Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

Post by rajan »

प्रेम के कान खड़े हो गए-उसने कुछ देर सुना-फिर घंटी बजाई-और चपरासी अंदर आ गया।

"यह ऊंची आवाजें कैसी हैं?"
"मालिक के केबिन से आ रही हैं।"
"कौन है उनके साथ?"
"कोई नया नौजवान है।
"जी हां।"
"कौन हो सकता है?"
प्रेम ने कमरा छोड़ दिया और बाहर आ गया...
ऑफिस के दूसरे लोग भी सुन रहे थे और केबिन से आवाजे आ रहीं थीं
"अपनी सीमा से आगे मत बढ़ो।"
"सीमा तो बहुत पीछे रह गई है, सेठ दौलतराम।"
"बकवास मत करो...तुम भूल रहे हो कि तुम हमारे ड्राइवर के बेटे हो। एक मामूली नौकर।"
"आप भूल रहे हैं कि मेरे बाप ने आपके दुश्मन को मारकर अपनी बाकी उम्र जेल में काट दी।"
"उन्होंने वफादारी निभाई है-पुरखों से हमारे खानदान का नमक खाया है।"
"भाड़ में गई ऐसी नमकहलाली...यह वफा-दारी...क्या दनाम मिला इस वफदारी
का...बाहर बरस की कड़ी कैद...मगर मैं उनकी तरह मूर्ख नहीं हूं।"
"राजेश...!"
--
"मुझे सिविल इंजीनियर की डिग्री मिल चुकी हैं..और मैंने स्टेट में टाप किया है...मुझे आपकी ड्राइवरी नहीं करनी, अगर आपने मुझे अपनी कम्पनी में अच्छी जाब मेरी क्वालिफिकेशन के अनुसार न दी तो...।"
"तो...क्या कर लोगे तुम मेरा?"
"इसका जवाब मैं तब दूंगा जब आपके खिलाफ पूरी तफ्तीश नहीं करवा लूंगा...मेरे पास कई प्रमाण
“निकल जाओ यहां से...तुम्हे इंजीनियर तो क्या चपरासी की नौकरी भी नहीं मिल सकती-तुम हो तो ड्राइवर ही के बेटे।"
"अच्छी बात है सेठजी...आपकी कम्पनी का काम न डुबोया तो मेरा नाम राजेश नहीं।"
"राजेश-!"

"आपके ऑफिस के सामने ऑफिस खड़ा करूंगा और आपकी कम्पनी का दीवाला निकलवा
दूंगा..पिताजी के जेल जाने के बाद मैंने यह प्रतिज्ञा की थी।
"गैट आउट ।"
राजेश तेज-तेज बाहर निकल आया-उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था-प्रेम उसे ध्यान से देख रहा था
राजेश दौड़ाकर जा रहा था..थोड़ी दूर ही गया था कि प्रेम की कार उसके पास आकर रूक गई-अंदर बैठ ही उसने कहा-"हैलो राजेश!"
"हैलो! क्षमा कीजिए-मैने पहचाना नहीं आपको।"
"आओ बैठो...पहचाना होगी तो खुश हो जाओगे।" राजेश बैठ गया और कार चल पड़ी-फिर प्रेम बोला-"तुम दौलत बिल्डर्स की टक्कर पर कम्पनी खड़ी करना चाहते हो?"
"हां, मगर आप कैसे जानते हैं?"
“मैं दौलत बिल्डर्स का मैनेजर हूं-प्रेम।"
"ओह, बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर ।"
"और मुझे तुमसे भी बढ़कर खुशी हुई।"
"क्यों?"
क्योंकि तुम्हारे अंदर जोश है-आत्मा सम्मान का भाव है...तुम्हारे पिताजी के साथ जो कुछ हुआ है...तुम उसका बदला लेना चाहते हो?"
राजेश ने उसे ध्यान से देखा और बोला-"गाड़ी रोकिए।
"क्यों ?"
"मुझे उतरना है।"
.
"मगर क्यों?"
"आप दौलत बिल्डर्स के मैनेजर हैं न?"
"निःसंदेह ।"
"और आप अपने मालिक के विरूद्ध बातें कर रहे हैं।"
"ते क्या हुआ ?"
"आपको शायद सेठजी ने टोह लगाने के लिए भेजा है मेरे पीछे ।"

प्रेम ने ठहाका लगाया और बोला-" नौजवान होने का यही नुकसान है कि सोचे-समझे बगैर जोश में आ जाते हैं।
J

" इसमें सोचने की क्या बात है?"
"अगर मुझे सेठजी ने भेजा होता तो मैं तुम्हें अपना पूरा परिचय क्यों देता ।"

"फिर आपको अपने मालिक से किस बात की दुश्मनी ?"
"तुम भी तो उन्हीं सेठजी के नौकर के बेटे हो-तुम उनके दुश्मन क्यों बन गए?"
"आपका मतलब यह है कि आपके साथ कोई बड़ी ज्यादती हुई है?"
.
"हां...लेकिन मैं तुम्हें एक ऐसा राज कैसे बता दूं जो मैं लम्बे समय से सीने में छुपाए बैठा हूं और सेठजी से बदला लेने का अवसर ढूंढ़ रहा हूं।"
राजेश बड़े ध्यान से उसे देखता रहा..प्रेम ने कहा
"मैंने सोचा, दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त और एक और एक ग्यारह होते हैं हम दोनों मिलकर सेठ दौलतराम को बर्बाद कर सकते हैं लेकिन तुम अगर नहीं चाहते तो उतर सकते हो।"
" हम दोनों मिलकर सेठ को कैसे बर्बाद कर सकते हैं?"
"तुम्हारे पास नौजवानी का जोश और शक्ति है और मेरे पास सेठजी की कई कमजोरियां और दौलत है।"

" तो आप खुद खुलकर सामने क्यों नहीं आते?"
"मौका। किसी कारण मेरा खुलकर आना उचित नहीं।"
rajan
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Post by rajan »

"देखिए मिस्टर प्रेम-जब तक मुझे सच्चाई मालूम नहीं होती , मैं कोई फैसला नहीं कर सकता ।"
"मगर इस बात की क्या गारंटी है कि मैं जो कुछ तुम्हें बताऊंगा...उसे तुम अपने मन ही में रखोगे।"
"देखिए.मैंने तो आपको एप्रोच नहीं किया, न मुझे आपकी मदद की जरूरत है...मुझमें इतनी शक्ति
और लगल है कि सेठजी की कमर तोड़ दूं..अब आप गाड़ी रोक सकते हैं।"

"शाबाश! मुझे यही जवाब चाहिए था।"
"क्या मतलब?"
"तुम जैसा खरा आदमी ही मुझे अपना साथी चाहिए है।"
"आप अपनी इच्छा के मालिक हैं।"
"चलिए! मैं आपको सब कुछ विस्तार से बताऊंगा।"

राजेश कुछ नहीं बोला।
कार एक कॉटेज के सामने रूक गई और प्रेम ने कहा-"जरा फाटक खोलने का कष्ट करेंगे।"
राजेश ने उतरकर फाटक खोला। कार अंदर आ गई और राजेश ने फाटक बंद कर दिया। कुछ देर बाद दोनों एयरकंडीशंड फाटक में थे। प्रेम ने राजेश को एक सोफे पर बिठाकर कहा
"तुम क्या लेना पसंद करोगे?"
"सिर्फ ठंडा पानी।"
"क्या ड्रिंक नहीं करते ?"
"जी नहीं-मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जिस दिन मेरे पास अपनी कार और फ्लैट होंगे, उस दिन पहला चूंट भरूंगा।"
.
"तुम उसूलों के बहुत पक्के हो।"
"जी उसूल और उन पर मन से अमल ही आदमी को कुछ बनाते हैं वरना आदमी बिना पेंदे का लोटा हुआ।"
"सच कहते हो।"

प्रेम ने अपने लिए पैग बनाकर कहा-“मै चाहूं तो अभी सेठ दौलतराम के सामने अपना ऑफिस खोल सकता हूं, मगर मेरा लक्ष्य है उस कुर्सी पर बैठना जिस पर सेठ दौलतराम बैठते हैं।"

"क्यों?"
"क्योंकि कभी उनकी कुर्सी के बराबर एक कुर्सी
और होती थी, उस समय मेरे पिता और सेठ दौलतराम के पिता बराबर-बराबर कुर्सियों पर बैठा करते थे।"
"ओहो ! आपका मतलब है कि आप दोनों के पिता पार्टनर थे।"
"पिफ्टी परसेंट के।"
"फिर क्या हुआ ?"
“सेठजी ने मेरे पिता के विश्वास का नाजायज फायदा उठाया...उनसे कागजात पर हस्ताक्षर लेते रहे और एक दिन सारे कारोबार के पूरे मालिक बन बैठे। मेरे पिताजी का हार्टफेल हो गया और हमारा परिवार फुटपाथ पर आ गया।"
"माई गॉड!"
"अब आप सोचिए कि मेरे सीने में कैसी ज्वाला भड़क रही होगी अपनी बर्बादी का बदला लेने के लिए।"
"बेशक बेशक।"
"मगर मैं बड़े धीरज से काम लेता रहा हूं-पहले अपनी जड़े मजबूत करता रहा हूं। इस समय मेरे पास काफी दौलत है जिससे मैं सेठजी के आफिस के सामने एक नया आफिस खोल सकता हूं-मगर अपना लक्ष्य तो मैं तुम्हें बता ही चुका हूं।"
"मगर आपने इमनी दौलत कैसे और कहां से प्राप्त की?"
"अपने दिमाग का प्रयोग करके।"
"क्या मतलब?"
"मैं एक अजनबी की तरह सेठ दौलतराम के यहां किसी सिफारिश से मैनेजर बनने की ताक में रहा-वह अवसर मुझे मिला मास्टर देवीदयाल के
खून की घटना के बाद।
राजेश का दिल धड़क उठा। उसने पूछा-"किस तरह?"
प्रेम ने एक अल्मारी के गुप्त खाने से कुछ फोटो निकाले और राजेश की ओर बढ़ाता हुआ बोला-"इन तस्वीरों द्वारा।"
राजेश ने फोटो देखे तो उसका दिल और जोर से धड़क उठा।
तस्वीरों में सेठ दौलतराम के हाथों देवीदयाल शर्मा की मौत के पूरे प्रमाण थे-रिवाल्वर और फाइल सब कुछ था।
राजेश ने कांपती आवाज में कहा-"इन फोटूओं का क्या मतलब है?"
"इसका मतलब है जो खून तुम्हारे पिता ने अपने सिर ले लिया है, वह खून दरअसल खूद सेठ ने किया था।
"ओ गॉड! तो मेरे पिता निर्दोष हैं।"
"बिल्कुल।"
"वह निर्दोष होकर जेल काट रहे हैं...दूसरी तरफ असल खूनी आजाद फिर रहा है।"
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rajan
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Post by rajan »

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"तुम्हारे पिता की मूर्खतापूर्ण वफदारी के कारण।"
"माई गॉड! मैं यह फोटो भी पुलिस को दिखाकर उनको रिहा कराकर सेठ को पकड़वा दूंगा।"
"नहीं...तुम्हारे पिता छूट तो जाएगे खून के अपराध से–मगर उनके ऊपर नया आरोप लग जाएगा, झूठा आरोप अपने सिर पर लेकर एक कत्ल के अपराधी को बचाने का जिसकी सजा लम्बी हो सकती है।"
"नहीं...!"
.
"इसीलिए कह रहा हूं, जोश से नहीं होश से काम
लो-वैसे भी अब कैलाशनाथ की सजा केवल दो बरस रह गई है।"
"मगर फिर..?"
"रास्ता मैं बताऊंगा...तुम्हें फाइनैंस भी करूंगा–मगर जैसा मैं कहूं तुम्हें वैसा ही करना पड़ेगा।"
"मैं तैयार हूं-मगर मुझे भी कोई गारंटी चाहिए कि मेरे साथ कोई फ्राड नहीं होगा।"
"क्या गारंटी चाहिए?"

"सेठ दौलतराम की गर्दन मेरे हाथों में दे दीजिए, क्योंकि वह मेरे पिताजी के खास दुश्मन हैं।
"तुम्हारा मतलब उन फोटोज से है?"

"सिर्फ फोटोज ही नहीं नैगेटिव भी।"
"और तुमने मुझे डबल क्रास किया तो...?"
राजेश ने उठते हुए रूखे स्वर में कहा-"आपकी खुशी..मदद आपने मांगी थी मैंने नहीं।"
"तुम बार-बार उठ क्यों जाते हो?" प्रेम ने कहा।
"मेरे पास समय नहीं है...फालतू बातों के लिए।"
"चलो..तुम्हें फोटोज और नैगेटिव दोनों मिल जाएंगे, क्योंकि अब वह मेरे किसी काम के हैं भी नहीं...मैं अपनी जरूरत के लिए दौलत भी हासिल कर चुका हूं-अगर वह पुलिस तक पहुंच भी गए तो मेरा कोई नुकसान नहीं होगा।"
राजेश चुप रहा...प्रेम ने गिलास खाली करकि फोटो और नैगेटिव निकालकर राजेश को देते हुए कहा-"लो! अब तो मुझ पर भरोसा है?"
राजेश ने लिफाफा लेकर पास ही मेज पर ऐसे रख लया जैसे वह उसे कोई बड़ा महत्व नहीं देता...फिर प्रेम से बोला-"हां...अब बताइए।"
प्रेम ने नया पैग बनाते हुए कहा-"तुम्हें सबसे पहला काम करना है-स्वर्गीय देवीदयाल के बंगले पर किसी भी तरह कब्जा करना है।"

"किसलिए?"
"तुम्हारी नई कन्स्ट्रशन कम्पनी की शुरूआत धूमधाम से होनी चाहिए..और उस बंगले से ज्यादा शानदार जगह सिचुएशन के लिहाज से कोई नहीं...जिस पर तुम एक पन्द्रह माले की बिल्डिंग खड़ी कर सकते हो-नीचे शॉपिंग कम्पलैक्स भी बन सकता है।"
"मगर उसके लिए तो करोड़ों रूपए चाहिए।"
"इसकी चिन्ता मत करो. इंनीशयल रकम मैं दूंगा...फिर तुम्हें बताऊंगा कि बिल्डर्स किसी तरह कारोबार चलाते हैं।"
"ठीक है. मगर वह बंगला?"
"बड़ी आसानी से मिल जाएगा।"
'
"वह कैसे?"
"मास्टर देवीदयाल की मिल्कियत था..अब विद्यादेवी उसकी पत्नी की मिल्कियत है और
उसकी अकेली वारिस उनकी बेटी सुनीता है।"
-
"ओहो...!"
"तुम भी सुन्दर हो और नौजवान हो...सुनीता भी सुन्दर है, पढ़ी-लिखी है...तुम सुनीता को शीशे में उतार सको तो बंगला तुम्हारा है।"
"मगर मैं ही क्यों? आपका भी शायद एक जवान बेटा है।"
"उसे मैंने इसी बंगले के लिए दस बरस पहले ही सुनीता से लगाव बढ़ाने के लिए लगाया था मगर
...लडकी का दिल जीतने में कामयाब नहीं हुआ।"
"मगर इस बात की भी क्या गांरटी है कि मैं उस लड़की का दिल जीत ही लूंगा।"
“यही तो तुम्हारी परीक्षा है।"
"ठीक है प्रेम साहब... मैं इस परीक्षा से गुजरने के लिए तैयार हूं।"
"बस...तो फिर मिलाओ हाथ।"
राजेश ने हाथ मिलाया और बोला-"यह फोटो और इनके नैगेटिव अब मैं आपके पास छोड़ सकता हूं।"
"नहीं...तुम अब इन्हें अपने पास रखो-मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम मेरे लिए काम के आदमी
हो।"
"धन्यवाद!" कहकर राजेश ने फोटो वाल लिफाफा जेब में रखा और उठाता हुआ बोला-"अच्छा, अब मैं आना चाहता हूं।"
"ठीक है..मगर तुमसे कान्टैक्ट कैसे हुआ करेगा?"
"अपना मोबाइल नम्बर दीजिए. मैं आपको कहीं से फोन कर लिया करूंगा।"

"तुम फोन करने कहां आया-जाया करोगे।" कहते हुए प्रेम ने एक छोटा-सा मोबाइल उसे देकर कहा-" यह इंस्ट्रूमेंट पतलून की जेब में भी रख सकते हो...इस द्वारा तुम कहीं से भी मुझसे बात कर सकते हो।"
राजेश ने इंस्ट्रूमेंट लेकर धन्यवाद कहा और प्रेम का नम्बर लेकर नोट किया और इजाजत लेकर बाहर निकल आया।
rajan
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राजेश ने सेठ दौलतराम के सामने 'फोटोज' वाला लिफाफा रखा तो सेठ दौलतराम ने आश्चर्य से कहा-"यह क्या है?"
"वह फोटो और उनके नैगेटिव जिन द्वारा आपको पिछले दस बरसों से ब्लैकमेल किया जा रहा है।"
.
सेठ दौलतराम उछल पड़े। उन्होंने जल्दी से लिफाफा खोला तो उनके चेहरे का रंग खुशी से लाल हो गया। उन्होंने जल्दी से सारी तस्वीरें देखीं और कंपकंपाती आवाज में बोले
"य...यह सचमुच वही...वही फोटो और नैगेटिव हैं।"
"सेठजी! सब कुछ यही है-अब उस ब्लैकमेलर के पास आपके खिलाफ कुछ भी नहीं रहा है।"
"तुम...तुम...सच कह रहे हो?"
"जी हां, सेठजी...अब वह आगे आपको ब्लैकमेल करने का साहस भी नहीं कर सकता ।"
"मगर वह ब्लैकमेलर है कौन?"
"जिस पर मैंने पहले सन्देह किया था आपका मैनेजर प्रेम।"
"नहीं...! “सेठ दौलतराम उछला पड़े।
"सेठजी ! मुझे इसलिए विश्वास था कि जिस कारण से आपको ब्लैकमेल किया गया उसकी बुनियाद में सिवा प्रेम के और कोई शामिल नहीं था।
"तुम सच कहते हो।" और अचानक सेठ दौलमराम को गुस्सा आ गया और वह बोले-“मैं...मैं उस कमीने को अभी नौकरी से निकालता हूं।"
"नहीं सेठजी, आप ऐसा नहीं करेंगे।"
"क्यों?"
"क्योंकि आप इस तरह प्रेम के विरूद्ध कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकेगे। प्रेम अपनी जानकारी के अनुसार इस बात को चैक कर रहा है कि मैं अपने पिता की नाजायज सजा का आपसे बदला लेना चाहता हूं. इसीलिए मैं आपका दुश्मन बन गया हूं।"
"अच्छा ...!"
"मैं पहले सुनीता से मुहब्बत करके मास्टर जी के बंगले का मालिक बनूंगा और प्रेम अपने फाइनेंस
से वहां पन्द्रह माले की बिल्डिंग और शॉपिंग कम्पलैक्स बनवाएगा।
"बहुत खूब!"
"आपने यह तो पूछा ही नहीं कि प्रेम बिना कारण आपका दुश्मन क्यों बन बैठा है?"
"क्यों?"
"उसका कहना है कि कन्स्ट्रक्शन के कारोबार में उसके और आपके पिता फिफ्टी-फिफ्टी के पार्टनर थे लेकिन आपके पिताजी ने उसके पिता को धोखा देकर सारे कारोबार पर कब्जा कर लिया था।"
"आहो!"
"उसके पिता का हार्टफेल हो गया था और वे लोग फुटपाथ पर आ गए थे। उसकी मां ने बहुत दुःख झेले हैं।"
"बकवास...हमारा कारोबार पुरखों का चला आ रहा है हम लोग खानदानी दौलतमंद हैं...किसी से पार्टनरशिप का सवाल ही नहीं-मेरे पिताजी अकेले कम्पनी के मालिक थे।"
"तो प्रेम ने मुझे बहकाने के लिए कहानी गढ़ी है।"
"अब तुम क्या करोगे?"
"देखते जाइए. मैं क्या करता हूं-आप इन फोटोज
को फाड़कर फेंक दीजिए...या जला दीजिए।"
"राजेश! मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा।"
"नहीं मालिक! मैं अपने बाबूजी को दिया हुआ वचन पूरा कर रहा हूं।"
"तुम बहुत अच्छे और साफदिल के हो।"
"सेठजी ! जिस सन्तान की मां अच्छी होती है वह अच्छे ही निकलते हैं-बच्चे के अच्छे-बुरे चरित्र की जिम्मेदार मां होती है और मुझे तो आपकी छत्रछाया में एक मां नहीं दो मांओ का शिक्षाश्रय प्राप्त हुआ है...बड़ी मालकिन ने मुझे इस योग्य बनाया है कि ड्राइवर का बेटा होते हुए इंजीनियर बना दिया है...जगमोहन मेरा बहुत प्यारा छोट भाई है, वह मुझे बड़ा भाई मानता है।

अच्छा सेठजी , अब मुझे इजाजत दें। सबसे पहले मुझे उस बंगले पर कब्जा करने का प्लान बनाना
है जिसके लिए आपको खन से हाथ रंगने पडे
और मेरे पिता को जेल जाना पड़ा।"
फिर उसने सेठ दौलतराम के चरण छुए. उन्होंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कहा

"जीते रहो बेटे...तुम्हारी मां अब सर्वेन्ट क्वार्टर में नहीं रहेंगी...बंगले ही के एक कमरे में रहेंगी...तुम इसकी चिन्ता मत करना ।"
"धन्यवाद सेठजी...जैसे ही बंगले पर मेरा कब्जा होगा, मैं कंस्ट्रक्शन कम्पनी खोलने के बहाने सारी रकम अपने नाम ट्रांसफर करा लूंगा जो उसने आपसे ठगी है और बाद में वह रकम और बंगला सब आप ही के होंगे।"
"शाबाश बेटा, तुम्हारी रगों में सचमुच पुरखों की वफादारी का लहू है।"
फिर राजेश कॉटेज से बाहर निकल आया तो सेठ
दौलतराम के होंठों पर एक भयानक मुस्कराहट फैट गई। उन्होंने हड़बड़ाने के ढ़ग में जैसे अपने आपसे कुछ कहा-" बेटे, जिस दिन तुम यह सब कर लोगे, उस दिन तुमको भी हरी झंडी दिखा दी जाएगी। सेठ दौलतराम एक छोटी-से उद्देण्डता को सहन नहीं करता और तुमने तो हमारे साथ बहुत अधिक गुस्ताखी की है। अब तुम उस समय का इन्तजार करो जब तुम अपनी मां के साथ फुटपाथ पर पहुंच जाओगे और हम तुम्हें नौकरी भी नहीं मिलने देंगे।"

फिर वह फोटोज के नैगेटिव जलाने लगा।
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