे सात घूम ( जगह का नाम ) के रास्ते पर पहुँचे।
भाटी ने निरंजन से कहा, “जीप रोक दो निरंजन।”
निरंजन के पैर फुर्ती से ब्रेक पर पड़े और गाड़ी तेज झटके से रुक गयी। निरंजन और भाटी ने रेलिंग पकड़ कर नीचे देखा तो दूर-दूर तक गहरी खाइयाँ नजर आने लगी।
भाटी निरंजन को देख कर बोला, “सुमित अवस्थी की गाड़ी इस पेड़ से टकरा कर नीचे गिरी। पहले हमारा ख्याल था कि सुमित को कहीं और मार कर यहाँ लाया गया है और एक्सीडेन्ट की स्टेज सेट की गयी थी।”
निरंजन ने हाँ में गर्दन हिलाई। शंकर दयाल केवल दर्शक बन खड़ा दोनों को देख रहा था।
“अब यह बात साबित है कि जब सुमित अवस्थी को वंशिका यहाँ लाई, तब वह नशे में था। यानि कि जिन्दा था। कातिल ने यह दिखाने की कोशिश की है कि गाड़ी पेड़ से जोर से टकराई और सुमित अवस्थी उछल कर कार से बाहर गिर गया और पत्थर से सिर टकराने से उसकी मौत हो गयी, तो सबसे बड़ा सवाल उसका सिर कुचला हुआ कैसे था? जैसेकि किसी ने पत्थर मार कर उसका सिर कुचला हो?” भाटी निरंजन की ओर देख कर बोला।
“उसमें भी राज है सर।” निरंजन नीचे देखते हुए बोला।
“एक राज और है। जैसा मैंने तुमसे कुछ दिन पहले भी बोला था। कातिल जब यह दिखाने की कोशिश करता है कि गाड़ी नशे में तेज चलाने से पेड़ से टकरा कर गिरी, तो गाड़ी चलाने वाले सुमित अवस्थी के हाथ के निशान स्टेयरिंग व्हील और ब्रेक पर क्यों नहीं पड़े? एक्सीडेन्ट स्टेज सेट करते समय कतिल का इन बातों की तरफ ध्यान जाना आवश्यक है।”
निरंजन का सिर सहमति से हिला।
“चूंकि अब हालात हम समझ गये हैं तो यह बात भी जल्द समझ में आ जायेगी।” कहकर भाटी जीप में चढ़ गया। पीछे वाली सीट पर शंकर दयाल बैठ गया। निरंजन ने जीप आगे बढ़ा दी।
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“पहले किसी अच्छे होटल में चलो लंच करने। फिर हमारी मंजिल टोल नाका होगी।” भाटी शांत स्वर में मूंछो पर हाथ फेर कर बोला।
निरंजन का सिर हौले से हिला। उसने होटल हिलटाउन की तरफ गाड़ी मोड़ी। थोड़ी देर में वे होटल हिलटाउन में लंच कर रहे थे। इस दौरान उनके मध्य शान्ति छाई रही। शांत ढंग से दोनों ने लंच किया। फिर आईसक्रीम खातें समय निरंजन ने खामोशी तोड़ी।
“सर आज तो काफी कुछ हाथ लगा लगता है। जल्द ही कातिल का सुराग मिल जायेगा।”
“हाँ, बहुत कुछ तस्वीर का रुख साफ हो चुका है। जल्द से जल्द पूरी तस्वीर साफ हो जायेगी।” भाटी ने जल्दी से कहा।
दोनों लंच करने के बाद होटल से बाहर निकले। अब उनकी मंजिल टोल नाका थी।
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भाटी और निरंजन की जीप टोल नाका के पास आकर रुकी। भाटी और निरंजन जीप से उतरे। टोल नाका ऑफिस की तरफ बढ़े। वहाँ उस समय तीन व्यक्ति बैठे थे। वह किसी बात पर बैठे हँस रहे थे। निरंजन और भाटी को अपनी और आता पाकर उनकी बातों में ब्रेक लग गया। उनकी हँसी गायब हो गयी, उसकी जगह चुप्पी ने ले ली।
“यहाँ का इंचार्ज कौन है?” भाटी ने पूछा।
“इंस्पेक्टर साहब, मैनेजर साहब तो बाहर गये हैं।”
“अभी ड्यूटी पर कौन है?” निरंजन ने डपटते हुए पूछा।
भाटी ने तीनों व्यक्ति का पुलिसिया नजरों से निरीक्षण किया, तो तीनों के प्राण कांप गये।
“माई-बाप कोई गलती हो गयी है क्या?” लाल जाकेट वाला बोला।
“तुम्हारी ड्यूटी कब तक है?” निरंजन ने कहा।
“शाम सात बजे तक साहब।” लाल जाकेट वाले ने निरंजन के सवाल का जबाव दिया।
“सात बजे के बाद कौन आयेगा?” भाटी ने फिर सवाल किया।
“सात बजे के बाद शिफ्ट चैन्ज हो जाती है साहब, दूसरे कर्मचारी आ जाते हैं। हमारी बारह-बारह घंटे की ड्यूटी होती है साहब।” उसने कुछ पूछने से पहले ही अपनी स्थिति साफ कर दी।
भाटी ने ध्यान से उन्हें देखा, “तुम्हें सुमित साहब के मर्डर के बारे में मालूम है क्या?”
तीनों की गर्दन सहमति से हिली।
“उस दिन तुम लोगों की ड्यूटी की क्या स्थिति थी?” भाटी ने पूछा।
“सर, उस दिन हमारी नाईट शिफ्ट थी।” लाल जाकेट वाले को छोड़ कर दोनों बोले।
“क्या? तुम नाईट ड्यूटी पर थे।” भाटी हैरानी से बोला।
“हाँ साहब! उस दिन नाईट वाले की तबियत खराब थी, तो हमें चौबीस घंटे ड्यूटी करनी पड़ी।” उसने गंभीर स्वर में कहा।
“उस दिन नाईट वाले सुबह सात बजे ड्यूटी पर आये थे।” दूसरा बोला।
“तो तुम लोग ड्यूटी पर थे?” निरंजन उन्हें घूरता हुआ बोला।
“जी साहब।”
“घूँट लगाते हो?” निरंजन ने घुड़कते हुए पूछा।
“जी साहब, कभी-कभी लगा लेते हैं।” डरते हुए एक ने कहा।
“ड़यूटी पर ही लगा लेते हो, फिर सो जाते होगे?” भाटी गुस्से में तीनों को घूरते हुए बोला।
“नहीं सर, ऐसा नहीं होता, क्योंकि गाडियाँ रात-भर आती-जाती रहती हैं, तो जागना पड़ता है।” लाल जाकेट वाला सहमते हुए बोला।
“उस दिन तुमने घूँट लगाया था, जिस दिन सुमित अवस्थी का मर्डर हुआ था?” भाटी ने घूरते हुए पूछा।
“जी सर। उस दिन सर्दी ज्यादा थी। एक-एक हमने मार लिया था, डबल ड्यूटी जो करनी थी।” लाल जाकेट वाले को छोड़ दूसरे ने जबाव दिया।
“तभी तुमको पता नहीं लगा कि सुमित अवस्थी की गाड़ी कब यहाँ से निकल गयी।” डपटते हुए निरंजन बोला।
दोनों कर्मचारी घबरा गये और थर-थर काँपने लगे।
“क्या हुआ? ज्यादा चढ़ा ली थी क्या, जो उनके निकलने का ध्यान नहीं रहा?” भाटी दोनों कर्मचारियों पर लगभग चढ़ गया।
“निरंजन, इन्हें पकड़ो। डंडा-परेड करनी पड़ेगी शायद।” क्रोधित होकर भाटी गरजा।
“नहीं सर, हम पूरे होश में थे। हमने सुमित सर की कार देखी थी। उन्हें भी देखा था।” एक ने घबरा कर कहा।
“डंडे के डर से झूठ बोल रहे हो ना?” निरंजन बोला।
“नहीं सर। जिस समय सुमित सर की कार निकली, उस समय हमने नहीं पी थी। उसके बाद हमने पी। जब अमन साहब की गाड़ी निकली।”
“कौन अमन साहब?” भाटी ने गुस्से से पूछा।
“अमन ओबरॉय सर। कई होटलों के मालिक हैं अमन साहब।” जल्दी से एक बोला।
“ठीक है, ठीक है। जल्दी से यह बताओ, सुमित अवस्थी गाड़ी चला रहे थे? “ भाटी ने पूछा।
“नहीं सर। गाड़ी तो एक लड़की चला रही थी। सुमित साहब तो पीछे वाली सीट पर बैठे थे। शायद उनकी तबियत ठीक नहीं थी।”
निरंजन ने भाटी को गुप्त इशारा किया। वह कामयाबी का संकेत था।
“मैडम और सुमित अवस्थी के अलावा तो गाड़ी में कोई नहीं होगा?” निरंजन ने शांत स्वर में पूछा।
“नहीं। एक साहब और बैठे थे। आगे मैडम के पास। सुमित साहब तो पीछे की सीट पर अधलेटे थे।” अब चौंकने की बारी भाटी की थी।
निरंजन ने भी आश्चर्य से भाटी को देखा, “तुम साहब, मेमसाहब को पहचान लोगे?” निरंजन ने सवाल किया।
“हाँ साहब, पहचान लेंगे।” एक बोला।
“कैसे पहचान लोगे? उस समय तो बहुत से लोग निकले होंगे?” भाटी का स्वर नरम हो गया।
“उस दिन ठंड अधिक थी। उस समय केवल दो ही गाडियाँ यहाँ से निकली थी। इसलिये हम पहचान सकते हैं साहब।” एक कर्मचारी बोला।
“ऐसा हो ही नहीं सकता, कि एक बार अंधेरे में देखने के बाद तुम उसे पहचान लो।” भाटी ने विश्वास से कहा।
“सर, एक घटना हुई थी जिस कारण हम उसे पहचान सकते हैं।” एक ने डरते हुए कहा।
“कौन-सी घटना हुई थी?” भाटी ने पूछा।
“साहब टोल टैक्स देने के लिये मैडम के पास खुल्ले नहीं थे, तो साहब ने बाहर आकर हमें हजार रुपए दिये। हमारे पास खुल्ले नहीं थे, तो हमने लेने से मना कर दिया और खुल्ले माँगे तो उन्होने हजार का नोट देकर कहा, ‘अभी रख लो, बाद में रिटर्न आते समय लें लेगें।’ इसलिये उनका नम्बर चेहरा याद रह गया।” कर्मचारी ने भाटी की तरफ देख कर शराफत से कहा।
“फिर कितनी देर में वह रिटर्न हुए?” भाटी ने पूछा।
“नहीं सर। वे पूरी रात वापस नहीं आये और न ही उनकी गाड़ी वापस आयी। वह हजार रुपए हमारे पास ही हैं। शायद वे वापस आएं, तो हम उन्हें दे दें।”
“वे दोबारा अगले दिन तो आये होंगे?” भाटी बोला।
“नहीं सर। उसके बाद वह हमसे नहीं मिले।”
“यानी हजार रूपए तुम्हें मुफ्त में मिल गये?” भाटी ने व्यंग्य से पूछा।
दोनों की नजरें झुक गयी।
“एक बात बताओ, दूसरे दिन एक्सीडेन्ट की खबर तुमने सुनी, तो गाड़ी के बारे में भी पता चला होगा। फिर भी तुम लोगों ने पुलिस में ख़बर नहीं दी।” निरंजन गुस्से में घूरता हुआ बोला।
दोनों की नजरें झुक गयी।
“सर पुलिस के चक्कर में कौन सीध-सादा आदमी फँसता है?” दबे स्वर में एक कर्मचारी बोला।
भाटी को ताव आ गया, “निरंजन, लगाओ सालों को हथकड़ी।”
दोनों की रुह काँप गयी। दोनों निरंजन और भाटी के हाथ-पैर जोड़ने लगे।
“एक शर्त पर हमारे साहब तुम्हें माफ कर सकते हैं।” निरंजन ने रहस्यमय स्वर में कहा।
दोनों की नजरें भाटी से मिली, जो गुस्से में उन्हें घूर रहा था। दोनों की साँस अटक गयी।
“किस शर्त पर साहब? एक ने डरते हुए पूछा।
“तुम उस औरत और आदमी की शिनाख्त कर दो।” निरंजन बोला।
दोनों आदमी के सिर सहमति से हिले।
भाटी ने अपनी जेब से सात-आठ तस्वीर निकाल कर उनके सामने रख दी। एक ने बेहिचक ओरिजनल वंशिका की तस्वीर पर ऊँगली रख दी।
“बहुत खूब। और आदमी?”
उसने फिर एक आदमी पर ऊँगली रख दी। निरंजन और भाटी का चेहरा जुगनुओं की तरह चमकने लगा।
“सही कह रहे हो? पहचानने में भूल तो नहीं नहीं कर रहे।” भाटी ने खुश होते हुए पूछा।
दोनों की गर्दन सहमति में हिली।
“मुंडी मत हिला, मुँह से बक।” भाटी सख्ती से बोला।
“जी साहब, सौ प्रतिशत यही आदमी है।” कहकर दोनों चुप हो गये।
“जाओ! तुम्हारे सारे गुनाह माफ। अब जब हम बुलाएं, गवाही देने के लिये चले आना।” दोनों ने सहमति से सिर हिलाया।
भाटी और निरंजन उठे और अपनी जीप की और बढ़ गये।
“सर ! फतह।” निरंजन मुस्कुरा कर बोला।
“उम्मीद नहीं थी कि कातिल यह निकलेगा।” भाटी जीप पर चढ़ते उत्साह भरे स्वर में बोला। दोनों जीप में चढ़ गये। जीप आगे बढ़ गयी।
शाम के पाँच बज रहे थे। हर तरफ धूप निखर रही थी। निरंजन, भाटी और शंकर दयाल जीप में बैठे सात घूम ( जगह का नाम ) के रास्ते पर पहुँचे।
भाटी ने निरंजन से कहा, “जीप रोक दो निरंजन।”
निरंजन के पैर फुर्ती से ब्रेक पर पड़े और गाड़ी तेज झटके से रुक गयी। निरंजन और भाटी ने रेलिंग पकड़ कर नीचे देखा तो दूर-दूर तक गहरी खाइयाँ नजर आने लगी।
भाटी निरंजन को देख कर बोला, “सुमित अवस्थी की गाड़ी इस पेड़ से टकरा कर नीचे गिरी। पहले हमारा ख्याल था कि सुमित को कहीं और मार कर यहाँ लाया गया है और एक्सीडेन्ट की स्टेज सेट की गयी थी।”
निरंजन ने हाँ में गर्दन हिलाई। शंकर दयाल केवल दर्शक बन खड़ा दोनों को देख रहा था।
“अब यह बात साबित है कि जब सुमित अवस्थी को वंशिका यहाँ लाई, तब वह नशे में था। यानि कि जिन्दा था। कातिल ने यह दिखाने की कोशिश की है कि गाड़ी पेड़ से जोर से टकराई और सुमित अवस्थी उछल कर कार से बाहर गिर गया और पत्थर से सिर टकराने से उसकी मौत हो गयी, तो सबसे बड़ा सवाल उसका सिर कुचला हुआ कैसे था? जैसेकि किसी ने पत्थर मार कर उसका सिर कुचला हो?” भाटी निरंजन की ओर देख कर बोला।
“उसमें भी राज है सर।” निरंजन नीचे देखते हुए बोला।
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निरंजन का सिर सहमति से हिला।
“चूंकि अब हालात हम समझ गये हैं तो यह बात भी जल्द समझ में आ जायेगी।” कहकर भाटी जीप में चढ़ गया। पीछे वाली सीट पर शंकर दयाल बैठ गया। निरंजन ने जीप आगे बढ़ा दी।
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Read my all running stories
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: Thriller फरेब
अब हम कहाँ जा रहे हैं सर?” निरंजन बोला।
“वापस मिसेज ओबरॉय के घर।” निरंजन ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
पुलिस की गाड़ी दोबारा आते देख दरबान ने लोहे का गेट खोल दिया। गाड़ी ने भीतर प्रवेश किया। निरंजन और भाटी उतरे और ड्राईग रुम में पहुँचे। दोनों वहाँ पहुँच कर ठिठके। सामने शानदार व्यक्तित्व का आदमी बैठा था। चेहरे से वह सम्मानित नजर आ रहा था। चेहरे पर उसके गंभीरता ने स्थायी जगह बना रखी थी। उसके बोलने का लहजा काफी शालीन था। उसकी उम्र चालीस के करीब लग रही थी। उसने शानदार सफेद रंग का थ्री-पीस सूट पहन ररवा था। जला हुआ सिगार उसके हाथ में था। उसके लम्बे काले बाल बार-बार सामने आ रहे थे। कुछ ऐसा था उसके व्यक्तित्व में कि भाटी और निरंजन की उससे सख्त स्वर में बात करने की हिम्मत नहीं हुई। वह उसे फोन में ही व्यस्त देख रहे थे। तभी उसका ध्यान भटका। उसने भाटी और निरंजन को देखा। फोन को रखा और खड़े होकर बोला।
“कहिये ! किससे मिलना है आपको?” उसने भाटी की वर्दी के स्टारों को देख कर कहा।
“जी हमें निशा जी से मिलना है और आपकी तारीफ?” भाटी ने साथ में प्रश्न भी पूछ लिया।
“मैं अमन ओबरॉय। इस घर का मालिक और निशा का पति। आप कौन और उससे आपको क्या काम है?” अमन ओबरॉय रौबीला स्वर भाटी के कानों से टकराया।
“मैं किशोर सिंह भाटी। यहाँ का थाना अधिकारी, एक केस के सिलसिले में बात करनी है।” भाटी साधारण स्वर में बोला।
“निशा का पुलिस केस से क्या लेना-देना?” अमन ओबरॉय गंभीर स्वर में बोला।
“आप उनको बुलाइये प्लीज। जो भी बातें होंगी, आपके सामने ही होंगी।” भाटी के स्वर में आदर के भाव थे।
वह उसके व्यक्तित्व से प्रभावित था। अमन ओबरॉय ने हौले से सिर हिलाया। फिर तेज आवाज में बोला, “निशा ! देखो तुमसे कोई मिलने आया है।”
“आती हूँ।” अन्दर से आवाज आयी।
थोड़ी देर बाद बल खाती निशा प्रकट हुई। उसने भाटी और निरंजन को देख कर यूँ मुँह बनाया, जैसे कुनेन की गोली खा ली हो।
“आप फिर आ गये, मुँह उठाकर?” भाटी को देख कर मुँह बिचका कर निशा बोली।
“हमें हमारी ड्यूटी यहाँ खीँच लाई मैडम।” भाटी ने अमन के सामने कोई बेअदबी नहीं की। नहीं तो वह अभी तक उसकी भद्द उतार सकता था।
“क्या बात है स्वीटहार्ट? इस तरह इंस्पेक्टर से क्यों बात कर रही हो और किसी केस से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? अमन ने उत्सुकता से पूछा।
निशा कुछ बोलने के लिये मुँह खोल ही रही थी कि भाटी बोला, “अमन साहब, आप कुछ दिन पहले हुए सुमित अवस्थी वाले मर्डर केस के बारे में जानते ही होंगे?” फिर अपने शब्दों का प्रभाव अमन पर देखने लगा।
“हाँ भई, सुमित अवस्थी के चर्चित केस के बारे में हमने अखबारों में पढ़ा था, जिसके बारे में पता चला कि पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला। कातिल आजाद घूम रहा है। पुलिस के निकम्मेपन की खूब नमक मिर्च लगा कर अखबार वालों ने खबर छापी थी।” अमन ओबरॉय भाटी को देख कर बोला।
निरंजन गुस्से में अमन ओबरॉय को कुछ कहने जा ही रहा था, कि भाटी ने रोक दिया।
“एक नई जानकारी आप के लिये मिस्टर ओबरॉय, आपकी धर्मपत्नी और सुमित अवस्थी एक साथ कॉलेज में पढ़ते थे।” भाटी ने साधारण स्वर में कहा।
“तो क्या हुआ? कौन-सी नई बात है यह।” अमन ओबरॉय साधारण स्वर में बोला।
“सुमित अवस्थी के कत्ल से कुछ ही घंटा पहले पहले निशा ओबरॉय सुमित से मिली थी।” निरंजन ने कठोर स्वर में निशा की और देख कर अमन ओबरॉय से कहा।
निशा का चेहरा सफेद पड़ गया।
“नई बात क्या है इंस्पेक्टर साहेब? जब दो सहपाठी साथ पढ़ते हैं तो नेचुरल है, दोस्ती उनमें हो जाती है। इस बात को तूल देने की क्या आवश्यकता है।” अमन ओबरॉय अपने रौबीले स्वर में बोला।
निरंजन ने यह सोच कर बोला था कि उसके शब्द सुनकर अमन को ताव आ जायेगा, लेकिन अमन के शब्द सुनकर निरंजन झाग की तरह बैठ गया।
निशा का दिल हौले-हौले धड़क रहा था।
“अब जो बात मैं आपको बताना चाहता हूँ, वह शायद बम फोड़ दे।” भाटी निशा और अमन की तरफ देख कर बोला।
“कहिये क्या कहना चाहते हो?” निशा धीमे स्वर में बोली।
“साहेबान, सुमित अवस्थी के कत्ल का राज, अब राज नहीं रहा। राजफाश हो गया है। कातिल को हम पहचान गये हैं। उसके बारें में कल आप लोगों को बता दिया जायेगा। उम्मीद है, कल आप पुलिस चौकी पर अपने दर्शन देंगे। कहकर भाटी ने दोनों की ओर देखा।”
निरंजन ने चौंक कर भाटी को देखने लगा पर भाटी की पूरी नजरें निशा पर थी।
“पर हमारे वहाँ आने का क्या औचित्य?” अमन ओबरॉय शान्त स्वर में बोला।
“ओबरॉय साहब! इस कत्ल से वास्ता रखते हर व्यक्ति को हमने वहाँ इन्वाईट किया है। आपका आना भी जरूरी है। हो सकता है कोई खास खबर आपका वहाँ इंतजार कर रही हो?” भाटी निशा की तरफ देख कर बोला।
निशा का चेहरा पूरी तरह सफेद पड़ गया।
“हम नहीं आयेंगे।” वह जोर से चिल्ला कर बोली।
अमन ने हैरानी से निशा की तरफ देखा।
“रिलेक्स निशा, घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” कहकर अमन भाटी की ओर देख कर बोला।
“इंस्पेक्टर, तुम जहाँ कहोगे, हम हाजिर हो जायेंगे।”
“धन्यवाद अमन साहब, अब हम चलते हैं।” कहकर भाटी और निरंजन बाहर निकल गये। अन्दर का माहौल वैसे ही तनावपूर्ण था।
अमन ओबरॉय शान्त निगाहों से निशा को देख रहा था। निशा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि अमन ओबरॉय को देख ले।
निरंजन ने उत्तेजित अवस्था में भाटी से कहा, “सर आप ने कातिल का पता लगा लिया?” उसके स्वर में अविश्वास के भाव थे।
भाटी की गर्दन सहमति में हिली, “मुझे अनुमान नहीं, पूर्ण विश्वास है कि कातिल, मैं जो सोच रहा हूँ, वही है। तुम बस कल तक इंतजार करो।”
उसी दिन भाटी ने केस से जुड़े हर व्यक्ति के पास जाकर उन्हें अगले दिन पुलिस चौकी आने के लिये कहा। लोग काफी उत्सुक थे कातिल के बारे में जानने के लिये। भाटी ने चंद्रेश मल्होत्रा को बता दिया था कि कल किसी भी हालत में तुम नकली वंशिका और सागर की चंगुल से बच जाओगे। चंद्रेश भी खुश था। नकली वंशिका और सागर के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था, जबकि चंद्रेश दोनों को सुना-सुना कर कह रहा था, “सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से, खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से।”
सब अगले दिन का इतंजार कर रहे थे, जब उन्हें कातिल का पता चले।
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“वापस मिसेज ओबरॉय के घर।” निरंजन ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
पुलिस की गाड़ी दोबारा आते देख दरबान ने लोहे का गेट खोल दिया। गाड़ी ने भीतर प्रवेश किया। निरंजन और भाटी उतरे और ड्राईग रुम में पहुँचे। दोनों वहाँ पहुँच कर ठिठके। सामने शानदार व्यक्तित्व का आदमी बैठा था। चेहरे से वह सम्मानित नजर आ रहा था। चेहरे पर उसके गंभीरता ने स्थायी जगह बना रखी थी। उसके बोलने का लहजा काफी शालीन था। उसकी उम्र चालीस के करीब लग रही थी। उसने शानदार सफेद रंग का थ्री-पीस सूट पहन ररवा था। जला हुआ सिगार उसके हाथ में था। उसके लम्बे काले बाल बार-बार सामने आ रहे थे। कुछ ऐसा था उसके व्यक्तित्व में कि भाटी और निरंजन की उससे सख्त स्वर में बात करने की हिम्मत नहीं हुई। वह उसे फोन में ही व्यस्त देख रहे थे। तभी उसका ध्यान भटका। उसने भाटी और निरंजन को देखा। फोन को रखा और खड़े होकर बोला।
“कहिये ! किससे मिलना है आपको?” उसने भाटी की वर्दी के स्टारों को देख कर कहा।
“जी हमें निशा जी से मिलना है और आपकी तारीफ?” भाटी ने साथ में प्रश्न भी पूछ लिया।
“मैं अमन ओबरॉय। इस घर का मालिक और निशा का पति। आप कौन और उससे आपको क्या काम है?” अमन ओबरॉय रौबीला स्वर भाटी के कानों से टकराया।
“मैं किशोर सिंह भाटी। यहाँ का थाना अधिकारी, एक केस के सिलसिले में बात करनी है।” भाटी साधारण स्वर में बोला।
“निशा का पुलिस केस से क्या लेना-देना?” अमन ओबरॉय गंभीर स्वर में बोला।
“आप उनको बुलाइये प्लीज। जो भी बातें होंगी, आपके सामने ही होंगी।” भाटी के स्वर में आदर के भाव थे।
वह उसके व्यक्तित्व से प्रभावित था। अमन ओबरॉय ने हौले से सिर हिलाया। फिर तेज आवाज में बोला, “निशा ! देखो तुमसे कोई मिलने आया है।”
“आती हूँ।” अन्दर से आवाज आयी।
थोड़ी देर बाद बल खाती निशा प्रकट हुई। उसने भाटी और निरंजन को देख कर यूँ मुँह बनाया, जैसे कुनेन की गोली खा ली हो।
“आप फिर आ गये, मुँह उठाकर?” भाटी को देख कर मुँह बिचका कर निशा बोली।
“हमें हमारी ड्यूटी यहाँ खीँच लाई मैडम।” भाटी ने अमन के सामने कोई बेअदबी नहीं की। नहीं तो वह अभी तक उसकी भद्द उतार सकता था।
“क्या बात है स्वीटहार्ट? इस तरह इंस्पेक्टर से क्यों बात कर रही हो और किसी केस से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? अमन ने उत्सुकता से पूछा।
निशा कुछ बोलने के लिये मुँह खोल ही रही थी कि भाटी बोला, “अमन साहब, आप कुछ दिन पहले हुए सुमित अवस्थी वाले मर्डर केस के बारे में जानते ही होंगे?” फिर अपने शब्दों का प्रभाव अमन पर देखने लगा।
“हाँ भई, सुमित अवस्थी के चर्चित केस के बारे में हमने अखबारों में पढ़ा था, जिसके बारे में पता चला कि पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला। कातिल आजाद घूम रहा है। पुलिस के निकम्मेपन की खूब नमक मिर्च लगा कर अखबार वालों ने खबर छापी थी।” अमन ओबरॉय भाटी को देख कर बोला।
निरंजन गुस्से में अमन ओबरॉय को कुछ कहने जा ही रहा था, कि भाटी ने रोक दिया।
“एक नई जानकारी आप के लिये मिस्टर ओबरॉय, आपकी धर्मपत्नी और सुमित अवस्थी एक साथ कॉलेज में पढ़ते थे।” भाटी ने साधारण स्वर में कहा।
“तो क्या हुआ? कौन-सी नई बात है यह।” अमन ओबरॉय साधारण स्वर में बोला।
“सुमित अवस्थी के कत्ल से कुछ ही घंटा पहले पहले निशा ओबरॉय सुमित से मिली थी।” निरंजन ने कठोर स्वर में निशा की और देख कर अमन ओबरॉय से कहा।
निशा का चेहरा सफेद पड़ गया।
“नई बात क्या है इंस्पेक्टर साहेब? जब दो सहपाठी साथ पढ़ते हैं तो नेचुरल है, दोस्ती उनमें हो जाती है। इस बात को तूल देने की क्या आवश्यकता है।” अमन ओबरॉय अपने रौबीले स्वर में बोला।
निरंजन ने यह सोच कर बोला था कि उसके शब्द सुनकर अमन को ताव आ जायेगा, लेकिन अमन के शब्द सुनकर निरंजन झाग की तरह बैठ गया।
निशा का दिल हौले-हौले धड़क रहा था।
“अब जो बात मैं आपको बताना चाहता हूँ, वह शायद बम फोड़ दे।” भाटी निशा और अमन की तरफ देख कर बोला।
“कहिये क्या कहना चाहते हो?” निशा धीमे स्वर में बोली।
“साहेबान, सुमित अवस्थी के कत्ल का राज, अब राज नहीं रहा। राजफाश हो गया है। कातिल को हम पहचान गये हैं। उसके बारें में कल आप लोगों को बता दिया जायेगा। उम्मीद है, कल आप पुलिस चौकी पर अपने दर्शन देंगे। कहकर भाटी ने दोनों की ओर देखा।”
निरंजन ने चौंक कर भाटी को देखने लगा पर भाटी की पूरी नजरें निशा पर थी।
“पर हमारे वहाँ आने का क्या औचित्य?” अमन ओबरॉय शान्त स्वर में बोला।
“ओबरॉय साहब! इस कत्ल से वास्ता रखते हर व्यक्ति को हमने वहाँ इन्वाईट किया है। आपका आना भी जरूरी है। हो सकता है कोई खास खबर आपका वहाँ इंतजार कर रही हो?” भाटी निशा की तरफ देख कर बोला।
निशा का चेहरा पूरी तरह सफेद पड़ गया।
“हम नहीं आयेंगे।” वह जोर से चिल्ला कर बोली।
अमन ने हैरानी से निशा की तरफ देखा।
“रिलेक्स निशा, घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” कहकर अमन भाटी की ओर देख कर बोला।
“इंस्पेक्टर, तुम जहाँ कहोगे, हम हाजिर हो जायेंगे।”
“धन्यवाद अमन साहब, अब हम चलते हैं।” कहकर भाटी और निरंजन बाहर निकल गये। अन्दर का माहौल वैसे ही तनावपूर्ण था।
अमन ओबरॉय शान्त निगाहों से निशा को देख रहा था। निशा की हिम्मत नहीं हो रही थी कि अमन ओबरॉय को देख ले।
निरंजन ने उत्तेजित अवस्था में भाटी से कहा, “सर आप ने कातिल का पता लगा लिया?” उसके स्वर में अविश्वास के भाव थे।
भाटी की गर्दन सहमति में हिली, “मुझे अनुमान नहीं, पूर्ण विश्वास है कि कातिल, मैं जो सोच रहा हूँ, वही है। तुम बस कल तक इंतजार करो।”
उसी दिन भाटी ने केस से जुड़े हर व्यक्ति के पास जाकर उन्हें अगले दिन पुलिस चौकी आने के लिये कहा। लोग काफी उत्सुक थे कातिल के बारे में जानने के लिये। भाटी ने चंद्रेश मल्होत्रा को बता दिया था कि कल किसी भी हालत में तुम नकली वंशिका और सागर की चंगुल से बच जाओगे। चंद्रेश भी खुश था। नकली वंशिका और सागर के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था, जबकि चंद्रेश दोनों को सुना-सुना कर कह रहा था, “सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से, खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से।”
सब अगले दिन का इतंजार कर रहे थे, जब उन्हें कातिल का पता चले।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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