वो अजीबो-गरीब रास्ते के किनारे पर खड़ा था। जब रौली और होली उसके सामने से गुजरे तो उसने अपनी आंखे झुका लीं। वे दोनों उसे देखते हुए गुजर गये। रौली के दिल में यह ख्वाहिश भी पैदा हुई कि इस शख्स से यहां खड़े होने का सबब पूछे, लेकिन इस ख्वाहिश के बावजूद वो उससे कोई सवाल न करा सका।
जब वे दोनों आगे निकल गये और रोशन राय उस अजीबो-गरीब शख्स के निकट पहुंचा तो उस शख्स ने फौरन अपनी नजरें उठाकर देखा। उसकी नजरों में जाने ऐसा क्या था कि रोशन राय ने अचानक अपने घोड़े की लगाम खींच ली। उसका घोड़ज्ञ ठीक उस शख्स के सामने रुक गया।
"कैसे हो रोशन राय....?" उस शख्स ने अपनी चमकी आंखों से उसे देखते हुए पूछा।
रोशन राय उसकी बेअदबी पर तिलमिलकार रहा गया। हवेली के बाहर उसे उसके नाम से पुकारने की जुर्रत किसी में न थी, लेकिन इस अजनबी ने यह दुस्साहस कर दिखाया था ।
रोशन राय ने उसे उसकी इस धृष्टता पर सुनाना चाहा, उसने फौरन कहा
"हम ठीक हैं बाबा....।"
और रोशन राय अपनी जुबान पर आने वाले इन शब्दों को सुनकर हैरान रह गया। वह ऐसा तो कुछ नहीं कहना चहाता था। उसकी जुबान ने उसका साथ छोड़ दिया था।
"तुम्हारे घर में कयामत आने वाली है और तुम कह रहे हो, ठीक हो.... "
" हैं....।" रोशन राय हैरत से बोला और बेअख्तियार घोड़े से कूद पड़ा।
रोशन राय को घोड़े से कूदता देख कर रौली-होली भी तेजी से अपने घोड़ों से उतर गये और लम्बे उग भरते हुए रोशन राय की तरफ बढ़े।
"अपने इन नमकहलालों से कहो कि हमसे दूर रहें...मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" उस अजीबो-गरीब शख्स ने उन दोनों की तरफ इशारा किया।
रोशन राय ने ना चाहते हुए भी इशारे से उन दोनों को अपने निकट आने से रोक दिया। वे जहां थे, वहीं रुक गये।
__ "बाबा, अभी तुमने किस कयामत का जिक्र किया...मेरी हवेली में कौन-सी कयामत आने वाली है? भई, कुछ हम भी तो सुनें....।" रोशन राय अपने स्वभाव के विपरीत बेहद कोमलता के साथ बोला था।
रोशन राय भुक्तभोगी था....एक वहमी शख्स था। कयामत की जिक्र सुनकर ही उस पसीना आ गया था।
"परेशान त हो... मैं आ गया हूं.तुम्हें बताने.... रास्ता दिखाने। मेरे कहने पर अमल करोगे तो सुखी रहोगे, वरना एक दिन आएगा कि तुम्हारी हवेली में सांप-ही-सांप होंगे।" उस शख्स ने रोशन राय को अपनी काली चमकती आंखों से देखा।
"सांप...!" रोशन राय ने घबराकर कहा। वह सांप से पहले ही डरा हुआ था। कितनी ही बार उसने अपने बैडरूम में किसी सांप का सरसराते हुए देखा था, वह मुर्दा आवाज में बोला-"एक सांप तो पहले ही मेरे पीछे लगा हुआ है। आप किन सांपों की बात करते हो..?"
"वो तो एक मामूली सांप है। उसको अगर तुम मार भी दोगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" उस शख्स ने लापरवाही से कहा।
"तुम उसे मामूली सांप कहते हो। उसने मेरी रातों की नींद हराम कर दी है। मैं अब बिना लाइट जलाये सो नहीं सकता ......." रोशन राय ने अपना दुखड़ा रोया।
__ "मैं जिस बात का जिक्र कर रहा हूं....अगर वैसा हो गया तो तुम सूरज की रोशनी में भी चैन नहीं पाओगे....।"
"ओह...!" रोशन राय को अपने दिल की धड़कनों पर नियंत्रण न रहा था-"तुम वह बात बताओं बाबा.....हम जानना चाहते हैं।"
__ "शनिवार के दिन....दोपहर के वकत तुम्हारी हवेली में एक बच्ची जन्म लेगी। अगर वह बच्ची हवेली में रही तो तुम पर कयामत गुजरेगा। बस यूं समझाो कि चन्द ही दिनों में तुम्हारी हवेली सुनसान हो जाएगी। हवेली में सांपों की फुफकार के अलावा कुछ सुनाई न देगा। मैंने तुम्हें दिन और वक्त बता दिया है. झूठ ओर सच का तुम्हें खुद अन्दाज हो जाएगा।" उस शख्स ने बड़ी गम्भीरता के साथ भविष्यवाणी की थी।
रोशन राय कुछ क्षण खामोश रहा, फिर उसने धीरे से पूछा
"तुमने अभ अपना नाम नहीं बताया बाबा...।"
"रोशन राय, मेरा नाम देवांग है....."
"बाबा देवांग....! फिर मैं क्या करूं? इस तबाही से कैसे बचूं.?" रोशन राय के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।
"इस बात का तुम्हें चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।
"इस बात का तुम्हें इन्तजाम करना होगा कि वह लड़की हवेली में पैदा न हो और जब वह जन्म ले ले तो उसे हवेली में लाने के बजाय एक ऊंटनी पर डालकर रेगिस्तान में छोड़ देना। बस, तुम्हारा काम खत्म हो जाएगा। तुम्हारे सिर से बला टल जायेगी और जिसकी वह अमानत है, वह वहां तक पहुंच जाएगी.... और जिसकी वह अमानत है, वह वहां तक पहुंच जाएगी... और तुम्हारी जिन्दगी बच जाएगी......।"
"ठीक है, बाबा देवांग.! तुमने जैसा कहा है मैं वेसा ही करूंगा.....।" रोशन राय ने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह कहा था।
रोशन राय को अपनी वह आज्ञाकारिता बड़ी ऊपरी-ऊपरी लग रही थी। वह तो सिर्फ आज्ञा देना जानता था..हुक्म सुनना नहीं।
पर इस अजीबो-गरीब शख्स की हस्ती ने ही उस दहलकार रख दिया था। देवांग की भविष्यवाणी ने उसके होश उड़ा दिये थे। देवांग की बातों में दम था। रोशन राय जानता था कि उसकी बहू का प्रसव होने वाला है....और यह बात हवेली से बाहर का कोई व्यक्ति नहीं जान सकता थां यह अजीबो-गरीब शख्स उसका नाम जानता था और उसे सांप वाली त्रासदी का भी इल्म था, फिर उसने बच्ची के जन्म का दिन व वक्त भी बता दिया था।
देवांग की भविष्वाण रोशन राय के दिलो-दिमाग में घर कर गई थी।
Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
रोशन राय भीतर से दहल गया था। उसने इस सिलसिले में किसी को कुछ नहीं बताया था, उसने समीर की बहू को निकट के एक छोटे शहर के हस्पताल में एडमिट करा दिया था। देवांग के कथनानुसार अभी बच्ची के जन्म में चार दिन बाकी थे, जबकि डाक्टरों की रिपोर्ट से मुताबिक अभी कम से कम दो हफ्ते बाकी थे।
रोशन राय ने सोचा था कि चलो चार दिन बाद दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाएगा।
रोशन राय की नमीरा वैसे ही पसन्द नहीं थी। उसेन हवेली में आकर 'खानदान वाल लड़की के साथ आने वाली जायदाद का रास्ता रोक दिया था । इस बात का रोशन राय को भीतर-ही-भीतर दुख था...लेकिन उसने अपने इकलौते बेटे की वजह से नमीरा को बर्दाश्त कर लिया था, मगर उसका शैतानी जहन उससे मुक्ति पाने को नित नये-नये मन्सूबे तराश रहा था कि देवांग की भविष्यवाणी ने मामला ही साफ कर दिया था।
एक तो मध्यवर्गीय परिवार की बहू, ऊपर से जन्म दे एक बच्ची को और बच्ची भी कैसी? सब कुद तबाह करने वाली....जन्मजली....अशुभ ।
रोशन राय ने तय किर लिया कि बच्ची के साथ उसकी मां को भी लग हाथों ठिकाने लगा देगा।
रहस्यमय देवांग की भविष्यवागी सच साबित हुई। नमीरा ने शानिकवार के दिन ठीक बारह बजे एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची को पैदाइश से इस दिन पहले हवेली के आसपास कई सांपों को देखा गया...जिन्हें रोशनगढ़ी के लोगों ने फौरन मार दिया और जिस दिन बच्ची ने पैदा होने था, उसे सुबह हवेली के अन्दर आठ-दस सांप लहराते हुए नजर आए.जिनमें से कुछेक को हवेली के कारिन्दों ने मार दिया।
उस दिन रोशन राय ने ख्वाब में अपने आसपास बेशुमार सांप देखे। वह घबराकर उठ बैठा। जब वह उठा तो अच्छा-खासा सूरज निकला हुआ था। उसे हवेली में असाधारण शोर सुनाई दिया। बाहर आने पर उस बातया गया था कि हवेली के विभिन्न हिस्सों में सांप नमुदार हुए हैं...जिनमें कुछेक को मार दिया गया है।
वे लक्षण शु। न थे।
और फिर जब रोशन राय सवा बारह बजे हस्पताल पहुंचा मो बच्ची की पैदाइश की खबर उसकी प्रतीक्षक थी।
अचानक ही बच्चे के रोने की आवाज रोशन राय को अपने निकट सुनाई दी। रोशन राय ने चौंककर चारों तरफ देखा। वह अपने बैडरूम में बैड पर था।
बच्ची के रोने की आवाज के साथ ही उस रात का वह सारा दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम गया। उसने बारी-बारी दो ऊंटों को विपरीत दिशाओं में जाते देखा।
रोशन राय के मोटे होठों पर एक निर्मम मुस्कुराहट खेलने लगी, फिर वह सोचते-सोचते सो गया। देवांग के कहे पर अमल करके उसने हवेली की तबाही से बचा लिया था।
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रौली गाड़ी चला रहा था।
समीर राय उसके बारबर बैठा था और गाड़ी में पीछे चार सशस्त्र बन्दों के साथ होली विजरामान था। गाड़ी रोशनगढ़ी से दस-बारह किलोमीरटर दूर निकल आई थी। अचानक ही रौली को ब्रेक मारनी पड़ी। सामने सड़क पर एक कालीन किसी पेड़ के तने की तरह रास्ता रोके पड़ा था। यूं लगता था जैसे यह गोल-गोल लिपटा हाअ कालीन किसी टैन्ट हाउस के ट्रक से लुढ़ककर सड़क पर आ रहा हो।
रौली के साथ होली भी गाड़ी से उतरकर कालीन की तरफ बढ़ा । रौली ने कालीन का निरीक्षण किया तो उसे एक तरफ से लम्बे बाल दिखाई दिये। ये बाल यकीनन किसी औरत के थे और जब रौली और होली न तेजी से कालीन को खोला तो उसमें से जो औरत निकली, उसे देखकर समीर राय की सांस रुक गयी।
वह उसकी बीवी नमीरा थी।
समीर गाड़ी से निकला और हवाल के तेज झौंके की तरह कालीन के पास पहुंचा और घुटनों के बल बैठ गया। उसने झुककर नमीरा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया। नमीरा के बाल अब उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे। यूं लगता था, जैसे सिरिंगज के जरिये उसके बदन से पूरा खून निकाल लिया गया हो। उसका लिबास सही हालत में था। बस, गले मे दुपट्टा मौजूद नहीं था।
समीर राय ने उसकी नब्ज देखी....सांस चेक की..दिल की धड़कन महसूस की....कहीं कुछ न था।
नमीरा जाने कब की इस दुनिया से कूच कर चुकी थी।
समीरा राय को नमीरा का आखिरी पत्र याद आया। हाय, वह किनती तन्हा, कितनी अकेली थी। उसने उसके अकेलेपन का कोई ख्याल न किया। कितना निर्दयी रहा हवह अपनी नमीरा के प्रति। जोन वह किन हालात से गुजरी....जाने उस पर क्या बीत गई?
नमीरा के लिखे वे शब्द जैसे बिच्छू बनकर समीर को डसने लगे।
रोशन राय ने सोचा था कि चलो चार दिन बाद दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाएगा।
रोशन राय की नमीरा वैसे ही पसन्द नहीं थी। उसेन हवेली में आकर 'खानदान वाल लड़की के साथ आने वाली जायदाद का रास्ता रोक दिया था । इस बात का रोशन राय को भीतर-ही-भीतर दुख था...लेकिन उसने अपने इकलौते बेटे की वजह से नमीरा को बर्दाश्त कर लिया था, मगर उसका शैतानी जहन उससे मुक्ति पाने को नित नये-नये मन्सूबे तराश रहा था कि देवांग की भविष्यवाणी ने मामला ही साफ कर दिया था।
एक तो मध्यवर्गीय परिवार की बहू, ऊपर से जन्म दे एक बच्ची को और बच्ची भी कैसी? सब कुद तबाह करने वाली....जन्मजली....अशुभ ।
रोशन राय ने तय किर लिया कि बच्ची के साथ उसकी मां को भी लग हाथों ठिकाने लगा देगा।
रहस्यमय देवांग की भविष्यवागी सच साबित हुई। नमीरा ने शानिकवार के दिन ठीक बारह बजे एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची को पैदाइश से इस दिन पहले हवेली के आसपास कई सांपों को देखा गया...जिन्हें रोशनगढ़ी के लोगों ने फौरन मार दिया और जिस दिन बच्ची ने पैदा होने था, उसे सुबह हवेली के अन्दर आठ-दस सांप लहराते हुए नजर आए.जिनमें से कुछेक को हवेली के कारिन्दों ने मार दिया।
उस दिन रोशन राय ने ख्वाब में अपने आसपास बेशुमार सांप देखे। वह घबराकर उठ बैठा। जब वह उठा तो अच्छा-खासा सूरज निकला हुआ था। उसे हवेली में असाधारण शोर सुनाई दिया। बाहर आने पर उस बातया गया था कि हवेली के विभिन्न हिस्सों में सांप नमुदार हुए हैं...जिनमें कुछेक को मार दिया गया है।
वे लक्षण शु। न थे।
और फिर जब रोशन राय सवा बारह बजे हस्पताल पहुंचा मो बच्ची की पैदाइश की खबर उसकी प्रतीक्षक थी।
अचानक ही बच्चे के रोने की आवाज रोशन राय को अपने निकट सुनाई दी। रोशन राय ने चौंककर चारों तरफ देखा। वह अपने बैडरूम में बैड पर था।
बच्ची के रोने की आवाज के साथ ही उस रात का वह सारा दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम गया। उसने बारी-बारी दो ऊंटों को विपरीत दिशाओं में जाते देखा।
रोशन राय के मोटे होठों पर एक निर्मम मुस्कुराहट खेलने लगी, फिर वह सोचते-सोचते सो गया। देवांग के कहे पर अमल करके उसने हवेली की तबाही से बचा लिया था।
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रौली गाड़ी चला रहा था।
समीर राय उसके बारबर बैठा था और गाड़ी में पीछे चार सशस्त्र बन्दों के साथ होली विजरामान था। गाड़ी रोशनगढ़ी से दस-बारह किलोमीरटर दूर निकल आई थी। अचानक ही रौली को ब्रेक मारनी पड़ी। सामने सड़क पर एक कालीन किसी पेड़ के तने की तरह रास्ता रोके पड़ा था। यूं लगता था जैसे यह गोल-गोल लिपटा हाअ कालीन किसी टैन्ट हाउस के ट्रक से लुढ़ककर सड़क पर आ रहा हो।
रौली के साथ होली भी गाड़ी से उतरकर कालीन की तरफ बढ़ा । रौली ने कालीन का निरीक्षण किया तो उसे एक तरफ से लम्बे बाल दिखाई दिये। ये बाल यकीनन किसी औरत के थे और जब रौली और होली न तेजी से कालीन को खोला तो उसमें से जो औरत निकली, उसे देखकर समीर राय की सांस रुक गयी।
वह उसकी बीवी नमीरा थी।
समीर गाड़ी से निकला और हवाल के तेज झौंके की तरह कालीन के पास पहुंचा और घुटनों के बल बैठ गया। उसने झुककर नमीरा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया। नमीरा के बाल अब उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे। यूं लगता था, जैसे सिरिंगज के जरिये उसके बदन से पूरा खून निकाल लिया गया हो। उसका लिबास सही हालत में था। बस, गले मे दुपट्टा मौजूद नहीं था।
समीर राय ने उसकी नब्ज देखी....सांस चेक की..दिल की धड़कन महसूस की....कहीं कुछ न था।
नमीरा जाने कब की इस दुनिया से कूच कर चुकी थी।
समीरा राय को नमीरा का आखिरी पत्र याद आया। हाय, वह किनती तन्हा, कितनी अकेली थी। उसने उसके अकेलेपन का कोई ख्याल न किया। कितना निर्दयी रहा हवह अपनी नमीरा के प्रति। जोन वह किन हालात से गुजरी....जाने उस पर क्या बीत गई?
नमीरा के लिखे वे शब्द जैसे बिच्छू बनकर समीर को डसने लगे।
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
उसने नमीर के चेहरे से बालों की लटें हटाई और अपलक उसका चेहरा निहारने लगा। उसकी आंखें डबडबा आई थीं। रौली और होली उसके पीछे हाथ बांधे खड़े थे।
नमीरा का चेहरा देखते-देखते रोशन राय के दिन में टीस-सी उठी...पीड़ा की एक लहर सचूचे बदन की तड़पा गई ओर उसने बेअख्तियार ही नमीरा का चेहरा अपने सीने से लगा लिया। धैये-धीरज जाता रहा.....संयम के तमाम बन्द उसके दुख के रेले में बह गये।
वह फूट-फूट कर रो दिया।
तब रौली हिम्मत करके आगे बढ़ा। उसने समीर राय के कन्धे पर धीरे से हाथ रखा व होले से बोला-"उठे मालिक! हवेली चलें....।"
समीर ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। वह नमीरा की लाश को सीने से लगाए चीख-चीख कर रोता रहा। रौली ने अब उसके दोनों कन्धों पर हाथ रखकर धीरे से दबाया और दोबारा कहा-"मालिक, हवेली चलें.... "
और अब एकाएक जैसे समीर को होश आया। उसने अपनी हिचकियों पर काबू पाते हुए जैसे-तैसे कहा-"नहीं, रौली! अब मैं हवेली नहीं जाऊंगा....मैं हवेली छोड़ आया हूं।"
"लेकिन मालिक ऐसा हालत में आप कहां जाएंगे...?" रौली बोला-"यह सब बड़े मालिक को बताना जरूरी है।"
"हां, तो बात देना । उन्हें बता देना कि मैंने अपनी बीवी की लाश वसूल कर ली है। अब मैं उसे अपने साथ लेकर जा रहा हूं...।" समीर की आंखों के आंसू अब रोष में बदलने लगे थे। उसेन नमीरा को दोबारा कालीन पर लिटा दिया और एक झटके से खड़ा हो गया।
खड़ा हुआ तो उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। उसके कदम डगमगाने लगे, लेकिन वह कदम जमाये खड़ा रहा।
"मालिक ऐसा न करें....हमरे साथ हवेली चलें.....।" रौली ने हाथ जोड़ विनती की।
"तुम मुझे अभी कहां ले जा रहे थे...?" समीर राय ने खोये-खोये अन्दाज में पूछा।
"मालिक...बम्बई....।" रौली ने जवाब दिया।
.
"किसके हुक्म पर.?" समीर ने फिर पूछा।
"बड़े मालिक के हुक्म पर....।" उसने जवाब दिया।
"तो फिर अब क्या हुआ....उनके हुक्म पर बम्बई चला। मैं किसी कीमत पर हवेली नहीं जाऊंगा। यह मेरी आखिरी फैसला है..."
"और मालिका....मालकिन...?" रौली न डरते-डरते पूछा-"उन्हें हवेली ले जाऊं..?"
___ "वह मेरी बीवी है, उसका हवेली से क्या नाता? हवेली वालों ने ही तो उसे इस हाल में पहुंचाया है।" समीर ने नमीरा के करीब बैठते हुए कहा।
रौली ने होली को और होली ने रौली को देखा। उनकी समझ में नहीं आया कि क्या करें? समीर राय अपना फैसल नहीं बदलने वाला था...इसका अहसास उन्हें था, लेकिन रोशन राय को जब इन हालात का पता लगेगा तो वह जोन इन दोनों के साथ क्या बर्ताव करे? यह एक ऐसी सूरतेहाल थी, जिसकी तो शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कालीन में लिपटी लाश आखिर यहां बीच सड़क पर किसने ला रखी थी? यह महज एक संयोज था या किसी प्लानिंग के तहत नमीरा की लाश को समीर राय के रास्ते में रख दिया गया था?
और फिर यह लाश रखी किसने? कौन था वह शख्स?
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नमीरा का चेहरा देखते-देखते रोशन राय के दिन में टीस-सी उठी...पीड़ा की एक लहर सचूचे बदन की तड़पा गई ओर उसने बेअख्तियार ही नमीरा का चेहरा अपने सीने से लगा लिया। धैये-धीरज जाता रहा.....संयम के तमाम बन्द उसके दुख के रेले में बह गये।
वह फूट-फूट कर रो दिया।
तब रौली हिम्मत करके आगे बढ़ा। उसने समीर राय के कन्धे पर धीरे से हाथ रखा व होले से बोला-"उठे मालिक! हवेली चलें....।"
समीर ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। वह नमीरा की लाश को सीने से लगाए चीख-चीख कर रोता रहा। रौली ने अब उसके दोनों कन्धों पर हाथ रखकर धीरे से दबाया और दोबारा कहा-"मालिक, हवेली चलें.... "
और अब एकाएक जैसे समीर को होश आया। उसने अपनी हिचकियों पर काबू पाते हुए जैसे-तैसे कहा-"नहीं, रौली! अब मैं हवेली नहीं जाऊंगा....मैं हवेली छोड़ आया हूं।"
"लेकिन मालिक ऐसा हालत में आप कहां जाएंगे...?" रौली बोला-"यह सब बड़े मालिक को बताना जरूरी है।"
"हां, तो बात देना । उन्हें बता देना कि मैंने अपनी बीवी की लाश वसूल कर ली है। अब मैं उसे अपने साथ लेकर जा रहा हूं...।" समीर की आंखों के आंसू अब रोष में बदलने लगे थे। उसेन नमीरा को दोबारा कालीन पर लिटा दिया और एक झटके से खड़ा हो गया।
खड़ा हुआ तो उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। उसके कदम डगमगाने लगे, लेकिन वह कदम जमाये खड़ा रहा।
"मालिक ऐसा न करें....हमरे साथ हवेली चलें.....।" रौली ने हाथ जोड़ विनती की।
"तुम मुझे अभी कहां ले जा रहे थे...?" समीर राय ने खोये-खोये अन्दाज में पूछा।
"मालिक...बम्बई....।" रौली ने जवाब दिया।
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"किसके हुक्म पर.?" समीर ने फिर पूछा।
"बड़े मालिक के हुक्म पर....।" उसने जवाब दिया।
"तो फिर अब क्या हुआ....उनके हुक्म पर बम्बई चला। मैं किसी कीमत पर हवेली नहीं जाऊंगा। यह मेरी आखिरी फैसला है..."
"और मालिका....मालकिन...?" रौली न डरते-डरते पूछा-"उन्हें हवेली ले जाऊं..?"
___ "वह मेरी बीवी है, उसका हवेली से क्या नाता? हवेली वालों ने ही तो उसे इस हाल में पहुंचाया है।" समीर ने नमीरा के करीब बैठते हुए कहा।
रौली ने होली को और होली ने रौली को देखा। उनकी समझ में नहीं आया कि क्या करें? समीर राय अपना फैसल नहीं बदलने वाला था...इसका अहसास उन्हें था, लेकिन रोशन राय को जब इन हालात का पता लगेगा तो वह जोन इन दोनों के साथ क्या बर्ताव करे? यह एक ऐसी सूरतेहाल थी, जिसकी तो शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कालीन में लिपटी लाश आखिर यहां बीच सड़क पर किसने ला रखी थी? यह महज एक संयोज था या किसी प्लानिंग के तहत नमीरा की लाश को समीर राय के रास्ते में रख दिया गया था?
और फिर यह लाश रखी किसने? कौन था वह शख्स?
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
वह एक अनूठी रात थी....।
आकाश के माथे पर चांद किसी दुल्हन के टीके की तरह चमक रहा था। पूरे चांद की रात थी। रेत के समुद्र पर चांदनी किसी चादर की तरह फैली हुई थी, फिर भी यह एक भयावह होलनाक रात थी।
ऐसी उजली-रोशन रात और ऐसी भयावह..?
जब दिलों पर बहशत हो। अगले पल की खबर ने हो कि क्या होने वाला है तो चांदनी क्या करेगी? चांद का सौन्दर्य कौन देखेगा? बाहर का मौसम तो उसी वक्त अच्छा लगता है....जब इन्सान के भीतर का मौसम महका हुआ हो। उसके मन-मस्तिष्क में सुकून हो..... ।
दूर क्षितिज तक फैल रेगिस्तान...किसी मोटे कालीन की तरह बिछी रेत। हौले-हौले बहमी हुई ठण्डी हवा। किसी हसी मनमोहक चेहरे की तरह चमकता हुआ उज्जवल चांद, लेकिन मंत्र-मुग्ध कर देने वाली रात से सम्मोहित होने वाला यहां कोई नहीं था।
नमीरा थी.....लेकिन उसे अपना होश नहीं था।
उस पर जो जुल्म हुआ था, उस पर वह हैरतजदा थी। गुमसुम थी। यह अचानक क्या से क्या हो गयाथा। उसकी एक दिन की बच्ची को उससे छीन लिया गया था और उसे एक तेज रफ्तार ऊंट पर डालकर रेगिस्तान में अकेला छोड़ दिया गया था। उस नन्हीं-सी जान से क्या अपराध हो गया था।
खुद उसे भी यही सजा दी गई थी।
ऊंट तेजी से भागा जा रहा था और उसे अपने आपको सम्भालना मुश्किल हो रहा था। उसकी अपनी हाली ठीक नहीं थी। आज ही तो उसने एक बच्ची को जन्म दिया था । अत्यधिक कमजोरी थी...ऐसी औरत का तो बहुत ख्याल रखा जाता है. लेकिन रोशन राय ने उस पर जुल्म की इन्तहा कर दी थी। बच्ची तो उससे छीनी ही थी.....उसे भी हवेली से निकाल बाहर किया था।
आखिर उसका क्या दोष था?
दोष तो था। वह एक गरीब की बेटी थी। हवेली के इकलौते वारिस से शादी की थी और अब उसने एक लड़की को जन्म दे दिया था। अपराध-ही-अपराध थे....कसूर-ही-कसूर थे उसके । प्रसव पीड़ा सु गुजरी थी वह। अब ऊंट की तेज रफ्तारी ने उसे और भी निढाल कर दिया था। उसकी आंखें धुंधलाई जा रही थीं। दिमाग पर गुब्बार-सा छा रहा था। यही महसूस हो रहा था उसे जैसे वो रेत के अन्दर धंसी जा रही हो। ऊंटट ककी दुम से बंधी घन्टी की टन टन धीरे-धीरे मद्धिम पड़ती जा रही थी।
फिर कुछ देर बाद उसे होश न रहा कि वह कहां है और किस हाल में है।
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आकाश के माथे पर चांद किसी दुल्हन के टीके की तरह चमक रहा था। पूरे चांद की रात थी। रेत के समुद्र पर चांदनी किसी चादर की तरह फैली हुई थी, फिर भी यह एक भयावह होलनाक रात थी।
ऐसी उजली-रोशन रात और ऐसी भयावह..?
जब दिलों पर बहशत हो। अगले पल की खबर ने हो कि क्या होने वाला है तो चांदनी क्या करेगी? चांद का सौन्दर्य कौन देखेगा? बाहर का मौसम तो उसी वक्त अच्छा लगता है....जब इन्सान के भीतर का मौसम महका हुआ हो। उसके मन-मस्तिष्क में सुकून हो..... ।
दूर क्षितिज तक फैल रेगिस्तान...किसी मोटे कालीन की तरह बिछी रेत। हौले-हौले बहमी हुई ठण्डी हवा। किसी हसी मनमोहक चेहरे की तरह चमकता हुआ उज्जवल चांद, लेकिन मंत्र-मुग्ध कर देने वाली रात से सम्मोहित होने वाला यहां कोई नहीं था।
नमीरा थी.....लेकिन उसे अपना होश नहीं था।
उस पर जो जुल्म हुआ था, उस पर वह हैरतजदा थी। गुमसुम थी। यह अचानक क्या से क्या हो गयाथा। उसकी एक दिन की बच्ची को उससे छीन लिया गया था और उसे एक तेज रफ्तार ऊंट पर डालकर रेगिस्तान में अकेला छोड़ दिया गया था। उस नन्हीं-सी जान से क्या अपराध हो गया था।
खुद उसे भी यही सजा दी गई थी।
ऊंट तेजी से भागा जा रहा था और उसे अपने आपको सम्भालना मुश्किल हो रहा था। उसकी अपनी हाली ठीक नहीं थी। आज ही तो उसने एक बच्ची को जन्म दिया था । अत्यधिक कमजोरी थी...ऐसी औरत का तो बहुत ख्याल रखा जाता है. लेकिन रोशन राय ने उस पर जुल्म की इन्तहा कर दी थी। बच्ची तो उससे छीनी ही थी.....उसे भी हवेली से निकाल बाहर किया था।
आखिर उसका क्या दोष था?
दोष तो था। वह एक गरीब की बेटी थी। हवेली के इकलौते वारिस से शादी की थी और अब उसने एक लड़की को जन्म दे दिया था। अपराध-ही-अपराध थे....कसूर-ही-कसूर थे उसके । प्रसव पीड़ा सु गुजरी थी वह। अब ऊंट की तेज रफ्तारी ने उसे और भी निढाल कर दिया था। उसकी आंखें धुंधलाई जा रही थीं। दिमाग पर गुब्बार-सा छा रहा था। यही महसूस हो रहा था उसे जैसे वो रेत के अन्दर धंसी जा रही हो। ऊंटट ककी दुम से बंधी घन्टी की टन टन धीरे-धीरे मद्धिम पड़ती जा रही थी।
फिर कुछ देर बाद उसे होश न रहा कि वह कहां है और किस हाल में है।
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
इसी रात की सुबह!
सुबह का उलाला फैलने लगा था। कंगनपुर में जिन्दगी अंगड़ाई ले रही थी। हाकम अली अपेन कमरे से निकल अपने जानवारों को चारा डालने के लिए बाड़े की तरफ बढ़ा। वह जब 'बाड़े के दरवाजे पर पहुंचा तो उसने एक अजीब मंजर देखा। पहले तो उसे यकीन ही नहीं आया। अपनी नजर का धोखा महसूस हुआ, लेकिन वह नजर का धोखा नहीं था।
वह उसी का ऊंट ही था.... जो बाड़े के दरवाजे पर बैठा ऊंची गर्दन किये जुगाली किए जा रहा था। उसकी पीठ पर काठी बंधी हुई थी उस काठी में एक औरत बेसुध-सी पड़ी थी। इस अजीब नजारे ने उसे दहलाकर रख दिया। वह तेजी से अपने ऊंट की तरफ बढ़ा।
वह एक खूबसूरत औरत थी, जिन्दा थी, मगर बेहोश थी।
हाकम अली उस औरत को ऊंट सहित अपेन घर ले आया। घर की औरतों ने उसे औरत को पूरी सावधानी से ऊंट से उतारा और सहन में बिछी एक चारपाई पर लिटा दिया।
हाकम अली की मां ने उसे औरत का अच्छी तरह मुआयना किया। वह औरत किसी अच्छे घर की लगती थी। पहली समस्या उसे होश में लाने की थी। हाकम अली की मां ने उसके मुंह पर धीरे-धीरे पानी के छींटे ङ्केमारे....उसके अलव सहलाये। कुछ देर बाद जाकर औरत के निर्जीव हरकत हुई। उसने धीरे-से आखें खोल दी।
उसने अपने सामने देहात की एक बूढ़ी औरत को पाया....जो बड़धी चिन्ता से उसकी तरफ देख रही थी। उसे आंखें खोलते देख, बूढी औरत के चेहरे के भाव तेजी से बदले। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा।
___ "लेटी रहो....अभी उठने की कोशिश न करो। मैं तुम्हारे लिए दूध लाती हूं।" वह मुहब्बत से बोली।
___ "अम्मा, तुम बैठो..मैं लाती हूं दूध....." हाकम अली का बीवी चांद ने कहा।
"अच्छा ठीक है। जरा जल्दी ला...।" और फिर वह बूढ़ी हाकम अली की मां, उस औरत से मुखातिब हुई-"तुम कौन हो बेटी?"
"मेरा नाम नमीरा है...मांजी....।" वह नमीरा थी...उसने अपनी कजोर आवाज में जवाब दिया।
हाकम अली की मां ने जब महसूस किया कि नमीरा कमजोरी की वजह से बोलने में दिक्कत महसूस कर रही है तो उसने उससे और कुछ न पूछा।
नमीरा को गर्म-गर्म दूध पिलाया। कुछ देर बाद मक्की की रोटी, मक्खन और गुड़ का नाश्ता कराया। नमीरा भूखी थी। पेट में कुछ पड़ा तो उसे सुकून मिला। उसने अपनी आंखें पूरी तरह खोल दी और इस घर को नजरें घुमाकर देखा।
वह एक छप्पर तले चारपाई पर लेटी हुई थी। उस घर में तीन औरतें थीं....एक हाकम की मां, जो उसकी सेवा करने में सबसे आगे थी..दूसरी हाकम अली की बीवी चांद, जो अपनी सास की मदद कर रही थी..और तीसरी हाकम अली की छोटी बहन.... कोई सत्रह-अठारह बरस की...वो दूर खड़ी बस नमीरा को देखे जा रही थी।
"मां जी, मैं कहां हूं...?" नमीरा ने बुढ़िया से पूछा।
"यह कंगनपूर है बेटा! सरहदी इलाका । लेकिन तुम कहां से आई हो...?" अम्मा ने पूछा।
"अब मैं क्या बताऊं कि मैं कहो से आई हूं..?" नमीरा दुविधा का शिकार थी।
अम्मा मुस्कुराकरक बोली-"अरी बताएगी नहीं तो हमें पता कैसे पड़ेगा कि तुम कहां की हो?"
"मैं रोशनगढ़ी की हूं...।" नमीरा ने सच बोला।
"तू कहां जा रही थी....?"
__"कहीं नहीं, अम्मा.....बस किस्मत जहां ले आई, वहां आ गई....।" नमीरा ने भीगी आंखों के साथ जवाब दिया।
"आखिर कुछ पात तो पड़े कि इस नाजुक हालत में तू घर से क्यों निकली..?"
इस सवाल के जवाब में नमीरा ने कुछ छिपाना ठीक नहीं समझा। जो उस पर गुजरी थी... सक कह सुनाई।
हाकम अली की मां उसकी कहानी सुनकर हैरान रह गई। यह सन्देह तो पहले ही था कि वह किसी बड़े घर की औरत है। उसका अन्दाजा सही था। नमीरा हवेली से आई थी और रोशनगढ़ी के मशहूर जागीरदार रोशन राय की बहू थी।
उसने नमीरा की दुखभरी दास्तान हाकम अली को कह सुनाई। वह भी नमीरा की आपबीती सुनकर स्तब्ध रह गया।
हाकम बली ने कुछ सोचा, फैसला किया और फिर अपनी मां को नमीरा का खास ख्याल रखने की हिदायत दे खुद राजा सलीम की हवेली पहुंच गया। नमीरा के बारे में उसे बताना जरूरी समझा था हाकम अली ने।
सुबह का उलाला फैलने लगा था। कंगनपुर में जिन्दगी अंगड़ाई ले रही थी। हाकम अली अपेन कमरे से निकल अपने जानवारों को चारा डालने के लिए बाड़े की तरफ बढ़ा। वह जब 'बाड़े के दरवाजे पर पहुंचा तो उसने एक अजीब मंजर देखा। पहले तो उसे यकीन ही नहीं आया। अपनी नजर का धोखा महसूस हुआ, लेकिन वह नजर का धोखा नहीं था।
वह उसी का ऊंट ही था.... जो बाड़े के दरवाजे पर बैठा ऊंची गर्दन किये जुगाली किए जा रहा था। उसकी पीठ पर काठी बंधी हुई थी उस काठी में एक औरत बेसुध-सी पड़ी थी। इस अजीब नजारे ने उसे दहलाकर रख दिया। वह तेजी से अपने ऊंट की तरफ बढ़ा।
वह एक खूबसूरत औरत थी, जिन्दा थी, मगर बेहोश थी।
हाकम अली उस औरत को ऊंट सहित अपेन घर ले आया। घर की औरतों ने उसे औरत को पूरी सावधानी से ऊंट से उतारा और सहन में बिछी एक चारपाई पर लिटा दिया।
हाकम अली की मां ने उसे औरत का अच्छी तरह मुआयना किया। वह औरत किसी अच्छे घर की लगती थी। पहली समस्या उसे होश में लाने की थी। हाकम अली की मां ने उसके मुंह पर धीरे-धीरे पानी के छींटे ङ्केमारे....उसके अलव सहलाये। कुछ देर बाद जाकर औरत के निर्जीव हरकत हुई। उसने धीरे-से आखें खोल दी।
उसने अपने सामने देहात की एक बूढ़ी औरत को पाया....जो बड़धी चिन्ता से उसकी तरफ देख रही थी। उसे आंखें खोलते देख, बूढी औरत के चेहरे के भाव तेजी से बदले। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा।
___ "लेटी रहो....अभी उठने की कोशिश न करो। मैं तुम्हारे लिए दूध लाती हूं।" वह मुहब्बत से बोली।
___ "अम्मा, तुम बैठो..मैं लाती हूं दूध....." हाकम अली का बीवी चांद ने कहा।
"अच्छा ठीक है। जरा जल्दी ला...।" और फिर वह बूढ़ी हाकम अली की मां, उस औरत से मुखातिब हुई-"तुम कौन हो बेटी?"
"मेरा नाम नमीरा है...मांजी....।" वह नमीरा थी...उसने अपनी कजोर आवाज में जवाब दिया।
हाकम अली की मां ने जब महसूस किया कि नमीरा कमजोरी की वजह से बोलने में दिक्कत महसूस कर रही है तो उसने उससे और कुछ न पूछा।
नमीरा को गर्म-गर्म दूध पिलाया। कुछ देर बाद मक्की की रोटी, मक्खन और गुड़ का नाश्ता कराया। नमीरा भूखी थी। पेट में कुछ पड़ा तो उसे सुकून मिला। उसने अपनी आंखें पूरी तरह खोल दी और इस घर को नजरें घुमाकर देखा।
वह एक छप्पर तले चारपाई पर लेटी हुई थी। उस घर में तीन औरतें थीं....एक हाकम की मां, जो उसकी सेवा करने में सबसे आगे थी..दूसरी हाकम अली की बीवी चांद, जो अपनी सास की मदद कर रही थी..और तीसरी हाकम अली की छोटी बहन.... कोई सत्रह-अठारह बरस की...वो दूर खड़ी बस नमीरा को देखे जा रही थी।
"मां जी, मैं कहां हूं...?" नमीरा ने बुढ़िया से पूछा।
"यह कंगनपूर है बेटा! सरहदी इलाका । लेकिन तुम कहां से आई हो...?" अम्मा ने पूछा।
"अब मैं क्या बताऊं कि मैं कहो से आई हूं..?" नमीरा दुविधा का शिकार थी।
अम्मा मुस्कुराकरक बोली-"अरी बताएगी नहीं तो हमें पता कैसे पड़ेगा कि तुम कहां की हो?"
"मैं रोशनगढ़ी की हूं...।" नमीरा ने सच बोला।
"तू कहां जा रही थी....?"
__"कहीं नहीं, अम्मा.....बस किस्मत जहां ले आई, वहां आ गई....।" नमीरा ने भीगी आंखों के साथ जवाब दिया।
"आखिर कुछ पात तो पड़े कि इस नाजुक हालत में तू घर से क्यों निकली..?"
इस सवाल के जवाब में नमीरा ने कुछ छिपाना ठीक नहीं समझा। जो उस पर गुजरी थी... सक कह सुनाई।
हाकम अली की मां उसकी कहानी सुनकर हैरान रह गई। यह सन्देह तो पहले ही था कि वह किसी बड़े घर की औरत है। उसका अन्दाजा सही था। नमीरा हवेली से आई थी और रोशनगढ़ी के मशहूर जागीरदार रोशन राय की बहू थी।
उसने नमीरा की दुखभरी दास्तान हाकम अली को कह सुनाई। वह भी नमीरा की आपबीती सुनकर स्तब्ध रह गया।
हाकम बली ने कुछ सोचा, फैसला किया और फिर अपनी मां को नमीरा का खास ख्याल रखने की हिदायत दे खुद राजा सलीम की हवेली पहुंच गया। नमीरा के बारे में उसे बताना जरूरी समझा था हाकम अली ने।