Romance अभिशाप (लांछन )

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

(^%$^-1rs((7)
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

राज ने इतनी अधिक पी थी कि उठने की शक्ति न रही। उसने उठने का प्रयास किया तो चकराकर सोफे पर गिर पड़ा। पाशा ने उसे शीघ्रता से संभाला और बोला- ‘आपको इतनी अधिक न पीनी चाहिए थी सर!’
‘पाशा!’ लंबी-लंबी सांसें लेते हुए राज ने कहा- ‘आज हमारा अपमान हुआ है। जीवन में आज किसी ने पहली बार राज वर्मा का अपमान किया है मिस्टर पाशा! और जानते हो-वह कौन है?’
पाशा शायद जानता था, इसलिए चुप खड़ा रहा।
‘सुषमा!’ राज ने अपनी बात पूरी की- ‘एक दो टके की छोकरी! एक ऐसी बाजारू लड़की, जिसे हम कभी भी खरीद सकते थे। एक ऐसी वेश्या-जिसने एक-दो बार नहीं-पचासों बार हमारी रातों को रंगीन बनाया है। मिस्टर पाशा! उसने हमारा अपमान किया है।’
‘मुझसे तो सिर्फ यह बताइए कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’
‘हमें अपने अपमान का बदला चाहिए पाशा! साथ ही हम ये भी चाहते हैं कि वह जिंदगी में कभी किसी की दुल्हन न बन सके। हम-हम उसकी सुंदरता, उसके अभिमान को चूर-चूर करना चाहते हैं। तुम्हारी नजरों में ऐसा कोई आदमी है-जो उस हरामजादी को यहां लाकर हमारे कदमों में डाल सके?’
‘यह तो मामूली-सी बात है सर! मैं सलीम को फोन कर दूंगा। उसके आदमी सुषमा को यहां ले आएंगे।’
‘गुड! सलीम को फोन करो और इस काम के बदले में जितनी रकम मांगे-उसे दे दो। हम यह चाहते हैं कि यह काम सुबह से पहले हो जाना चाहिए।’
‘सर! सलीम के आदमी चुटकियों में काम करते हैं। मुझे उम्मीद है कि सुषमा आधी रात से पहले आपके पास आ जाएगी।’ इतना कहकर पाशा बाहर चला गया।
अत्यधिक नशे की वजह से राज इस संबंध में कुछ अधिक न सोच सका और उसे नींद आ गई।
उसे किसी ने ठीक तीन घंटे बाद जगाया। जगाने वाला पाशा था। राज ने उठकर इधर-उधर देखा तो पाशा उससे बोला- ‘सुषमा आ गई सर!’
‘क-क्या?’ राज एकाएक विश्वास न कर सका।
‘यस सर!’
‘लेकिन कैसे?’
‘सर! उस समय तक सुषमा के घर में कोई सोया न था। सलीम के गुंडों ने वहां पहुंचकर घर का द्वार खुलवाया और सुषमा को दबोच लिया।’
‘और-उसके मम्मी-पापा?’
‘उन्हें बांधकर डाल दिया सर! किन्तु इस कार्य में दस हजार रुपए खर्च हो गए।’
‘कोई बात नहीं मिस्टर पाशा!’ राज ने उठकर सिगरेट सुलगाई और कड़ुवाहट से बोला- ‘यदि बीस हजार भी खर्च होते तब भी कोई चिंता न थी। कहां है वह?’
‘बेसमेंट में।’
‘यानी जिस हॉल में शूटिंग होती है?’
‘नो सर! बराबर वाले कमरे में। मैंने सोचा-यहां शोर हो सकता है इसलिए उसे नीचे ले गया।’
‘बेहोश तो नहीं?’ राज ने पूछा।
‘नो सर! बेहोश नहीं है। सावधानी के लिए मुंह पर टेप चिपका दिया है और हाथ-पांव बंधे हैं।’ पाशा ने बताया।
‘सलीम के गुंडे?’
‘वे जा चुके हैं।’
‘रकम?’
‘मैं दे चुका हूं।’
‘ठीक है-अब आप आराम कर सकते हैं। बाहर गनमैन तो होगा?’
‘यस सर! गनमैन कभी है और द्वार भी बंद है।’ इतना कहकर पाशा वहां से चला गया।
पाशा के चले जाने पर राज ने वॉल क्लॉक में समय देखा-रात्रि के बारह बजे थे। चलकर वह बाथरूम में गया और फ्रैश होकर लौट आया। पीने का सामान मेज पर अभी भी रखा था। उसका मन था कि एक-दो घूंट गले से उतार ले, किन्तु फिर कुछ सोचकर उसने ऐसा न किया और चलकर सुषमा वाले कमरे में आ गया।
सुषमा को देखकर राज के होंठों पर गर्वपूर्ण मुस्कुराहट फैल गई। वह इस समय कालीन पर पड़ी थी। हाथ-पांव बंधे थे-मुंह पर टेप चिपका था और आंखों से आंसू बह रहे थे।
राज उसे ध्यान से देखने लगा।
सुषमा को देर तक देखने के पश्चात् फिर वह नीचे झुका और उसने एक झटके से सुषमा के मुंह पर चिपटा टेप खींच दिया।
टेप हटते ही मानो सुषमा के अंदर धधकता ज्वालामुखी फूट पड़ा। राज को क्रोधित नेत्रों से देखते हुए वह घृणा से दांत पीसकर गुर्रायी- ‘नीच! कमीने-शैतान। तो-यह है तेरा असली रूप। तेरी असली वास्तविकता। नीचता की सीमा लांघ गया तू। तूने इस नीचतापूर्ण कारनामे से सिद्ध कर दिया है कि इंसान अपने स्वार्थ के लिए किस सीमा तक गिर सकता है। तू भेड़िया है राज! इंसानी खाल में छुपा भेड़िया।’
‘बहुत खूब सुषमा रानी! बहुत खूब।’ धीरे से हंसकर राज बोला- ‘जवाब नहीं तुम्हारे संवादों का। क्या शानदार रोल किया है तुमने। दिल करता है-तुम्हें अपनी नई फिल्म की हीरोइन बना दूं। वैसे एक बात सच है और वह यह है कि तुम गुस्से में और भी सुंदर लगती हो।’
‘मेरी यह सुंदरता तुझे नागिन बनकर डस जाएगी कुत्ते।’
‘वह तो तुम मुझे आज भी डस रही हो। बल्कि मुझे ही नहीं-मेरे खानदान को भी। पहले तुमने मुझ पर जादू चलाया और फिर अखिल को वश में कर लिया। पता नहीं अभी और कितने घर जलाओगी तुम।’
‘किसी और का घर जले न जले-किन्तु मैं तेरा घर अवश्य ही जलाकर राख करूंगी कमीने।’
‘यह तो आज भी हो रहा है। जल रहा है मेरा घर-बहुत अच्छे ढंग से आग लगाई है तुमने। मगर अब नहीं सुषमा रानी! आज के पश्चात् तुम कुछ न कर सकोगी। न तो तुम्हारी शादी होगी और न ही यह सुंदरता तुम्हारे पास रहेगी। मिट्टी में मिला देंगे हम तुम्हारे एक-एक इरादे को। जलाकर राख कर देंगे हम तुम्हारी खूबसूरती को।’
सुषमा पत्ते की भांति कांप गई।
राज ने सिगरेट का कश लिया और घृणा से कहता रहा- ‘चार दिन-सिर्फ चार दिन रह गए हैं तुम्हारी शादी में। मगर यह दिन तुम्हारी जिंदगी में कभी नहीं आएंगे सुषमा रानी! यह चार दिन तुम्हें यहीं गुजारने होंगे-हमारी कैद में। उसके पश्चात-या तो हम तुम्हें खत्म कर देंगे या फिर तुम्हारे चेहरे पर तेजाब डालकर तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए बदसूरत बना देंगे। वैसी स्थिति में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा तुम्हारी ओर। लोग घृणा करेंगे तुमसे। इतनी घृणा कि तुम उसे सह न पाओगी और अपनी जान दे दोगी।’
सुषमा ने तड़पकर कहा- ‘एक शेरनी भी जब पिंजरे में कैद कर दी जाती है तो वह भी कुछ नहीं कर पाती कमीने। विवश हो जाती है वह, किन्तु वो विवशता उसकी कायरता नहीं होती। मैं जानती हूं-तू मेरे साथ कुछ भी कर सकता है। मगर मैं इसे तेरी बहादुरी और अपनी कायरता नहीं मानती। यदि तू मर्द है और तूने वास्तव में अपनी मां का दूध पिया है तो एक बार-सिर्फ एक बार मेरे बंधन खोलकर देख...। उसके पश्चात् मैं तुझे दिखाऊंगी कि औरत साहस और वीरता में किसी भी पुरुष से कम नहीं होती।’
‘हूं।’ राज बैठ गया और सिगरेट का धुआं उछालकर बोला- ‘हिम्मत तो तुममें है-साथ ही चालाकी भी। मगर तुम्हारी यह हिम्मत और चालाकी हमारा कुछ बिगाड़ लेगी, ऐसा हम नहीं सोचते। रही तुम्हारे बंधन खोलने की बात तो यह बेवकूफी हम कभी नहीं करेंगे। कम-से-कम चार दिन तक तो बिलकुल भी नहीं। अब तुम आराम करो। और हां-यहां तुम्हें कोई असुविधा न होगी। हम एक सेविका तुम्हारे पास छोड़ देंगे-जो तुम्हारी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेगी। अब हम चलते हैं।’
इतना कहकर राज उठा और ज्यों ही द्वार की ओर बढ़ा-सुषमा बेबसी से दांत पीसकर बोली- ‘मुझे जाने दे कुत्ते। जाने दे मुझे। मेरे माता-पिता मेरे वियोग में अपने प्राण दे देंगे।’
राज ने व्यंग्य से कहा- ‘डोंट वरी सुषमा रानी! हमें यकीन है कि ऐसा कुछ न होगा। और यदि ऐसा हुआ भी तो उनका अंतिम संस्कार हम कर देंगे। ओ-के--अब तुम सो जाओ।’
कहकर राज बाहर आ गया।
पाशा उस समय बाहर ही खड़ा था।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

पूरन ने रो-रोकर बुरा हाल कर रखा था और उसके निकट खड़े राजाराम के परिवार के लोग यों एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे-मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो।
पूरन ने उनसे सुषमा के अपहरण के विषय में सब कुछ बता दिया था। साथ ही यह भी बताया था कि ज्योति समय राज नाम का एक अमीर युवक उन्हें यह विवाह न होने की धमकी देकर गया था। पूरन ने राज का कहा हुआ एक-एक वाक्य राजाराम को बता दिया था।
राजाराम चुप था-घर के अन्य लोग भी चुप थे। किसी में इतना साहस न था कि वह पूरन के सामने सच्चाई स्वीकार कर पाते और कह पाते कि राज अखिल का ही बड़ा भाई था।
अंत में अखिल ने पूरन से कहा- ‘आप चिंता न करें अंकल! सुषमा को कुछ नहीं होगा।’
‘बेटे! उसे गुंडे उठाकर ले गए हैं।’
‘मैं अच्छी तरह जानता हूं उसे कौन उठाकर ले गया है। आप घर जाइए-मैं सुषमा को लेकर आता हूं।’
राजाराम ने कहा- ‘ठहर अखिल! मैं भी तेरे साथ चलता हूं।’
‘नहीं पापा! आप यहीं रुकिए। आप दिल के मरीज हैं-आपकी तबीयत बिगड़ते देर नहीं लगती।’
‘लेकिन अखिल!’ कौशल्या बोली- ‘यह तो पता चले कि सुषमा है कहां?’
‘सुषमा का मुझे पता है मम्मी! आप चिंता न करें।’ फिर उसने पूरन से कहा- ‘अंकल! आप आराम से घर जाइए। मैं सुषमा को लेकर आता हूं।’ इतना कहकर अखिल तेजी से बाहर आ गया।
ठीक एक घंटे पश्चात् वह राज की उस कोठी पर पहुंचा-जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में उसकी फिल्म कंपनी का बोर्ड लगा था।
कोठी का गेट बंद था।
गेट पर खड़ा गनमैन उसे देखते ही आगे आया और उससे बोला- ‘कहिए।’
‘मिस्टर राज वर्मा?’
‘आप?’
‘मैं उनका भाई हूं-अखिल वर्मा।’
यह सुनकर गनमैन ने राज को सूचित करने की आवश्यकता नहीं समझी।
अखिल ने अंदर प्रवेश किया। राज का कमरा बरामदे के दूसरी ओर था। चपरासी से कमरे के विषय में पूछकर अखिल आगे बढ़ा और कमरे के सामने आ गया। कमरा अंदर से बंद था। अखिल ने द्वार पर दस्तक दी तो द्वार खुल गया। द्वार खुलते ही अखिल ने अंदर प्रवेश किया। द्वार एक लड़की ने खोला था। अखिल को अंदर आते देखकर वह एक ओर को हट गई और रिवाल्विंग चेयर पर बैठा राज उसे देखकर एक झटके से उठ गया।
किन्तु उसने शीघ्र ही अपने आपको संभाल लिया और स्थिति को समझकर वहां मौजूद लड़की से बोला- ‘कामिनी! तुम जा सकती हो।’
कामिनी चली गई।
राज ने फिर अखिल से कहा- ‘आ-आ अखिल! बैठ।’
‘मैं यहां बैठने नहीं आया मिस्टर राज वर्मा!’ क्रोध के कारण अखिल का चेहरा भट्टी की भांति दहक रहा था। घृणा से दांत पीसते हुए वह बोला- ‘मुझे तो आपके इस महल में पांव रखते हुए भी यों लगा कि मानो मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया है। आप जानते हैं न-पाप की कमाई से महल खड़ा करने वाला इंसान तो पापी होता ही है-उस महल में रहने और पांव रखने वाले भी पापी कहे जाते हैं।’
‘नाराज क्यों है?’
‘खुश तो मैं आपसे पहले भी नहीं था मिस्टर राज वर्मा! मगर उस वक्त आप मेरे दुश्मन न थे।’
‘और आज......?’
‘दुश्मन हैं आप मेरे। आपने मेरे साथ वो किया है-जो शायद एक दुश्मन भी नहीं कर सकता।’
‘म-मैंने ऐसा करा किया है?’
‘बहुत खूब मिस्टर राज वर्मा!’ अखिल ने घृणा से एक-एक शब्द को चबाते हुए कहा- ‘नीचता की ऐसी सीमा लांघकर भी आप मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या हुआ? कौन-सी नीचता नहीं दिखाई आपने? आपने पहले मुझ पर दबाव डाला कि मैं अपना विवाह रोक दूं। उसके पश्चात् आप सुषमा के पिता से मिले! आपने उनके सामने बीस हजार के नोट रखे और चाहा कि वह सुषमा की शादी मुझसे न करें। और-और जब उन्होंने किसी प्रकार भी अपना ईमान न बेचा तो आपने वहां गुंडे भेजकर सुषमा का अपहरण करा लिया। बांधकर डाल दिया गया सुषमा के माता-पिता को।’
यह सुनकर राज के चेहरे पर सन्नाटा फैल गया।
फिर भी स्वयं को संभालकर वह कांपती आवाज में बोला- ‘यह-यह सब झूठ है।’
‘यह सच है मिस्टर राज वर्मा!’ अखिल गुस्से में चिल्लाया और एक कदम आगे बढ़कर राज से बोला- ‘और यदि यह झूठ है तो सौगंध लीजिए उस कोख की, जिससे आपने जन्म लिया है। सौगंध लीजिए मां के उस दूध की, जो आपने पिया है और उसके पश्चात् कहिए...। कहिए कि यह सब झूठ है। कहिए कि आपको सुषमा के विषय में कोई जानकारी नहीं। कहिए कि आपने उसका अपहरण नहीं कराया। कहिए मिस्टर राज वर्मा!’ राज का चेहरा झुक गया।
कहने के लिए कोई शब्द न रहा, किन्तु उसके मौन ने जैसे सब कुछ कह डाला। अखिल उसे मौन देखकर गुर्राया- ‘मिस्टर राज वर्मा! मेरी विवशता यह है कि हम दोनों को एक ही देवी ने जन्म दिया है। विवशता यह है कि हम दोनों ने एक ही कोख में पांव फैलाए हैं और उस रिश्ते से आप मेरे भाई हैं। यदि यह विवशता न होती तो सौगंध उसी देवी की-मिस्टर राज! मैं तुम्हारी बोटी-बोटी काटकर फेंक देता। ऐसी सजा देता इस अपराध की कि उसे देखकर आपकी आत्मा भी कांप जाती।’
राज की टांगें कांपने लगीं। वह बैठ गया और रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछने लगा। उसके पास कहने के लिए अब भी शब्द न थे।
कुछ क्षणों तक ब्लेड की धार जैसा मौन रहा।
मौन के इन क्षणों में अखिल पागलों की भांति अपने दांत पीसता रहा और फिर बोला- ‘सुषमा कहां है?’
‘सुषमा घर जा चुकी है।’ राज ने झूठ कहा।
‘कब?’
‘अभी आधा घंटा पहले।’
‘तुम झूठ बोल रहे हो राज!’
‘मैं सच कह रहा हूं। वह थोड़ी देर पहले ही घर गई है। तुम इस विषय में उसके पिता से पूछ सकते हो।’
‘ठीक है मिस्टर राज!’ कुछ सोचकर अखिल ने कहा- ‘मैं सुषमा के घर जा रहा हूं। मगर एक बात का ध्यान रखना-सुषमा यदि वहां न हुई तो मैं-मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा।’ कहते ही अखिल मुड़ा और द्वार खोलकर तेजी से बाहर चला गया। कदमों की तेजी उसके अस्तित्व में चीखने वाले क्रोध के तूफान की ओर संकेत कर रही थी।
राज उसे मूर्तिमान-सा देखता रहा।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
सुबह का समय था।
आनंद नीचे झुका सूटकेस में अपने कपड़े भर रहा था और डॉली दर्पण के सामने खड़ी अपने बाल संवार रही थी।
दोनों के बीच ऐसा मौन था जिसके टूटने की संभावना ही न थी। किन्तु फिर भी मौन टूट गया। डॉली ने उसी मुद्रा में आनंद से पूछा- ‘जा रहे हो?’
‘हां।’ आनंद ने उत्तर दिया।
‘हमेशा के लिए?’
‘शायद।’
‘जाना आवश्यक तो नहीं।’
‘आवश्यक है।’
‘पापा से न मिलोगे।’
‘लाभ ही क्या है?’
‘लोग क्या कहेंगे?’
‘कुछ भी नहीं। वैसे भी आज के युग में संबंधों का बनना और फिर टूट जाना एक साधारण-सी घटना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।’
‘तुम चाहते हो यह संबंध टूट जाए?’
‘इंसान के चाहने मात्र से कुछ नहीं होता। मैंने तो न जाने क्या-क्या चाहा था। यह कि मैं तुम्हें जीवनभर यूं ही चाहूंगा। यह कि मेरी एक छोटी-सी दुनिया होगी। उस दुनिया में मैं रहूंगा, डॉली रहेगी और हमारे बच्चे रहेंगे-लेकिन।’ आनंद ने निःश्वास ली और बोला- ‘लेकिन हुआ क्या? कहानी आरंभ होते ही समाप्त हो गई। दुनिया बसने से पहले ही उजड़ गई। राख हो गया सब कुछ जलकर। मेरी आशा, मेरा विश्वास और मेरे सपने-सब कुछ चूर-चूर हो गया। न जाने किसकी नजर लगी मेरी तकदीर को कि एक भाग्यशाली इंसान हमेशा के लिए अभागा बनकर रह गया। एक दार्शनिक-जिसकी दृष्टि में जीवन एक दर्शन के अतिरिक्त और कुछ न था-आज अपने ही दर्शन में उलझकर रह गया। न जाने कैसे हो गया यह सब-कैसे हो गया?’ कहते-कहते आनंद की आवाज रुंध गई और आंखों में आंसुओं की बूंदें झिलमिला उठीं।
डॉली उससे बोली- ‘क्या तुम-तुम अपना निर्णय नहीं बदल सकते?’
‘निर्णय अपना स्वयं का होता तो बदल भी डालता।’ उंगलियों से आंसू पोंछकर आनंद बोला- ‘किसी दूसरे के निर्णय को किस प्रकार बदलूं? किस मुंह से कहूं कि तुम्हारा निर्णय ठीक नहीं?’
डॉली दर्पण के सामने से हटकर आनंद के समीप आ गई और बोली- ‘हां-निर्णय तो मेरा उचित नहीं-किन्तु विवशता यह है कि...।’
‘मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं डॉली! मैं यह भी नहीं कहता कि तुम्हारा निर्णय उचित नहीं, किन्तु मैं इतना अवश्य कहूंगा कि तुम्हें यों मेरे जीवन में आग लगाने का कोई अधिकार न था। मैंने तो तुमसे कभी नहीं कहा था कि तुम मुझे चाहो-कभी नहीं कहा था कि मुझसे विवाह करो। यह निर्णय तो तुम्हारे ही थे। मैं तो केवल तुम्हारे वादों पर विश्वास कर बैठा था। सिर्फ विश्वास ही नहीं किया-चाहने लगा तुम्हें-पागलों की भांति। और आज-आज तुमने मेरी चाहत को कच्चे धागे की भांति तोड़ दिया। यों मुख मोड़ लिया मेरी ओर से-मानो तुम्हारा-मेरा कोई रिश्ता ही न था। मानो न तुमने मुझे चाहा था और न ही मैंने तुम्हें। अग्नि के इर्द-गिर्द किए फेरे और फेरों के समय दिए गए वचन। सब कुछ भुला दिया तुमने। आखिर क्यों-किसलिए? ऐसी कौन-सी कमी थी मेरे अंदर-ऐसा कौन-सा अपराध किया था मैंने, जिसकी सजा तुम मुझे तलाक के रूप में दे रही हो? बताओ डॉली! बताओ।’
डॉली ने उसके प्रश्नों से घबराकर चेहरा घुमा लिया और बोली- ‘आनंद! मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि मेरे पास तुम्हारे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं है। मैं सोचती हूं-शायद मैंने तुमसे प्यार ही नहीं किया था। मेरा तुम्हें चाहना-तुमसे मिलना और तुमसे विवाह करना-एक नाटक था शायद। और यह तुम भी जानते हो आनंद! कि नाटक का एक समय निर्धारित होता है। कुछ घंटे-कुछ माह अथवा कुछ वर्ष। समय पूरा हो गया तो नाटक भी खत्म हो गया है। मेरी विवशता यह रही कि मैं नाटक के समय को आगे न बढ़ा सकी और एक दिन मुझे पर्दा गिराना ही पड़ा।’
डॉली यह सब बिना रुके ही कह गई।
आनंद तड़पकर रह गया। मानो-डॉली ने यह सब कहकर उसके कानों में पिघला हुआ सीसा उड़ेल दिया हो। इस पीड़ा से उसका रोम-रोम चीख उठा।
‘वैसे’ डॉली फिर बोली- ‘तुम चाहो तो इस नाटक को और भी आगे बढ़ा सकते हो।’
‘बस करो डॉली! बस करो।’ आनंद इस बार घृणा से चीख पड़ा- ‘मत कहो मुझसे कि जो कुछ हुआ-वह एक नाटक था। और यदि यह नाटक भी था तो इसकी सूत्रधार तुम थीं। तुम! तुमने रचाया था यह नाटक। मैंने तो सिर्फ प्यार किया था तुमसे। वह प्यार-जिसे इस संसार की सबसे कोमल, सबसे अधिक मूल्यवान और सबसे पवित्र अनुभूति कहा जाता है। बस प्यार-जिसे संसार भर की दौलत देकर भी नहीं पाया जाता। वह प्यार, जिसकी एक बूंद को पाने के लिए लोग अपने रक्त की अंतिम बूंद तक कुर्बान कर देते हैं। वह प्यार नाटक नहीं बन सकता डॉली! और कभी मिटता भी नहीं है।’
डॉली ने बेचैनी से होंठ काट लिए।
‘और।’ आनंद कहता रहा- ‘यह भी याद रखना डॉली! कि मेरा वह प्यार कभी मिटेगा नहीं। मेरा यह प्यार तब तक रहेगा-जब तक यह धरती है-यह आकाश है और इन दोनों के बीच मेरा अस्तित्व है। मैं तुम्हें कल भी उतना ही चाहूंगा-जितना आज चाहता हूं। कभी मेरी चाहत को समझ सको तो अपना यह फैसला बदल देना और चली आना! मैं हर पल तुम्हारी राहों में पलकें बिछाए रहूंगा। जीवन की अंतिम सांस तक प्रतीक्षा करूंगा तुम्हारी।’ इतना कहकर आनंद ने अपनी आंखों के कोने साफ किए-सूटकेस उठाया-एक बार दयनीय दृष्टि से मौन खड़ी डॉली को देखा और इसके पश्चात् वह थके-थके कदमों से बाहर चला गया।
डॉली निढ़ाल-सी बिस्तर पर गिर पड़ी।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

राज ने बोतल उठाई और पूरी ताकत से दीवार पर दे मारी। बोतल दीवार से टकराते ही टुकड़े-टुकड़े हो गई। कमरे में कांच फैल गया और इसके उपरांत वह जैसे पागल हो उठा।
पागलपन में वह चिल्लाया- ‘बोल राज-बोल! क्या मिला है तुझे इस दौलत से? कौन-सी खुशी मिल गई तुझे? तेरा घर तेरे लिए पराया हो गया-जो अपने थे-वो बगाने हो गए। ठोकर मार दी सबने तुझे। यहां तक कि तेरे छोटे भाई ने तुझे अपमानित किया। यहां तक कि एक दो टके की छोकरी भी तेरे गाल पर थप्पड़ मार गई। सिर्फ थप्पड़ ही नहीं मारा उसने-बहू बन गई तेरे घर की। रोक भी न सका तू उसे। किसी से कह भी न सका कि सुषमा एक बाजारू लड़की है। कैसे कहता-उस लड़की के साथ तू भी तो जुड़ा था। यदि तू उसके संबंध में कुछ कहता तो क्या तू बेदाग रह जाता? तेरे माथे पर चरित्रहीनता का दाग न लगता? कितना मजबूर हो गया तू-कितना बेबस। करोड़ों की दौलत रहते भी तू सुषमा को अपने घर की बहू बनने से न रोक सका। और-और वह लड़की डॉली जो तेरा पहला प्यार थी-वह भी पराई हो गई-सदा के लिए पराई हो गई।’ कहते-कहते सिसक पड़ा राज।
तभी कोई कमरे में आया और उसने बोला- ‘पहला प्यार कभी पराया नहीं होता राज! वह तो जन्म-जन्मांतर तक हृदय में बसा रहता है। अतः यह मत कहो कि डॉली पराई हो गई है।’
राज ने पलकें झपकाकर देखा।
यह डॉली थी-उसकी डॉली। वह कुछ क्षणों तक तो डॉली को आंखें फाड़-फाड़कर देखता रहा और फिर न जाने क्या हुआ कि वह उसके हृदय से लगकर किसी अबोध बच्चे की भांति रो पड़ा।
डॉली उसके यों रोने का कारण न जान सकी और बोली- ‘क्या हुआ राजू! तुम रो क्यों रहे हो? क्या तुम्हें विश्वास नहीं होता कि डॉली आज भी तुम्हारी है? क्या-क्या तुम मुझे पराई समझते हो राजू?’
राज फिर भी रोता रहा।
डॉली ने उसका चेहरा हथेलियों में ले लिया और बोली- ‘राजू! राजू तुम कुछ बताते क्यों नहीं?’
‘मत पूछो डॉली! मत पूछो।’ रोते-रोते राज बोला- ‘बस यूं ही रोने दो मुझे। यूं ही बहने दो मेरे आंसुओं को। बहुत शांति मिल रही है मुझे। तुमसे लिपटकर रोते हुए यों लगता है-मानो जीवन में कोई भी पीड़ा न हो। कोई भी छटपटाहट न रही हो। मुझे-मुझे यूं ही अपने हृदय से लगाए रहो डॉली! मेरी अच्छी डॉली।’
‘पर-यह तो पता चले कि तुम रो क्यों रहे हो?’
राज उससे रोने का कारण बताना न चाहता था। उसे कोई अन्य बहाना भी न सूझ सका। अंततः उसने अपने आंसू पी लिए और सोफे पर बैठ गया। डॉली उसके निकट ही बैठ गई और उसके बालों में स्नेह से उंगलियां फिराते हुए बोली- ‘राजू!’
‘सॉरी डॉली! मैं न जाने किन भावनाओं में बह गया था। न जाने कौन याद आ गया था मुझे कि रो पड़ा।’
‘मैं जानती हूं। तुम्हें बीता हुआ वक्त याद आया होगा।’
‘हां-हां डॉली!’ राज ने झूठ कहा- ‘मुझे वास्तव में गुजरा हुआ जमाना याद आ गया था। वह-वह दिन कितने रुपहले थे डॉली! जब हम हाथों में हाथ दिए घंटों रोशनी बाग में घूमते थे।’
‘हां राजू!’
‘तुम्हें वह दिन तो याद होगा-जब एक सूखे हुए फूल को शाख से हटाते हुए तुम्हारी उंगली में कांटा चुभ गया था?’
डॉली ने जैसे स्वप्नलोक में विचरते हुए कहा- ‘हां-हां राजू! मेरी उंगली में कांटा चुभ गया था। बहते हुए खून को देखकर तुम घबरा गए थे और तुमने मेरी उंगली को अपने होंठों में दबा लिया था। तुम्हारे गर्म होंठों का स्पर्श पाते ही मेरी पीड़ा मिट गई थी।’
‘और वह दिन-हम सागर सरोवर पर घूमने गए थे।’
‘बहुत जोरों का तूफान आया था। ऐसा तूफान कि वृक्ष उखड़-उखड़कर गिरने लगे थे। घबरा गई थी मैं तो। चारों ओर काली धुंध-कुछ भी तो दिखाई न दिया था। तब तुमने मुझे देर तक अपने सीने से लगाए रखा था। है न राजू?’ डॉली ने कहा और अपना सर राज के कंधे पर रख दिया।
राज बेचैनी से बोला- ‘बस! अब बस करो डॉली! मत याद करो उन दिनों को। याद करते ही हृदय में पीड़ाओं का तूफान उठता है।’ कहकर उसने निःश्वास ली ओर बोला- ‘कितने सपने सजाए थे मैंने उस समय। कितनी कल्पनाएं की थीं भविष्य की। किन्तु हुआ क्या? सपने जलकर राख हो गए। कल्पनाएं रेत के टीले की भांति बिखर गईं। रह गया दर्द-सिर्फ दर्द।’
‘ऐसा न कहो राजू! मत कहो ऐसा। क्योंकि तुम्हारे सपने आज भी जीवित हैं। तुम्हारी कल्पनाओं का महल आज भी वैसी ही स्थिति में खड़ा है।’
‘क्या मतलब?’
‘मतलब यह कि डॉली अब सिर्फ तुम्हारी है। सिर्फ तुम्हारी।’
राज ने चौंककर पूछा- ‘और-आनंद?’
‘मैंने उससे हमेशा के लिए संबंध तोड़ लिए हैं। आनंद अपने घर चला गया है।’
राज को यह सुनकर प्रसन्नता हुई। डॉली को अपनी ओर खींचकर वह बोला- ‘किन्तु-यह सब हुआ कैसे?’
‘हम दोनों की हठ के कारण।’
‘तुम्हारी क्या हठ थी?’
‘यह कि मैं तुमसे हमेशा मिलती रहूंगी।’
‘आनंद क्या चाहता था?’
‘आनंद को तुम्हारे नाम से भी घृणा थी। मैंने उससे कहा था कि वह इस घृणा को अपने हृदय से निकाल दे। किन्तु जब ऐसा न हुआ तो वह अपना सामान उठाकर भाई के पास चला गया।’
‘खैर-अब क्या इरादा है?’
‘मैं उससे तलाक ले रही हूं। मैं इस संबंध में एक वकील से भी बातें कर चुकी हूं। तुम क्या सोचने लगे?’
‘क...कुछ नहीं डॉली!’ राज ने डॉली को बांहों में भर लिया और उसे चूमकर बोला- ‘यह तुमने अच्छा किया-बहुत अच्छा किया। आज मुझे अपने जीवन की तमाम खुशियां मिल गईं।’
‘और-मुझे भी राजू!’ इतना कहकर डॉली ने अपनी आंखें मूंद लीं।’
राज उसके बालों से खेलता रहा।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
हाथ में सूटकेस, आंखों में घोर निराशा और हृदय में पीड़ाओं का तूफान लिए आनंद जब घर पहुंचा तो उस समय उसका भाई अशोक, अपनी पत्नी सुनीता एवं बच्चों के साथ बैठा दोपहर का खाना खा रहा था।
आनंद को देखकर वह बोला- ‘शुक्र है आनंद! आज तुम्हें हम लोगों की याद तो आई। अन्यथा मैं तो सोच बैठा था कि तुम हमें बिलकुल ही भूल चुके हो।’
आनंद मौन बैठा रहा।
सुनीता बोली- ‘तुम भी कैसी बातें करते हो अशोक! इतनी खूबसूरत पत्नी और धनवान ससुराल पाकर भी कोई किसी को याद करता है? और फिर-यह तो तुम जानते ही हो कि आनंद ने हमें आरंभ से ही पराया समझा है।’
‘अब यह सब छोड़ो और आनंद के लिए खाना ले आओ।’
‘नहीं भैया!’ आनंद बोला- ‘मुझे भूख नहीं। मैं खाना खा चुका हूं।’
‘सेठजी कैसे हैं?’ अशोक ने उससे पूछा।
‘अच्छे हैं।’
‘डॉली को क्यों नहीं लाए?’ जब से गई है-एक बार भी नहीं आई।’ डॉली के नाम पर आनंद के हृदय में नश्तर-सा उतर गया।
अशोक ने फिर कहा- ‘देखो आनंद! सामाजिक दृष्टि से यह ठीक नहीं। डॉली को यह तो सोचना चाहिए था कि उसकी वास्तविक ससुराल यही है। दुलहन तो वह इसी घर की कही जाएगी। यह ठीक है कि हम लोग उसके पिता की तरह अमीर नहीं। हम उसे कुछ दे नहीं सकते। किन्तु अपनापन और स्नेह तो दे ही सकते हैं। क्या उसे हमारे स्नेह की भी आवश्यकता न थी?’
सुनीता बोली- ‘आवश्यकता होती तो क्या यहां आती नहीं? यदि वह हमें अपना समझती तो क्या वह हमारी कुशलक्षेम न पूछती? मैं तो सोचती हूं कि इसमें डॉली का नहीं, आनंद का ही दोष है। आनंद ने ही न चाहा होगा कि वह यहां आए।’
‘भैया!’ अशोक एवं सुनीता के प्रश्नों से घबराकर आनंद उठा और बोला- ‘मैं दिवाकर के पास जा रहा हूं। काफी समय हो गया उससे मिले हुए।’
‘एक मिनट।’
आनंद रुक गया।
अशोक खाना समाप्त कर चुका था। उठकर वह आनंद के समीप आया और उसे ध्यान से देखते हुए बोला- ‘आनंद!’
‘कहिए भैया!’
‘तुम मुझे कुछ परेशान से लग रहे हो। क्या बात है-किसी से झगड़ा हुआ क्या?’
‘न-नहीं तो।’ आनंद ने कांपती आवाज में कहा और शीघ्रता से चेहरा घुमा लिया।
‘नहीं आनंद! मैं तुम्हारी बात पर यकीन नहीं करता। हालांकि मैं मुखाकृति एवं मनोविश्लेषक नहीं, किन्तु मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि आज तुम्हारे साथ कोई अनहोनी घट गई है। तुम्हारे साथ कुछ-न-कुछ बुरा अवश्य हुआ है।’
आनंद इस बार अपने आंसू न रोक सका।
अशोक ने उसके आंसुओं को देखा तो बोला- ‘झगड़ा हुआ न डॉली से? यह भी हो सकता है कि आलोक नाथ ने तुम्हारा अपमान किया हो। ससुराल में रहने का परिणाम यही होता है।’
‘म-मुझे माफ कर दीजिए भैया!’ आनंद मानो फूट पड़ा और सिसकते हुए बोला- ‘मैंने आपकी इच्छाओं के विरुद्ध डॉली से विवाह किया और...।’
‘संबंध टूट गए क्यों? भूत उतर गया प्यार का?’
‘भैया!’
‘और अब रोता है-मर्द होकर रोता है। आंसू बहा रहा है एक औरत के लिए। लाज नहीं आती? दर्शन शास्त्र का प्रोफेसर होते हुए भी तू छला गया। भरोसा कर बैठा उन लोगों पर। कितने अरमानों से तूने डॉली को अपनी दुलहन बनाया था। कहता था-डॉली मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है। और आज उस खुशी ने तुझे दिए ये आंसू, यह अपमान, यह पीड़ाएं।’ क्रोध एवं घृणा से अशोक कहता रहा- ‘मूर्ख! तेरे स्थान पर कोई दूसरा होता तो चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाता! और तू मेरे पास चला आया-यह बताने के लिए कि डॉली और आलोक नाथ ने तुझे ठोकर मार दी। अपमानित करके निकाल दिया घर से। वाह रे मर्द! वाह रे प्रेम पुजारी!’
आनंद सिसकता रहा।
तभी सुनीता ने अशोक को बांह पकड़कर पीछे खींच लिया और बोली- ‘अब बस भी करो अशोक! आनंद पहले ही इतना दुखी है और तुम यह सब कहकर उसका दुःख और बढ़ा रहे हो।’
‘सुनीता!’ अशोक की आंखों से घृणा की चिंगारियां छूट रही थीं।’
‘खैर वैसे भी।’ सुनीता कहती रही- ‘आनंद यह तो नहीं जानता था कि भविष्य में उसके साथ ऐसा होगा। डॉली सुंदर थी, सुशील भी लगती थी और सबसे बड़ी बात यह है कि वह आनंद को चाहती भी थी। ऐसे में आनंद उस पर भरोसा कर बैठा तो क्या हुआ?’
‘सुनीता! मैं जानता था-एक दिन यही होगा। मैंने इससे कहा भी था कि रिश्तेदारी और दोस्ती बराबर वालों से ही ठीक रहती है। मगर इसके मन-मस्तिष्क पर तो आलोक नाथ की लाखों की संपत्ति छाई थी। डॉली की खूबसूरती ने इसे पागल बना दिया था।’
‘बात खत्म करो।’
‘बात तो अब आरंभ हुई है सुनीता! तुम्हें पता नहीं कि इस बात का अंत क्या होगा।’
‘क्या होगा?’
‘देवदास बन जाएगा यह डॉली के लिए। पागलों की तरह मारा-मारा फिरेगा सड़कों पर। नौकरी छोड़ देगा और मजनूं की तरह दिन-रात डॉली-डॉली चिल्लाएगा।’
आनंद अपनी सिसकियां पीने लगा।
सुनीता उसकी ओर देखकर अशोक से बोली- ‘आनंद इतना मूर्ख नहीं।’
‘सुनीता! प्यार का यह भूत तो अच्छे-अच्छों को मूर्ख बना देता है। क्या तुम किसी पागलखाने में गई हो?’
‘म-मैं भला--?’
‘देखना किसी पागलखाने को, मिलना उन लोगों से जो वहां रहते हैं। तुम्हें पता चलेगा कि उस पागलखाने में अधिकांश संख्या उन लोगों की होती है जो किसी-न-किसी रूप में औरत की बेवफाई का शिकार होते हैं। जो चोट खा चुके हैं प्यार में। मुझे भय है कि कहीं दर्शन शास्त्र का ये प्रोफेसर भी पागल न हो जाए।’
इतना कहकर अशोक बैठ गया।
आनंद ने अपने आंसू पोंछ लिए। इसके उपरांत उसने अपना सूटकेस उठाया और चल पड़ा।
सुनीता उसे रोककर बोली- ‘कहां जा रहे हो आनंद?’
‘मैं जा रहा हूं भाभी!’ आनंद रुककर धीरे से बोला।
‘मगर कहा?’
‘किसी ऐसे स्थान पर जहां चैन मिले।’
‘देखो आनंद! हिम्मत से काम लो और यह पागलपन छोड़ दो। तुम्हारे लिए लड़कियों की कमी नहीं।’
‘मुझे लड़कियों की आवश्यकता नहीं भाभी!’
अशोक ने फिर व्यंग्य किया- ‘सुनीता! यह ठीक कह रहा है, इसे तो सिर्फ अपनी डॉली की आवश्यकता है। अब यह शहर से दूर किसी एकांत स्थान पर माला लेकर बैठेगा और डॉली के नाम का जाप करेगा। मुझे लगता है-जाप के पश्चात् इसे शांति जरूर मिल जाएगी। करने दो इसे जो कुछ करता है। बनने दो संन्यासी। हमारे वंश में वैसे भी आज तक कोई संन्यासी नहीं हुआ। इसके संन्यासी बनने से हमें भी मोक्ष मिल जाएगा।’
‘तुम चुप नहीं रह सकते क्या?’
‘ठीक है-हो गया चुप।’ अशोक ने कहा और इसके पश्चात् एक पुस्तक उठाकर वह उसके पृष्ठ उलटने लगा।
अशोक के शब्द आनंद के हृदय में सैकड़ों नश्तरों की भांति उतर गए थे। पीड़ा से उसका रोम-रोम चीख उठा था, किन्तु उसने कुछ न कहा और तेजी से बाहर चला गया।
सुनीता ने उसे पुकारा- ‘आनंद! आनंद मेरी बात सुनो।’
किन्तु आनंद ने कुछ न सुना।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

बारात सजी, सुषमा दुलहन बनी और पिया के घर आ गई। राजाराम का घर खुशियों से महक उठा, किन्तु यह महक राजाराम के हृदय तक न पहुंच सकी। एक कांटा था-जो उसके हृदय में बार-बार चुभ रहा था। एक कमी थी जो उन्हें बुरी तरह से पीड़ित कर रही थी।
और-यह कमी थी राज की। राज जो उसका बड़ा बेटा था। शादी में निकट एवं दूर के सभी मेहमान आए थे। घर में तिल रखने को भी जगह न रही थी, सिर्फ आया न था तो उसका बड़ा बेटा। बुलाया ही नहीं गया था। उसे बुलाया जाता तो अवश्य आता, राजाराम इस बात को जानता था। एक बाद दिल में आया भी था, जाकर ले आए उसे। पिता तो पिता ही होता है-हृदय रहते ममता से छुटकारा कहां? किन्तु उसकी अपनी हठ, उसका अपना स्वाभिमान-नहीं झुका राजाराम। पीड़ा को मुस्कुराते हुए पी गया-किन्तु फिर भी बेटे की कमी कचोटती रही।
इस समय आंगन में दुलहन के आने की खुशी में नाच-गाना चल रहा था। खूब कहकहे उछल रहे थे, मुस्कुराहटें खनक रही थीं, किन्तु राजाराम इस खुशी से अलग और मुस्कुराहटों से दूर छत पर बैठा हुआ डूबते सूरज को देख रहा था। मन में वही पीड़ा थी-हृदय में इस समय भी वही कांटा चुभा था।
एकाएक कौशल्या ने छत पर आकर उससे कहा- ‘आप भी कमाल करते हैं जी! नीचे मेहमान आपको याद कर रहे हैं और आप यहां अकेले बैठे हैं।’
‘अकेले बैठना अच्छा लग रहा है कौशल्या!’
‘क्यों-तबीयत ठीक नहीं है क्या? जरूर आपने बारात में कुछ ज्यादा खा लिया होगा। आपको ऐसा न करना चाहिए था।’
‘खाना तो मैंने खाया ही नहीं कौशल्या!’ इतना कहकर राजाराम ने निःश्वास ली और बोला- ‘प्लेट में खाना लेकर एक कौर उठाया था कि कौर भी छूट गया और प्लेट भी गिर गई।’
‘तबीयत बिगड़ गई होगी।’
‘तबीयत तो ठीक थी-सब कुछ ठीक था।’
‘फिर क्या हुआ था?’
‘मन ठीक न था। और यह तुम भी जानती हो कौशल्या! कि संसार भर के दुखों का कारण यह मन ही होता है। मन न हो तो दुखों का पता ही न चले।’
कौशल्या पति को ध्यान से देखने लगी और बोली- ‘आप इस शादी से खुश नहीं क्या?’
‘बहुत खुश हूं कौशल्या! प्रत्येक बाप जब अपने बेटे का विवाह करता है तो वह बहुत खुश होता है।’
‘मगर आप तो खुश नहीं।’
‘उस कपूत की वजह से।’ राजाराम का मन दुःख कह गया।
‘आप राज की बात कर रहे हैं?’
‘हां!’ राजाराम ने पीड़ा से होंठ काट लिए। बोला- ‘शादी में सभी लोग आए। घर मेहमानों से भर गया और जिसका घर था वह कहीं दूर बैठा रहा। क्या यह दुःख की बात नहीं।
‘आप उसे बुलाते तो जरूर आता।’
‘कैसे बुलाता? किस मुंह से बुलाता उसे? जिस बेटे को ठोकर मारकर घर से निकाल दिया हो, उससे कैसे कहता कि तू घर चल। और फिर उसकी अपनी हठ। यदि वह अपनी हठ छोड़ देता तो क्या बिगड़ जाता उसका? अरे! घर तो घर होता है। घर से बड़ा आश्रय और कहां? औलाद के लिए माता-पिता से बढ़कर कौन होता है? एक वही तो उसे जन्म देते हैं। वही तो उसे अपना खून पिला-पिलाकर बड़ा करते हैं। अपनी हर खुशी को कुर्बान कर देते हैं औलाद के लिए। और वही औलाद जब मां-बाप की आज्ञा का पालन नहीं करती और दौलत को ही सब कुछ मान बैठती है तो कितना दुःख होता है मां-बाप को।’
कौशल्या बोली- ‘मैं आपके दुःख को समझती हूं जी! आपने दिल की बात कहकर मन हल्का तो कर लिया। किन्तु-मैं तो मां होकर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी। एक ओर मेरा धर्म था और दूसरी ओर ममता! किन्तु मैंने धर्म के लिए ममता ठुकरा दी। पत्थर रख लिया छाती पर। कुछ कहती तो आपको बुरा लगता। आंसू बहाती तो आपको पीड़ा होती।’ कहते-कहते कौशल्या की आंखें भर आईं।
‘लेकिन।’ धोती के पल्लू से आंसू पोंछकर कौशल्या फिर बोली- ‘दुःख तो होता ही है जी! शादी होनी चाहिए थी राज की और हुई अखिल की। घर मेहमानों से भरा रहा और सिर्फ वही नहीं आया। दुःख तो उसे भी हुआ होगा।’
‘नहीं कौशल्या!’ राजाराम ने कहा- ‘उसे दुःख न हुआ होगा। मुझे तो यों लगता है कि उसने अपना हृदय पत्थर बना लिया है। भूल गया है वह हम सबको। कोई रिश्ता नहीं रहा उसका हमसे। उसके लिए तो बस उसकी दौलत ही सब कुछ है। मगर यह दौलत उसके पास रहेगी नहीं। मुझे तो भय है कि कहीं इस दौलत की वजह से उसे अपना शेष जीवन जेल में न गुजारना पड़े।’ इतना कहकर राजाराम ने निःश्वास ली और उठकर कहा- ‘खैर छोड़ो-जो होना है-हो जाएगा। तुम उसके लिए अपने मन को दुःख न दो और जाओ।’
‘और आप...?’
‘बैठा हूं अभी। हवा अच्छी लग रही है।’
‘चलकर खाना खा लेते।’
‘अभी भूख नहीं।’
‘मैं आपके लिए चाय ले आती हूं।’
इतना कहकर कौशल्या चली गई और राजाराम फिर से दृष्टि उठाकर पश्चिम की दिशा में देखने लगा। सूर्यास्त हो चुका था। वातावरण पर तेजी से अंधकार के साये फैल रहे थे।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
सुहाग सेज पर बैठी सुषमा का मन शांत न था। कभी वह अपने माता-पिता के विषय में सोचती तो कभी एकाएक उसे राज का ध्यान आ जाता। फिल्म कंपनी की उस कोठी से निकलते समय उसने राज के मुंह पर थप्पड़ मारा था। उसे भय था कि राज उससे अपने अपमान का बदला लेने के लिए कुछ और न कर बैठे।
अखिल से उसने राज के विषय में कुछ विशेष न बताया था। सिर्फ इतना ही कहा था कि वह राज की कंपनी में नौकरी करती थी और नौकरी उसने इसलिए छोड़ी थी-क्योंकि उसके संबंध में राज की नीयत ठीक न थी। राज यह नहीं चाहता था कि उसका विवाह हो।
अखिल ने स्वयं भी उससे राज के विषय में कुछ अधिक न पूछा था। स्वयं सुषमा भी अभी तक यह नहीं जान पाई थी कि वही राज अखिल का बड़ा भाई था। भाई के संबंध में अखिल ने बताया था कि उसका भाई गुजरात में रहता है। सुषमा ने भी इस संबंध में कुछ अधिक न पूछा था। सुषमा इस समय यही सोच रही थी। सोचते-सोचते एकाएक उसकी दृष्टि दाईं ओर वाली दीवार पर पड़ी और इसके साथ ही उसके होंठों से घुटी-सी चीख निकल गई। वह केवल चीखी ही नहीं-बल्कि इस प्रकार उछल पड़ी मानो बिस्तर में छुपे अनगिनत बिच्छुओं ने उस पर एक साथ आक्रमण कर दिया हो।
दीवार पर राज की तस्वीर लगी थी।
सुषमा उस तस्वीर को कुछ क्षणों तक तो थरथराती दृष्टि से देखती रही और फिर बिस्तर से उतरकर तस्वीर के सामने आ गई। वह देखना चाहती थी कि क्या यह तस्वीर उसी राज की थी।
एकाएक कोई दबे पांव कमरे में आया और सुषमा को यों तस्वीर के सामने देखकर उससे बोला- ‘क्या देख रही हो?’
सुषमा यह आवाज सुनकर पत्ते की भांति कांप गई। मुड़कर देखा- ‘यह अखिल था।
अखिल फिर बोला- ‘यह उसी शैतान की तस्वीर है।’ स्वर में घृणा थी।
‘किन्तु-किन्तु यह यहां?’
‘किसी ने भूल से टांग दी होगी। यह शैतान कभी-कभी स्वर्ग में भी चले आते हैं। किन्तु इनका वास्तविक स्थान तो नर्क में ही होता है।’ इतना कहकर अखिल ने राज की वह तस्वीर उतारी और घृणा से दांत पीसते हुए पूरी शक्ति से खिड़की से बाहर फेंक दी।
तस्वीर का शीशा गली की खिड़की से टकराते ही टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया। अखिल कुछ क्षणों तक तो खिड़की से बाहर देखता रहा और फिर सुषमा का हाथ थामकर उससे बोला- ‘चलो अब बैठ जाओ।’
सुषमा बैठकर उससे बोली- ‘यह क्या किया तुमने?’
‘क्यों?’
‘तस्वीर फेंक दी।’
‘मैंने कहा न था कि शैतान का वास्तविक स्थान नर्क में ही होता है।’
‘तुम बता सकते हो-यह शैतान कौन था?’
‘तुम इसे भली प्रकार जानती हो।’
‘फिर भी।’
‘सुनकर तुम्हें दुःख होगा।’
‘वह क्यों?’
‘कुछ सच इतने कड़वे होते हैं कि सहे नहीं जाते।’
‘सहने तो पड़ते हैं।’
अखिल को कहना पड़ा- ‘मिस्टर राज वर्मा मेरे बड़े भाई हैं।’
सुषमा मानो आकाश से गिरी।
चेहरे पर भूकंप जैसे भाव फैल गए।
‘किन्तु सिर्फ कहने के लिए।’ उसी घृणा के साथ अखिल फिर बोला- ‘सिर्फ दुनिया को बताने के लिए कि श्रीमान राजाराम जी का एक बेटा और भी है। अन्यथा सच्चाई यह है कि हमारा राज वर्मा से कोई संबंध नहीं! हमारी दृष्टि में वह मर चुका है।’
‘यह सब तुमने पहले क्यों नहीं बताया?’
‘भय था कि कहीं तुम इस परिवार से घृणा न करने लगो। तुम यह न सोच बैठो कि शैतान जिस घर में पैदा हुआ है-उस घर के दूसरे लोग भी शैतान ही होंगे।’
‘मैं ऐसा क्यों सोचती?’
‘राज के कारण। तुम उसका वास्तविक रूप अपनी आंखों से देख चुकी हो। तुम अच्छी तरह जान चुकी हो कि वह इंसानी खाल में छुपा हुआ भेड़िया है। उसकी इससे बड़ी नीचता क्या होगी कि उसने अपने छोटे भाई की होने वाली पत्नी को ही अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा। लूटना चाहा उसे।’
सुषमा फिर कांपकर रह गई। सोचने लगी-लुटने के लिए उसके पास रहा ही क्या था। न जाने कितनी बार तो लूटा था राज ने उसे। कितनी अभागिन रही वह-अपने पति के भाई के हाथों लुट गई। विवशता तो यह थी कि वह इस संबंध में किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी। किन्तु इसमें राज का क्या दोष था? लुटी तो वह स्वयं थी। पिता का जीवन बचाने के लिए उसने अपना सतीत्व भी दांव पर लगा दिया था। क्या करती वह-पिता के प्राण बचाने का अन्य कोई उपाय भी तो न था। बेटी थी वह-पिता को बचाने के लिए उसने स्वयं को लुटाया तो कौन-सा पाप किया?’
वास्तव में सुषमा की दृष्टि में वह कोई पाप भी न था। वह तो विवशता थी उसकी। माता-पिता संतान को अपना रक्त पिलाकर पालते हैं-ऐसे में संतान का भी तो माता-पिता के प्रति कोई कर्त्तव्य होता है।
तभी सुषमा की विचारधारा टूट गई।
अखिल उससे पूछ रहा था- ‘क्या सोच रही हो?’
‘आं!’ सुषमा चौंककर बोली- ‘तुम्हारे भाई साहब के विषय में।’
‘नाम न लो उसका। मुझे तो यह सोचकर लज्जा आती है कि राज मेरा बड़ा भाई है। आओ-सो जाओ।’ कहकर अखिल ने उसे अपनी और खींच लिया।
‘अखिल!’
‘हूं।’ अखिल ने सुषमा का चेहरा अपनी हथेलियों में भर लिया ओर उसकी आंखों में झांकने लगा।
‘एक बात मेरी समझ में नहीं आती।’
‘वह क्या?’
‘तुम्हारे भइया राज इतने दौलतमंद हैं और तुम?’
‘तुम्हें दौलत चाहिए?’
‘नहीं-नहीं अखिल! मैं तो यह पूछ रही थी कि...।’
‘मत पूछो।’ अखिल बोला- ‘हमारे परिवार ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि उसके पास यह दौलत आई कहां से। न ही हमारी उसकी दौलत में कोई दिलचस्पी है। सच तो यह है कि सुषमा! कि हमारा उससे कोई संबंध ही नहीं है। मर चुका है वह हमारे लिए।’
सुषमा ने फिर कुछ न पूछा।
अखिल उसके होंठों पर उंगली फिराते हुए बोला- ‘और वैसे भी सुषमा! जिसके पास दौलत होती है, उसके हृदय में प्रेम नहीं होता। जिसका हृदय सोने के आवरण से ढका हो, ऐसा व्यक्ति कभी किसी से प्रेम नहीं कर सकता सुषमा! हम में और राज में यह ही अंतर है। उसके पास दौलत है और हमारे पास प्रेम से भरा हृदय। वह प्रेम करना नहीं जानता-सिर्फ लूटना जानता है। मगर हम प्रेम भी करते हैं और प्र्रेम में लुटना भी जानते हैं। सुषमा! इस घर में भले ही तुम्हारे लिए कुछ न हो। भले ही तुम्हें भूखे पेट सोना पड़, -किन्तु यहां तुम्हें इतना प्रेम मिलेगा कि उसे पाकर तुम सब कुछ भूल जाओगी।’
सुषमा ने अखिल के गले में बांहें डाल दीं और बोली- ‘मुझे प्रेम के अतिरिक्त और कुछ चाहिए भी नहीं अखिल! सिर्फ तुम्हारा प्यार चाहिए।’
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply