Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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कैलाश का चेहरा खुशी से खिल उठा...उसने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कहा-"धन्य भाग्य मेरे-लोगों से आपके बारे में सुना था...आज दर्शन भी हो गए।"

देवीदयाल के दिल को थोड़ा सन्तोष मिला, क्योंकि कैलाश चेहरे और आंखों से सीधा, सच्चा और साफ दिल नजर आ रहा था। अचानक अंदर से आवाज आई-"कौन है कैलाश ?"

कैलाश ने जल्दी से मुड़कर कहा-"मालिक ! देवीदयालजी पधारे हैं।"

"ओह ! मास्टर जी !" सेठ दौलतराम खुद बाहर निकल आए और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा

"आप बाहर क्यों खड़े हैं-अंदर आ जाइए न।"

फिर कैलाश से बोले-“तुम गाड़ी लेकर आओ।"

"नहीं मालिक, मैं बस से चला जाऊंगा।"

"कब तब आ जाओगे ?"

"दो घंटे तो लग ही जाएंगे।" कैलाश ने कहा।

"ठीक है...जाओ।

कैलाश ने देवीदयाल को नमस्ते किया और चला गया। जाते-जाते उसने फाटक बंद कर दिया। दौलतराम, देवीदयाल को लेकर अंदर आ गए और दरवाजा बंद करते हुए बोले-“पधारिए मास्टर जी-आज तो मेरे कॉटेज के भाग्य खुल गए।" उन्होंने बड़े आदर से देवीदयाल को एक कीमती सोफे पर बिठाया और एक अलमारी खोलते हुए बोले-"बोलिए मास्टर जी, क्या सेवा करूं ?"

देवीदयाल ने जल्दी से कहा-"अरे नहीं सेठ साहब...मैं तो हाथ भी नहीं लगाता।"

सेठ दौलतराम हंसकर बोला-"मैं जानता हूं...आप जैसा महात्मा भला कैसे पी सकता है...यह तो हम जैसे शैतानों ही का काम है।"

"अरे...नहीं।"
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"मैं पूछ रहा था ठंडे में क्या पसंद करते हैं ?"

"ठंडा शुद्ध जल ।


“ऐसा भी क्या, चलिए 'कोक' ले लीजिए।"

"आप कहते हैं श्रद्धा से तो कोक ले लूंगा।"

सेठ दौलतराम ने हंसकर फ्रिज से कोकाकोला की वह बोतल निकाली जिसमें पहले ही से बहुत कम कड़वी वाली हिस्की मिली हुई थी थी...और यह इन्तजाम प्रेम करके गया था।

सेठ दौलतराम ने बोतल खुद ही खोलकर देवीदयाल के समाने रखते हुए कहा-"आज मैं एक महान हस्ती के साथ चीयर्स करूंगा।"


देवीदयाल भी मुस्कराकर रह गए। सेठ ने अपने लिए एक छोटा पैग हिस्की का बनाया और देवीदयाल के गिलास के साथ टकराकर 'चीयर्स' कहा...देवीदयाल को कोक में कड़वाहट का एहसास तक नहीं हुआ।

"सुनाइए मास्टर जी।" सेठ ने कहा।

"क्या सुनाऊं? सुनाने योग्य तो सब कुछ आप जैसे लोगों के पास ही होता है।"

सेठ ने मुस्कराकर कहा-"होता तो आपके पास भी बहुत कुछ है, लेकिन आपलोग छुपे रूस्तम होते हैं, बताते नहीं।"

देवीदयाल मुस्कराकर रह गए। सेठ ने कहा-"प्रेम से सब कुछ मालूम हो गया था।"

"जी-मुझे भी।"

"उसने बताया कि आगे क्या करना है ?"

"जी हां।"

"फिर क्या सोचा आपने ?"

"अब आप इतनी श्रद्धा से आदेश दे रहे हैं तो भला मैं कैसे टाल सकता हूं।"

"मुझे भी आपसे यही आशा थी।" फिर सेठ ने घड़ी देखकर कहा-“यह प्रेम कहां रह गया है ?"
.
"कह रहा था कि आप ही के किसी काम से जुहू तक जाना है।

"हां, याद आ गया...तो फिर आने दीजिए प्रेम को।"

"जैसे आपकी आज्ञा ।"
सेठ ने चूंट लेकर कहा-“ऐसा कीजिए-कर्जे के कागजात की जो ड्राफ्टिग की है, आप उसे प्रेम के आने तक पढ़ लीजिए। मैं यही ले आता हूं।"
rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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फिर सेठ अंदर वाले कमरे में चला गया और दरवाजा बंद होने से साऊंड प्रूफ हो गया। इतने में फोन की घंटी बजी-सेठ ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया-"हैलो !"

"सेठजी...मैं प्रेम बोल रहा हूं।"
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"हां प्रेम, बोलो।"

"बकरा पहुंच गया होगा और आपने कोक पिला दी होगी।"

"हां-आधी पी गया है-मगर तुम क्या कर रहे हो ?"

"मैं 'शबाब' का इन्तजाम कर रहा हूं-तब तक शराब का नशा चढ़ जाने दीजिए।

"ठीक है।"

"अब आप तो अंदर हैं न ?"

"हां-आज फोन अन्दर ही है।"

"बकरा क्या कर रहा है ?"

"ड्राफ्टिग पढ़ रहा है।


"आप अंदर कैसे आ गए ?"

“फाइल लेने के लिए।

"ऊपर वाली फाइल नकली है जो उसे पढ़ाई जानी है...नीचे वाली असली है-आप ऊपर वाली पढ़वाकर रख लें...दस्तखत मैं आकर करवा लूंगा।"

"ठीक है...मगर फाइल बदलोगे कैसे ?"

"यह आप मुझ पर छोड़ दें।"

"ठीक है।"

"याद रखिएगा, ऊपर वाली फाइल नकली है।"

फिर दूसरी ओर से डिस्कनेक्ट होने पर सेठ ने रिसीवर रख दिया और प्रेम वाला ब्रीफकेस खोलकर ऊपर वाली फाइल निकाल ली और बाहर आ गया। दौलतराम ने ऊपर वाली फाइल निकाल ली और फिर बाहर आ गया। देवीदयाल कोक का गिलास खाली कर चुके थे और उनके ऊपर हल्का-सा नशा छा रहा था। वह मुस्कराते हुए बोले-"आ गए सेठजी।"

"हां..यह रही फाइल, पढ़ लीजिए।" और फाइल बढ़ाते हुए बोले-"आप भी क्या याद करेंगे-इससे बढ़िया डील कहीं भी नहीं मिलेगी।"

देवीदयाल फाइल लेकर पढ़न लगे। सेठ दौलतराम के गुमान में भी नहीं था कि नकली फाइल नीचे वाली थी। जिस फाइल पर देवीदयाल के हस्ताक्षर लेने थे वह ऊपर वाली थी लेकिन यह चाल प्रेम ने खेली थी।

सेठ दौलतराम ने अपने लिए पैग बनाया और धीरे-धीरे चूंट भरते हुए देवीदयाल को इस तरह देखने लगे जैसे देवीदयाल फाइल पढ़कर खुशी से उछल पड़ेंगे।

उधर देवीदयाल ज्यों-ज्यों फाइल पढ़ते जाते, उनके चेहरे का रंग बदलता जाता और आंखें लाल होती जा रही थीं...उन पर हल्का-सा नशा भी तारी हो चुका था इसलिए उन्हें अब डर भी नहीं लग रहा था। जब वह पूरी फाइल पढ़ चुके तो सेठ ने मुस्कराते हुए उनकी तरफ देखा और पूछा-"कहिए मास्टर जी।"

"क्या कहूं ?"

"पसंद आई ड्राफ्टिग।"

"बहुत ज्यादा।"

"मुझे विश्वास था कि आपको पसंद आएगी।"

देवीदयाल ने गुस्से से कहा-"और मुझे विश्वास था कि आप फिर मेरे साथ दगा करने वाले हैं...धोखाधड़ी।"

अचानक सेठ की भवें तन गईं...उन्होंने गुस्से में देवीदयाल से कहा-"क्या मतलब ?"
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"मतलब आप खूब समझते हैं-क्या लिखा है इसमें आपने।"

"आपको स्कूल बनाने के लिए कर्जा देने को लिखा है।"
rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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"अच्छा ! आपने स्कूल बनाने को लिखा है या बंगला हजम करने को ?"

"क्या ?"

“सेठजी !" देवीदयाल ने फाइल देखकर कहा-"मैं जानता हूं, धनवान का धर्म केवल पैसा होता है-और आप धनवान हैं।"

"यह क्या बकवास है ?"

"यह बकवास नहीं...सच्चाई है।"

"तो आपका धर्म बनावटी, पाखंड नहीं ?"

"ईश्वर के प्रकोप से डरिए-झूठ फरेब से जायदाद हटाने का अंत क्या होगा ?"

"मेरे दस लाख रूपए हजम करने पर भी आप संतुष्ट नहीं हुए।"

देवीदयाल ने व्यंग्य से मुस्कराकर कहा-"आ गए न अपनी औकात पर।"

"क्या बकवास कर रहे हो ?"
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"दस लाख रूपए का चैक खुद तुमने मेरे नाम से कैश करा लिया था।"
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"खूब ! मुझे मालूम है तुमने यही आरोप लगाया था दस लाख रूपए हज्म करने के बाद ।"

"किसने आरोप लगाया था...उसका हुलिया तो भगवान के पास है न।

"भगवान के पास तो जाओगे देर में पहले जेल जाना पड़ेगा।

"अच्छे उद्देश्य के लिए जेल में कोई हर्ज नहीं..मगर तुम धोखाधड़ी से सादा और भोले
आदमियों को कब तक लूटोगे ?"

"तुम मुझे बेइमान समझते हो।"

“समझता नहीं...आप हैं।"

"ठीक है...समझते रहना...पहले इस फाइल पर दस्तखत करो।"

"इन कागजों पर तो मर जाऊं तो भी अपने हस्ताक्षर नहीं करूंगा...वह बंगला मेरे पुरखों का है-वह तो दस करोड़ में भी नहीं दूंगा...और तुम जैसे आदमी को तो किसी मूल्य पर नहीं दूंगा।" फिर वह झटके से उठा।

सेठ दौलतराम भी झटके से खड़ा हो गया और गुस्से से बोला-"ठहरो मास्टर।"

"अब तो एक पल ठहरना भी हराम है।"

"तुम अपनी मर्जी से यहां से नहीं जा सकते।"

"मैं भगवान की मर्जी से जा रहा हूं।"

"यह कॉटेज सेठ दौलतराम का है-तुम्हारे भगवान का नहीं।"

"भगवान के प्रकोप से डरो सेठ...खाक हो जाओगे।"

“पहले तुम मौत से डरो।"


अचानक सेठ दौलतराम ने रिवाल्वर निकाल लिया और देवीदयाल पर तानकर बोला-"वह सामने फाइल पड़ी है उस पर हस्ताक्षर करो।"

“फाइल पर तो तुम्हारे फरिश्ते भी अब मेरे हस्ताक्षर नहीं करा सकते।"
-
सेठ ने फाइल उठाकर देवीदयाल की ओर बढ़ाकर कहा-“चलो ! साइन करो वरना जिन्दगी से हाथ धो बैठोगे।"

देवीदयाल ने फाइल की ओर हाथ बढ़ाया, फिर अचानक उसने दौलतराम के रिवाल्वर पर झपट्टा मारा...मास्टर जी पर भी हल्का-सा नशा था इसलिए उसका जरा भी डर नहीं लगा...दोनों आपस में गुत्थमगुत्था हो गए, दौलतराम को अपनी जिन्दगी खतरे में नजर आने लगी-उन्हें लगा देवीदयाल पर जुनून सवार है...उनकी कोशिश अब यही थी कि देवीदयाल के सीने में गोली उतर ही जानी चाहिए, चाहे इसका परिणाम कुछ भी हो।

वह यह नहीं जानते थे कि पीछे से प्रेम यह सब देख रहा है...उसके पास कैमरा भी है। वास्तव में प्रेम ने यह इन्तजाम पहले ही कर रखा था, क्योंकि वह सेठ दौलतराम की ऐयाशियों का राजदार था-कॉटेज के बारे में उसे पूरी जानकारी थी-कॉटेज की एक चाबी उसके पास रहती थी।

कॉटेज के पिछले साऊंड प्रूफ कमरे के टायलेट का एक दरवाजा पिछवाड़े खुलता था जहां से सफाई वाला कर्मचारी आता था वैसे आमतौर पर यह दरवाजा बंद रहता था।

प्रेम देवीदयाल जी को अंदर पहुंचाकर कार दूर खड़ी करके पिछवाड़े के दरवाजे से टायलेट में आकर साउंड प्रूफ कमरे में आ गया था और दरवाजे में झिरी बनाकर यह दृश्य देख रहा था...उसका कैमरा फोटो खींचने के लिए तैयार था।

एक बार देवीदयाल सेठ दौलतराम पर पूरी तरह छा गया। सेठ के पांच उखड़ गए-देवीदयाल उन्हें रगेदता हुआ पीछे ले जाने लगा..इस हालत में रिवाल्वर की नाल उनकी छाती की तरफ हो गया और एक जगह सेठ दौलतराम को पीछे से ठोकर लगी तो उनके हाथ में दबे रिवाल्वर का ट्रिगर दब गया...प्रेम ने इस बात का खास ध्यान रखा था कि गोली की आवाज दूर तक न जाए.इसलिए रिवाल्वर में सायलेंसर फिट था।


गोली देवीदयाल के सीने में उतर गई-उनके गले से भिंची-भिंची-सी चीख निकली-साथ ही प्रेम ने कैमरे का बटन दबा दिया और फोटो खिंच गई।

देवीदयाल लड़खड़ाकर पीछे गिर गए-उनके सीने से खून का फव्वारा-सा उबल पड़ा था और सेठ दौलतराम का रिवाल्वर अब भी उसकी ओर तना हुआ था। उसकी सांस फूल रही थी...प्रेम ने कैमरा क्लिक किया और दूसरा फोटो भी खिंच गया।

सेठ दौलतराम का नशा हिरण हो चुका था-उनके सामने मास्टर देवीदयाल की लाश पड़ी थी और हाथ में रिवाल्वर था..मोटे कालीन पर खून के छींटे और स्वंय उनके कपड़ों पर खून । देवीदयाल की आंखों में फांसी का फंदा घूम गया...उन्होंने झुरझुरी-सी ली और भयभीत ढंग से बड़बड़ाए-"नहीं...!"
rajan
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ठीक उसी समय किसी ने बाहर से घंटी बजाई और उनके हाथ से रिवाल्वर छूटकर गिर पड़ा। प्रेम दरवाजे की झिरी से सबकुछ देख रहा था-दौलतराम के चेहरे से गहरी डर की परछाइयां झलकने लगीं।

घंटी की आवाज फिर गूंजी...उन्होंने हड़बड़ाकर इधर-उधर देखा...उनके पास इतना समय नहीं था कि वह लाश को खींचकर कहीं छिपा दें...कहीं नहीं तो सोफे के पीछे डाल देते-मगर खून जो कालीन पर सामने दिखाई दे रहा था, उसका क्या हो सकता था।

घंटी फिर बजी और उन्होंने लड़खड़ाते कदम बढ़ाए-दरवाजे के पास पहुंचकर उनहोंने सोचा, प्रेम होगा और वह तो अपना ही आदमी हे-खुद प्रेम ही ने कहा था कि जरूरत पड़ी तो रिवाल्वर से काम लिया जाएगा-इस कॉटेज के बारे में केवल प्रेम ही को ज्ञान है...वह जरूर मेरी मदद करेगा...कांपते होंठों से उन्होंने पूछा-"क...क....कौन

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बाहर से आवाज आई-“मालिक ! मैं हूं कैलाश।"
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सेठ दौलतराम के मस्तिष्क में एक जोरदार छनाका-सा हुआ–“यह तो कैलाश है।" उन्होंने सोचा-"कैलाश तो भरोसे का आदमी है-कैलाश तो खानदानी नमकहलाल आदमी है...हां हां, कैलाश जरूर मेरी मदद करेगा।"

सेठ दौलतराम ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया। कैलाश न उनका बिगड़ा हुआ हुलिया देखा तो
आश्चर्य से बोला-"क्या हुआ मालिक ?"
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दौलतराम ने कैलाश को बांह पकड़कर अंदर खींचा और दरवाजा बंद कर लिया साथ ही कैलाश की नजरें देवीदयाल की खून से लथपथ लाश पर पड़ीं और वह बूरी तरह हड़बड़ाकर पीछे हटता हुआ बोला-“हे भगवान ! यह सब क्या है


सेठ दौलतराम ने हकलाकर कहा-“म...म...मैं मारना नहीं चाहता था।"

"त...त...तो...आपने...।"

"नहीं...नहीं...कैलाश, मैं सौगन्ध खाता हूं...मेरा इरादा इन्हें मारने का नहीं था...देवीदयाल ने ही मेरे ऊपर हमला किया था।"

"मगर बात क्या थी मालिक ?"

"वह...मास्टर जी...बेईमान थे..मेरे...पूरे दस लाख रूपए हजम कर गए थे।"

“यह आप क्या कहते हैं मालिक ? मास्टर जी तो...जन सेवा...।"

"दुनिया उन्हें यही समझती थी...मगर उनकी असलियत मैं पहचान गया था।"

"हे भगवान !"

“क्या तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं कैलाश ?"

"यह आप क्या कह रहे हैं मालिक, भला मैं आप पर विश्वास नहीं करूंगा।"

"तो...फिर...मुझे बचा लो कैलाश।" अचानक दौलतराम ने गिड़गिड़ाकर कैलाश के पांव पकड़ने चाहे तो कैलाश जल्दी से पीछे हट गया।

"यह आप क्या कर रहे हैं मालिक ? मैंने आपका नमक खाया है...आपको बचाने के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं।"

प्रेम अंदर से दोनों की बातें 'टेप' कर रहा था।

सेठ दौलतराम ने गिड़गिड़ाकर कहा-"कैलाश–मेरी जान बहुत कीमती है...तुम किसी तरह मेरी जान बचा लो...कानून से तुम्हें बचाने के लिए मैं अपना सब कुछ दांव पर लगा दूंगा।"

"मालिक ! मुझे शर्मिंदा मत कीजिए...आप अपने ऊपर काबू रखने की कोशिश कीजिए...सब ठीक हो जाएगा।"

"चलो...जल्दी करनी है। कहीं प्रेम न आ जाए।"

"आप जल्दी से यह कपड़े उतारकर दूसरा लिबास पहन लें..मैं यह कपड़े धो डालूंगा–बाथरूम में ही इन्हें कहीं छुपा दीजिए।

" कैलाश ! मैं तुम्हार उपकार सात जन्मों तक नहीं भूलूंगा।"

"जल्दी कीजिए मालिक।"

प्रेम बिजली की फुर्ती से कैमरा और फाइल सतेत...जो उसने पहले ही अंदर सरका ली थी, टायलेट में घुसकर पिछले रास्ते से निकला और दरवाजा मिलाकर भेड़ दिया। सेठ दौलतराम जब तक बाथरूम में पहुंचा, प्रेम जा चुका था।

कैलाश ने जल्दी से रिवाल्वर पर से उंगलियों के निशान मिटाए और उसे अपनी जेब में रख लिया अब रिवाल्वर पर उसकी उंगलियों के निशान बन गए थे...फिर उसने दरवाजा खोला अन्दर की बत्ती बुझाकर कार की डिक्की खाली और अंदर से देवीदयाल की लाश को कार की डिक्की में रख दिया, फिर वापस काटेज में आकर दरवाजा बंद करते उसने रोशनी कर ली-कालीन पर से खून के धब्बे साफ किए जिसके लिए उसे पैट्रोल का भी प्रयोग करना पड़ा.. तब तक सेठ दौलतराम नहाकर दूसरे लिबास में आ गए थे।

"लाश कहां गई ?" उन्होंने आते ही पूछा।

"कार की डिक्की में।"

"नहीं...!"

"घबराइए मत, डिक्की कोई खोलकर नहीं देखेगा।"


"मगर "

"मैं पहले आपका लिबास धो डालूंगा, कालीन तो मैंने साफ कर दिया है...फिर लाश ठिकाने लगाने ले जाऊंगा।"

"तुम...बहुत अच्छे...वफादार हो कैलाश।"
.
.
"मालिक ! मैं तो आपका सेवक और नमकहलाल हूं।"

फिर कैलाश बाथरूम में कपड़े धाने चला गया। इधर प्रेम अब बाहर वाले कम्पाउंड में आकर कैलाश को डिक्की में लाश भी रखते देख चुका था और उसकी बातें भी सुन चुका था। उसने सोचा-'चलो यह भी अच्छा हुआ, जो काम मुझे करना था वह कैलाश कर रहा है। फिर उसने सोचा-'लेकिन कैलाश सेठ साहब का खानदानी नौकर है...आगे चलकर मुझे उन तस्वीरों से बहुत काम लेना पड़ेगा। अगर कैलाश सेठजी की ढाल बन गया तो हो सकता है वह मेरे काम में रूकावट बने...बेहतर है कि कैलाश को रास्ते से हटा दिया जाए-बड़ा आसान तरीका है...कैलाश तो दीनदयाल की लाश ठिकाने लगाएगा...अगर पुलिस कैलाश को लाश ठिकाने लगाते पकड़ ले तो कैलाश कभी यह नहीं कहेगा कि 'कत्ल सेठजी ने किया है-मास्टर जी की हत्या का आरोप अपने सिर ले लेगा-हां, मुझे यही करना चाहिए...यही करना चाहिए।
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