Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post Reply
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

अनहानी ( एक प्रेत गाथा )


वह एक बड़ी विचित्र रात थी।

आकाश के माथे पर चांद किसी दुल्हन के टीकें की तरह चमक रहा था। पूरे चांद की रात थी। रेत के समुद्र पर चांदनी किसी चादर की तरह बिछी हुई थी।

फिर भी यह एक भयावह रात थी।

ऐसी मनमोहक रात और ऐसी भयावह?

जब दिलों पर बहशत बरसती हो। अगले पल की खबर न हो कि क्या होने वाला है तो चांदनी क्या करेगी? चांद का यह आकर्षण, यह सौन्दर्य कौन देखेगा? बाहर के नजारे और बाहर का मौसम उसी वक्त ही अच्छा लगता है, जब आदमी के अन्दर का मौसम अच्छा हो। मन में उमंग हो, खुशी हो, सुकून हो।

दूर क्षितिज तक फैला रेगिस्तान..किसी मोटे कालीन की तरह जमीन पर बिछी रेत... धीरे-धीरे बहती ठण्डी हवा....और किसी सुन्दरी के चेहरे की तरह चमकता हुआ...खिला-खिला चांद। सब कुद ही ऐसा था कि मन

खिल-खिल जाए, लेकिन इस आकर्षक रात से आनन्दित होने वाला यहां कोई न था।
जो थे....उनकी आंखों में निर्ममता भरी हुई थी, या आंसू या फिर नींद।

किसी की आंख में आंसू थे तो कोई सो रहा था। जिसकी आंखें बन्द थी...उसकी किस्मत के जुगनू उसकी जिन्दगी में, अंधेरा फैलाने वाले थे।

उस मासूम का क्या दोष था? उस मासूम का कोई दोष हो भी कैसे सकता था? उसका तो अभी नाम तक नहीं रखा गया था। इस दुनिया में आये उसे हुआ ही कितना वक्त था।

एक दिन... बस, एक दिन।

और इस एक दिन ने उसे यह दिन दिखा दिया था कि उसका पालना ऊंट पर कसा जा रहा था। कुछी ही देर की बात थी कि उसक मासूम को इस पालने में डालकर ऊंट हो हांक दिया जाना था...इस अनन्त रेगिस्तान में।

यहां दो ऊंट थें
दूसरा ऊंट उस मजलूम के लिए था, जिसकी आंखें आंसुओं आंखें आंसुओं से भरी हुई थी। उस ममता की मारी का रोआ-रोआ चीख रहा था.... मगर होंठ भिंचे हुए थे। ऐसी वेआवाज चीख को कौन सुनता ? यहां तो चीखने वालों को कोई नहीं सुनात। दूसरे ऊंट पर काठी बांधी जा रही थी..... इस काठी पर इस आंसू भरी आंखों वाली मजलूम औरत को बैठाकर इस ऊंट को भी रेगिस्तान में हाक दिया जाना था।

यहां तीन घोड़े भी थे। दो घोड़ों की पीठ खाली थी। इनके सवार इन ऊंटो को तैयार करने में लगे हुए थे, जबकि एक घोड़े की पीठ पर घुड़सवार मौजूद था और इस घुड़सवार का अंदाज ही निराला था।

वह पचास-पचपन साल का एक तुन्दुरुस्त मजबूत बदल का शख्स था। उसका लिबास हुक्मरानों जैसा था, वह घोड़े की पीठ पर तनी कमर के साथ बैठा था। उसकी गोल-गोल आंखें किसी उल्लू की आंखों की तरह चमक रही थीं। वह अपने बायें हाथ से अपनी मूंछों को बल दे रहा था। वह एक नशे से मदमस्त शख्स था। उसे अपनी दौलत का नशा था। जैसे कोई विजेता था, जिसे अपनी ताकत का घमण्ड था।

ऐसे निर्गम लोग कब किसी की आंख देखते हैं। उन्हें अपनी ख्वाहिशों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता। ख्वाहिशों भरी आंखों से कब किसके आंसू नजर आ सकते

यह जमींदार रोशन राय था। वह नाम का ही रोशन था, उसके अन्दर अन्धेरा-ही-अन्धेरा था। उसने अपनी मूंछ छू कर हाथ सीधा किया और कर्कश आवाज में दहाड़ा
"जल्दी करो!"

उसकी कर्कश आवाज सुनकर वे दोनों घुड़सवार, जो उसके वफादार थे.और तेजी से अपना काम निपटाने लगे। पालने को जल्दी-जल्दी ऊंट की पीठ पर बांध दिया गया और ऊंट की दुम में एक बड़ी घन्टी बांध दी गई।

दूसरा ऊंट भी तैयार था। उस पर काठी बांधी जा चुकी थी और एक बड़ी घन्टी दुम से लटकाई जा चुकी थी। अपना काम निपटा वे दोनों घुड़सवार रोशन राय के सामने आदर से आ खड़े हुए और सीने पर हाथ बांधकर, सिर नवां कर बारी-बारी बोले
"सरकार! मेरा ऊंट तैयार है।"

"मालिक ! मेरा ऊंट भी तैयार है।"

"जाओ, फिर रवाना हो जाओ.... ।” रोशन राय की कर्कश आवाज रात के सन्नाटै में गूंजी।

वे दोनों वापिस पलटे। सामने खड़ी हुई अबला, जो गम से निढाल थी और आने वाले वक्त की कल्पना से

ही जिसका दिल कांप रहा था। आंखों में आंसू थे। जिसकी दुनिया अन्धेरी थी। इस औरत के सीने से लगा, उसका जिगर का टुकड़ा, जो आने वाले वक्त से बेखबर मीठी-मीठी नींद के मजे ले रहा था उसे उस वफादार ने एक झटके से छीन लिया और उसे ऊंट की तरफ से चला।
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

ममता तड़प उठी। असहाय-अबला ने हाथ बढ़ाकर उस वफादार से अपना बच्चा लेना चाहा, लेकिन दूसरे गुलाम ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींचते हए दूसरे ऊंट की तरफ ले चला।

और अब इस औतर के जल के तमाम बन्द टूट गये...वह विक्षिप्त अंदाज में चीख उठी। उसकी दुख में डूबी हुई आवाज रेगिस्तान में गूंज उठी। चांदनी में नहाये रेगिस्तान की दिल चीर गई।

"रोशन राय तूने मुझसे मेरा बच्चा छीना है। मुझे बरबार किया है। याद रखना, एक दिन तम भी बर्बाद हो जायेगा। तेरा बच्चा भी कोई तुझसे छीनकर ले जायेगा। यह मेरी बद्दुआ है....एक मां की बददुआ....."

उसके दुख भरे क्रन्दन के जवाब में रोशन राय का एक भयानक कहकहा गूंजा।

मां की गोद छिनते ही उस नन्हीं बच्ची की आंख खुल गई और खौफजदा होकर एक हृदय-विदारक चीख मारी ओर फिर विलख-बिलख कर रोने लगी। रोशन राय के वफादार ने उस मासूम के रोने की कोई परवाह नहीं की। उसने बच्ची को ऊंट पर कसे पालने में डाला और ऊंट की दुम पकड़कर उसे हिला दिया। ऊंट हड़बड़ज्ञकर उठ गया।

तब वह वफादार वापिस पलटा और तेजी से निकट खड़े अपने घोड़े पर सवार हुआ और ऊंट के निकट आकर आकर उसने अपने मुंह से एक अजीब-सी आवाज निकाली और उसकी दुम एक बार फिर जोर से हिलाई।

वह ऊंट एक दिशा में दिशा में तेजी से हिलौरे लेता भाग निकला।

बच्ची के रोने की आवाज...ऊंट की दुम में बंधी घन्टी की टन-टन..चांदनी रात और रेत का समुद्र । एक अजीब भयावह मंजर था।

वह औरत अपनी नन्ही-सी बच्ची से बिछुड़ने के इस हृदयग्राही नजारे की ताब न ला सकी। वह लड़खड़ाकर रेत पर गिर पड़ी, लेकिन वह नौकर जिसे उसे हाथ पकड़कर दूसरे ऊंट की तरफ ले जाना था... उसने औरत का हाथ न छोड़ा और उसे रेत पर घसीटता हुआ ऊंट की तरफ ले गया।

और फिर रोश्न राय के इस वफादार ने औरत को अपने हाथों पर उठाकर काठी में डाला... आवाज निकाली और ऊंट को खड़े होने का इशारा किया, फिर अपने घोड़े पर सवार होकर इस ऊंट को विपरीत दिशा में दौड़ा दिया।

अब रेगिस्तान की निस्तब्धता में दो घन्टियों की आवाजों गूंज रही थी और ये आवाजें भिन्न व विपरीत दिशाओं से आ रही थीं। फिर धीरे-धीरे ये आवाजें मन्द होती चली गईं। न वे ऊंट रहे और ना उसका पीछे दौड़ते हुए घुड़सवार... दोनों दिशाओं में धुन्ध रह गई।

वीरान रेगिस्तान में अब अकेला जमींदार रोशन राय रह गया था। चांद उसकी पीठ की तरफ था, इसलिए उसके चेहरे पर साया था... चेहरे पर स्याही मली नजर आ रही थी। ऊंटों व घुड़सवारों के नजरों से ओझल हो जाने के बावजूद वह कुछ देर वहां खड़ा रहा। आंखें फाड़-फाड़ कर बारी-बारी दोनों दिशाओं में देखता रहा। एक क्षण के लिए उसे अपनी इस संगदिली व निर्ममता पर मलाल हुआ। बस एक क्षण के लिए... फिर उसने अपने आपको सम्भाल लिया.... और अब उसके होठों पर एक क्रूर मुस्कान नाच रही थी।

उसने अपनी मूंछों को एक खास अंदाज से मरोड़ा और फिर घोड़े को ऐड देकर उसका मुंह मोड़ा और फिर देखते -ही-देखते उसका घोड़ा हवा से बातें करने लगा। पीछे उड़ी हुई रेत रह गई जो चांद के उज्जवल चमकते चेहरे को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

रेत का समुद्र पार करके जमींदार रोशन राय खुश-खुश सा अपनी हवेली के दरवाजे पर पहुंचा।

फिर जैसे अचानक उसे कोई ख्याल आया हो। उसने फौरन अपने घोड़े का रुख फेरा व धीरे-धीरे हवेली की दीवार के साथ आगे बढ़ने लगा। हवेली के मालिक को वापिस पलटते देखकर हवेली के फाटक पर तैना दोनों निगरानी... घोड़े के पीछे दौड़ने लगे।

जमींदार रोशन राय, घोड़ा दौड़ाते हुए, दीवार के साथ-साथ चलता हवेली के पिछवाड़े पहुंच गा। यहां उसने घोड़े पर बैठे-बैठे ही, आदतन अपनी मूंछ को बल दिया व बड़े गर्वित अन्दाज में अपने पूर्वजों के जाती कब्रिस्तान की तरफ देखा। कब्रिस्तान का गेट खुला हुआ था। वह घोड़ा दौड़ता हुआ गेट में दाखिल हो गया।

उसने घोड़ा रोका और एक नजर कब्रिस्तान में चारों तरफ डाली। कब्रिस्तान में एक हौलनाक सन्नाटा व्याप्त था। इस कब्रिस्तान में पचास-साठ करें बनी हुई थीं

और एक विस्तृत क्षेत्र खाली पड़ा था।

उसे कुछ फासले पर एक पैट्रोमेक्स लैम्प की रोशनी नजर आई। वह घोड़े को धीरे-धीरे दौड़ते हुए उस जगह पहुंच गया।

यहां उसके तीन मुलाजिम मौजूद थे। वे रोशन राय को देखते ही आदर से खड़े हो गये, फिर उनमें से एक नौकर जो छोटे कद का व मोटा था, आगे आया और रोशन राय के सामने हाथ बांधकर और झुककर खड़ा हो गया।

__ "हां, रौली! क्या हुआ? काम ठीक से निपट गया?" रोशन राय ने पूछा। "जी, सरकार!" रौली ने अपने बायें तरफ देखते हुए जवाब दिया।

रोशन राय ने घोड़ से उतरने का कष्ट नहीं उठाया। उसने घोड़े को थोड़ा आगे बढ़या और 'काम का जायजा लिया।
उसके सामने दो ताजा करें बनी हुई थीं। एक कब्र छोटी थी और एक बड़ी।

कब्रों का जायजा लेकर उसने गर्दन हिलाई और फिर अपना घोड़ा मोड़कर धीरे-धीरे चलने लगा। रौली घोड़े के साथ-साथ चल रहा था।

"ठीक है रौली! अब तुम जाओऋ यहां एक बन्दे को छोड़ देना... वो जरा कब्रिस्तान का ख्याल रखेगा।" रोशन राय ने अपनी एक मूंछ को बल दिया।

"समझ गया सरकार..!" रौली बोला।

"बस तो फिर जा... आराम कर। मैं भी आराम करता हूं। आज तो कुछ लम्बी ही घुड़सवारी हो गई।"

"जी, सरकार!" रौली चलते-चलते रुक गया और फिर जब रोशन राय और उसके बीच फासला बढ़ गया तो वो नई बनी कब्रों की तरह पलट गया।

हवेजी के वे दोनों निगराना कब्रिस्तान के फाटक पर खड़े अभी हांफ रहे थे, जो हवेली से यहां तक रोशन राय के पीछे-पीछे दौड़ लगाते पहुंचे थे। उन्होंने अपने मालिक को लौटते हुए देखा तो सम्भलकर खड़े हो गये। रोशन राय ने उन पर एक नजर डालना भी जैसे जरूरी नहीं समझा था। वह कब्रिस्तान ने बाहर निकते ही अपने घोड़े को सरपट दौड़ाने लगा। वे दोनों फिर अपने मालिक के घोड़े के पीछे हो लिए। वे जब हवेली के फाटक तक पहुंचे....उस वक्त तक रोशन राय अपने बैडरूम में दाखित हो चुका था।

और फिर अभी उसने कपड़े बदले ही थे कि उसकी बीवी नफीसा बेगम कमरे में दाखिल हुई । उसने शंकित निगाहों से अपने पति को देखा व पूछा

"कहां चले गए थे...?"

"नफीसा को सम्भालना कोई आसान काम नहीं है। जाहं से भी आ रहा हूं, मैं कुछ करके ही आर रहा हूं। तुम्हारे बेटे की तरह नहीं हूं। मैंने अपने मां-बाप का नाम रोशन कर रखा है। एक वह हे कि रोशन राय के नाम को बट्टा लगाया हुआ है। बड़े लोगों के पूत....?" रोशन राय गुस्से में आ गया।

"पढ़ तो रहा है... और कैसे पढ़े..? एम.ए.कर रहा है मेरा बेटा । पढ़ाई के साथ उसने अगर अपना शौक पूरा करा लिया तो कौन-सा ऐसा जुर्म कर दिया। आखिरकार उसने पलटकर आना तो हवेली में ही है। तुम्हारे बाद अपनी जागीर सम्भालनी है.....।"

"बस....सम्भाल ली उसने जागी...." रोशन राय ने मुंह बनाया-"पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं, नफीसा बेगम!"

"पूत के पांव पालने में नहीं... आठ नम्बर जूत में हैं। हां, जरा सम्भलकर रहना। तुम्हारे और उसके पांव में अब कोई फर्क नहीं रहा है। कहीं किसी दिन वह तुम्हारे जूतों में पांव न डाल दे।" नफीसा बेगम अथूपूर्ण लहजे में बोली...और फिर बेअख्तियार हंस दी। हंसी में जहर घुला हुआ था।

"मुझे धमकी दे रही हो..?" रोशन राय उसे घूरने लगा।

"धमकी नहीं दे रही..सच्चाई बता रही हूं..।" नफीसा सपाट हलजे में बोली।

___"तुम मुझे बिल्कुल नहीं जानती हो...।" रोशन राय ने भी घुड़की दी।

"मैं तुम्हें जानना भी नहीं चाहती, मेरे सरताज..1" नफीसा बेगम ने शुष्क व व्यंगपूर्ण स्वर में कहा और उन्हें घूरने लगी।
Post Reply