अगले दिन पुलिस चौकी मेहमानों से पूरी भरी हुई थी। वहाँ सुरक्षा का तगड़ा इंतजाम था। कोई भी घटना घटे, उस पर हर तरह से काबू पाया जा सके, पुलिस पूरी तरह तैयार थी। एक कमरे में कुर्सियाँ ऐसे सजाई गयी थी, कि सबका ध्यान एक तरफ रहे। तीन कुर्सियाँ आगे रखी हुई थी। धीरे-धीरे सारी कुर्सियाँ भरने लगी। सामने तीन कुर्सियों में से एक पर नेता सुन्दर लाल अवस्थी, एक पर कमिश्नर साहब और एक पर दैनिक अखबार का मालिक बैठा थे। सब तरफ पत्रकार बैठे थे, जो पूरी तैयारी के साथ कवरेज के लिये आये हुए थे। एक कुर्सी सामने इनके विपरीत दिशा में रखी थी, जिसका मुख इनकी तरफ था, उस पर भाटी आकर बैठ गया।
केस से जुड़े सारे सज्जन वहाँ उपस्थित थे। मसलन राहुल मकरानी, नकली वंशिका, सागर, चंद्रेश मल्होत्रा, सुन्दर लाल अवस्थी, कमिश्नर साहब, निशा औबरॉय, अमन औबरॉय, होटल मैनेजर। टोल नाके पर काम करने वाले कर्मचारी, होटल के कर्मचारी को अलग कमरे में बिठाया गया था। उन लोगों को इन के बारे में जानकारी नहीं थी। इन्हें सब के सामने नहीं लाया गया था। कांस्टेबल शंकर दयाल और राम सेवक बाहर दरवाजे के पास पूरी वर्दी के साथ मौजूद थे।
सब लोग शांति से होने वाली कार्यवाही देख रहे थे। भाटी ने सब लोगों की तरफ देखा, फिर सन्तुष्टि भरे ढंग से कमिश्नर साहब की ओर देखा। कमिश्नर ने आँखों के इशारे से इजाजत दे दी। भाटी उठ खड़ा हुआ। तभी निरंजन कमरे के अन्दर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया और भाटी को देखने लगा। कमरे में इतनी शान्ति थी कि सुई गिरे, तो वह भी लगे, सुनाई दे जाये।
भाटी गला खंखारते हुए खड़ा हुआ, “दोस्तो, मैं आज आपको जो कहानी सुना रहा हूँ, उसमें आपको केवल एक ही चीज मिलेगी। और वह है- फरेब। फरेब यानि धोखा। इस कहानी में हर किरदार कहीं न कहीं अपने पार्टनर के साथ फरेब कर रहा है और इसी फरेब के चक्कर मैं एक नहीं दो-दो मर्डर हो गये। पहला मर्डर जैसाकि आप सब जानते हैं, सुमित अवस्थी का और दूसरा मर्डर हुआ, चंद्रेश मल्होत्रा की वाईफ वंशिका मल्होत्रा का।”
यह शब्द सुनते ही चंद्रेश मल्होत्रा कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया और जोर से बोला, “क्या बकवास कर रहे हैं भाटी सर? वंशिका मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती।” चंद्रेश के स्वर में गुस्से और गम के मिश्रित भाव थे।
“यह सच है मिस्टर चंद्रेश, मुझे दुख है कि यह खबर आपको सुनानी पड़ी।” भाटी के स्वर में दर्द उभरा उसने चंद्रेश की तरफ देखा, जिसे इस बात गम था, कि वंशिका नहीं रही, चंद्रेश की आखों से आँसू निकल पड़े।
भाटी ने अपने स्वर को थोड़ा विराम दिया। थोड़ी देर बाद उसने दोबारा बोलना शुरु किया, “इस कहानी में यहाँ बैठे कई लोगों को शॉक लगेगा। कई राजफाश होंगे।” भाटी सब की तरफ देख कर बोला।
“जब वंशिका का मर्डर हो गया, तो यह कौन हैं?” विमल ने उठते हुए कहा।
भाटी ने उसे बैठने का इशारा किया।
“मैं आप सब लोगों के प्रश्नों का उत्तर देने के लिये ही यहाँ उपस्थित हुआ हूँ।” भाटी ने कहा।
सबकी तरफ देख कर वह पुनः बोला, “आप लोग यह जानने के लिये बेचैन होंगे कि यह कौन है?”
भाटी ने नकली वंशिका की तरफ इशारा कर के कहा।
लोगों की गर्दन सहमति में हिली।
वंशिका ऐसी सिचुवेशन में भी मंद-मंद मुस्करा रही थी। चंद्रेश मल्होत्रा गुस्से भरी नजरों से उसे घूर रहा था। उसका जी चाह रहा था कि उसकी गर्दन पकड़ ले, लेकिन इस सिचुवेशन में भी उसकी हँसी देख कर आश्चर्य में था। उसकी हँसी देख कर वह मन ही मन जल भुन रहा था, लेकिन इतने लोगों के बीच कुछ नहीं कह सकता था, इसलिये खामोश था।
“आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि वंशिका मल्होत्रा का असली नाम कोमल श्रीवास्तव है और यह अपने नाम के हिसाब से कोमल नहीं, बल्कि मजबूत किरदार की महिला हैं और यह मिस्टर सागर श्रीवास्तव की धर्मपत्नी हैं। मिस्टर सागर और वंशिका दोनों ही मेरे डिपार्टमेंट के काबिल ऑफिसर हैं। कोमल श्रीवास्तव को अभिनय का भी शौक है, जिसका शानदार नमूना मिस्टर चंद्रेश मल्होत्रा देख चुके हैं।” भाटी ने दोनों की तरफ इशारा कर के कहा।
दोनों ने खड़े होकर सबका अभिवादन किया। कमिश्नर का सिर हौले से सहमति में हिला। यह शब्द सुनते ही चंद्रेश को जोरदार झटका लगा। वह सीधे अर्श से फर्श पर आ गया।
उसे विश्वास नहीं हो रहा था, भाटी जो कह रहा है वह सच है। वह हड़बड़ा कर खड़ा हो गया, “क्या कह रहे हो भाटी साहब? ये दोनों पुलिस में हैं और पति पत्नी हैं?”
“बैठ जाओ मिस्टर चंद्रेश मल्होत्रा, अभी तो आप लोगों को इसी तरह कई बड़े झटके लगने वालें हैं।” भाटी ने शांत स्वर में कहा।
चंद्रेश अविश्वास से दोनों को देख कर बैठ गया। उसने बेचैनी से कुर्सी पर पहलू बदला। यह उसके लिये बहुत बड़ा झटका था। या यूँ कहो सदमा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि भाटी ने जो बात की, वह सच हैं। (अब हम जान चुके हैं कि वंशिका का नाम कोमल श्रीवास्तव है। तो हम उन्हें कोमल के नाम से ही संबोधित करेंगे।) कोमल का ध्यान चंद्रेश की तरफ नहीं था। वह बस भाटी की तरफ देखे जा रही थी। सब का ध्यान वापस भाटी की तरफ आकर्षित हो गया। भाटी ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “दोस्तो, जब सुमित अवस्थी का मर्डर हुआ, उसके दो दिन बाद ही वंशिका अपने घर से गायब हो गयी। हमें उस समय उन लोगों पर शक था, जो उस समय गायब हुए या उस समय शहर छोड़कर गये। ऐसे दस नाम हमारे जहन में थे। सबके बारे में छानबीन कराई, तो हमारी नजर वंशिका मल्होत्रा और चंद्रेश मल्होत्रा पर टिकी। दूसरा हमारा ध्यान एक और कारण से इस और गया क्योंकि चंद्रेश मल्होत्रा ने अपनी वाईफ के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में नहीं लिखवाई जो कि किसी भी तरह जायज नहीं था, क्योंकि हमें पूछ्ताछ में पता चला यह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। हमें शक हुआ कि चंद्रेश ने अपनी पत्नी का मर्डर कर लाश ठिकाने लगा दी है, तो मैंने एक प्लान बनाया, जिसमें मुझे दो जांबाज साथियों की जरूरत थी, जो हर परिस्थिति से मुकाबला कर सके, जिसमें एक लड़की की जरुरत पड़ी, जो निडर और एक्टिंग में माहिर हो, जिसे जासूसी में थोड़ा नालेज हो। मुझे दूर तक ऐसा कोई नहीं दिखायी दिया, क्योंकि मैं लोकल को लेकर प्लान लीक नहीं करना चाहता था। मैंने कमिश्नर साहब से बात की तो इन्होंने दो नायाब नगीने मुझे सौपें। दोनों सब-इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए, दोनों बहुत ही समझदार थे, जल्द ही पूरी बात समझ गये, तो ड्रामा शुरू हो गया। यह बात मुझे मेरे जूनियर निरंजन से भी छुपानी पड़ी ताकि नाटक रियल लगे। इसलिये पहली बार जब चंद्रेश मल्होत्रा मेरे पास आया, तो मैंने निरंजन को भेजा, ताकि नाटक कामयाब लगे। दूसरी बात, हमें सुमित अवस्थी के पास जो भी सबूत मिले, वह चंद्रेश को ही कातिल साबित कर रहे थे। यानि एक ड्रामे से दो मर्डर केस का पर्दाफाश होना था।” यह कह कर भाटी थोड़ा रुका।
टेबल में रखे जग में से पानी गिलास में डाला और पीने लगा। सब चुपचाप कहानी सुन रहे थे। निरंजन का चेहरा देखने लायक था, उसका मुँह खुला का खुला था। वह सोच भी नहीं सकता था कि वह किसी ड्रामे का हिस्सा रहा, अपनी मर्जी के खिलाफ।
भाटी उसको देख कर मुस्कुराया, “मैंने किसी का खून नहीं किया?” चंद्रेश चिल्लाया।
“शांत रहिये आप। कहानी तो अब शुरु हो रही है मिस्टर चंद्रेश।” भाटी ने शान्त स्वर में कहा। चंद्रेश वापस कुर्सी पर बैठ गया, लेकिन उसकी हालत किसी भी तरह सही नहीं थी।
भाटी सबको देख कर बोला, “मैं आज आप लोगों को एक कहानी सुनाता हूँ। इस कहानी मैं आपको प्यार, नफरत, फरेब, धोखा सब कुछ मिलेगा। इस कहानी में कदम कदम पर लोग एक-दूसरे को फरेब दे रहे हैं। कहानी शुरू होती हैं। कॉलेज से, जहाँ एक जोड़ा आपस में बहुत प्यार करता था। उस जोड़े का नाम था वंशिका और चंद्रेश मल्होत्रा। इन लोगों का प्यार फल फूल रहा था, तो कई लोगों की बुरी नजरों में भी वह प्यार था। इस प्यार को ग्रहण तब लगा, जब सुमित अवस्थी की नजर वंशिका पर पड़ी। वह वंशिका पर फिदा हो गया। वह वंशिका को मन ही मन चाहने लगा, क्योंकि वंशिका चंद्रेश से प्यार करती थी और सुमित अवस्थी की कॉलेज में स्थिति अच्छी नहीं थी। लोगों की नजरों में उसकी छवि एक अय्याश व्यक्ति की थी तो वंशिका ने उसे घास नहीं डाली। वैसे इलेक्शन हारने के बाद सुमित अवस्थी ने अपने आपको बदला। कॉलेज में उसकी गुन्डागर्दी बन्द हो गयी। वह चंद्रेश मल्होत्रा के करीब आ गया, लेकिन फिर भी उसकी सारी कोशिशें वंशिका को इम्प्रेस करने की बेकार गयी। दूसरी तरफ निशा कोठारी, जो मन ही मन चंद्रेश को चाहती थी और वह चाहती थी, कि वंशिका और चंद्रेश की जोड़ी टूट जाये, जिसकी उसने बहुत कोशिश की, परन्तु कामयाब नहीं हो पायी। यहाँ तक इलेक्शन के समय में वो चंद्रेश और वंशिका का साथ दे रही थी पर अन्दर ही अन्दर वह चंद्रेश का वोट बैंक तोड़ रही थी। अन्दर ही अन्दर वो चंद्रेश के खिलाफ थी, क्योंकि चंद्रेश की कॉलेज में रेप्यूटेशन सुमित के मुकाबले अच्छी थी, तो चंद्रेश इलेक्शन जीत गया। इसी बीच सुमित अवस्थी और निशा के बीच की दूरियाँ खत्म हुई। निशा पर भेद खुला कि सुमित अवस्थी और चंद्रेश की नहीं बनती हैं, तो उसने सुमित अवस्थी पर डोरे डालने शुरू किये। उसे अपने रंग-रुप के जाल में फँसाया और एक प्लान बनाया, जिसमें वंशिका की नजरों में यह साबित हो जाये कि चंद्रेश आवारा किस्म का लड़का है और उसके कई और लड़कियों से भी संबंध हैं। इस ड्रामे को रंग देने के लिये निशा ने सुमित अवस्थी के सामने शर्त रखी कि यदि वंशिका और चंद्रेश अलग हो जाते हैं तो मैं तुमकों हासिल हो जाऊँगी। निशा नहीं जानती थी कि सुमित अवस्थी भी मन ही मन वंशिका को चाहता है। सुमित अवस्थी के लिये यह प्लान दोनों हाथों में लड्डू जाने जैसा था। एक तरफ निशा की खूबसुरत जवानी उसे हासिल थी ,तो दूसरी तरफ उसके रास्ते का रोड़ा चंद्रेश उसके रास्ते से हट रहा था। उसने प्लान में हामी भर दी। निशा और सुमित नहीं जानते थे कि उनके इस प्लान का राजदार एक व्यक्ति और हो गया था। मिस्टर विमल, जिसने सुमित और निशा के प्लान का एक-एक हिस्सा सुना। पूरा प्लान शानदार ढंग से कामयाब हो गया, पर उस प्लान में दूध में में मक्खी की तरह गिरा विमल, उसने वंशिका को सारी हकीकत से रू-ब-रु करा दिया। विमल की वजह से वंशिका और चंद्रेश की जोड़ी टूटते-टूटते बची। वंशिका और चंद्रेश को जब यह अहसास हुआ कि इनके पीछे कई लोगों की नजरें है, तो चंद्रेश ने तुरन्त वंशिका से शादी कर ली। उस शादी में सुमित और निशा शामिल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने गिफ्ट भेज कर मॉफी माँग ली। साल भर तक कॉलेज में सब नॉर्मल रहा। कॉलेज खत्म होने के बाद सब अपनी अपनी राह पर लग गये। दोस्तो, यह कहानी का एक पड़ाव था।” कहकर भाटी रुका।
उसकी नजरें सब तरफ थी। कई लोग बेचैनी से उसे देख रहे थे, तो कई लोगों में सामान्य भाव था। कोई गुस्से को दबा रहा था। भाटी ने वापस गिलास भरा और पानी से अपना गला तर किया। फिर आगे बोला, “अब कहानी का दूसरा पढ़ाव। चंद्रेश और वंशिका की लाईफ अच्छी चल रही थी। साल दो साल दोनों में बहुत प्यार रहा। फिर धीरे-धीरे चंद्रेश अपने व्यापार में रम गया। अब उसका ध्यान पैसा कमाने में ज्यादा लग गया। उसका घर आने का कोई टाइम टेबल न रहा। अधिकतर वह लेट घर आता और थका हुआ होता, तो आकर सो जाता। उसका वंशिका की तरफ ध्यान कुछ कम हो गया। दूसरी तरफ वंशिका चाहती थी कि चंद्रेश उसे उसी तरह प्यार करे। धीरे-धीरे दोनों के मध्य तकरार होने लगी। कई बार यह झगड़ा गंभीर रुप ले लेता। घर में वंशिका अकेली होती, तो घर उसे काटने को दौड़ता। जब उसने देखा कि चंद्रेश का ध्यान उसकी और नहीं रहता, तो उसने अपना ध्यान घूमने में लगा दिया। एक दिन इत्तेफाक से उसे मार्केट में एक कॉलेज का साथी मिल गया। दोनों की धीरे-धीरे मुलाकात होने लगी। वंशिका का धीरे-धीरे उससे झुकाव हो गया। दोनों होटलों में मिलने लगे। उनके बीच की सब दीवारें टूट गयी। आखिर यह बात भी कहाँ छुपती हैं। एक दिन दोनों को होटल में निशा ओबरॉय ने देख लिया। उसके आला दिमाग में चंद्रेश को फिर से पाने की योजना बनने लगी। इस काम को वह अकेले अन्जाम नहीं दे सकती थी, तो उसने तलाश शुरू की, कि कौन उसका साथ दे सकता हैं? उसकी तलाश एक दिन अचानक खत्म हुई। उसके कॉलेज के साथी- सुमित अवस्थी पर, चूंकि सुमित खुद एक अमीर आदमी था, उसे पैसे की कमी नहीं थी और निशा के पास भी पैसे की कमी नहीं थी, तो उसने अपना कामयाब हथियार, अपने रूप और यौवन का सहारा लिया। चूँकि सुमित अवस्थी अय्याश था, साथ ही उसने पहले ही निशा के यौवन का स्वाद चख लिया था और वह वंशिका को भी चाहता था, तो वापस पुरानी कहानी दोहराई गयी। इस बार उन के बीच में विमल नहीं था, जो उनकी योजना खराब कर देता। सुमित अवस्थी ने अपने पैसे के बल पर जिस होटल में वंशिका और उसका मित्र जाते थे, वहाँ पर गुप्त कैमरे लगाकर उनकी अंतरंग वीडियो और तस्वीर कैद कर ली। वंशिका और उसके मित्र इस बात से अन्जान थे। सुमित और निशा का प्लान पूरी तरह कामयाब रहा। अब जरुरत थी प्लान को आगे बढ़ाने की। सुमित ने उस तस्वीरों और वीडियो के डर से वंशिका को ब्लैकमेंल करना शुरु किया। वंशिका को डर था कि यह बात चंद्रेश तक नहीं पहुँच जाये कि उसकी बीवी उसके साथ फरेब कर रही है। सो उसने सुमित के सामने पैसे की डिमांड रखी। जितना उसे चाहिये वह ले ले। लेकिन सुमित को पैसे की कमी नहीं थी। वह तो केवल वंशिका के रूप का दीवाना था। उसने वंशिका के सामने ऐसी शर्त रखी कि वंशिका ने उसे गुस्से में इनकार कर दिया, क्योंकि वह कोई बाजारू औरत नहीं थी, जो किसी के सामने यूँ ही बिछ जाती। बाजी सुमित के हाथ में थी, सो वह बेबस थी। निशा ने अभी तक अपने आपको इस मामले से दूर रख रखा था। उसका कार्य सुमित कर रहा था। वह सुमित का साथ दे रही थी। दूसरी तरफ सुमित जो चाहता था, वह निशा से ले चुका था और वंशिका से वह चाहता था। उसने अपनी बात मानने के लिये वंशिका को तीन दिन का समय दिया। मजबूरी में वंशिका ने यह बात अपने मित्र को बताई। उसका मित्र क्रोध से पागल हो गया। उसने सुमित को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया। प्लान के मुताबिक वंशिका को सुमित की बात मान कर उसे खूब शराब पिलानी है। फिर जब वह ज्यादा नशे में हो जाये, तो उसका काम तमाम का बन्दोबस्त करना था। वंशिका और उसके प्रेमी का प्लान कामयाब हो गया। वंशिका ने उसके साथ रात गुजारने की हाँ कर दी। सुमित हद से ज्यादा खुश हो गया। उसी खुशी में उसने उस रात खूब जश्न मनाया। वंशिका ने सुमित को खूब छ्क कर शराब पिलाई और खुद भी पीने का नाटक किया। जब सुमित हद से ज्यादा नशे में हो गया, तो वंशिका उसे उसी की कार में बैठा कर होटल से बाहर लेकर आयी। यह सारी फुटेज सी.सी. टी.वी. के कैमरे में कैद हो गयी थी। वंशिका ने नशे में चूर सुमित को पीछे बैठाया और गाड़ी आगे बढ़ा दी। वह इस काम को अकेले अन्जाम नहीं दे सकती थी। उसने अपने मित्र को फोन कर के पहले ही प्लान बता दिया था। उसका मित्र थोड़ी देर में उनके साथ हो गया। दोनों गाड़ी लेकर सात घूम वाले रास्तें पर पहुँचे, जहाँ उन्हें इस सारी साजिश को अन्जाम देना था। सात घूम पर पहुँच कर इन्होंने ऐसा साबित करने की कोशिश की, कि अत्याधिक नशे में होने के कारण सुमित अवस्थी ने कार पेड़ से भिड़ा दी और उछल कर जीप से बाहर गिरा और पत्थर से टकरा कर उसकी मौत हो गयी। तभी वंशिका के दिमाग में एक फितुर आया कि इस एक्सीडेन्ट को मर्डर साबित किया जाये और उसका इल्जाम चंद्रेश मल्होत्रा पर आ जाये, जिससे उनके रास्ते का काँटा हमेशा के लिये दूर हो जाये। चंद्रेश मल्होत्रा के फाँसी पर चढ़ने या जेल जाने के कुछ समय बाद इनका आपस में शादी का प्लान था।
Thriller फरेब
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Re: Thriller फरेब
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Re: Thriller फरेब
वंशिका के प्रेमी को यह बात पंसद आयी। यूँ एक तीर से दो शिकार हो जाते, तो इन्होंने सबसे पहले स्टेयरिंग से सुमित अवस्थी के निशान मिटाए, फिर ब्रेक से उसके पैरों के निशान साफ किये, ताकि लगे कि किसी ने जान कर यह सबूत मिटाए हैं। फिर उन्होंने आसपास कुछ ऐसे सबूत बिखेरे कि शक चंद्रेश मल्होत्रा की तरफ जाये। सारी कार्यवाही से फ्री होकर वह अपने घर चले गये, लेकिन यह इन बातों से अन्जान थे कि दो आँखें लगातार इनका पीछा कर रही थी और इनकी एक-एक गतिविधी देख रही थी।
भाटी आगे कुछ कहने ही जा रहा था कि एक व्यक्ति कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। जोर से चिल्लाया, “यह मन-गढ़ंत बातें हैं।”
“क्या मन-घड़न्त बातें हैं?” भाटी ने मुस्कुरा कर पूछा।
“जो कहानी आप यहाँ सुना रहे हैं। सब फर्जी कहानी है।” कहकर वह बाहर की तरफ जाना चाहा, तो भाटी ने आँखों से इशारा किया।
दोनों हवलदार गेट के आगे आकर खड़े हो गये। मजबूरी में वह हाथ मलता अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया। भाटी ने मुस्करा कर सब की तरफ देखा। सब हैरानी से उसे देख रहे थे।
“हाँ तो मिस्टर विमल, आप कैसे कह सकते हैं कि यह फर्जी कहानी है?” विमल ने लम्बी सांस ली और बेचैनी से गर्दन झुका कर बैठ गया।
“विमल महाशय इस कहानी को फर्जी इसलिये कह रहे है, इसलिये कि वह खुद इस कहानी के किरदार हैं, क्योंकि कोई और नहीं, विमल साहब खुद वंशिका को चाहते थे और वंशिका के साथ मिलकर इस ड्रामे को रचा।” भाटी ने कहा।
“यह झूठ है। आप इस बात को कैसे साबित कर सकते हैं?” विमल गुस्से में काँपने लगा।
भाटी ने निरंजन को इशारा किया। निरंजन दूसरे कमरे में गया और टोल टैक्स वाले कर्मचारी को वहाँ ले आया।
“इन लोगों में से उस दिन मैडम के साथ कौन था?” भाटी ने सब की तरफ इशारा करते हुए कर्मचारी से बोला।
कर्मचारी की अंगुली सबको देखने के बाद विमल की तरफ उठ गयी। विमल की नजरें झुक गयी। वह नजरें चुराने लगा।
“तुम कैसे कह सकते हो यही है?” भाटी शांत स्वर में बोला।
“साहब जो हजार रुपए देकर भूल जाये, वह आसानी से याद रहता है।” कर्मचारी बोला।
भाटी ने सहमति से सिर हिलाया।
“हाँ, तो मिस्टर विमल, और सबूत चाहिये। हमारे पास इतने सबूत हैं कि जिन्हें तुम झुठला नहीं सकते, मसलन यह तस्वीरें।” कह कर भाटी ने कमरे में अन्धेरा करवा किया। प्रोजेक्टर पर वंशिका और विमल की अंतरंग तस्वीरें चलने लगी।
अचानक चंद्रेश जोर से चिल्लाया , “बन्द करिए भाटी साहब, इन्हें मैं और नहीं देख सकता।”
भाटी ने प्रोजेक्टर बन्द कर दिया। वापस कमरे में लाईटें जला दी गयी। कमरे में पुनः रोशनी छा गयी।
“मिस्टर विमल, तुम सुमित अवस्थी को कमजोर समझते थे। उसका इरादा वंशिका को हमेशा पाने का था। वंशिका और चंद्रेश की जोड़ी को तोड़ना था, सो उसने यह तस्वीर और नेगेटिव पहले से ही पोस्ट कर दिये थे।
“यह तस्वीर आपको कहाँ से मिली भाटी साहब?” राहुल मकरानी ने प्रश्न किया।
“यह तस्वीरें और नेगेटिव मिस कोमल और सागर की देन है, क्योंकि शुरु में सारे सबूत चंद्रेश को हत्यारा साबित कर रहे थे, पर ठोस सबूत हमारे पास नहीं था, तो कोमल श्रीवास्तव और सागर ने साथ में यह ड्रामा स्टेज किया, ताकि तंग होकर चंद्रेश खुद कबूल कर ले कि सुमित अवस्थी को मैंने मारा है। लेकिन बाद में सारे सबूत ने दूसरी तरफ इशारा किया। टोल टैक्स कर्मचारी के विमल को पहचान लेने से हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि क्या कारण था- सुमित के मर्डर का ! तब कोमल और सागर ने मेहनत से यह सबूत हासिल किये, जिसमें हमें सुमित अवस्थी और विमल की दुश्मनी समझ में आयी। विमल की नज़रें झुकी हुई थी। और सबूत चाहिये मिस्टर विमल?” भाटी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“लेकिन भाटी सर, जब सुमित का मर्डर हुआ तो मैं यहाँ नहीं था। मैं तो कोटा गया हुआ था।” विमल ने अपने बचाव का लास्ट तीर तरकश से निकाला।
“विमल इतने सबूत होने के बाद भी तुम समझते हो, बच जाओगे तो, यह तुम्हारी गलत फहमी है।”
“सुमित का मर्डर पाँच अगस्त को हुआ था और तीन तारीख को मैं कोटा चला गया था, जहाँ से बारह तारीख को वापस आया।” विमल ने कहा।
भाटी पुन: मुस्कुराया, “जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी, तब तुमने कहा था कि भाटी सर, सुमित का मर्डर हो गया, मुझे तो मालूम ही नहीं था। मैंने कई दिनों से अखबार नहीं पढ़ा। याद है अपने वाक्य?” भाटी के स्वर में व्यंग्य था।
विमल का सिर सहमति से हिला, “तो आज तुम्हें पाँच अगस्त की तारीख कैसे याद आ गयी? हममें से किसी ने कभी भी पाँच अगस्त का जिक्र नहीं किया है।”
“भाटी मुस्कुराते हुए बोला।” विमल झेंप गया, जल्दबाजी में बोला, “वह मैंने पुराने अखबार बाद में निकाल कर पढ़े थे, तो तारीख याद रह गयी।”
“बहुत खूब विमल। चलो कोई बात नहीं। यह बताओ, तुम कोटा तीन अगस्त को किस वाहन से गये थे?” भाटी ने सवाल पूछा।
“क्या मतलब है आपका?” विमल बोला।
“मतलब बस से गये, ट्रैन से गये या कोई और वाहन से गये थे?” भाटी ने सवाल पूछा।
“बस से गया था भाटी सर।” सोचतें हुए विमल बोला।
“कौन-सी बस से गये थे, प्राईवेट थी या रोडवेज की।”
“प्राईवेट बस थी सर।” विमल बोला।
“कितने बजे यहाँ से चले थे और कितने बजे कोटा पहुँचे थे?” भाटी ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा।
“सर दोपहर साढ़े तीन बजे चला था और दूसरे दिन सुबह सात बजे कोटा पहुँच गया था।”
“तुम सच कह रहे हो विमल, तीन तारीख को दोपहर साढ़े तीन बजे तुम बैठे और चार तारीख सात बजे कोटा पहुँचे।” भाटी ने विमल को घूरते हुए कहा।
विमल का सिर सहमति से हिला।
भाटी आगे कुछ कहने ही जा रहा था कि एक व्यक्ति कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। जोर से चिल्लाया, “यह मन-गढ़ंत बातें हैं।”
“क्या मन-घड़न्त बातें हैं?” भाटी ने मुस्कुरा कर पूछा।
“जो कहानी आप यहाँ सुना रहे हैं। सब फर्जी कहानी है।” कहकर वह बाहर की तरफ जाना चाहा, तो भाटी ने आँखों से इशारा किया।
दोनों हवलदार गेट के आगे आकर खड़े हो गये। मजबूरी में वह हाथ मलता अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया। भाटी ने मुस्करा कर सब की तरफ देखा। सब हैरानी से उसे देख रहे थे।
“हाँ तो मिस्टर विमल, आप कैसे कह सकते हैं कि यह फर्जी कहानी है?” विमल ने लम्बी सांस ली और बेचैनी से गर्दन झुका कर बैठ गया।
“विमल महाशय इस कहानी को फर्जी इसलिये कह रहे है, इसलिये कि वह खुद इस कहानी के किरदार हैं, क्योंकि कोई और नहीं, विमल साहब खुद वंशिका को चाहते थे और वंशिका के साथ मिलकर इस ड्रामे को रचा।” भाटी ने कहा।
“यह झूठ है। आप इस बात को कैसे साबित कर सकते हैं?” विमल गुस्से में काँपने लगा।
भाटी ने निरंजन को इशारा किया। निरंजन दूसरे कमरे में गया और टोल टैक्स वाले कर्मचारी को वहाँ ले आया।
“इन लोगों में से उस दिन मैडम के साथ कौन था?” भाटी ने सब की तरफ इशारा करते हुए कर्मचारी से बोला।
कर्मचारी की अंगुली सबको देखने के बाद विमल की तरफ उठ गयी। विमल की नजरें झुक गयी। वह नजरें चुराने लगा।
“तुम कैसे कह सकते हो यही है?” भाटी शांत स्वर में बोला।
“साहब जो हजार रुपए देकर भूल जाये, वह आसानी से याद रहता है।” कर्मचारी बोला।
भाटी ने सहमति से सिर हिलाया।
“हाँ, तो मिस्टर विमल, और सबूत चाहिये। हमारे पास इतने सबूत हैं कि जिन्हें तुम झुठला नहीं सकते, मसलन यह तस्वीरें।” कह कर भाटी ने कमरे में अन्धेरा करवा किया। प्रोजेक्टर पर वंशिका और विमल की अंतरंग तस्वीरें चलने लगी।
अचानक चंद्रेश जोर से चिल्लाया , “बन्द करिए भाटी साहब, इन्हें मैं और नहीं देख सकता।”
भाटी ने प्रोजेक्टर बन्द कर दिया। वापस कमरे में लाईटें जला दी गयी। कमरे में पुनः रोशनी छा गयी।
“मिस्टर विमल, तुम सुमित अवस्थी को कमजोर समझते थे। उसका इरादा वंशिका को हमेशा पाने का था। वंशिका और चंद्रेश की जोड़ी को तोड़ना था, सो उसने यह तस्वीर और नेगेटिव पहले से ही पोस्ट कर दिये थे।
“यह तस्वीर आपको कहाँ से मिली भाटी साहब?” राहुल मकरानी ने प्रश्न किया।
“यह तस्वीरें और नेगेटिव मिस कोमल और सागर की देन है, क्योंकि शुरु में सारे सबूत चंद्रेश को हत्यारा साबित कर रहे थे, पर ठोस सबूत हमारे पास नहीं था, तो कोमल श्रीवास्तव और सागर ने साथ में यह ड्रामा स्टेज किया, ताकि तंग होकर चंद्रेश खुद कबूल कर ले कि सुमित अवस्थी को मैंने मारा है। लेकिन बाद में सारे सबूत ने दूसरी तरफ इशारा किया। टोल टैक्स कर्मचारी के विमल को पहचान लेने से हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि क्या कारण था- सुमित के मर्डर का ! तब कोमल और सागर ने मेहनत से यह सबूत हासिल किये, जिसमें हमें सुमित अवस्थी और विमल की दुश्मनी समझ में आयी। विमल की नज़रें झुकी हुई थी। और सबूत चाहिये मिस्टर विमल?” भाटी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“लेकिन भाटी सर, जब सुमित का मर्डर हुआ तो मैं यहाँ नहीं था। मैं तो कोटा गया हुआ था।” विमल ने अपने बचाव का लास्ट तीर तरकश से निकाला।
“विमल इतने सबूत होने के बाद भी तुम समझते हो, बच जाओगे तो, यह तुम्हारी गलत फहमी है।”
“सुमित का मर्डर पाँच अगस्त को हुआ था और तीन तारीख को मैं कोटा चला गया था, जहाँ से बारह तारीख को वापस आया।” विमल ने कहा।
भाटी पुन: मुस्कुराया, “जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी, तब तुमने कहा था कि भाटी सर, सुमित का मर्डर हो गया, मुझे तो मालूम ही नहीं था। मैंने कई दिनों से अखबार नहीं पढ़ा। याद है अपने वाक्य?” भाटी के स्वर में व्यंग्य था।
विमल का सिर सहमति से हिला, “तो आज तुम्हें पाँच अगस्त की तारीख कैसे याद आ गयी? हममें से किसी ने कभी भी पाँच अगस्त का जिक्र नहीं किया है।”
“भाटी मुस्कुराते हुए बोला।” विमल झेंप गया, जल्दबाजी में बोला, “वह मैंने पुराने अखबार बाद में निकाल कर पढ़े थे, तो तारीख याद रह गयी।”
“बहुत खूब विमल। चलो कोई बात नहीं। यह बताओ, तुम कोटा तीन अगस्त को किस वाहन से गये थे?” भाटी ने सवाल पूछा।
“क्या मतलब है आपका?” विमल बोला।
“मतलब बस से गये, ट्रैन से गये या कोई और वाहन से गये थे?” भाटी ने सवाल पूछा।
“बस से गया था भाटी सर।” सोचतें हुए विमल बोला।
“कौन-सी बस से गये थे, प्राईवेट थी या रोडवेज की।”
“प्राईवेट बस थी सर।” विमल बोला।
“कितने बजे यहाँ से चले थे और कितने बजे कोटा पहुँचे थे?” भाटी ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा।
“सर दोपहर साढ़े तीन बजे चला था और दूसरे दिन सुबह सात बजे कोटा पहुँच गया था।”
“तुम सच कह रहे हो विमल, तीन तारीख को दोपहर साढ़े तीन बजे तुम बैठे और चार तारीख सात बजे कोटा पहुँचे।” भाटी ने विमल को घूरते हुए कहा।
विमल का सिर सहमति से हिला।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब
“रास्ते में तो कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई थी?”
“कैसी गड़बड़ सर? मुझे लगता है आप बातों में मुझे फँसा रहे हो, कोई गड़बड़ नहीं हुई थी।” विमल ने कहा। भाटी का सिर सहमति से हिला।
“कोई बात नहीं। लास्ट सवाल तुम किस बस से गये? मेरे कहने का मतलब है कि किस ट्रैवल की बस से गये थे? “
“चन्द्रा ट्रैवल की बस से गया था।” विमल बोला।
“क्यों? एक ही प्राईवेट बस चलती है?” भाटी ने पूछा।
“हाँ भाटी साहब, अब आप टिकट मत मांगना। मुझे मालूम होता कि यह सब होना है तो मैं टिकट संभाल कर रखता।
” गुस्से में विमल बोला।
“क्या तुम सच बोल रहे हो?” भाटी ने उसे चढ़ाया।
“बिलकुल सच कह रहा हूँ। टिकट नहीं दिखा सकता आपको।” विमल उखड़ कर बोला।
“कोई बात नहीं, टिकट मैं कहाँ मांग रहा हूँ। मैं कोई टिकट कलेक्ट करने वाला नहीं हूँ और जानता हूँ इतना पुराना टिकट कोई संभाल के नहीं रख सकता।” भाटी ने साधारण स्वर में कहा।
विमल ने शान्ति से गहरी सांस ली और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया।
“लेकिन विमल एक बात मेरे समझ में नहीं आयी। तीन अगस्त की रात को अजमेर से पहले एक एक्सीडेन्ट हुआ था, जिसमें कई लोगों की जान गयी, तो रोड तो पाँच से सात घंटे के लिये ब्लॉक था। वहाँ ट्रैफिक खुलने में काफी समय लगा तो तुम सुबह छः बजे तक कैसे राईट टाइम पर पहुँचे? जबकि चन्द्रा ट्रैवल की बस उस दिन दोपहर दो बजे कोटा पहुँची। मैं वहाँ की रिपोर्ट ला चुका हूँ। यह रही एक्सीडेन्ट की विस्तृत खबरें।” भाटी ने चार तारीख का अखबार दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका वहाँ पटकते हुए कहा।
“क्या तुम उड़ कर वहाँ पहुँचे? साढ़े पाँच बजे तो ट्रैफिक खुला था।” भाटी ने व्यंग्य से विमल की और देख कर कहा।
विमल की चोरी पकड़ी गयी। वह शर्म से जमीन पर गड़ गया। दो हवलदार उसके पास आकर खड़े हो गये। विमल यूँ लुटा-पिटा बैठा था कि जैसे जिन्दगी से बेजार हो गया था। सबकी नजरें वापस भाटी की तरफ उठीं। भाटी ने सबकी ओर देखा।
“साहेबान कहानी में एक मोड़ और है।”
विमल की नजरें उठ गयी। भाटी विमल की और देख कर बोला, “अभी तुम्हारे खिलाफ एक सबूत और है, जिसने तुम्हारा षड्यंत्र अपनी आँखों से देखा था।” भाटी बोला।
“यह नहीं हो सकता, उस समय वहाँ कोई दूसरा नहीं था।” विमल ने धीरे स्वर में कहा।
“चलो यह बात तो तुमने मानी, कि कहानी के सूत्र-संचालक तुम थे, लेकिन यह सत्य हैं। उस घटना को दो आँखों ने और देखा था।” भाटी ने कहा।
विमल ने हैरानी भरी निगाहों से भाटी को देखा।
“सर हमारा प्लान तो सही था, लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी, जब हम लोगों ने कार को टक्कर मारी और कार पेड़ से टकरा गयी तो सुमित अवस्थी उछल कर बाहर गिर गया और एक बड़े से पत्थर से टकराया था। उसका सिर फट गया था, खून भी निकलने लगा था। वह मर गया था। हम उसे उसी अवस्था में छोड़ कर आ गये थे। चंद्रेश के खिलाफ सबूत बिखेरकर, फिर दूसरे दिन पुलिस को लाश कुचली हुई कैसे मिली? जैसेकि उसकी पहचान तक ना हो सकी।” विमल ने उत्सुकता से भाटी की और देखा और दबे स्वर में बोला।
भाटी जोर से हँसा, फिर हँसता ही चला गया। सब हैरानी से भाटी को देखने लगे। भाटी थोड़ी देर हँसने के बाद शांत हुआ। फिर बोला, “दोस्तो, इस फरेबी दास्तान में कई मोड़ हैं, क्योंकि विमल और वंशिका ने सुमित का सर पत्थर से टकराते देख लिया था और सिर का खून देखा तो इन्होंने समझा कि सुमित अवस्थी मर चुका है, तो वह उसे उसी हालत में छोड़ कर चले गये। थोड़ी देर बाद सुमित अवस्थी, जो बुरी तरह से घायल था, हिल नहीं पा रहा था, उसका पूरा शरीर जख्मी हालत में पड़ा था, नशे की अवस्था में वह धीरे-धीरे बाहर आ रहा था। उसे अपनी कन्ड़ीशन का ध्यान आया। उसने उठने की कोशिश की, पर वह हिल भी नहीं पाया। उसका पूरा शरीर बेजान-सा था। तभी उसे अपने पास आहट की आवाज सुनाई दी। वह मन ही मन विमल और वंशिका को गाली दे रहा था। आहट सुनकर उसने गर्दन हिलाने की कोशिश की, पर हिला नहीं पाया। उसे लगा वंशिका और विमल अभी गये नहीं हैं। इसी से बचने के लिये उसने खुद को शांत कर लिया। उसने चलती सांसो को रोकने की कोशिश की। थोड़ी देर शांति रहने के बाद आहट फिर सुनाई दी। सुमित अवस्थी की आँखें खुली, फिर उसने जो नजारा देखा, उसे उस पर विश्वास नहीं हुआ। सामने वह व्यक्ति खड़ा था, जिससे उसने होटल में झगड़ा किया था। उसे बुरा भला कहा था। वह आदमी, जो उसको धमकी दे कर गया था कि वह उसे देख लेगा, छोड़ेगा नहीं। सुमित ने याचना पूर्ण निगाहों से उसे देखा। उस आदमी का पूरा चेहरा गुस्से से कांप रहा था। उस आदमी ने गुस्से में उसे देखा। “तू माफी के लायक नहीं हैं हरामजादे। ना जाने कितने घर तूने तबाह किये हैं। कितनी लड़कियों की इज्जत से तूने खिलवाड़ किया है, कितने लोगों को नशे की लत लगा कर उनकी जिन्दगी खराब की हैं, मैं तेरी सारी हिस्ट्री पता लगा कर आया हूँ। तेरी और खान की पार्टनरशिप के बारे में भी जानता हूँ। तूने कॉलेज, स्कूल और छोटे छोटे बच्चों को नशे की लत लगाई, तू जीने का हकदार नहीं। तेरा मर जाना ही बेहतर है। जो काम वे दोनों छोड़ गये थे, अब उस काम को मैं अन्जाम दूँगा। तुम सबकी नजरों में अब मर ही गये हो। तुम वापस उस दुनिया में आकर दूसरों का घर न उजाड़ सको। इसका इंतजाम करके ही मैं यहाँ से जाऊँगा।” कहकर उस व्यक्ति ने बड़ा-सा पत्थर उठाया और उस जख्मी सुमित अवस्थी पर तब तक मारता रहा, जब तक उसका चेहरा बिगड़ न गया और पूरी तरह शांत होकर यह तसल्ली करके कि सुमित अवस्थी मर चुका है। वह व्यक्ति वहाँ से निकला। भाटी की नजरें सब तरफ घूमी। सब रहस्यपूर्ण कहानी को ध्यान से सुन रहे थे। कमरे में ऐसी शान्ति छा गयी की सुई भी गिरें तों सुनाई दे जाये। सबका ध्यान भाटी की तरफ था।
“कौन था वह व्यक्ति?” कमिश्नर के स्वर में जिज्ञासा उभरी।
सब ध्यान से उसे देख रहें थे।
“इसका मतलब मैं कातिल नहीं क्योंकि उस समय सुमित जिन्दा था।” विमल ने हैरानी से भाटी की और देखते हुए कहा।
भाटी का सिर सहमति से हिला।
“कैसी गड़बड़ सर? मुझे लगता है आप बातों में मुझे फँसा रहे हो, कोई गड़बड़ नहीं हुई थी।” विमल ने कहा। भाटी का सिर सहमति से हिला।
“कोई बात नहीं। लास्ट सवाल तुम किस बस से गये? मेरे कहने का मतलब है कि किस ट्रैवल की बस से गये थे? “
“चन्द्रा ट्रैवल की बस से गया था।” विमल बोला।
“क्यों? एक ही प्राईवेट बस चलती है?” भाटी ने पूछा।
“हाँ भाटी साहब, अब आप टिकट मत मांगना। मुझे मालूम होता कि यह सब होना है तो मैं टिकट संभाल कर रखता।
” गुस्से में विमल बोला।
“क्या तुम सच बोल रहे हो?” भाटी ने उसे चढ़ाया।
“बिलकुल सच कह रहा हूँ। टिकट नहीं दिखा सकता आपको।” विमल उखड़ कर बोला।
“कोई बात नहीं, टिकट मैं कहाँ मांग रहा हूँ। मैं कोई टिकट कलेक्ट करने वाला नहीं हूँ और जानता हूँ इतना पुराना टिकट कोई संभाल के नहीं रख सकता।” भाटी ने साधारण स्वर में कहा।
विमल ने शान्ति से गहरी सांस ली और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया।
“लेकिन विमल एक बात मेरे समझ में नहीं आयी। तीन अगस्त की रात को अजमेर से पहले एक एक्सीडेन्ट हुआ था, जिसमें कई लोगों की जान गयी, तो रोड तो पाँच से सात घंटे के लिये ब्लॉक था। वहाँ ट्रैफिक खुलने में काफी समय लगा तो तुम सुबह छः बजे तक कैसे राईट टाइम पर पहुँचे? जबकि चन्द्रा ट्रैवल की बस उस दिन दोपहर दो बजे कोटा पहुँची। मैं वहाँ की रिपोर्ट ला चुका हूँ। यह रही एक्सीडेन्ट की विस्तृत खबरें।” भाटी ने चार तारीख का अखबार दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका वहाँ पटकते हुए कहा।
“क्या तुम उड़ कर वहाँ पहुँचे? साढ़े पाँच बजे तो ट्रैफिक खुला था।” भाटी ने व्यंग्य से विमल की और देख कर कहा।
विमल की चोरी पकड़ी गयी। वह शर्म से जमीन पर गड़ गया। दो हवलदार उसके पास आकर खड़े हो गये। विमल यूँ लुटा-पिटा बैठा था कि जैसे जिन्दगी से बेजार हो गया था। सबकी नजरें वापस भाटी की तरफ उठीं। भाटी ने सबकी ओर देखा।
“साहेबान कहानी में एक मोड़ और है।”
विमल की नजरें उठ गयी। भाटी विमल की और देख कर बोला, “अभी तुम्हारे खिलाफ एक सबूत और है, जिसने तुम्हारा षड्यंत्र अपनी आँखों से देखा था।” भाटी बोला।
“यह नहीं हो सकता, उस समय वहाँ कोई दूसरा नहीं था।” विमल ने धीरे स्वर में कहा।
“चलो यह बात तो तुमने मानी, कि कहानी के सूत्र-संचालक तुम थे, लेकिन यह सत्य हैं। उस घटना को दो आँखों ने और देखा था।” भाटी ने कहा।
विमल ने हैरानी भरी निगाहों से भाटी को देखा।
“सर हमारा प्लान तो सही था, लेकिन एक बात समझ में नहीं आयी, जब हम लोगों ने कार को टक्कर मारी और कार पेड़ से टकरा गयी तो सुमित अवस्थी उछल कर बाहर गिर गया और एक बड़े से पत्थर से टकराया था। उसका सिर फट गया था, खून भी निकलने लगा था। वह मर गया था। हम उसे उसी अवस्था में छोड़ कर आ गये थे। चंद्रेश के खिलाफ सबूत बिखेरकर, फिर दूसरे दिन पुलिस को लाश कुचली हुई कैसे मिली? जैसेकि उसकी पहचान तक ना हो सकी।” विमल ने उत्सुकता से भाटी की और देखा और दबे स्वर में बोला।
भाटी जोर से हँसा, फिर हँसता ही चला गया। सब हैरानी से भाटी को देखने लगे। भाटी थोड़ी देर हँसने के बाद शांत हुआ। फिर बोला, “दोस्तो, इस फरेबी दास्तान में कई मोड़ हैं, क्योंकि विमल और वंशिका ने सुमित का सर पत्थर से टकराते देख लिया था और सिर का खून देखा तो इन्होंने समझा कि सुमित अवस्थी मर चुका है, तो वह उसे उसी हालत में छोड़ कर चले गये। थोड़ी देर बाद सुमित अवस्थी, जो बुरी तरह से घायल था, हिल नहीं पा रहा था, उसका पूरा शरीर जख्मी हालत में पड़ा था, नशे की अवस्था में वह धीरे-धीरे बाहर आ रहा था। उसे अपनी कन्ड़ीशन का ध्यान आया। उसने उठने की कोशिश की, पर वह हिल भी नहीं पाया। उसका पूरा शरीर बेजान-सा था। तभी उसे अपने पास आहट की आवाज सुनाई दी। वह मन ही मन विमल और वंशिका को गाली दे रहा था। आहट सुनकर उसने गर्दन हिलाने की कोशिश की, पर हिला नहीं पाया। उसे लगा वंशिका और विमल अभी गये नहीं हैं। इसी से बचने के लिये उसने खुद को शांत कर लिया। उसने चलती सांसो को रोकने की कोशिश की। थोड़ी देर शांति रहने के बाद आहट फिर सुनाई दी। सुमित अवस्थी की आँखें खुली, फिर उसने जो नजारा देखा, उसे उस पर विश्वास नहीं हुआ। सामने वह व्यक्ति खड़ा था, जिससे उसने होटल में झगड़ा किया था। उसे बुरा भला कहा था। वह आदमी, जो उसको धमकी दे कर गया था कि वह उसे देख लेगा, छोड़ेगा नहीं। सुमित ने याचना पूर्ण निगाहों से उसे देखा। उस आदमी का पूरा चेहरा गुस्से से कांप रहा था। उस आदमी ने गुस्से में उसे देखा। “तू माफी के लायक नहीं हैं हरामजादे। ना जाने कितने घर तूने तबाह किये हैं। कितनी लड़कियों की इज्जत से तूने खिलवाड़ किया है, कितने लोगों को नशे की लत लगा कर उनकी जिन्दगी खराब की हैं, मैं तेरी सारी हिस्ट्री पता लगा कर आया हूँ। तेरी और खान की पार्टनरशिप के बारे में भी जानता हूँ। तूने कॉलेज, स्कूल और छोटे छोटे बच्चों को नशे की लत लगाई, तू जीने का हकदार नहीं। तेरा मर जाना ही बेहतर है। जो काम वे दोनों छोड़ गये थे, अब उस काम को मैं अन्जाम दूँगा। तुम सबकी नजरों में अब मर ही गये हो। तुम वापस उस दुनिया में आकर दूसरों का घर न उजाड़ सको। इसका इंतजाम करके ही मैं यहाँ से जाऊँगा।” कहकर उस व्यक्ति ने बड़ा-सा पत्थर उठाया और उस जख्मी सुमित अवस्थी पर तब तक मारता रहा, जब तक उसका चेहरा बिगड़ न गया और पूरी तरह शांत होकर यह तसल्ली करके कि सुमित अवस्थी मर चुका है। वह व्यक्ति वहाँ से निकला। भाटी की नजरें सब तरफ घूमी। सब रहस्यपूर्ण कहानी को ध्यान से सुन रहे थे। कमरे में ऐसी शान्ति छा गयी की सुई भी गिरें तों सुनाई दे जाये। सबका ध्यान भाटी की तरफ था।
“कौन था वह व्यक्ति?” कमिश्नर के स्वर में जिज्ञासा उभरी।
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Re: Thriller फरेब
“वह कातिल कौन था सर?” निरंजन ने पूछा।
सबकी नजरें भाटी की तरफ उठी। भाटी ने ऊँगली एक व्यक्ति की तरफ की, सबकी नजरें उस व्यक्ति पर गड़ गयी। निशा हैरानी से उछल पड़ी। सबका ध्यान अमन ओबरॉय की तरफ था, जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह भावहीन था। उसके चेहरे पर न दुख के भाव थे न ही पश्चाताप के।
उसने खड़े होकर कहा, “मुझे अपने किये पर कोई पश्चाताप नहीं मिस्टर भाटी, सुमित अवस्थी के कर्म ही ऐसे थे। उसने मेरी जिन्दगी तबाह कर दी थी, निशा ने मेरे साथ फरेब किया। मैंने इसे दिल से चाहा, पर इसे मेरे जज्बात की कदर नहीं थी। मैं कहीं पर भी रहता हूँ पर मुझे इसके पल-पल की खबर थी। पहले मैंने सोचा था, कि वक्त रहते यह सुधर जायेगी पर इसका रवैया नहीं सुधरा। यह जिस होटल में जिसके साथ जाती, मुझे तुरन्त ही सब खबर मिल जाती थी। खैर, सुमित उसी के काबिल था। मैंने उसे सही सजा दी है। अब आप जो सजा देंगे, मुझे कबूल होगी।”
भाटी का सिर सहमति से हिला। बोला, “आपको सजा देने का अधिकार कानून का है मिस्टर ओबरॉय। हमारा काम केवल सच्चाई सामने लाने का है।”
अमन ओबरॉय की गर्दन सहमति से हिली।
वह वापस कुर्सी पर बैठ गया। एक मर्डर का केस हल हो गया था।
“आपको इस बात की खबर कब मिली सर, कि कातिल अमन ओबरॉय हैं?” विमल ने सवाल किया।
“जब हम टोल नाके पर पूछताछ कर रहे थे तो कर्मचारियों ने कहा कि वंशिका और सुमित अवस्थी की कार के पीछे केवल एक कार गुजरी। वह अमन ओबरॉय की थी। कार का रंग पता किया और होटल मैनेजर से सुमित अवस्थी के झड़प होने वाले व्यक्ति की कार का पता किया, तो दोनों एक ही व्यक्ति की निकली। अमन ओबरॉय की। मैं सही बोल रहा हूँ ना अमन साहब।”
अमन ने हाँ में सिर हिलाया।
“उस दिन मुझे खबर मिली कि निशा शाम पाँच से आठ बजे तक सुमित अवस्थी के पास थी, तो गुस्से में मुझसे रहा नहीं गया और मैं सुमित अवस्थी को समझाने गया कि मेरी बीवी से दूर रहे, तो उसने निशा के बारे में जो बातें बताई, वह मुझ से बर्दास्त नहीं हुई और हमारी हाथापाई की नौबत आ गयी। उस दिन मैं उतने गुस्से में था कि सुमित अवस्थी का वहीं मर्डर कर देता, फिर में गुस्से में बाहर निकला और उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा। थोड़ी देर बाद सुमित नशे की हालत में अपनी कार में दिखा, जिसे वंशिका चला रही थी। मैंने उनका पीछा किया। जो मैं करने की सोच रहा था, उस घटना को वह दोनों अंजाम दे रहे थे। उन्होंने सबूत चंद्रेश मल्होत्रा के खिलाफ फैलाये, मुझे उससे क्या? कोई भी फँसे। मतलब तो सुमित अवस्थी के मर्डर से था। उन दोनों के जाने के बाद मैं भी जाने के लिये निकला, तो देखा कि सुमित अभी भी जिन्दा है। मेरा खून खौल उठा और मेरे आगे वह सारे सीन चलने लगे, होटल वाले। उसने मुझ से माफी माँगी, पर मुझ पर खून सवार था।” अमन ओबरॉय बोलते-बोलते उत्तेजित हो गया।
सबके सिर सहमति से हिले, तभी निरंजन ने सवाल किया, “सर हो सकता था कि अमन ओबरॉय जब वंशिका के पीछे टोल नाके से निकले, तब कहीं दूसरी जगह जाने के लिये निकले हो, आपको सन्देह कब हुआ?” निरंजन ने रहस्य पूर्ण स्वर में कहा।
“माउंट आबू से आबू रोड का रास्ता आधे घंटे का है। आने जाने में एक घंटा लगता है और अमन ओबरॉय किसी काम से उतरे, तो एक आध घंटा और समझ लो, लेकिन अमन ओबरॉय की गाड़ी वापस एक घंटे में लौटी। यानी नीचे उतर कर वापस ऊपर चढ़ना, यह बात मुझे हजम नहीं हुई।” भाटी बोला।
निरंजन ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
“एक और सवाल सर।” भाटी की नजरें निरंजन की तरफ मुड़ी।
“सर सुमित अवस्थी की गाड़ी पेड़ से भिड़ जाने के बाद, विमल-वंशिका ऊपर तो पहुँचे नहीं। नीचे किस तरह गये?”
भाटी की नजरें विमल से टकराई। विमल ने सबको देखा। धीमे से सर झुकाया और बोला, “मैं एक बाईक वहाँ झाङियों में छुपाकर आया था, ताकि जाते समय हमें कोई दिक्कत न हो।”
सबकी नजरें विमल की तरफ थी।
निरंजन ने धीरे से सिर हिलाया।
जैसे वह सब कुछ समझ गया हो।
“साला गद्दार, यार मार।” चंद्रेश बोला।
“मल्होत्रा साहब ! आप के मन में क्या चल रहा हैं?” भाटी चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।
“मेरे मन में एक सवाल है सर, जब सारे सवाल का उत्तर मिल गया है, तो यह क्यों बाकि रहे।” विमल ने पूछा।
“क्या कहना चाहते हो?” भाटी ने सवाल किया।
“सर जब चंद्रेश मल्होत्रा, मेरे और वंशिका के बारे में जान गया था, तो उस समय मुझसे क्यों नहीं उलझा। ना ही मेरे खिलाफ उसने कुछ कार्यवाही की।” विमल अपनी उत्तेजना छुपाता हुआ बोला।
“जहाँ तक मेरा ख्याल है, उस समय चंद्रेश की पहली प्राथमिकता वंशिका का पर्दाफाश करना था, दूसरा उसका पूरा ध्यान सुमित मर्डर केस में उलझा हुआ था और तुमने नकली वंशिका की पहचान कर दी तो उस समय तुम ही इसके साथ खड़े थे। इसलिये इसने तुम्हारे साथ कोई बेअदबी नहीं की।” भाटी ने चंद्रेश की तरफ देख कर कहा।
“आपने सही कहा भाटी साहब और इसके अलावा दूसरी बात यह थी कि लोगों को यह मालूम पड़ता कि वंशिका चरित्रहीन थी, जो मैं नहीं चाहता था।”
चंद्रेश की यह बात सुनकर भाटी के मन में चंद्रेश प्रति इज्जत बढ़ गयी, बोला, “और किसी को कुछ पूछना है?”
" मैं एक बात जानना चाहता हूं सर? " विमल ने भाटी की और देख कर कहा।
"क्या जानना चाहते हैं। मिस्टर विमल? " भाटी ने सवाल पूछा।
"सर जब पहली बार निरंजन वंशिका की असलियत जानने चंद्रेश के घर गये उस समय चंद्रेश एलबम ढूढ़ने लगा जिस में वंशिका की तस्वीर थी आज के मोर्डन जमाने में किसे एलबम की याद रहती हैं। आज कल तो लोगो के हाथ में मोबाइल की सुविधा है। क्या वंशिका की एक भी तस्वीर चंद्रेश के मोबाइल में नही थी। जिससे यह प्रूफ होता की कोमल असली वंशिका नही है " विमल ने सवाल पूछा। सब दिलचस्पी से भाटी के जबाव का इंतजार कर रहे थें। विमल नें एकदम सही सवाल पूछा।
सबकी नजरें भाटी की तरफ उठी। भाटी ने ऊँगली एक व्यक्ति की तरफ की, सबकी नजरें उस व्यक्ति पर गड़ गयी। निशा हैरानी से उछल पड़ी। सबका ध्यान अमन ओबरॉय की तरफ था, जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह भावहीन था। उसके चेहरे पर न दुख के भाव थे न ही पश्चाताप के।
उसने खड़े होकर कहा, “मुझे अपने किये पर कोई पश्चाताप नहीं मिस्टर भाटी, सुमित अवस्थी के कर्म ही ऐसे थे। उसने मेरी जिन्दगी तबाह कर दी थी, निशा ने मेरे साथ फरेब किया। मैंने इसे दिल से चाहा, पर इसे मेरे जज्बात की कदर नहीं थी। मैं कहीं पर भी रहता हूँ पर मुझे इसके पल-पल की खबर थी। पहले मैंने सोचा था, कि वक्त रहते यह सुधर जायेगी पर इसका रवैया नहीं सुधरा। यह जिस होटल में जिसके साथ जाती, मुझे तुरन्त ही सब खबर मिल जाती थी। खैर, सुमित उसी के काबिल था। मैंने उसे सही सजा दी है। अब आप जो सजा देंगे, मुझे कबूल होगी।”
भाटी का सिर सहमति से हिला। बोला, “आपको सजा देने का अधिकार कानून का है मिस्टर ओबरॉय। हमारा काम केवल सच्चाई सामने लाने का है।”
अमन ओबरॉय की गर्दन सहमति से हिली।
वह वापस कुर्सी पर बैठ गया। एक मर्डर का केस हल हो गया था।
“आपको इस बात की खबर कब मिली सर, कि कातिल अमन ओबरॉय हैं?” विमल ने सवाल किया।
“जब हम टोल नाके पर पूछताछ कर रहे थे तो कर्मचारियों ने कहा कि वंशिका और सुमित अवस्थी की कार के पीछे केवल एक कार गुजरी। वह अमन ओबरॉय की थी। कार का रंग पता किया और होटल मैनेजर से सुमित अवस्थी के झड़प होने वाले व्यक्ति की कार का पता किया, तो दोनों एक ही व्यक्ति की निकली। अमन ओबरॉय की। मैं सही बोल रहा हूँ ना अमन साहब।”
अमन ने हाँ में सिर हिलाया।
“उस दिन मुझे खबर मिली कि निशा शाम पाँच से आठ बजे तक सुमित अवस्थी के पास थी, तो गुस्से में मुझसे रहा नहीं गया और मैं सुमित अवस्थी को समझाने गया कि मेरी बीवी से दूर रहे, तो उसने निशा के बारे में जो बातें बताई, वह मुझ से बर्दास्त नहीं हुई और हमारी हाथापाई की नौबत आ गयी। उस दिन मैं उतने गुस्से में था कि सुमित अवस्थी का वहीं मर्डर कर देता, फिर में गुस्से में बाहर निकला और उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा। थोड़ी देर बाद सुमित नशे की हालत में अपनी कार में दिखा, जिसे वंशिका चला रही थी। मैंने उनका पीछा किया। जो मैं करने की सोच रहा था, उस घटना को वह दोनों अंजाम दे रहे थे। उन्होंने सबूत चंद्रेश मल्होत्रा के खिलाफ फैलाये, मुझे उससे क्या? कोई भी फँसे। मतलब तो सुमित अवस्थी के मर्डर से था। उन दोनों के जाने के बाद मैं भी जाने के लिये निकला, तो देखा कि सुमित अभी भी जिन्दा है। मेरा खून खौल उठा और मेरे आगे वह सारे सीन चलने लगे, होटल वाले। उसने मुझ से माफी माँगी, पर मुझ पर खून सवार था।” अमन ओबरॉय बोलते-बोलते उत्तेजित हो गया।
सबके सिर सहमति से हिले, तभी निरंजन ने सवाल किया, “सर हो सकता था कि अमन ओबरॉय जब वंशिका के पीछे टोल नाके से निकले, तब कहीं दूसरी जगह जाने के लिये निकले हो, आपको सन्देह कब हुआ?” निरंजन ने रहस्य पूर्ण स्वर में कहा।
“माउंट आबू से आबू रोड का रास्ता आधे घंटे का है। आने जाने में एक घंटा लगता है और अमन ओबरॉय किसी काम से उतरे, तो एक आध घंटा और समझ लो, लेकिन अमन ओबरॉय की गाड़ी वापस एक घंटे में लौटी। यानी नीचे उतर कर वापस ऊपर चढ़ना, यह बात मुझे हजम नहीं हुई।” भाटी बोला।
निरंजन ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
“एक और सवाल सर।” भाटी की नजरें निरंजन की तरफ मुड़ी।
“सर सुमित अवस्थी की गाड़ी पेड़ से भिड़ जाने के बाद, विमल-वंशिका ऊपर तो पहुँचे नहीं। नीचे किस तरह गये?”
भाटी की नजरें विमल से टकराई। विमल ने सबको देखा। धीमे से सर झुकाया और बोला, “मैं एक बाईक वहाँ झाङियों में छुपाकर आया था, ताकि जाते समय हमें कोई दिक्कत न हो।”
सबकी नजरें विमल की तरफ थी।
निरंजन ने धीरे से सिर हिलाया।
जैसे वह सब कुछ समझ गया हो।
“साला गद्दार, यार मार।” चंद्रेश बोला।
“मल्होत्रा साहब ! आप के मन में क्या चल रहा हैं?” भाटी चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।
“मेरे मन में एक सवाल है सर, जब सारे सवाल का उत्तर मिल गया है, तो यह क्यों बाकि रहे।” विमल ने पूछा।
“क्या कहना चाहते हो?” भाटी ने सवाल किया।
“सर जब चंद्रेश मल्होत्रा, मेरे और वंशिका के बारे में जान गया था, तो उस समय मुझसे क्यों नहीं उलझा। ना ही मेरे खिलाफ उसने कुछ कार्यवाही की।” विमल अपनी उत्तेजना छुपाता हुआ बोला।
“जहाँ तक मेरा ख्याल है, उस समय चंद्रेश की पहली प्राथमिकता वंशिका का पर्दाफाश करना था, दूसरा उसका पूरा ध्यान सुमित मर्डर केस में उलझा हुआ था और तुमने नकली वंशिका की पहचान कर दी तो उस समय तुम ही इसके साथ खड़े थे। इसलिये इसने तुम्हारे साथ कोई बेअदबी नहीं की।” भाटी ने चंद्रेश की तरफ देख कर कहा।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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