Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Sexi Rebel
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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नेकलेस को बंद करके राज ने उसी तरह ज्योति के गले में पहना दिया, जो अभी तक गहरी नींद सो रही थी और शायद कोई अच्छा सपना देखती हुई ही नींद में ही मुस्करा रही थी।
……………………..
अब राज सोच रहा था कि किस तरह उस मिस्त्री सांप का जहर हासिल करके उसके उसी का तोड़ बनाया जाए जिसका तरीका उसके मिस्त्री डॉक्टर दोस्त ने उसे मिस्त्र में बताया था। उसके बाद सतीश का इजाल शुरू किया जाए, मुमकिन हैं वो अभी इलाज की सीमा से बाहर न गया हो।

लेकिन समस्या यह थी कि उस सांप का जहर किस तरह हासिल किया जाए ? सांप जब तक कम से कम एक हफ्ता उसके पास न रहता, उसका जहर हासिल करना मुमकिन नहीं था। एक रात के लिए तो सांप पहले की तरह ही हासिल किया जा सकता था, लेकिन पूरे एक हफ्ते के लिये सांप को ज्योति की जानकारी के बिना गायब रखना मुश्किल था।

कई दिन तक यह समस्या भी राज को परेशान करती रही । फिर आखिर एक दिन उसके जेहन में एक तरकीब आ ही गई।

उसने सोचा कि किसी तरह डॉक्टर जय के यहां से इसी साईज और इसी रंग-रूप वाला वो दूसरा सांप चुरा लिया जाए ओर सांप चुरा लाने के बाद इसी तरह ज्योति और सतीश को नीद की गोलियां खिला कर गहरी नींद सुलाकर दोबारा नेकलेस ज्योति के गले में उतारकर उसमें से मिस्त्री सांप निकाल लिया जाए और उसकी जगह दूसरा सांप रख दिया जाए। उसके बाद नेकलेस फिर से ज्योति की सुराहीदार गर्दन मे डाल दिया, जाए।

इस तरह राज आसानी से मिस्त्री सांप की आठ-दस दिन अपने पास रखकर उसका जहर निकाल सकता था। मजें की बात यह थी कि राज के ख्याल में इस तरह ज्योति को कोई शक भी नही हो सकता था कि उसके नेकलेस में सांप बदल दिया गया हैं । काम सिर्फ इतना था कि जल्दी ही किसी दिन और किसी वक्त बड़ी सफाई से राज डॉक्टर जय की लेब्रॉटरी में से दो दूसरा सांप चुरा लाता।

लेकिन जब राज ने सांप चुराने को स्कीमों पर सोचा तो उसे पता चला कि अभी इस स्कीम में एक बड़ी अड़चन को दूर करना बाकी है। सांप की चोरी के वक्त यह भी जरूरी था कि उसकी जगह भी कोई दूसरा सांप उस शीशे के बॉक्स में रखा जाता, ताकि डाक्टर जय को सांप चोरी हो जाने का शक न हो सके।

अब यह समस्या था कि वैसा सांप कहां से मिलेगा ? लेकिन फौरन ही उसे ख्याल आ गया कि इस तरह का उसी नस्ल और रंग का सांप डॉक्टर नरेन्द्र गुप्ता की लेबॉटरी में मिल सकता है। एक कामयाबी के बाद राज का दिमाग अब बड़ी तेजी से काम करने लगा था।

उसी दिन डॉक्टर की लेब्रॉटरी से राज एक भारतीय नस्ल का छोटा सा सांप ले आया, जिसका आकार तो वैसा ही था,
लेकिन रंग अलग था। उसका रंग बदल देने की तरकीब राज पहले से सोच बैठा था।

यह काम सफलतापूर्वक कर लेने के बाद राज ने अगले दिन के लिए प्रोग्राम सैट करना शुरू कर दियां । प्रोग्राम यह था। कि चोरों की वारदात से पहले किसी तरह डॉक्टर जय को उसकी लेब्रॉटरी से चार-पांच घंटे दूर रखा जाए, ताकि सांप चोरी की स्कीम पर बड़ें आराम और शांति से अमल किया जा सके।

लेकिन इस समस्या से राज ज्यादा परेशान इसलिए नही हुआ, क्योंकि सोचने के लिए उसके पास पूरी रात पड़ी हुई थी।

अब उसे अपने दिमाग पर भरोसा भी होने लगा था कि उसके दिमाग में जासूसी की बहुत सी योग्यताएं मौजूद हैं। वही हुआ भी। सुबह जब वो नींद से जागा तो इसके लिए राज के दिमाग में एक लाजवाब तरकीब तैयार हो चुकी थी।

सुबह दस बजे राज ने एक पी.सी.ओ. से डॉक्र जय को फोन किया। धंटी बजने के करीब आधा मिनट बाद डॉक्टर जय ने खुद रिसीवर उठाया था।
"हैलो, कौन साहब बोल रहे हैं ?"

राज ने बिगड़ी हुई आवाज में जवाब दिया

"माफ कीजिएगा साहब, अगर आप डॉक्टर जय बोल रहे हैं तो तेरा नाम अरविन्द है।"

"अरविन्द साहब........?" डॉक्टर जय की उलझन मे डूबी आवाज आई-मैंने पहचान नहीं आपकों.........।"

“जी हां। वाकई आप मुझें नही जानते, लेकिन मैं आपकों अच्छी तरह जानता हूं। दरअसल इस वक्त मैंने आपकों इसलिए कष्ट दिया हैं क्योकि मैने अपने दोस्त से सुना हैं कि आपकों सांपों के जहरों का काफी अनुभव है। अभी-अभी मेरे रिश्तेदार को एक जहरीले सांप ने डस लिया है। अगर आप कृपा करके यहां तशरीफ लाए तो हमारे परिवार पर एहसान करने के साथ-साथ एक बाल-बच्च्दार आदमी की जान बचाने का पुण्य भी कमा सकते हैं।"

“ओहों, जहरीले सांप ने काट लिया हैं।" डॉक्टर जय की आवाज में दिलचस्पी भर आई,"बहुत अच्छा, मैं आ जाऊंगा। अपना पता बता दीजिए।

“पता तो मैं बता देता हूं, लेकिन आपकों हमारी कोठी ढूढ़ने में थोड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि कोठी शहर से दूर देहाती इलाके में हैं" राज ने शर्मिन्दा से लहजे में कहा।

“कोई बात नही अरंविद साहब, मैं तलाश कर लूंगा।” डॉक्टर जय ने कहा था।

"अगर आप कहे तो मैं अपनी गाड़ी भेज दूं......।" राज ने हवाई छोड़ी
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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"अगर आप कहे तो मैं अपनी गाड़ी भेज दूं......।" राज ने हवाई छोड़ी

"नही-नहीं, इसकी जरूरत नहीं है।" डॉक्टर जय ने जल्दी से कहा, “ मैं अपनी कार से आ जाता हूं। आपकी कार आने और जाने में दोगुना टाइम खराब होगा।

राज ने पता बता दिया। ऐसा पता कि अगर डॉक्टर जय दिल्ली देहात में जिन्दगी भर भी तलाश करता रहता तो उसे कोठी ने मिल पाती । क्योंकि कोठी कहीं थी ही नहीं। इसके अलावा जगह जो उसने बताई थी, वो डॉक्टर जय के घर से इतनी दूर थी कि अगर वो जल्दी ही वहां से मायूस होकर लौटने लगे, तब भी उसे कम से कम दो घंटे वापिस आने में लग जाते , जो नीकलण्ठ के काम के लिए काफी थे।

फोन करने के आधे घंटे बाद ही राज पूरे कील-कांटे से लैस होकर डॉक्टर जय की कोठी पर जा पहुंचा, तब तक डॉक्टर जय को कोठी से गए पन्द्रह-बीस मिनट गुजर चुके थे।

राज हमेशा की तरह सीधा जाकर ड्राईग रूम में बैठ गया

और उसने नौकर को बुलाकर उससे पूछा-“डाक्टर जय कहां है। ?

“किसी मरीज को देखने गए हैं साहब।" उसने जवाब दिया, “आप बैठिए किसी चीज की जरूरत हो तो हुक्म करें।"

"ठीक हैं, जब जरूरत होगी , कह दूंगा।"राज ने कहा।

नौकर सिर झुकाकर वापस चला गया।

नौकर के जाने के बाद कुछ देर राज वक्त गुजारने के लिए अखबार देखता रहां जब उसे यकीन हो गया कि अब कुछ दूर तक कमरे में किसी के आने की आशंका नहीं हैं, तो राज चुपचाप उठा और लेब्रॉटरी की तरफ चल पड़ा।

ड्राईंग रूम और लेब्रॉटरी में तीन दरवाजों वाला एक बरामदा था, जिनमें से एक दरवाजा कोठी के अन्दरूनी हिस्से में खुलता था। बरामदे से गुजरते हुए नीकण्ठ ने सावधानी वश वो दरवाजा भी बंद कर दिया।

लेब्रॉटरी में पहुच कर राज ने वो दूसरा सांप शीशे के बॉक्स में से निकाल कर एक थैली में बन्द करके जब में डाल लिया

और आपने साथ लाए हुए मरे हुए सांप को मेज पर डाल दिया और शीशे का बॉक्स तोड़ दिया। उसके बाद पत्थर का एक भारी जार, जिसमें तेजाब भरा हुआ था, उठा कर मरे हुए सांप पर डाल दिया और तेजाब को अच्छी तरह सांप पर सांप पर उलट दिया।

वो पत्थर का जार शीशे के सांप वाले उस बॉक्स के ऊपर एक ताक में इस तरह रखा हुआ था किसी भी वक्त बॉक्स पर गिर सकता था।

तेजाब पड़ते ही मरे सांप का रंग एकदम काला पडश्न गया। अब इस सैटअप को देख कर कोई भी शख्स यही सोचता कि भारी जार गिरने की वजह से शीशे का बॉक्स टूट गया और सांप कुचला गया और तेजाब से जल भी गया, इसी वजह से उसका रंग भी बदल गया होगा।

राज की सारी कठिनाइयां एक पत्थर के जार ने हल कर दी थी। यह तरकीब भी राज के जेहन में इसलिए आ गई थी कि वो इस जार को पहले दिन ही शीशे के बाक्स के ऊपर ताक में रखे देख चुका था, तभी उसे लगा था कि जरा सा हिलने से ही जार नीचे आ गिरेगा। उसने जय ने कहा भी था कि यह जार गिर गया तो आपका एक सांप और मारा जाएगा, उस जार को यहां से हटा दीजिये , या फिर बॉक्स को।

जय उस वक्त हंस कर बात टाल गया था और जार वहीं का वहीं रखा रह गया जो आज उसके काम आ गया ह। इस पूरे काम नमें राज को मुश्किल से सात-आठ मिनट लगे होंगे। उसके बाद हर चीज को वैसे का वैसा छोड़कर वो वापस ड्राईगरूम में आकर बैठ गया था।

बरामदे का अन्दर की तरफ खुलने वाला दरवाजा अभी तक बन्द था। ड्राईगरूम में पहुंचकर राज ने इत्मीनान की सांस ली और नौकर को बुलाकर चाय की फरमाईश की।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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थोड़ी देर में ही चाय आ गई थीं जब उसके बाद नौकर चाय के बर्तन लेने आया था तो राज ने कहा

"अच्छा भाई, मैं चलता हूं। जय आए तो उनसे कह देना कि मैं आया था और इन्तजार करके चला गया। इस तरह करीब एक घंटे में ही राज एक अहम काम निबटा कर वापस भी लौट आया था।

यह उसकी दूसरी बड़ी कामयाबी थी। इसके बार राज को यकीन हो गया था कि वो अपने दोस्त की जान जरूर बचा लेगा।

उस दिन पहली बार नलीकण्ठ को अहसास हुआ कि फरेब चाहे किसी भी रूम में और कितने भी पर्यों में रह कर किया जा रहा हो एक दिन उसका भेद खुल ही जाता हैं

सांप चुराने के बाद उस दिन राज ने फिर रात के खाने में सतीश और ज्योति दोनों को ही नींद की दवा खिला दी नतीजा यह हुआ कि पहले की तरह दोनों वक्त से पहले ही सो गइ।

बारह बजे के करीब जब किसी भी नौकर के आवागमन की आशंका न रही तो राज चोरों की तरह ज्योति के बेडरूम में जा घुसा। लेकिन उस रात उसके दिल में खौफ और आंतक का निशान मात्र भी नही था। बड़ी लापरवाही से वहा उस खौफनाक नेकलेस को ज्योति की गर्दन से निकाल लाया, जिसे देखकर कभी उसके रोंगटे खड़े हो जाया करते थे।

अपने कमरे में आकर राज ने इत्मीनान से अपने यन्न निकाले और नेकलेस से वो मिस्त्र सांप निकलाकर आज ही
चुराया हुआ सांप उसकी जगह रख दियां

उसके बाद उसके नेकलेस दोबारा ज्योति की सुराहीदार गोली गर्दन में पहना दियां
अब ज्योति के नेकलेस का सांप राज के पास सुरक्षित था

और डॉक्टर जय की लेब्रॉटरी वाला खतरनाक जहरीले दांतों वाला सांप ज्योति के नेकलेस में बन्द था। इस तरह राज को उम्मीद थी कि राज जल्दी से नही खुल सकता । इसलिए राज ने सोचा कि पांच-छः दिन में इत्मीनान से उस सांप का जहर निकालकर सांप को दोबारा ज्योति के नेकलेस मे डाल देगा।

सांप बदलने के इस हम काम से निबटने के बाद राज के दिल को चैन आ गया था और दिमाग को बड़ी राहत मिली थी, तीन-चार महीने के लम्बे अर्से के बाद उस राज पहली बार उसे सुख की नींद आई थी।

दूसरे दिन वो फिर डॉक्टर जय की कोठी पर गया, ताकि जान सके कि उसकी चोरी का भेद तो नही खुल गया। और बेचारा जय कब तक खेतों की खाक छानता रहा था फर्जी कोठी की तलाश में ।

कार पोर्च में रोककर वो ड्राईंग रूम की तरफ बढ़ा तो लेब्रॉटरी मे से उसे डॉक्टर जय की आवाज आती सुनाई दी

"राज , इधर ही आ जाओं, मैं यहां लेब्रॉटरी में हु"

शायद उसने खिड़की में से राज को कार से उतर कर अन्दर की तरफ बढ़ते देख लिया था। नीकण्ठ उसकी आवाज सुन कर पलट पड़ा और लेब्रॉटरी में पहुच गया। वहा डॉक्टर जय एक भयानक छिपकली को प्लास्टिक के नाजुम से यन्त्र में दबाए खड़ा था।

"हैलों डॉक्टर जय! तुम इसके साथ क्या करने जा रहे हों ?" राज ने उसके हाथ में दबी छिपकली की तरफ इशारा करते हुए पूछा।

"कुछ नही यार.......।" डॉक्टर जय ने छिपकली को शीशे के एक बड़े से जार में डालते हुए कहा, “इसका थोड़ा सा जहर निकला रहा हूं।'

"यह छिपकली आम छिपकलियों से बड़ी नहीं हैं ?" राज ने हैरत से पूछा।

"जरा नहीं, काफी बड़ी हैं । यह नस्ल श्रीलंका के पहाड़ी इलाके में पाई जाती है। अरे हां, सुनो.....।'

उसने अचानक छिपकली की बात छोड़कर अपना हाथ राज के कंधे पर रख कर कहा-“यार, कल बहुत बड़ा नुकसान हो गया.............।"

“क्या हुआ था ?"

"वो मिस्त्री सांप था..जिसका जहर बहुत तेज और घातक होता हैं, कल वो........।'

"वही , जिसके बारे में तुमने कहा था कि उसका काटा तीन मिनट से ज्यादा जिन्दा नहीं रह सकता ?" राज ने उसकी
बात काटकर जल्दी से कहा।

'हां हां,वहीं। उसने गर्दन हिलाई-"वो कल मर गया।;

"मर गया.......कैसे मर गया ?" राज ने हैरत की एक्टिंग की।

"कुछ न पूछा यार।" डॉक्टर जय ने अफसोस भरे लहले में कहा-'मैं कल एक काम से बाहर चला गया था, वापिस आकर देखा तो पत्थर का वो भरी मर्तबान नीचे गिरा पड़ा था और । उसके नीचे वो सांप कुचला हुआ पड़ा था। तुमने ठीक कहा था कि अगर मर्तबान गिर पड़ा तो वो कीमती सांप मारा जाएगी। वही हुआ! अपनी लापरवाही से मैं एक अनमोल और दुर्लभ सांप से हाथ धो बैठा......."
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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“ओह........'' राज ने भी झूठा अफसोस जताते हुए कहा-“वाकई एक कीमती और दुर्लभ चीज नष्ट हो गई। लेकिन यार जय, कल तुम गए कहां थे?' मैं आया था कल यहां, मगर इन्तजार से उकता कर वापस चला गया था, तुम देर तक लौटे ही नहीं थे।

"में जानता हूं कि तुम कल आए थे। नौकर ने मुझें आते ही सूचना दी थी। क्या बताऊं यार कल.......।"

उसके बाद जय ने कल फोन आने और फिर कोठी की तलाश में निकलने का किस्सा सुना दिया। फिर उसने कहा- “या तो उसने पता दिया , या फिर मुझें समझने में ही गलती हो गई। करीब ढाई घंटे तक भटकने के बाद वापस लौअ आया था।"

बड़ा बेवकूफ होगा कोई, खामखा तुम्हें परेशान कर दिया!" राज ने हंसी दबातें हुए कहा।

'हां, बेवकूफ ही होगा। लेकिन भगवान जाने उस बेचारे मरीज का क्या बना होगा, जिसे सांप ने काट लिया था। खैर छोड़ों चलो, कुछ चाय वगैरह पीते है।

"क्या तुम यहां का काम खत्म कर चुके हो ?" राज ने पूछा।

"हां ,खत्म ही समझों।" वो यन्त्र को सावधानी से एक तरफ रखते हुए बोला, "आओ चलते हैं।'

वो दोनों ड्राईगरूप में आकर बैइ गए। राज मन ही न खुशा था कि सभी काम अपेक्षानुसार पूरे हो रहे थे, जय को चोरी का सन्देह तक नहीं हो पाया थां

चाय के बाद वो थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करते रहे। बातचीत के दौरान वो पूरे समय में मरने वाले सांप के गुण गिनवाता रहा था और अफसोस प्रकट करता रहा था डॉक्टर जय।

यह घटना सांप बदले जाने के दो दिन बाद की हैं तीसरे पहर सतीश , ज्योति और राज बैठे ताश खेल रहे थे। मौसम हालांकि अभी बदला नहीं था और सर्दी पूरी तरह कम नही हुई थी, फिर भी दोपहर को चहल-पहल कम हो जाने से सन्नाटा सा रहने लगा था।

उस दिन भी ढलती दोपहरी में वो ताश से दिल बहला रहे थे कि ज्योति ने अचानक अपने पत्ते फेंकते हुए कहा-“उफ्फ.....तुम लोग भी कैसे लापरवाह होते जा रहे हो ?" याद नहीं हैं, शाम कों पांच बजे हमें राकेश के यहां चाय पर जाना हैं।'?"

"ओह....... मैं तो भूल ही गया था।" सतीश ने भी पत्ते फेंक दिए। फिर राज की तरफ देख कर बोला-“यह चाय की दावते भी कभी-कभी बुरी तरह बोर करती है। हमारा जीतने का वक्त आया तो यह दावत बीच में आ कूदी! खैर मालिक साहिब की मर्जी .....।"

सतीश कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया। अब राज को भी याद आया कि वाकई सतीश के दोस्त राकेश ने उन्हें शाम की चाय की दावत दे रखी हैं। उन दोनों को उठता देखकर सतीश ने भी पत्ते फेंक दिए।

ज्योति ने सतीश से कहा
“जरा जल्दी से तैयार हो जाना। अपनी आदत के अनुसार बाथरूम में ही गाने गाने मत बैठ जाना या यही पर बैठ गप्पे लड़ाते रह जाओं....।'

“पहले तुम जाकर जल्दी से नहा लो।" सतीश हंसा-“मर्दो की तैयारी का क्या हैं, दो मिनट में तैयार हो लूंगा।

“मुझें तो तैयार होने में कम से कम एक धंटा लगेगा।" ज्योति ने मधुर मुस्कान के साथ कहा- लीजिए सर, मैं तो चल पड़ी।

वो अपने कमरे की तरफ चली गई।

ज्योति को गए हुए करीब पन्द्रह मिनट हुए होंगे, राज और सतीश मजे से तैयार हो रहे थे कि अचानक ज्योति के कमरे से एक भयानक, दर्दनाक चीख उभरी। चीख ज्योति की थी।

राज और सतीश चीख की आवाज सुनकर उछल पड़ें । उन्होंने हैरत से एक-दूसरे की तरफ देखा और कुछ कहे-सुने बगैर ज्योति के कमरे की तरफ दौड़ पड़े।
कमरे के अन्दर से ज्योति के कराहने की आवाज आ रही थी।

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“आह........हाय.......बचाओं सतीश...........मनो..........जा........म.....नो............ज।" संज...............धोखा.........धोखा.....।" वो दोनों दरवाजा खोलने की कोशिश करते रहे और ज्योति के दर्द भरे शब्द धीरे-धीरे डूबते चले गए। यहां तक कि उसकी आवाज आनी बन्द हो गई। कमरे में खामोशी छा गई।

राज और सतीश, दोनों ही घबराए हुए थे और दरवाजा खोलने की कोई तरकीब उनकी समझ में नहीं आ रही थी। इस दौरान ज्योति की चीखें सुकन सारे नौकर भी उनके गिर्द आ जमा हुए थे। जब किसी तरह दोनों से दरवाजा न खुला तो सतीश ने नौकरी को इशारा किया। सभी मिलकर दरवाजे पर जोर लगाने लगे।

तब अन्दर की चिटकनी टूट गई और दरवाजा जोरदार आवाज के साथ खुल गया। राज दरवाजे पर अपना जोर लगाए होने की वजह से अन्दर जा गिरा। लेकिन फौरन ही वो सम्भल गए।

सम्भलते ही राज की निगाह सबसे पहले ज्योति पर पड़ी, लेकिन अन्दर का नजारा देखकर उसके जिस्म में खौफ से झुरझरी दौड़ गई।

सतीश तो वा नजारा देखते ही चीख कर दो कदम पीछे हट गया, राज हैरत और खौफ से स्तब्ध रह गया। जैसे फर्श न उसके पांव जकड़ लिए हो। एक मिनट के अन्दर-अन्दर राज खड़ा-खड़ा पसीने से भीग गया, उसके रोंगटे खड़े हो गए थे।

वो सांप जैसा चांदी का नेकलसे उसकी मी में था ओर वो सांप जो दो दिन पहले राज ने उसके नेकलेस में डाला था, ज्योति के सिरहाने रेंग रहा था।

दो क्षण में ह जब राज सम्भला तो उसने सबसे पहले बढ़ कर उसे जहरीले दोते वाले सांप को मार दिया। अब तक सतीश भी अपनी होशो-हवास पर काबू पा चुका था, उसने जल्दी से एक चादर उठाकर ज्योति के नंगे जिस्म पर डाल दी

सारे नौकर कमरे से बाहर हैरत से मुंह फाड़ें खड़ें अन्दर का दृश्य देख रहे थे। जरूरी कामों से निपटकर राज ने नौकरों से कुछ-न-कुछ काम बता कर वहां से टाल दिया।

तन्हाई होते ही वो ज्योति का मुआयना करने लगा। उसने नब्ज देखी तो बिल्कुल बंद थी। चेहरे को गौर से देखा तो उसे ज्योति के दाए गाल पर एक छोटा सा जख्म नजर आया, जैसे किसी तेज नोकीली चीज की रगड़ लगी हो। इसका मतलब साफ था कि ज्योति के दाए गाल पर उस सांप ने डस लिया था।

ज्योति के गाल पर सांप का काटे का जख्म देखकर राज एब बार फिर चीख कर खड़ा हो गया ओर उसके जेहन में अपने दोस्त उस मिस्त्री डॉक्टर की बातें गूजने लगी।

“वो सांप अगर आपको अपनी जबान से काटता भी रहे तो आपकों कोई फर्क नही पडेगा। कोई नुकसान नही पहुंचेगा। लेकिन अगर किसी तरह इसका जहर आपके खून में दाखिल हो जाए तो दुनिया की कोई ताकत आपकों मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा सकती..... । एक ऐसी मौत से, जिसे कोई डॉक्टर अस्वभाविक मौत नहीं कह सकेगा।

ये शब्द थे, राज के उस मिस्त्री डॉक्टर दोस्त के उस सांप के बारे मे, जिसके मुंह में दांत नहीं होते थे और जिसको अभी दो दिन पहले राज ने ज्योति के नेकलेस से निकालकर उसका जहर हासिल करने के लिए अपने बॉक्स मे रख लिया था।

अब ज्योति के गाल पर सांप के काटें का जख्म देख कर राज को पहली बार अहसास हुआ था कि वो सारा मामला समझ चुका है। ज्योति मिस्त्री सांप का जहर सतीश पर किस तरह इस्तेमाल करती थी।

आज उसे यह भी समझ में आ गया था कि डॉक्टर जय ने उस दिन यह दावा क्यों किया था कि वो हमेशा अपनी प्रेमिका के होंठ ही चूमता हैं, गोलों को छुआ तक नही है।
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