Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Sexi Rebel
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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"हवेली से मालकिन का फोन हैं.....वह छोटे मालिक को बुला रही हैं......।" दिलदार ने कमरे से निकलते हुइ बताया ।सरवरी उसके साथ हो ली थी।ऊपर पहुंचकर दिलदार ने दरवाजे के हैंडिल को धीरे से घुमाया, लेकिन दरवाजा ने खुला।

वह अन्दर से बन्द था। फिर वो दरवाजा खटखटाने ही वाला था कि सरवरी ने उसे आवाज दी-"दिलदार, इधर आ..... |

सरवरी की आवाज में कुछ ऐसी बात थी कि वह चौंके बिना न रहा। वो उसके निकट पहुंचकर बोला-"हां, क्या हुआ ?"सरवरी उसका हाथ थामकर खामोशी से खिड़की की तरफ हुआ था। खिड़की शीशे की थी और बीच से थोड़ा-सा परदा सरका हुआ था। भीतर लाईट जल रही थी और बीच से थोड़ा-सा परदा सरका हुआ था। भीतर लाईट जल रही थी। खुले हुए परदे से समीर राय साफ नजर आ रहा था। वह गीले तौलिये से नमीरा का मुंह साफ कर रहा था।"लगता हैं, छोटे मालिक पागल हो गये है। कोई लाश का भी मुंह धुलाता हैं। "दिलदार परेशान होकर बोला-"अब क्या करूं सरबरी! दरवाजा बजाऊं.....?''"हां, बजाओं....।" सरवरी ने मशवरा दिया-'उन्हें बता दो कि मालकिन का फोन आया है।"दिलदार हिम्मत करके आगे बढ़ा और फिर दरवाजा बजाकर फौरन पीछे हट गया। उसने अपनी बीवी को भी अपने करीब कर लिया। वह भयभीत लग रहा था। इसी अन्देशे से कि दरवाजा खोल, समीर राय जाने क्या प्रतिक्रिया दिखाये।लेकिन दरवाजा बजाने को कोई असर नहीं हुआ। कुद देर की इन्तजार के बाद भी दरवाजा नहीं खुला था। दिलदार आगे बढ़ने की बजाये पीछे हट गया। उसने अब सरवरी को आगे कर दिया था। मजबूर सरवरी को दरवाजा खटखटाना पड़ा ।कुछ क्षणों बाद भीतर से खटपट की आवाज आई। दरवाजा खुला और समीर राय का चेहरा दिखा। सरवरी उसका चेहरा देखकर सिहर गई।

समीर राय के चेहरे पर दीवानगी के भाव थे......उसकी आंखे सुर्ख थी....... जैसें वह रातभर न सोया हो। बाल बिखरे हुए थे। लिबास बेतरतीब था।"सरवरी, नाश्ता ला....।'' वह सरवरी को देखते ही बोला था-"मेरी नमीरा कब से नाश्ते का इन्तजार कर रही है।

''हाय अल्लाह!" समीर राय की बात सुन सरवरी बदहवास होकर एकदम पीछे हट गई।

"छोटे मालिक....हवेली से मालकिन का फोन आया है ........वह आपकों बुला रही हैं।' दिलदार आगे बढ़कर बोला।

"अरे बेवाकूफ! मेरी बात सुन। मेरी नमीरा रात से भुखी है। उसके लिए जल्दी से नाश्ता ला । जा, जल्दी कर..... ।" समीर राय ने अपनी कही। दिलदार की बात तो उसने जैसे सुनी ही नहीं थी।

"छोटे मालिक...मैं अभी नाश्ता ले आती हूं...।' सरवरी बोल उठी-"आप तब तक मालकिन से बात कर लें।

कौन मालकिन.......?" समीर राय ने खोये-खोये अंदाज में पूछा।"

आपकी अम्मी, छोटे मालिक.....।" सरवरी ने हैरत व परेशानी से जवाब दिया-"क्या आप अपनी मां को भी भूल गये?''

''यहां से दफा हो जा सरवरी....।" समीर ने उसे घूरा-“मेरा कोई नहीं हैं। मेरी बस नमीरा हैं। जा जल्दी नाश्ता ला। वह कब से नाश्ते का इन्तजार कर रही हैं......।" इतना कह उसने धड़ाक् से दरवाजा बन्द कर दिया ।

वे दोनों हैरान-परेशान से एक दूसरे का मुंह तकने लगे। अब क्या करें...त्र"

दिलदार बोला-"मालकिन को क्या बताएं..?

"मालकिन से कुछ छिपाने की जरूरत नहीं हैं दिलदार... |उन्हें सब साफ-साफ बता दें....।"

सरवरी सीढ़ियों की तरफ बढ़ते हुइ बोली।"तो तू बात कर ले ना।

तू उन्हें समझाकर बता देगी......।"
दिलदार ने उसके साथ सीढ़ियां उतरते हुए कहा।

"ठीक हैं....चल, मैं करती हूं बात....।" सरवरी ने हिम्मत दिखाई नीचे पहुंचकर सरवरी ने कालीर पर बैठते हुए रिसीवर उठाया और नफीसा बेगम को वह सब बता दिया जो उसने देखा व सुना था ।वह सब कुछ सुनकर नफीसा बेगम के तो जैसे होश ही उड़ गये। उसका इकलौता व लाडला बेटा और उसकी यह हालत। वह अगर सचमुच पागल हो गया तो, वह तो कहीं की नहीं रहेगी। उसने फौरन अपने आपकों सम्भाला और समीर राय की विक्षिप्तता के मद्देनजर उसने सरवरी को हिदायत दी-"सरवरी देख, छोटे मालिक का ख्याल रखना। दिलदार से कहकर बंगले के गेट पर ताजा डलवा दें। कहीं छोटे मालिक बाहर न निकल जाएं। मैं अभी बड़ें मालिक के साथ निकल रही हूं। तुम दोनों हमारे पहुंचने तक छोटे मालिक का ख्याल रखो। वह जैसा कहें....कर देना।ठीक हैं....?"

"जी मालकिन ठीक हैं..... । आप बेफिक्र हो जाएं। हम वैसा ही करेंगे जैसा आपका हुक्म हैं...।'

"सरवरी का जवाब सुनकर नफीसा बेगम ने राहत महसूस की । वह जानती थी सरवरी एक सुघंड गृहस्थन हैं
और वह समीर राय को अच्छी तरह से सम्भाल लेगी। उसने रिसीवर नीचे रखा तो सामने ही बैठे हुए रोशन राय न अपनी मूंछो को ताव दिया, फिर पूछा-"क्या हुआ नफीसा.....??'

'फौरन बम्बई चलने का इन्तजाम करें। हमारे बेटे ने पूरी रात लाश के साथ गुजारी है। वह बहकी-बहकी बातें कर रहा है। कहीं वह सचमुच ही पागल न हो जाए ?" नफीसा बेगम की आवाज में कम्पन था।

"क्या कह रहा हैं.....कुछ बताओं तो.....।' रोशन राय ने पूछा।

"वह लाश का मुंह धुला रहा है। लाश के लिए नाश्ता मांग रहा है। आया, कुछ समझ में?" नफीसा बेगम ने ठंडी आह भरी

रोशन राय के चेहरे पर भी चिन्ता के भाव उभरे। वह उठ खड़ा हुआ-"यह तो बड़ी संजीदा और खतरनाक बात हैं। तुम जल्दी से तैयार हो जाओं। मैं रौली से कहता हूं, वह गाड़ी निकाले.....

''ठीक हैं......" नफीसा बेगम ने छलक आए आंसू पोंछे और तैयारी में लग गई।
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रौली ने गाड़ी बंगले के गेट के सामने रोककर पहले दो बार हॉर्न बजाया, फिर गाड़ी से उतरकर गेट की कॉलबैल भी दो-तीर बार लगातार दबाई और फिर स्टेयरिंग पर आ बैठा।दिलदार भागकर गेट तक आया। सरवरी भी बंगले से बाहर आ गई |दिलदार ने ताला खोल, गेट के दोनों पट खोल दिये। रौली गाड़ी अन्दर लेता चला गया। गाड़ी रोक उसने फुर्ती से उतरकर पिछला दरवाजा खोला । पहले रोशन राय और फिर नफीसा बेगम उतरी। दिलदार ने दोनों को सलाम किया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।वे दोनों सिर के इशारे से सलाम का जवाब देते हुए बंगले में दालिख हो गये रोशन राय ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गया। नफीसा बेगम बैडरूप में जा घुसी और बैड पर अधलेटी-सी बैठ गई। सरवरी ने फौरन मालकिन के पैर पकड़ लिये और उन्हें आहिस्ता-आहिस्ता दबाने लगी।

“समीर कहां है...?" नफीसा बेगम ने पूछा।

"छोटे मालिक ऊपर ही है। मैं उन्हें नाश्ता दे आई थी.....।" सरवरी ने बताया ।

वह अभी तक बैडरूप से निकला नहीं?" नफीसा चिन्तित दिखने लगी।

"नहीं, मालकिन!''

आओ, मेरे साथ ऊपर चलों।" नफीसा बेगम ने पैर पलंग से लटकाये। सरवरी ने जल्दी से उन्हें जूते पहनाये और पीछे हटकर खड़ी हो गई नफीसा बेगम बैडरूप से बाहर आई, राहदारी पार करके सीढ़ियां चढ़ने लगी। सरवरी उसकी पीछे ही थी।नफीसा बेगम का दिल तेजी से धड़क रहा था। ऊपर पहुंचकर उसने दो लम्बे-लम्बे सांस लिए और सरवरी को दरवाजा खटखटाने का इशारा किया ।सरवरी ने दरवाजे पर दस्तक देने के साथ आवाज भी लगाई-"छोटे मालिक....छोटे मालिक...दरवाजा खोलि...

"अन्दर से खटपट की आवाजे आई, फिर दरवाजा खुल गया। समीर राय का बदशतजदा चेहरा सामने था। नफीसा बेगम बेटे का चेहरा देखकर भौंचक्की रह गई। दिल एक टीस-सी उठी और उसने आगे बढ़कर समीर राय का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया और फिर भर्राई आवाजा में बोली-"मेरे चांद, यह तूने अपनी क्या हालत बना ली है...?"

समीर राय ने उन्हें अजनबी निगाहों से देखा और अपना चेहरा उनके हाथों से अलग कर लिया, फिर पलटा व कमरे के अन्दर चला गया। नफीसा बेगम उसके पीछे लपकी कमरे का बुरा हाल था। नमीरा की लाश बैड पर पड़ी थी और नाश्ता उसके चारों तरफ बिखरा हुआ था। समीर राय ने उसे भरपूर नाश्ता कराने की कोशिश की थी। नमीरा के मुंह पर जैम, मक्यन, ब्रेड के पीस लिपटे हुए थे। कपड़ों पर चाय बिखरी पड़ी थी।समीर राय के हाथों में बटर लगा पीस अब भी मौजूद था। वह बड़ी फिक्रमंदी से नमीरा की तरफ बढ़ा, जैसे नाश्ते में देर हो रही हो। उसने बड़े चाव से पीस नमीरा के मुंह पर रखा व बोला-"नमीरा, जल्दी से नाश्कता कर लो, प्लीज...... | ये लोग आ गये हैं। सब छीनकर ले जाएंगे तुमसे...।"

"नहीं, बेटे! तुम परेशान ने होओं। मैंने नमीरा के लिये ढेरों खाना बनवाया है। मैं उसे अपने हाथों से खिलाऊंगी। नमीरा से कोई कुछ नहीं छीनेगा बेटे!" बेटे की मनोस्थिति पर अन्दर-ही-अन्दर रोते हुए धीरज दर्शाते हुए बोली ।

" हां.....।" समीर राय का चेहरा खुशी से दम उठा-"तुम बहुत अच्छी हो। तुम बहुत अच्छी हो। तुम कौन हों?

''हाय, मेरे लाल.....!" नफीसा बेगम का कलेजा छलनी हो गया-"तू मुझे भी नहीं पहचानता। अरे, मैं तेरी मां हूं।"
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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अच्छी, तुम मेरी मां हो?" उसकी आंखों में कोई पहचान न थी-"सुना तुमने नमीरा! मेरी मां आई....।"

बेटे के अजनबी लहजे पर.....नफीसा पर दुख का पहाड़ ही तो टूट पड़ा। उसने आगे बढ़कर समीर राय को अपनी बांहों में भर लिया और रोते हुए बोली-“मैं तेरी मां हूं। तू मुझे पहचानता क्यों नहीं...?''

"पहचान तो रहा हूं। नमीरा को बता रहा हूं कि तुम मेरी मां हो। नमीरा सुनों, यह मेरी मां है। इन्हें अच्छी तरह पहचान लो..... । समीर राय के लहजे में अजनबियत अभी भी थी। वह नफीसा की तरफ देखते हुए बोला-"इसके लिए खाना लाओ...मेरी नमीरा भूखी है....।''

"हां, मैं इसके लिए बहुत-सा खाना लाई हूं. मैं तुम्हारी नमीरा को अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी। आओ, तुम नीचे चलों। चलकर खाना देख लो। क्या-क्या खायेगी तुम्हारी नमीरा.....?" नफीसा ने बड़े अपनत्व से कहा ।

"हां, यह ठीक हैं.... ।'' समीर राय ने सहमति जतलाई। वह मां की बांहों से निकलकर फिर नमीरा के पास जा खड़ा हुआ....और धीरे से बोला-"नमीरा, तुम क्या-क्या खाओगी.....मुझे बताओं.... ।' फिर वह कान लगाकर जैसे कुछ सुनने लगा...फिर उसने गर्दन हिलाई जैसे सब समझ गया हो। वह बोला था-"ठीक है नमीर । मैं सब समझ गया। मैं अभी तुम्हारी पसन्द की डिशें लाता हूं....।" उसने मां को चलने को कहा व इशारा किया। वह तो जैसे जल्दी में था। जल्दी से कमरे से निकलकर सीढ़ियां उतरने लगा ।नीचे उतरकर वह राहदारी में आकर रूक गय। खड़े होकर चारों तरफ बावलों की तरह देखने लगा। जैसे वह किसी अजनबी न नई जगह आ गया हो। नफीसा उसके पीछे-पीछे थी। वह उसके करीब आ उसका हाथ पकड़ते हुए बोली-“इधर आओ , बेटे!''समीर राय ने एक नजर उसे देखा, फिर खामोशी से उसके साथ चला दिया.....जैसे किसी अंधे को लाठी का सहारा मिल जाये ।नफीस बेगम उसे अपने साथ नीचे वाले बैडरूप में ले आई...और दरवाजा भीतर से बन्द कर दिया। तभी उसने दरवाजे के लॉक में चाबी घूमने की आवाज सुनी। ताला बन्द होने की आवाज पर उसने सुकून का सांस लिया और समीर राय को सम्बोधित करते हुए बोली-“बैठ जाओं, बेटे..... ।'"

"जी.......।'" समीर राय ने कहा व यंत्रवत्-सा बैड पर बैठ गया। मों ने बेटे का चेहरा गौर से देखा तो दिल पर आरी-सी चल गई। दो दिन में उसकी हालत क्या से क्या हो गई थी। बिखरे बाल.....सुर्ख आंखें....जर्द चेहरा....बेतरतीब लिबास । यह तो वह समीर ही नहीं था।

“बेटा...नमीरा तुम्हारी शिकायत कर रही थी...... ।' नफीसा बेगम कुछ सोचकर बोली।

मेरी शिकायत......वह क्या?" समीर राय के चेहरे की जर्दी में उदासी घुल-मिल गई।

हां, बेटा.....शिकायत तो वह करेगी ही ना। कोई बीवी अपने शौहर को इस हालत में नहीं देख सकती....... ।'

“क्यों....मु...मुझे क्या हुआ.....?" समीर राय ने अपने आप पर नजर डालते हुए कहा ।

"वह कह रही थी.....इन्होंने न मुंह-हाथ धोया हैं, ना कपड़े बदले हैं और ना ही कुछ खासा हैं......

''ओह! ठीक है। मैं बाथरूम मे जाकर मुंह-हाथ धो लेता हूं......... |''

"तुम बाथरूप मे जाओ....मैं नमीरा से तुम्हारे कपड़े मंगवाती हूं..... ।'

"ठीक हैं...।" समीर राय बड़ी सअदातमंदी से बाथरूप में चला गया ।समीर के बाथरूप में जाते ही नफीसा ने दरवाजा बजाया। बाहर से फौरन आवाज आई-"जी मालकिन......।"

"मेरा सूटकेस लाओं, जो हवेली से लाई हूं.... |"

"जी मालकिन!" सरवरी ने जवाब दिया |कुछ देर बाद दरवाजा खुला और सरबरी एक सूटकेस लिये अन्दर आई और उसे मेज पर रखकर फौरन वापिस लौट गई।दरवाजे में फिर से ताला लग गया ।नफीसा बेगम ने सूटकेस से समीर राय के कपड़े व शेविंग बॉक्स निकाला और बाथरूप का दरवाजा खटखटाया ।

समीर राय ने थोड़ा-सा दरवाजा खोलकर हाथ बाहर निकाला। नफीसा ने कपड़े और शेविंग बॉक्स उसे थमाते हुए कहा-“नमीरा ने कहा हैं कि शेव भी बना लें...... ।'

समीर राय कुछ न बोला और कपड़े व बॉक्स ले लिया व बाथरूप का दरवाजा बन्द कर लिया ।पन्द्रह-बीस मिनट बाद जब वह बाथरूप से बाहर आया तो उसका रूप ही बदला हुआ था। नफीसा बेगम ने उसे देखकर सुकून का सांस लिया। बैठो, समीर...मुझे तुमसे कुछ बात करनी है......।" नफीसा ने उसका हाथ पकड़कर उसे बैड़ पर बैठाने की कोशिश की।

"नहीं... ।' समीर राय ने फौरन ही अपना हाथ छुड़ा लिया और दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोला-"मुझें नमीरा के लिए खाना लेकर जाना हैं। वह मेरा इन्तजार कर रही होगी.....।

'समीर राय'खाना' अभी तक नहीं भूला था। नफीसा बेगम का ख्याल था कि वह जब नहा-छोकर आएगा तो उसमें थोड़ा-बहुत बदलाव जरूर आएगा, लेकिन वह तो वहीं-का-वहीं था। अपनी नमीरा की याद मे डूबा हुआ। नमीरा के लिए चिन्तित ।समीर राय ने दरवाजे का हैंडिल घुमाकर दरवाजा अपनी तरफ खींचा, लेकिन दरवाजा न खुला। दरवजा तो लॉक था-वह खुलता कैसे? उसने दूसरी बार हैण्डिल घुमाया, लेकिन दरवाजा टस से मस नहीं हुआ। अब उसका धैर्य-धीरज जाता रहा। वह झुंझलाकर बोला-“यह दरवाजा क्यों नहीं खुलता, खोलो दरवाजा.....।

''बेटा समीर...।" नफीसा बेगम जल्दी से उसके निकट आ गई-“बेटा आओ, इधर आओं, मेरे पास बैठो....मेरी बात सुन... '

"मुझे कुछ नहीं सुनना हैं......जल्दी से दरवाजा खोलो । यह किस गधे के बच्चे ने बन्द किया है...... मैं उसे गोली मार दूंगा।" उसने गुस्से से दरवाजा खटखटाया-"दरवाजा खोलो.......दरवाजा खोलते क्यों नहीं.......?"लेकिन दरवाजा तो बाकायादा एक मन्सूबे के तहत बन्द किया गया था और उनकी उस प्लानिंग पर बाहर अमल हो चुका था। जब समीर राय ने धाड़-धाड़ दरवाजा बजाया...कई लाते दरवाजे पर मारी और गुस्से से चिल्लाया-“गधे के बच्चों, दरवाजा खोलो....।''

तब अचानक दरवाज में चाबी घूमी और दरवाजा खुल गया। सामने दिलदार खड़ा था। उसके हाथ में चाबी थी। उसे देखते ही समीर राय आग-बबूला हो गया। उसने आव देखा न ताव....एक जोरदार थप्पड़ दिलदार के मुंह पर रसीद कर दिया। इतने जोर से कि दिलदार का मुंह फिर गया।"कुत्ते के बच्चे, तूने दरवाजा कैसे बन्द किया...?" उसने आग भरी आंखों से उसे घूरा व फिर भागता चला गया।उसने बड़ी तेजी से राहदारी पार की और धड़ाधड़ सीढ़ियां चढ़ता चला गया। वह ऊपर पहुंचा। ऊपर के बैडरूप का दरवाजा खुला हुआ था। वह पागलों की तरह भागता हुआ कमरे में दाखिल हुआ। उसका कन्धा दरवाजे की चौखट से टकराया। वह गिरते-गिरते बचा। कन्धे पर तीव्र चोट लगी थी, लेकिन उसने इसकी परवाह नहीं की वह अपने दोनों हाथ फैलाये जब बैड के निकट पहुंचा तो वहा का नक्शा बदला हुआ था ।बैड पर नमीरा की लाश मौजूद न थी। बैडशीट बदली जा चुकी थी। कमरे की अच्छी तरह सफाई कर दी गई थी। अभी कुछ देर पहले यहां जो गन्दगी थी, उसका कहीं पता नहीं था। इस वक्त वह कमरा एक आलीशान बंगले का आलीशान बैडरूप लग रहा था।

"नमीरा कहां गई...?" वह बड़बड़ाया। उसने तेजी से कमरे मे चारों तरफ नजरें दौड़ाई.....मगर वह उसे कहीं नजर नहीं आई-"नमीरा तुम कहां हों?" उसने जोर से पुकारा। फिर शायद उसे ख्याल आया कि नमीरा कहीं बाथरूम में न हों? वह लपककर बाथरूप के दरवाज पर पहुंचा। दरवाजा बन्द था। उसने बहुत धीरे से आवाज दी-"नमीरा....... "अन्दर से कोई आवाज न आई तो उसने दरवाज का हैण्डिल घुमाया। दरवाजा खुल गया। अन्दर अंधेरा था। वह दरवाजा बन्द करके वापिस पलटा तो किसी ने कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया दरवजा लॉक करके सरवरी ने चाबी नफीसा बेगम के हाथ में दे दी और खुद जरा पीछे हटकर आदर के साथ खड़ी हो गई।

समीर राय को जब अहसास हुआ कि कमरा बाहर से लॉक कर दिया गया है तो वह दरवाजा जोर-जोर से पीटने लगा।"खोलो कमीनों.... दरवाजा खोलो...... |कुतिया के पिल्लो.....दरवाजा खोलो.... । अपने बेटे की विक्षिप्त चीखें वह दरवाजे से पीछे लगाये बड़ी खामोशी से सुन रही थी। वह समीर राय को बहला-फुसलाकर इसीलिये नीचे ले गई थी कि रोशन राय की योजना अनुसार नमीरा की लाश यहां से हटा दी जाएं नमीरा की लाश हटाने में मुश्किल से चन्द मिनट लगे। रौली दो बन्दों के साथ नमीरा की लाश को आनन-फानन में गाड़ी में डालकर ले गया। उसके बाद समीर राय को पता नहीं चला कि नमीरा को कहां दफनाया गया। दफनाया भी गया या उसे समुद्र में कहा दिया गया। किसी खड्ड में फेंका गया या किसी जंगल में जानवरों के नोंचने-खाने के लिए डाल दिया गया रोशन राय और नफीसा बेगम, दोनों का ही ख्याल था कि समीरा राय ने नमीरा की मौत का सदमा कुछ ज्यादा ही ले लिया हैं...इसलिए जितनी जल्दी सम्भव हो नमीरा की लाश को उससे लगल कर दिया जाये। वैसे भी एक लाश को किसी जिन्दा आदमी के साथ किस तरह रहने दिया जा सकता था ।समीर राय कमरे में बन्द बुरी तरह चीख रहा था। अपने बेटे की विक्षिप्त चीखें सुनकर नफीसा बेगम का दिल किसी पत्ते की तरह कांप रहा था। वह अपना दिल मुट्ठी में भींचे अपने आंसू पीने की कोशिश कर रही थी इतने में अन्दर से खिड़की का शीशा टूटने की आवाजा आई। खिड़की पर जाली का मजबूत फ्रेम लगा हुआ था। समीर राय ने खिड़की खोलने के बजाय, गुस्से में आकर तोड़ दी।नफीसा बेगम शीश टूटने की आवाज सुनकर खिड़की की तरफ लपकी। वह नफीसा बेगम को बाहर देखकर चीखा-"मेरी नमीरा कहां हैं....?

''वह मर गई हैं....वह अब इस दुनिया में नहीं है, मेरे बेटे.... |"

"तुम झूठ बोलती हो...।''
"मेरी बात का एतबार करों, मेरे बेटे! वह मर चुकी है। तू खुद ही तो उसकी लाश उठाकर लाया था..... ।'

"न. नहीं!'' वह बड़े जोर से चीखा-"वह नही मर सकती। उसे कोई नही मार सकता..... ।" यह कहकर उसने दूसरी खिड़की के शीशे पर धूंसा मारा |शीशा छनाक से टूट गया ।नफीसा बेगम से अब उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी। वह तेजी से नीचे ड्राइंग रूप में पहुंची..जहां रोशन राय एक सोफे में धंसा किसी सोच में डूबा हुआ था। बदहवास नफीसा बेगम को देखकर वह एकदम खड़ा हो गया।"क्या हुआ......?

"समीर की हालत अच्छी नहीं हैं। उस पर जूनून सवार हैं। वह पागल हो गया है। जल्दी से किसी डॉक्टर को बुलवाएं...... नहीं तो वह अपने आपको जख्मी कर लेगा। वह खिड़कियों के शीशे तोड़ रहा है.......।" नफीसा बेगम बोलते बोलते रो पड़ी।

'' अच्छा....अच्छा......बाबा रो मत..... | मैं अभी करता हूं कुछ, तुम परेशान मत होओ।" यह कहकर उसने अपनी पॉकेट डायरी निकाली और दोबारा सोफे पर बैठ गया।उसने सोफे पर रखा मोबाइल फोन उठाया व डायरी में अपने एक परिचित लोकल डॉक्टर अंसारी के नम्बर देख उसके नम्बर मिलाये |डॉक्टर अंसारी बीस मिनट में ही अपने साथ एक एम्बुलेंस लेकर बंगले पर पहुंच गया।डॉक्टर अंसारी जब ताला खोलकर समीर के बैडरूप में दाखिल हुआ तो समीर राय बैड पर बैठा चीख रहा था। उसके हाथ शीशा तोड़ने की वजह से लहूलुहान थे। डॉक्टर ने पहले किसी तरह बहला-फुसला कर समीर राय को बेहोश की इन्जेक्शन लगाया। कुछ ही देर में समीर राय की आंखें बन्द होने लगी और फिर तेजी से उसको नींद आती चली गई ।फिर समीर राय को एम्बुलेंस में डालकर एक प्राइवेट हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया। यहां एक माहिर मनोचिकित्सक की देख-रेख में फौरन उसका उपचार शुरू हो गया ।रोशन राय ने वहां के डॉक्टरों को सिर्फ इतना बताया कि समीर राय की बीवी का देहान्त हो
चुका है। उसे अपनी बीवी से बेपनाह मुहब्बत थी और चूकि उसकी मौत अचानक हुई, इस वजह से वह अपनी बीवी की मौत का यकीन नहीं कर रहा। सदमे से वह जुनून का शिकार हो गया है |विशेषज्ञ डॉक्टर ने पहले चरण में उसे सुकून देने वाली दवाएं देनी शुरू कर दी।
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नमीरा की लाश, रोशन राय की हवाइ जहाज जैसी गाड़ी की पिछली सीट पर आहिस्ता-आहिस्ता हिल रही थी।लाश पर एक सफेद चादर डाल दी गई थी। लाश के लगातार हिलने की वजह से वह चादर अब उसके चेहरे से हट गई थी। उसका एक हाथ फिसलकर नीचे आ गया था , जो अब लाश के साथ झूल रहा था। नमीरा के चेहरे पर कोमलता थी। एक हल्की-सी मुस्कुराहट थी। यह महसूस ही नहीं होता था कि उसको मरे हुए काफी वक्त हो चुका है ।गाड़ी अपनी फुल स्पीड से सफर तय कर रही थी ।रौली कभी -कभी पीछे मुड़कर देख लेता था। यही देखने को कि लाश किस पोजीश्न में हैं। कहीं हिल-हिल कर सीट के नीचे तो नहीं आ रही |वे मुम्बई से काफी दूर निकल आए थे। वो नमीरा को ठिकाने लगाने निकला था। रोशन राय ने बस इतना ही कहा था कि 'इसे ठिकाने लगा दो'-यह नहीं बताया था कि कहां और कैसे? अब यह मामला उसकी अपनी इच्छा पर था और वह सोच रहा था कि इस काम को कहां और कैसे निपटाया जाए?वह सागर तट के साथ -साथ सफर कर रहा था और शहर से बहुत दूर वीरानों में थी। उसने कुछ सोचा व गाड़ी समुद्र के निर्जन रेतीले किनारे की तरफ मोड़ दी। दूर तक रेत ही रेत थी। ऊंचे-नीचे रेत के टीले फैले हुए थे। गाड़ी जब इस रेतीले रास्ते पर काफी आगे आ गई....तो रौली को यकीन हो गया कि इन वीरानों में किसी इंसान का गुजर मुश्किल है तो उसने एक जगह गाड़ी रोक दी ।उसने अपने साथ बैठे हुए दोनों बन्दों को गाड़ी से उतरने का इशारा किया और खुद भी नीचे उतर गया ।उसने रेत पर खड़े होकर अपनी कमर सीधी की। वह काफी देर से ड्राइविंग कर रहा था। फिर उसने चारों तरफ एक निरीक्षणात्मक निगाह डाली। दूर तक वीराना व सन्नाटा था ।रौली को निकट ही एक गड्डा नजर आया। यह गड्डा दो-तीन फुट गहरा था। इस गड्ढे को अपने काम के लिए चुन लिया। उसने अपने एक साथी की मदद से नमीरा की लाश को गाड़ी से निकाला और उसे धीरे से उस गड्ढे में उतार दिया। उस पर चादर डालकर उसके हाथों-पैरों तले दबा दी। उसे एक तैयारशुदा कब्र मिल गई थी। वे तीनों मिलकर अपने हाथों से रेत को उस गड्ढे में गिराने लगे।तभी रौली को ख्याल आया कि एक प्लास्टिक की बाल्टी गाड़ी में है। उसने वह बाल्टी गाड़ी से मंगवा ली और फिर उस बाल्टी से ही रेत भर-भरकर लाश पर । डालने लगा ।यूं तीनों ने मिलकर शीध्र ही गड्ढे को रेत से ढक दिया।

देखते ही देखते वह एक कब्र-सी दिखाई देने लगी।रौली को जब यह इत्मीनान हो गया कि नमीरा की लाश अच्छी तरह सुरक्षित हो गई हैं तो वह हाथ झाड़ता उठ खड़ा हुआ और गाड़ी की तरफ बढ़ गया। रौली के स्टेयरिंग सम्भालते ही उसके दोनों साथी भी उसके साथ बैठे गये। रौली ने दूर से उसे रेत की कब्र पर एक नजर डाली....और फिर गाड़ी स्टार्ट करके स्टेयरिंग को तेजी से घुमाया। फिर गाड़ी अब वापिस हाई-वे की तरफ जा रही थी गाड़ी जब उस रेत की कब्र से बहुत दूर निकल गई तो पश्चिम दिशा से एक ऊंचे कद का व्यक्ति आता नजर आया ।उसका रूख नमीरा की कब्र था। वो हालांकि एक-एक कदम करके चल रहा था.....दौड़ नहीं रहा था....न तेज चल रहा था। इसके बावजूद यूं लगता था, जैसे वो हवा के घोड़ें पर सवार हो । वो देखते ही देखते कबग के निकट आ पहुंचा ।वह करीब आठ फुट ऊंचे आदमी था। एकदम काला भुजंग! चमकता हुआ काला बदल | उसने कवल एक सफेद चादर अपने शरीर पर लपेट रखी थी। ऊपर का बदन नंगा था और यह चादर भी घुटनों से ऊपर थी। नंगे पांव.....बड़ी और सफेद आंखें....चमकती हुई काली पुतलियां....मोटे-मोटे होंठ.....थोड़ा खुला हुआ मुंह और उसमें से झांकते हुए सफेद दाँत....धुंघराले सख्त बाल......चेहरा दाढ़ी-मूछों से साफ....कन्धे पर एक मोटी-सी जंजीर और उसमें बंधी एक घन्टी...यह घन्टी बायें हाथ के निकट लटकी हुई थी। जंजीर लोहे की थी, जबकि घन्टी पीतल की।जब वे कब्र के निकट आ रहा था, तो यह घन्टी टन-टन बज रही थी।यह अजीबो-गरीब शख्स कन के सामने आ खड़ा हुआ। उसने अपनी दोनों टांगें फैलाई। फिर जंजीर में बंधी हुई घन्टी उतारी। सीधे हाथ में घन्टी की जंजीर पकड़कर घन्टी को एक दायरे में घुमाया....और फिर झुककर बड़े जोर से घन्टी को कब्र पर मारा और बोला-"मैं हूं....हूरा..... "एकदम रेत का बादल-सा उठा और वह 'काला-देव' रेत के इस बादल में छिप गया ।
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Sexi Rebel
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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एक हॉलनुमा कमरा..... |जिसकी चारों दीवारों में छोटे-छोटे ताख बने हुए थे और इन ताखों में बेशुमार बुत खड़े हुए थे। दीवारें सफेद थीं और कमरे की छत लाल-सुर्ख थी, जबकि कमरे का फर्श ईटों का बना हुआ था और ये ईटें भी सुर्ख थीं कमरे के ठीक मध्य में एक छोटा-सा काला गद्दा बिछा हुआ था और इस पर गुलाबी कपड़ों में एक नवजात बच्ची लेटी हुई थी। वह मुश्किल से दस-बारह दिन की होगी। वह तड़प-तड़प कर रो रही थी शायद भूख से बिलख रही थी ।इस कमरे की हर दीवार में एक दरवाजा था। ये चारों दरवाजे सुर्ख रंक के थे। इन चारों दरवाजों पर एक सुरहने सांप की आकृति बनी हुई थी। यह आकृति सोने से बनाई गई थी और इन सोने में ढलें सांपों को कालों से जड़ दिया गया था |जब बच्ची की चीखें ज्यादा ऊंची होने लगी और वह भूख से ज्यादा बेताब नजर आई तो एकाएक चारों दरवाजे एक साथ खुले और इन दरवाजों से जो चीज बरामद हुई, उसकी वजह से बच्ची एकदम खामोश हो गई ।वे तेज हवा के झोंके थे। यह हवा बगोलों की सूरत में कमरे में दाखिला हुई थी। सागर तट पर चलने वाली हवा से भी तेज थी यह हवा। इस हवा में एक महक-सी रची थी। एक विशिष्ट महम.... |कमरे में एकाएक ही तेज हवा के दाखिल हो जाने की वजह से बच्ची भी घबरा गई थी। उसके शरीर के कपड़ें उड़ें जा रहे थे। उसके नीचे बिछे गद्दे का कोना भी हवा के वेग से बार-बार उठ रहा था। तेज हवा बच्ची की आंखो में घुस रही थी...इसलिये वह अपनी आंखों को बार-बार बन्द कर रही थी। बड़ी खूबसूरत....बड़ी प्यारी-सी बच्ची थी.....हवा की वजह से यूं आंखें झपकाती और भी प्यारी लग रही थी हवा की अचानक आमद ने इस बच्ची को चौंका दिया था। इसलिए वह सहमकर खामोश हो गई थी। पर फिर कुछक क्षणों बाद ही उसने दोबारा रोना शुरू कर दिया। दरवाजे खुलते ही हवाएं जिस तेजी से अन्दर दाखिला हुई थी.....उसी तेजी से वह कमरे से निकल गई थी।

चारों दरवाजे अब भी खुले थे, लेकिन अब कमरे में जरा-सी भी हवा महसूस नहीं हो रही थी। बच्चे के कपड़े भी नहीं हिल रहे थे।बच्ची अब फिर बिलख-बिलख कर रोने लगी थी। उसकी नन्हीं चीखें पूरे कमरे में गूंज रही थी। वह भूख से बेहाल थी और कोई पूछने वाला नहीं था। हवा भी बस चक्कर लगाकर चली गई थी। वह और कर भी क्या सकती थी ।फिर सहसा...तीन दरवाजे धाड़-धाड़-धाड़ करके बन्द हो गये। यूं महसूस हुआ जैसे किसी ने इन दरवाजों के भारी किवाड़ों को जोर से धक्का देकर बन्द कर दिया हो।बन्द होते दरवाजों की धमाकेदार आवाजों की वजह से एक बच्ची रोते-रोते एक बार फिर चुप हो गई। दरवाजे बन्द होने की आवाज पर वह मारे डर के लेटे-लेटे उछल-सी जाती थी ।अज आवाजें आनी बन्द हो गई तो उसने फिर रोना शुरू कर दिया।फिर चौथे दरवाजे से, जो अभी तक खुला हुआ था....एक औरत अन्दर आई थी। वह काले लिबास में थी। सांवली रंगत....घने बाल......मुस्कुराती हुई काली आंखें। वह एक मदमाती अदा के साथ कमरे में दाखिल हुई और तेजी से चलती हुई उस बच्ची के पास पहुंची । उसने ईटों के फर्श पर बैठकर उस बच्ची को गद्दे सहित उठाकर अपनी गोद में लिटा लिया ।बच्ची बार-बार मुंह खोल रही थी। हाथ-पांव मार रही थी। उसके नन्हें से प्यारे-प्यारे होंठ कांप रहे थे

उस औरत ने बच्ची को बड़े प्यार से अपने सीने से लगा लिया ।बच्ची बड़ी बेताबी से और हुमक-हुमक कर दूध पीने लगी। वह औरत बच्ची के छोटे-छोटे सुनहरे बालों पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगी। पेट भरती ही बच्ची की खूबसूरत आंखें बन्द होने लगीं। फिर उसने दूध छोड़ दिया और गहरी नींद सो गई ।बच्ची सोते हुए इतनी सुन्दर लग रही थी कि वह औरत उसे प्यार किये बिना नहीं रह सकी। फिर उसने बच्ची को गद्दे सहित पुनः फर्श पर लिटा दिया और एक काली चादर से उसका मुंह ढककर खड़ी हो गई। तभी पीले कपड़े पहने एक औरत उस कमरे में दाखिल हुई और उसने आते ही बच्ची को अपनी गोद में उठाया और एक बन्द दरवाजे की तरफ बढ़ी |वह दरवाजे के निकट पहुंची तो दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया...यह औरत बच्ची को उठाये, उस दरवाजे से निकल गई।उस औरत के निकलते ही दरवाजा खटाकू से बन्द हो गया।अब वह पहले वाली औरत, जिसने बच्ची को दूध पिलाया था, वह खुले दरवाजे की तरफ बढ़ी। उसके चलने का एक खास अन्दाज था । वह बड़ी अदा के साथ लहराकर चल रही थी।इस औरत ने 'उसे दरवाजे से दाखिल होत हुए देख लिया था और उसे देखते ही उसकी आंखों में एक नफरत जाग उठी थी।"वों' और कोई नहीं, एक नाग था। काला नाग। वो बदलखाता हुआ बहुत तेजी के साथ कमरे में दाखिल हुआ और फन फैलाकर उस औरत के सामने खड़ा हो गया। जैसे उसका रास्ता रोक लेना चाहता हो ।वह औरत चलते-चलते रूक गई और उसे सर्द निगाहों से देखते हुए बोली-"क्या चाहता हैं तू....? क्यों बार-बार मेरे रास्ते में आता हैं? क्या तुझे अपनी जिन्दगी प्यारी नहीं..?"

उस काले नाग ने अपने फन को दायें-बायें घुमाया, अपनी जिव्हा लपलपाते हुए अपनी आंखे उस औरत पर जमा दी .....जैसे कहता हों-" इश्क बिना क्या जीना.....?"

"कुछ शर्म कर सोनेता..... तू जानता हैं कि तेरा इस तरह बार-बार मेरे रास्ते में आना....मेरी राह रोककर खड़े हो जाना बेकार है। तू जानता हैं कि मैं कौन हूँ? मैं तबूह हूं....एक ऐसा पत्थर जिस पर किसी चीज का असर नहीं होता। अगर तेरे दिल में मुझे डसने की हसरत हैं तो फिर आ जा....डस लें... ।'"यह कहकर तबूह जमीन पर अपने घुटने टेककर बैठ गई और अपने दोनों हाथ फैला दिये |वो काला नाग जिसे तबूह ने सोनेगा कहकर पुकारा था... वो तेजी से उसकी तरफ बढ़ा और उसके बिल्कुल नजदीक पहुंचकर फिर अपना फन फैलाकर खड़ा हो गया। अत तबूह के हाथ और उसके फन के बीच दो-तीन इंच का फासला था। सोनेता, जरा-सा झुककर ही उसके हाथ को आसानी से काट सकता था ।डाले देख रहे थे। तबूह की आंखों में रोष बढ़ता जा रहा था....जबकि सोनेता की आंखों में चाहत उभरती आ रही थी। वह एक ऐसा प्रेमी दिख रहा था, जिसे अपनी प्रेमिका की बेरूखी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और आज जैसे उसने कुछ कर गुजरते का फैसला कर दिया था।
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