Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
- Rohit Kapoor
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
देवांग, नन्हीं बरहा के साथ नदी पार कर दूसरे किनारे पहुंचा। वह बरहा को कन्धे से लगाए, तेजी से पश्चिम दिशा में बढ़ता जा रहा था। लगभग आधा मील चलने के बाद एक बस्ती के आसार नजर आने लगे।
यह उसकी अपनी बस्ती थी।
कुछ ही देर बाद वह अपने घर के दरवाजे पर पहुंच गया, इस बस्ती का सबसे बड़ा और पुराना घर था। देवांग ने बड़े जोर से दरवाजा खटखटाया..कुछ देर बाद अंदर से लाठी की ठकठक सुनाई दी।
दरवाजा खोलने वाली नब्बे बरस से कम क्या होगा। सफेद साड़ी पहने, कमर झुकी हुई, सफेद बाल, भौंहे तक सफेद, हाथ में लाठी, सांवली रंगत, चेहरे पर बेशुमार झुर्रियां...वह नब्बे बरस की जो जरूर थी। लेकिन देखने में जानदार बुढ़िया थी।
दरवाजा खोलकर वह एक तरफ हटी, उसने देवांग के कंधे पर किसी बच्ची को देखा तो बहुत हैरान हुई।
"देवांग..यह क्या उठा लाया तू..?"
"माता..यह बरहा है। परमान की अमानत। बहुत बहुमूल्य चीज है। हमें इसे अपने पास रखना है...।" देवांग
ने अंदर आते हुए बताया।
"परमान की अमानत है तो फिर आप ही बहुमूल्य चीज हुई...." बुढ़िया ने, दरवाजे में कुण्डी लगाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
वे सहन पार कर एक कमरे में पहुंचे। देवांग ने पूछा-“माता..तुम कर क्या रही थीं?"
"बच्चों को दूध देने जा रही थी...।" देवांग की मां
बोली।
"उर्वशी क्या घर में नहीं है..?" देवांग ने पूछा।
"अंदर है। वह कहां जाएगी....।"
"मैं यहां हूं।" एक अधेड़ उम्र औरत फौरन ही दरवाजे पर आ गई।
"उर्वशी..ले सम्भाल इसे। देख, इसे अपने प्राण से भी ज्यादा प्यारा रखना...।" देवांग ने हिदायत दी।
"तू चिन्ता न कर देवांग। मैं इसे अपने दिल का टुकड़ा समझ कर रखूगी..."
"मुझे तुझसे यही आशा थी।" देवांग ने बरहा को उर्वशी की गोद में दे दिया।
उर्वशी ने बरहा की मोहिनी सूरत पर नजर डीली तो वह मंत्रमुग्ध हो गई-"हाय, इतनी प्यारी... | इतनी सुन्दर...।" वह बरबस बोली थी।
"सुन्दर क्यों न होगी... आखिर परनाक की पसन्द
है...।"
देवांग ने प्रशंसापूर्ण नजरों से बरहा को निहारा।
उर्वशी ने बड़े प्यार से बच्ची का मुंह चूमा।" ऐसी प्यारी बच्ची मैंने आज तक नहीं देखी...।"
फिर वह उसे भीतर के कमरे में ले आई और उसे होश में लाने का यत्न करने लगी।
देवांग कमरे निकल आया। उसने बाहर निकलकर देखा कि पीपल के पेड़ के नीचे दस-बारह मिट्टी के प्याले रखे थे। देवांग की मां एक छोटी बाल्टी से इन प्यालों में दूध डाल रही थीं देवांग दरवाजे की दहलीज पर बैठ गया
और अपनी मां को प्यालों में दूध भरते देखने लगा।
जब सारे प्यालों में दूध भर गया तो देवांग की मां पार्वती ने दूध की खाली बाल्टी रसोई में जाकर रखी और फिर वापिस पेड़ के नीचे आई और अपनी लाठी तीन बार
जोर-जोर से जमीन पर मारी और बड़े प्यार से बोली
"आओ, बच्चों...।"
'आओ, बच्चो' कहना था कि विभिन्न स्थानों से छोटे बड़े सांप निकलकर लहराते हुए उन दूध भरे प्यालों की तरफ लपके और फिर प्यालों में मुंह डालकर दूध पीने लगे।
पार्वती इन सांपों को प्यार भरी नजरों से देख रही थी।
नमीरा की एक झलक ने ही समीर राय के दिल में तूफान ला दिये थे।
वह नमीरा को भूला नहीं था। अब जब उसकी याद आती तो आती चली जाती | उसकी याद आती थी तो उसका दिल तड़पाती थी, लेकिन वह विक्षिप्तता जो नमीरा की लाश देखकर उस पर सवार हुई थी...वैसी जुनूनी अवस्था अब उसकी न रही थी। वह धीरे-धीरे जिन्दगी की तरफ लौट रहा था और अब जिन्दगी की तरफ लौटते-लौटते अचानक जिन्दगी के एक मोड़ पर उसे अपनी जिन्दगी दिखाई दे गई। ऐसे में उसका व्यग्र व बेचैन हो उठना स्वाभाविक था।
वह दूसरे दिन घोड़े पर हवेली से निकला। उसे घुड़सवारी का कोई खास शौक नहीं था, वह तो घोड़े पर इसलिए निकला था कि शायद नमीरा फिर कहीं दिखाई दे जाए।
नमीरा से मिलने की आस में उसने मीलों लम्बा चक्कर काटा... लेकिन नमीरा उसे कहीं दिखाई नहीं दी। निराश होकर वह हवेली लौट आया और कपड़े बदले बिना ही बैड पर औंधे मुंह पड़ गया।
नफीसा बेगम ने जब प्रतिदिन की तहर उसके कमरे का चक्कर लगाया तो बेटे के कमरे में अंधेरा पाया। उसने अंदर आकर लाइट जलाई तो समीर को बेसुध लेटे पाया। उसे बैड पर यूं बिखरा पड़ा देखकर वह तड़प कर आगे बढ़ी।
__ "समीर, बेटे..क्या हुआ..?" उसने, उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए कहा।
"कुछ नहीं, अम्मी...!" समीर राय ने करवट बदली।
समीर राय की पलकें भीगी हुई थीं। नफीसा बेगम ने देखा तो बोली-"तुम रो रहे हो?"
"नहीं मां..तुझसे मेरा क्या छिपा है...।"
और यही हकीकत भी थी कि समीर राय अपनी मां के बहुत करीब था। वह हर छोटी-बड़ी बात जब तक अपनी मां से नहीं कर लेता था..उसे चैन नहीं आता था।
"फिर यह आंसू क्यों छिपाये..?" नफीसा बेगम के लहजे में शिकवा था।
"मा..मैं इस वक्त बहुत परेशान हूं। मेरा दिल बेचैन है।"
समीर ने कबूला-"इसे किसी भी तरह करार नहीं...।"
"पर क्यों..कुछ बता तो सही...।" मां ने सहानुभूति
दर्शाई।
"मा...मैंने कल बड़े मामू के यहां जाते हुए रास्ते में नमीरा को दखा है..।" समीर ने रहस्योद्घाटन किया।
पर यह रहस्योद्घाटन किसी भयंकर विस्फोट से कम नहीं था। नफीसा बेगम सकते में आ गई। वह चिन्तित हो उठी कि समीर बड़ी मुश्किल से तो कुछ
सम्भला है। बड़े यत्नों के बाद जिन्दगी की तरफ वापिस आया है...अब उसने फिर नमीरा का शोशा छोड़ दिया है। जाने उसने किसको देख लिया था?
"समीर बेटे... क्या तू जानता है कि तू क्या कह रहा है।"
मां परेशान होकर उसे घूरने लगी।
"हां, मां! मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं। तुम्हें यकीन नहीं आया न। इसीलिये मैंने अभी तक आपको यह बात नहीं बताई थी... "
"लेकिन बेटे..ऐसा कैसे हो सकता है। मां के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं-" नमीरा मर चुकी है। तुमने उसकी लाश देखी है।"
"मा..आप ठीक कह रही हैं..लेकिन मैं भी ठीक कह रहा हूं...।" समीर राय ने गहरी सांस ली।
"जरा तफसील (सविस्तार) से तो बता मुझे सारी बात..."
मां, अपने बेटे के चेहरे से नजरें नहीं हटा पा रही
थी।
यह उसकी अपनी बस्ती थी।
कुछ ही देर बाद वह अपने घर के दरवाजे पर पहुंच गया, इस बस्ती का सबसे बड़ा और पुराना घर था। देवांग ने बड़े जोर से दरवाजा खटखटाया..कुछ देर बाद अंदर से लाठी की ठकठक सुनाई दी।
दरवाजा खोलने वाली नब्बे बरस से कम क्या होगा। सफेद साड़ी पहने, कमर झुकी हुई, सफेद बाल, भौंहे तक सफेद, हाथ में लाठी, सांवली रंगत, चेहरे पर बेशुमार झुर्रियां...वह नब्बे बरस की जो जरूर थी। लेकिन देखने में जानदार बुढ़िया थी।
दरवाजा खोलकर वह एक तरफ हटी, उसने देवांग के कंधे पर किसी बच्ची को देखा तो बहुत हैरान हुई।
"देवांग..यह क्या उठा लाया तू..?"
"माता..यह बरहा है। परमान की अमानत। बहुत बहुमूल्य चीज है। हमें इसे अपने पास रखना है...।" देवांग
ने अंदर आते हुए बताया।
"परमान की अमानत है तो फिर आप ही बहुमूल्य चीज हुई...." बुढ़िया ने, दरवाजे में कुण्डी लगाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
वे सहन पार कर एक कमरे में पहुंचे। देवांग ने पूछा-“माता..तुम कर क्या रही थीं?"
"बच्चों को दूध देने जा रही थी...।" देवांग की मां
बोली।
"उर्वशी क्या घर में नहीं है..?" देवांग ने पूछा।
"अंदर है। वह कहां जाएगी....।"
"मैं यहां हूं।" एक अधेड़ उम्र औरत फौरन ही दरवाजे पर आ गई।
"उर्वशी..ले सम्भाल इसे। देख, इसे अपने प्राण से भी ज्यादा प्यारा रखना...।" देवांग ने हिदायत दी।
"तू चिन्ता न कर देवांग। मैं इसे अपने दिल का टुकड़ा समझ कर रखूगी..."
"मुझे तुझसे यही आशा थी।" देवांग ने बरहा को उर्वशी की गोद में दे दिया।
उर्वशी ने बरहा की मोहिनी सूरत पर नजर डीली तो वह मंत्रमुग्ध हो गई-"हाय, इतनी प्यारी... | इतनी सुन्दर...।" वह बरबस बोली थी।
"सुन्दर क्यों न होगी... आखिर परनाक की पसन्द
है...।"
देवांग ने प्रशंसापूर्ण नजरों से बरहा को निहारा।
उर्वशी ने बड़े प्यार से बच्ची का मुंह चूमा।" ऐसी प्यारी बच्ची मैंने आज तक नहीं देखी...।"
फिर वह उसे भीतर के कमरे में ले आई और उसे होश में लाने का यत्न करने लगी।
देवांग कमरे निकल आया। उसने बाहर निकलकर देखा कि पीपल के पेड़ के नीचे दस-बारह मिट्टी के प्याले रखे थे। देवांग की मां एक छोटी बाल्टी से इन प्यालों में दूध डाल रही थीं देवांग दरवाजे की दहलीज पर बैठ गया
और अपनी मां को प्यालों में दूध भरते देखने लगा।
जब सारे प्यालों में दूध भर गया तो देवांग की मां पार्वती ने दूध की खाली बाल्टी रसोई में जाकर रखी और फिर वापिस पेड़ के नीचे आई और अपनी लाठी तीन बार
जोर-जोर से जमीन पर मारी और बड़े प्यार से बोली
"आओ, बच्चों...।"
'आओ, बच्चो' कहना था कि विभिन्न स्थानों से छोटे बड़े सांप निकलकर लहराते हुए उन दूध भरे प्यालों की तरफ लपके और फिर प्यालों में मुंह डालकर दूध पीने लगे।
पार्वती इन सांपों को प्यार भरी नजरों से देख रही थी।
नमीरा की एक झलक ने ही समीर राय के दिल में तूफान ला दिये थे।
वह नमीरा को भूला नहीं था। अब जब उसकी याद आती तो आती चली जाती | उसकी याद आती थी तो उसका दिल तड़पाती थी, लेकिन वह विक्षिप्तता जो नमीरा की लाश देखकर उस पर सवार हुई थी...वैसी जुनूनी अवस्था अब उसकी न रही थी। वह धीरे-धीरे जिन्दगी की तरफ लौट रहा था और अब जिन्दगी की तरफ लौटते-लौटते अचानक जिन्दगी के एक मोड़ पर उसे अपनी जिन्दगी दिखाई दे गई। ऐसे में उसका व्यग्र व बेचैन हो उठना स्वाभाविक था।
वह दूसरे दिन घोड़े पर हवेली से निकला। उसे घुड़सवारी का कोई खास शौक नहीं था, वह तो घोड़े पर इसलिए निकला था कि शायद नमीरा फिर कहीं दिखाई दे जाए।
नमीरा से मिलने की आस में उसने मीलों लम्बा चक्कर काटा... लेकिन नमीरा उसे कहीं दिखाई नहीं दी। निराश होकर वह हवेली लौट आया और कपड़े बदले बिना ही बैड पर औंधे मुंह पड़ गया।
नफीसा बेगम ने जब प्रतिदिन की तहर उसके कमरे का चक्कर लगाया तो बेटे के कमरे में अंधेरा पाया। उसने अंदर आकर लाइट जलाई तो समीर को बेसुध लेटे पाया। उसे बैड पर यूं बिखरा पड़ा देखकर वह तड़प कर आगे बढ़ी।
__ "समीर, बेटे..क्या हुआ..?" उसने, उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए कहा।
"कुछ नहीं, अम्मी...!" समीर राय ने करवट बदली।
समीर राय की पलकें भीगी हुई थीं। नफीसा बेगम ने देखा तो बोली-"तुम रो रहे हो?"
"नहीं मां..तुझसे मेरा क्या छिपा है...।"
और यही हकीकत भी थी कि समीर राय अपनी मां के बहुत करीब था। वह हर छोटी-बड़ी बात जब तक अपनी मां से नहीं कर लेता था..उसे चैन नहीं आता था।
"फिर यह आंसू क्यों छिपाये..?" नफीसा बेगम के लहजे में शिकवा था।
"मा..मैं इस वक्त बहुत परेशान हूं। मेरा दिल बेचैन है।"
समीर ने कबूला-"इसे किसी भी तरह करार नहीं...।"
"पर क्यों..कुछ बता तो सही...।" मां ने सहानुभूति
दर्शाई।
"मा...मैंने कल बड़े मामू के यहां जाते हुए रास्ते में नमीरा को दखा है..।" समीर ने रहस्योद्घाटन किया।
पर यह रहस्योद्घाटन किसी भयंकर विस्फोट से कम नहीं था। नफीसा बेगम सकते में आ गई। वह चिन्तित हो उठी कि समीर बड़ी मुश्किल से तो कुछ
सम्भला है। बड़े यत्नों के बाद जिन्दगी की तरफ वापिस आया है...अब उसने फिर नमीरा का शोशा छोड़ दिया है। जाने उसने किसको देख लिया था?
"समीर बेटे... क्या तू जानता है कि तू क्या कह रहा है।"
मां परेशान होकर उसे घूरने लगी।
"हां, मां! मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं। तुम्हें यकीन नहीं आया न। इसीलिये मैंने अभी तक आपको यह बात नहीं बताई थी... "
"लेकिन बेटे..ऐसा कैसे हो सकता है। मां के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं-" नमीरा मर चुकी है। तुमने उसकी लाश देखी है।"
"मा..आप ठीक कह रही हैं..लेकिन मैं भी ठीक कह रहा हूं...।" समीर राय ने गहरी सांस ली।
"जरा तफसील (सविस्तार) से तो बता मुझे सारी बात..."
मां, अपने बेटे के चेहरे से नजरें नहीं हटा पा रही
थी।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
समीर राय ने बीती शाम की वह सारी घटना सविस्तार ही मां को सुना डाली।
"वह नमीरा की कोई हमशक्ल होगी...।" सारा वाकया सुनने के बाद नफीसा बेगम ने अपना ख्याल
जाहिर किया।
"नहीं, मां। मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकती! मेरा दिल फरेब नहीं खा सकता। वह नमीरा ही थी अम्मी.. वह इसलिये गायब भी हो गई।" समीर राय ने तर्क दिया-'अगर वह नमीरा न होती तो यूं हर्गिज गायब न होती...जरूर कोई राज है अम्मी...।"
___ "बेटे, समीर..मैंने रौली से बात की थी। वह नमीरा को समुद्र किनारे कहीं रेत में दबाकर आया था। फिर वह तेरे अब्बू के हुक्म पर उसे कफन-दफन के लिये हासिल करने गया था। लेकिन नमीरा की लाश उसे उस जगह नहीं मिली थी। जाहिर है...इतने दिनों बाद लाश का मिलना नामुमकिन ही था। लाश, चाहे नहीं मिली थी...पर
यह बात तो तू भी अच्छी तरह जानता है कि वह मर चुकी
नफीसा बेगम ने उसे समझाया।
"पता नहीं मां...।" समीर अविश्वास से बोला-"जाने क्यों करार नहीं आता...।"
"समीर..मेरे बेटे..! अंदेशों में मत पड़ो। यकीन कर ले कि नमीरा मर चुकी है...और यही तेरे हक में बेहतर भी है। मुझे डर है कि कहीं तू फिर बीमार न पड़ जाए...।"
___ "नहीं, अम्मी! आप डरें नहीं। ऐसा कुद नहीं होगा। लेकिन अम्मी, मैं नमीरा को भूलूंगा नहीं..मैं उसे नहीं भुला सकता | मैं उसकी तलाश में रहूंगा। मैं उसे आज भी तलाश करके आया हूं..।"
"उफ, मेरे खुदा...।" नफीसा बेगम ने एक ठण्डी सांस भरी... कुछ देर उसे निहारती रही, फिर बोली-" तुझे मायरा कैसी लगती है..?"
"इस वक्त मायरा का क्या जिक..?" समीर ने खिन्नता दर्शाई।
"वह नमीरा से कहीं खूबसूरत है...।" नफीसा ने मुस्कुरा कर दिखाया।
"होगी...।" समीर राय ने बहस उचित न समझी।
"मैं सोच रही हूं कि...।"
"अम्मी आप जो भी सोच रही हैं..बस सोचती ही रहें। इस बात को जुबान पर मत लाना...।" समीर ने उनकी बात काटते जैसे अपना फैसला सुनाया।
"समीर, बेटे! मैं मां हूं तुम्हारी...मैं तुम्हें इस तरह भटकता नहीं देख सकती। मेरे लिये न सकी..अपनी खातिर तुम्हें मेरी यह बात माननी होगी...।"
"अम्मी...प्लीज...मुझे सुकून से रहने दें।"
"हां, बेटे! मैं भी तो यही चाहती हूं कि तुम सुकून से रहो..।"
नफीसा बेगम उठते हुए बोली।
नमीरा की दास्तान सुना समीर राय ने मां को भी बेचैन कर डाला था।
नफीसा बेगम सपने देखने लगी थी। समीर राय सामान्य हो चला था। मायरा से उसकी घनिष्ठता होती जा रही थी और मायरा ही नफीसा की पसन्द भी थी। वह उन दोनों को साथ बैठे देखती तो बहुत खुश होती। उसने मायरा को अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था। पर
अब हालात की इस करवट व समीर राय की मौजूदा कैफियत ने नफीसा बेगम की खुशियों पर पानी फेर दिया थां वह चिन्तित हो गई थीं
इस दिन भी नफीसा बेगम ऐसे ही चिन्तित सोचों में डूबी बैठी थी कि मायरा अपनी मां के साथ हवेली आ
गईं नफीसा बेगम उन्हें देखकर खिल उठी। उसने उनका बढ़कर स्वागत किया। उसने अपनी भाभी को गले से लगाया और मायरा को प्यार किया।
मायरा कुछ देर तो उनके पास बैठी रही, फिर उठी व समीर राय के कमरे की तरफ बढ़ गई।
मायरा चली गई तो नफीसा बेगम अपनी भाभी नजमा से बोली-“भाभी, मैं कल से बड़ी परेशान हूं।"
"हाय..क्या हुआ...?" नजमा घबरा गई।
"समीर का दिमाग फिर उलटने लगा है...। वह नमीरा को किसी तौर भूलता ही नहीं....।" नफीसा ने अपना दुखड़ा रोया।
"अब क्या हुआ..?" नजमा उसकी सूरत देखने
लगी।
"वह उस दिन मायरा को छोड़ने गया था तो रास्ते में उसे कहीं नमीरा नजर आ गई...।"
"जानती हूं।" नजमा बोली-"यह बात मायरा ने मुझे बताई थी।"
__ "तो क्या मायरा ने भी नमीरा को देखा था..?" नफीसा बेगम ने पूछा।
"नहीं, उसने नहीं देखा था..।" नजमा ने बताया-"उसने ऊंट पर बैठी औरत की तरफ कोई ध्यान
नहीं दिया था...।"
"बताओ, जो लड़की जीप में बैठी थी...उसने तो देखा नहीं...लेकिन उसने गाड़ी चलाते हुए भी देख लिया...।" नफीसा सोच में पड़ गई थी।
"नफीसा आपा...! समीर को किसी पीर-फकीर को क्यों नहीं दिखा लेती। उसकी झाड़-फूंक करवा लो...सब ठीक हो जाएगा...।" नजमा ने सुझाव दिया।
___ "मैं भी यही सोच रही हूं...।" नफीसा ने सहमति दर्शाई-"पर मैं पीर-फकीर लाऊं कहां से, मैं तो किसी को जानती नहीं...।"
"आपा तुम फिक्र मत करो। मैं जानती हूं एक लड़की को। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा...।"नजमा ने एक शहर का नाम बताया था।"चलूंगी...जरूर चलूंगी...।" नफीसा बेगम ने फोरम हामी भर ली-“वहां जाना क्या मुश्किल है। लेकिन तुम तो किसी लड़की की बात कर रही हो। पर एक औरत जात इस मामले में क्या कर सकेगी... |"
"आपा, बस तुम मेरे साथ चलो, वहां चलकर ही देखना कि वह लड़की क्या कर सकती है और क्या नहीं...।" नजमा ने पूरे विश्वास के साथ कहा-"हां, तुम समीर की कोई इस्तेमाल की हुई चीज साथ ले लेना। मसलन, उसका रूमाल, कोई कमीज। उसका कोई पैन–वैन भी साथ ले सकती हो...।
"ठीक है...।" नफीसा बेगम ने ज्यादा बहस में पड़ना उचित न समझा।
वह एक आम-सा इलाका था...जहां अपनी बेशकीमती पैजारों गाड़ी से नफीसा बेगम और रायशा और नफीसा की खास सेविका लोंगसरी पहुंची थी|रायशा ही उस लड़की से वाकिफ थी। रायशा ने आगे बढ़कर कालबैल का बटन दबाया..ओर कुछेक क्षणों बाद ही दरवाजा खुला। एक अधेड़ उम्र की औरत ने इन घरेलू औरतों को हैरत से देखा और बोली-“जी... ''हमें अरूणिमा से मिलना है...।" नजमा बेगम ने नर्म लहजे में कहा। नजमा ने अपनी बहन रायशा को सूरत से अपने साथ ले लिया था।
'अच्छा, मैं उनसे पूछती हूँ। आप थोड़ा इंतजार करें।" कह कर वह अधेड़ उम्र औरत अंदर चली गई, वह अरूणिमा की मां थी|नफीसा बेगम ने परेशानी से नजमा को देखा.. यही अन्देशा जहन में उठा था कि कहीं यह अरूणिमा मिलने से इंकार न कर दे। नजमा ने हाथ के इशारे से उसे तसल्ली दी।कुछ देर बाद बंद दरवाजा फिर खुला और अरूणिमा की मां...रजनी ने दोनों पट खोलते हुये कहा-"अन्दर आ जायें...।"
अरूणिमा की मां ने अपने मेहमानों की सेवा से ड्राइंगरूम में बिछाया व फिर उनसे बोली-"मेरे साथ वह आये प्राब्लम पेश है...।“मजमा ने फौरन नफीसा को इशार किया-"तुम जाओ... "तुम भी चलो...।" नफीसा बेगम
"वह नमीरा की कोई हमशक्ल होगी...।" सारा वाकया सुनने के बाद नफीसा बेगम ने अपना ख्याल
जाहिर किया।
"नहीं, मां। मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकती! मेरा दिल फरेब नहीं खा सकता। वह नमीरा ही थी अम्मी.. वह इसलिये गायब भी हो गई।" समीर राय ने तर्क दिया-'अगर वह नमीरा न होती तो यूं हर्गिज गायब न होती...जरूर कोई राज है अम्मी...।"
___ "बेटे, समीर..मैंने रौली से बात की थी। वह नमीरा को समुद्र किनारे कहीं रेत में दबाकर आया था। फिर वह तेरे अब्बू के हुक्म पर उसे कफन-दफन के लिये हासिल करने गया था। लेकिन नमीरा की लाश उसे उस जगह नहीं मिली थी। जाहिर है...इतने दिनों बाद लाश का मिलना नामुमकिन ही था। लाश, चाहे नहीं मिली थी...पर
यह बात तो तू भी अच्छी तरह जानता है कि वह मर चुकी
नफीसा बेगम ने उसे समझाया।
"पता नहीं मां...।" समीर अविश्वास से बोला-"जाने क्यों करार नहीं आता...।"
"समीर..मेरे बेटे..! अंदेशों में मत पड़ो। यकीन कर ले कि नमीरा मर चुकी है...और यही तेरे हक में बेहतर भी है। मुझे डर है कि कहीं तू फिर बीमार न पड़ जाए...।"
___ "नहीं, अम्मी! आप डरें नहीं। ऐसा कुद नहीं होगा। लेकिन अम्मी, मैं नमीरा को भूलूंगा नहीं..मैं उसे नहीं भुला सकता | मैं उसकी तलाश में रहूंगा। मैं उसे आज भी तलाश करके आया हूं..।"
"उफ, मेरे खुदा...।" नफीसा बेगम ने एक ठण्डी सांस भरी... कुछ देर उसे निहारती रही, फिर बोली-" तुझे मायरा कैसी लगती है..?"
"इस वक्त मायरा का क्या जिक..?" समीर ने खिन्नता दर्शाई।
"वह नमीरा से कहीं खूबसूरत है...।" नफीसा ने मुस्कुरा कर दिखाया।
"होगी...।" समीर राय ने बहस उचित न समझी।
"मैं सोच रही हूं कि...।"
"अम्मी आप जो भी सोच रही हैं..बस सोचती ही रहें। इस बात को जुबान पर मत लाना...।" समीर ने उनकी बात काटते जैसे अपना फैसला सुनाया।
"समीर, बेटे! मैं मां हूं तुम्हारी...मैं तुम्हें इस तरह भटकता नहीं देख सकती। मेरे लिये न सकी..अपनी खातिर तुम्हें मेरी यह बात माननी होगी...।"
"अम्मी...प्लीज...मुझे सुकून से रहने दें।"
"हां, बेटे! मैं भी तो यही चाहती हूं कि तुम सुकून से रहो..।"
नफीसा बेगम उठते हुए बोली।
नमीरा की दास्तान सुना समीर राय ने मां को भी बेचैन कर डाला था।
नफीसा बेगम सपने देखने लगी थी। समीर राय सामान्य हो चला था। मायरा से उसकी घनिष्ठता होती जा रही थी और मायरा ही नफीसा की पसन्द भी थी। वह उन दोनों को साथ बैठे देखती तो बहुत खुश होती। उसने मायरा को अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था। पर
अब हालात की इस करवट व समीर राय की मौजूदा कैफियत ने नफीसा बेगम की खुशियों पर पानी फेर दिया थां वह चिन्तित हो गई थीं
इस दिन भी नफीसा बेगम ऐसे ही चिन्तित सोचों में डूबी बैठी थी कि मायरा अपनी मां के साथ हवेली आ
गईं नफीसा बेगम उन्हें देखकर खिल उठी। उसने उनका बढ़कर स्वागत किया। उसने अपनी भाभी को गले से लगाया और मायरा को प्यार किया।
मायरा कुछ देर तो उनके पास बैठी रही, फिर उठी व समीर राय के कमरे की तरफ बढ़ गई।
मायरा चली गई तो नफीसा बेगम अपनी भाभी नजमा से बोली-“भाभी, मैं कल से बड़ी परेशान हूं।"
"हाय..क्या हुआ...?" नजमा घबरा गई।
"समीर का दिमाग फिर उलटने लगा है...। वह नमीरा को किसी तौर भूलता ही नहीं....।" नफीसा ने अपना दुखड़ा रोया।
"अब क्या हुआ..?" नजमा उसकी सूरत देखने
लगी।
"वह उस दिन मायरा को छोड़ने गया था तो रास्ते में उसे कहीं नमीरा नजर आ गई...।"
"जानती हूं।" नजमा बोली-"यह बात मायरा ने मुझे बताई थी।"
__ "तो क्या मायरा ने भी नमीरा को देखा था..?" नफीसा बेगम ने पूछा।
"नहीं, उसने नहीं देखा था..।" नजमा ने बताया-"उसने ऊंट पर बैठी औरत की तरफ कोई ध्यान
नहीं दिया था...।"
"बताओ, जो लड़की जीप में बैठी थी...उसने तो देखा नहीं...लेकिन उसने गाड़ी चलाते हुए भी देख लिया...।" नफीसा सोच में पड़ गई थी।
"नफीसा आपा...! समीर को किसी पीर-फकीर को क्यों नहीं दिखा लेती। उसकी झाड़-फूंक करवा लो...सब ठीक हो जाएगा...।" नजमा ने सुझाव दिया।
___ "मैं भी यही सोच रही हूं...।" नफीसा ने सहमति दर्शाई-"पर मैं पीर-फकीर लाऊं कहां से, मैं तो किसी को जानती नहीं...।"
"आपा तुम फिक्र मत करो। मैं जानती हूं एक लड़की को। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा...।"नजमा ने एक शहर का नाम बताया था।"चलूंगी...जरूर चलूंगी...।" नफीसा बेगम ने फोरम हामी भर ली-“वहां जाना क्या मुश्किल है। लेकिन तुम तो किसी लड़की की बात कर रही हो। पर एक औरत जात इस मामले में क्या कर सकेगी... |"
"आपा, बस तुम मेरे साथ चलो, वहां चलकर ही देखना कि वह लड़की क्या कर सकती है और क्या नहीं...।" नजमा ने पूरे विश्वास के साथ कहा-"हां, तुम समीर की कोई इस्तेमाल की हुई चीज साथ ले लेना। मसलन, उसका रूमाल, कोई कमीज। उसका कोई पैन–वैन भी साथ ले सकती हो...।
"ठीक है...।" नफीसा बेगम ने ज्यादा बहस में पड़ना उचित न समझा।
वह एक आम-सा इलाका था...जहां अपनी बेशकीमती पैजारों गाड़ी से नफीसा बेगम और रायशा और नफीसा की खास सेविका लोंगसरी पहुंची थी|रायशा ही उस लड़की से वाकिफ थी। रायशा ने आगे बढ़कर कालबैल का बटन दबाया..ओर कुछेक क्षणों बाद ही दरवाजा खुला। एक अधेड़ उम्र की औरत ने इन घरेलू औरतों को हैरत से देखा और बोली-“जी... ''हमें अरूणिमा से मिलना है...।" नजमा बेगम ने नर्म लहजे में कहा। नजमा ने अपनी बहन रायशा को सूरत से अपने साथ ले लिया था।
'अच्छा, मैं उनसे पूछती हूँ। आप थोड़ा इंतजार करें।" कह कर वह अधेड़ उम्र औरत अंदर चली गई, वह अरूणिमा की मां थी|नफीसा बेगम ने परेशानी से नजमा को देखा.. यही अन्देशा जहन में उठा था कि कहीं यह अरूणिमा मिलने से इंकार न कर दे। नजमा ने हाथ के इशारे से उसे तसल्ली दी।कुछ देर बाद बंद दरवाजा फिर खुला और अरूणिमा की मां...रजनी ने दोनों पट खोलते हुये कहा-"अन्दर आ जायें...।"
अरूणिमा की मां ने अपने मेहमानों की सेवा से ड्राइंगरूम में बिछाया व फिर उनसे बोली-"मेरे साथ वह आये प्राब्लम पेश है...।“मजमा ने फौरन नफीसा को इशार किया-"तुम जाओ... "तुम भी चलो...।" नफीसा बेगम
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