Thriller फरेब

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

“तुम न्यूज पेपर नहीं पढ़ते?” भाटी ने पूछा।

“सर मैं बीच में कुछ दिनों के लिये एक काम के सिलसिले में कोटा गया हुआ था।” विमल ने सहज स्वर में कहा।

“ओह, तभी तुम्हें कुछ नहीं पता।” भाटी ने कहा।

निरंजन ने भाटी और विमल की ओर देखते हुए कहा, “विमल, अगर सुमित अवस्थी माउंट आबू आया, तो इसका मतलब है कि कोई और उसकी पहचान का होगा।”

“हाँ विमल, अब पूरी जानकारी दो सुमित के बारे में। क्या-क्या जानते हो?” भाटी जल्दी से बोला।

“सर आज से पाँच साल पहले सुमित और मैं एक साथ उदयपुर में सुखाड़िया कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे। वहाँ हमारे कई और भी दोस्त थे।” विमल ने अपने स्वर को विराम दिया और बोला, “पहले सुमित को कॉलेज में कोई पसंद नहीं करता था, क्योंकि उसे अपने मंत्री बाप के पैसे और पोस्ट का घमंड था। लड़कियाँ उसे नापंसद करती थीं। उसकी गुण्डागर्दी से कॉलेज का हर इंसान दुखी था। फिर कॉलेज में इलेक्शन हुआ, जिसमें सुमित अवस्थी की हार हुई। फिर उसमें बदलाव आया। वह रिजर्व रहने लगा। उसकी गुण्डागर्दी भी खत्म हो गयी। वह लोगों से कम बात करने लगा। उसी समय हमारी दोस्ती बढ़ी। वह किक्रेट का बहुत अच्छा खिलाड़ी भी था। एक बात मैंने और महसूस की, जैसे उसे किसी से प्यार हो गया हो, क्योंकि अचानक वह उदास रहने लगा था। बातों-बातों में यूँ लगता, जैसे कि वह कहीं खो जाता हो।” विमल जैसे सपनों की दुनिया से बाहर निकला।

“कुछ बताता था किसी के बारे में?” निरंजन ने शान्त स्वर में पूछा।

“कॉलेज में कई लड़कियाँ थी, लेकिन हम पर यह राज अन्त तक नहीं खुला।” विमल ने उबासी लेते हुए कहा।

“हाँ भई, रात बहुत हो गयी है। थोड़ा आराम कर लेते हैं। बाकि बातें कल करेंगे। चलो थोड़ी तो जानकारी मिली।” भाटी ने कहा।

“मुझे भी नींद आ रही हैं सर।” निरंजन ने कहा।

“ठीक है सर, मैं तो ड्यूटी पर हूँ। आप लोगों को रेस्ट रुम ले चलता हूँ।” विमल बोला।

“चलो निरंजन, अब वहीं नींद आयेगी। सोफे पर लेटे-लेटे शरीर अकड गया है।” भाटी ने उठते हुए कहा।

तभी भाटी के मोबाइल की घण्टी बजी, “हैलो सर।” शंकर दयाल की आवाज कानों में पड़ी।

“कहो शंकर, कैसे फोन किया?”

“सर थाने में एक आदमी आया है। कहता है कि आप से जरूरी काम है। अभी मिलना चाहता है।”

“अभी तो मैं नीचे रेलवे स्टेशन पर हूँ। सुबह ऊपर माउंट आबू आऊँगा [आबू रेलवे स्टेशन से माउंट आबू 27 किलोमीटर ऊपर पहाड़ पर बसा हिल स्टेशन है।] उससे कहो सुबह आकर मिले।” यह कह कर भाटी ने मोबाइल जेब में रखा।

“किसका फोन था सर?” निरंजन ने पूछा।

“कुछ नहीं यार, थाने से फोन था। कोई मिलना चाहता है। मैंने कह दिया कि अभी नीचे स्टेशन पर हूँ। अब सुबह ही आबू आऊँगा।” भाटी बोला

“हाँ सर, अभी 27 किलोमीटर ऊपर माउंट जाने में तो हमारी आईसक्रीम बन जायेगी।” निरंजन ने ठंड से ठिठुरते हुए कहा।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

सुबह साढ़े आठ बजे पुलिस की जीप सांप की तरह बलखाती सड़क पर आगे बढ़ रही थी। एक तरफ खाई और एक तरफ हरे-भरे पेड़ से ढ़के पहाड़ ओर पेड़ों से ढ़की सड़क यूँ महसूस होता कि गाड़ी अब खाई में गिरी कि तब गिरी
“सर शानदार मौसम है, लेकिन रास्ता काफी खतरनाक है।” निरंजन ने भाटी की तरफ देख कर कहा
“हां निरंजन, जरा-सी चूक जीप को हजारों फुट नीचे खाई में गिरा सकती है।” भाटी ने जीप चलाते हुए कहा।
“यह तो अच्छा हैं सर, आज मौसम खुला हुआ हैं। धुंध नहीं छाई, वरना ड्राईविंग करना मुश्किल हो जाता।” निरंजन ने कहा, भाटी का सिर सहमति से हिला।
अचानक ही एक गाड़ी सामने से आती हुई दिखायी दी। भाटी का मूड परिवर्तन हो गया। भाटी ने निरंजन को पुकारा, निरंजन खूबसूरत नजारों में खोया हुआ था। भाटी का मूड देख कर बोला, “हाँ सर।” भाटी ने गाड़ी रोक दी।
“सुमित अवस्थी की गाड़ी भी यहीं मिली, ऐसा लग रहा था, जैसे किसी पेड़ से टकरा गयी हो और सुमित की बॉडी वहाँ नीचे मिली।’’ भाटी ने सोचते हुए कहा।
“एक्सीडेन्ट हो गया होगा सर।’’
“नहीं एक्सीडेन्ट नहीं हो सकता, क्योंकि गाड़ी से टकरा कर नीचे गिरने से चेहरे पर खरोंच के निशान आ सकते हैं।” भाटी सोचते हुए बोला।
“हाँ सर, यही होना चाहिये।’’ निरंजन ने नीचे देखते हुए कहा।
“लेकिन ऐसा नहीं हुआ। निरंजन की बॉडी का चेहरा पूरी तरह कुचला हुआ था। ऐसा लगता था, जैसे पत्थर से मारकर उसका चेहरा बिगाड़ दिया गया हो।”
“हो सकता हैं, किसी पत्थर से उसका चेहरा टकराया हो।” निरंजन ने कहा।
“नहीं निरंजन, ऐसा नहीं हो सकता। मुझे लगता हैं कत्ल कहीं और हुआ है और उसके बाद उसे एक्सीडेन्ट का रुप दिया गया है, क्योंकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सुमित की बॉडी से पता चलता है कि वह बहुत नशे में था।” भाटी ने सोचते हुए कहा।
“सर कुछ फिंगर प्रिन्ट मिले?”
“नहीं भाई, कत्ल बहुत सोच-समझ कर किया गया है।”
“किसी तरह के कोई सबूत नहीं मिले। कातिल ने बड़ी चालाकी से यह दिखाने की कोशिश की है कि यह एक एक्सीडेन्ट है।” भाटी बोला।
“हो सकता है कि आप ठीक कह रहे हों।” निरंजन ने कहा।
“कातिल से एक चूक हो गयी जिसकी तरफ उसने ध्यान नहीं दिया।’’ भाटी कुछ सोचते हुए बोला।
“क्या चूक हो गयी है सर?’’
“फिंगर प्रिन्ट एक्सपर्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि स्टेयरिंग पर कोई फिंगर प्रिन्ट नहीं मिले, न ही ब्रेक पैडल पर कोई निशान मिले।” भाटी ने कहा।
“हो सकता है कि कातिल ने पोंछ दिये होंगे।” निरंजन ने साधारण स्वर में कहा।
“क्या हो गया तुम्हारे दिमाग को निरंजन, अगर कातिल यह साबित करना चाहता है कि मौत एक्सीडेन्ट के कारण हुई है, तो उसको उसके फिंगर प्रिन्ट स्टेयरिंग पर जरूर बनाने चाहिये थे।” भाटी ने कहा।
“और सर, जब गाड़ी बैलेन्स से बाहर हुई, तो लाजमी है, ब्रेक पर पैर पड़ना भी।” निरंजन ने कहा।
“यही तो मैं कहना चाहता हूँ। कातिल से चूक हो गयी है।” भाटी का स्वर गंभीर था।
“सर, मैं अब आपके कहने का मतलब समझ रहा हूँ। आप कहना चाहते हैं कि मर्डर कहीं और हुआ है, और बॉडी को यहाँ शिफ्ट किया गया है, ताकि एक्सीडेन्ट की स्टेज सेट की जा सके।’’ निरंजन ने कहा।
“मैं भी यही कहना चाहता हूँ निरंजन, इसलिये तुम्हें वक्त से पहले, यानी तुम्हारी छुट्टी खत्म होने से पहले बुलाया, ताकि तुम मेरा साथ दे सको।’’ भाटी ने कहा
“जी सर, मैं भी इस केस की छानबीन शुरु करता हूँ।” निरंजन ने कहा।
“चलो निरंजन, चला जाये, काफी देर हो गयी है।” भाटी ने जीप की तरफ बढ़ते हुए कहा।
“हाँ सर, अब चलना चाहिये।’’ निरंजन ने भाटी की बात का सर्मथन किया।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

जीप थाने के अहाते में आकर रूकी। निरंजन और भाटी अपनी कैप संभालते हुए अन्दर की तरफ बढ़े।
“जय हिन्द सर।” राम सेवक ने कहा।
“जय हिन्द राम सेवक, कैसे हो?” निरंजन ने पूछा
“ठीक हूँ सर, आपकी कृपा-दृष्टि है।” राम सेवक ने कहा।
“सर, कोई ऑफिस में आप का इंतजार कर रहा है।’’ राम सेवक भाटी को देखते हुए बोला।
“कौन है?”
“पता नहीं सर, कल रात से आपका इतंजार कर रहा है। मैंने कहा, साहब सुबह आयेंगे, तो कहने लगा, मिल कर ही जाऊँगा।” राम सेवक बोला।
“क्या रात से यही है?’’ भाटी के स्वर में अचरज के भाव थे।
“चलो, मिल लेते हैं।’’ भाटी ने ऑफिस का दरवाजा खोलते हुए कहा।
“अन्दर भेजो।’’ भाटी चेयर पर बैठता हुआ बोला
थोड़ी देर में चंद्रेश मल्होत्रा अन्दर आया, “सुप्रभात सर।’’ भाटी की तरफ देख कर बोला।
“विराजिये, कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?” भाटी ने चंद्रेश को देखते हुए कहा।
“सर, मैं एक मुसीबत में फँस गया हूँ। आपकी मदद चाहिये।”
“ठीक है, वह तो हम करेंगे ही, पहले आप अपना परिचय तो दीजिये।’’ भाटी ने साधारण स्वर में कहा।
“सर, मैं चंद्रेश मल्होत्रा, नक्की झील पर मेरा बोटिंग का ठेका है।” चंद्रेश ने अपना परिचय देते हुए कहा।
“ओह, तुम अरमान मल्होत्रा की इकलौती सन्तान चंद्रेश मल्होत्रा हो?’’ भाटी के स्वर में अचरज था।
“जी सर, आप मेरे पिताजी को जानते हैं?’’ चंद्रेश ने खुशी व्यक्त की।
“तुम्हारे पिताजी से एक काम के सिलसिले में मुलाकात हुई थी। अच्छे आदमी थे, उन्हें पैसों का घमंड नाममात्र का भी नहीं था।” भाटी ने शांत स्वर में कहा।
“कहो, क्या समस्या है?”
“सर, कल रात से मेरे घर में एक महिला घुसी हुई है, जो मुझे अपना पति बता रही है।’’ चंद्रेश ने जल्दी से कहा।
“क्या? ऐसे कैसे हो सकता है?” चौंकते हुए भाटी ने कहा।
“जी, वह जिद कर रही है कि वह मेरी पत्नी वंशिका है।”
“ऐसा कैसे हो सकता है?”
“सर, मुझे किसी षड्यंत्र की बू आ रही है। इसलिये मैं रिपोर्ट लिखवाने आया हूँ।”
“अरे ऐसे कैसे कोई तुम्हारी बीवी की जगह ले सकता है?” भाटी बोला।
चंद्रेश ने भाटी को देखा। भाटी पुनः बोला, “तुम उधर काँस्टेबल के पास रिपोर्ट लिखाओ। हम दो मिनिट में उसे फ्रॉड साबित कर देंगे।” भाटी बोला।
चंद्रेश उठा और रिपोर्ट लिखाने लगा।
भाटी ने निरंजन को बुलाया। थोड़ी देर में दरवाजा खुला और निरंजन अन्दर आया।
“जी सर, आप ने बुलाया।”
“हाँ बैठो, निरंजन यह मल्होत्रा साहब हैं। आजकल यह एक अजीब समस्या से घिरे हुए हैं। तुम जाकर देखो कि समस्या क्या है?” यह कह कर भाटी ने निरंजन के केस के बारे में बताया।
“आप चिन्ता ना करें सर, मैं जाकर समस्या सुलझा देता हूँ। दो मिनिट में दूध का दूध पानी का पानी कर देता हूँ। ऐसा केस पहली बार थाने में आया है।’’ निरंजन समान्य स्वर में बोला।
“निरंजन यह मुझे रुपए-पैसे या जायदाद हड़पने का षड्यंत्र लगता है। तुम संभलकर केस पर काम करना। कोई दिक्कत या परेशानी आये, तो मुझ से सम्पर्क कर लेना।” भाटी ने उठते हुए कहा।
“आज कमिश्नर सर ने मंत्रीजी से मुलाकात करने को कहा है। मैं वहीं जा रहा हूँ।” भाटी बोला।
“ठीक है सर, आप वहाँ जाइये, यह साधारण केस है, मैं देख लूँगा।” निरंजन उठते हुए बोला।
भाटी कमिश्नर से मिलने के लिये रवाना हो गया।
“चलिये मल्होत्रा साहब, अब आपकी समस्या सुलझा ली जाये। देखें क्या किस्सा है?’’
“चलिये सर।” मल्होत्रा ने उठते हुए कहा। दोनों चंद्रेश की कार में बैठ गये।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
राहुल मकरानी एक 36 वर्षीय खूबसूरत नौजवान, शानदार चेहरा, छोटी आँखें, फौजी कट बाल, कान में कुण्डल पहने फैशन से रहने वाला राहुल पूरी तरह चमक रहा था। काले रंग का थ्री पीस सूट पहने होटल पद्मावती के आगे चहल-कदमी कर रहा था। उसके हाथ में जली सिगरेट खत्म होने की कगार पर थी। ऐसा लगता था, जैसे वह किसी का इंतजार कर रहा हो। वह बिलकुल फिल्म स्टार मोहनीश बहल जैसा लगता था। तभी होटल के बाहर एक इनोवा कार आकर रुकी।
कार को देख कर राहुल मकरानी ने अपनी बुझी सिगरेट को जमीन पर फेंक जूतों से मसला और इनोवा की तरफ बढ़ा। इनोवा का दरवाजा खुला और उसके अन्दर से एक कयामत के रुप में निशा ओबरॉय बाहर निकली, राहुल की धड़कने जैसे बढ़ सी गयीं हो। अप्सरा लोक से एक अप्सरा धरती पर उतर आयी, ऐसा लगा। ऐसी अप्सरा, जिसे भगवान ने अपने खुद अपने हाथों से बनाया हो। चाँद के समान चमकता और गुलाब के फूल के भांति खिला चेहरा। चकित कर देने वाली बड़ी-बड़ी काली पुतलियाँ, गुलाब की पखुंड़ियों जैसे अलग से उभरे हुए रसधार होंठ, लम्बी सुन्दर गर्दन। उसने लाल रंग की गोल गले वाली टी-शर्ट पहन रखी थी और पैरों में काले रंग की टाईट जीन्स चिपकी हुई थी। उस पर काली जैकेट उसकी खूबसूरती बढ़ा रही थी। वह राहुल को देख शान्त भाव से मुस्कुरायी। राहुल ने उसका हाथ पकड़ा और होटल पद्मावती के अन्दर ले गया। अन्दर उनके लिये टेबल रिजर्व थी। उनके कुर्सी पर बैठते ही एक वेटर सफेद वर्दी पहने उनकी टेबल पर पहुँचा।
वेटर ने अदब से पूछा, “कुछ लेंगे सर?”
“दो कॉफी ले आओ, बाकि ऑर्डर बाद में देंगे।’’ राहुल ने कहा। वेटर सिर झुका कर चला गया। निशा ने अपनी नजर राहुल पर गड़ाई।
“कैसे हो राहुल? आज अचानक मेरी याद कैसे आ गयी? किश्त तो पहुँच गयी होगी ना?”
“हाँ, किश्त पहुँच गयी, लेकिन क्या कोई कारण हो, तभी तुम्हारी याद आयेगी।” राहुल के स्वर में चंचलता थी।
“राहुल, तुम क्या चीज हो, यह निशा से बेहतर कौन जान सकता है?” निशा ने व्यंग्य से कहा।
“हम तो तुम्हारे आशिक हैं, जब जागे, तब सवेरा, तुम से मिलने का दिल किया सो बुला लिया।”
“तुम और आशिक?” निशा खुलकर मुस्कुराई।
“क्यों लू उतार रही हो?” राहुल दबे स्वर में बोला।
“तुम केवल दौलत के आशिक हो, तुम्हारा प्यार पैसा है। यह निशा से बेहतर कौन जान सकता है।” निशा व्यंग्य से राहुल की ओर देख कर बोली।
“बन्द कर अपनी बकवास।” राहुल के स्वर में क्रोध उभरा।
“कैसे बुलाया यह बताओ, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं है। जिस काम के लिये बुलाया है, शुरु हो जाओ।” निशा ने घड़ी देखते हुए कहा।
“अरे यार, तुम तो भड़क रही हो।” राहुल ने अपने स्वर में प्यार घोलते हुए कहा।
तभी वेटर ट्रे में दो कॉफी ले आया और कप मेज पर रख कर चला गया। वेटर के रहने के मध्य दोनों के बीच शान्ति रही। वेटर के जाते ही निशा शुरु हो गयी।
“हाँ शुरु हो जाओ।” उतावलेपन से निशा बोली।
“क्या निशा, घोड़े पर सवार हो कर आयी हो।”
“मेरे पास तुम्हारे लिये एक घण्टा है।”
“क्या तुम चंद्रेश मल्होत्रा को जानती हो।” राहुल ने सवाल किया।
“वही नक्की झील वाला?”
“हाँ वही, कैसे जानती हो?”
“मैं और वह सुखाड़िया कॉलेज में एक साथ पढ़े थे। शायद वह मुझे भूल भी गया हो।” निशा ने जवाब दिया।
“हमने कुछ समय पहले एक प्लान बनाया था, याद है तुम्हें?”
“वह बात अब पुरानी हो गयी। मैं सब कुछ भूल चुकी हूँ। अब उस राह पर वापस लौटना नामुमकिन है।’’
“तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी निशा।”
“तुम जानते हो किस से बात कर रहे हो? तुम कहाँ और मैं कहाँ, तुम्हें मेरी हैसियत का पता है ना? तुम से बात कर रही हूँ, यही बड़ी बात है।”
“ओह मेरी बिल्ली, मेरे से ही म्याऊँ।” राहुल क्रोधित स्वर में बोला।
“माईंड यूअर लैंग्वेज मिस्टर, क्या नाम है तुम्हारा?”
“मिसेज निशा, आज जो तुम्हारी हैसियत है, वह इसी बन्दे के कारण है। मैं चाहूँ, तो दो मिनट में तुम्हें अर्श से फर्श पर ला सकता हूँ।”
“आखिर आ गये ना अपनी औकात पर।” निशा गुर्रा कर बोली।
“मैं दो मिनट में तुम्हारी हैसियत बता सकता हूँ।”
“ओह, तो तुम मुझे धमका रहे हो?” निशा ने खड़े होते हुए कहा।
“बैठ जाओ मैडम, लोग तुम्हें देख रहे हैं।” राहुल ने निशा की आँख में आँख डाल कर कहा।
“क्या चाहते हो?” निशा बैठते हुए बोली।
“आप का सुनहरा अतीत मेरे पास आज भी सेफ है।” अपने कैमरे की तरफ इशारा करके राहुल ने कहा।
“ओह, तो ब्लैकमैल करना चाहते हो?” निशा गुस्से में बोली।
“ब्लैकमैल टुच्चे लोग करते हैं। मैं तुम्हें अपने प्लान में शामिल करना चाहता हूँ, क्योंकि हम पहले साथ-साथ काम कर चुके हैं। उस समय तुम्हारी जरूरत थी। अब मेरी जरूरत है।” राहुल बोला।
“ठीक है, सोच कर बताती हूँ।”
“सोच कर नहीं, तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा। आज मेरी हालत तुम्हें मालूम नहीं है। लोग मेरे पीछे कुत्ते की तरह पड़े हुए हैं।” राहुल ने व्यग्र स्वर में कहा।
“ओह, जुए की लत ले डूबी।”
“जुआ तो बहुत पहले ही छोड़ चुका था, पर मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी ने मेरी जड़ें खोखली कर दी।” राहुल की आवाज में दु:ख के भाव थे।
“मैच फिक्सिंग में तुम कब से फँस गये?”
“मैच फिक्सिंग के कारण मैं कर्जे में डूब गया हूँ, मेरा सब कुछ नीलाम होने की कगार पर है।”
“तो मैं क्या करुँ?” भावहीन स्वर में निशा बोली।
“तुमने एक बार बोला था कि तुम चंद्रेश मल्होत्रा को जानती हो, जब हम एक पार्टी में मिले थे, तभी से मेरे मन में एक प्लान है, जिससे हम अरबपति बन सकते हैं।”
“मेरा हिस्सा क्या होगा।”
“जो तुम चाहो।”
“फिफ्टी-फिफ्टी।”
“मंजूर है।” राहुल हर्षित स्वर में बोला।
“एक बात तुम्हें भी मेरी माननी होगी। तुम्हारे पास मेरे जो भी नेगेटिव हैं, वह तुम्हें मुझे देने होंगे और बार-बार मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश करोगे, तो तुम्हें नहीं छोडूंगी।” निशा ने कड़े स्वर में कहा।
“आगे से ऐसी गुस्ताखी नहीं होगी मेरी जान।” राहुल खुशी से बोला।
“वेटर हमारे लिये लंच का इन्तजाम करो।” राहुल तेज स्वर में बोला।
एक वेटर सफेद वर्दी पहने सामने आया, “क्या आर्डर है सर?”
निशा आर्डर लिखाने लगी।
“ओबरॉय साहब कहाँ हैं?” लंच करते हुए राहुल ने निशा से कहा।
“मुम्बई अपने व्यापार के सिलसिले में गये हैं। उनका हर शहर में एक होटल खोलने का प्लान है। उसी सिलसिले में मुम्बई के टूर पर गये हैं।”
“तब तो बहुत खुशकिस्मत हो तुम, जो तुम्हें अमन जैसा पति मिला।”
“हाँ वह तो मुझे बहुत प्यार करते हैं।”
“यह तो अच्छा है।” स्वीट डिश खाते हुए राहुल ने कहा।
“मुझे एक बात तुम से कहनी है। राहुल यूँ हमारा मिलना ठीक नहीं। किसी की नजर पड़ सकती है। लोग सोसायटी में मुझे पहचानते हैं।” निशा ने हाथ पोंछते हुए कहा।
“लेकिन हमारा मिलना भी तो जरुरी है, नहीं तो प्लान आगे कैसे बढ़ेगा।” राहुल बोला।
“कोई दूसरा उपाय सोचो।”
“एक उपाय है। हमें मिलना हो तो कोई दूसरे शहर में मिलें, जहाँ हमें कोई जानता नहीं हो। जैसे गुजरात का पालनपुर, अंबाजी आदि जगह जो यहाँ से ज्यादा दूर भी नहीं हैं।”
राहुल ने हाथ पोंछते हुए कहा। तभी वेटर बिल रख कर चला गया। राहुल ने अपने पर्स से एक हजार रुपए का पत्ता रखा।
“यह ठीक रहेगा।” निशा ने समर्थन किया। दोनों ने कुर्सी छोड़ी और बाहर की तरफ कदम बढ़ाये।
☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐☐
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply