Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post Reply
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

"वही राजा साई....जो आप हुक्म करेंगे।'

"अब देखो, बाबू करन्ट....रोशन राय ने हमारी पसन्द की घोड़ी मरवा दी, तो खून का बदला तो खून ही है ना बाबा..?" राजा सलीम ने पूछा ।

“बिल्कुल राजा साई.....बिल्कुल.... ।” बाबू ने हामी भरी ।

"तो फिर सुन! रोशन राय की घुड़साल में दस-बारह घोड़े है। उनमें सबसे उम्दा और कीमती घोड़ा सफेद रंग का है। उस घोड़े की पहचान यही हैं कि वह पूरा का पूरा सफेद हैं...मगर उसके माथे पर रूपये बराबर का काला निशान है। रोशन राय की जान हैं यह घोड़ा। बस, तुम्ह उस घोड़े को अस्तबल से निकालना है। कर लोगे यह काम....?" राजा सलीम ने अपनी छोटी-छोटी आंखों से बाबू को घूरकर देखा।

"जान पर खेलकर करूंगा...।" बाबू करन्ट' ने पुख्ता लहजे में कहा।

बस तो बाबू 'करन्ट.....तू करन्ट की तरह दौड़ जा। पर एक बात का ख्याल रखना.गोली नहीं चलानी हैं.....कुल्हाड़ी चलानी है....।'

“राजा साई.... समझा नहीं....।

" बाबू, उसकी सूरत देखने लगा। कोई बात नहीं, बाबू करन्ट'...मैं तुझे समझाता हूं कि क्या करना है... |फिर राजा सलीम ने इस पेशेवर गुर्गे को अच्छी तरह समझा किदया कि क्या करना है और करना है?
………………………………………..
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

वह कयामत की सुबह थी।रोशनी राय को उठाकर जब रौली ने वह दिल दहला देने वाली खबर सुनाई तो रोशन राय की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। जिस घोड़े में उसकी जान थी, उसकी जान निकाल ली गई थी।अस्तवला के चौकीदार को बांधकर सफेद घोड़ा निकाला गया और उसे हवेली के फाटक पर लाकर उसकी गर्दन तन से जुदा कर दी गई। यह वारदात अंजाम देने वाले तीन थे। अपना काम निपटा वे तीनों विभिन्न दिशाओं में निकल गये थ।रोशन राय बावजुद कोशिश के यह न जान सका कि आखिर यह वारदात की किसने? हालांकि इतना तो वह समझ ही गया था कि इस वारदात के पीछे, राजा सलीम के अलावा और कोई नहीं हो सकता। रोशन राय अभी तक सन्तुष्ट व निश्चित था कि राजा सलीम आंख खोल दी थी। राज सलीम ने अपना इन्तकाम कमाल-होशियारी व ज्यादा दिलेरी के साथ लिया था ।रोशन राय ने अपनी पूरी कोशिश कर डाली कि राजा सलीम के खिलाफ कोई सबूत, कोई सुराग हाथ लग जाए। लेकिन वह नाकाम रहा। बाबू 'करन्ट' ने अपने दो साथियों के साथ कुछ इस अंदाल मे यह वारदात की थी कि कोई सुराग....कोई सबूत ने छोड़ा था ।अब दोनों दोस्तों के बीच नफरत की दीवार खड़ी हो गई थी। दोनों ने एक-दूसरे के सामने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया था। दोनों के बीच दिखावे की दोस्ती बरकरार थी और दोस्ती के इस पेड़ को गिराने में रोशन राय का ज्यादा हाथ था। पहल उसने की थी और राजा सलीम ने सबूत होने के बावजूद रोशन राय से कोई गिला-शिकवा नहीं किया था ।जबकि रोशन राय के पास कोई सबूत न होने के बाद भी उसके दिल में इन्तकाम की आग भड़कती जाती थी।इसके बाद चुनाव आ गये। हालांकि दोनों के क्षेत्र अलग-अलग थे और इससे पहले रोशन राय ने कभी चुनावों में भाग लेने की कोशिश भी नहीं की थीं.लेकिन इस बार दोनों ने एक ही क्षेत्र से इलैक्शन लड़ने की ठान ली। दोनों ने ही अपनी-अपनी पार्टियों से टिकट प्राप्त कर लिए और चुनाव की गहमागहमी शुरू हो गई है।दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया।रोशन राय की कोशिश होती थी कि जहां राजा सलीम की जनसभा हो, वहीं उसका भी जलसा हो। परिणामस्वरूप दोनों की जनसभाएं हंगामों की भेंट चढ़ने लगी और फिर वह वक्त भी आ गया, जब दोनों दोस्त खुलकर एक-दूसरे के आमने-सामने आ गये। दोस्ती अन्दर ही अन्दर दुश्मनी में बदली और फिर इसने राजनैतिक रंग ले लिया ।फिर वह वक्त आया कि दोनों उम्मीदवारों ने एक ही दिन, एक ही जगह और एक ही वक्त जनसभा का ऐलान कर दिया।

दोनों यह बात अच्छी तरह जानते थे कि इस ऐलान का क्या नतीजा निकलेगा। उन दोनों के ही समर्थकों ने अपना-अपना स्टेज बनवाने की कोशिश की। खूब हंगामा हुआ, खून-खराबा हुआ, गोलियां चलीं, राजा सलीम के बाजू में भी एक गोली लगी। रोशन राय को भी घाव आये। दोनों उम्मीदवार अपने-अपने जख्म चाटते अपने-अपने इलाकों में वापिस चले गय...जलसा कोई न कर सका ।इस आपस के टकराव व टकराव में गुण्डागर्दी का नतीजा वही निकला जो निकलना चाहिये था। उन क्षेत्र से एक तीसरा आजाद उम्मीदवार विजयी रहा। इस शिकस्त ने उन दोनों के दिलों में इन्तकाम की आग और भी भड़का दी |अब दोनों दुश्मन एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जो चाहते कर गुजरते और छिपाने की बजाय दिढोरा पीट देते कि यह काम उसने किया है। अब दोस्ती थीं, तो अपने शिखर पर थी...अब दुश्मनी हुई तो उसकी भी सीमा न रही।अब दोनों एक-दूसरे की जान के दुश्मन थे।और इस दुश्मनी का एक बेहद घिनौना रूप तो तब सामने आया कि इस बीच राजा सलीम के बेटे की बहू को डाकुओं के एक गिरोह ने अगवा कर लिया। रोशन राय तब जब यह खबर पहुंची तो उसने राजा सलीम की बहू को डाकुआं के सरदार से फिरौती देकर, अपने कब्जे में कर लिया और फिर उसकी लाश राजा सलीम की हवेली भिजवा दी राजा सलीम तड़प कर रह गया ।यूं राजा सलीम अब किसी मौके की तलाश में था कि मौका खुद-ब-खुद चलकर उसके पास आ गया नमीरा की जुबानी जो कुछ मालूम हुआ..उससे जाहिर होता था कि रोशन राय के लिए अपनी इस बहू के लिए कोई महत्त्व न था। उसने खुद ही उसके साथ शैतानों का-सा व्यवहार किया था, लेकिन थी तो वह रोशन राय की बहू ही ना।

उसके इकलौते बेटे समीर राय की बीवी ।उसने मास्टर हाकम अली को 'शाबाशी देकर और ईनाम का वायदा करके, चन्द हिदायतों के साथ रूख्सत किया और अपनी प्लानिंग तैयार करने लगा और फिर इसी प्लानिंग के अनुसार बाबू 'करन्ट' ने हाकम अली के घर से नमीरा को उठाया और उसकी हत्या करके उसे कालीन में लपेटा और रातों-रात उस सड़क पर डाल आया जो हाई-वे की मिलाती थी...तो दूसरी तरफ से रोशनगढ़ी को जाती थी ।जाहिर था कि जिसकी भी नजर उस कालीन पर पड़ेगी, वो इस खबर को हवेली मे रोशन राय तक जरूर पहुंचाएगा |अब इसका क्या कहिये कि वह पहला शख्त खुद उसका पति समीर राय ही निकलेगा।समीर अपनी बीवी की गुमशुदगी से परेशान था। हालात बता रहे थे कि उसकी बीवी, जैसा कि उसे बताया गया था, मरी नहीं हैं और जब उसने अपनी बीवी की तलाश में सरगर्मी दिखाई और वह इस राज के नजदीक पहुंचने लगा तो उसके बाप ने उसे बम्बई लौट जाने पर मजबूर कर दिया।

समीर ने हवेली छोड़ दी...वह अपनी मां की आंखों में आंसू नही देख सकता था ।अब उसे क्या पता था कि जिन आंसुओ की वजह से उसने हवेली छोड़ना मंजूर कर लिया, वे आंसू खुद उसकी आंखों में भर आएंगे। उसकी बीवी यूं राह में मिल जाएगी।नमीरा की लाश देखकर उसके दिल में टीसें-सी उठी....जब्त-संयम के तमाम बन्द दुख के रैले में बह गये। वह फूट-फूट कर रो दिया ।रौली और होली उसे वापिस हवेली ले जाना चाहते थे लेकिन उसने जाने से इंकार कर दिया। उसने अपनी नमीरा की लाश की अपने हाथों में उठाया और उसे गाड़ी की पिछली सीट पर डाल दिया और खुद भी उसके साथ बैठ गया।"चलो, बम्बई चलो....।" उसने बेहद सर्द लहजे में हुक्म दिया ।रौली ने जब समीर को लाश के साथ पिछली सीट पर बैठे देखा, समझ लिया कि समीर अब किसी कीमत पर हवेली नहीं लौटेगा। उसने फौरन फैसला किया और होली को एकऔर बन्दे के साथ वापिस हवेली जाने को कहा और खुद दो बन्दों के साथ गाड़ी में बैठ गया और ड्राइविंग सीट सम्भाल ली और गाड़ी, समीर राय के आदेशानुसार मुम्बर की तरफ रवाना हो गई।

.
.
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

गाड़ी के नजरों से ओझल हो जाने के बाद.... होली और उस बन्दे ने कालीन को रोल किया। वह इस वक्त हवेली से दस-पन्द्रह किलोमीटर के फासले पर थे... पर संयोग से उन्हें एक ऊंट गाड़ी में लिफ्ट मिल गई। यह ऊंट गाड़ी रोशनगढ़ी की ही थी, इसलिए उन्हें हवेली तक पहुंचने में थोडा वक्त तो लगा, लेकिन दिक्कत कोई न आई होली ने हवेली में पहुंचकर कालीन बरामदे में रखवाया और खुद रोशन राय की तलाश में चल पड़ा। उसकी नजर नफीस बेगम की खास सेविका लोंगसरी पर पड़ी और वो लपक कर उसके पास पहुंचा ।

“क्या हुआ...?" लोंगसरी ने होली की परेशान सूरत देखकर पूछा था।

"मालिक कहां हैं......?" होली ने उल्टा सवाल किया।

वह मालकिन के साथ नाश्ता कर रहे हैं.....।" लोंगसरी ने बताया।

जब नाश्ता कर लें तो उन्हें खबर देना कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं, बहुत जरूरी काम हैं।"

लोंसगरी जब अन्दर पहुंची तो रोशन राय नाश्ता कर चुका था । लोंसगरी ने आदर भाव से झुकते हुए कहा-"मालिक, वो होली आया है। कोई खबर लाया हैं"

"होली आया हैं.....।" रोशन राय ने चौंककर घड़ी देखी-"क्या उसके साथ रौली भी हैं........।"

"नही मालिक, अकेला है....।

"ठीक हैं। मैं अपने कमरे में जा रहा हूं....तुम उसे वहां भेज दो....।" रोशन राय, नफीसा बेगम के चेहरे पर नजर डालता हुआ, उठ गया व बड़ी शान के साथ चलता हुआ कमरे से निकल गया ।वह अपने 'मुलाकात के खास कमरे में पहुंचकर सोफे पर बैठा ही था कि उसके मोबाइल फोन की घंटी बजी। मोबाइल का बटन दबाकर
". उसने बड़े गम्भीर लहजे में कहा-"हैल्लो...... ।'"

हा...हा...हा...।" उधर से एक जहरीजा कहकहा सुनाई दिया।

"कौन हो तुम.?" रोशन राय भड़क उठा।

"हा..हा....हा....।" उधर से फिर कहकहा उभरा ।अब रोशन राय ने फौरन ही इस आवाज को पहचान लिया। यह कहकहा सुनकर वह अन्दर ही अन्दर खौफजदा हो गया। वह अच्छी तरह जानता था कि इस जहरीली हंसी के पीछे जरूर हंसने वाले की फतह की खबर होगी। उसकी फतह चालें रोशन राय की कोई शिकस्त । यह धड़कते दिल के साथ खबर की इन्तजार करने लगा।लेकिन उधर से सम्बन्ध विच्छेद कर लिये गये। लाईन कट गई |रोशर राय ने अपना मोबाइल बन्द करके एक झटके से उसे सोफे पर फेंक दिया।

तभी एक मुलाजिम अन्दर आया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

"होली आया हैं...?" रोशन राय ने पूछा ।

"जी मालिक....।''

भेजो उसे... "नौकर के बाहर निकलते ही, होली सहमा हुआ-सा कमरे में दाखिल हुआ। उसकी सूरत देखते ही रोशन राय ने अंदाला लगा लिया कि वह कोई परेशानकुन खबर लाया है ।

"मुंह खोल । क्या मुसीबत आई हैं.....? बोलता क्यों नहीं...?" रोशर राय ने झुंझालकर कहा ।

“मालिक, मेरे पास कोई अच्छी खबर नहीं.... ।' होली धीरे से बाला।"

अरे, बाबा। मेरे पास जो भी खबर हैं वह बता। ज्यादा ड्रामा न कर.....।" रोशर राय सर्द लहजे में बोला।

"मालिक यहां से कोई दस-बारह किलोमीटर दूर.हमें सड़क पर एक लिपटा हुआ कालीन पड़ा मिला। मैंने और रौली ने उसे खोला तो मालिक उसमें से छोटी मालकिन की लाश निकली.... ।'
"होली ने बदस्तूर सहमे-सहमे लहजे में खबर सुनाई।"छोटी मालकिन की ला.... !

तेरा मतलब हैं समीर राय की बीवी की लाश?" इस खबर ने रोशन राय की रीढ़ की हड्डी में सर्दी दौड़ा दी... उसने घबराकर तस्दीक चाही थी।

"जी मालिक....।'' होली ने तस्दीक कर दी। मालिक, लाश तो छोटे मालिक बम्बई ले गये। वह हवेली वापिस आने पर किसी भी तरह राजी न हुए। रोली उनके साथ गया हैं और मैं यहां आपके पास आ गया। मैं वह कालीन जरूर ले आया हूं जिसमें छोटी मालकिन की लाश लिपटी हुई थी। कालीन बाहर बरामदे में पड़ा हैं-


"रोशन राय को इस वक्त कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। हर तरफ से बस, कहकहे की आवाज आ रही थी। यह कहकहा जहर में बुझा हुआ था....... उसका दिल चीर रहा था ।यह जहरीला कहकहा राजा सलीम का था
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

वे मुम्बर तक गाड़ी में ही पहुंचे थे।मुम्बई पहुंचने तक गाड़ी में मौत का -सा सन्नाटा छाया रहा।किसी में हिम्मत न थी कि वह समीर राय से कुछ कह सकता। रौली बस नजर उठाकर आइने में देख लेता था रोशन राय न नमीरा का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था वह बार-बार सिर पर हाथ फेरकर उसका चेहरा देखता था। नमीरा का चेहरा जर्द था और उसके होठों पर हल्की-सी मुस्कान थी। नमीरा के होठों की तराश कुछ ऐसी ही थी कि वह जब भी अपने होठ हल्के से बन्द करती थी तो यूं महसूस होता जैसे मुस्कुरा रही हो। वही मुस्कान मरने के बाद भी उसके बन्द होठों पर मौजूद थी।समीर राय उसका चेहरा देखता तो उसकी आंखों से आंसू जारी हो जाते पूरे रास्ते उसकी आंखों से गर्म-गर्म आंसू निकलकर उसे गालों पर बहते रहे। उसके आंसू पोंछने वाला कोई न था। खुद उसे उन्हें रोकने की सुध नहीं थी। वह रोता या अपने आंसू पोंछता ।मुम्बई में दाखिल होने से पहले रौली न समीर राय से पूछा-'मालिक....कहां जाएंगे...?"".....!

" समीर राय ने कई घन्टे बाद किसी की आवाज सुनी तो चौंका |वह तो अपनी सुध में ही कब था। जब से उसने नमीरा की लाश देखी थी...उस पर दुखों के पहाड़ टूट पड़े थे....उसके तो हवास गुम थे। नमीरा की लाश के साथ वह होस्टल तो जा नहीं सकता था। क्षणिक सोच के बाद ही वह बोला-अपने बान्द्रा वाले बंगले पर चलो.. |रौली, समीर राय के इस फैसले से खुश हुआ। उसे खौफ था कि मालिक किसी ऐसी जगह चलने को न कह दें..जहां वह उनके साथ न जा सके। वह समीर राय के साथ ही रहना चाहता था, ताकि वह रोशर राय को हालात से आगाह करता रह सके |अपने बान्द्रा वाले बंगले पर पहुंचकर समीर राय ने वहां मौजूद मुलाजिम दिलदार को ऊपर का बैडरूप खोलने का हुक्म दिया ।फिर समीर राय ने नमीरा को गाड़ी से निकाला और उसे अपने कन्धे पर डालकर ऊपर वाले उसी बैडरूप में ले गया। उसने बहुत धीरे-से नमीरा को बिस्तर पर लिटाया, कुछ इस तरह कि ठेस ने लग जाये ।फिर उसने उसके हाथ-पांव सीधे कियं..सिर के नीचे तकिया ठीक किया और फिर उसे कुछ ऐसी नजरों से देखा जैसे उससे, उसे अकेला छोड़कर जाने की इजाजत मांग रहा हो। फिर वह तेजी से पलटा। बैडरूप से निकला। दरवाजा लॉक किया वे तेजी से नीचे आया ।रौली नीचे खड़ा दिलदार से बातें कर रहा था। समीर राय को आते देखा तो बड़े आदरभाव से उसकी तरफ बढ़ आया।

"रौली....अब तुम जाओ। यहां मैं अब तुम्हें चन्द मिनट भी बर्दाश्त नहीं करूंगा। फौरन हवेली लौट जाओं और अब्बू से कह देना कि वह यहां आने की कोशिश न करें। उनसे कह देना कि नमीरा की तरह अब उनका समीर भी उनके लिए मर गया। जाओ, रौली जाओ...।" बोलते-बोलते उसके लहजे में जैसें आग भर गई था। गुस्से से उसने अपनी मुट्ठियां भींच लीं।

"ठीक हैं, मालिक.... | जैसी आपकी मर्जी... ।” रौली ने सिर नवांते कहा और फिर फौरन पलट भी लिया |वो अपने दोनों साथियों के साथ गाड़ी में जा बैठा। उसने बड़ी महारत से गाड़ी बैक की और फिर तेजी से सीधा निकलता चला गया....जैसे डर हो कि अगर उसने जरा भी देर की तो कहीं समीर राय उसे गोली न मार दे ।गाड़ी के गेट से निकलते ही समीर राय ने दिलदार को हुक्म । दिया"दिलदार, गेट बन्द कर दो!'

"जी मालिक..... ।" दिलदार तेजी से गेट की तरफ भागा ।समीर राय भीतर तक हिला हुआ था। जज्बात चैन नहीं लेने दे रहे थे। सहसा, उसे नमीरा के अकेले होने का ख्याल आया। उसकी तन्हाई का ख्याल करके वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियां फलांगता हुआ ऊपर पहुंचा और बैडरूप में दाखिल होकर दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।फिर बैड पर आ बैठा व बेकरारी से नमीरा का ठण्डा-सर्द हाथ थाम लिया....और होठों ही होठों में बड़बड़ाया-"नमीरा मुझे माफ करना। मैं तुम्हें तन्हा छोड़कर नीचे चला गया था। मैं अब्बू के कुत्ते को भगाने गया था। देखो...मुझे देर तो नहीं हुई ना, मैं फौरन ही आ गया हूं....।" नमीरा की मौत ने उसके दिलों-दिमाग पर गहरा असर डाला था....और यह असर बढ़ता ही जा रहा था। उसे नमीरा को हवेली मैं अकेले छोड़ते का गहरा रंज था। शादी करके, वह तो जैसे उसे भूल ही गयाथा। वह तो संगीत की दुनिया व उसके हंगामों में कुछ ऐसा गुम था कि नमीरा उसके जहन से ही जैसें निकल गई थी। यहां तक कि नमीरा का आखिरी और चन्द शब्दों का मार्मिक पत्र भी उसे हवेली लौटने को मजबूर नहीं कर सका था। मैं खुद को बहुत अकेली.....बेहद तन्हा महसूस करती हूं। हो सके तो मुझसे मिल जाओं...।"इस खत के मिलते ही वह तड़प उठा था।......उसने फौरन ही हवेली जाने का फैसला भी कर लिया था। पर बुरा हो संगीतभरी शामों का...कुछ दोस्त उसे एक म्यूजिक कन्सर्ट' में ले गए। बस, एक शाम गुजरी और नमीरा के उस पत्र से उभरी भावनाएं धीमी पड़ गई और फिर वह रोज जाने की सोचता......लेकिन वक्त टलता रहा। आज जाता हूं....आज जाता हूं' की सोचकर उसने घर फोन भी नहीं किया था। बाप के लाख कहने पर भी समीर राय ने अपने पास मोबाइल नहीं रखा था। हां, वह कभी-कभी अपनी मां को फोन जरूर कर लिया करता था.. वह भी अपने किसी दोस्त के मोबाईल से या एस.टी.डी. बूथ से। मां से ही नमीरा का कुशल-क्षेम मालूम हो जाता था।फिर एक दिन समीर राय को बड़ी शिद्दत नमीरा की याद आई और उसने पक्का इरादा कर लिया कि कुछ भी हो जाए वह कल जरूर रोशनगढ़ी जाएगा। संयोग से उस वक्त उसे एक दोस्त को मोबाइल फोन भी उपलब्ध था, सो उसने उसी वक्त मां को अपने हवेली आने की इत्तला भी दे दी।काश, उसे पता होता कि नमीरा के बुलावे पर ना जाकर उसने कितनी बड़ी भूल कर दी है। भूल नहीं, बल्कि अपराध....एक ऐसा अपराध जिसकी सजा वह ताजिन्दगी काटता रहेगा... सिसकता रहेगा.....बिलखता रहेगा।नमीरा उसकी मुहब्बत थी। उसने नमीरा से बड़ी चाह से शादी की थी और नमीरा ने भी उसके लिए अपने मां-बाप को छोड़ दिया था। हालाकि समीर राय ने भी नमीरा को अपनाकर अपने मां-बाप को नाराज किया था, लेकिन यह और बात थी कि उन्होंने उसे अलग नहीं किया था। वे समीर को अलग कर भी नही सकते थे....समीर राय उनकी इकलौती सन्तान जो थी ।

समीर राय मृत नमीरा की सूरत देखे जा रहा था और उसके दिमाग में नमीरा के साथ बीते दिनों की फिल्म बड़ी तेजी से चल रही थी। वह बड़बड़ाये जा रहा था, बोजे जा रहा था.......और नमीरा आंखे मूंदे....होंठों पर मुस्कान सजाये खामोशी से सुने जा रही थी।इसी तरह पूरी रात बीत गई ।सुबह होते ही रोशनगढ़ी से नफीसा बेगम का फोन आया। रिसीवर दिलदार ने उठाया।"हैल्लो....।" वह बोला ।,

“कौन दिलदार....?" उधर से नफीस बेगम ने पूछा।

"जी मालकिन! सलाम मालकिन..... | मैं दिलदार बोल रहा हूं.....।" दिलदार ने उनकी आवाज पहचानते ही जवाब दिया।

"छोटे मालिक कहां हैं...?" नफीसा नें पूछा।"

वह तो जी, ऊपर के कमरे में है जी। जब से आए हैं, वहीं हैं जी। कमरा अन्दर से बन्द कर रखा हैं। मैंने और सरवरी ने ऊपर का कई बार चक्कर लगाया हैं जो, मगर दरवाजा बन्द ही पाया है।" दिलदार ने संक्षेप में रात की रिपोर्ट दे डाली ।

“जा, अब ऊपर जा....।" नफीसा बेगम ने आदेश दिया-"दरवाजा खटखटा कर बाता कि मेरा फोन हैं......।'

'अच्छा जी! जाता हूं जी......।'' दिलदार रिसीवर रखकर उठ गया दिलदार की बीवी सरवरी, किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी। फोन की घंटी सुन वह भी दिलदार के पास आ खड़ी हुई थी। दिलदार ने रिसीवर रखा तो उसने इशारे से पूछा-"क्या हुआ?"
Post Reply