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Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
मेरी नशीली चितवन Running.....मेरी कामुकता का सफ़र Running.....गहरी साजिश Running.....काली घटा/ गुलशन नन्दा ..... तब से अब तक और आगे .....Chudasi (चुदासी ) ....पनौती (थ्रिलर) .....आशा (सामाजिक उपन्यास)complete .....लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा ) चुदने को बेताब पड़ोसन .....आशा...(एक ड्रीमलेडी ).....Tu Hi Tu
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
समीर ने हवेली के दो मुलाजिमों को अपने साथ लिया और गाड़ी में कब्रिस्तान पहुंच गया और कब्रिस्तान में उसने जो कुछ देखा, वह उसके लिए बड़ा कष्टदायक था।
पोखर का कच्चा घर पूरी तरह से शोलों की लपेट में था। इसके अलावा नमीरा और बच्ची की 'जाली कब्रों से भी शोलके उठ रहे थे। यह बड़ा ही हौलनाक मंजर था। समीर ने अपनी जिन्दगी में कभी किसी कब्रिस्तान में 'आगजनी के बारे में नहीं सुना था। यहां कबें जल रही थीं। कोई खुदा बन गया था...उसने कब्रिस्तान को जहन्नुम की आब बना दिया था।
कब्रिस्तान में रोशन राय का एक ‘फरिष्ता मौजूद था। वो आग बुझाने की कोशिश में लगा था। कितने ही मुलाजिम इधर-उधर भाग रहे थे। कब्रिस्तान में एक -सा ट्यूब-बेल लगा हुआ था...उसे चालू कर दिया गया था। कब्रिस्तान के पेड़-पौधों को जिस पाईप से पानी दिया जाता था.... उसी से आग बुझाने की नाकाम कोशिश की जा रही थी।
रौली ने जब समीर की गाड़ी देखी तो वह भागकर उसके पास पहुंचा और बड़े ही उदास भाव से गर्दन झुकाकर खड़ा हो गया।
"यह आग किसने लगाई है..?" समीर दहाड़ा।
" कुछ पता नहीं, मालिक." रौली ने सिर झुकाये-झुकाये जवाब दिया।
समीर गाड़ी से उतरकर कब्रों की तरफ बढ़ने लगा। कळे फासले पर थीं। यहां से धुएं और शोलों के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था। वह आगे बढ़कर देखना चाहता था कि कब्रों के साथ कैसा खेल, खेला गया है।
___ "छोटे मालिक...!" रौली तेजी से चलता हुआ उसके आगे आया-"छोटे मालिका....! आप उस तरफ न जाएं। वहां आग के सिवाय कुछ नहीं है। लोग आग बुझा रहे हैं। छोटे मालिक, आप हावेली चलें। मैं वहां आकर रिपोर्ट देता हूं। आप बेफिक्र रहें। यह जिस किसी ने भी किया है... मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा.....।"
"रौली....तुम कुछ देर जरा मेरी गाड़ी के पास रुको.... | मैं जरा कब्रों को देखकर आता हूं। देखना, कहीं कोई मेरी गाड़ी को आग न लगा दे।" समीर ने उसे तेज निगाहों से घूरा और फिर तेजी से आगे बढ़ गया।
दोनों करें पूर्णतया शोलों की लपेट में थीं। शोले कब्रों से निकल रहे थे। यूं लगता था जैसे पक्की कब्रों को तोड़कर फिर आग लगाई गई हो। समीर ने खुदा का शुक्रिया अदा किया कि वह आज सुबह ही कब्र की हकीकत देख गया था, वरना यह आग इस वक्त उसका दिल चीर रही होती।
गुस्सा उसे अब भी था। वह समझ गया था कि कब्रों को उखाड़कर यह आग क्यों लगाई गई है। आग लगाने वाला चाहता था कि कब्रों की लाशों के वजूद को ही खत्म कर दिया जाये। न रहेगा बांस....न बजेगी बांसुरी। न रहेंगी कळे... ना पढ़ेगा कोई फातह।
फिर समीर को अचानक पोखर का ख्याल आया। वह उसे अभी तक कहीं नजर नहीं आया था। उसका घर जलाकर किस बात का गुस्सा उतारा था? तब फौरन ही उसका माथा ठनका । ओह! कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने पोखर को सुरंग खोदते हुए देखा लिया हो। ओह! जरूरी यही बात हैं इसीलिए उसे उसका घर जलाकर सजा दी गई है।
लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं थी।
रोशन राय के आदेश पर समीर राय की निगरानी की जा रही थी। सुबह, सवेरे जब समीर नमीरा की लाश का निरीक्षण करके वापिस हवेली पहुंचा था, तो रौली को फौरन सूचना मिल गई थी। वह फौरन कब्रिस्तान पहुंचा था और उसने पोखर को रंगे हाथों पकड़ लिया था। वह बड़ी तेजी से सुरंग बन्द करने के काम में जुटा हआ था।
रौली ने गर्दन पकड़कर उसे गाड़ी में डाला और हवेली ले आया। रौली जानता था कि रोशन राय रात भर जागने का आदी है। रात बीते ही नींद आती थी। जब इन्सानों के जागने का वक्त होता था, वह शैतानों की तरह सोने लगता था।
पोखर का कच्चा घर पूरी तरह से शोलों की लपेट में था। इसके अलावा नमीरा और बच्ची की 'जाली कब्रों से भी शोलके उठ रहे थे। यह बड़ा ही हौलनाक मंजर था। समीर ने अपनी जिन्दगी में कभी किसी कब्रिस्तान में 'आगजनी के बारे में नहीं सुना था। यहां कबें जल रही थीं। कोई खुदा बन गया था...उसने कब्रिस्तान को जहन्नुम की आब बना दिया था।
कब्रिस्तान में रोशन राय का एक ‘फरिष्ता मौजूद था। वो आग बुझाने की कोशिश में लगा था। कितने ही मुलाजिम इधर-उधर भाग रहे थे। कब्रिस्तान में एक -सा ट्यूब-बेल लगा हुआ था...उसे चालू कर दिया गया था। कब्रिस्तान के पेड़-पौधों को जिस पाईप से पानी दिया जाता था.... उसी से आग बुझाने की नाकाम कोशिश की जा रही थी।
रौली ने जब समीर की गाड़ी देखी तो वह भागकर उसके पास पहुंचा और बड़े ही उदास भाव से गर्दन झुकाकर खड़ा हो गया।
"यह आग किसने लगाई है..?" समीर दहाड़ा।
" कुछ पता नहीं, मालिक." रौली ने सिर झुकाये-झुकाये जवाब दिया।
समीर गाड़ी से उतरकर कब्रों की तरफ बढ़ने लगा। कळे फासले पर थीं। यहां से धुएं और शोलों के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था। वह आगे बढ़कर देखना चाहता था कि कब्रों के साथ कैसा खेल, खेला गया है।
___ "छोटे मालिक...!" रौली तेजी से चलता हुआ उसके आगे आया-"छोटे मालिका....! आप उस तरफ न जाएं। वहां आग के सिवाय कुछ नहीं है। लोग आग बुझा रहे हैं। छोटे मालिक, आप हावेली चलें। मैं वहां आकर रिपोर्ट देता हूं। आप बेफिक्र रहें। यह जिस किसी ने भी किया है... मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा.....।"
"रौली....तुम कुछ देर जरा मेरी गाड़ी के पास रुको.... | मैं जरा कब्रों को देखकर आता हूं। देखना, कहीं कोई मेरी गाड़ी को आग न लगा दे।" समीर ने उसे तेज निगाहों से घूरा और फिर तेजी से आगे बढ़ गया।
दोनों करें पूर्णतया शोलों की लपेट में थीं। शोले कब्रों से निकल रहे थे। यूं लगता था जैसे पक्की कब्रों को तोड़कर फिर आग लगाई गई हो। समीर ने खुदा का शुक्रिया अदा किया कि वह आज सुबह ही कब्र की हकीकत देख गया था, वरना यह आग इस वक्त उसका दिल चीर रही होती।
गुस्सा उसे अब भी था। वह समझ गया था कि कब्रों को उखाड़कर यह आग क्यों लगाई गई है। आग लगाने वाला चाहता था कि कब्रों की लाशों के वजूद को ही खत्म कर दिया जाये। न रहेगा बांस....न बजेगी बांसुरी। न रहेंगी कळे... ना पढ़ेगा कोई फातह।
फिर समीर को अचानक पोखर का ख्याल आया। वह उसे अभी तक कहीं नजर नहीं आया था। उसका घर जलाकर किस बात का गुस्सा उतारा था? तब फौरन ही उसका माथा ठनका । ओह! कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने पोखर को सुरंग खोदते हुए देखा लिया हो। ओह! जरूरी यही बात हैं इसीलिए उसे उसका घर जलाकर सजा दी गई है।
लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं थी।
रोशन राय के आदेश पर समीर राय की निगरानी की जा रही थी। सुबह, सवेरे जब समीर नमीरा की लाश का निरीक्षण करके वापिस हवेली पहुंचा था, तो रौली को फौरन सूचना मिल गई थी। वह फौरन कब्रिस्तान पहुंचा था और उसने पोखर को रंगे हाथों पकड़ लिया था। वह बड़ी तेजी से सुरंग बन्द करने के काम में जुटा हआ था।
रौली ने गर्दन पकड़कर उसे गाड़ी में डाला और हवेली ले आया। रौली जानता था कि रोशन राय रात भर जागने का आदी है। रात बीते ही नींद आती थी। जब इन्सानों के जागने का वक्त होता था, वह शैतानों की तरह सोने लगता था।
- Sexi Rebel
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
रोशन राय के कमरे की लाईट अभी जल रही थी। लाईट तो उसके कमरे की जलती ही रहती थी क्योंकि अब वह अन्धेरे में नहीं सो पाता था। जब से सांप दिखाई देने का चक्कर चला था.....तब उसे उसकी नीदें और उड़ गई थीं। कुछ उसके कर्म थे और कुछ उम्र का तकाजा था। अब वह पहली सी नींद रही ही नहीं थी।
रौली ने एक विशिष्ट अंदाज में दस्तक दी थी। इस दस्तक को रोशन राय अच्छी तरह पहचानता था। वह अभी सोने की तैयारी में था कि इस दस्तक ने उसे चौंका दिया।
"इस वक्त यह कैसे आ गया? उसके कोई ऐसा खास काम भी न था....जिसे पूरा करके वो यहां पहुंचा हो।" यही सोचते हुए रोशन ने उठकर दरवाजा खोला था।
रौली का चेहरा बता रहा था कि कोई खास बात हुई है।
"हां, क्या हुआ?" रोशन राय ने बड़े इत्मीनान से पूछा-"आओ, अन्दर आओ....."
वह रोशन राय के साथ अन्दर आया और हाथ बांधकर खड़ा हो गया, बोला-"मालिक, कब्रिस्तान से 'गोरकन' पोखर को पकड़कर लाया हूं.....।"
___ "पोखर को....क्यों...?" रोशन राय चौंकर उसकी आंखों में देखने लगा-"बाबा, खैर तो है...?"
"मालिक, खैर नहीं है। उस कुत्ते ने छोटे मालिक को कब्र खोदकर दिखा दी....।" रौली ने धमका किया।
__"हैं, बाबा...।" रोशन राय के चेहरे पर हवाइयों उड़ने लगीं- "अरें, बाबा! यह पोखर ने क्या किया। उसने हमारा सारा खेल ही चौपट कर दिया। बाबा.वो है कहा?"
"हवेली में ही है। अपने साथ ले आया हूं......" रौली ने बताया।
"ओ, बाबा! उसको यहां क्यों ले आए। बाबा, उसे तो कब्रिस्तान ही ले जाओ। पहले उसके बीवी-बच्चों को आग दिखाओ, फिर उस भी भून दो। देखो, उसका घर-बार कुछ न बचे और हां, अब उन कब्रों को भी हमें क्या फायदा। बाबा....उन्हें भी जला दो। आग लगा दो। जाओ, जल्दी जाओ! इससे पहले कि समीर हवेली से बाहर निकले, सब कुछ जल चुका हो। समझ गये बाबा..."
"जी मालिक! अच्छी तरह समझ गया....." शैली ने मुंडी हिलाई।
___ "बस तो बाबा, फिर जाओ.... । अभी इधर क्यों खड़े हो? इस पोखर के बच्चे ने बड़ी बेवकूफी का काम किया...।" वह बेचैनी से अपने हाथ मलने लगा।
रौली फोरन अपने पंजों के बल घूमा था और कमरे से निकल गया था।
फिर उसेन कब्रिस्तान पहुंचकर जो तमाशा किया, वह समीर के सामने था।
समीर कब्रों का हाल देखकर वापिस आया तो उसने रौली को गाड़ी के पास अलर्ट खड़े पाया। वो दूसरे नौकरों को हाथ उठा-उठाकर हिदायतों दे रहा था।
समीर ने उसके पास पहुंचते ही पूछा-"रौली, पोखर कहां है?"
"नहीं मालूम, छोटे मालिक...।" रौली ने धीमे स्वर में जवाब दिया।
"कहीं आग लगाने वाले ने उसे घर समेत ही तो नहीं जला दिया? फिर उस घर में उसके बीवी-बच्चे भी
थे। अगर ऐसा हुआ जो याद रखना, कमायत टूटेगी...।" समीर राय ने गाड़ी में बैठते हुए कहा।
"अब मैं क्या बता सकता हूं, छोटे मालिक!" रौली ने हाथ जोड़ते हुए कहा-"आग बुझे तो कुछ पता चले, छोटे मालिक....."
रौली अच्छी तरह जानता था कि कब्रिस्तान में क्या हुआ था। उसी ने तो रोशन राय का हुक्म पाते ही...सबसे पहले पोखर को उसके घर में लाकर एक चारपाई से बांध दिया था। ऐसा ही उसने उसकी बीवी और बच्चों के साथ भी किया था। इसके बाद उसने पूरे घर में पैट्रोल छिड़कर घर में आग लगा दी थी।
पोखर बेचारा मूक-आंखों से रहम की अपील करता रह गया था। बोल वह सकता नहीं था.....क्योंकि उसक मुंह में कपड़ा ढूंस दिया गया था। आग ने देखते-ही-देखते पूरे घर को अपनी लपेट में ले लिया था।
पोखर....अपनी बीवी-बच्चों सहित जिन्दा जल मरा।
196%
इस बीच रौली के आदमियों ने पुख्ता सिमेन्टिड कब्रों को तोड़ था। टूटी कब्रों में सूखी लकड़ियां व घास-फूस डालकर और उन पर पैट्रोल डालकर यहां भी रौली ने दियासलाई दिखा दी थी। जलती दियासलाई ने पैट्रोल को छुआ तो जैसे जहन्नुम की आग भड़क उठी।
रौली ने जिन लोगों के साथ मिलकर यह आग लगर्दा थी.....अब वही लोग उस आग को बुझाने की कोशिश कर रहे थे। वह आग कम बुझा रहे थे...शोर ज्यादा मचा रहे थे। इधर-से-उधर खामखां भाग रहे थे
और यह बात समीर राय ने अच्छी तरह नोट कर ली थी। समीर फिर वहां रुका नहीं।
वहा वहां रुककर करता भी क्या....जो कुछ होना था हो चुका था।
दोपहर तक समीर का यह भी मालूम हो गया कि पोखर और उसके बीवी-बच्चे भी इस आग में जल मरे हैं। उसका दिल कटकर रह गया।
आखिर उस गरीब का क्या कसूर था?
रौली ने एक विशिष्ट अंदाज में दस्तक दी थी। इस दस्तक को रोशन राय अच्छी तरह पहचानता था। वह अभी सोने की तैयारी में था कि इस दस्तक ने उसे चौंका दिया।
"इस वक्त यह कैसे आ गया? उसके कोई ऐसा खास काम भी न था....जिसे पूरा करके वो यहां पहुंचा हो।" यही सोचते हुए रोशन ने उठकर दरवाजा खोला था।
रौली का चेहरा बता रहा था कि कोई खास बात हुई है।
"हां, क्या हुआ?" रोशन राय ने बड़े इत्मीनान से पूछा-"आओ, अन्दर आओ....."
वह रोशन राय के साथ अन्दर आया और हाथ बांधकर खड़ा हो गया, बोला-"मालिक, कब्रिस्तान से 'गोरकन' पोखर को पकड़कर लाया हूं.....।"
___ "पोखर को....क्यों...?" रोशन राय चौंकर उसकी आंखों में देखने लगा-"बाबा, खैर तो है...?"
"मालिक, खैर नहीं है। उस कुत्ते ने छोटे मालिक को कब्र खोदकर दिखा दी....।" रौली ने धमका किया।
__"हैं, बाबा...।" रोशन राय के चेहरे पर हवाइयों उड़ने लगीं- "अरें, बाबा! यह पोखर ने क्या किया। उसने हमारा सारा खेल ही चौपट कर दिया। बाबा.वो है कहा?"
"हवेली में ही है। अपने साथ ले आया हूं......" रौली ने बताया।
"ओ, बाबा! उसको यहां क्यों ले आए। बाबा, उसे तो कब्रिस्तान ही ले जाओ। पहले उसके बीवी-बच्चों को आग दिखाओ, फिर उस भी भून दो। देखो, उसका घर-बार कुछ न बचे और हां, अब उन कब्रों को भी हमें क्या फायदा। बाबा....उन्हें भी जला दो। आग लगा दो। जाओ, जल्दी जाओ! इससे पहले कि समीर हवेली से बाहर निकले, सब कुछ जल चुका हो। समझ गये बाबा..."
"जी मालिक! अच्छी तरह समझ गया....." शैली ने मुंडी हिलाई।
___ "बस तो बाबा, फिर जाओ.... । अभी इधर क्यों खड़े हो? इस पोखर के बच्चे ने बड़ी बेवकूफी का काम किया...।" वह बेचैनी से अपने हाथ मलने लगा।
रौली फोरन अपने पंजों के बल घूमा था और कमरे से निकल गया था।
फिर उसेन कब्रिस्तान पहुंचकर जो तमाशा किया, वह समीर के सामने था।
समीर कब्रों का हाल देखकर वापिस आया तो उसने रौली को गाड़ी के पास अलर्ट खड़े पाया। वो दूसरे नौकरों को हाथ उठा-उठाकर हिदायतों दे रहा था।
समीर ने उसके पास पहुंचते ही पूछा-"रौली, पोखर कहां है?"
"नहीं मालूम, छोटे मालिक...।" रौली ने धीमे स्वर में जवाब दिया।
"कहीं आग लगाने वाले ने उसे घर समेत ही तो नहीं जला दिया? फिर उस घर में उसके बीवी-बच्चे भी
थे। अगर ऐसा हुआ जो याद रखना, कमायत टूटेगी...।" समीर राय ने गाड़ी में बैठते हुए कहा।
"अब मैं क्या बता सकता हूं, छोटे मालिक!" रौली ने हाथ जोड़ते हुए कहा-"आग बुझे तो कुछ पता चले, छोटे मालिक....."
रौली अच्छी तरह जानता था कि कब्रिस्तान में क्या हुआ था। उसी ने तो रोशन राय का हुक्म पाते ही...सबसे पहले पोखर को उसके घर में लाकर एक चारपाई से बांध दिया था। ऐसा ही उसने उसकी बीवी और बच्चों के साथ भी किया था। इसके बाद उसने पूरे घर में पैट्रोल छिड़कर घर में आग लगा दी थी।
पोखर बेचारा मूक-आंखों से रहम की अपील करता रह गया था। बोल वह सकता नहीं था.....क्योंकि उसक मुंह में कपड़ा ढूंस दिया गया था। आग ने देखते-ही-देखते पूरे घर को अपनी लपेट में ले लिया था।
पोखर....अपनी बीवी-बच्चों सहित जिन्दा जल मरा।
196%
इस बीच रौली के आदमियों ने पुख्ता सिमेन्टिड कब्रों को तोड़ था। टूटी कब्रों में सूखी लकड़ियां व घास-फूस डालकर और उन पर पैट्रोल डालकर यहां भी रौली ने दियासलाई दिखा दी थी। जलती दियासलाई ने पैट्रोल को छुआ तो जैसे जहन्नुम की आग भड़क उठी।
रौली ने जिन लोगों के साथ मिलकर यह आग लगर्दा थी.....अब वही लोग उस आग को बुझाने की कोशिश कर रहे थे। वह आग कम बुझा रहे थे...शोर ज्यादा मचा रहे थे। इधर-से-उधर खामखां भाग रहे थे
और यह बात समीर राय ने अच्छी तरह नोट कर ली थी। समीर फिर वहां रुका नहीं।
वहा वहां रुककर करता भी क्या....जो कुछ होना था हो चुका था।
दोपहर तक समीर का यह भी मालूम हो गया कि पोखर और उसके बीवी-बच्चे भी इस आग में जल मरे हैं। उसका दिल कटकर रह गया।
आखिर उस गरीब का क्या कसूर था?
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
कसूर तो था ही...उसने अपनी बिसात से आगे जाने की कोशिश की थी। वो शायदा अपनी औकात भूल गया था। वो समीर राय की बातों में आकर गुमराह हो गया था। उसने जाली कब्रों का भेद खोला था...और अपने मालिक का भेद खोलने की उसे ऐसी सजा मिलने ही थी।
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रौशन राय, इस वक्त खाना खाने में मस्त था।
नफीसा बेगम उसके सामने बैठी उसे घूर जा रही थी। रोशन राय रोस्ट-चिकन को झंझोड़ते-झंझोड़ते अचानक रुका और अपनी बीवी की तरफ देखकर बोला
"खाना खाओ। मुझे क्या देख रही हो? क्या नजर लगाओगी....?"
"उसे चुप लग गई है.....।" नफीसा बेगम ने दुखी स्वर में कहा।
___"किसे बाबा....?" रोशन राय 'चिकन' प्लेट में रखते हुए बोला।
__ "अपने समीर को.....मैं और किसी बात करूंगी...?" नफीसा बेगम के लहजे में व्यंग भर आया था।
"कोई बात नहीं....ठीक हो जाएगा।" रोशन रायम लापरवाही से बोला-"चन्द दिन वह परेशान रहेगा ही...."
"उसे कब्रों को हाल मालूम हो गया है....।"
"कब्रों का हाल तो सिर्फ मुर्दा जानता है.....भला उसे कैसे मालूम होगा। खैर, अगर मालूम हो गया है तो उसने कब्रों में दोजख (नक) की आग भड़कती हुई भी देख ली होगी......।"रोशन राय के लहजे में धमकी थी।
।
___ "वह हस्पताल भी हो आया है। उसे यह भी मालूम हो गई है कि नमीरा और उसकी बच्ची की मौत हस्पताल में नहीं हुई..।" नफीसा बेगम ने भेद खोला।
__"तुमने इस बात की तस्वीक तो नहीं की...?" रोशन राय ने उसे घूरते हुए लापरवाही से पूछा।
"मैं किस तरह तस्दीक कर समी हूं.....।" नफीसा बेगम तेज लहजे में बोली-" बहुत परेशान हैं मुझे अन्देशा हे कि कहीं वह कुछ कर न बैठे....."
"नफीसा बेगम, कुछ नहीं होगा। तुम परेशान मत हुआ करो....।" रोशन राय ने इत्मीनान के साथ कहा-"तुम बस अपना मुंह न खोलना।"
"मुझे पूरी बात बताओ। आखि हमारी बहू नमीरा और उसकी बच्ची कहां है। यह ठीक है मुझे नमीरा का बच्ची को जन्म देना पसन्द नहीं आया था, लेनिक इसका मतलब तो नहीं कि उसका वजूद ही मिटा दिया जाये.....।"
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है....।" रोशन राय ने तसल्ली देनी चाही।
'अगर वह दोनों जिन्दा हैं तो फिर कहां हैं.?"
"मुझें नहीं मालूम....देखो, बाबा! मुझे खाना खाने दो। बहुत भूख लगी है। कभी-कभी तो मुझे भुख लगती है....।" रोशन राय फिर से खाने में लग गया।
नफीसा बेगम कुछ देर तो उसे देखती रही... फिर जाने क्यों उसे देखकर कुत्ते की-सी शक्ल बार-बार उसके सामने आने लगी। उससे बर्दाश्त नहीं हो सका। वह एक झटके से उठी व बाहर जोन लगी।
"नफीसा बेगम, अपनी जुबान बन्द ही राना । इसी में इस हवेली की भलाई है।" रोश राय ने सीधे-साफ शब्दों में चेतावनी दी।
नफीसा बेगम ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। बस, तेजी से कमरे से निकल गई।
रोशन राय कुछेक क्षणों तक घूरती नजरों से दरवाजे का देखता रहा। तभी दरवाजे से लोंगसरी, दो दूसरी सेविकाओं के साथ कमरे में दाखिल हुई। नफीसा बेगम ने खाना लग जाने के बाद इन नौकारानियों को बाहर जाने का हुक्म दिया था....ताकि अपने पति से बात कर सके। अब जब नफीसा बेगम बाहर निकल गई थी तो ये तीनों भीतर आ गई थीं।
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रौशन राय, इस वक्त खाना खाने में मस्त था।
नफीसा बेगम उसके सामने बैठी उसे घूर जा रही थी। रोशन राय रोस्ट-चिकन को झंझोड़ते-झंझोड़ते अचानक रुका और अपनी बीवी की तरफ देखकर बोला
"खाना खाओ। मुझे क्या देख रही हो? क्या नजर लगाओगी....?"
"उसे चुप लग गई है.....।" नफीसा बेगम ने दुखी स्वर में कहा।
___"किसे बाबा....?" रोशन राय 'चिकन' प्लेट में रखते हुए बोला।
__ "अपने समीर को.....मैं और किसी बात करूंगी...?" नफीसा बेगम के लहजे में व्यंग भर आया था।
"कोई बात नहीं....ठीक हो जाएगा।" रोशन रायम लापरवाही से बोला-"चन्द दिन वह परेशान रहेगा ही...."
"उसे कब्रों को हाल मालूम हो गया है....।"
"कब्रों का हाल तो सिर्फ मुर्दा जानता है.....भला उसे कैसे मालूम होगा। खैर, अगर मालूम हो गया है तो उसने कब्रों में दोजख (नक) की आग भड़कती हुई भी देख ली होगी......।"रोशन राय के लहजे में धमकी थी।
।
___ "वह हस्पताल भी हो आया है। उसे यह भी मालूम हो गई है कि नमीरा और उसकी बच्ची की मौत हस्पताल में नहीं हुई..।" नफीसा बेगम ने भेद खोला।
__"तुमने इस बात की तस्वीक तो नहीं की...?" रोशन राय ने उसे घूरते हुए लापरवाही से पूछा।
"मैं किस तरह तस्दीक कर समी हूं.....।" नफीसा बेगम तेज लहजे में बोली-" बहुत परेशान हैं मुझे अन्देशा हे कि कहीं वह कुछ कर न बैठे....."
"नफीसा बेगम, कुछ नहीं होगा। तुम परेशान मत हुआ करो....।" रोशन राय ने इत्मीनान के साथ कहा-"तुम बस अपना मुंह न खोलना।"
"मुझे पूरी बात बताओ। आखि हमारी बहू नमीरा और उसकी बच्ची कहां है। यह ठीक है मुझे नमीरा का बच्ची को जन्म देना पसन्द नहीं आया था, लेनिक इसका मतलब तो नहीं कि उसका वजूद ही मिटा दिया जाये.....।"
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है....।" रोशन राय ने तसल्ली देनी चाही।
'अगर वह दोनों जिन्दा हैं तो फिर कहां हैं.?"
"मुझें नहीं मालूम....देखो, बाबा! मुझे खाना खाने दो। बहुत भूख लगी है। कभी-कभी तो मुझे भुख लगती है....।" रोशन राय फिर से खाने में लग गया।
नफीसा बेगम कुछ देर तो उसे देखती रही... फिर जाने क्यों उसे देखकर कुत्ते की-सी शक्ल बार-बार उसके सामने आने लगी। उससे बर्दाश्त नहीं हो सका। वह एक झटके से उठी व बाहर जोन लगी।
"नफीसा बेगम, अपनी जुबान बन्द ही राना । इसी में इस हवेली की भलाई है।" रोश राय ने सीधे-साफ शब्दों में चेतावनी दी।
नफीसा बेगम ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। बस, तेजी से कमरे से निकल गई।
रोशन राय कुछेक क्षणों तक घूरती नजरों से दरवाजे का देखता रहा। तभी दरवाजे से लोंगसरी, दो दूसरी सेविकाओं के साथ कमरे में दाखिल हुई। नफीसा बेगम ने खाना लग जाने के बाद इन नौकारानियों को बाहर जाने का हुक्म दिया था....ताकि अपने पति से बात कर सके। अब जब नफीसा बेगम बाहर निकल गई थी तो ये तीनों भीतर आ गई थीं।
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