राज ने सतीश को यह नहीं बता रखा था कि उस रात को खंजर से हमला करने वाले का शिंगूरा से कोई सम्बन्ध था। फिर भी सतीश का ख्याल था कि उस हमले की तह में जरूर शिंगूरा का ही हाथ था। उसे इस बात का सन्देह था और राज को विश्वास। \
कई दिन तक न तो कोई नई घटना घटी थी और न ही राज को कोई कदम अपनी तरफ से उठाने के लिए कोई रास्ता ही मिला था। लेकिन एक दिन उसके हाथ अनापेक्षित तौर पर एक सुराग लग ही गया।
राज सुबह दस बजे के करीब डॉक्टर सावंत के यहां जा रहा था। क्योंकि दिन का वक्त था और राज ने रास्ते में से कई चीजें खरीदनी थी, इसलिए कार वो घर ही छोड़ आया था।
फोर्ट एरिया की एक दुकान से कैमरा फिल्म का रोल खरीद कर बाहर निकला तो सामने की तरफ कुछ दूरी पर एक कार आगे आकर रूकी और उसमें से उतरकर शिंगूरा कपड़ों की एक दुकान में चलगी गई।
शिंगूरा को देखकर राज ठिठक गया था। अचानक एक ख्याल राज के जेहन में उभरा कि क्यों न शिंगूरा की पीछा करके देखा जाए कि वो कहां-कहां जाती है और क्या-क्या करती
राज ने डॉक्टर सावंत के यहां जाने का विचार छोड़ दिया और शिंगूरा का पीछा करने के लिए तैयार हो गया। उसने एक खाली टैक्सी रोकी और उसके ड्राईवर को समझा दिया कि उसे क्या करना है। और यह भी कह दिया कि अगर वो अपने मकसद में कामयाब रहा तो ड्राईवर को किराये कि अलावा इनाम भी देगा।
ड्राईवर बम्बई का श्याना था, इसलिए वो फौरन समझ भी गया और वह धूर्तता पूर्ण ढंग से मुस्कराकर सहमत भी हो गया। उसने टैक्सी एक कोने में खड़ी कर ली और स्टेयरिंग पर सिर रख कर बैठ गया। लेकिन उसकी गिद्ध निगाहें शिंगूरा की काली कार पर ही जमी हुई थीं जो राज ने उसे दिखाई थी।
करीब बीस मिनट बार शिंगूरा उस दुकान से बाहर निकली, उसके हाथ में छोटा सा एक पैकेट था। वो धीरे-धीरे बड़ी नजाकत से चलती हुई आकर अपनी कार में बैठ गई।
कार रवाना हुई तो राज का ड्राईवर भी चौंकन्ना हो गया और उसने एक उचित फासला दरम्यान में रखकर शिंगूरा की कार का पीछा करना शुरू कर दिया।
दोनों गाड़ियों आगे पीछे कोई बीस मिनट तक शहर की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रहीं। राज हैरान था कि वो जा कहा रही है?
फिर अचानक प्लाजा होटल के सामने शिंगूरा की गाड़ी रुक गई और शिंगूरा कारे से उतर कर लहराती-बल खाती हुई होअल में दाखिल हो गई।
"वो तो होटल में चली गई....।" टैक्सी ड्राईवर ने भी टैक्सी रोककर पीछे मुड़ते हुए कहा।
"तो हम इंतजार करते हैं।” राज ने कहा, और शिंगूरा की वापसी का इंतजार करने लगा।
लेकिन जब आधे घंटे तक भी शिंगूरा बाहर न आई तो राज ने ड्राईवर से कहा
"मैं गाड़ी में बैठा हूं, तुम जरा जाकर पता लगाने की कोशिश करो कि वो अन्दर क्या कर रही है...।'
राज ने जेब से पचास-पचास के दो नोट निकाले और ड्राईवर की तरफ बढ़ा कर बोला
"होटल के किसी वेटर को बीस-बीस रुपए देकर अपने तीरके से पूछोगे तो सारी कथा कह देगा....।"
"म....मगर साहब..."
"अरे, कुछ अगर-मगर नहीं, डरो मत। मैं बैठा हूं न यहां।" राज ने उसे तसल्ली दी।
ड्राईवर ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे सब समझ गया हो। नोट लेकर टहलता हुआ वो होटल की तरफ बढ़ गया।
पूरा एक घंटा राज को इन्तजार करते हुए गुजर गया, न तो शिंगूरा होटल से निकली, न ही टैक्सी ड्राईवर ही वापिस आया। अकेले बैठे-बैठे गेट पर निगाहों जमाए राज उकता गया।
आखिर राम-राम करके टैक्सी ड्राईवर बाहर निकला और तेज-तेज कदम उठाता आया और टैक्सी की अपनी सीट पर बैठ कर बोला
"मैंन सब मालूम कर लिया है...लेकिन अब वो बाहर आ रही है। इसलिए कथा आराम से कहीं बैठ कर सुनाऊंगा। फिलहाल हमें उसका पीछा जारी रखना होगा।
"ठीक है, अभी पीछा जारी रखो।"
इतने में शिंगूरा होटल के दरवाजे पर प्रकट हुई और अपनी कार में बैठ कर चल पड़ी। एक बार फिर दोनों कारें आगे-पीछे सड़क पर दौड़ने लगीं।
Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
कई मोड़ों से घूमने के बाद और कई सड़कों पर चक्कर काटकर शिंगूरा की कार शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर पहुंच गई। इस सड़क पर चूंकि ट्रेफिफ कम होता है, इसलिए टैक्सी ड्राईवर ने दोनों गाड़ियों के बीच का फासला कुछ बढ़ा लिया। लेकिन शिंगूरा की गाड़ी को नजरों से ओझल नहीं होने लिदया।
आबादी बहुत पीछे छुट जाने के बाद भी वो काफी देर तक चलते रहे । सड़क के किनारों पर कहीं-कहीं इक्का-दुक्का मकान बने हुए थे, बाकी हर जगह सड़क वीरान ही पड़ी मिलती थी। वो कोठी एक-दूसरे से काफी काफी फासले पर बनी हुई थीं।
आखिकरकार इन्हीं छोटी-छोटी कोठियों में से एक हल्के नीले रंग की कोठी के सामने पहुंच कर शिंगूरा की कार यक गई यह कोठी दूसरी कोठियों में काफी दूर और सड़क से काफी अलग-थलग एक खाली जगह पर बनी हुई थी।
टैक्सी ड्राईवर ने भी टैक्सी काफी फासले पर रोक ली।
दस मिनट बाद जब राज को अच्छी तरह अन्दाजा हो गया था कि शिंगूरा कोठी के अन्दर चली गई है तो वो टैक्सी को आहिस्ता-आहिस्ता चलवाता हुआ कोठी के सामने से गुजरा।
राज ने कोठी को गौर से देखा, आधुनिक ढंग से बनी हुई बहुत खूबसूरत कोठी थी। पीछे की तरफ खूबसूरत फूलों से सजा बगीचा भी था।
कोठी का नक्शा और आसपास का माहौल अच्छी तरह याद करे लेने के बाद राज ने ड्राईवर से कहा
"चलो भाई, अब वापस चलते हैं।"
लेकिन वापिसी पर अपने घर जाने के बजाय वो डॉक्टर सावंत के यहां जा पहुंचा और टैक्सी ड्राईवर को साथ लेकर अन्दर चला गया, ताकि उससे प्लाजा होटल के अन्दर की बातों के बारे में पूछ सके।
डॉक्टर सावंत बड़ी बेसब्री से राज को इन्तजार कर रहा था और परेशान था कि हर रोज की तरह आज राज तय वक्त पर क्यों नहीं पहुंचा था?
राज को कमरे में दाखिल होते देखे कर वो कुछ कहना चाहता था, लेकिन राज के पीछे एक अजनबी चेहरा देखकर वो खामोश रह गया।
राज ने इत्मीनान से बैठ कर पहले तो उसे पीछा किए जाने के बारे में बतया, फिर ड्राईवर को साथ लाने का मकसद बताते हुए ड्राईवर से कहां
"अच्छा तो भाई, अब तुम बताओ कि होटल में तुमने क्या मालूम किया और तुम्हें होटल के अन्दर इतनी देर कैसे और कहां लग गई थी....।"
.
.
ड्राईवर ने पहले खंखारकर गला साफ किया, जैसे कोई बड़ी अहम बात कहने जा रहा हो। फिर बोला-"जब मैं होटल में दाखिल हुआ था तो बहुत परेशान था कि मैं क्या करूं ? किससे पूछू? वो औरत कहीं भी मुझे नजर नहीं आई थी, न डायनिग हॉल में, न ही बार में। जब मैं मायूस होकर वापस आने लगा था तब मुझे अपना एक पुराना जानकार वेटर नजर आ गया। मुझे सारी मुश्किल हल होती नजर आने लगी। मैंने उसके पास जाकर उससे इधर-उधर की बातें की और फिर दोनों नोट उसके हाथ में रखे और उससे उस औरत के बारे में पूछा । क्योंकि वो औरत चेहरे पर अजीब सा नकाब पहने रहती है। इसलिए जो शख्स भी उसे एक बार देख लेता है, उसके दिमाग में उसकी याद रह जाती है। वेटर उस औरत की हुलिया सुनकर फौरन समझ गया। उसने मुझे सब कुछ बता दिया। उसने बताया कि पांचवीं मंजिल पर कलकत्ता का एक नौजवान बिनेसमैन ठहरा हुआ है, जो बेहम अमीर है, यह औरत पांच सौ पैंतीस नम्बर में उसी नौजवान से मिलने वहां जाती है।
वो नौजवान तीन महीने से होटल में ठहरा हुआ है और वो और बिना नागा हर रोज उसने मिलने जाती है। दोनों अक्सर साथ घूमने जाते हैं। हालात बताते हैं कि उन्हें एक-दूसरे से मोहब्बत है और उस वक्त भी वो औरत उसी दौलतमंद नौजवान के कमरे में गई हुई थी।
आबादी बहुत पीछे छुट जाने के बाद भी वो काफी देर तक चलते रहे । सड़क के किनारों पर कहीं-कहीं इक्का-दुक्का मकान बने हुए थे, बाकी हर जगह सड़क वीरान ही पड़ी मिलती थी। वो कोठी एक-दूसरे से काफी काफी फासले पर बनी हुई थीं।
आखिकरकार इन्हीं छोटी-छोटी कोठियों में से एक हल्के नीले रंग की कोठी के सामने पहुंच कर शिंगूरा की कार यक गई यह कोठी दूसरी कोठियों में काफी दूर और सड़क से काफी अलग-थलग एक खाली जगह पर बनी हुई थी।
टैक्सी ड्राईवर ने भी टैक्सी काफी फासले पर रोक ली।
दस मिनट बाद जब राज को अच्छी तरह अन्दाजा हो गया था कि शिंगूरा कोठी के अन्दर चली गई है तो वो टैक्सी को आहिस्ता-आहिस्ता चलवाता हुआ कोठी के सामने से गुजरा।
राज ने कोठी को गौर से देखा, आधुनिक ढंग से बनी हुई बहुत खूबसूरत कोठी थी। पीछे की तरफ खूबसूरत फूलों से सजा बगीचा भी था।
कोठी का नक्शा और आसपास का माहौल अच्छी तरह याद करे लेने के बाद राज ने ड्राईवर से कहा
"चलो भाई, अब वापस चलते हैं।"
लेकिन वापिसी पर अपने घर जाने के बजाय वो डॉक्टर सावंत के यहां जा पहुंचा और टैक्सी ड्राईवर को साथ लेकर अन्दर चला गया, ताकि उससे प्लाजा होटल के अन्दर की बातों के बारे में पूछ सके।
डॉक्टर सावंत बड़ी बेसब्री से राज को इन्तजार कर रहा था और परेशान था कि हर रोज की तरह आज राज तय वक्त पर क्यों नहीं पहुंचा था?
राज को कमरे में दाखिल होते देखे कर वो कुछ कहना चाहता था, लेकिन राज के पीछे एक अजनबी चेहरा देखकर वो खामोश रह गया।
राज ने इत्मीनान से बैठ कर पहले तो उसे पीछा किए जाने के बारे में बतया, फिर ड्राईवर को साथ लाने का मकसद बताते हुए ड्राईवर से कहां
"अच्छा तो भाई, अब तुम बताओ कि होटल में तुमने क्या मालूम किया और तुम्हें होटल के अन्दर इतनी देर कैसे और कहां लग गई थी....।"
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ड्राईवर ने पहले खंखारकर गला साफ किया, जैसे कोई बड़ी अहम बात कहने जा रहा हो। फिर बोला-"जब मैं होटल में दाखिल हुआ था तो बहुत परेशान था कि मैं क्या करूं ? किससे पूछू? वो औरत कहीं भी मुझे नजर नहीं आई थी, न डायनिग हॉल में, न ही बार में। जब मैं मायूस होकर वापस आने लगा था तब मुझे अपना एक पुराना जानकार वेटर नजर आ गया। मुझे सारी मुश्किल हल होती नजर आने लगी। मैंने उसके पास जाकर उससे इधर-उधर की बातें की और फिर दोनों नोट उसके हाथ में रखे और उससे उस औरत के बारे में पूछा । क्योंकि वो औरत चेहरे पर अजीब सा नकाब पहने रहती है। इसलिए जो शख्स भी उसे एक बार देख लेता है, उसके दिमाग में उसकी याद रह जाती है। वेटर उस औरत की हुलिया सुनकर फौरन समझ गया। उसने मुझे सब कुछ बता दिया। उसने बताया कि पांचवीं मंजिल पर कलकत्ता का एक नौजवान बिनेसमैन ठहरा हुआ है, जो बेहम अमीर है, यह औरत पांच सौ पैंतीस नम्बर में उसी नौजवान से मिलने वहां जाती है।
वो नौजवान तीन महीने से होटल में ठहरा हुआ है और वो और बिना नागा हर रोज उसने मिलने जाती है। दोनों अक्सर साथ घूमने जाते हैं। हालात बताते हैं कि उन्हें एक-दूसरे से मोहब्बत है और उस वक्त भी वो औरत उसी दौलतमंद नौजवान के कमरे में गई हुई थी।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
आखिर में मेरे दोस्त वेटर से मुझे कहा कि तुम चाहो तो अभी उनको करीब से देखा सकते हो। वो मुझे लिफ्ट से पांचवीं मंजिल पर ले गया। पांच सौ पांच के सामने वाला पांच सौ पैंतीस नम्बर कमरा खाली पड़ा हुआ था और साथ ही पांच सौ पैंतीस के बीच पतली सी दीवार है। वहां से शायद उन लोगों की सारी बातें भी सुनाई दे जाएं। पांच सौ पैंतीस पहले दो कमरों का रूम था जिनके बीच में एक दरवाजा था, अब दरवाज को दोनों तरफ से बन्द करके दो कमरे बना दिये गए हैं। दोनों दरवाजों पर पर्दे टंगे रहते हैं। हो सकता है वहां किसी जगह से कुछ दिखाई भी दे जाए।
मैंने उस दरवाजे के चाबी के छेद में से देखा, उस औरत ने नकाब और चश्मा दोनों उतार रखे थे और नौजवान उसे अपनी गोद में भरे ताबड़तोड़ प्यार कर रहा था। करीब पन्द्रह मिनट में वहीं खड़ा उनकी बातें सुनता रहा। जिनसे मैंने यह समझा कि दोनों एक-दूसरे से बेहद मोहब्बत करते थे। वो दोनों शादी पर दी जाने वाली पार्टी के बारे में प्रोग्राम बना रहे थे। वो नौजवान बहुत खूबसूरत था और दौलतमंद तो वह था ही, लेकिन उसक मुकाबले में वह औरत इतनी ज्यादा हसीन थी कि वैसी हसीन सूरत मैंन आज तक नहीं देखी।''
ड्राईवर खामोश हुआ तो राज ने उससे पूछा
"क्या तुम उस औरत का हुलिया बता सकते हो?"
"उस औरत का हुलिया बताना बहुत मुश्किल है।" ड्राईवर ने जवाब दिया-"वो इतनी ज्यादा हसीन थी कि शब्दों में उसका हुलिया बताना बहुत मुश्किल है। से ब की तरह गाल लाल-लाल, भरे-भरे होंठ, गुलाबी नाक, बड़ी प्यारी सी ठोड़ी, मोतियों जैसे चमकते दांत, बड़ी-बड़ी काली जादू भरी आंखें जिनमें असली जादू था। मेरे ख्याल में अगर वो चश्मा उतारक निकाल करे तो सैंकड़ों आदमी उस पर मर मिटें। और एक खास निशान उसके दायें गाल पर ऐसा था जो उसे पहचानने में भारी मदद कर सकता है। लेकिन मैं यकीन से नहीं कह सकता था कि वो परमानेंट निशान था या टेम्परेरी।"
"कया निशान था वो?" राज ने बेसब्री से पूछा।
"वो कोइ आधे-आधे इंच की दो नीली लकीरें हैं जो पास-पास उसके दाएं गाल पर बनी हुई हैं। क्यों गालों को रंग गुलाबी है इसलिए हल्के नीले रंग की लकीरें साफ नजर आती हैं। लेकिन वो नौजवान उस हसीना को बहशियों की तरह प्यार कर रहा था। वो लकीरें कहीं....मेरा मतलब है....।" ड्राईवर झिझक रहा था।
"ठीक है। मैं तुम्हारा मतलब समझ गया।" राज ने मुस्करा कर कहा।
उसके बाद ड्राईवर ने फिर कहना शुरू किया
"मैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ कर बाहर आ गया था और मैंने अपने दोस्त से कहा था कि कि वो किसी तरह उस नौज्वान का नाम-पता वगैरह बता दे। वो मुझे साथ लेकर होटल के दफ्तर में गया और क्लर्क से उसकी गहरी जान-पहचान लगती थी, क्योंकि वो उससे हंस-हंस कर बातें करता रहा था।
थोड़ी देर बाद उसने आकर मुझे बताया था कि उसे नौज्वान का नाम सलीम अनवर है। वो कलकत्ता के एक दौलतमंद खानदान से सम्बंध रखता है। पता है सिकन्दर विला, चौरंगी कलकत्ता। मैंने जल्दी-जल्दी नाम पता नोट करलिया। उसकी वक्त मैंने दूर से उस औरत को आते देखा और जल्दी-जल्दी वेटर से विदा लेकर बाहर आ गया। बस यही है सारा मामला।” उसने रुक कर गहीर सांस ली।
"काफी अक्मलंद आदमी नजर आते हो।" डॉक्टर सावंत ने पूरी बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा तो वो झेंप गया। राज ने किराये के अलावा दो सौ रुपए और दिए और उसे भेज दिया। और सावधानी के तौर पर उसका पता नोट बुक में नोट कर लिया, ताकि कभी जरूरत पड़े तो आसानी से उसे तलाश कर सके।
ड्राईवर के जाने के बाद डॉक्टर सावंत ने कहा
"आज तो तुमने बहुत काम कर दिए....।"
"जी हां। लेकिन संयोग से चालू ड्राईवर न मिल पाता तो कुछ भी न हो पाता। सिर्फ उसकी कोठी का पता चला लेना कोई अहम काम नहीं था। अहम बातें तो वो है है जो टैक्सी ड्राईवर प्लाजा होटल में मालूम करके आया था।"
"इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारा ड्राईवर बड़ी कामयाब जासूसी करके आया है।" डाक्टर सबांत ने मुस्कराकर कहा, "लेकिन अब देखना यह है कि इन घटनाओं से हम किस नतीजे पर पहुंचते हैं और अब हमें क्या करना है? या इन घटनाओं से हमें क्या फायदा पहुंचा सकता हैं"
"यही तो हमें सोचना हैं" राज बोला, "हमें इन घटनाओं से हमें कोई मदद नहीं मिल सकती। सिवाय इसके कि उस रहस्यमयी औरत की निली जिन्दगी के कुछ हालता हमें मालूम हो चुके हैं। एक सवाल मेरे जेहन में और पैदा होता है कि क्या शिंगूरा वाकई उस सलीम नाम के दौलतमंद नौजवान से शादी कर रही हैं। हो सकता है वो उसे बेवकूफ बना रही हो?"
"नहीं। ऐसा नहीं हो सकता।" डॉक्टर सावंत ने कहा-''शिंगूरा खुद भी काफी मालदार है, उसका भाई मिस्त्री और इण्डियन सामानों का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट करता है। हो सकता है वो उस नौजवान से सच्चा प्यार करती हो और वाकई उससे शादी करना चाहती हो?"
"लेकिन फिर भी मैं उस नौजवान के बारे में कुछ खोजबीन करना चाहता हूं।"
"कैसे?" डॉक्टर सावंत ने हैरत से पूछा।
"उसका नाम और पता मुझे मालूम हो गया है। मैं कलकत्ते में अपने एक दोस्त को आज ही फोन करता हूं कि वो उसके बारे में हमें आज ही सूचना दे दे। खासतौर पर मालूम करे कि बम्बई के इस लम्बे प्रवास में उसने कितना रुपया मंगवाया है या अपने बैंक से निकाला है।"
"इससे क्या हासिल होगा?' डाक्टर सावंत ने पूछा।
"इससे हमें यह मालूम हो जाएगा कि शिंगूरा उस नौजवान से वाकई प्यार करती है या फिर उसे बेवकूफ ही बना रही है।"
"खैर....यह भी करके देख लो।" डॉक्टर सावंत ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, "चलो छोड़ो! कुछ देर काम कर लेते हैं।
आज एक नए सांप का जहर निकालना है।"
"चलिए।" राज ने कहा और वो दोनों लेब्रॉटरी में हर रोज की तरह काम में व्यस्त हो गए।
मैंने उस दरवाजे के चाबी के छेद में से देखा, उस औरत ने नकाब और चश्मा दोनों उतार रखे थे और नौजवान उसे अपनी गोद में भरे ताबड़तोड़ प्यार कर रहा था। करीब पन्द्रह मिनट में वहीं खड़ा उनकी बातें सुनता रहा। जिनसे मैंने यह समझा कि दोनों एक-दूसरे से बेहद मोहब्बत करते थे। वो दोनों शादी पर दी जाने वाली पार्टी के बारे में प्रोग्राम बना रहे थे। वो नौजवान बहुत खूबसूरत था और दौलतमंद तो वह था ही, लेकिन उसक मुकाबले में वह औरत इतनी ज्यादा हसीन थी कि वैसी हसीन सूरत मैंन आज तक नहीं देखी।''
ड्राईवर खामोश हुआ तो राज ने उससे पूछा
"क्या तुम उस औरत का हुलिया बता सकते हो?"
"उस औरत का हुलिया बताना बहुत मुश्किल है।" ड्राईवर ने जवाब दिया-"वो इतनी ज्यादा हसीन थी कि शब्दों में उसका हुलिया बताना बहुत मुश्किल है। से ब की तरह गाल लाल-लाल, भरे-भरे होंठ, गुलाबी नाक, बड़ी प्यारी सी ठोड़ी, मोतियों जैसे चमकते दांत, बड़ी-बड़ी काली जादू भरी आंखें जिनमें असली जादू था। मेरे ख्याल में अगर वो चश्मा उतारक निकाल करे तो सैंकड़ों आदमी उस पर मर मिटें। और एक खास निशान उसके दायें गाल पर ऐसा था जो उसे पहचानने में भारी मदद कर सकता है। लेकिन मैं यकीन से नहीं कह सकता था कि वो परमानेंट निशान था या टेम्परेरी।"
"कया निशान था वो?" राज ने बेसब्री से पूछा।
"वो कोइ आधे-आधे इंच की दो नीली लकीरें हैं जो पास-पास उसके दाएं गाल पर बनी हुई हैं। क्यों गालों को रंग गुलाबी है इसलिए हल्के नीले रंग की लकीरें साफ नजर आती हैं। लेकिन वो नौजवान उस हसीना को बहशियों की तरह प्यार कर रहा था। वो लकीरें कहीं....मेरा मतलब है....।" ड्राईवर झिझक रहा था।
"ठीक है। मैं तुम्हारा मतलब समझ गया।" राज ने मुस्करा कर कहा।
उसके बाद ड्राईवर ने फिर कहना शुरू किया
"मैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ कर बाहर आ गया था और मैंने अपने दोस्त से कहा था कि कि वो किसी तरह उस नौज्वान का नाम-पता वगैरह बता दे। वो मुझे साथ लेकर होटल के दफ्तर में गया और क्लर्क से उसकी गहरी जान-पहचान लगती थी, क्योंकि वो उससे हंस-हंस कर बातें करता रहा था।
थोड़ी देर बाद उसने आकर मुझे बताया था कि उसे नौज्वान का नाम सलीम अनवर है। वो कलकत्ता के एक दौलतमंद खानदान से सम्बंध रखता है। पता है सिकन्दर विला, चौरंगी कलकत्ता। मैंने जल्दी-जल्दी नाम पता नोट करलिया। उसकी वक्त मैंने दूर से उस औरत को आते देखा और जल्दी-जल्दी वेटर से विदा लेकर बाहर आ गया। बस यही है सारा मामला।” उसने रुक कर गहीर सांस ली।
"काफी अक्मलंद आदमी नजर आते हो।" डॉक्टर सावंत ने पूरी बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा तो वो झेंप गया। राज ने किराये के अलावा दो सौ रुपए और दिए और उसे भेज दिया। और सावधानी के तौर पर उसका पता नोट बुक में नोट कर लिया, ताकि कभी जरूरत पड़े तो आसानी से उसे तलाश कर सके।
ड्राईवर के जाने के बाद डॉक्टर सावंत ने कहा
"आज तो तुमने बहुत काम कर दिए....।"
"जी हां। लेकिन संयोग से चालू ड्राईवर न मिल पाता तो कुछ भी न हो पाता। सिर्फ उसकी कोठी का पता चला लेना कोई अहम काम नहीं था। अहम बातें तो वो है है जो टैक्सी ड्राईवर प्लाजा होटल में मालूम करके आया था।"
"इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारा ड्राईवर बड़ी कामयाब जासूसी करके आया है।" डाक्टर सबांत ने मुस्कराकर कहा, "लेकिन अब देखना यह है कि इन घटनाओं से हम किस नतीजे पर पहुंचते हैं और अब हमें क्या करना है? या इन घटनाओं से हमें क्या फायदा पहुंचा सकता हैं"
"यही तो हमें सोचना हैं" राज बोला, "हमें इन घटनाओं से हमें कोई मदद नहीं मिल सकती। सिवाय इसके कि उस रहस्यमयी औरत की निली जिन्दगी के कुछ हालता हमें मालूम हो चुके हैं। एक सवाल मेरे जेहन में और पैदा होता है कि क्या शिंगूरा वाकई उस सलीम नाम के दौलतमंद नौजवान से शादी कर रही हैं। हो सकता है वो उसे बेवकूफ बना रही हो?"
"नहीं। ऐसा नहीं हो सकता।" डॉक्टर सावंत ने कहा-''शिंगूरा खुद भी काफी मालदार है, उसका भाई मिस्त्री और इण्डियन सामानों का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट करता है। हो सकता है वो उस नौजवान से सच्चा प्यार करती हो और वाकई उससे शादी करना चाहती हो?"
"लेकिन फिर भी मैं उस नौजवान के बारे में कुछ खोजबीन करना चाहता हूं।"
"कैसे?" डॉक्टर सावंत ने हैरत से पूछा।
"उसका नाम और पता मुझे मालूम हो गया है। मैं कलकत्ते में अपने एक दोस्त को आज ही फोन करता हूं कि वो उसके बारे में हमें आज ही सूचना दे दे। खासतौर पर मालूम करे कि बम्बई के इस लम्बे प्रवास में उसने कितना रुपया मंगवाया है या अपने बैंक से निकाला है।"
"इससे क्या हासिल होगा?' डाक्टर सावंत ने पूछा।
"इससे हमें यह मालूम हो जाएगा कि शिंगूरा उस नौजवान से वाकई प्यार करती है या फिर उसे बेवकूफ ही बना रही है।"
"खैर....यह भी करके देख लो।" डॉक्टर सावंत ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, "चलो छोड़ो! कुछ देर काम कर लेते हैं।
आज एक नए सांप का जहर निकालना है।"
"चलिए।" राज ने कहा और वो दोनों लेब्रॉटरी में हर रोज की तरह काम में व्यस्त हो गए।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
"चलिए।" राज ने कहा और वो दोनों लेब्रॉटरी में हर रोज की तरह काम में व्यस्त हो गए।
राज ने अपने एक दोस्त को कलकत्ता फोन कर दिया कि वो सलीम अनवर की बैकग्राउंड मालूम करके उसी दिन उसे सूचना दे।
सतीश से भी उसने नई जानकारी का जिक्र कर दिया था। सतीश का सुझाव यह था कि टैक्सी ड्राईवर को उचित मुआवजा देकर शिंगूरा के पीछे लगा दिया जाए। वो आदमी क्योंकि चतुर दिखाई देता था, इसलिए बढ़िया तरीके से काम कर दिखाएगा।
लेकिन डॉक्टर सावंत इस सुझाव का विरोधी था। उसका कहना था, खामखां एक आदमी उसके पीछे लगाना ठीक नहीं है। उसकी गतिविधियां गुप्त नहीं हैं। कोठी से बाहर वो अपना हर काम इस तरह करती है कि किसी को उस पर किसी किस्म का सन्देह न होने पाए।
फिलहाल राज भी उसे मुनासिब नहीं समझता था। क्योंकि टैक्सी ड्राईवर का क्या भरोसा था? आज अगर वो इनके लिए काम करता हो सकता है, किसी तरह शिंगूरा को मालूम हो जाता तो वह ज्यादा पैसा देकर ड्राईवर को खरीद कर इन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल करने लगती।
उसके बाद चार-पांच दिन और इसी तरह गुजर गए। राज के कलकत्ते वाले दोस्त सुधीर की तरफ से उसे अभी तक कोई जवाब नहीं मिला था। उसने एक-दो बार फोन करके सिर्फ इतना कहा था कि जानकारी हासलि कर रहा हूं, जरा देर लग सकती है।
सुधीर की तरफ से राज को सन्तोष था कि वो हर किस्म की जानकारी हासिल करने में कोई कसर न उठा रखेगा। वो क्योंकि किसी वक्त सीक्रआईक्रडीक में नौकरी कर चुका था, इसलिए इस तरह के काम करने उसे आते थे। फिर भी राज बेसब्री से सुधीर की तरफ से किसी बढ़िया जवाब का इन्तजार कर रहा था।
लेकिन उसका जवाब आने से पहले एक अजीब घटना घट गई।
करीब एक हफ्ता गुजर गया था कि एक दिन सतीश और राज सुबह-सुबह नाश्ता को रहे थे जब अखबार वाला अखबारें दे गया। नीलकण्ठे हर रोज की तरह नाश्ते को भी भूलकर एक नजर अखबार की सुर्खियों पर डालने लगा।
जब वो दूसरे पन्ने को देख चुका तो तीसरे पर उसकी नजर पड़ी। यह काले हाशिये में एक मोटी सी सुर्सी थी
कलकत्ता के अमीरजादे की दर्दनाक मौत।
शादी से एक सप्ताह पहले सांप ने डस लिया।
खबर की दूसरी सुर्थी पढ़कर राज के जिस्म में सनसनी की लरह दौड़ गई और चेहरे पर हवाईया सी उड़ने लगीं। सतीश ने भी शायद उसके चेहरे के बदलते रंग देख लिए थे। वो फौरन उठ कर राज के पीछे आ खड़ा हुआ और अखबार की सुर्खियों पढ़ने लगा।
"ओह....।" अखबार की सुर्शियां पढ़कर उसके मुंह से एक तेज सांस निकल गई, जैसे वो सब समझ गया हो। उसके बाद उन्होंने खबर विस्तार से पढ़नी शुरू कर दी।
राज ने अपने एक दोस्त को कलकत्ता फोन कर दिया कि वो सलीम अनवर की बैकग्राउंड मालूम करके उसी दिन उसे सूचना दे।
सतीश से भी उसने नई जानकारी का जिक्र कर दिया था। सतीश का सुझाव यह था कि टैक्सी ड्राईवर को उचित मुआवजा देकर शिंगूरा के पीछे लगा दिया जाए। वो आदमी क्योंकि चतुर दिखाई देता था, इसलिए बढ़िया तरीके से काम कर दिखाएगा।
लेकिन डॉक्टर सावंत इस सुझाव का विरोधी था। उसका कहना था, खामखां एक आदमी उसके पीछे लगाना ठीक नहीं है। उसकी गतिविधियां गुप्त नहीं हैं। कोठी से बाहर वो अपना हर काम इस तरह करती है कि किसी को उस पर किसी किस्म का सन्देह न होने पाए।
फिलहाल राज भी उसे मुनासिब नहीं समझता था। क्योंकि टैक्सी ड्राईवर का क्या भरोसा था? आज अगर वो इनके लिए काम करता हो सकता है, किसी तरह शिंगूरा को मालूम हो जाता तो वह ज्यादा पैसा देकर ड्राईवर को खरीद कर इन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल करने लगती।
उसके बाद चार-पांच दिन और इसी तरह गुजर गए। राज के कलकत्ते वाले दोस्त सुधीर की तरफ से उसे अभी तक कोई जवाब नहीं मिला था। उसने एक-दो बार फोन करके सिर्फ इतना कहा था कि जानकारी हासलि कर रहा हूं, जरा देर लग सकती है।
सुधीर की तरफ से राज को सन्तोष था कि वो हर किस्म की जानकारी हासिल करने में कोई कसर न उठा रखेगा। वो क्योंकि किसी वक्त सीक्रआईक्रडीक में नौकरी कर चुका था, इसलिए इस तरह के काम करने उसे आते थे। फिर भी राज बेसब्री से सुधीर की तरफ से किसी बढ़िया जवाब का इन्तजार कर रहा था।
लेकिन उसका जवाब आने से पहले एक अजीब घटना घट गई।
करीब एक हफ्ता गुजर गया था कि एक दिन सतीश और राज सुबह-सुबह नाश्ता को रहे थे जब अखबार वाला अखबारें दे गया। नीलकण्ठे हर रोज की तरह नाश्ते को भी भूलकर एक नजर अखबार की सुर्खियों पर डालने लगा।
जब वो दूसरे पन्ने को देख चुका तो तीसरे पर उसकी नजर पड़ी। यह काले हाशिये में एक मोटी सी सुर्सी थी
कलकत्ता के अमीरजादे की दर्दनाक मौत।
शादी से एक सप्ताह पहले सांप ने डस लिया।
खबर की दूसरी सुर्थी पढ़कर राज के जिस्म में सनसनी की लरह दौड़ गई और चेहरे पर हवाईया सी उड़ने लगीं। सतीश ने भी शायद उसके चेहरे के बदलते रंग देख लिए थे। वो फौरन उठ कर राज के पीछे आ खड़ा हुआ और अखबार की सुर्खियों पढ़ने लगा।
"ओह....।" अखबार की सुर्शियां पढ़कर उसके मुंह से एक तेज सांस निकल गई, जैसे वो सब समझ गया हो। उसके बाद उन्होंने खबर विस्तार से पढ़नी शुरू कर दी।