Romance फिर बाजी पाजेब

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Romance फिर बाजी पाजेब

Post by rajan »

प्रेम बड़ी तेजी से बाहर आ गया। कुछ देर बार उसकी कार सड़क पर दौड़ रही थी। फिर एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के सामने रूककर बूथ में घुसकर उसने इलाके के पुलिस स्टेशन का नम्बर घुमाया।

“यस ! अंधरी पुलिस स्टेशन ।'

प्रेम ने माउथ पीस पर रूमाल डालकर अपनी आवाज बदलते हुए बोला-“देखिए, एक आदमी एक लाश ठिकाने लगाने जा रहा है।"

"आप कौन बोल रहे हैं ?"

"आपको इससे गुरेज नहीं होनी चाहिए, क्योंकि मैं जिसके बारे में खबर दे रहा हूं वह मेरी जान का दुश्मन भी बन सकता है।

"आप कहां से बोल रहे हैं ?"

"मैं अंधेरी ही के इलाके में हूं..लाश वरसोवा के इलाके ही में ठिकाने लगाई जाएगी...आप गाड़ी का माडल और नम्बर नोट कर लीजिए।" और प्रेम ने गाड़ी का माडल, रंग और नम्बर नोट करा दिए और आखिर में बोला-

"जल्दी से इन्तजाम कीजिए।"

"हम अभी ‘गश्ती स्क्वाड' को वायरलेस करते हैं।"

प्रेम ने झट डिस्कनेक्ट करके डायल घुमा दिया।
-
फिर वह जल्दी से बाहर आकर कार में सवार हुआ और इंजन स्टार्ट करके कार को 'यू' टर्न देने लगा। चंद क्षण बाद ही पुलिस की पैट्रोल कार हरकत में आ गई।

प्रेम धीरे-धीरे कार ड्राइव करने लगा...उसे खुशी थी कि वह अपनी स्कीम में कामयाब हो गया है।

कैलाशनाथ कपड़े धोकर बाहर आया तो उसने देखा सेठ दौलतराम हिस्की के बूंट ले रहा है। कैलाश को देखकर उसने जल्दी से पूछा
"क्या हुआ कैलाश ?"

"मालिक लिबास पूरी तरह धो दिया है।"

"भगवान के लिए लाश जल्दी से यहां से ले जाओ-कहीं मुझे अटैक न हो जाए।"

"आप सन्तुष्ट रहिए..आपके ऊपर कोई बात नहीं आएगी।" और बोला-"आप दरवाजा अंदर से बंद कर लें और सावधान रहिए।"

कैलाश बाहर आ गया-कुछ देर बाद वह कार कम्पाउंड से बाहर निकाल रहा था फिर कुछ ही दूर कार चली होगी कि पीछे से पुलिस की पैट्रोलिंग कार का सायरन गूंजा।

कैलाश के हाथ-पांव फूल गए-उसने सोचा, हो सकता है कहीं कोई रेड पड़ रही हो...उसने पैट्रोलिंग की कार को रास्ता दे दिया और कार रोक ली। पुलिस की गाड़ी से कई सिपाही कूदे और उन्होंने कार को चारों तरफ से घेर लिए...इंस्पेक्टर ने कैलाश से कहा
"नीचे उतरो।"

कैलाश के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं, लेकिन वह अपने आपको शांत रखने की कोशिश करता हुआ दरवाजा खोलकर उतर आया और थूक निगलकर फंसी-फंसी आवाज में बोला
"क...क...क्या बात है साहब ?"

इंस्पेक्टर ने कड़े स्वर में कहा-"डिक्की खोलकर दिखाओ।"

"स...स...साहब !"

"जल्दी करो।"

कैलाश ने कांपते हाथों से 'इग्नीशन' से चाबियां निकालकर डिक्की का लॉक खोला-एक पुलिसमैन
ने ढक्कन उठाया और दूसरे ने टार्च की रोशनी अंदर डाली। कैलाश का चेहरा पीला पड़ गया।

"सूचना सच्ची थी साहब ।“ कांस्टेबल ने कहा

"लाश डिक्की में मौजूद है।"

इंस्पेक्अर ने कहा-“गिरफ्तार कर लो।"

कैलाश के हाथों में हथकड़ियां पड़ गई-एक कांस्टेबल ने उसकी जेब टटोली और बोला-"रिवॉल्वर भी मौजूद है। उसने रूमाल से पकड़कर रिवाल्वर भी निकाला और इंस्पेक्टर को दे दिया।

इंस्पेक्टर ने कहा-"हूं ! तो इसी रिवाल्वर से खून किया है तुमने ?'

"ज...ज...जी !"

"और लाश ठिकाने लगाने ले जा रहे थे।"

"ज...ज...जी हां।"

"किसके ड्राइवर हो ?"

"स...स....सेठ दौलतरामजी का।"

"क्या दौलत बिल्डर्स वाले ?"

"ज...ज...जी हां।"

"और-लाश किसकी है ?"

“जी...म...म...मास्टर देवीदयाल शर्मा की।"

इंस्पेक्टर उछलकर बोला-"देवीदयाल शर्मा...वह स्वतंत्रता सेनानी?"

"ज...ज...जी हां।"

"मगर उनसे तुम्हारी क्या दुश्मनी थी ?"

"ज...ज...जी वह...वह मेरे मालिक को जान से मारना चाहते थे।"

"क्यों ?"

"उनके बंगले का कोई चक्कर था।"

अचानक पीछे से प्रेम की कार की हैडलाइट्स पड़ी और कार रूक गई-वे लोग देखने लगे तो कार में से उतरता हुआ प्रेम बोला-"अरे कैलाश, क्या हुआ है ?" फिर वह डिक्की में रोशनी देखकर चौंक पड़ा-“यह रोशनी कैसी है ?"

"आप कौन हैं ?" इंस्पेक्टर ने प्रेम को घूरकर पूछा।

"जी-मैं प्रेम कुमार शर्मा ।"

"इस ड्राइवर को कैसे जानते हैं ?"

"आफिसर ! जिस बिल्डर के यहां यह कैलाश ड्राइवर है उन्हीं के यहां मैं असिस्टैंट मैनेजर हूं।"

"ओहो !"

"मगर यह लाश किसकी है ? कैलाश इसे कहां ले जा रहा था ?"

"ठिकाने लगाने...यह मास्टर देवीदयाल की लाश है।"

प्रेम जैसे अनायास उछल पड़ा हो। कैलाश ! तुमने मास्टरजी को मार डाला?"

कैलाश का चेहरा और भी ज्यादा सुत गया। इंस्पेक्टर ने प्रेम से कहा
"मास्टर जी तो महात्मा थे।"

"महात्मा !" प्रेम ने आंखे बनाकर कहा-"अरे, महात्मा के मुखौटे में असल शैतान।"

" व्हाट !"

"अजी साहब..मैं गवाह हूं इस बात का।"

"वह कैसे ?"
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Romance फिर बाजी पाजेब

Post by rajan »

"इनका बंगला बहुत मशहूर है न....यह बंगले में स्कूल बनाने का नाटक कर रहे थे-दरअसल यह अपना बंगला किसी बिल्डर को मुंहमांगे दामों पर बेचना चाहते थे–मैं गवाह हूं कि मास्टर जी ने बंगले का सौदा पच्चीस लाख में किया था, हमारे मालिक से और वकील से इस बात के कागजात भी तैयार करा लिए गए थे-उन्होंने दस लाख रूपए बिना लिखा-पढ़ी के बेयरर चैक द्वारा पेशगी भी दे दिए थे-उन्हें विश्वास था कि इतने महान स्वतंत्रता सेनानी झूठ भी बोल सकते हैं-वह दस लाख रूपए उन्होंने कैश करवा लिए...और जब मैं फाइनल कागजों पर उनके हस्ताक्षर लेने गया तो वह साफ मुकर गए कि मैंने उन्हें कोई चैक दिया ही नहीं।"

इंस्पेक्टर ने कहा-"यह अदालत का मामला है...इससे हमें कुछ नहीं लेना-देना..मास्टर देवीदयाल का कत्ल हुआ है लाश और रिवॉल्वर मिल गई है...ड्राईवर कैलाश का बयान है कि अपने मालिक को बचाते हुए मकतूल से रिवाल्वर छीनते हुए छीना-झपटी में गोली चल गई...और रिवाल्वर की नाल चूंकि मास्टरजी की तरफ हो गयी थी...गोली उन्हें लग गई और वह मर गए।"

प्रेम ने कहा-"एग्रीमेंट की फाइलें मेरे पास हैं-मैंने ही उन दोनों की मुलाकात का इन्तजाम किया था।"

इंस्पेक्टर ने कहा-"ड्राइवर बेगुनाह है या नहीं, इसका फैसला तो अदालत ही करेगी.मामला कुछ गहरा लगता है पूरी तफतीश होगी-रिवाल्वर किसका था और इस ड्राइवर के पास कैसे आया ?"

प्रेम ने कहा-"रिवाल्वर कहां है ?"

इंस्पेक्टर ने रूमाल में लिपटा हुआ रिवाल्वर उसे दिखाया।

प्रेम ने झट कहा-"यह रिवाल्वर सेठ साहब का नहीं..मास्टर जी ही कहीं से लाए होंगे...उनकी नीयत ठीक नहीं थी।"

पुलिस इंस्पेक्टर ने कोई राय जाहिर नहीं की और हवलदार से बोला-"अपराधी को पुलिस स्टेशन लेकर चलो-एम्बूलेंस के आने पर मैं लाश जरूरी कार्यवाही के लिए सरकारी हस्पताल में पहुंचकार आऊंगा। और कॉटेज पर पुलिस बिठा दी जाए।"

कैलाश चुपचाप पुलिस वैन में बैठ गया। प्रेम ने कैलाश से कहा-"घबराओ मत-तुम्हें सजा नहीं होगी...होगी भी बहुत कम-मैं सेठजी से कहकर बहुत बड़े वकील का इन्तजाम करता हूं...जमानत की पूरी कोशिश की जाएगी, और प्रेम जीप में बैठकर कॉटेज की तरफ चल पड़ा।

सेठ दौलतराम ने जैसे ही घंटी की आवाज सुनी-उनके हाथ से गिलास गिरते-गिरते बचा। दरवाजे के पास जाकर उन्होंने फंसी-फंसी आवाज में पूछा

"कौन है ?"

"मैं—प्रेम।"

सेठ दौलतराम ने जल्दी से गिलास खाली करके रख दिया और दरवाजा खोला। प्रेम अंदर आया
तो सेठ पीछे हट गया। प्रेम ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा
.
"यह क्या हो गया सेठजी ?"
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Romance फिर बाजी पाजेब

Post by rajan »

सेठ दौलतराम ने जल्दी से गिलास खाली करके रख दिया और दरवाजा खोला। प्रेम अंदर आया तो सेठ पीछे हट गया। प्रेम ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा
.
"यह क्या हो गया सेठजी ?"

"क्या..?"

"मास्टर जी का खून कैसे हो गया ?"

सेठ का चेहरा पीला पड़ गया उन्होंने कहा-"तुम्हें कैसे मालूम हुआ ?"

"कैलाश कार में लाश ले जाता पकड़ा गया है।''

"नहीं।"

सेठ लड़खड़ाकर पीछे हटकर धम्म से सोफे पर बैठ गया-प्रेम ने जल्दी से कहा-"अपने आपको संभालिए सेठजी।"

"क...क...कैलाश ।"

"घबराइए मत सेठ जी-कैलाश ने कुछ नहीं कहा।"

"क्या मतलब ?"

"उसने आपका 'इल्जाम' अपने सिर ले लिया है।"

"ओहो !"
.
"यह तो अच्छा हुआ कि मैं ठीक समय पर वहां पहुंच गया।"

"मगर तुम्हें कैसे मालूम कि कैलाश ने मेरा अपराध अपने सिर ले लिया ?"

"सर ! वह रिवाल्वर आपके लिए लेकर रखा था जिससे आपने गोली चलाई और वह रिवाल्वर कैलाश के पास से पुलिस को मिल गया है।"

“मगर मैंने खून नहीं किया।"

"फिर किसने किया है ?"

"पहले तुम बताओ...तुम कहां रह गए थे ?"

"सर ! मैं तो एक खूबसूरत सोसाइटी गर्ल की तलाश में गया था-एक लड़की का इन्तजार था...जब बहुत देर हो गई तो मैंन सोचा, इधर कोई गड़बड़ न हो जाए इसलिए लौट आया....रास्ते में कैलाश को पुलिस के साथ देखा...आपकी गाड़ी जो कैलाश ले जा रहा था-साइड में खड़ी थी...और लाश अभी तक डिक्की में रखी थी।"

"कैलाश ने बड़ी वफादारी और कुर्बानी की है मेरे लिए-मगर...।"

"मगर क्या ?"

"मुझे डर है कि मौत के डर से और अपनी पत्नी और बच्चे के भविष्य का विचार उसे पुलिस स्टेशन पर पहुंचकर अपना बयान बदल न दे।"

"मेरा विचार है कैलाश ऐसा नहीं करेगा।"

"तुम किसी तरह उस तक यह खबर पहुंचा दो कि मैं उसकी पत्नी और बेटे की पूरी देखभाल करूंगा।"

"वह तो मैं कर ही दूंगा, मगर मैं आपकी जबान से विस्तार से सुनना चाहता है।"

सेठ दौलतराम ने वही सब बताया जो हुआ था...आखिर में कहा-"मैं लाश ठिकाने के लिए तुम्हारा इन्तजार कर रहा था कि कैलाश आ गया और उसने सब कुछ कर दिया। मैं तो समझा था उसने लाश को ठिकाने लगा दिया होगा।"

"खैर-जो कुछ हुआ अच्छा हुआ। कैलाश लाश के साथ पकड़ा गया-अगर न पकड़ा जाता और लाश किसी गटर में फेंक देता और लाश पुलिस को मिल जाती...सी. आई. डी. इन्क्वायरी करती तो मास्टरजी के घरवालों द्वारा बात आप तक जरूर पहुंचती और आपकी पोजीशन सन्देहजनक हो जाती।"

“तुम ठीक कहते हो-मगर कैलाश का बचना भी जरूरी है-हमारा पुरखों से चला आ रहा विश्वसनीय नौकर है।"

"उसे मौत की सजा तो हो नहीं सकती, क्योंकि उसके लिए तीन साक्षियों की जरूरत होती है और यहां केवल मास्टरजी, आप और कैलाश ही थे...आप भी कैलाश के बयान का समर्थन ही करेंगे।"

"नि:संदेह।"

"वैसे भी कैलाश का कोई निजी बैर तो था नहीं-फिर वह उन्हें क्यों मारता।"

"तुम ठीक कहते हो।"

"इसके अलावा कैलाश की सफाई के लिए आप बड़े से बड़ा वकील कर लें।"

"उसका बन्दोबस्त कल ही हो जाएगा।"

"बस तो आप निश्चिन्त होकर बैठिए।"

सेठ दौलतराम अपने लिए फिर ह्विस्की का गिलास भरने लगा।

विद्यादेवी ने पुराने वाल-क्लाक के घंटे सुने, रात के ग्यारह बज रहे थे....उनके चेहरे से चिन्ता झलकने लगी...उन्होंने सुनीता की ओर देखा जो बड़े ध्यान से होमवर्क कर रही थी। उन्होंने सुनीता को पुकारकर कहा-"देख तो बेटी...अभी तक तेरे बाबूजी लौटकर नहीं आए।"

"कहां गए थे ?"
.
"सेठ दौलराम के यहां।"

"हे भगवान !"

"जरा अशोक को तो बुला ला।"

"अशोक भैया इस समय कहां जाएंगे ?"

"मैं उससे सेठजी के यहां फोन कराऊंगी।"

“फोन नम्बर है आपके पास ?"

“फोन नम्बर तो वह जाते ही मुझे दे गए थे मेरा मन तो पहले ही खटका था-मैंने रोकना चाहा...मगर न जाते तो उनपर दस लाख रूपयों की बेईमानी का दोष मढ़ दिया जाता।"

"मैं अभी अशोक भैया को बुलाकर लाती हूं।" सुनीता जल्दी से कापी बंद करके बाहर आई।
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Romance फिर बाजी पाजेब

Post by rajan »

बरामदे में पहुंची ही थी कि फाटक पर एक कार रूकी..रोशनी का झमाका भी हुआ तो वह ठिठककर रूक गई-पीछे से विद्यादेवी आ गईं।

"किसकी कार है ?"

"शायद बाबूजी आए हों टैक्सी में।"

इतने में प्रेम कार से उतरकर फाटकर खोलने लगा तो विद्यादेवी समाने आकर बोलीं-"हे भगवान ! यह तो सेठजी का आदमी है।"

प्रेम उनके पास आ गया और हाथ जोड़कर बड़ी मुश्किल से भारी आवाज में बोला-"नमस्ते भाभी जी।"

"नमस्ते भइया ! मास्टरजी नहीं आए।"

"मैं आपके पास इसीलिए आया हूं-इतनी रात गए।"

"क्या मतलब !"

"देखिए भाभीजी, मैं आपको मां समान समझता हूं और सुनीता को अपनी बेटी समान।"

"भगवान के लिए...बताइए न।"


"भाभीजी, कभी-कभी सीने पर पत्थर भी रख लेना पड़ता है, क्योंकि 'होनी' को कोई नहीं टाल सकता।"

सुनीता और विद्यादेवी के कलेजे दहल गए... विद्यादेवी ने जल्दी से कहा-"बात क्या है ? कहां हैं मास्टरजी ?"
"मास्टर जी...हम सबसे अच्छी जगह हैं।"

"क...क...क्या मतलब ?"

प्रेम ने झूठमूठ के आंसू पोंछते हुए भारी आवाज में कहा

"मास्टरजी परलोक सिधार गए हैं।"

"नहीं.!" विद्यादेवी लड़खड़ाकर पीछे हट गईं-उनकी आंखों में जैसे अंधेरा-सा छा गया। सुनीता के गले से चीख निकली

"बाबूजी..मेरे बाबूजी कहां हैं ?"

"बेटी-बेटी-।" प्रेम जल्दी से बोला।

अचानक विद्यादेवी ने अपनी चूड़ियां तोड़ डाली...माथे की बिन्दिया नोचकर फूट-फूटकर रोने लगी...अचानक अशोक की आवाज आई

"मौसी-सुनीता...क्या हुआ ?"

"भैया...बाबूजी...!"
.
.
अशोक जल्दी से पास आता हुआ बोला-"मास्टर जी-क्या हुआ उनको।

प्रेम ने मगरमच्छ के-से आंसू पोंछते हुए भारी आवाज में कहा
"मास्टर जी का खून हो गया है।"

"हां अशोक ।" और सुनीता अशोक से लिपटकर रोने लगी।

प्रेम ने आंसू पोंछकर रूंधे गले से कहा

"सेठ दौलतराम मेरे मालिक सही...लेकिन मालिक की बुराइयों पर पर्दा डालना भी पाप है...वह किसी भी हालत में यह बंगला लेना चाहते...फाइव स्टार होटल के लिए।

"जब आपको मालूम था। विद्यादेवी ने कहा

"तो फिर आपने इनकी मुलाकात सेठ साहब के साथ रखवाई ही क्यों ?"

"मैं अपने इस पाप से सात जन्मों तक मुक्ति नहीं पा सकता–भाभीजी-मैं न व्यापारी हूं, न धनवान, न मुझे चालाकी आती है-सेठ जी का ख्याल था कि मास्टर जी कुछ न कुछ लिहाज मेरा जरूर करने लगे हैं।" उसने हल्की सांस ली और बोला-"बस...सेठजी ने इसी बात का लाभ उठाया-उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि वह मास्टरजी के हाथों स्कूल बनवाएंगे-मैं उनकी बातों में आ गया-बस मुझसे यही भूल हो गई।'

सुनीता ने उसे ध्यान से देखकर कहा-"जब यह सब हुआ तो आप कहां थे?"

"मैं-मैं तो तब पहुंचा जब कैलाश मास्टरजी को मार चुका था।"

"कैलाश !" विद्यादेवी चौंककर बोलीं-"कौन है यह कैलाश ?"

“सेठजी का खानदानी चमचा...उनका ड्राइवर कैलाश...उसकी पीठ पर सेठजी का हाथ है-उसने सेठजी से कहा था कि वह मास्टर जी से कागजात पर दस्तखत कराके रहेगा।"

"फिर ?"

"वह बड़ा जालिम और निर्दयी आदमी है-उसने जरूर मास्टरजी पर जोर डाला होगा...लेकिन मैं जानता हूं सेठजी अपने इरादे के बड़े पक्के हैं...मास्टरजी ने इनकार कर दिया होगा और कैलाश ने उन्हें मार डाला।

"आप उस समय कहां थे?"

"मुझे सेठजी ने जुहू भेज दिया था। वह समझते थे कि मैं मास्टरजी के साथ कोई ज्यादती नहीं होने दूंगा।"

"फिर ?"

"मैं जुहू से वरसोवा आ रहा था, तब रास्ते में मैंने देखा कि कैलाश को लाश के साथ पकड़ लिया है।"

“पकड़ा गया..अच्छा है...भगवान करे कुत्ते को फांसी लग जाए।

“ऐसा तो संभव नहीं है बेटी।"

"क्यों ? क्या उसने खून नहीं किया ?"

"बेटी ! आजकल धन से सब कुछ हो सकता है-सेठजी कैलाश को इतनी बड़ी सजा से जरूर बचा लेंगे।"

विद्यादेवी ने कहा-“मास्टरजी ने कागजात पर हस्ताक्षर तो नहीं किए होंगे ?"

"नहीं...यह तो मैं जानता हूं।"

विद्यादेवी पूरे आत्मविश्वास व दृढ़ता से बोली-"अगर कर भी दिए हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता...मेरी आखिरी सांस तक तो इस बंगले पर कोई इमारत या होटल नहीं बन सकता-अब तो इस बंगले पर स्कूल ही बनेगा, चाहे कभी भी बने-मेरे ससुरजी का सपना जरूर पूरा होगा।"

"भगवान आपकी जबान शुभ करें।" प्रेम ने कहा-"मैं आपको यही खबर करने आया था–मास्टरजी का शव पोस्टमार्टम के बाद सरकारी हस्पताल से मिलेगा।" फिर उसने उठते हुए कहा-"मास्टर जी ने मुझसे कहा था कि भगवान न करे उन्हें कुछ हो जाए तो मैं आपका और सुनीता बेटी का ध्यान रखू। आप मेरी मां समान हैं-किसी भी परेशानी के समय मुझे याद रखें।"

फिर उसने सुनीता के सिर पर हाथ फेरा और विद्यादेवी के चरण छूकर बाहर निकल गया।

राजेश जगमोहन के कमरे में उसके साथ टेबल लैम्प की रोशनी में स्टडी कर रहा था और साथ-साथ उसे समझाता भी जा रहा था। मगर बीच-बीच में वह चोरों की तरह दरवाजे की ओर भी देख लेता था। एकबार उसने दरवाजे की ओर देखा तो जगमोहन ने पूछा
"तुम बार-बार दरवाजे की तरफ क्यों देखते हो

"यार ! कहीं बड़े मालिक न आ जाएं।"

"अरे....वह दरवाजा अन्दर की ओर है, भला वह अंदर कैसे आ जाएंगे।"

तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई और दूसरे ही क्षण राजेश बैड के नीचे था। जगमोहन ने धीरे से पूछा-"क्या हुआ ?"

"अबे...सुनाई नहीं देता, किसी ने दरवाजा खटखटाया है।"

दस्तक फिर हुई और जगमोहन भी चौंक पड़ा और दरवाजा खोलकर बोला-"नहीं, यहां राजेश नहीं है।"

पारो ने अंदर आते हुए कहा-“चुप रहो गधे।"

राजेश बैड के नीचे से निकल आया । पारो ने चिन्तित स्वर में कहा

“राजेश बेटा, मेरा जी बहुत घबरा रहा है।"

"क्यों मालकिन ? कुशल तो है सब?'

"बेटा-आज चार बजे के गए हुए जगमोहन के डैडी अभी तक नहीं आए हैं।


"तो यह कोई नई बात है...बड़े मालिक तो कभी रात-रात भर नहीं आते-क्यों चिन्ता करती हैं ?"

"पता नहीं बेटा, पहले कभी इस तरह जी नहीं घबराया-ऐसा लगता है कि कोई अनहोनी बात हुई है।"
Post Reply