Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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"मेरे स्कूल के साथी हैं...पैदल या 'बसों' से आते-जाते थे..अब मैं इन्हें घरों से पिकअप करता हूं-फिर वापस पहुंचाता हूं।"

"अच्छा ! तो आप सोशल सर्विस कर रहे हैं।"

"यह क्या होती है ?"
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"अभी बताता हूं।" राजेश ने कहा। फिर उसने अगला दरवाजा खोलकर आगे वाले लड़के-लड़कियों से कहा-"चलो-नीचे उतरो तुम लोग।"

"हाई ?" एक लड़की ने इंगलिश स्टाइल में कहा।

"मिस साहिबा ! यह कार हे...स्कूल बस या एम. ई. एस. टी. की ट्रांसपोर्ट नहीं।"

"तुम कौन होते हो ?"

"मैं इस गधे का दोस्त हूं, जिसके सींग नहीं हैं।"

"शटअप ! तुम हमारी इन्सल्ट कर रहे हो।"

"तुम्हारी इन्सल्ट ! वरना एक-एक को खींच-खींचकर उतार के फेंक दूंगा।"

वह सब जल्दी-जल्दी नीचे उतर गईं-एक लड़की ने जगमोहन को खामोश देखकर कहा-"हमें आपसे यह उम्मीद नहीं थी, मिस्टर जगमोहन ।"

"मैं मजबूर हूं-मेरा दोस्त जो कुछ करता है उसमें मेरी कोई न कोई भलाई छुपी होती है।"

फिर राजेश ने जगमोहन की जगह संभाली और कार चल पडी....जगमोहन ने बडे भोलेपन से । राजेश से पूछा-"तुमने उन लोगों को क्यों उतार दिया?"

"अबे गधे...बे सींग के....अगर तेरी गाड़ी में इतनी भीड़ सेठ साहब देख लें तो क्या करेंगे?"

"क्या करेंगे ?"

"तुझे मुर्गा बनाकर मेरी पीठ पर गाड़ी रखवा देंगे।"

"अरे बाप रे!"
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"यह कार है....टैक्सी नहीं..तुझे इसलिए खरीदकर दी गई है कि तू अपने इस्तेमाल के लिए रखे-न कि तू सवारियां ढोता फिरे।"

"मगर वह लोग तो गरीब हैं बेचारे।"

"इस शहर में लाखों गरीब हैं....तू कितने गरीबों को कार में लिफ्ट दिया करेगा।"

जगमोहन नहीं बोला। बंगले से कुछ दूर राजेश ने कार रोककर कहा-"ले संभाल ! यहां से मैं पैदल जाऊंगा।"

"क्यों ?"

"अबे गधे...अबर मालिक संयोग से बंगले पर हुए और उन्होंने तुझे मेरे साथ देख लिया तो तुझे विदेश पढ़ने भेज देंगे और मुझे–मां के साथ निकाल देंगे।"
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"नहीं, नहीं..!'' जगमोहन झुरझुरी-सी लेकर लेकर बोला।

"चल....जा....जल्दी से।"

जगमोहन कार संभालकर बंगले में पहुंच गया तो पीछे से सेठ दौलतराम की कार अंदर दाखिल हो गई...उनकी कार को देखते ही जगमोहन की घिग्घी बंध गई। दोनों कारें आगे-पीछे आईं।

जगमोहन जल्दी से कार से उतर आया....उसके बाद दूसरी कार से दौलत राम उतरे तो जगमोहन ने जल्दी से उनके चरण स्पर्श किए।

"जीते रहो....जीते रहो।"

इतने में पारो बाहर आ गई और आश्चर्य से बोली-"अरे ! आज आप इतनी जल्दी कैसे आ गए ?"

"आज एक पार्टी से बंगले पर ही बात करनी है...और यह राजेश कहां है ? अभी तक कारें नहीं धोई उसने।"

"बाग की देखभाल कर रहा है पिछवाड़े में।"

अचानक राजेश सादा कपड़ों में आ गया और बोला-"मालिक ! उधर का काम कर दिया-अब कारें धोने जा रहा हूं।"


"ठीक है...ठीक है।"

वह अंदर मुड़े...राजेश ने जगमोहन को आंख मारी
और मुस्कराया-जगमोहन बहुत खुश था कि वह बच गया।
rajan
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सेठ दौलतराम पार्टी से बातचीत करके डिनर के बाद रात के दो बजे फारिग हुए तो जगमोहन के कमरे में रोशनी देखकर पारो से बोले
"यह जगमोहन अभी तक जाग रहा है।"

"स्टडी करता है।"

"भई वाह ! जरा देखें तो।"

"आप उसे डिस्टर्ब करेंगे ?"

"हमारा बेटा है-जब चाहें डिस्टर्ब कर सकते हैं।"

"आपका बेटा अब बारह बरस का लड़का नहीं पन्द्रह बरस का नौजवान है।"

" तो क्या हुआ...फिर वे लोग कमरे की ओर चले तो पारो अंदर बातें करने लगी....उधर कमरे में पढ़ते हुए जगमोहन और राजेश चौंक पड़े....राजेश हड़बड़ाकर बोला-"बड़े मालिक आ रहे हैं तो वह छपाक से बैड के नीचे घुस गया। जगमोहन ने दरवाजा खोल दिया और पारो के साथ दौलतराम अंदर आ गए और बोले
"बहुत खूब....हमारा बेटा इतनी रात गए तक स्टडी कर रहा है।"

"डैडी..अबके में फर्स्ट डिवीजन में ग्यारवहीं में आऊंगा।"

"भगवान तुम्हारी जबान शुभ करें।" पारो ने कहा।

जब दोनों चले गए तो राजेश ने अंदर से दरवाजा बंद किया और बैड की ओर मुड़ा।

"चल आ जा...गए डैडी।"

बैड के नीचे से चौबीस बरस का नौजवान राजेश निकला और बोला-"यार। यह तो इन्कम टैक्स वालों की तरह किसी समय भी तेरे कमरे पर रेड डाल देते हैं।"

"मगर अभी मैं इन्कम टैक्स देता ही कहां हूं।"

राजेश ने ठंडी सांस ली बोला-"जग्गी !"
"हां।"

"तू गधा था, गधा है....और गधा रहेगा-तुझे तो घास के जंगलों में फ्री छोड़ देना चाहिए।"
"किसलिए ?"
"कुछ नहीं अब मैं चल रहा हूं।"
और राजेश खिड़की पर चढ़कर गायब हो गया।


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जगमोहन की कार बंगले से निकली और कुछ दूर चलकर एक जगह रूक गई। कार की डिक्की खुली-उसमें से राजेश निकला-उसके हाथ में कॉलेज की फाइल थी-उसने अपने कपड़े झाड़े और कार में अगली सीट पर बैठ गया...कार चल पड़ी।

कुछ दूर चलने के बाद जगमोहन ने उससे कहा-"यार राजेश ! एक बात बता-यह
आंख-मिचौली कब तक चलेगी ?"

"कैसी आंख-मिचौली ?"

"यही कि तू अकेला कॉलेज से निकलता है-एक मोड़ पर मेरा इन्तजार करता है-फिर मेरे साथ बैठता है-मैं तुझे तेरे कॉलेज के सामने छोड़कर चला जाता हूं-तू मेरे साथ एक कॉलेज में पढ़ भी नहीं सकता।"

राजेश धीरे से हंसा और बोला-"क्या तू परेशान हो गया है मुझसे?"

"हिश्त! कोई अपने आपसे भी परेशान होता है....मैं
और तू क्या अलग-अलग हैं ?"


"हम लोग दिल से और आत्मा से एक हैं केवल शरीरों से अलग हैं और इसका एक कारण यह भी है कि तू एक धनवान सेठ का बेटा है और मैं एक ड्राइवर का बेटा हूं।"

"यह अलगाव कब तक रहेगा ?"
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"जब तक मैं अपने कॉलेज से डिग्री लेकर न निकल आऊं।"

"उसके बाद क्या होगा ? क्या हम दोनों बराबर समझे भी जाएंगे। हम लोग एक-दूसरे के साथ खुले में आजादी से मिल सकेंगे।"

"बिल्कुल-हम दोनों दोस्त बनकर रहेंगे।"

"एक डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा सकेंगे ?"

"हां।"

"अगर यह सब सपना ही रहा तो।"

"तो भी कोई परवाह नहीं।"

"क्या मतलब ?"

''मैं इंजीनियर तो बन ही जाऊंगा। किसी फर्म में


मुझे अच्छी नौकरी मिल जाएगी और फिर मैं भी किसी छोटे-मोटे बंगले में रहने लगूंगा-हम दोनों किसी क्लब या जिमखाने में साथ-साथ बैठा करेंगे।"
"अगर यह भी न हुआ तो..?"
"तब तेरी खोपड़ी को ऑपरेशन कराकर उसमें से गधे का भेजा निकलवाकर उल्लू का भेजा फिट करा दूंगा-अच्छा, अब कार रोक दे।"
"क्यों?"
"मेरा कॉलेज आ गया है।"
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"अरे हां।" जगमोहन ने जल्दी से ब्रेक लगाए। कार रूकने पर राजेश ने कहा-"अब मैं चलता हूं
और हां-वापसी में मुझे पिकअप करने के लिए मत रूकना....आज से मैं 'बस' द्वारा ही आया-जाया करूंगा।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि यह मेरा पढ़ाई का आखिरी साल है
और मैं नहीं चाहता किसी जरा-सी बात से मैं डिग्री से वंचित रह जाऊं और जीवनर भर पिताजी
के समान ड्राइवर बना रहूं।"
rajan
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"मगर यार !"
"जा....तेरे कॉलेज में देर न हो जाए।"
"तो फिर अब हम दोनों मिल नहीं सकेंगे।"
"रात में....तेरे बैडरूम में ।'
"सच!"
"और क्या झूठ!" फिर उसने जगमोहन का हाथ दबाया और तेज-तेज चलता हुआ फाटक से । कॉलेज में घुस गया। जगमोहन ने बड़े अच्छे ढंग से मुस्कराकर कार आगे बढ़ा दी।
"मिस्टर जगमोहन !"
"यस सर!"
"क्या आप कम सुनते हैं ?"
"यस सर।"
क्लास रूम में एक जोरदार ठहाका गूंजा.... प्रोफेसर भी मुस्कराकर रह गया। जगमोहन बड़े
आराम से खड़ा रहा-फिर जब हंसी का शोर थमा
तो प्रोफेसर ने मुस्कराकर कहा-"आप किसी नशे में हैं मिस्टर जगमोहन।"

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"सर ! मैं सिर्फ काम की बातें सुनता हूं-बेकार बातें नहीं और इस दुनिया में लोग काम की बातें नहीं और इस दुनिया में लोग काम की बातें कम करते हैं और बेकार की ज्यादा।"
प्रोफेसर सन्नाटे में रह गया...और बोला-"यह ज्ञान दर्शन तुम्हें किसने दिया है ? अच्छा, अभी जो सवाल हमने किया, क्या वह बेकार था?"
"जी-मैंने सुना ही नहीं।"
"तो फिर एक सवाल और सुनिए...ताजमहज किसने बनाया था ?" जगमोहन चुप रहा तो प्रोफेसर ने सवाल दोहराया।
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"सर ! राज मजदूरों ने बनाया होगा....अब आप उनके नाम पूछेगे।"
इस पर क्लास में और ठहाका लगा।
"हमारा मतलब था किसने बनवाया था ?"
"सर ! मैंने तो ताजमहल देखा ही नहींहां, एक बार डैडी अपने साथ ताजमहल होटल जरूर ले गए थे।"

"ताजमहज तो दुनिया सातवां अजूबा (सेवेन्थ वन्डर) है।"
"बाकी छ: अजूबे कौन-से हैं?"
अचानक एक लड़की ने उठकर कहा–''एक्स्क्यू मी सर !'

"यस मिस सुनीता।"


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"सर! पहले सात अजूबे थे कभी और अब आठ हैं।"
"आठवां अजूबा कौन-सा है ?"
लड़की ने जगमोहन की और उंगली उठाकर कहा-"आपके सामने खड़ा है। इस पर सब हंस पड़े।
"मिस्टर जगमोहन आपको क्या 'सम्मान' दिया है-कैसे लगा?"
जगमोहन ने कहा-"आई एम एट्थ वण्डर और मेरे कारण सबको हंसने का मौका मिला....मुझसे बढ़कर खुशनसीब कौन हो सकता है।"
थोड़ी देर क्लास में सन्नाटा रहा–फिर शक्ति ने खड़े होकर कहा
"सर ! यह आदमी एक नम्बर का बेवकूफ मालूम होता है।"
जगमोहन ने वैसे ही खड़े-खड़े कहा-"नो सर! मुझे दूसरे नम्बर पर ही रहने दें पहले नम्बर का गौरव इन्हें ही मुबारक हो।"
इस बार सारी क्लास शक्ति पर हंस पड़ी। शक्ति गुस्से से लाल-पीला होकर जगमोहन पर झपट पड़ा और उसके पास आकर घूसा जड़ दिया–मगर जगमोहन ऐसे चुपचाप शांत खड़ा रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो...प्रोफेसर ने ऊंची आवाज से कहा
"होल्ड युअर सैल्फ शक्ति ।"
फिर कई लड़कों ने शक्ति को पकड़ लिया और
खींचकर सीट पर बिठा दिया। शक्ति हांफता हुआ बैठ गया...और जगमोहन हो गुस्से से घूरता हुआ बोला-"अच्छी बात है....बाहर निकलोगे तो देखूगा।"
जगमोहन ने ठहरे हुए स्वर में कहा-"देख लेना भाई।"
सुनीता जगमोहन को देखती हुए एक साथी लड़की से बोली-“एकदम कावर्ड लगता है।
यह पूरा पीरियड स्टूडेंट्स और टीचर के बीच छोटे-मोटे डायलाग में बीत गया....यह जनरल नॉलेज का पीरियड था। आखिर में प्रोफेसर ने जगमोहन को बताया
"ताजमहल आगरा में है उसे शाहजहां ने बनवाया था अपनी बेगम मुमताज महल की याद में...उसे अपनी बेगम से बहुत मुहब्बत था-वह चाहता था कि यह मुहब्बत अमर रहे।
अचानक छुट्टी का घंटा बजा और लड़के-लड़कियां टोलियों में बाहर निकलने लगे....लड़कियोंके झुंड में से अचानक शक्ति ने सुनीता का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा-"आओ सुनीता।"
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rajan
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सुनीता ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से से बोली-"यह क्या बदतमीजी है ?"
"कमाल है-तुम मेरी होने वाली....!"
"बकवास मत करो....मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं।"
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"नाराज क्यों होती हो सबके समाने...चलो तुम्हें तमाश दिखाऊंगा ।"
"कैसा तमाशा ?"
"वह उल्लू का पट्ठा जगमोहन क्लास रूम में बच गया-उसे बाहर मजा चखाऊंगा।"
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"तुम्हीं ने तो छेड़ा था उसे बेवकूफ कहकर।"
"उसने मेरी इन्सल्ट कैसी ! उसने यही कहा था न कि उसे नम्बर दो पर ही रहने दिया जाए।"
"इसका मतलब तो यही हुआ न कि नम्बर एक बेवकूफ मैं हूं।"
"इसमें शक ही क्या है ?" जब देखते हो, बकवास शुरू कर देते हो... मैं तुम्हारा हाने वाला....कभी मुंह देखा है आईने में।"
तभी जगमोहन ने कार में बैठकर हार्न बजाया और कई लड़के और लड़कियां उसकी कार में बैठ गए। फिर जगमोहन ने कार बढ़ाई ही थी कि शक्ति की खटारा कार ने उसका रास्ता रोक लिया और ब्रेक लगाते-लगाते भी शक्ति की कार में धक्का लगकर शक्ति की कार का एक बम्पर पिचक गया।
शक्ति चिल्लाया-"बास्टर्ड ! नजर नहीं आता।"
जगमोहन ने नरमी से कहा-" अरे भाई! कार तो तुम्हीं ने आगे रोकी थी।"
"नीचे उतरकर आ....बताता हूं।"
दोनों अपनी-अपनी कार से नीचे उतर आए... शक्ति ने उसे घूरते हुए कहा-"उल्लू के पट्टे ! तूने मुझे बेवकूफ नम्बर वन क्यों कहा था ?"

"मैंने नहीं, तुमने कहा था।"
"और तूने मेरी कार डैमेज कर दी है।"
"वह भी तुम ही सामने लाए थे...तुम लड़ने के मूड में लगते हो।"
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शक्ति ने आव देखा न ताव, लगातार दो-तीन चूंसे जगमोहन पर जड़ दिए और जगमोहन चुचचाप पहाड़ की तरह हिला तक नहीं-न उसने हाथ ही उठाया। शक्ति हांफने लगा तो जगमोहन ने कहा
"भाई ! थोड़ी देर सांस ले लो।"
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सुनीता आश्चर्य से देख रही थी...उसने पास खड़ी सहेली से कहा-"अजीब लड़का है यह।"

"एकदम अनोखा-अभी तुमने देखा ही क्या है ?"
शक्ति की सांसें ठीक हुई तो उसने अपने सिर की एक जोरदार टक्कर जगमोहन के सीने पर मारी....मगर जगमोहन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा....और दूसरी ओर....शक्ति की गर्दन हिली-आंखें भीगी हो गईं और वह लड़खड़ाकर चारों खाने चित्त गिरा। जगमोहन ने जल्दी से कहा-"अरे भाई क्या हो गया ?"

लेकिन शक्ति ने कोई जवाब नहीं दिया। कार में से किसी ने कहा-"वह तो बेहोश हो गया है....या अपनी झेंप मिटा रहा है....चलो इसे हटाओ....देर हो रही है।"
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जगमोहन ने उसे एक बच्चे की तरह उठाया और उसकी कार का दरवाजा खोलने लगा तो सारा दरवाजा ही हाथ में आ गया। सबने ठहाके लगाए-सुनीता अचम्भे से देखे जा रही थी। जगमोहन ने कहा
"अच्छी....कागज की कार बनाई है।" फिर उसने दरवाजा छत पर रख दिया और शक्ति को कार के अंदर लिटा दिया-कार बीच सड़क पर खड़ी थी....जगमोहन ने उसे बच्चों की खिलौना कार की तरह सरकाकर साइड में कर दिया। सुनीता हैरान-सी खड़ी देखती रही...जगमोहन अपनी कार में आकार बैठ गया।
कुछ देर बाद कार सड़क पर दौड़ रही थी।
जब भीड़ छंट गई तो शक्ति उठकर बैठ गया और अपने आप बड़बड़ाया-'उल्लू का पट्ठा!'
फिर ड्राइविंग सीट पर आ बैठा..कार स्टार्ट की तो हो गई-उसने गियर डाला तो कार चल पड़ी....और छत पर रखा दरवाजा नीचे गिरा तो शक्ति हड़बड़ा गया। उसने कार रोककर दरवाजा उठाया और किसी तरह उसे डिक्की में ढूंसा..फिर कार लेकर चला तो एक स्टॉप पर सुनीता खड़ी नजर आई....कार थोड़ा आगे निकल गई थी...वह कार रोककर रिवर्स में कार लाया। सुनीता चौंककर देखने लगी। शक्ति ने कहा
"आओ सुनीता....बैठ जाओ....मैं तुम्हें ड्रॉप कर दूंगा।"
सुनीता ने हंसकर कहा-"इस कार में ?"
शक्ति भारी आवाज में बोला-"मेरा मजाक मत उड़ाओ....आज मैं बहुत दुखी हूं...मेरा भरपूर अपमान हुआ है-इसने मुझे तोड़ दिया है।"
सुनीता को उस पर दया आ गई-वह कार में बैठ गई-कार चल पड़ी तो सुनीता ने कहा-"तुम उससे उलझे ही क्यों थे ?"
"सब मजाक कर रहे थे-मैंने भी कर लिया।"
"मगर तुम सीरियस हो गए।"
"तुम तो जानती हो, मेरा टेम्परामेंट थोड़ा लूज है।"
"अपने मिजाज को काबू में रखा करो तो उससे ज्यादा ताकतवर से जीत सकते हो।"
"उसे गुस्सा आता ही कब है।"
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"यही तो कमाल की बात है।"
"मर्दो को गुस्सा आना ही चाहिए।"
"शक्ति! तुम अपनी हार को छुपाने का प्रयास मत करो।"
सुनीता सामने देख रही थी....अचानक शक्ति ने उसकी कनपटी पर चूंसा मार दिया और सुनीता बिना आवाज निकले सीट पर लुढ़क गई।
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