Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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तभी अचानक कार के हार्न की आवाज आई और वे लोग उछल पड़े-राजेश ने तेज स्वर में कहा-“वह आ गए बड़े मालिक।" फिर वह झपटकर खिड़की पर चढ़ा और अंधेरे में गायब हो गया। पारो ने घबराकर जल्दी से कहा-"संभलकर बेटे।"

जगमोहन ने जल्दी से किताबें संभालीं और बैठ गया।

पारो नीचे आई-उन्होंने खुद दरवाजा खोला–सेठ दौलतराम ड्राइविंग सीट से उतर रहे थे...उनके चेहरे से थकन और परेशानी झलक रही थी। पारो ने आगे बढ़कर कहा-"धन्य हो भगवान ! मैं आज बहुत परेशान हो रही थी आपके लिए.आज इतनी देर क्यों हो गई ?"

दौलतराम ने कुछ नहीं कहा...वह अंदर आ गए-उनके पीछे-पीछे पारो भी अंदर आई। उनकी खामोशी और चेहरा देखकर उनके दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं...उन्होंने कहा-"आप बोलते क्यों नहीं ?"

सेठ दौलतराम काउंटर पर बैठकर पैग बनाने लगे तो पारो ने कहा
"यह कौन-सा समय है पीने का ?"

सेठ ने ह्विस्की बोती निकाले हुए कहा-"आज मैं बहुत परेशान हूं पारो।"

"वह तो मैं देख रही हूं-मगर कारण क्या है ?"

"बहुत गजब हो गया है पारो।" सेठ ने पैग से चूंट लेते हुए कहा।

पारो ने परेशान होकर कहा-"भगवान के लिए कुछ बताइए तो सही।"

"कैलाश गिरफ्तार हो गया है।"

पारो उछल पड़ी-"क्या ! कैलाश गिरफ्तार हो गया है. मगर क्यों ?"

"उसने मास्टर जी का खून कर दिया है।"

"कौन मास्टर जी ?"

"मास्टर जी...मशहूर स्वतंत्रता सेनानी देवीदयाल शर्मा ।"

"नहीं...!"

सेठ ने यूंट भरा और बोले-"मैंने प्रेम को उसके बचाव के लिए वकील करने भेजा है।"

“मगर उसने इतना खतरनाक कदम उठाया क्यों ? भला कैलाश की मास्टर जी से क्या दुश्मनी थी "

"मुझे नहीं मालूम-मैंने तो मास्टरजी को बुलाया था बंगले का सौदा करने के लिए. मगर...।"

“कहां बुलाया था ?"

“वारसोवा...अपने एक दोस्त के कॉटेज पर।"

"आफिस में क्यों नहीं बुला लिया ? अपने बंगले ही में बुला लेते।
सेठ ने झुंझलाकर कहा-"तुम तो बात की खाल निकालती हो।"

"भगवान के लिए सच-सच बताइए मुझे...मेरा दिल डूबा जा रहा है।"

“अब क्या मैं झूठ बोल रहा हूं।"

"मुझे बताइए क्या हुआ था ?"

"तुम तो जानती हो कि पुराने बंगले खरीदकर मैं बिल्डिंगें खड़ी करता हूं.. सिचुएशन अच्छी हो तो फाइव स्टार होटल।"

"हां।"

"मास्टर जी का बंगला पुराना भी था और सिचुएशन भी अच्छी थी। एक दिन अचानक मेरी नजर उस बंगले पर पड़ी-मैंने मास्टर जी से बात की तो उन्होंने बेचने से इंकार कर दिया। मैंने असिस्टैंट मैनेजर को भेजा तो वह पचास लाख पर राजी हो गए. मैंने दस लाख रूपए एडवांस मनी के चैक द्वारा भिजवा दिए। उन्होंने चैक तो कैश करा लिया। मगर बंगले का सौदा ज्यादा कीमत पर किसी दूसरे बिल्डर से कर लिया।"

"फिर?"

"मास्टर जी लोकप्रिय और जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी नेता हैं-मैंने सोचा कि अगर इनके साथ कानूनी कार्यवाही की गई तो धनवान और बिल्डर होने के नाते कोई मुझे सच्चा नहीं समझेगा। मैंने प्रेम द्वारा उन्हें समझाने और मामला निबटाने के लिए कॉटेज बुलाया था...सोचा था कुछ और भी दे दूंगा, मगर मास्टर जी अड़ गए कि मुझे आपके हाथ बंगला बेचना ही नहीं-उस वक्त कैलाश वहां मौजूद था-कुछ कहा-सुनी हुई। मास्टर जी ने रिवाल्वर निकाल लिया जो वह साथ लेकर आए थे।"
.
“क्या मास्टर जी रिवाल्वर साथ लेकर आए थे ?"

सेठ दौलतराम झल्लाकर बोला
"तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं..?"

पारो ने उन्हें कुछ शंका भरी नजरों से देखा और बोली-“मैं तो वैसे ही पूछ रही थी-फिर क्या हुआ
?"

"होता क्या ? कैलाश को गुस्सा आ गया-उसने मास्टर जी के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया और मेरे देखते-देखते उनके सीने में गोली मार दी।"

"हे भगवान ! मास्टर जी तो महात्मा थे।"



“पारो ! कोई दूसरा चक्कर मालूम होता है, मास्टर जी से कैलाश ने कोई पुरानी दुश्मनी निकाली थी।"

"कैसी दुश्मनी ?"

"यह तो वही जाने।"

"फिर क्या हुआ ?"

"वह मास्टर जी की लाश ठिकाने लगाने ले जा रहा था कि रास्ते में पुलिस ने पकड़ लिया।"

"हे भगवान !"

"मैं उसे बड़ी सजा तो नहीं होने दूंगा, लेकिन आठ-दस साल से कम तो नहीं होगी।"


फिर राजेश और कमला का क्या होगा

"होगा क्या ? वे लोग हमारे खानदानी नौकर हैं-दोनों क्वार्टर में रहेंगे...राजेश को ड्राइविंग की ट्रेनिंग दे दूंगा...वह कैलाश की जगह मेरा ड्राइवर बन जाएगा।"

पारो कुछ नहीं बोली..सेठ ने यूंट भरकर कहा-“अब एक काम तुम्हें करना है। कमला को अभी तक इस बात की खबर नहीं है-तुम किसी तरह जाकर कमला को यह खबर सुना दो।"

पारो के चेहरे पर एक भूचान-सा नजर आया तो सेठ ने उसे ध्यान से देखते हुए कहा-“तुम झिझक रही हो।"

"मैं सोच रही हूं...कैसे बताऊंगी यह दुःख भरी खबर।"

"अब यह तुम जानो।"

"ठीक है...मैं बताती हूं।"

"उसे समझाना कि बहुत चिनता की कोई बात नहीं-कैलाश को बस सजा होगी चंद बरस की...फांसी नहीं होगी और वह बेसहारा नहीं होगी।"

पारो कमरे से निकल गई।

"क्या बात है ?" राजेश से मां ने पूछा-"तू इतना घबराया हुआ क्यों है ?"

"वो...पाइप पकड़कर उतरकर आया हूं न।"

"तो क्या बड़े मालिक आ गए...तेरे बाबूजी क्यों नहीं आए ?"

"पता नहीं-सेठजी ने किसी काम में उलझा लिया होगा।

"चार तो कभी के बज गए-आज पता नहीं मेरा जी क्यों घबरा रहा है ?"

"तुम्हारा भी जी घबरा रहा है ? यही बात मालकिन भी कह रही थीं।"

"भगवान खैर करे।
.
.
"अरे मां...भ्रम मत किया करो।"

"आज सुबह ही से मेरी सीधी आंख फड़क रही थी।" कमला ने कहा।

राजेश हंस पड़ा और बोला-"कोई कीड़ा घुस गया होगा।

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई और राजेश ने कहा-"लो...आ गए बाबूजी।"

कमला ने बढ़कर दरवाजा खोला तो सामने खड़ी पारो को देखकर उसके दिल को धक्का-सा लगा।
rajan
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"मालकिन आप ! इस समय ?"

राजेश भी जल्दी खड़ा हो गया..उसने सहमे हुए पूछा-"क्या मालिक को पता चल गया, मैं अब तक जगमोहन के कमरे में था ?"

"नहीं...।"

“फिर क्या बात है ?"

कमला ने कहा-"राजेश के बाबूजी कहां हैं क्या वह नहीं आए ?"

"आ जाएंगे...।" पारो के स्वर में कुछ जान नहीं थी। कमला ने उसे ध्यान से देखते हुए कहा-“मालकिन ! आप कुछ छिपा रही हैं।"

"नहीं तो-।"

"राजेश के सिर पर हाथ रखकर कहिए।"

"कमला !" पारो की आवाज भर्रा गई–कमला का दिल धड़क उठा-राजेश की धड़कनें भी बढ़ गईं।

"भगवान के लिए बताइए मालकिन ।' कमला ने फिर पूछा।

पारो ने कमला का हाथ पकड़कर थपकी दी और बोली

"घबराओ मत कमला, कैलाश भैया बिल्कुल ठीक हैं।"

राजेश ने कहा-"मगर बाबूजी हैं कहां?"

पारो ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा-"बेटा ! इस समय अगर तुम्हें और कमला बहन को यह खबर मिलती कि भगवान न करे किसी का सुहाग उजड़ गया है तो क्या होता ?"

"ऐसी अशुभ बातें क्यों ला रही हैं जबान पर?" कमला ने कहा-"भगवान हर नारी का सुहाग बनाए रखे।"

"मगर आज ऐसा ही होने वाला था कमला।"

"नहीं-!"

'हां कमला, यह सच है-आज अगर कैलाश न होते तो तुम्हारे सामने मैं एक विधवा के रूप में खड़ी होती।"

"मालकिन...!" कमला ने असीम आश्चर्य से उसे देखा।

राजेश जल्दी से बोला-"क्या कह रही हैं मालकिन ?"

"हां बेटे ! आज कैलाश भैया ने तुम्हारी बड़ी मां को विधवा होने से बचा लिया है।"

"वह कैसे ?"

"भेड़ के रूप में एक भेड़िया रिवाल्वर लेकर आया था सेठजी की जान लेने लिए ?"

"हे भगवान !" कमला ने सीने पर हाथ रख लिया।"

राजेश ने पूछा-"फिर क्या हुआ ?"

"बेटा ! वह तो संयोग था कि वहां कैलाश भैया मौजूद थे...कैलाश ने उसके हाथ से रिवाल्वर छीन लिया और इससे पहले कि वह सेठजी को मारता कैलाश ने उसे ही जान से मार डाला।"

"नहीं...!" कमला लड़खड़ाकर पीछे हट गई। राजेश के दिल पर भी जोरदार धक्का लगा और उसने कहा-"और बाबूजी कहां हैं ?"

"वह गिरफ्तार हो गए-उन्हें पुलिस पकड़कर ले गई है।"

"त...त...तो क्या उन्हें...?"

पारो ने जल्दी से कहा-“नहीं...ऐसा नहीं होगा।"

"मगर मालकिन कत्ल की सजा तो मौत है...फांसी।"

पारो ने कहा-"कैलाश ने तो मालिक की जान बचाने के लिए गोली चलाई थी-फांसी की सजा तो उसे मिलती है जो बाकायदा साजिश बनाकर किसी को कल्त करे। हो सकता है वह छूट ही जाएं।"

“और अगर वह न छूटे तो... "

"तो भी घबराने की कोई बात नहीं।"

कमला ने कहा-“साफ-साफ बताइए मालकिन।"

"कुछ बरसों की सजा हो सकती है।"

"कितने बरस की ?"
.
"चार-पांच बरस की।"

"नहीं...!"

"हो सकता है सजा हो ही नहीं...कैलाश भैया के लिए कई बड़े-बड़े वकील किए गए हैं।"

"मगर वकील क्या उन्हें छुड़ा सकते हैं ?"
.
पारो ने कमला के कंधे पर हाथ रखा और कहा-“कमला बहन ! क्या तुम्हें अपने भगवान और हमारी नीयत पर भरोसा नहीं।"

"नहीं, नहीं मालकिन ! ऐसा मत कहिए।"

"बहन! कैलाश भइया ने जो उपकार मेरे ऊपर किया है...मैं तो उसका बदला सात जन्मों तक नहीं चुका सकती...लेकिन जो बड़ा पुण्य का काम कैलाश भइया ने किया है क्या भगवान उसकी ओर से आंखें बंद किए रहेगा ?"

“बहन, दुनिया में शायद ही किसी ने इतनी बड़ी कुर्बानी दी होगी–वरना कौन मौत के मुंह में कूदता है...अपनी जान हथेली पर लेकर अपने मालिक को बचाने के लिए। भगवान पर भरोसा रखो।

"मालकिन !"

"आज से तुम मेरी सगी बहन से भी ज्यादा हो और राजेश जगमोहन से भी ज्यादा ! तुम दोनों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।"

कमला कुछ नहीं बोली...सिसकती रही। पारो ने कमला के कंधे पर थपकी दी और फिर बोली-"कैलाश भइया से मिलो तो ख्याल रखना...उन्हें ऐसा न महसूस होने पाए कि उनका इतना बड़ा बलिदान गलत था। फिर उसने राजेश के सिर पर हाथ फेरा और बाहर चली गई। कमला ने राजेश को लिपटा लिया और रोने लगी और राजेश रो नहीं रहा था...किसी सोच में डूबा हुआ था।
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चिता की आग की लपटें जब आकाश को छूने लगीं तो अचानक सुनीता विद्यादेवी के कंधों पर सिर रखकर रोने लगी...विद्यादेवी सिसकी तक नहीं...उन्होंने बेटी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और अशोक ने पीछे से उनके कंधे पर हाथ रख दिया।

उन दोनों के बिल्कुल पीछे प्रेम और उसका बेटा शक्ति खड़े हुए नजर आए-दूसरी ओर, चारों ओर एक खड़ा जन समुदाया जो जोर से नारे लगा रहा था।

"मास्टर देवीदयाल।"

"जिन्दाबाद।"

"मास्टरजी की जय।"

"मास्टजी अमर रहें।"

हम मास्टर जी की मौत का बदला लेकर रहेंगे।"

अचानक विद्यादेवी ने चिल्लाकर हाथ हिलाकर सबको सम्बोधित करते हुए कहा
"भाइयों ! ऐसे शब्द कहकर पूज्य मास्टरजी की आत्मा को क्यों दुःखी करते हो। पूज्य स्वर्गवासी मास्टरजी पक्के अहिंसावादी थे...वह कभी किसी से बदला लेने की बात सोचते भी नहीं थे...अगर आपको मास्टर जी से इतनी ही श्रद्धा है तो प्रण करो और मुझे वचन दो कि तुम सब मिलकर इस बंगले की रक्षा करोगे।"

चंद क्षण रूककर विद्यादेवी ने कहा-"जिन लोगों ने षड्यंत्र करके मेरे माननीय पति देवीदयाल जी की हत्या की है या करवाई है. वे किसी भी तरह से इस बंगले को हथियाने की कोशिश करेंगे...बंगले के किसी भी भाग पर वह कब्जा न करें..तुम लोग मास्टर जी की जलती चिता पर प्रतिज्ञा करो कि आप सब उस समय तक बंगले की रक्षा करोगे जब तक मैं इस बंगले को स्कूल में बदलकर स्वर्गीय मास्टरजी की ओट करके उनका सपना पूरा न कर लूं।"

अचानक पूरा मरघट गूंज उठा-"हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम इस बंगले की तरफ किसी दुश्मन की नजर भी नहीं उठने देंगे।"...यही आवाजें गूंजती रहीं।

एक तरफ कोने में प्रेम पीछे से चुपके-चुपके शक्ति से कहा रहा था

"अबे खड़ा-खड़ा मुंह क्या देख रहा है ?"

"मुंह कहां डैडी...सुनीता की तो पीठ दिखाई दे रही है।

"अबे पीठ के बच्चे, मैं सुनीता की बात नहीं कर रहा।"

"तो विद्यादेवी की ओर आप देखिए न।"

"अबे बुद्धू ! मैं बंगले की बात कर रहा हूं।"

.
"बंगला ! लेकिन यह तो श्मशान है।"

"अबे...बंगला तो तभी तुझे मिलेगा जब सुनीता तुझे मिल जाएगी और उसके पांवों की पाजेब हमारे घर-आंगन में गूंजेगी।"

"तो सुनीता मुझे नहीं मिलेगी ?"

"कैसे मिलेगी...तू उसके पास जा और झोंपड़पट्टी वालों के साथ मिलकर पूरे उत्साह से नारे लगा-इतने जोर और जोश के साथ कि लोग तुझे देखने लगें..सुनीता और उसकी मां की नजरों में तू आ जाए.थोड़ा डिप्लोमेसी से काम ले उन लोगों के करीब होने का उन्हें लगे कि तू सबसे बड़ा हमदर्द है उस परिवार का।"


शक्ति ने आगे बढ़कर गला फाड़कर नारा लगाया
"देवीदयाल जी का सपना हम पूरा करेंगे-चाहे प्राणों की आहुति देने पड़े–मास्टर देवीदयाल जी जिन्दाबाद।"

सुनीता ने अचानक मुड़कर उसे तीखी नजरों से देखा तो प्रेम ने दांत निकालकर कहा
.
"मेरा बेटा शक्ति..शक्ति शर्मा ।"

सुनीता दोनों पर तीखी नजर डालती हुई आगे बढ़ गई।

इस्तगासे का बयान, अपराधी का इकबालिया बयान और गवाहों के बयान सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अपराधी कैलाशनाथ का कत्ल जान-बूझकर नहीं किया-यह खूर सेठ दौलतराम के बचाव के लिए अनजाने में हुआ है।

मगर इस घटना के आंखों देखे गवाह सेठ दौलतराम हैं और अपराधी कैलाशनाथ उनका खानदानी ड्राइवर है इसलिए गवाही एकतरफा भी हो सकती है...वैसे भी वह रिवाल्वर जिससे मास्टरजी का खून हुआ है किसका है ? यह जाहिर नहीं हो सका। मास्टर देवीदयाल शर्मा पर 'गुण्डागर्दी' का सन्देह भी नहीं किया जा सकता। अपराधी कैलाश का पहले का रिकार्ड भी बेदाग है-सेठ दौलतराम के पास अपना लायसेंस्ड रिवाल्वर है। इन हालात के बावजूद भी खून उसके हाथों हुआ है। इसलिए उसके साथ बहुत ज्यादा रियासत नहीं बरती जा सकती...उसने एक जाने-माने देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी की हत्या की है-इसके लिए अदालत अपराधी को बारह बरस की कैद-बा-मशक्कत की सजा सुनाती है।"

फैसला सुनते ही कमला सिसककर रो पड़ी, लेकिन राजेश ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की-पारो कमला के कंधे पर थपकी देने लगी और दौलतराम ने कहा-“शुक्र करो कमला, कैलाशनाथ से तुम और राजेश मिल सकोगे।"

कुछ देर बाद वे लोग बाहर आए तो कैलाश को हथकड़ियां डाले पुलिस लेकर आई। कैलाशनाथ की आंखें छलक पड़ीं। सेठ दौलतराम ने उससे कहा-“कैलाशनाथ ! तुमने हमारी जान बचाकर जो उपकार हम पर किया है उसका हम बदला तो नहीं चुका सकते, मगर हम वचन देते हैं कि तुम्हारे न होने से कमला और राजेश को कोई कष्ट नहीं होने देंगे।"

कैलाशनाथ ने हाथ जोड़कर कहा-“मालिक मैंने जो कुछ किया है वह आपका नमक हलाल करने के लिए किया है-कोई उपकार नहीं किया-'फर्ज' पूरा किया है। फिर उसने राजेश से कहा-“बेटे ! मालिक अन्नदाता होता है और अन्नदाता के हाथों ही मनुष्य का पेट भरता है..हमारे पुरखों ने अपना कर्तव्य निभाना ही हमें सिखाया है..तुम भी
मुझे वचन दो कि मालिक के प्रति वफादार रहोगे...इस खानदानी चलन को पूरा करते रहोगे।"

राजेश ने कहा-"मैं आपको वचन देता हूं बाबूजी-आपके आदेश का पालन करूंगा।"

"शाबास बेटा-मां का ध्यान रखना।" फिर उसने कमला से भी दो बातें की और पुलिस के साथ पुलिस की गाड़ी में चला गया...थोड़ी देर बाद पुलिस वैन नजरों से ओझल हो गई तो पारो कमला को सांत्वना देने लगी।

राजेश स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया नाश्ता करने के बाद जब वह बस्ता उठाए बाहर आया तो दौलतराम बाहर निकल रहे थे-नया ड्राइवर कार का दरवाजा खोले हुए खड़ा था...कार के पीस ही जगमोहन भी स्कूल हाने के लिए तैयार खड़ा था। दौलतराम राजेश को देखकर ठिठक गया और बोला-“कहां जा रहे हो ?'


'
"मालिक ! स्कूल जा रहा हूं।"
.
जगमोहन जल्दी से बाला-"तो आओ-गाड़ी में बैठ जाओ...हम छोड़ देंगे।"

दौलतराम ने जगमोहन को डांटकर कहा-"खामोश रहो।" जगमोहन ने जल्दी से होंठ बन्द कर लिए। सेठ ने राजेश से पूछा-"तुम पढ़-लिखकर क्या करोगे ?"

जगमोहन ने कहा-"डैडी ! आपकी तरह बड़ा आदमी बनेगा।"

दौलतराम ने फिर उसे डांटा-"तुम फिर बोले।"

जगमोहन ने जल्दी से मुंह बंद कर लिया और सेठ राजेश से बोले
"ड्राइवर के बेटे हो...अपनी औकात मत भूलो...पढ़-लिखकर तुम ज्यादा से ज्यादा क्लर्क बन सकते हो...फिर तुम्हें अपनी मां को भी झोंपड़ी में ले जाना पड़ेगा...क्या तैयार हो ?"


"मालिक...!"

"जाओ...यह किताबें अंदर रखकर कपड़े उतारो-गाड़ियां साफ करो–अभी तुम माली का काम संभाल लेना...बाद में हम तुम्हें ड्राइविंग सिखलवा देंगे...जब बड़े हो जाओगे तो ड्राइवर का लायसेंस दिलवा देंगे।"
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फिर वह कार में चले गए। जगमोहन भी उनके साथ गया था। राजेश के नथुने गुस्से से फूले हुए थे-वह तेज-तेज चलता हुआ घर में आया तो कमला ने कहा
“क्या हुआ-तुम स्कूल नहीं गए?"

"नहीं...मैं गाड़ियां धोने जा रहा हूं...फिर माली का काम करूंगा।"

"राजेश ! क्या हो गया है तुझे ?"

"ड्राइवर का बेटा हूं, ड्राइवर ही बन सकता हूं...पढ़-लिखकर क्या मुझे भाड़ झोंकनी है।"

"राजेश...तुम्हें यह किसने कहा ?"

"मालिक ने हुक्म दिया है।"

"नहीं...!"

"बाबूजी ने तो मालिक की जान बचाने के लिए बारह बरस की कैद हंसी-खुशी मोल ले ली...और...यह मालिक...बड़े कृतघ्न निकले।"

"चुप रह नालायक।"

"नालायक की क्या बात है मां? अरे, इनको बचाने के लिए बाबूजी जेल चले गए।"

"बेटा-उन्होंने कोई उपकार नहीं किया..हमारे पुरखों ने भी इस खानदान का नमक खाया है।"

"क्या मुफ्त में खाया है...सेवा नहीं की है।"

"राजेश.!"

"चलो, उठो...जल्दी से सामान बांधो।"

"किसलिए?"

"अब हम यहां नहीं रहेंगे...ताजा-ताजा घाव पर, दौलत के पुजारी सेठ की इतनी जल्दी बेकार फटकार ने मेरे आत्मसम्मान को बड़ी चोट पहुंचाई है...अब हम यहां नहीं रह सकते।"

"कहां जाओगे ?"

"झोंपड़ी में-तुम आराम से रहना..मैं दिन भर मेहनत करूंगा-रात शिफ्ट में पढ़ा करूंगा-जब पढ़-लिखकर बड़ा बन जाऊंगा तो तुम्हें भी इससे बड़े बंगले में ले जाऊंगा।"

फिर राजेश खुद ही सामान समेटने लगा तो कमला ने कहा-"ठहर जा बेटे।"

"नहीं मां।"

"बेटा ! तू अपना वह वचन भूल गया जो तूने बाबूजी को दिया था। तेरे बाबूजी ने वचन लिया था कि हमेशा मालिक की सेवा करेगा ताकि तेरे पुरखों की आत्माएं शांत रहें।"

"मा...!"

"बेटा ! मैं तो तेरे साथ चलने को तैयार हूं, लेकिन तूने यह भी सोचा है कि जब तेरे बाबूजी को जेल में यह पता चलेगा तो उन पर क्या बीतेगी-भगवान के लिए ऐसे विचार छोड़। मालिक 'अन्नदाता' होते हैं...तू उनका नमक खाकर इतना बड़ा हुआ है।"

"मगर मां ! मैं ड्राइवर ही बनकर जिन्दगी नहीं गुजारना चाहता..मैं तुम्हें इस क्वार्टर में नहीं रहने देना चाहता हूं-मैं नहीं चाहता कि बाबूजी बारह साल जेल में रहकर फिर बैल की तरह जुटे रहें।"

"बेटा ! यह तेरी 'नेकनीयती' है भगवान देख रहा है...वह तेरे लिए कोई न कोई रास्ता तो निकालेगा ही।"

अचानक कमरे से आवाज आई-"भगवान ने तो बहुत पहले ही रास्ता निकाल दिया था।"

दोनों चौंककर मुड़े-राजेश ने कहा-"माल-किन!"

पारो झट अंदर आती हुई बोली-"आज से मुझे मालकिन नहीं, बड़ी मां कहा करो।"

"बड़ी मां !"

"हां बेटे ! तुम और जगमोहन गहरे दोस्त हो, इसलिए मेरे लिए तुम दोनों एक समान हो।"

"मालकिन !" कमला ने कहा।

"नहीं...मैंने सब सुन लिया है...मगर ऐसा नहीं होगा जैसा तुम्हारे मालिक ने कहा था।"

राजेश ने कहा-"फिर कैसा होगा ?"

"तुम जिस तरह पढ़ते हो, पढ़ते रहोगे...तुम कुछ बनना चाहते हो...उसके लिए मैं तुम्हारी बड़ी मां, तुम्हारी मदद करूंगी।"

“मगर कैसे ? बड़े मालिक तो...।"

"बड़े मालिक की कुछ नहीं चलेगी..राजेश का खर्चा मैं उठाऊंगी, पढ़ाई का भी।"

"और बड़े मालिक का हुक्म...वह तो राजेश टाल नहीं सकेगा।

"राजेश उस पर भी अमल करेगा...बड़े मालिक रात को आते हैं...सुबह राजेश उनके जाने के बाद जाया करेगा और वापस आकर वह काम कर लिया करेगा जो उन्होंने बताया है...कैलाश भइया को दिया हुआ वचन भी पूरा हो जाएगा...बाकी सब भी संभाल लूंगी मैं-तुम अब जाओ-जल्दी से चले जाओ...यह रूपए रखो टैक्सी से चले जाना।"
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राजेश मुस्कराया-"बड़ी मां-मुझे टैक्सी का किराया नहीं चाहिए—मैं स्कूल तक इतनी तेज दौड़ लगाऊंगा कि एक दिन दौड़ के मुकाबलों में भी हिस्सा ले सकूगा।"

"बेटा ! मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।" पारो ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।

"बड़ी मां-आपका आशीग्रद ही हवाई जहाज के बराबर है।" और वह दौड़ता हुआ बाहर निकल आया।

कुछ देर बाद वह स्कूल का बैग संभाले बिजली की तेजी से सड़क पर दौड़ रहा था।

राजेश दौड़ता हुआ स्कूल जा रहा था। एक बस पास से गुजरी तो उसे किसी लड़की ने चिल्लाकर कहा-"अरे देखो...बस के साथ दौड़ रहा है।"

दूसरी ने हंसकर कहा-"पैसे बचा रहा होगा।"

एक और लड़की ने कहा-“पागल है टैक्सी के साथ दौड़ता तो ज्यादा पैसे बचते।"


बस में एक जोरदार ठहाका गूंजा।"

राजेश ने एक लटके हुए बैग पर झपट्टा मारा

और बैग उसके हाथ में आ गया और लड़की चिल्लाई-"मेरी किताबें ।'

"अब टैक्सी के साथ दौड़कर पहुंचा दूंगा।"

अचानक बस एक क्रासिंग पर रूक गई-वह लड़की सुनीता घबराई हुई जल्दी से नीचे उतर आई और बोली-"तुमने मेरी किताबों का बैग क्यों छीन लिया ?"

इतने में 'बस' चली गई और राजेश ने कहा
"लो...संभालो अपनी किताबें..अब तुम भी मेरे साथ दौड़ो...हम दोनों मिलकर टैक्सी का किराया बचा लेंगे।"

सुनीता ने कहा-"मैंने तुम्हारे बारे में यह थोड़े ही कहा था।"

"फिर किसने कहा था ?"

"वह लड़कियां तो चली गईं।"

"आई एम सॉरी।"

“मगर तुम क्यों इतनी तेज दौड़ रहे थे ?"

"स्कूल जाने के लिए।

"बस से नहीं गए ?"

"मेरे पास बस का किराया नहीं होता।"
-
-
"तो क्या रोज पैदल जाते हो ?"

"हां...वह भी दौड़कर।"
.
"ओ गॉड !"

"क्या है...मसल्स बनते हैं...तुम देख लेना..एक दिन मेरी बड़ी-बड़ी तस्वीरें छपेंगी...टेलीविजन में आएगा कि मैंने 100 मीटर रेस में मिलखा सिंह का रिकार्ड तोड़ दिया है।"

सुनीता हंसकर बोली-"तुम तो कमाल के आदमी हो।"

"इतना ही कमाल का कि आज दो पीरियड मिस न करने पड़े-अगर मैंने आपका बैग न छीना होता अब तक दोनों स्कूल में होते।"

"खैर, आपने कोई गलती नहीं की-जैसे को तैसा होना ही चाहिए।"

इतने में एक आवाज सुनाई दी-“ऐ सुनीता।"

सुनीता चौंक पड़ी-राजेश ने देखा दूर खड़ी एक फीएट में से कोई हाथ बाहर निकालकर चिल्ला रहा था।

राजेश ने कहा-"आपका नाम सुनीता है ?"

"जी हां।"

"बड़ा सुन्दर नाम है।

फिर आवाज आई-"ऐ सुनीता !"
।।
राजेश ने कहा-"यह कौन बदतमीज है ?"

सुनीता ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा-"यूं ही मेरे पीछे पड़ गया है।"

"तो इसे सजा मिलनी चाहिए।"

"मगर क्या सजा दूं ?"

"इसकी गाड़ी में स्कूल जाइए।"

"फिर तो वो मेरे मुंह लग जाएगा।"

"बाद में पीछा छुड़ा लीजिएगा...मैं भी लिफ्ट ले लूंगा।"

इतने में शक्ति पास आ गया और बोला-"सुनीता जी, क्या हुआ है ?"

राजेश ने कहा-"सुनीता जी...आपके भाई साहब क्या कह रहे हैं ?"

"अरे...खबरदार ! भाई होगा तू।"


सुनीता ने कहा-"भैया ! हमें स्कूल छोड़ दोगे।"

"हाय...तुम भी भइया कह रही हो।"

"तो क्या हुआ ?" राजेश ने कहा।

शक्ति ने पूछा-"आप कौन हैं ?"

"मेरे ब्वॉय फ्रेंड हैं। उत्तर सुनीता ने दिया ।

"हाट !" शक्ति उछल पड़ा-"मगर तुम तो मेरी मंगेतर हो।"

"मंगेतर होना अलग बात है और फ्रेंड होना अलग...अभी तो मैं फ्रेंड भी नहीं हुई-शादी की बात तो बरसों बार सोचूंगी।"

राजेश ने कहा-"अरे-फिर सोच लेना..बहुत वक्त है। इसी तू-तू मैं-मैं में स्कूल तो गया।"

"अरे ! यह तो मैं भूल ही गई थी। सुनीता ने कहा-“चलो ! दौड़ लगाते हैं। शायद समय पर पहुंच ही जाएं।"

शक्ति ने जल्दी से कहा-"नहीं नहीं...तुम लोग मेरी गाड़ी में लिफ्ट ले सकते हो।"

कुछ देर बाद वे लोग गाड़ी में थे और गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी । सुनीता और राजेश पिछली सीट पर और शक्ति ड्राइविंग सीट पर था लगभग पांच मिनट बाद एक जगह पर राजेश ने जल्दी से कहा-"बस, बस मेरा स्कूल आ गया।"

शक्ति ने जल्दी से बीच सड़क पर ही कार रोक दी-पीछे से एक कार ने टक्कर मारी और शक्ति की कार आगे सरक गई-शक्ति उतरकर पिछली कार वाले ड्राइवर से लड़ने लगा।

राजेश ने उतरकर कहा-"आपका स्कूल तो गया सुनीता जी.मैं तो पीरियड अटैंड कर लूं।" फिर राजेश अपने स्कूल की ओर दौड़ गया और सुनीता उतरकर एक बस स्टॉप पर जाकर लाइन में खड़ी हो गई।

राजेश स्कूल से निकला और पैदल ही चल पड़ा। अचानक पीछे से एक कार आकर रूकी जिसमें अगली सीट पर जगमोहन स्टेयरिंग संभाले बैठा था...उसके साथ दो लड़के और कुछ लड़कियां थीं-पिछली सीट भरी हुई थी। जगमोहन ने खुश होकर कहा
.
"अरे राजेश, तुम पैदल चल रहे हो।"

"नहीं यार ! हवाई जहाज से आ रहा था उसका पैट्रोल खत्म हो गया और हवाई जहाज कहीं रह गया-मुझे कूदकर नीचे आना पड़ा।"

"कहां है हवाई जहाज ?"

"वो..वो...रहा राजेश।

जगमोहन खिड़की से सिर निकालकर ऊपर देखने लगा तो सभी लड़के-लड़कियां हंसने लगे-राजेश भी हसने लगा। जगमोहन ने राजेश से पूछा-"ये लोग क्यों हंस रहे हैं ?"

"तेरा हवाई जहाज उड़ा रहे हैं।"

"मेरा हवाई जहाज।"

"तेरा मजाक-मजाक ही उड़ाया जाता है न।"

राजेश ने पूछा-"तेरे "फियेट छकड़े में यह सब कौन हैं ?"
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