लोंगसरी ने अन्दर आकर जब नफीसा बेगम की प्लेट ब्लिकुल साफ देखी तो उसे बड़ी हैरत हुई, वह बेअख्तियार ही बोल उठी।
"अरे, मालकिन ने खाना नहीं खाया...?"
"पता नहीं.....।" रोशन राय ने सख्त लहजे में जवाब दिया। लोंगसरी ने सहमकर चुप्पी साध ली थी।
"मां, मैं क्या करूं...?" समीर मां के कदमों में बैठा हुआ था।
"सब्र कर बेटा..।" मां ने उसके सिर पर बड़ी मुहब्बत से हाथ फेरा।
"मा..मैं सब्र नहीं कर सकता। मैं नमीरा को तलाश करूंगा। मैं उसे ढंढकर रहूंगा। मां, तुम नहीं जानती कि मुझे मेरी बच्ची कितनी याद आ रही है।
डॉक्टर सहगल ने बताया था कि वह इतनी खूबसूरत थी कि एक बार उस पर नजर पड़ जाए तो देखने वाला उस पर से नजर न हटा सके। मां..मैंने नमीरा से अपनी पसन्द से शादी की थी। मैं जानता हूं, आप दोनों दिल से इस शादी के हक में नहीं थे। तो क्या मां, नमीरा से किसी किस्त का इन्तकाम लिया गया है? मां...कुछ तो बताओ..."
समीर ने मां को हसरत भरी निगाहों से देखा।
"मैं क्या बताऊं बेटा! बहुत कुछ तो तने खूद ही मालूम कर लिया है....।"
नफीसा बेगम ने उसे बेबसी से देखा।
"मां कोई ऐसी बात, कोई ऐसा इशारा जो मुझे मेरी नमीरा तक पहुंचा सके...।" समीर ने मां के सामने हाथ जोड़ दिये थे-"मैं तुमसे वायदा करता हूं मां..अगर वह मुझे मिल गई तो उसे यहां से लेकर चला जाऊंगा..... ।
उसकी तुम कभी सूरत भी न देख पाओगी...''
___ "बेटा.मैं कुछ नहीं जानती...।" नफीसा बेगम की आंखें भीगने लगीं।
"इसका मतलब है कि अब मुझे अब्बू का सामना करना पड़ेगा।" समीर के लहजे में सख्ती भर आई-"मां, तुम समझ सकती हो कि अगर उन्होंने नमीरा के बारे में जुबान ने खोली तो फिर कुछ भी हो सकता है......।" ।
__ "क्या करेगा तू....अपने बाप को कत्ल कर देगा। फिर क्या होगा। तुझे फांसी हो जाएगी। नमीरा तो तुझे फिर भी न मिलेगी....।" नफीसा बेगम ने उसे हौलनाक अंजाम से आगाह किया।
"मैं फिर क्या करूं मां....?" समर तड़पकर बोला-"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"
__ "अपने बाप के सामने जाने की कोशिश न करना, इससे कुद हासिल न होगा। मैं अपेन तौर पर उनसे कुछ मालूम करने की कोशिश करूंगी। तू हौसला रख । जोश में मत आ। बेताबी न दिखा....।" नफीसा बेगम ने समझाया-" मैं कुद करती हूं...।"
___ "मां, जो कुछ करना है, जल्दी करो। मेरे पास वक्त कम है। मुझे वापिस बम्बई भी जाना है।"
"बेटा, मेरी सलाह मान । तू बम्बई लौट जा। तेरा पढ़ाई का हर्ज भी होता होगा। मुझे जैसे ही नमीरा के बारे में कुछ मालूम होगा...मैं तुझे वहां से बुलवा लूंगी। नफीसा बेगम ने उसे एक दूसरा ही रास्ता दिखाने की कोशिश की।
"ठीक है मां! जैसा आप कहें...।" समीर राय की जुबाना पर यह बात आई तो उसक दिल में न थी। दिल में तो उसने कुछ और ही ठान रखा था।
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Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
रौली अभी जीप में बैठ ही रहा था कि पीछे सेकिसे ने उसे पुकारा
रौली साहब....।"
रौली ने मुड़कर देखा। हवेली का एक मुलाजिम शरफू उसकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था। रौली इत्मीनान से जीप में बैठ गया और 'इग्नीशन' में चाबी लगाकर शरफू का इन्तजार करने लगा।
शरफू जीप के निकट पहुंचा तो बुरी तरह हांफ रहा था।
"क्या हुआ, शरफू..?" रौली ने पूछा।
"रौली साहब, आपको छोटे मालिक ने बुलाया है।" शरफू ने उतरती-चढ़ती सांसों के बीच बड़ी मुश्किल से कहा।
"छोटे मालिक ने...!" रौली हैरान हुआ, फिर यह सोचकर शायद शरफु से कोई भूल हुई है...उसने तस्दीक चाही-"शरफू, छोटे मालिक ने या बड़े मालिक ने...?"
"छोटे मालिक ने, रौली साहब!” शरफू ने स्पष्ट किया।
"अच्छा...." रौली ने चाबी गाड़ी से निकाल ली
और जीप से कूदकर बाहर आ गया-"कहां हैं वह!"
"अपने कमरे में...।" शरफू, रौली के साथ हवेली की तरफ बढ़ने लगा।
"उनके पास और कौन है?" रौली ने पूछा।
"मुझे नहीं मालूम.....।" शरफू ने बताया-"मुझे उन्होंने दरवाजे से ही आपको बुलाने का हुक्म दिया था।"
"अच्छा ठीह है....।" रौली कुछ सोचते हुए बोला-"शरफू तुम जरा एक काम करो। मैं छोटे मालिक के पास जाता हूं । पता नहीं वहां कितनी देर लगे। मैं इस वक्त बड़े मालिक के काम से जा रहा था। तुम जरा उन्हें जाकर यह बात दो कि मैं अभी हवेली से गया नहीं हूं। मुझे छोटे मालिक ने बुलवाया है...।"
___ "ठीक है, मैं जाकर बड़े मालिक को बता देता हूं। कहां हैं वह इस वक्त ?"
"वह बड़े वाले ड्राइंग रूम में हैं। अपने दोस्तों के साथ ताश खेले रहे हैं। तुम अन्दर चले जाना या दरवाजे पर जो भी बन्दा खड़ा हो, उसे कहलवा देना।" रौली ने समझाया।
"ठीक है जी...।" शरफू यह कहकर दूसरी राहदारी की तरफ चला गया।
रौली इस सोच के साथ और अन्दाजा लगाता हुआ समीर राय के कमरे की तरफ बढ़ा कि 'आखिर उन्होंने उसे क्यों बुलवाय है.?" वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। जब वह दरवाजे के सामने पहुंचा तो एक क्षण को उसका दिल जोर से धड़का | उसने हिम्मत करके दरवाजे पर आहिस्ता से दस्तक दी।
___ "आ जाओ....." अन्दर से समीर राय की आवाज आई।
वह दरवाजा खोलकर अन्दर गया तो उसे समीर राय सामने सोफे पर बैठा नजर आया। उसके हाथ में रिवाल्वर था और उसका रुख रौली की तरफ था।
रिवाल्वर देखकर रौली एक क्षण के लिए ठिठक गया।
"आ जाओ....डरो मत...।" समीर राय ने रिवाल्वर सोफे रखते हुए कहा।
"जी मालिक! आपने मुझे बुलाया.....।" रौली की आवाज में हल्की-सी कंपकपाहट थी।
___ "ह....मैंने तुम्हें बुलाया है और यह बात तुम अच्छी तरह समझ गए होवोगे कि मैंने तुम्हें क्यों बुलाया
"नहीं मालिक! मैं नहीं समझा.... ।” वह समीर से कुछ कदम के फासले पर पहुंचकर रुक गया।
"देखो, रौली! मुझसे झूठ मत बोलना....।" समीर ने उसे सचेत किया।
"मालिक, मैं आपसे झूठ क्यों बोलूंगा ? मैं आपका नमकख्खार हूं....आपका खादिम हूं...।"
"नमीरा और मेरी बच्ची कहां हैं? समीर ने रिवाल्वर फिर अपने हाथ में उठा लिया।
"मालिक, मुझे नहीं मालूम......."
"रौली, तू यह तो जानता है कि वे दोनों कः खाली थीं?"
"मैं नहीं जानता....।" रौली ने निर्भयता के साथ इंकार किया।
"अच्छा....." समीर राय ने उसे घूरकर देखा-"तू यह तो जानता है कि मेरे हाथ में क्या है...?"
"हां मालिक! आपके हाथ में रिवाल्कर है।" रौली ने सहज भाव से जवाब दिया।
"और यह रिवाल्वर भरा हुआ है रौली । तू जानता होगा कि इसमें छ: गोलियां हैं?"
"हां मालिक! जानता हूं।"
"अगर यह रिवाल्वर चल गया तो फिर तेरे जिस्म को छलनी होने से कोई नहीं बचा सकेगा.....।''
"मालिक, मेरा कसूर तो बताएं....।"
"मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूं कि तू सब जानता है। लेनिक तू सच बोलने से कतरा रहा है।"
रौली साहब....।"
रौली ने मुड़कर देखा। हवेली का एक मुलाजिम शरफू उसकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था। रौली इत्मीनान से जीप में बैठ गया और 'इग्नीशन' में चाबी लगाकर शरफू का इन्तजार करने लगा।
शरफू जीप के निकट पहुंचा तो बुरी तरह हांफ रहा था।
"क्या हुआ, शरफू..?" रौली ने पूछा।
"रौली साहब, आपको छोटे मालिक ने बुलाया है।" शरफू ने उतरती-चढ़ती सांसों के बीच बड़ी मुश्किल से कहा।
"छोटे मालिक ने...!" रौली हैरान हुआ, फिर यह सोचकर शायद शरफु से कोई भूल हुई है...उसने तस्दीक चाही-"शरफू, छोटे मालिक ने या बड़े मालिक ने...?"
"छोटे मालिक ने, रौली साहब!” शरफू ने स्पष्ट किया।
"अच्छा...." रौली ने चाबी गाड़ी से निकाल ली
और जीप से कूदकर बाहर आ गया-"कहां हैं वह!"
"अपने कमरे में...।" शरफू, रौली के साथ हवेली की तरफ बढ़ने लगा।
"उनके पास और कौन है?" रौली ने पूछा।
"मुझे नहीं मालूम.....।" शरफू ने बताया-"मुझे उन्होंने दरवाजे से ही आपको बुलाने का हुक्म दिया था।"
"अच्छा ठीह है....।" रौली कुछ सोचते हुए बोला-"शरफू तुम जरा एक काम करो। मैं छोटे मालिक के पास जाता हूं । पता नहीं वहां कितनी देर लगे। मैं इस वक्त बड़े मालिक के काम से जा रहा था। तुम जरा उन्हें जाकर यह बात दो कि मैं अभी हवेली से गया नहीं हूं। मुझे छोटे मालिक ने बुलवाया है...।"
___ "ठीक है, मैं जाकर बड़े मालिक को बता देता हूं। कहां हैं वह इस वक्त ?"
"वह बड़े वाले ड्राइंग रूम में हैं। अपने दोस्तों के साथ ताश खेले रहे हैं। तुम अन्दर चले जाना या दरवाजे पर जो भी बन्दा खड़ा हो, उसे कहलवा देना।" रौली ने समझाया।
"ठीक है जी...।" शरफू यह कहकर दूसरी राहदारी की तरफ चला गया।
रौली इस सोच के साथ और अन्दाजा लगाता हुआ समीर राय के कमरे की तरफ बढ़ा कि 'आखिर उन्होंने उसे क्यों बुलवाय है.?" वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। जब वह दरवाजे के सामने पहुंचा तो एक क्षण को उसका दिल जोर से धड़का | उसने हिम्मत करके दरवाजे पर आहिस्ता से दस्तक दी।
___ "आ जाओ....." अन्दर से समीर राय की आवाज आई।
वह दरवाजा खोलकर अन्दर गया तो उसे समीर राय सामने सोफे पर बैठा नजर आया। उसके हाथ में रिवाल्वर था और उसका रुख रौली की तरफ था।
रिवाल्वर देखकर रौली एक क्षण के लिए ठिठक गया।
"आ जाओ....डरो मत...।" समीर राय ने रिवाल्वर सोफे रखते हुए कहा।
"जी मालिक! आपने मुझे बुलाया.....।" रौली की आवाज में हल्की-सी कंपकपाहट थी।
___ "ह....मैंने तुम्हें बुलाया है और यह बात तुम अच्छी तरह समझ गए होवोगे कि मैंने तुम्हें क्यों बुलाया
"नहीं मालिक! मैं नहीं समझा.... ।” वह समीर से कुछ कदम के फासले पर पहुंचकर रुक गया।
"देखो, रौली! मुझसे झूठ मत बोलना....।" समीर ने उसे सचेत किया।
"मालिक, मैं आपसे झूठ क्यों बोलूंगा ? मैं आपका नमकख्खार हूं....आपका खादिम हूं...।"
"नमीरा और मेरी बच्ची कहां हैं? समीर ने रिवाल्वर फिर अपने हाथ में उठा लिया।
"मालिक, मुझे नहीं मालूम......."
"रौली, तू यह तो जानता है कि वे दोनों कः खाली थीं?"
"मैं नहीं जानता....।" रौली ने निर्भयता के साथ इंकार किया।
"अच्छा....." समीर राय ने उसे घूरकर देखा-"तू यह तो जानता है कि मेरे हाथ में क्या है...?"
"हां मालिक! आपके हाथ में रिवाल्कर है।" रौली ने सहज भाव से जवाब दिया।
"और यह रिवाल्वर भरा हुआ है रौली । तू जानता होगा कि इसमें छ: गोलियां हैं?"
"हां मालिक! जानता हूं।"
"अगर यह रिवाल्वर चल गया तो फिर तेरे जिस्म को छलनी होने से कोई नहीं बचा सकेगा.....।''
"मालिक, मेरा कसूर तो बताएं....।"
"मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूं कि तू सब जानता है। लेनिक तू सच बोलने से कतरा रहा है।"
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
"मालिक, मुझे कुद मालूम होता तो आपको जरूर बता देता..."
"रौली, तू इतना तो बता सकता है कि मेरी नमीरा और मेरी बच्ची जिन्दा हैं?"
"मैं जानता तो जरूर बता देता मालिक.....।"
उसके इस जवाब पर समीर को गुस्सा आ गया। उसने रिवाल्वर सोफे पर फेंका और उठकर रौली के मुंह पर थप्पड़ों की बरसात कर दी। कसकर चार-पांच थप्पड़ लगाए।
रौली ने थप्पड़ खाकर सिर झुका लिया। बोला कुछ नहीं। खामोश रहा, लेकिन भीतर-ही-मीतर खौल रहा था वह।
___"दफा हो जाओ यहां से कुत्ते.....।" समीर राय गुस्से में चीखा-"वरना अभी तुझे भूनकर रखा दूंगा।"
रौली ने शुक्र मनाया। वो बड़ी तेजी से दरवाजे की तरफ भागा और बाहर निकल गया। वो जैसे ही दरवाजे से बहार निकला, उसे अपना जुड़वा भाई होली दिखाई दिया। वो तेजी से इधर ही आ रहा था।
"क्या हुआ...?" उसने रौली के निकट पहुंचकर पूछा।
___ "तुम कैसे आ रहे हो....?" वे दोनों साथ-साथ चलने लगे।
"मुझे मालिक ने भेजा है।" होली ने जवाब दिया-"तुम्हें देखने के लिए।"
.
"आओ, फिर मालिक के पास चलें..... ।” रौली उसे साथ ले रोशन राय के कमरे की तरफ बढ़ गया।
जब वे ड्राइंग रूम में पहुंचे तो रोशन राय पत्ते फैंट रहा था। इन्हें देखकर उसने हाथ रोक लिया। फिर रौली के चेहरे पर नजरें टिकाते हुए बोला-"रौली कोई परेशानी वाली बात तो नहीं है...!"
"नहीं, मालिक .....!" रौली मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोला।
___ "जाओ फिर! वह काम निपटा आओ जो मैंने तुम्हें बताया था। फिर इत्मीनान से बात करेंगे....।"
"जी मालिक...!" रौली ने दोनों हाथ जोड़कर कहा और फिर उल्टे कदमों चलता कमरे से निकल गया।
होली, रोशन राय की पीठ पीछे जा खड़ा हुआ था।
सुबह छ: बजे ही नफीसा बेगम ने, समीर राय के कमरे का दरवाजा जो से खटखटा दिया।
समीर रात देर से सोया था। अभी वह गहरी नींद में था कि दरवाजे पर दस्तक की आवाज से उसकी आंख खुल गई। वह गुस्से से झुंझलाता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ा।
उसने दरवाजा खोला तो अपनी मां को समाने पाया। उसने एक तरफ हटते हुए उन्हें अन्दर आने का रास्ता दिया और उनके अन्दर आने के बाद दरवाजा बन्द कर दिया।
___ "मां...खैरियत तो है....?" वह मां के चेहरे को गौर से देखते हुए बोला।
"हां....सब खैरियत है। तुम ऐसा करो, मुंह-हाथ धा लो, तुम्हारा नाश्ता तैयार है।"
"मां.....यह आप क्या कह रही हैं..?" वह बैड पर बैठते हुए बोला। उस पर अभी भी उनींदगी सवार थी।
"तुमको वापिस बम्बई जाना है....." मा। ने जैसे आदेश सुनाया था।
"बम्बई जाना है....लेकिन क्यों.?"
"बाहर गाड़ी तैयार खड़ी है। तुम जल्दी से नाश्ता कर लो....।" मां ने जैसे उसकी सुनी ही नहीं थी।
"मां, साफ-साफ बता करो....।" समीर राय की त्यौरियां चढ़ गईं-"क्या यह अब्बू का हुक्म है..?"
"हो...।" नफीसा बेगम न एक गहरा सांस लेकर कहा।
"और अगर में जाने से इंकार कर दूं तो...?" समीर की उनींदगी जाती रही थी। वह फुफकारा।
___ "मैंने तुमसे मान किया था कि अब्बू से सामना मत करना....."
___ "मां....मैंने अब्बू से कोई समाना नहीं किया है। हां, उस कुत्ते शैली को जरूर थप्पड़ लगाए है।"
"तुमने ऐसा करके गलती की...।" नफीसा बेगम के लहजे में तीखापान था।
"मां...! आप मेरी बात गौर से सुन लें। मैं मुंह-हाथ धो लूं...फिर अब्बू के सामने जाता हूं | उनसे भी बात करनी ही होगी....।"
___ "तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे..." कहते हुए नफीसा बेगम उने उसके सामने हाथ जोड़ लिये-"तुम्हें खुदा का वास्ता... "
"मां...अब्बू मुझ पर बराकर जुल्म किये जाते हैं। मैं कब तक चुप रहूं....."
"रौली, तू इतना तो बता सकता है कि मेरी नमीरा और मेरी बच्ची जिन्दा हैं?"
"मैं जानता तो जरूर बता देता मालिक.....।"
उसके इस जवाब पर समीर को गुस्सा आ गया। उसने रिवाल्वर सोफे पर फेंका और उठकर रौली के मुंह पर थप्पड़ों की बरसात कर दी। कसकर चार-पांच थप्पड़ लगाए।
रौली ने थप्पड़ खाकर सिर झुका लिया। बोला कुछ नहीं। खामोश रहा, लेकिन भीतर-ही-मीतर खौल रहा था वह।
___"दफा हो जाओ यहां से कुत्ते.....।" समीर राय गुस्से में चीखा-"वरना अभी तुझे भूनकर रखा दूंगा।"
रौली ने शुक्र मनाया। वो बड़ी तेजी से दरवाजे की तरफ भागा और बाहर निकल गया। वो जैसे ही दरवाजे से बहार निकला, उसे अपना जुड़वा भाई होली दिखाई दिया। वो तेजी से इधर ही आ रहा था।
"क्या हुआ...?" उसने रौली के निकट पहुंचकर पूछा।
___ "तुम कैसे आ रहे हो....?" वे दोनों साथ-साथ चलने लगे।
"मुझे मालिक ने भेजा है।" होली ने जवाब दिया-"तुम्हें देखने के लिए।"
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"आओ, फिर मालिक के पास चलें..... ।” रौली उसे साथ ले रोशन राय के कमरे की तरफ बढ़ गया।
जब वे ड्राइंग रूम में पहुंचे तो रोशन राय पत्ते फैंट रहा था। इन्हें देखकर उसने हाथ रोक लिया। फिर रौली के चेहरे पर नजरें टिकाते हुए बोला-"रौली कोई परेशानी वाली बात तो नहीं है...!"
"नहीं, मालिक .....!" रौली मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोला।
___ "जाओ फिर! वह काम निपटा आओ जो मैंने तुम्हें बताया था। फिर इत्मीनान से बात करेंगे....।"
"जी मालिक...!" रौली ने दोनों हाथ जोड़कर कहा और फिर उल्टे कदमों चलता कमरे से निकल गया।
होली, रोशन राय की पीठ पीछे जा खड़ा हुआ था।
सुबह छ: बजे ही नफीसा बेगम ने, समीर राय के कमरे का दरवाजा जो से खटखटा दिया।
समीर रात देर से सोया था। अभी वह गहरी नींद में था कि दरवाजे पर दस्तक की आवाज से उसकी आंख खुल गई। वह गुस्से से झुंझलाता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ा।
उसने दरवाजा खोला तो अपनी मां को समाने पाया। उसने एक तरफ हटते हुए उन्हें अन्दर आने का रास्ता दिया और उनके अन्दर आने के बाद दरवाजा बन्द कर दिया।
___ "मां...खैरियत तो है....?" वह मां के चेहरे को गौर से देखते हुए बोला।
"हां....सब खैरियत है। तुम ऐसा करो, मुंह-हाथ धा लो, तुम्हारा नाश्ता तैयार है।"
"मां.....यह आप क्या कह रही हैं..?" वह बैड पर बैठते हुए बोला। उस पर अभी भी उनींदगी सवार थी।
"तुमको वापिस बम्बई जाना है....." मा। ने जैसे आदेश सुनाया था।
"बम्बई जाना है....लेकिन क्यों.?"
"बाहर गाड़ी तैयार खड़ी है। तुम जल्दी से नाश्ता कर लो....।" मां ने जैसे उसकी सुनी ही नहीं थी।
"मां, साफ-साफ बता करो....।" समीर राय की त्यौरियां चढ़ गईं-"क्या यह अब्बू का हुक्म है..?"
"हो...।" नफीसा बेगम न एक गहरा सांस लेकर कहा।
"और अगर में जाने से इंकार कर दूं तो...?" समीर की उनींदगी जाती रही थी। वह फुफकारा।
___ "मैंने तुमसे मान किया था कि अब्बू से सामना मत करना....."
___ "मां....मैंने अब्बू से कोई समाना नहीं किया है। हां, उस कुत्ते शैली को जरूर थप्पड़ लगाए है।"
"तुमने ऐसा करके गलती की...।" नफीसा बेगम के लहजे में तीखापान था।
"मां...! आप मेरी बात गौर से सुन लें। मैं मुंह-हाथ धो लूं...फिर अब्बू के सामने जाता हूं | उनसे भी बात करनी ही होगी....।"
___ "तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे..." कहते हुए नफीसा बेगम उने उसके सामने हाथ जोड़ लिये-"तुम्हें खुदा का वास्ता... "
"मां...अब्बू मुझ पर बराकर जुल्म किये जाते हैं। मैं कब तक चुप रहूं....."
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
___ "तू क्या चहाता है कि मैं तेरे कदमों में गिर पडूं..?"
"अल्लाह न करे कि कभी ऐसा वक्त आए...." समीर ने मां के दोनों हाथ पकड़ लिए। वह करीब आया तो उसने देखा कि उसकी मां की आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं।
"बेटा, मेरी बात मन ले....तू बम्बई लौट जा....."
"ठीक है मां ....आपकी खातिर चला जाता हूं।" समीर राय मां की आंखों में आंसू न देख सका। उसने हार मान ली–"मैं हाथ-मुंह धोकर आता हूं। आप नाश्ता मंगवाएं....।"
उसने जल्दी ब्रुश किया...हाथ-मुंह धोया और बाथयम से बाहर आ गया। इतनी देर में नाश्ता आ चुका था। नफीसा उसे बाथरूम से निकलते देखकर उसके लिए चाय बनाने लगी।
समीर खामोशी से नाश्ता करने लगा।
"देख, बेटा! तू अपने अब्बू के मिजाज से तो अच्छी तरह वाकिफ है।" मां ने समझाने के अंदाज में कहना शुरू किया, "तू जानता है कि वह अपने अलावा कुछ नहीं सोचते । जो उनके दिल में आता है, कर गुजरते हैं। चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो। चाहे उनके सामने अपनी बीवी हो या बेटा हो या कोई गैर शख्स हो। वह तो सबको एक ही पंकित में खड़ा कर देते हैं। बेटा, तू दिल छोटा न करा | मैं मौका देखकर बता कर लूंगी....।"
"नहीं, अम्मी! अब आप कोई बात न करना.... अब क्या बात करनी ह। मुझे हवेली छोड़ने का हुक्म मिल गया है। मैं जा रहा हूं लेकिन एक बात याद रखना, मां। मैं हवेली इसलिए नहीं छोड़ रहा कि यह मेरे बाप का हुक्म है। यह हवेली मैं इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि मैंने अपनी मां की आंखों देखे हैं। मैं आपकी वजह से, आपके कहने पर यहां से जा रहा हूं....।" कहते हुए समीर राय की आवाज रुंध गई। वह कुछेक क्षणों के लिए रुका। खुद को सम्भाला, फिर आगे बोला-"मां, मैं आपको एक बात बताता हूं...मुझे अपना बाप कभी पसन्द नहीं आया। वह बाप लगता ही नहीं। पता नहीं मां, आप एक पत्थरदिल....हिटलर जैसे शख्स के साथ किस तरह जिन्दगी गुजार रही हैं?"
नफीसा बेगम ने कुद कहने के लिए होंठ खोले...मगर वह बोल नहीं पाई। उसके दिल से घटा-सी उठी और वह बेअख्तियार रोने लगी।
खाना खाते हुए रोशन राय ने अचानक अपने सामने बैठी नफीसा बेगम पर नजर डाली। वह खाली प्लेट अपने सामने रखे अपने ख्यालों में गुम थी।
"खाना खाओ, नफीसा बेगम....!" रोशन राय उसे गहरी नजरों से देखते हुए बोला-"खाना क्यों नहीं खा रही...?"
"खाती हूं, राय साहब।"
"बेटे के जोन का गम हैं मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर तुम्हें गम क्यों है? भई, वह बम्बई में पढ़ रहा है। उसे आज नही तो कल जाना ही था। अगर वह आज चला गया तो इसमें परेशानी की क्या बात है?" रोशन राय ने उसे समझाने की कोशिश की।
"उसे जिस तरह भेजा गया है, यह बात आप अच्छी तरह जानते हैं।" नफीसा बेगम ने उसे तीखी निगाहों से देखा।
"तुम नहीं जानती कि वह अपनी मासूनियम में आग से खेलने की कोशिश कर रहा था। वह मेरा बेटा है। मैं आखिर उसे आग से किस तरह खेल लेने देता..?"
___ "आपने...अपने बेटे के साथ बड़ा जुल्म किया है। क्या उसे यह हक भी नहीं कि वह अपनी बीवी और बच्चों के बारे में मालूम कर सके? आखिर आप बता क्यों, नहीं देते कि वह दोनों कहां हैं? आपका ख्याल है कि यह बात उस कभी मालूम नहीं होगी....यह राज हमेशा राज ही रहेगा...।"
___ "मैं अब उसकी जल्दी शादी कर देना चाहता हूं।" रोशन राय लापरवाही से बोला-"वह चन्द दिनों में ही सब कुछ भूल जाएगा.....।"
"मेरा ख्याल है कि समीर की बजाज अपन खुद ही शादी कर लें...।" नफीसा बेगम ने गुस्से से कहा और उसे खाना खाते छोड़कर कमरे से निकल गई।
रोशन राय ने उसके यूं चले जाने की बिल्कुल परवाह नहीं की। वह बदस्तूर इत्मीनान के साथ खाना खाता रहा।
रोशन राय उस दिन भी हमेशा की तरह, सैर के लिए निकला था।
घुड़सवारी उसका शौका था। वह सैर के लिए अधिकतर घोड़े पर ही निकलता था। रौली और होली दोनों उसके पीछे थे।
अभी वह बाब के निकट पहुंच ही था कि उसने आम के एक पेड़ के नीचे एक अजीबो-गरीब शख्स को खड़ा देखा। उसका हुलिया भी अजीब-सा था। दाढ़ी ना मूंछ...सिर धूम में चमकता हुआ...सिर पर एक बाल नहीं....सफेद लिबास पहने हुए...हाथ में जंजीर...जैसे उसकी गया या बकरी जंजीर छोड़कर भाग गई हो...और जंजीर उसके हाथ में रह गई हो।
वो शख्स हालांकि अभी तक फासले पर था, लेकिन बड़ी बेबाकी के साथ, अपलक, रोशन राय पर नजरें जमाये हुए था। वो कुछ इस तरह देख रहा था कि रोशन राय उसकी तेज नजरों को महसूस किए बगैर न रह सका।
उसकी शख्सियत ही क्या किसी की आकर्षित करने के लिए कम थी कि उसका इस तरह घूरकर देखना। रोशन राये ने एक अजीब-सी बेचैनी महसूस की थी। उस शख्स पर नजर पड़ते ही उसने अपना घोड़ा रोक लिया।
__ और रौली-होली भी उसके दायें-बाये आकर रुक गये।
__ "रौली, यह कौन है?" रोशन राय ने आंखों से ही सामने की तरफ इशारा किया था।
रौली उस अजीबो-गरीब शख्स को एक नजर देखकर बोला-"मालिक अपने इलाके का मालूम नहीं होता।"
"मालिक, क्या आगे जाकर उस रास्ते से हटा दूं..?" होली ने कहा।
"नहीं, होली। खड़ा रहने दो....हमारा क्या लेता है...?" रोशन राय ने अप्रत्याशित-सा जवाब दिया था।
दोनों भाइयों ने चोर निगाहों से एक-दूसरे की तरफ देखा।
उन्हें पूरी उम्मीद थी, कि रोशन राय उन्हें एक शस को रास्ते से हटाने का हुक्म देना।
"तुम दोनों आगे चलो.... ।” रोशन राय ने कुछ सोचकर हुक्म दिया।
उसका हुक्म सुनते ही दोनों भाइयों ने अपने घोड़े आगे बढ़ा दिये।
"अल्लाह न करे कि कभी ऐसा वक्त आए...." समीर ने मां के दोनों हाथ पकड़ लिए। वह करीब आया तो उसने देखा कि उसकी मां की आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं।
"बेटा, मेरी बात मन ले....तू बम्बई लौट जा....."
"ठीक है मां ....आपकी खातिर चला जाता हूं।" समीर राय मां की आंखों में आंसू न देख सका। उसने हार मान ली–"मैं हाथ-मुंह धोकर आता हूं। आप नाश्ता मंगवाएं....।"
उसने जल्दी ब्रुश किया...हाथ-मुंह धोया और बाथयम से बाहर आ गया। इतनी देर में नाश्ता आ चुका था। नफीसा उसे बाथरूम से निकलते देखकर उसके लिए चाय बनाने लगी।
समीर खामोशी से नाश्ता करने लगा।
"देख, बेटा! तू अपने अब्बू के मिजाज से तो अच्छी तरह वाकिफ है।" मां ने समझाने के अंदाज में कहना शुरू किया, "तू जानता है कि वह अपने अलावा कुछ नहीं सोचते । जो उनके दिल में आता है, कर गुजरते हैं। चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो। चाहे उनके सामने अपनी बीवी हो या बेटा हो या कोई गैर शख्स हो। वह तो सबको एक ही पंकित में खड़ा कर देते हैं। बेटा, तू दिल छोटा न करा | मैं मौका देखकर बता कर लूंगी....।"
"नहीं, अम्मी! अब आप कोई बात न करना.... अब क्या बात करनी ह। मुझे हवेली छोड़ने का हुक्म मिल गया है। मैं जा रहा हूं लेकिन एक बात याद रखना, मां। मैं हवेली इसलिए नहीं छोड़ रहा कि यह मेरे बाप का हुक्म है। यह हवेली मैं इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि मैंने अपनी मां की आंखों देखे हैं। मैं आपकी वजह से, आपके कहने पर यहां से जा रहा हूं....।" कहते हुए समीर राय की आवाज रुंध गई। वह कुछेक क्षणों के लिए रुका। खुद को सम्भाला, फिर आगे बोला-"मां, मैं आपको एक बात बताता हूं...मुझे अपना बाप कभी पसन्द नहीं आया। वह बाप लगता ही नहीं। पता नहीं मां, आप एक पत्थरदिल....हिटलर जैसे शख्स के साथ किस तरह जिन्दगी गुजार रही हैं?"
नफीसा बेगम ने कुद कहने के लिए होंठ खोले...मगर वह बोल नहीं पाई। उसके दिल से घटा-सी उठी और वह बेअख्तियार रोने लगी।
खाना खाते हुए रोशन राय ने अचानक अपने सामने बैठी नफीसा बेगम पर नजर डाली। वह खाली प्लेट अपने सामने रखे अपने ख्यालों में गुम थी।
"खाना खाओ, नफीसा बेगम....!" रोशन राय उसे गहरी नजरों से देखते हुए बोला-"खाना क्यों नहीं खा रही...?"
"खाती हूं, राय साहब।"
"बेटे के जोन का गम हैं मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर तुम्हें गम क्यों है? भई, वह बम्बई में पढ़ रहा है। उसे आज नही तो कल जाना ही था। अगर वह आज चला गया तो इसमें परेशानी की क्या बात है?" रोशन राय ने उसे समझाने की कोशिश की।
"उसे जिस तरह भेजा गया है, यह बात आप अच्छी तरह जानते हैं।" नफीसा बेगम ने उसे तीखी निगाहों से देखा।
"तुम नहीं जानती कि वह अपनी मासूनियम में आग से खेलने की कोशिश कर रहा था। वह मेरा बेटा है। मैं आखिर उसे आग से किस तरह खेल लेने देता..?"
___ "आपने...अपने बेटे के साथ बड़ा जुल्म किया है। क्या उसे यह हक भी नहीं कि वह अपनी बीवी और बच्चों के बारे में मालूम कर सके? आखिर आप बता क्यों, नहीं देते कि वह दोनों कहां हैं? आपका ख्याल है कि यह बात उस कभी मालूम नहीं होगी....यह राज हमेशा राज ही रहेगा...।"
___ "मैं अब उसकी जल्दी शादी कर देना चाहता हूं।" रोशन राय लापरवाही से बोला-"वह चन्द दिनों में ही सब कुछ भूल जाएगा.....।"
"मेरा ख्याल है कि समीर की बजाज अपन खुद ही शादी कर लें...।" नफीसा बेगम ने गुस्से से कहा और उसे खाना खाते छोड़कर कमरे से निकल गई।
रोशन राय ने उसके यूं चले जाने की बिल्कुल परवाह नहीं की। वह बदस्तूर इत्मीनान के साथ खाना खाता रहा।
रोशन राय उस दिन भी हमेशा की तरह, सैर के लिए निकला था।
घुड़सवारी उसका शौका था। वह सैर के लिए अधिकतर घोड़े पर ही निकलता था। रौली और होली दोनों उसके पीछे थे।
अभी वह बाब के निकट पहुंच ही था कि उसने आम के एक पेड़ के नीचे एक अजीबो-गरीब शख्स को खड़ा देखा। उसका हुलिया भी अजीब-सा था। दाढ़ी ना मूंछ...सिर धूम में चमकता हुआ...सिर पर एक बाल नहीं....सफेद लिबास पहने हुए...हाथ में जंजीर...जैसे उसकी गया या बकरी जंजीर छोड़कर भाग गई हो...और जंजीर उसके हाथ में रह गई हो।
वो शख्स हालांकि अभी तक फासले पर था, लेकिन बड़ी बेबाकी के साथ, अपलक, रोशन राय पर नजरें जमाये हुए था। वो कुछ इस तरह देख रहा था कि रोशन राय उसकी तेज नजरों को महसूस किए बगैर न रह सका।
उसकी शख्सियत ही क्या किसी की आकर्षित करने के लिए कम थी कि उसका इस तरह घूरकर देखना। रोशन राये ने एक अजीब-सी बेचैनी महसूस की थी। उस शख्स पर नजर पड़ते ही उसने अपना घोड़ा रोक लिया।
__ और रौली-होली भी उसके दायें-बाये आकर रुक गये।
__ "रौली, यह कौन है?" रोशन राय ने आंखों से ही सामने की तरफ इशारा किया था।
रौली उस अजीबो-गरीब शख्स को एक नजर देखकर बोला-"मालिक अपने इलाके का मालूम नहीं होता।"
"मालिक, क्या आगे जाकर उस रास्ते से हटा दूं..?" होली ने कहा।
"नहीं, होली। खड़ा रहने दो....हमारा क्या लेता है...?" रोशन राय ने अप्रत्याशित-सा जवाब दिया था।
दोनों भाइयों ने चोर निगाहों से एक-दूसरे की तरफ देखा।
उन्हें पूरी उम्मीद थी, कि रोशन राय उन्हें एक शस को रास्ते से हटाने का हुक्म देना।
"तुम दोनों आगे चलो.... ।” रोशन राय ने कुछ सोचकर हुक्म दिया।
उसका हुक्म सुनते ही दोनों भाइयों ने अपने घोड़े आगे बढ़ा दिये।
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