Romance दो कतरे आंसू

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Masoom
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Re: Romance दो कतरे आंसू

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घंटी की आवाज सुनकर सुषमा ने दरवाजा खोल दिया।
सामने कृष्ण खड़ा था। वह इस तरह झूम रहा था। जैसे नशे में धुत्त हो। उसका चेहरा उतरा हुआ और सफेद पड़ गया था।
सुषमा ने बेचैनी से पीछे हटते हुए पूछा‒
“क्या हुआ स्वामी?”
कृष्ण लड़खड़ाता हुआ अंदर आया और थका-थका सा गिर गया। सुषमा जल्दी से उसके पास पहुंची और बेचैनी से बोली-
“भगवान के लिए बताइए ना, मेरा दिल बैठा जा रहा है।”
“सुषमा!” कृष्ण भारी लहजे में बोला, “शायद मैं केस हार जाऊंगा।”
“नहीं, ” सुषमा के मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा।
“हां, सुषमा दूसरी पार्टी के पास केस लड़ने के लिए पैसे की कमी नहीं है। मैं जिस फर्म से निकाला गया हूं, उसके सारे कर्मचारी मेरे विरुद्ध गवाही दे रहे हैं। तुम्हारा भाई प्रदीप तक मेरे खिलाफ गवाही दे रहा है।”
“हे भगवान्! अब क्या होगा!?” सुषमा की आवाज भर्रा गई।
“होगा क्या? सजा, बदनामी। और उसके बाद कोई फर्म मुझे नौकरी नहीं देगी। सोचता हूं, मैं तुम्हारे लिए कितना मनहूस सिद्ध हुआ हूं। मेरे साथ शादी होते ही तुम्हारी परेशानियों का दौर शुरू हो गया।”
“नहीं-नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत कहिए। पति तो पत्नी के लिए भगवान होता है। और भगवान कभी मनहूस नहीं होते। अब तो आपका दुःख भी मेरा ही दुख है। हम दोनों के दुख अलग-अलग थोड़े ही है।”
कृष्ण की आंखें भीग गई। उसने सुषमा का चेहरा दोनों हाथों में लेकर कहा- “तुम कितनी अच्छी हो। कितनी साफ और नेक दिल लेकिन मैं कितना कमीना हूं। मैं तुम जैसी देवी को धोखा दिया। शायद भगवान इसी अपराध का मुझे दंड दे रहे हैं।”
“कैसा धोखा?”
“सुषमा मैंने तुमसे छिपाया था कि मेरी नौकरी चली गई है। और मुझ पर गबन का केस चल रहा है। मेरे पास केस लड़ने के लिए पैसा नहीं था। बीस-पच्चीस हजार रुपए दोस्तों से लेकर खर्च कर चुका था। तुम तो जानती ही हो कि मैं कितना बुरा आदमी था। मैंने पैसे को कभी पैसा नहीं समझा। अंधाधुंध खर्च किया। शराब पर, ऐय्याशी पर और उसका परिणाम गरीबी की शक्ल में तुम्हारे सामने हैं।”
“मुकदमे के लिए और रुपयों की जरूरत थी। वकील बिना फीस लिए पेशी पर जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। गवाहों को तोड़ने के लिए भी रुपए की जरूरत थी। मैंने तुमसे शेयर खरीदने के बहाने जो रुपया लिया था, वकील और डाक्टरों को दे दिया। मैं शेयर नहीं खरीद सका।”
सुषमा के दिल को एक जोरदार धक्का लगा। उसे चक्कर-सा आ गया। आंखों के आगे अंधेरा छा गया।
कृष्ण ने आंखों में आंसू भरकर दोनों हाथों में उसका चेहरा ले लिया और भर्राई हुई आवाज में बोला-
“मैं जानता था कि यह जानकर तुम्हें दुख होगा। सचमुच मैं बहुत कमीना हूं। बहुत ही स्वार्थी और नीच हूं। लेकिन तुम्हारी सच्चाई, सादगी और शराफत ने मेरी आत्मा तक को झंझोड़ कर रख दिया है। अब मैं तुमसे कुछ छिपाना नहीं चाहता। हो सके तो मुझे क्षमा कर देना सुषमा।”
फिर वह सुषमा के हाथ अपनी आंखों से लगाकर रोने लगा।
सुषमा की आंखें भीग गई। उसने भर्राई आवाज में कहा-
“भगवान के लिए मुझसे बार-बार क्षमा मांग कर मुझे पाप में मत घसीटिए। मेरा जो भी कुछ है, सब आपका ही है।”
“तुम सचमुच कितनी महान हो सुषमा। अगर भगवान ने मुझे सजा से बचा लिया तो मैं तुम्हारे लिए मजदूरी करूंगा। ठेला खींचूगा। होटल में बैरागीरी करूंगा। लेकिन तुम्हें कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दूंगा।”
“घबराइए नहीं। भगवान ने चाहा तो आपको सजा नहीं होगी। मेरी पूजा और मेरा विश्वास अकारथ नहीं जायेगा।”
“सुषमा, पूजा और विश्वास अदालत के फैसले को नहीं बदल सकते। और न नोटों की गड्डियां बनकर मुझे मुक्त करा सकते हैं।”
“दूसरी पेशी कब है?”
“ठीक आठ दिन के बाद।”
“फैसला कब तक होगा?”
“आज आखिरी पेशी थी। फैसला अगली पेशी पर सुनाया जाएगा। अगर सजा हुई तो पांच साल से कम की नहीं होंगी।”
“कोई उपाय नहीं है इस सजा से बचने का?”
“है क्यों नहीं। अगर गबन की रकम फर्म को दे दी जाए तो केस खत्म हो सकता है।”
“आप मेरे गहने बेच दीजिए। यह फ्लैट और कार बेच दीजिए और गबन की रकम लौटा दीजिए। हम झोपड़ी में रह लेंगे।”
“नहीं!” कृष्ण ने फीकी-सी मुस्कराहट के साथ कहा, “सचमुच तुम बहुत सीधी हो। क्या तुम्हारे गहने, फ्लैट और कार बेचकर दस लाख रुपये इकट्ठे हो सकते हैं?”
“दस लाख!”
“हां सुषमा। इन लोगों का कमीनापन देखा। मैंने दस लाख का गबन किया है। दोस्तों से कर्ज लेकर केस लड़ रहा था। तुम्हारा एक लाख रुपया भी फूंक दिया। तुम्हीं सोचो मैं दस लाख रुपया कैसे इकट्ठा कर सकता हूं!”
सुषमा का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था। भयंकर आंधियां और तूफान मचल रहे थे। और उसके कानों में एक ही आवाज गूंज रही थी-दस लाख-दस लाख-दस लाख।
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सुषमा सारी रात सो नहीं सकी। कृष्ण ने खाना भी नहीं खाया था और एक क्वार्टर व्हिस्की हलक में उंड़ेलकर बेखबर सो गया था। लेकिन सुषमा सारी रात करवटें बदलती रही थी और सोचती रही थी कि इतनी बड़ी रकम का इन्तजाम कैसे किया जाए? और अगर इन्तजाम नहीं हुआ तो कृष्ण को सजा हो जाएगी और वह कम-से-कम पांच साल के लिए जेल चला जाएगा।
पांच वर्ष वह अकेली कैसे बिताएगी। कोई और सहारा देने वाला भी तो नहीं है। क्या उसे फिर अपनी पुरानी जिन्दगी में लौट जाना पड़ेगा।
सुषमा के कानों में घंटियां-सी बजने लगीं। उनके बीच घनश्याम की आवाज गूंज रही थी। दौलत को ठोकर मारकर उसे अपना दुश्मन मत बनाइए। निर्धनता मानव जीवन का सबसे भंयकर अभिशाप है। इसका आपको अनुमान नहीं है। मैं आपको एक लाख से दस लाख तक एडवांस देने को तैयार हूं। आपको निर्णय करने के लिए एक सप्ताह का समय देता हूं....मैं आपको एक लाख से दस लाख तक एडवांस देने को तैयार हूं।- मैं आपको एक लाख से दस लाख तक एडवांस देने को तैयार हूं।
अगर कृष्ण को सजा होने के बाद मुझे उस जिन्दगी में वापस जाना पड़ा तो क्या लाभ? अगर वापस जाना ही है तो क्यों न अपने पति को सजा से बचा लूं? लेकिन-क्या कृष्ण भी राजी हो जायेगा दोबारा उसके मॉडल बनने पर?
वह सोचती रही फिर बिना किसी निर्णय पर पहुंचे ही उसकी आंख लग गई।
सपने में उसने कृष्ण को सजा होते देखी। कृष्ण हथकड़ियां पहनकर जेल चला गया है और वह किसी के घर बर्तन मांज रही है। झाडू दे रही है। घर का मालिक उसे दबोच लेता है- कभी वह किसी स्कूल में पढ़ा रही है। स्कूल से लौटते हुए रात हो जाती है। वह वापस आ रही है। अचानक कुछ गुण्डे उसे घेर लेते हैं। वह किसी ऑफिस में काम कर रही है। उसका बॉस उसे बुलाता है और साउन्ड-प्रूफ कमरा बन्द करके उसे दबोच लेता है। फिर वह देखती है कि वह सड़क-पर बेतहाशा भाग रही है। उसके पीछे-पीछे बहुत सारे आदमी कहकहे लगाते हुए दौड़ रहे हैं। कोई उसकी साड़ी खींचता है। कोई बांह पकड़ता है। कोई उसे दबोच लेना चाहता है।
सुषमा का सारा बदन पसीने में तर हो गया। फिर उसने अचानक देखा कि उसके और आदमियों की उस भीड़ के बीच एक आदमी आ खड़ा होता है। वह भीड़ और उसके बीच एक मजबूत दीवार की तरह खड़ा हो जाता है।
वह कृष्ण है।
अचानक उसकी आंख खुल गई। उसने देखा, वह पसीने में तर थी। दिन की धड़कनें कनपटियों पर धमक रही थीं। सांस धौंकनी की तरह चल रही थी।
लेकिन कृष्ण बेसुध सोया पड़ा था। उसका पति कृष्ण, वास्तव में औरत को एक मर्द का सहारा कितनी जरूरी है। उसे कृष्ण पर प्यार आ गया और उसके कन्धे पर गाल टिका कर लेट गई और आंखें मूंद लीं। उसे लगा जैसे उसके सिर पर से कोई बहुत बड़ी बला टल गई हो।
उसने निर्णय कर लिया कि भले ही कुछ भी हो वह कृष्ण को सजा नहीं होने देगी।
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कृष्ण चुपचाप नाश्ता कर रहा था। उसके माथे पर शिकने थीं और आंखों में उलझन के चिह्न।
सुषमा चुपचाप कृष्ण को देख रही थी।
सहसा कृष्ण ने उसकी ओर देखकर चौंककर कहा-
“अरे, तुम नाश्ता नहीं कर रहीं?”
“करूंगी, पहले आप कर लीजिए।”
“मैं तो कर चुका हूं। मैंने इतनी देर से देखा ही नहीं था कि तुम इसी तरह हाथ पर हाथ धरे बैठी हो।”
“मैं आपको देख रही थी। आप बहुत उलझन में डूबे हुए हैं।”
“क्या करूं सुषमा, उलझन के सिवा जिन्दगी में अब रह ही क्या गया है।”
“इस उलझन का कोई हल सोचा है आपने?”
“एक ही हल है लेकिन सफलता की आशा बहुत ही कम है।”
“वह क्या?”
“जाकर फर्म के मालिक के पांव पकड़ लूं। अपनी भूल मानकर उनसे गिड़गिड़ा कर अपनी जिन्दगी की भीख मांगू। और उनसे कहूं कि मुझे फिर वही नौकरी दे दें और मेरी तनख्वाह में से अपनी रकम काटते रहें।”
“अगर वह न माने तो?”
“तो, हथकड़ियां पहनने से पहले कुछ खा लूंगा।”
“आत्महत्या करेंगे?” सुषमा कांप उठी।
“तो फिर क्या करूं?”
“एक हल है। अगर आप आज्ञा दें तो।”
“वह क्या?”
“मैं फिर से मॉडलिंग शुरू कर दूं।”
“क्या?” कृष्ण हड़बड़ाकर खड़ा हो गया- “नहीं, नहीं। यह नहीं हो सकता। मेरी पत्नी लोगों के सामने इस तरह अपने शरीर की नुमाइश करे। यह मैं हरगिज बर्दाशत नहीं कर सकता।”
“मेरी बात तो सुनिए,” सुषमा ने कहा, “देखने वाले सिर्फ तस्वीरें ही तो देखते हैं। और फिर आप ही ने तो कहा था कि आदमी की अपनी नीयत साफ होनी चाहिए।”
“लेकिन सुषमा, इससे मेरे खानदान की बदनामी होगी।”
“मैंने उसका भी हल सोच लिया है।”
“आप किसी को यह मत बताइए कि मॉडल गर्ल सुषमा, आपकी पत्नी हैं वैसे भी विवाह हो जाने के बाद माडलिंग गर्ल की मार्केट ठंडी पड़ जाती है। मैं भी किसी को नहीं बताऊंगी कि मैं विवाहिता हूं।”
“लेकिन तुम तो मां बनने वाली हो। हमारा पहला बच्चा होने वाला है।”
“इस बीच मैं किसी बहाने से छुट्टी ले लूंगी। हम दोनों कहीं दूर चले चलेंगे। किसी को कानों-कान खबर भी न होगी।”
“लेकिन इतना बड़ा रिस्क लेने पर भी क्या दस लाख रुपये का इन्तमाज हो जाएगा?”
“हां, हो जाएगा।”
“किस तरह?”
“मैं पहले जहां काम करती थी मुझे वहां फिर काम मिल जाएगा। पीछे उन्होंने कई बार फोन किया था। कल कम्पनी के मालिक घनश्याम खुद भी आए थे। उन्होंने एक लाख से दस लाख तक एडवान्स देने के लिए कहा था।”
“दस लाख?” कृष्ण की आंखें फट गई।
“आपको शायद मालूम नहीं इन दिनों मैं मार्केट में टॉप पर हूं। उनके यहां जितने भी आर्डर आते हैं, उनमें सबकी मांग सुषमा वर्मा ही होती है। मेरे काम न करने के कारण, उनकी कम्पनी ठप होती चली जा रही है। इस समय दो बड़ी कम्पनियों, लीवर ब्रदर्स और टाटा ने भी मेरी फर्माइश की है। उन्होंने उनसे एक सप्ताह की मोहलत ले ली है।”
कृष्ण कुछ सोचते हुए धीरे-से बैठ गया।
“दस लाख आज ही मिल जायेंगे और आप केस से मुक्त हो जायेंगे। उसके बाद कोई और नौकरी तलाश कर लीजिएगा। जब सावित्री एडवर्टाइजर्स के दस लाख पूरे हो जायेंगे तो मैं काम छोड़ दूंगी।
“यह निर्णय तुमने सोच समझकर किया है?”
“केवल आपकी आज्ञा की देर है।”
“तुम्हें किसी तरह का खतरा तो नहीं है।”
“बिल्कुल नहीं। अगर आप जेल में न हो तो।”
“तो फिर सुषमा, आदमी को मौका कभी नहीं खोना चाहिए।”
“क्या मतलब?”
“तुम उन लोगों से दस के बजाय पन्द्रह लाख मांगो। इस शर्त पर कि जब तक तुम न कहोगी यह रकम काटी नहीं जाएगी। दस लाख देकर मैं छुटकारा पा जाऊंगा। इस फ्लैट को बेचकर हम कोई दूसरा फ्लैट ले लेंगे। ताकि लोग मुझे और तुम्हें देखकर पहचान न सकें। दूसरी बात, मैं अब नौकरी के झंझट में नहीं फंसना चाहता। नौकर काम करते हैं और मालिक कुर्सी तोड़कर लखपति बन जाते हैं। पांच लाख रुपयों से मैं अपना कन्स्ट्रक्शन का काम शुरू कर दूंगा। आजकल इस बिजनेस की बड़ी वैल्यू है। ‘रहेजा’ बिल्डर्स को देखो। देखते-ही-देखते अरबपति हो गए। ‘रिजवी’ बिल्डर्स को देखो। आज कहां है। मैं डिजाइनर हूं। मैं भी ‘सुषमा बिल्डर्स’ के नाम से फर्म खोल लूंगा। फिर हम किसी के मोहताज नहीं रहेंगे। और न हमारे बच्चे हर महीने मेरी तनख्वाह की राह देखा करेंगे।”
“आप ठीक कहते हैं।” सुषमा ने जैसे सपने में डूबे-डूबे कहा, “हमारा अपना कारोबार होगा। शानदार बंगला होगा। और हम अपने बच्चों के साथ आराम से रहेंगे।”
कृष्ण उसके चेहरे को देखता रह गया।
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घनश्याम सुषमा को देखते ही हड़बड़ाकर खड़ा हो गया। उसे ऐसी खुशी हुई जैसे कोई बहुत बड़ा खजाना उसके हाथ लग गया हो।
उसने हर्ष-भरे स्वर में कहा- “आइए, आइए मिस वर्मा! मैं जानता था कि आप जरूर आयेंगी। पधारिए।”
“धन्यवाद।” सुषमा ने कहा और बैठ गई।
घनश्याम ने पूछा-
“कहिए, कोल्ड-ड्रिन्क लेंगी या चाय कॉफी?”
“कुछ नहीं। इस समय तो केवल काम की बात।”
“हां, हां, आज्ञा कीजिए।” घनश्याम के स्वर में बेचैनी थी।
“देखिए, मेरी सबसे पहला शर्त है, पन्द्रह लाख एडवान्स।”
“चलिए, स्वीकार है।”
“दूसरी शर्त है, पहले एक फिल्म के लिए जो पारिश्रमिक मुझे मिलता था उससे तीन गुना पारिश्रमिक लूंगी।”
“ठीक है।”
“तीसरी शर्त है- जब मैं चाहूंगी और जितने दिनों के लिए चाहूंगी मुझे छुट्टी देनी पड़ेगी। लेकिन जाने से पहले एक-एक हफ्ते में तीन-तीन हफ्ते का काम निबटाकर जाऊंगी। और आने के बाद इसी तरह का काम पूरा कर दूंगी।”
“क्या इस शर्त के पीछे कोई विशेष कारण है?”
“वैसे तो यह मेरा पर्सनल मामला है। इससे आपको कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। फिर भी आपको बता देने में कोई हर्ज नहीं है। मेरे एक बहुत ही निकट के रिश्तेदार को कैंसर हो गया है। उन्हीं के लिए मैं यह सब कर रही हूं। उन्हें इलाज के लिए अमेरिका भेज रही हूं। हो सकता है बीच-बीच में मुझे भी जाना पड़े।”
“कोई बात नहीं। हमें आपकी हर शर्त मंजूर है। लेकिन हमारी भी एक शर्त होगी।”
“बताइए।”
“हम आपसे एक नया कान्ट्रेक्ट करेंगे। जिसके अनुसार आपको पांच वर्ष तक केवल हमारी कम्पनी में ही काम करना पड़ेगा। पांच वर्ष के बाद इस अवधि को आपकी इच्छा से बढ़ाया जा सकता है या कान्ट्रेक्ट खत्म किया जा सकता है।”
“मुझे स्वीकार है।” सुषमा ने ठंडी सांस लेकर कहा।
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सुषमा हड़बड़ाकर जल्दी से उठकर बैठ गई। उसने देखा जूली उसके बिस्तर के पास जमीन पर बैठी थी और रजाई पर गाल रखे बेखबर सो रही थी। सुषमा का बदन थरथर कांप उठा। उसने भयभीत नजरों से उस खिड़की की ओर देखा। जिसके अन्दर से एक स्याहपोश को निकलते देखा था। और जिसे देखते ही वह चीख मारकर जाग उठी थी। लेकिन खिड़की बन्द थी। बेडरूम में हल्की-हल्की चांदी जैसी सफेद रोशनी फैली हुई थी।
लेकिन सुषमा को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह झिलमिल चांदनी में किसी ऐसे बियावान और विस्तृत जंगल में खड़ी हो जिसमें हर ओर से मौत का खतरा मंडरा रहा हो।
अपने दिल को तसल्ली देने की कोशिश करती हुई वह धीरे-से सरककर लेट गई। पहले उसका जी चाहा कि वह जूली को जगाकर कह दे कि वह अपने कमरे में जाकर सो जाए। लेकिन फिर न जाने क्यों उसे ऐसा लगा कि आज की रात उसके लिए बड़ी भारी रात है। बैडरूम में अकेला नहीं रहना चाहिए।
वह कुछ देर तक जूली के मासूम चेहरे को देखती रही। फिर उसकी नजरें कार्निस पर रखी टाइमपीस पर चली गई जिसकी टिकटिक की आवाज ने उसे अपने दिल की धड़कनों में घुलती हुई-सी महसूस हो रही थी। धीरे-धीरे उसकी आंखों के सामने एक दृश्य उभर आया। वह किसी फिल्म की शूटिंग कर रही है। और शूटिंग करते-करते उसे हल्का-सा चक्कर आ जाता है।
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जैसे आंखों के आगे अचानक अंधेरा छा गया। सुषमा के हाथ से कपड़े का वह टुकड़ा छूटकर हवा में लहराता हुआ चला गया जिसके कारखाने की विज्ञापन फिल्म बन रही थी।
डायरेक्टर ने चिल्लाकर कहा- “कट-कट-कट-।”
फौरन कैमरे का स्विच ऑफ कर दिया गया। उसकी साथी लड़कियों ने लपककर उसे संभाल लिया। घनश्याम ने तेजी से उसके पास आकर कहा- “क्या बात है मिस वर्मा? आपकी तबीयत तो ठीक है?”
तब तक सुषमा अपने आपको संभाल चुकी थी। उसने जल्दी-से कहा-
“आई एम आल राइट, कैरी ऑन।”
“नो मिस वर्मा, आप हमारी कम्पनी के लिए बहुत मूल्यवान हैं। हम आपको दांव पर नहीं लगा सकते। शूटिंग कल भी हो सकती है। आज आप आराम कीजिए।”
“थैंक्स बॉस।”
घनश्याम ने पैक-आप करने का आर्डर दिया और सुषमा को उसकी कार तक छोड़ने आया था।
सुषमा ने कार के पास आकर कहा-
“मुझे अफसोस है, आपका काफी नुकसान होगा।”
“हमारा नुकसान आपकी सेहत से ज्यादा मूल्यवान नहीं है। लेकिन बात क्या है? लगता है, आप किसी मानसिक उलझन में फंसी हुई हैं।”
“शायद आपका अनुमान ठीक है।” सुषमा ने धीरे से कहा, “असल में मेरे जो रिश्तेदार अमेरिका में कैंसर का इलाज करा रहे हैं, जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे हैं। मैं उन्हें अपने सगे माता-पिता से भी अधिक प्यार करती हूं। मेरी अनुपस्थिति में उन्हें कुछ हो गया तो मैं अपने आपको जीवन-भर क्षमा नहीं कर सकूंगी।”
“कब मिली थी आपको यह खबर?”
“कल ही तो मिली थी।”
“तो आपने मुझे क्यों नहीं बताया?”
“यही सोचकर कि आपके पास काम बहुत है। मेरी अनुपस्थिति से आपको बहुत नुकसान होगा।”
“मिस वर्मा, आपकी महीने-दो-महीने की अनुपस्थिति से हमें थोड़ा बहुत नुकसान होता है। लेकिन उसे हम कुछ हफ्तों में कवर कर लेते हैं। आप हमारी कम्पनी के लिए इतनी मेहनत करती हैं तो क्या वह हमारा कर्तव्य नहीं कि हम आपका ध्यान रखें।”
“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”
“आप जब भी चाहें, छुट्टी लेकर अमेरिका चली जाएं।”
“मैं आपको कल बता दूंगी।”
“ओ. के. अगर आप ड्राइविंग कर पाने की स्थिति में न हों तो मैं अपना ड्राइवर भेज दूं?”
“नो थैंक्स- अब मैं ठीक हूं।”
घनश्याम ने कार का दरवाजा खोल दिया। सुषमा कार में जा बैठी। कुछ देर के बाद उसकी कार सड़क पर दौड़ रही थी।
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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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सुषमा को बड़े गोपनीय ढंग से डाक्टर निर्मला सिंह इंस्पेक्शन रूम में ले गई। जिनके चेहरे पर हम समय ममता-भरी नमीं रहती थी। उन्होंने सुषमा का अच्छी तरह निरीक्षण किया और फिर प्यार-भरी मुस्कराहट के साथ कहा-
“बेटी, तीसरा महीना लग चुका है। अगले महीने से तुम इसे छिपा नहीं सकोगी।”
सुषमा सोच में पड़ गई।
डॉक्टर निर्मला सिंह ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर मुस्कराते हुए पूछा- “किस सोच में पड़ गई तू?”
“आंटी, सोचती हूं- इस समय-?” सुषमा कहते-कहते रुक गई।
“देखो बेटी,” निर्मला सिंह ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “मैं जानती हूं, तुम एक ऐसे प्रोफेशन में हो, जिसमें मां बनने के बाद औरत की इमेज खत्म हो जाती है। और फिर धीरे-धीरे उसका मार्केट ठंडा होता चला जाता है। लेकिन तुम केवल एक बच्ची की मां हो। और वह भी तीन-सवा तीन साल से ज्यादा की नहीं है। इन तीनों सालों में तुम उसे उसके तीन भाई-बहनों से वंचित कर चुकी हो। कोई ऑपरेशन ऐसा भी हो सकता है कि तुम मां बनने के लिए तरसती रह जाओ। इस बार तुम्हारी हालत और तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम बेटे की मां ही बनोगी। तो फिर क्यों अपनी बच्ची को भाई से वंचित करना चाहती हो? तुम्हें भी तो बुढ़ापे का सहारा चाहिए। बेटी तो दूसरे घर चली जायेगी। लेकिन बेटा तो तुम्हारे घर का चिराग बनेगा।”
सुषमा की आंखों में एक विचित्र-सी चमक लहराई। और फिर वह किसी सोच में डूब गई।
निर्मला सिंह ने उसकी ठोड़ी पकड़कर पूछा-
“क्या सोचने लगी बेटी?”
“जी, मैं सोच रही थी कि सिर्फ एक ही वर्ष की तो बात है। उसके बाद मुझे कान्ट्रेक्ट से मुक्ति मिल जाएगी। मेरे पति ने दिल्ली में जो बिजनेस शुरू किया है वह भी ठीक ढंग से सैट हो चुका होगा। मैं चुपके से दिल्ली चली जाऊंगी। वहां कोई मुझे जान भी न पायेगा कि मैं वही सुषमा वर्मा हूं जो कभी सर्वश्रेष्ठ मॉडल गर्ल मानी जाती थी।”
“तुम्हारे पति का बिजनसे कितना चल चुका है?”
“अच्छा खासा है। एक बंगला ले लिया है। कार ले ली है। हर सप्ताह मुझसे मिलने आते हैं। शनिवार की रात को प्लेन से आते हैं। और सोमवार को सुबह के प्लने से चले जाते हैं। इसीलिए मैं आज तक आपको उनसे नहीं मिला सकी।”
“मैं बिना मिले ही जान चुकी हूं कि तुम एक-दूसरे को कितना प्यार करते हो। लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम इस बार डॉली के भाई को आने ही दो।”
“कल शनिवार है। वह कल रात आयेंगे। मैं उनसे सलाह करके आपको बता दूंगी।”
“बताओगी क्या, तुम उन्हें मेरे पास ले आना। मैं उसके कान खींचकर उससे कहूंगी कि अब मेरी बेटी को ज्यादा तकलीफ मत दो।”
अचानक टेलीफोन की घंटी बज उठी। निर्मला सिंह ने रिसीवर उठा लिया.... “यस?”
फिर वह कुछ मिनट तक कुछ सुनती रहीं। फिर सुषमा से बोलीं-
“बेटी, शायद किसी ने तुम्हारी कार पहचान ली है।”
“क्या मतलब?” वह उछल पड़ी। उसका चेहरा सफेद पड़ गया।
“एक हस्बेंड़-वाइफ आये हैं। हस्बेंड पूछ रहा था कि यह गाड़ी तो मॉडल गर्ल सुषमा वर्मा की लगती है। नर्स ने उसे झुठला दिया है।”
“यह तो बड़ी गड़बड़ हुई। अब मैं बाहर कैसे जाऊंगी।”
“तुम बराबर वाले कमरे में जाकर बैठो। क्योंकि बाहर निकलने के लिए तो तुम्हें हॉल में से ही जाना पड़ेगा।”
“लेकिन इतनी रात में भला कौन आ गया?”
“कभी-कभी जरूरतमंद आ जाते हैं। मेरा जी तो नहीं चाहता लेकिन औरत हूं इसलिए दया आ जाती हैं। सोचती हूं, इस एक औरत की वजह से औरतों की पूरी जात ही बदनाम हो जायेगी।”
सुषमा दूसरे कमरे में चली गई।
“कुछ देर के बाद डॉक्टर निर्मला सिंह के कमरे में किसी आदमी की आवाज सुनाई दी-
“हैलो डॉक्टर-।”
“हैलो।”
आदमी की आवाज सुनकर सुषमा बुरी तरह चौंक पड़ी। उसका मस्तिष्क सांय-सांय करने लगा। उसने दरवाजे में जरा सी झिरी बनाकर देखा तो उसे लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर कोई बम दे मारा हो। क्योंकि वह आदमी और कोई नहीं, उसका पति कृष्ण ही था जिसके साथ एक लड़की थी। वह लड़की बम्बई के होटलों की सब से अधिक प्रसिद्ध और रईसजादों की चहेती सोसायटी गर्ल थी जो बम्बई में हीरोइन बनने का सपना लेकर आई थी। लेकिन दलालों के जाल में फंसकर हीरोइन बनने का सपना लेकर आई थी। लेकिन दलालों के जाल में फंसकर हीरोइन बनने के बजाय कालगर्ल बन गई थी। लेकिन उसने बहुत जल्दी अपने आपको इस पेशे में ढालकर अपनी कीमत बढ़ा ली थी। उसे अपने धन्धे के सारे गुर मालूम हो गए थे।
सुषमा को लगा जैसे उसका दिल बैठा जा रहा हो।
कृष्ण निर्मला सिंह से कह रहा था-
“डॉक्टर आंटी, यह मिसेज सक्सेना हैं।”
“मिसेज रूबी सक्सेना, “निर्मलासिंह ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा, “यानी तुम्हारी तीसरी पत्नी।”
“जी-।”
“पहली बार तुम्हारे साथ नीमा कोहली थी। दूसरी बार मिसेज अमानत थी और अब मिसेज सक्सेना।”
“आपको याददाश्त बहुत तेज है आंटी।” कृष्ण मुस्कराया।
“आपका पहला नाम मिस्टर अशोक था। पता नहीं आपका असली नाम क्या है-।” तो मिस्टर अशोक अगर डॉक्टर को याददाश्त कमजोर हो जाए तो वे फेफड़ों के बजाय दिल का ऑपरेशन कर बैठे। अब आप अपना उद्देश्य बताइए।”
“उद्देश्य?” कृष्ण ने ठंडी सांस लेकर मुस्कराते हुए कहा, “जब आप उद्देश्य जान ही चुकी हैं तो फिर हमसे क्यों पूछ रही हैं?”
फिर उसने नोटों की एक गड्डी डॉक्टर के सामने फेंकते हुए कहा-
“आपकी फीस एडवांस। दस हजार। कल का टाइम बताइए।”
फिर न जाने क्या-क्या बातें होती रहीं। सुषमा उन्हें सुन नहीं पाई। क्योंकि उसके दिल और दिमाग में तो आंधियां चल रही थीं।
21
रूबी की चाल में थोड़ी-सी लड़खड़ाहट और आंखों में नशे की लाली थी। वह जब हैंडिल घुमाकर कमरे में पहुंची तो अपने सामने एक औरत को बैठा देखकर उछल पड़ी। उस औरत का चेहरा कपड़े से ढका हुआ था।
रूबी लड़खड़ाती हुई पलटकर बोली-
“आइ एम सारी- मैं शायद गलत कमरे में आ गई।”
“नहीं मिस रूबी, आप सही कमरे में ही आई हैं। मैंने ही आपको एंगेज किया है। यह रही आपकी फीस।”
सुषमा ने धीरे-से कहा और पर्स से नोटों की एक गड्डी निकालकर मेज पर डाल दी।
रूबी ने नोटों की गड्डी उठा ली और फिर कहकहा लगा कर बोली-
“कमाल है। लगता है जैसे मैं कोई सपना देख रही हूं।”
“मैंने भी एक सपना देखा था। बहुत ही भयानक और डरावना। मैं आपसे उसी सपने के बारे में जानना चाहती हूं। आप भी औरत हैं। और मैं भी औरत हूं। इसलिए आप मेरे दुःख को जरूर समझेंगी।”
रूबी के होंठों की मुस्कराहट अचानक गायब हो गई। उसने नोटों की गड्डी वापस मेज पर रख दी और सुषमा की ओर देखकर सहानुभूति भरे स्वर में बोली-
“मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं बहन?”
“कल रात आप जिस आदमी के साथ थीं उसका नाम क्या है?”
“किस समय? कल मैं सुबह से रात के ग्यारह बजे तक थी। ग्यारह बजे के बाद शिफ्ट बदल गई थी।”
“जो आदमी आपको डॉक्टर निर्मला सिंह के यहां ले गया था।”
“ओह, वह-मिस्टर के. के. यानी कृष्ण कुमार अग्रवाल।”
“आप उन्हें कब से जानती हैं।”
“जानती तो दिल्ली कॉलेज से ही हूं। जब हम दोनों साथ-साथ पढ़ते थे। नई मुलाकात यहां आकर हुई, जब मैं एक शरीफ घरेलू लड़की से रूबी बन चुकी थी।”
“कितने दिन पहले की बात है?”
“दो महीने हो गए।”
“क्या वह दो महीने से लगातार आपके साथ ही हैं?”
चढ़ते सूरज की सभी पूजा करते हैं। मुझे स्थायी रूप से कई रईस अपने साथ रखना चाहते थे। मैंने कहा जो सबसे ज्यादा बोली लगायेगा मैं उसी के साथ रहूंगी। सबसे बड़ी बोली कृष्ण ने लगाई थी। तभी से मैं उनके साथ हूं। हम दोनों कल तक एक-दूसरे के पाबन्द थे। लेकिन अब हमारा समझौता समाप्त हो चुका है। उसने मुझे एक मुसीबत से छुटकारा दिलाया है। वह मुझे अपने बंगले में रखेगा और अब मैं केवल उसी तक सीमित रहूंगी।”
“बंगला? कहां है उसका बंगला?” सुषमा ने आश्चर्य से पूछा।
“उसका अपना नहीं है, किराये का है। दो हजार रुपये महावार में मालाबार हिल पर। एक पारसी बुढ़िया का बंगला है। वह भी एक कमरे में वहीं रहती है। उसे कृष्ण की रंगीनियों पर कोई आपत्ति भी नहीं है।”
“क्या आपको पता है कि आपसे पहले कोई और लड़की भी कृष्ण के साथ रहती थी?”
“पारसी बुढ़िया कह रही थी कि बम्बई की शायद ही कोई सोसायटी गर्ल उससे बची होगी। उसका एक दलाल है जो दस-पन्द्रह दिन के बाद किसी-न-किसी विदेशी घुमक्कड़ लड़की को ले आता है। कभी अमेरिकन, कभी ईरानी, कभी थाईलैंड की और कभी अफ्रीकन-!”
“उसका मासिक खर्च तुम्हारे अनुमान से कितना होगा?”
“कम-से-कम पन्द्रह हजार,” रूबी ने कहा और फिर सुषमा को बड़े ध्यान से देखते हुए बोला, “लेकिन तुम उसके बारे में इतनी इन्क्वारी क्यों कर रही हो?”
“बहन, किसी आदमी के बारे में इस तरह की पूछताछ कौन औरत कर सकती हैं?”
“ओह!” रूबी के मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा। फिर वह धीरे से बोली, “इसका मतलब है कि तुम कृष्ण की पत्नी हो। लेकिन वह तो कहता है कि मैं अभी तक कुंवारा हूं।”
“कहने से न तो वह कुंवारा हो सकता है और न सच्चाई झूठ में बदल सकती है।”
रूबी सन्नाटे में रह गई।
सुषमा ने भर्राई हुई आवाज में कहा-
“अच्छा बहन, तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद।”
लेकिन जब सुषमा दरवाजे की ओर बढ़ने लगी तो रूबी ने पलटकर कहा- “ठहरो बहन-?”
सुषमा ठिठककर रुक गई।
रूबी ने नोटों की गड्डी उठाकर उसके पास आकर कहा-
“पहली बात-तुमने जो मुझसे पूछा है उसके बारे में कृष्ण को कुछ बताऊं या नहीं?”
“इस समय अगर कुछ न कहोगी तो मैं तुम्हारी आभारी होऊंगी।”
“दूसरी बात- तुम्हारी आवाज इतनी सुन्दर और आकर्षक है। तुम्हारे हाथ-पांव इतने खूबसूरत है। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि तुम्हारा चेहरा भी इतना ही सुन्दर होगा। क्या मैं तुम्हारे चेहरे की एक झलक देख सकती हूं?”
“क्या करोगी देखकर?”
“यह देखना चाहती हूं कि तुम जैसी पत्नी के होते भी कृष्ण परायी औरतों के पीछे क्यों भागता रहता है। अगर मेरी जैसी औरत का पति ऐसा करे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।”
“क्या मतलब?”
“बहन!” रूबी की आवाज भर्रा गई। “जब मैं दिल्ली कॉलेज में पढ़ रही थी। तब मैं कई बार ब्यूटी कम्पीटीशन में फर्स्ट आई थी। ड्रामों में हमेशा हीरोइन के रोल किए। उस जमाने में मेरे कॉलेज का एक गरीब लड़का मुझसे प्यार करता था। मैं अक्सर उसके प्यार का मजाक उड़ाया करती थीं। एक लड़का भी मेरा मित्र था जो मुझे बम्बई के कई फिल्म-डायरेक्टरों के जाली पत्र दिखा कर कहा करता था कि उसके पीछे कई फिल्म डायरेक्टरों से बहुत ही घनिष्ट सम्बन्ध हैं। वह मुझे बड़ी आसानी से फिल्मों में हीरोइन का रोल दिला सकता है। मैं उसके झांसे में आ गई। और मैंने बिना कुछ सोचे-समझे अपने आप को उसके हवाले कर दिया।”
रूबी एक पल रुकी और फिर ठंडी सांस भरकर बोली-
“लेकिन कुछ दिनों के बाद ही हम दोनों के मिलाप का फल प्रकट होने लगा। मैं घबरा उठी। मैंने उस लड़के को बताया तो वह उसी दिन से गायब हो गया। उसकी फाइनल परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। मुझमें इतना साहस न था कि मैं किसी लेडी डॉक्टर से सहायता लेती या और किसी से इस बात की चर्चा करती।
“जब मुझे और कोई रास्ता सुझाई न दिया तो मैंने एक दिन उस गरीब लड़के के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ा कर कहा कि मेरी इज्जत उसके हाथों में है। वह मुझे एक मन्दिर में ले गया और उसने मेरे साथ शादी कर ली। लेकिन इस बात पर नाराज होकर मेरे पिता ने मुझे घर से ही नहीं निकाल दिया बल्कि उत्तराधिकार से भी वंचित कर दिया। मैं उस लड़के के साथ बम्बई चली आई। यहां आकर हम दोनों नौकरी खोजने लगे।
“तभी मैं कुछ दलालों के जाल में फंस गई। उन्होंने मुझे हीरोइन बनवा देने का झांसा दिया। और फिर मैं हीरोइन के बजाय सोसायटी गर्ल बन गई। दूसरी बार आबरू लुटने के बाद मुझमें इतना साहस नहीं रह सका था कि मैं अपने पति का सामना कर सकूं। मैंने डाक्टर निर्मला सिंह की सहायता से मुसीबत से छुटकारा पा लिया और फिर अपने गरीब पति के पास वापस नहीं गई। क्योंकि मुझे अपना पहला वाला मालदार प्रेमी मिल गया था। जानती हो बहन, वह कौन था?”
“कौन?”
“कृष्ण।”
सुषमा के मस्तिष्क को एक जोरदार झटका लगा।
रूबी ने भर्राई हुई आवाज में कहा-
“पहले तो मेरा जी चाहा था कि इसका खून कर दूं। लेकिन फिर मैंने सोचा कि इसका खून कर देने से मुझे कोई लाभ नहीं होगा। बल्कि इससे मित्रता कर लेने से लाभ होगा। और मैंने उसके साथ फिर मित्रता कर ली।”
“कृष्ण को अपनी पहली करतूत पर कोई लज्जा नहीं आई?” सुषमा बोली।
“नहीं। जिनकी आत्मा मर जाती है उन्हें किसी बात पर कोई ग्लानि नहीं होती।”
कुछ देर तक खामोशी छाई रही। फिर रूबी ने कहा-
“बहन, क्या तुम मेरी छोटी-सी कामना पूरी नहीं करोगी।”
“मैं क्षमा चाहती हूं बहन। मेरी बात का बुरा मत मानना। लेकिन शायद यह अवसर उचित नहीं है। लेकिन जब कोई अवसर आयेगा तो कृष्ण की पत्नी की हैसियत से में तुम्हें अपनी सूरत दिखाऊंगी। शायद यह अवसर जल्द ही आ जाए।”
“मैं समझ गई जो तुम कहना चाहती हो।”
“ऐसी सूरत में क्या मैं तुम्हें कृष्ण के बंगले पर ही तलाश करूं?”
“नहीं!” रूबी ने कड़वाहट-भरे लहजे में कहा, “शायद कृष्ण के बंगले में मैं अन्तिम बार ही जाऊं। अपना सामान लाने के लिए।”
“फिर?”
“किसी भी होटल में। किसी भी नाइट क्लब में। अब रूबी इतनी अप्रसिद्ध नहीं कि तुम उसे खोज न सको।”
“अच्छा बहन, धन्यवाद।”
सुषमा ने कहा और दरवाजे की ओर बढ़ने लगी।
“ठहरो बहन।”
“हां, कहो।”
“ये रुपये तो लेती जाओ। तुमने मेरे समय का मूल्य चुकाया है। और अब मैं तुम्हें एक बहन के नाते इन्हें प्रेजेन्ट के रूप में दे रही हूं।”
सुषमा ने चुपचाप रुपये पर्स में रख लिए और तेजी से बाहर निकल आई।
थोड़ी देर के बाद उसकी कार सड़क पर दौड़ रही थी।
उसके दिमाग में जैसे एक भूचाल आया हुआ था। तो यह बिजनेस किया था कृष्ण ने दिल्ली में जाकर। बिजनेस के बहाने उसने चार साल पहले पांच लाख रुपए ले लिए थे। और अब हर महीने दस-पन्द्रह हजार रुपये यह कहकर ले रहा था कि अभी शुरू-शुरू में बिजनसे में जितना भी लगाया जाये अच्छा है। जब तुम नौकरी छोड़ दोगी तब उसमें से पैसे निकालना शुरू करेंगे। इसका मतलब है वह मेरी मेहनत और मेरी दौलत को ऐय्याशी में फूंक रहा है। बंगला किराये पर ले रखा है। शराब और औरत उसकी जिन्दगी है। रूबी जैसी मासूम लड़की की जिन्दगी तबाह करने वाला भी वही है।
हे भगवान, वह कौन-सी महसूस घड़ी थी जब कृष्ण के साथ मेरे फेरे पड़े थे। और अब मैं उसके दूसरे बच्चे की भी मां बनने वाली हूं। कृष्ण जैसे बाप का मेरे बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? मैंने तो उसे भारतीय नारी की तरह भगवान मानकर पूजा था।
सुषमा का दिल भर आया। उसने कार सड़क के किनारे रोक दी और स्टेयरिंग पर सिर टिकाकर बच्चों की तरह फूट-फूट कर रोने लगी।
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Re: Romance दो कतरे आंसू

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सुबह जब सोकर उठी तो उसका सिर बहुत भारी था। आंखों के पपोटे सूजे हुए थे। उसने अपने बराबर बेसुध सोयी पड़ी डॉली को देखा। उसकी आंखें एकदम भर आईं। फिर उसने डॉली का माथा चूमा और उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। वह गहरे सोच में डूबी हुई थी। कुछ उसने रिसीवर उठाकर नम्बर डायल किये और फिर रिसीवर कान से लगा लिया।
कुछ देर बाद दूसरी ओर से आवाज आई-
“यस-घनश्याम स्पीकिंग।”
“सर, मैं सुषमा बोल रही हूं।”
“ओहो, मिस वर्मा, क्या बात है? आपकी आवाज कुछ भारी लग रही है।”
“मेरी तबियत ठीक नहीं है। अमेरिका से खबर मिली है कि मेरे रिश्तेदार की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मुझे आज से ही छुट्टी मिल जाए?”
“आप जब भी चाहें, छुट्टी ले लीजिए।”
“थैंक्स-सर।”
सुषमा ने रिसीवर रख दिया और सोच में डूबी बैठी रही।
वह सोच रही थी कि दुनिया में कोई भी बिना लालच के किसी से नहीं जुड़ता क्या मतलब पूरा हो जाने के बाद सारे रिश्ते टूट जाते है? और जब तक मतलब पूरा नहीं होता लोग जोंक की तरह चिपटकर खून चूसते रहते हैं?
अचानक जूली की आवाज ने उसे चौंका दिया-
“मेम साहब, बैड टी।”
सुषमा ने चाय लेते हुए कहा-
“मैं बना लूंगी। बेबी उठ जाए तो स्कूल के लिए तैयार कर देना।”
“स्कूल की तो आज छुट्टी है, मेम साहब।”
“क्यों?”
“आज रक्षाबन्धन है ना।”
“रक्षा-बन्धन?”
सुषमा के दिल पर जैसे एक घूंसा-सा लगा। उसकी आंखों के आगे प्रदीप का चेहरा घूम गया। छोटा-सा प्रदीप जब तीनों बहनें उसे राखी बांधा करती थीं। कितना प्यार करती थी सुषमा उसे। उसी ने उसका भविष्य बनाया और जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो उसने सुषमा को दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर किया। बाप के मर जाने के बाद भी उसे सुषमा पर दया नहीं आयी। लोग कहते हैं कि केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां भाई अपनी बहन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। मैंने प्रदीप के लिए क्या नहीं किया? लेकिन प्रदीप ने जो मेरे साथ व्यवहार किया क्या वह उचित था?
तभी जूली की आवाज सुनाई दी-
“मेम साहब, चाय ठंडी हो रही है।”
सुषमा ने चौंककर आंसू रोक लिए और चाय पीने लगी।
उसकी आंखें शून्य में न जाने कहां टिकी हुई थीं।
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सुषमा के हाथ में राखी थी और वह अंधेरे में चुपचाप खड़ी थी। अपने उसी घर के पास जिसमें वह पैदा हुई थी। जिसमें उसका बचपन हंसते-खेलते बीता था। उसकी शरारतों की धूम थी। लोग उसकी शरारतों से कभी नाराज नहीं होते थे सभी उसे प्यार करते थे। लेकिन आज?
आज वह उसी घर के पास इस तरह खड़ी थी जैसे चोर या बहुत बड़ी अपराधी हो जो कानून की नजरों से बचने के लिए अंधेरे में खड़ी हो। हर राहगीर की आहट पर उसका दिल जोर-जोर से धड़क उठता था। जब राहगीर गुजर जाता था तो वह फिर गली के छोर की ओर देखने लगती थी।
रात के लगभग ग्यारह बजे प्रदीप गली में घुसता दिखाई दिया। सुषमा के दिल को जोरदार झटका लगा। वह संभलकर खड़ी हो गई। उसकी सांसें तेज हो गईं।
थोड़ी देर के बाद प्रदीप घर के दरवाजे के सामने आ खड़ा हुआ और दरवाजे में लगा ताला खोजने लगा।
सुषमा को उसकी कलाई पर दो राखियां बंधी दिखाई दीं। प्रदीप, संध्या और रजनी से राखी बंधवाकर लौटा था।
सुषमा ने बड़ी कठिनाई से अपने आप संभालकर धीरे-से कहा-
“भैया-!”
प्रदीप जोर से उछल पड़ा। उसके हाथ से ताला छूटते-छूटते बचा। फिर वह आंखें फाड़कर अंधेरे में देखने की कोशिश करते हुए बोला-
“कौन-?”
“मैं!” सुषमा की आवाज थरथर कांप रही थी, “तुम्हारी बहन, सुषमा।”
प्रदीप ने ठंडी सांस लेकर धीरे-से कहा‒
“यहां क्या कर रही हो, खड़ी हुई?”
“तुम्हारा इंतजार।”
“किस लिए?”
“भैया, आज रक्षा-बन्धन है ना।”
“हूं! तो तुम अपने भैया को राखी बांधने आई हो? प्रदीप ने व्यंग्य से कहा।
“क्या बहन भाई को राखी नहीं बांध सकती?”
“सुषमा, मेरा तुम्हारा रिश्ता तो उसी दिन टूट गया था जिस दिन सदमे से बाबूजी का हार्टफेल हुआ था।”
“प्रदीप‒।”
“बाबूजी की हत्यारी से राखी बंधवाकर मैं अपनी कलाई पर खून का दाग नहीं लगवाना चाहता। मेरी सिर्फ दो बहनें हैं। जिनसे मैं राखी बंधवा चुका हूं।”
“भैया!” सुषमा की आवाज भर्रा गई- “आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया है जो तुम लोग मुझे समझने की कोशिश नहीं करते।”
“तुम अपने पाप अपने मुंह से गिना चुकी हो। और अब क्या तुम कोई भला काम कर रही हो? तुम्हें कृष्ण ने दोबारा अपना लिया था। हमने सोचा था अब तुम एक शरीफ घरेलू औरत की तरह रहोगी। पति का घरबार और अपने बच्चों की देखभाल करोगी। लेकिन जब बिल्ली के मुंह खून लग जाता है तो वह चैन से कैसे बैठ सकती है। आज भी लोग जब मुझे सुनाने के लिए जोर-जोर से तुम्हारी चर्चा करते हैं तो मेरा सिर शर्म से झुक जाता है।”
“भैया, मैं तो दोबारा इस लाइन में नहीं आना चाहती थी। तुम और बाबूजी जैसा चाहते थे। मैं वैसी बनकर रहना चाहती थी। लेकिन कृष्ण को बचाने के लिए मुझे फिर वही लाइन अपनानी पड़ी।”
“कृष्ण को क्या फांसी लग रही थी? या उसे कैंसर हो गया था?” प्रदीप ने कटुता से कहा, “वह तो अच्छी खासी नौकरी कर रहा था। तुमने उसके साथ किराए के फ्लैट में रहना मंजूर नहीं किया। तुम अपने फ्लैट में चली गई। तुम्हारे पुराने व्यापारियों ने तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ा। तुम उस चमक-दमक को छोड़ नहीं पाईं। मजबूर होकर कृष्ण ने तुम्हें काम करने की इजाजत दे दी। वरना तुम तो उसे तलाक देने को तैयार हो गई थीं। मैं कृष्ण को अच्छी तरह जानता हूं। तुम्हीं ने उसकी नौकरी छुड़वाई। कृष्ण को ढाई हजार रुपये माहवार मिलते थे। इतनी रकम तो तुम्हारी गाड़ी के पेट्रोल पर खर्च हो जाती होगी। जिस दिन कृष्ण ने नौकरी से इस्तीफा दिया था, कितना रोया था। उसने रोते हुए मुझसे कहा था कि आज से उसे अपनी पत्नी की कमाई पर गुजारा करना पड़ेगा।”
“यह झूठ है भैया‒!”
“मैं जानता हूं कि इस दुनिया में तुमसे ज्यादा सच्ची, नेक और शरीफ औरत कोई नहीं हैं।”
“मेरी बात तो सुनो, भैया।”
“तुम यहां से चली जाओ, सुषमा। किसी ने तुम्हें यहां देख लिया तो मैं मुंह दिखाने के भी काबिल नहीं रहूंगा।”
प्रदीप ने कहा और तेजी से अंदर घुसकर दरवाजा बंद कर लिया।
सुषमा के होंठ कांपते रह गए। उसके हाथ में पकड़ी राखी कांप रही थी। आंखों से टपटप आंसू गिर रहे थे।
वह तेजी से पलटी और अपनी कार की ओर चल पड़ी।
कुछ देर के बाद उसकी कार सड़क पर दौड़ रही थी।
तो यह है कृष्ण का वास्तविक रूप। उस पर गबन का कोई केस नहीं चल रहा था। उसने मेरी दौलत से ऐय्याशी करने के लिए जान-बूझकर नौकरी छोड़ी है। अपनी एय्याशियों के लिए मुझे मॉडल गर्ल बनाया है। लोग भारतीय नारी की जरा-सी भूल पर उसका जीना-दूभर कर देते हैं लेकिन उनके विधान में पुरुष के बड़े-से-बड़े अपराध के लिए कोई दंड नहीं है। राम ने मिथ्या लांछन पर अपनी सती साध्वी पत्नी सीता को त्याग दिया था। पुरुष अनादिकाल से ही नारी पर अत्याचार करता चला गया है।
अगर कृष्ण मुझे दोबारा मॉडल-गर्ल बनने पर मजबूर न करता तो मैं एक घरेलू नारी की तरह अपना जीवन बिताती। और तब मुझे अपने भाई के दरवाजे पर से राखी को लेकर वापस न लौटना पड़ता।
कृष्ण मेरा पति नहीं, मेरा दुश्मन है। अगर सुहागरात को मुझे बाबूजी के पास लौट जाने के लिए मजबूर न कर देता तो उनकी मृत्यु न होती। प्रदीप मुझसे इतनी घृणा न करता। मैं मरने गई तो महेश ने बचा लिया। अगर मैं महेश की ही पत्नी होती तो उस खोली में आराम और इत्मीनान से जिन्दगी बिता देती।
कृष्ण मुझे महेश की खोली में से क्यों लेकर आया? यह बात मैं आज समझ पाई हूं। उसने केवल धन के लालच में मुझे दोबारा अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। मैं तुझे कभी भी क्षमा नहीं करूंगी कृष्ण, कभी क्षमा नहीं करूंगी।
सुषमा के होंठ सख्ती से भिंच गए।
कार की रफ्तार और भी तेज हो गई।
22
कृष्ण ने कोट उतारकर बाजू पर डाल रखा था। उसके बाल बिखरे हुए थे। टाई की गांठ ढीली थी।
उसने टैक्सी फ्लैट के सामने रुकवा दी। टैक्सी का किराया दिया और एयर बैग कन्धे पर लटकाकर टैक्सी से उतर आया।
उसने दरवाजे पर पहुंचकर घंटी बजाई। कुछ देर के बाद जूली ने दरवाजा खोल दिया।
“हैलो साहब।” उसने पीछे हटते हुए कहा।
कृष्ण अन्दर चला गया।
जूली की गोद में डॉली थी लेकिन उसने डॉली की ओर नजर उठाकर भी देखा।
जूली ने डॉली से कहा-
“बेबी, तुम्हारे पापा आ गए। वेलकम बोलो।”
“पापा, गुड ईवनिंग!” नन्ही डॉली ने बड़ी मासूमियत से कहा।
“गुड ईवनिंग,” कृष्ण ने बेरुखी से कहा और कोट तथा एयरबैग एक सोफे पर फेंककर बैठ गया।
“साहब, क्या दिल्ली से अभी आ रहे हैं?”
“हां, प्लेन से उतरकर सीधा चला आ रहा हूं। मेमसाहब कहां है?”
“वह कहीं गई हैं।”
“और दर्शन?”
“वह अपनी बहन से राखी बंधवाने गया है।”
कृष्ण ने एक लम्बी सांस लेकर बैग में से बोतल निकाल ली और फिर मुंह से लगा ली।
जूली ने पूछा- “साहब, गिलास और पानी लाऊं?”
“नहीं। मेमसाहब कब तक आयेंगी?”
“पता नहीं, साहब।”
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Re: Romance दो कतरे आंसू

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कृष्ण ने एक लम्बा घूंट भरा और फिर जूली को देखने लगा। जूली दस-ग्यारह साल की भोली-भाली लड़की थी।
कृष्ण ने नजरें जूली पर टिकाकर रह गईं। उसने बोतल से कई घूंट भरकर कहा- “बेबी, बहुत देर में सोती है।”
“जब मेम साहब घर में होती हैं तब तो जल्दी सो जाती हैं।”
“इसे बेडरूम में सुला आ।”
“क्यों?”
“मेरे सिर में बहुत दर्द है, जरा मालिश कराऊंगा।”
“तेल तो होगा नहीं, साहब।”
“तो यूं ही दबा देना।”
“तो फिर यहीं बैठाए लेती हूं बेबी को।”
“नहीं, बच्ची है। तू सिर दबायेगी तो समझेगी कि तू मुझे मार रही है।”
जूली हंसकर बोली‒
“अच्छा साहब, बेबी को बेडरूम में छोड़ आती हूं।”
“इसके सामने कुछ खिलौने डाल देना।”
“अच्छा साहब।”
जूली बेड रूम में चली गई।
कृष्ण ने टाई खोलकर एक ओर फेंक दी और बोतल फिर मुंह से लगा ली।
कुछ देर बाद जूली ने आकर कहा‒
“लाइए साहब, आपका सिर दबा दूं।”
और फिर सोफे के पीछे खड़ी होकर वह कृष्ण का सिर दबाने लगी।
कृष्ण ने एक लम्बा घूंट भरकर कहा‒
“जूली, तू नौकरी, क्यों करती है?”
“मजबूरी है, साहब। बाप मर गया। मां अपाहिज है। भाई छोटा है। घर में कोई कमाने वाला नहीं है। उनके गुजारे के लिए नौकरी करनी पड़ रही है।”
“च्-च्-च् तब तो इतने थोड़े से पैसों में गुजारा मुश्किल से ही होता होगा।”
“गुजारा तो आराम से हो जाता है। मेम साहब बहुत अच्छी है।”
“फिर भी कभी-न-कभी जरूरत तो पड़ती ही होगी।”
कृष्ण ने सौ रुपये का नोट निकालकर जूली को देते हुए कहा, “ले, इस रख ले। और जब कभी कोई परेशानी हो मुझे बता देना। एक से लेकर हजार तक जितने की भी जरूरत हो।”
जूली शायद कृष्ण की नीयत भांप गई थी। फुर्ती से पीछे हटती हुई, बोली- “नहीं साहब, मुझे नहीं चाहिए।”
“अरी- ले ले ना।”
“नहीं साहब- बेबी रो रही है- मैं उसे देखती हूं।”
जूली जाने लगी तो कृष्ण ने झपटकर उसे दबोच लिया।
जूली के मुंह से चीख निकली ही थी कि कृष्ण ने उसका मुंह दबा दिया। जूली दस-ग्यारह साल की मासूम लड़की थी। वह अपनी शक्ति के अनुसार छूटने की कोशिश करने लगी।
तभी बेडरूम में से डॉली निकल आई। वह जूली को कृष्ण के हाथों में छपटाते देखकर चिल्ला उठी-
“जूली-।”
कृष्ण ने खूंखर नजरों से बच्ची को घूरते हुए गुर्राकर कहा-
“अंदर जा हरामजादी-!”
लेकिन डॉली अन्दर जाने के बजाय जोर-जोर से रोने लगी।
कृष्ण को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसका जी चाहा कि डॉली का गला घोंटकर उसे मार डाले। लेकिन वह जूली को छोड़ नहीं सकता था। उसे डर था कि छूटते ही जूली चीख-चीखकर मुहल्ला इकट्ठा कर लेगी। उसके ऊपर पागलपन सवार हो गया था। वह हर हालत में उस पर काबू पाना चाहता था।
अचानक फटाक की आवाज के साथ दरवाजा खुला और दरवाजे में सुषमा को देखते ही कृष्ण की पकड़ ढीली पड़ गई। जैसे उसके हाथों का दम निकल गया हो।
उसने फीकी-सी हंसी के साथ हांफते हुए कहा-
“तुम आ गई सुषमा-?”
जूली कृष्ण के पंजे से निकलकर सुषमा से लिपट गई। उसका सारा बदन नन्ही-सी चिड़िया की तरह थर-थर कांप रहा था। उसने रोते हुए कहा- “बचाइए मेम साहब.... फार गॉड सेक, मुझे बचाइए।”
“घबराओ मत बेटी।” सुषमा ने उसकी पीठ पर थपकी दी।
“मेम साहब-अब मैं यहां काम नहीं करूंगी।”
तभी डॉली रोती हुई सुषमा के पैरों से आ लिपटी।
सुषमा ने उसे उठाकर गोद में ले लिया।
डॉली ने रोते हुए कहा-
“मम्मी, पापा जूली को मार रहे थे।”
सुषमा ने उसे पुचकारकर जूली की गोद में दे दिया और बोली-
“जूली, बेबी को अंदर ले जाओ।”
जूली डॉली को लेकर सहमी-सहमी कांपती हुई अंदर चली गई।
कृष्ण ने संभलकर मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा-
“मैं तो-म-म-मजाक कर रहा था जूली से डार्लिंग।”
सुषमा ने कुछ नहीं कहा। उसने दरवाजा बंद किया और अंदर चली गई।
कुछ देर के बाद वह लौटी तो उसके हाथ में रिवाल्वर था।
कृष्ण के हाथ-पांव फूल गए। चेहरा फक्क पड़ गया। वह हड़बड़ाकर बोला-
“द-द- सुषमा डार्लिंग, यह क्या कर रही हो?”
“खामोश।” सुषमा ने बहुत ही खुश्क लहजे में कहा, “बैठो, उस कुर्सी पर बैठो। अगर तुमने एक सेकंड की भी देर की तो सारी गोलियां तुम्हारे सीने में उतार दूंगी। मुझे कुछ नहीं हो सकेगा। जूली की हालत और मासूम बच्ची की गवाही और तुम्हारी पिछले कारनामे अदालत मुझे साफ बरी कर देगी।”
“म-म-मगर...।”
“बैठो” सुषमा सांप की तरह फुंकार कर बोली।
कृष्ण जल्दी से कुर्सी पर बैठ गया।
सुषमा ने जूली को पुकारकर कहा-
“बेबी को बैठाकर यहां आओ, जूली।”
“बेबी रो रही है, मेम साहब।”
“कोई बात नहीं। रोने दो।”
जूली आ गई। लेकिन कृष्ण को देखकर इस तरह कांपने लगी, जिस तरह भेड़िए को देखकर बकरी कांपने लगती है।
सुषमा ने जूली से कहा-
“मेरे कमरे में से डोरी ले आओ।”
जूली चली गई।
कृष्ण ने हड़बड़ाकर उठने की कोशिश करते हुए कहा-
“यह तुम क्या कर रही हो, डार्लिंग?”
“बैठ जाओ!” सुषमा फुंफकारकर बोली- “वरना गोली मार दूंगी।”
कृष्ण झटके से बैठ गया। उसका चेहरा सफेद पड़ गया था।
जूली डोरी ले आई तो सुषमा ने कहा-
“जूली, इसके हाथ कुर्सी के हत्थे से बांध दो।”
“म-म..... मेम साहब!” जूली कांप उठी।”
“डरो मत, अगर इसने चूं भी की तो फौरन गोली मार दूंगी।”
जूली ने डरते-डरते कृष्ण के हाथ पांव बांध दिए और फिर गर्दन भी कुर्सी के पीछे बांध दी।
सुषमा ने कहा-
“जूली- इसके मुंह पर थूको।”
“न-न- नहीं-!”
“जल्दी करो जूली, बेबी रो रही है।”
जूली ने बड़ी कठिनाई से उसके मुंह पर थूका।
कृष्ण की गर्दन हिलकर रह गई। थूक उसके माथे से बहकर नाक और गाल पर से होता हुआ होंठों में आ घुसा।
कृष्ण थूकने लगा तो सुषमा ने गुर्राकर कहा-
“थूकते क्यों हो? जब तुम उसे चूमते तो तुम्हें इसी थूक का मजा चखने को मिलता।”
“सुषमा!” कृष्ण ने गुस्से से कहा, “तुम हद से बढ़ रही हो। तुम भूल रही हो कि मैं तुम्हारा पति हूं।”
“हूं नहीं, थे। अब तुम अपने उस अधिकार को खो चुके हो।”
“क्या मतलब?”
“तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं कृष्ण, जो जी चाहे, चुन लो। मैं अपने लीगल एडवाइजन को बुला रही हूं। जो यह जानते हैं कि मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है। उनसे तलाकनामा तैयार करा देती हूं। तुम उस पर दस्तखत कर दो। और ठीक बारह घंटे के अंदर-अंदर बम्बई छोड़ दो। वरना तुम जहां भी देखे गए एक्सीडेन्ट में मर जाओगे।
“दूसरा रास्ता, तुम जानते हो कि घनश्याम के संबंध बम्बई के बड़े-बड़े गुंडों से हैं। मैं तुम्हें बेहोश कर दूंगी। बेबी को यहां से हटा दूंगी और घनश्याम के गुंडों को बुलाकर कहूंगी कि बदमाश बहुत दिनों से मेरे पीछे पड़ा था। वे गुंडे बड़े आराम से तुम्हारा गला घोंट देंगे और तुम्हारी लाश कहीं ले जाकर गाड़ देंगे। किसी को कानों कान खबर भी न होगी।”
कृष्ण सिर से पांव तक कांप उठा। सारा नशा हिरन हो गया। रंग सफेद पड़ गया। होंठ सूख गए। उसने बड़ी मुश्किल से होंठों पर जीभ फेरकर थूक निगलकर कहा-
“सुषमा, तुम्हें अचानक यह क्या हो गया? मैं मान लेता हूं कि जूली के साथ मुझे ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन मैं नशे में था और नशे में आदमी अपने होश हवास खो बैठता है। तुम कहो तो मैं जूली के पांव पकड़कर माफी मांग लेता हूं। मैं वायदा करता हूं कि आज के बाद शराब को कभी हाथ तक न लगाऊंगा। जो इंसान को जानवर बना देती है। मैं तुम्हारा पति हूं। एक भारतीय नारी का पति उसके लिए भगवान होता है। तुम अपने भगवान का अपमान कर रही हो।”
“तुम मुझे जो उपदेश दे रहे हो, उसे मैं बचपन से ही सुनती चली आ रही हूं। लेकिन ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती। गाड़ी एक पहिए पर कभी नहीं चलती। तुमने तो सुहागरात को ही सारे वचन तोड़ दिए थे। मेरे रोने गिड़गिड़ाने पर भी तुम नहीं पसीजे थे। अगर उस दिन तुमने मुझे घर से न निकाला होता तो मेरे बाबूजी की जान नहीं जाती।”
कहते-कहते सुषमा का गला भर आया। उसने भर्राई आवाज में कहा-
“मेरे बाबूजी सदमे से मर गए। भाई ने घर से निकाल दिया। मैंने आत्महत्या करने की कोशिश की तो महेश ने मुझे बचाया और नया जन्म दे दिया। उसने सब कुछ जानने के बाद भी मुझे अपनाना चाहा। मेरी मांग में सिन्दूर भरना चाहा। लेकिन इसी बीच तुमने नई स्कीम सोच ली, तुम मुझे महेश से छीनकर ले आए। अगर उस दिन महेश ने मेरी मांग में सिंदूर भर दिया होता तो मैं आज एक चने बेचने वाले की पत्नी होती। लेकिन मैंने एक भारतीय नारी का धर्म निभाया। मैं तुम्हारे साथ चली आई। मुझे उस समय पता नहीं था कि तुम मुझे केवल इसलिए लेकर आए हो कि मुझे फिर उसी चमक-दमक की दुनिया में भेजकर मेरी कमाई पर जिन्दगी गुजारना चाहते हो। ऐय्याशी करना चाहते हो।”
“यह झूठ है सुषमा, मैं तो?”
“चुप रहो!” सुषमा गुर्राकर बोली- “मेरे सामने तुम्हारे अतीत का एक-एक पन्ना खुल चुका है। तुम बचपन से ही आवारा और ऐय्याश हो तुमने दिल्ली कॉलेज में पढ़ाई के समय कॉलेज की सबसे सुन्दर लड़की को फिल्मी दुुनिया के सब्जबाग दिखाकर उसकी आबरू लूट ली थी और जब वह गर्भवती हो गई तुम उसे छोड़कर बम्बई भाग आए, तुमने बम्बई आकर नौकरी कर ली और ऐय्याशी करने लगे। तुमने मुझे एक रात के लिए पन्द्रह हजार रुपये में खरीदा और पता चलने पर मुझे घर से निकाल दिया। बाद में तुमने सोचा कि तुमने सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी को छोड़ दिया है तो तुम मुझे धोखा देकर फिर अपने घर ले आए। तुमने झूठ बोला था कि तुम पर गबन का मुकदमा चल रहा है। और अगर गबन की रकम जमा न की गई तो तुम्हें पांच साल की सजा हो सकती है।
“मैंने एक वफादार पत्नी के नाते तुम्हें सजा से बचाने के लिए दोबारा मॉडल गर्ल का धन्धा अपना लिया। मेरे मॉडल गर्ल बनने के बाद तुमने नौकरी छोड़ दी। तुमने मेरे भाई को बहकाया कि मैं अपनी इच्छा से मॉडल गर्ल बन गई हूं और अब तुम्हें मेरा सेक्रेटरी बनकर रहना पड़ेगा वरना मैं तुम्हें छोड़ दूंगी।
“तुमने गबन की झूठी कहानी गढ़कर मुझसे दस लाख रुपये हथिया लिए। और फिर बिजनेस का बहाना करके पांच लाख रुपये ले लिए ताकि तुम मुझसे दूर रहकर, जी भर कर ऐय्याशी कर सको। तुमने मालाबार हिल पर दो हजार रुपये माहवार किराए पर बंगला ले रखा है। जिसमें तुम हर रोज एक नई लड़की के साथ ऐश करते हो। आजकल तुम्हारे साथ दिल्ली कॉलेज की वही लड़की रह रही है जिसको तुमने धोखा देकर आबरू लूटी थी। और अब जिसका नाम रूबी है।”
“यह झूठ है!”
“बकवास मत करो। झूठ सिर्फ वह होता है जो सुना जाए। तुम लेडी डॉक्टर निर्मला सिंह के यहां कई बार नए-नए नाम बदलकर लड़कियों को ले जा चुके हो। जिस समय तुम रूबी को लेकर डॉक्टर निर्मला सिंह के यहां गए थे, मैं वहां मौजूद थी, मैंने तुम्हारी और डॉक्टर सिंह की एक-एक बात सुनी थी। फिर मैंने एक ग्राहक बनकर रूबी को एंगेज किया और जब पता चला कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं तो उसने मुझे सब कुछ बता दिया। और तुम्हारा घिनौना रूप मेरे सामने स्पष्ट हो गया।
“तुम वासना की आग में इतने अन्धे हो चुके हो, मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। तुम कितने गिरे हुए हो, तुमने आज जूली जैसी कम उम्र मासूम बच्ची पर हमला करके उसका सबूत दे दिया है। इंसान तो दूर एक जानवर भी इतना नीचे नहीं गिर सकता। तुम्हारी बेटी तुम्हारे सामने खड़ी रो रही है और तुम वासना से अन्धे होकर उसे गालियां दे रही हो। कल जब यह बच्ची बड़ी होगी तो क्या इस दृश्य को भूल जाएगी जो इसने आज देखा है। तुम्हारी इस हरकत से दुनिया की सभी लड़कियों को अपने बाप से घृणा हो जाएगी। और तुम जैसे बाप का उसकी औलाद पर क्या प्रभाव पड़ेगा, स्पष्ट है।”
“अब पानी सिर से गुजर चुका है। तुम दिल्ली में कारोबार और हर शनिवार को दिल्ली से आने और सोमवार को वापस चले जाने का नाटक बहुत खुले हो। मैं एक भारतीय नारी हूं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पति के हर अन्याय और अत्याचार को सहती रहूं। अपने अधिकार के लिए अपना मुंह भी न खोलूं। अगर भारतीय पति का यही चरित्र है तो मैं इस परम्परा को ही बदल डालूंगी। क्योंकि मैं केवल भारतीय पत्नी ही नहीं भारतीय मां भी हूं। मेरी बच्ची के भविष्य की जिम्मेदारी मुझ पर है। इसलिए तुम्हारा मेरी बच्ची से दूर रहना बहुत जरूरी है कि ताकि उस पर तुम्हारी परछाई तक न पड़ने गाए- जल्दी बोलो, तुम्हें कौन-सा रास्ता पसन्द है? अगर सवेरा हो गया तो तुम्हारी लाश को कल सारे दिन घर में ही रखना पड़ेगा।”
कृष्ण कांप उठा। फिर कांपती हुई आवाज में बोला-
“तुम वकील को बुला सकती हो।”
सुषमा ने पास ही रखे टेलीफोन पर से रिसीवर उठा लिया।
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