संस्कृति के अब-तक के बेबाक अन्दाज पर वैभव बुरी तरह तिलमिला उठा था। उसने दूर मौजूद टेबल पर बैठे अपने मां-बाप को देखा। यहां के हालात से बेखबर वे अपने आप में मगन थे।
“तुम जानती नहीं हो कि तुम क्या कर रही हो।”
“मैं बस उस रिश्ते को ना कर रही हूं, जो मुझे मंजूर नहीं है।”
वैभव गुस्से को निगलने के प्रयास में वह इधर-उधर देखने लगा।
“तो अब मैं चलूं?” जब खामोशी लम्बी हो गयी तो संस्कृति ने उठने का उपक्रम करते हुए कहा।
“बहरहाल; जाते-जाते इतना याद रखना कि मुझे तीखी मिर्च बेहद पसंद है।” वैभव ने दांत पीसते हुए कहा।
“यदि हमारे यहां मिर्च की खेती होती होगी तो जाते समय आपकी गाड़ी में दो-चार टोकरे रखवा दूंगी।” संस्कृति ने सामान्य स्वर में मुस्कुराते हुए कहा और कुर्सी से खड़ी हो गयी।
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“ये सब क्या है मम्मी? मैंने आपको अपना डिसीजन बता दिया है, उसके बाद भी आपने डैडी को...।”
“मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है।” संस्कृति की बात काट कर सुजाता ने सख्त स्वर में कहा- “जो फैसला उन्होंने सालों पहले ले लिया है, उसे तुम्हारी जिद के आगे पल भर में बदल नहीं सकते।”
“क्यों नहीं बदल सकते? क्या उनका फैसला मेरी जिन्दगी से बढ़कर है? आप भी कभी मेरी तरह एक लड़की रही होंगी, तो क्या उस समय आपने भी पति के रूप में एक ऐसे वहशी और शराबी की ख्वाहिश की थी, जो किसी लड़की को चाय या कॉफी समझकर उसे ‘हॉट’ जैसे बेहूदे कॉम्प्लिमेण्ट्स पास करता है?”
“वैभव उतना बुरा नहीं है, जितना तुम समझ रही हो। हमारी जिन्दगी में कई बार ऐसा होता है कि हम पहली नजर में जिससे नफरत करते हैं, आने वाले दिनों में उसी से बेइंतहा प्यार कर बैठते हैं।”
“ऐसा सिर्फ नाइंटीज की हिंदी फिल्मों में होता था मम्मी। हिरोईनें जिसे थप्पड़ मारती थीं, बाद में उसी से मोहब्बत कर बैठती थीं।”
“वैभव में तुम्हें क्या बुराई नजर आयी? वह पोस्टग्रेजुएट है। उसके पिता एक सक्सेजफुल पॉलिटिशियन हैं। आलीशान बंगला है। परिवार भी छोटा है।”
“मुझे उसकी आंखों में वह बात नहीं नजर आयी, जो एक लड़की अपने हमसफर की आंखों में देखना चाहती है। उसकी मुस्कुराहट, घूरने का अंदाज और बॉडी लैंग्वेज, सब-कुछ मुझे थर्ड क्लास का लगा। जिसके साथ पांच मिनट स्पेण्ड में मुझे वोमिंग जैसी फीलिंग आने लगी, उसके साथ मैं पूरी लाइफ कैसे स्पेण्ड करुंगी? मैं तो ये सोचकर सरप्राइज्ड हूं कि मुझसे एक बार भी बात किये बगैर डैडी ने इस रिश्ते को अपनी ओर से पक्का कैसे कर दिया? एनी वे, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। डैडी ने इस रिश्ते को लेकर कोई बिग अनाउन्समेण्ट नहीं की है। उनके फैसले से अभी-तक केवल हमारा और वैभव का परिवार ही वाकिफ है।
आप उन्हें कुछ भी बोलने से रोक लीजिए। दो परिवारों की इज्जत नीलाम होने से रह जाएगी।”
“और अगर उन्होंने तुम-दोनों के रिश्ते की घोषणा कर दी तो?....तो क्या करोगी तुम?”
संस्कृति के चेहरे पर दृढ़ता ताण्डव करने लगी। उसने निर्णायक लहजे में कहा- “तो मैं चाहकर भी दो परिवारों की बदनामी को नहीं रोक पाऊँगी। जिस समय डैडी रिश्ते की घोषणा करेंगे, उसके तुरन्त बाद, गेस्ट्स के सामने ही मैं उस रिश्ते को ये कहकर खारिज कर दूंगी कि वैभव मुझे पसंद नहीं है।”
“तो क्या तुम मेहमानों के सामने ये उदाहरण प्रस्तुत करोगी कि ठाकुर खानदान की लड़कियां अब मां बाप की पसंद के बजाय अपने पसंद के लड़कों से शादी करने लगी हैं?”
“हां।” संस्कृति ने लापरवाही से कंधे ऊंचकाए- “इसमें गलत क्या है? लोग तो डेली रूटीन की चीजें खरिदते वक्त भी अपने पसंद के रंगों का ध्यान रखते हैं, ऐसे में जब हम लड़कियां लाइफ पार्टनर ढूंढते वक्त अपनी पसंद को ऊपर रखेंगी तो इसमें हैरानी की क्या बात है?” इससे पहले कि सुजाता कुछ बोलतीं, स्टेज पर मौजूद दिग्विजय की आवाज माइक पर गूंज उठी- “लेडिज एण्ड जेण्टलमैन, शायद मुझे आपको ये बताने की जरूरत नहीं कि संस्कृति अपने परदादा के बाद कैम्ब्रिज से ग्रेजुएट होने वाली ठाकुर खानदान की दूसरी शख्सियत बन गयी है।”
दिग्विजय के खामोश होते ही पण्डाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। चूंकि अब संस्कृति लोगों की निगाहों का केन्द्रबिन्दु बन गयी थी, इसलिये माँ-बेटी के बीच चल रही महत्वपूर्ण बातचीत का अन्त हो गया। तालियों की गड़गड़ाहट तब तक नहीं थमी, जब तक दिग्विजय ने दाहिना हाथ उठाकर लोगों को शांत होने का इशारा नहीं किया। तालियों का स्वर शांत होने के बाद दिग्विजय ने माइक सम्भाला और आगे कहा-“विश्वस्तरीय संस्थान से सफलतापूर्वक अपनी पढ़ाई पूरी करके संस्कृति ने न सिर्फ ठाकुर खानदान को बल्कि पूरे शंकरगढ़ को इस बात के लिये फख्र करने का मौका दिया है कि गांवों में बसने वाले भी विदेशों में जाकर अपनी योग्यता का परचम लहरा सकते हैं। संस्कृति की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के उपलक्ष्य में आज मैं उसे ऐसा उपहार देने वाला हूँ, जिसे पाने के बाद उसका सारा जीवन इतराते हुए गुजरेगा। आप सभी ये जानते हैं कि एक बाप की ओर से बेटी के लिये सबसे कीमती उपहार एक योग्य जीवनसाथी से बेहतर और कुछ नहीं होता है, इसलिये आज इस महफिल में मैं ये घोषणा करने वाला हूं कि संस्कृति के जीवन की डोर किस लड़के के जीवन से बंधेगी।”
एक ओर पण्डाल में मौजूद प्रत्येक प्राणी रोमांचित हो उठा, तो वहीं दूसरी ओर संस्कृति की चेतावनी के बारे में सोचकर सुजाता बुरी तरह सहम उठीं। अब इतना वक्त नहीं था कि वे स्टेज पर जाकर पति को बेटी के फैसले से अवगत करा पातीं। भावी अनिष्ट को टालने के लिये उन्होंने आँखें बन्द कर ली और मन ही मन भगवती की स्तुति करने लगी। ठीक इसी क्षण दिग्विजय की आवाज दोबारा गूंजी- “लेकिन घोषणा करने से पहले मैं संस्कृति को अपने पास बुलाना चाहता हूं।”
सुजाता ने चौंक कर आँखें खोल दी। उनकी स्तुति अधूरी रह गयी। बगल में देखने पर उन्होंने पाया कि संस्कृति अब अपनी जगह पर नहीं थी, वह आगे बढ़ चुकी थी। उसके कदम भले ही स्टेज की ओर बढ़ रहे थे, किन्तु नेत्र सुजाता पर ही ठहरे हुए थे, मानो आंखों के जरिये जता रही थी कि दो खानदानों की साख का तमाशा बनने की वजह वही हैं। सुजाता जड़वत् रह गयीं। उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वह भी स्टेज पर जा सकें। बेटी के एक फैसले ने उन्हें दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया था।
Horror ख़ौफ़
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Re: Horror ख़ौफ़
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror ख़ौफ़
मां के अंतर्द्वंद्व की परवाह न करते हुए संस्कृति स्टेज पर पहुंची, जहाँ दिग्विजय के साथ-साथ मृत्युंजय, उसकी पत्नी और वैभव भी थे। संस्कृति ने पहले से ही सोच रखा था कि उसे क्या प्रतिक्रिया देनी है।
संस्कृति के फैसले से अनभिज्ञ दिग्विजय ने उसे वात्सल्यपूर्वक अपने वक्षस्थल से लगाया और दूसरे हाथ में माइक सम्भालते हुए बोले- “हम अपनी बेटी की शादी राज्य के ऊर्जामंत्री मृत्युंजय सिंह ठाकुर के सुपुत्र वैभव सिंह ठाकुर के साथ करने की आधिकारिक घोषणा करते हैं।”
पण्डाल में एक बार फिर तालियों की बाढ़ आ गयी, किन्तु इस बार दिग्विजय ने तालियों को रोकने का कोई उपक्रम नहीं किया।
“साइलेन्स प्लीज।”
पण्डाल में अचानक संस्कृति की आवाज गूंजते ही तालियों का शोर अप्रत्याशित ढंग से बंद हुआ। लोगों को नजर आया कि संस्कृति ने माइक अपने हाथ में ले ली थी। कुछ बोलने से पूर्व उसने दिग्विजय की ओर देखा। उसकी हरकत पर दिग्विजय, मृत्युंजय और उसकी बीबी सकते में आ गये, जबकि वैभव के चेहरे पर मौजूद भाव बता रहे थे कि वह संस्कृति की हरकत का आशय भांप चुका था। स्टेज के नीचे मौजूद सुजाता का कलेजा हलक में आ फंसा।
“हमारी लाइफ में कुछ डिसीजन्स ऐसे होते हैं, जिन्हें हम कभी-कभी अपने पैरेन्ट्स से कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से ले सकते हैं।” संस्कृति ने माइक को दोनों हाथों से थामकर होंठों तक ले जाते हुए कहा- “शादी उन्हीं डिसीजन्स में से एक है।”
पण्डाल में उपस्थित प्रत्येक शख्स अवाक रह गया। दिग्विजय को यकीन ही नहीं हुआ कि जिस बेटी की उपलब्धियों की उन्होंने थोड़ी देर पहले तारीफ़ की, उसी बेटी ने चौंका दिया है। दिग्विजय की निगाहें सुजाता को तलाशने लगीं, किन्तु सुजाता उन्हें कहीं नहीं नजर आयीं। मौके की नजाकत को भांपते हुए उन्होंने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा था। धीरे-धीरे मेहमानों के बीच खुसर-फुसर शुरू हो गयी।
“मैं ये बताते हुए जरा भी गिल्टी नहीं फील नहीं कर रही हूं कि डैड जिसे मेरा लाइफपार्टनर चुनना चाहते है, उसे मैं इस काबिल नहीं समझती कि वह मेरा पति बन सके।”
मेहमानों की खुसर-फुसर को ब्रेक लग गया। ऐसा लगा जैसे किसी थ्रिलर फिल्म का क्लाइमेक्स ख़त्म हो गया। माहौल में व्याप्त हुए तनाव के बीच किसी में इतना साहस नहीं हुआ कि वह कोई ध्वनि उत्पन्न कर सके। दिग्विजय के चेहरे पर हैरत और अविश्वास के साथ-साथ क्रोध भी था, जो गुजरने वाले हर सेकेण्ड के साथ गहराता चला गया।
“मैं लोगों की प्राइवेसी की रेस्पेक्ट करती हूं, इसलिये मि. वैभव की उन कमियों को यहां नहीं बताना चाहती, जिनके कारण मैंने इन्हें खुद के लिये इलिजिबल नहीं समझा।” कहने के बाद संस्कृति ने माइक छोड़ दिया, और लम्बे-लम्बे डग भरते हुए स्टेज से नीचे उतर गयी।
दिग्विजय कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं रहे। बोलते भी क्या? संस्कृति तो उनके मुंह पर कालिख पोत कर स्टेज से उतर चुकी थी। गुस्से के कारण मृत्युंजय की हालत खस्ता थी। वह सिर्फ संस्कृति पर ही नहीं, बल्कि दिग्विजय पर भी ये सोचकर भड़का हुआ था कि जब खुद की बेटी पर उसका अख्तियार नहीं था, तो उसने उसे स्टेज पर बुलाकर सरेआम जलील क्यों किया? मृत्युंजय की गोल-मटोल बीबी के हाथों के भी तोते उड़े हुए थे, उसे अब-तक यकीन नहीं हो पाया था कि नालायक बेटे के लिये ‘हाई एजुकेटेड’ बहु लाने का उसका सपना दो मिनट पहले धराशायी हो चुका है। वैभव की हालत तो ऐसी थी जैसे लोगों के सामने किसी शरारती बच्चे ने उसकी पतलून खींच दी हो।
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संस्कृति के फैसले से अनभिज्ञ दिग्विजय ने उसे वात्सल्यपूर्वक अपने वक्षस्थल से लगाया और दूसरे हाथ में माइक सम्भालते हुए बोले- “हम अपनी बेटी की शादी राज्य के ऊर्जामंत्री मृत्युंजय सिंह ठाकुर के सुपुत्र वैभव सिंह ठाकुर के साथ करने की आधिकारिक घोषणा करते हैं।”
पण्डाल में एक बार फिर तालियों की बाढ़ आ गयी, किन्तु इस बार दिग्विजय ने तालियों को रोकने का कोई उपक्रम नहीं किया।
“साइलेन्स प्लीज।”
पण्डाल में अचानक संस्कृति की आवाज गूंजते ही तालियों का शोर अप्रत्याशित ढंग से बंद हुआ। लोगों को नजर आया कि संस्कृति ने माइक अपने हाथ में ले ली थी। कुछ बोलने से पूर्व उसने दिग्विजय की ओर देखा। उसकी हरकत पर दिग्विजय, मृत्युंजय और उसकी बीबी सकते में आ गये, जबकि वैभव के चेहरे पर मौजूद भाव बता रहे थे कि वह संस्कृति की हरकत का आशय भांप चुका था। स्टेज के नीचे मौजूद सुजाता का कलेजा हलक में आ फंसा।
“हमारी लाइफ में कुछ डिसीजन्स ऐसे होते हैं, जिन्हें हम कभी-कभी अपने पैरेन्ट्स से कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से ले सकते हैं।” संस्कृति ने माइक को दोनों हाथों से थामकर होंठों तक ले जाते हुए कहा- “शादी उन्हीं डिसीजन्स में से एक है।”
पण्डाल में उपस्थित प्रत्येक शख्स अवाक रह गया। दिग्विजय को यकीन ही नहीं हुआ कि जिस बेटी की उपलब्धियों की उन्होंने थोड़ी देर पहले तारीफ़ की, उसी बेटी ने चौंका दिया है। दिग्विजय की निगाहें सुजाता को तलाशने लगीं, किन्तु सुजाता उन्हें कहीं नहीं नजर आयीं। मौके की नजाकत को भांपते हुए उन्होंने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा था। धीरे-धीरे मेहमानों के बीच खुसर-फुसर शुरू हो गयी।
“मैं ये बताते हुए जरा भी गिल्टी नहीं फील नहीं कर रही हूं कि डैड जिसे मेरा लाइफपार्टनर चुनना चाहते है, उसे मैं इस काबिल नहीं समझती कि वह मेरा पति बन सके।”
मेहमानों की खुसर-फुसर को ब्रेक लग गया। ऐसा लगा जैसे किसी थ्रिलर फिल्म का क्लाइमेक्स ख़त्म हो गया। माहौल में व्याप्त हुए तनाव के बीच किसी में इतना साहस नहीं हुआ कि वह कोई ध्वनि उत्पन्न कर सके। दिग्विजय के चेहरे पर हैरत और अविश्वास के साथ-साथ क्रोध भी था, जो गुजरने वाले हर सेकेण्ड के साथ गहराता चला गया।
“मैं लोगों की प्राइवेसी की रेस्पेक्ट करती हूं, इसलिये मि. वैभव की उन कमियों को यहां नहीं बताना चाहती, जिनके कारण मैंने इन्हें खुद के लिये इलिजिबल नहीं समझा।” कहने के बाद संस्कृति ने माइक छोड़ दिया, और लम्बे-लम्बे डग भरते हुए स्टेज से नीचे उतर गयी।
दिग्विजय कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं रहे। बोलते भी क्या? संस्कृति तो उनके मुंह पर कालिख पोत कर स्टेज से उतर चुकी थी। गुस्से के कारण मृत्युंजय की हालत खस्ता थी। वह सिर्फ संस्कृति पर ही नहीं, बल्कि दिग्विजय पर भी ये सोचकर भड़का हुआ था कि जब खुद की बेटी पर उसका अख्तियार नहीं था, तो उसने उसे स्टेज पर बुलाकर सरेआम जलील क्यों किया? मृत्युंजय की गोल-मटोल बीबी के हाथों के भी तोते उड़े हुए थे, उसे अब-तक यकीन नहीं हो पाया था कि नालायक बेटे के लिये ‘हाई एजुकेटेड’ बहु लाने का उसका सपना दो मिनट पहले धराशायी हो चुका है। वैभव की हालत तो ऐसी थी जैसे लोगों के सामने किसी शरारती बच्चे ने उसकी पतलून खींच दी हो।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror ख़ौफ़
2
साहिल ने फ्लैट का दरवाजा अन्दर की ओर धकेला। अन्दर से खुला होने के कारण दरवाजा खुलता ही चला गया। फ्लैट में दाखिल होने के बाद उसने हाथ में मौजूद सब्जियों का थैला टेबल पर रखा और उस लड़के को लक्ष्य करके कहा, जो सोफे पर बैठा किसी पुरानी एल्बम की तस्वीरें देख रहा था- “हाउ वाज द डे यश?”
“फाइन।” लड़के ने एल्बम से नजरें उठाए बगैर कहा।
“तुम्हारे पसंद की सब्जी लाया हूं।”
“थैंक यू।” यश ने सब्जी के थैले पर नजर डालना जरूरी नहीं समझा।
वॉशरूम जाने से पहले साहिल ने उसे गौर से देखा। तस्वीरों को देखने का उसका अन्दाज बता रहा था कि वह उनके जरिये यादों की बिखरी हुई कड़ियां जोड़ने का प्रयास कर रहा था। साहिल के चेहरे पर अनगिनत भाव आये और चले गये। बगैर कुछ कहे वह वॉशरूम की ओर बढ़ गया। उसके जाने के बाद यश ने टेबल पर पड़े सब्जियों के थैले को देखा। थैले में आलू, टमाटर आदि के अलावा कुछ बैंगन भी थे।
लगभग बीस मिनट बाद साहिल वॉशरूम से बाहर आया। रेफ्रीजरेटर से कोल्डड्रिंक का बॉटल निकाला और कांच के दो गिलास के साथ यश के पास आकर बैठ गया। कोल्डड्रिंक को गिलास में पलटने के दौरान उसकी निगाहें यश पर ही ठहरी हुई थीं। उसके वॉशरूम से आकर सोफे पर बैठने के दौरान यश ने एक भी बार उसकी ओर नहीं देखा था।
“ये मम्मी-पापा हैं।” साहिल ने एक तस्वीर पर उंगली रखते हुए कहा। उसकी टिप्पणी के बाद यश ने उस फोटो को गौर से देखा।
“य....यही मम्मी-पापा हैं?”
“हां। तुम गौर से देखोगे तो पाओगे कि तुम्हारी आंखों का रंग और होंठों की शेप बिल्कुल मम्मी के जैसी हैं। मैंने तो माँ-बाप से अनुवांशिक विरासत के रूप में केवल पापा का चौड़ा माथा और लम्बी नाक ही पायी है।”
यश मुस्कुरा उठा। उसने साहिल के बात की सच्चाई परखने के लिये पहले उसके चेहरे पर दृष्टिपात किया, और फिर तस्वीर पर। तस्वीर में एक जोड़ा गार्डन के झूले पर बैठा मुस्कुरा रहा था।
“कोल्डड्रिंक लो।” साहिल ने गिलास उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
यश ने गिलास थामने के बजाय चेहरे पर नासमझी का भाव लिये हुए उसकी ओर देखा।
“माउण्टेन ड्यू....। तुम्हारी फेवरिट कोल्डड्रिंक।.....डर के आगे जीत है।”
यश ने एल्बम बन्द करके बगल में रखने के बाद गिलास थाम लिया।
“चीयर्स नहीं करोगे?”
“ओह....या....चीयर्स।”
कांच के टकराने की ध्वनि समाप्त होते ही दोनों ने गिलास अपने-अपने होठों से लगा लिया।
“अरे हां....।” साहिल चौंका- “एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया।.....जस्ट अ मिनट।”
साहिल ने गिलास सेंटर टेबल पर रखा और जीन्स की साइड पॉकेट से वैलेट निकाला। थोड़ी ही देर में उसके हाथ में दो मूवी टिकट्स नजर आ रहे थे।
“ये ‘द नन’ के मैटिनी शो के टिकट्स हैं। तुम हॉलीवुड की हॉरर फिल्मों के शौकीन हो, स्पेशियली ‘द कांजरिंग यूनिवर्स’ की फिल्मों के, इसीलिये मैं ले आया। यह फिल्म द कांजरिंग सीरीज की अब तक आयी फिल्मों की प्रीक्वल है। इसमें वैलक की ओरिजिन के बारे में बताया गया है।”
“ये कितनी अजीब बात है न भइया कि मेरी पसंद के बारे में मुझसे ज्यादा आप जानते हैं। जिन सब्जियों को आप मेरी पसंद बता रहे हैं, मुझे खुद नहीं मालूम कि उन्हें मैंने आखिरी बार कब खाया था। जिस जेनर की फिल्मों को आप मेरी पसंदिदा फिल्में बता रहे हैं, उस जेनर की किसी फिल्म का नाम तक मुझे नहीं मालूम।” यश ने झुंझलाते हुए कहा और गिलास सेंटर टेबल पर रख दिया- “अतीत को खोकर जीना कितना मुश्किल होता है, ये मुझे आज समझ में आ रहा है। जेहन में अब ना तो किसी दोस्त की पहचान बाकी रह गयी है, और ना ही किसी दुश्मन की। चारों ओर फैली धुंध भरी वीरानी में अपनी पहचान तलाशने के लिए मैं जितनी बार भटकता हूँ, उतनी बार ठोकर खाकर गिर पड़ता हूँ। करोड़ों की भीड़ में खुद को एक ऐसे इंसान के रूप में अकेला पाता हूं, जो कभी तस्वीरों के जरिये मां-बाप को पहचानने की कोशिश करता है, तो कभी एक अनजान शख्स के जरिये अपनी पसंद-नापसंद से रूबरू होता है।”
“नहीं यश।” साहिल ने उसके दोनो कन्धों को पकड़कर झकझोरते हुए कहा- “मैं अनजान नहीं हूं। तेरा भाई, तेरा सगा हूं मैं। हमने....हमने साथ में बचपन बिताया है।”
“जो इंसान अपनी पहचान से महरूम हो, जो इंसान खुद के वजूद से अनजान हो और जो इंसान अपने आप को भी सगा नहीं कह सकता, वह किसी और को सगा कैसे मान सकता है?”
“तुम्हारी यादें वापस आएंगी। मैं वापस लाऊंगा उन्हें।”
साहिल के इस तरह के दावे यश पहले भी सुन चुका था और अब फिर से नहीं सुनना चाहता था, इसीलिये उसने बगैर कुछ कहे चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। साहिल ने उसकी आंखों में भर आये पानी की पहचान आंसुओं के रूप में की। दोनों में से फिर किसी ने सेंटर टेबल पर रखे गिलास को दोबारा हाथ नहीं लगाया। काफी देर की खामोशी के बाद यश अपनी जगह से उठा।
“कहां जा रहे हो?”
“टैरेस पर। शायद शाम की खूबसूरती मेरे दर्द और बेचैनी को कम कर सके।”
कहने के बाद यश बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद साहिल थोड़ी देर तक ख्यालों में गुम रहा, फिर उसने ‘द नन’ की टिकट को वापस वैलेट में रखा और स्टडी टेबल के पास पहुंचा। लैपटॉप का पॉवर बटन ऑन किया। सिस्टम के स्टार्ट होने तक उसने टेबल पर बिखरी बुक्स और नोटबुक्स को किनारे किया।
लैपटॉप स्टार्ट होने के बाद उसने डेक्स्टॉप पर मौजूद क्रोम ब्राउजर के आइकन पर क्लिक किया। गूगल के सर्च बॉक्स में हिन्दी इनपुट टूल की सहायता से ‘ब्रह्मराक्षस’ टाइप किया और एण्टर पर क्लिक करने के बाद सर्च रिजल्ट की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी ही देर में मॉनीटर पर ब्रह्मराक्षस से जुड़ी जानकारियां रखने वाले ब्लॉग्स और वेबसाइट्स की सूची नजर आने लगी। साहिल ने इत्मीनान से उस सूची का अवलोकन किया और फिर एक यूआरएल पर क्लिक कर दिया। यूआरएल के वेबपेज पर ब्रह्मराक्षस के विषय में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध थी। लगभग बीस मिनट तक उसने उस वेबपेज पर मौजूद कंटेंट को पढ़ा और फिर एक ब्लैंक पेपर पर उनका सारांश लिखने लगा।
‘हिन्दू धर्म में वर्णित चौरासी लाख योनियों में से एक योनि ब्रह्मराक्षस की होती है। इनमें देवताओं और राक्षसों के गुण समान रूप से पाये जाते हैं। पीपल के पुराने पेड़ और वीरान पड़ी हवेलियों में इनका वास होता है। ब्रह्मराक्षस योनि को प्रायः वे ब्राह्मण प्राप्त होते हैं, जो दुराचारी होते हैं और अकाल मृत्यु के कारण शरीर त्यागते हैं।
अब-तक ज्ञात सभी पैशाचिक शक्तियों में ब्रह्मराक्षस को सर्वोच्च पैशाचिक शक्ति माना गया है। इन्हें सामान्य तांत्रिक अनुष्ठानों से काबू में नहीं किया जा सकता है। ये दिखने में सामान्य मनुष्यों की भांति होते हैं, किन्तु इनकी शारीरिक भाषा और चेहरे के हाव-भाव डरावने होते हैं। रक्त इतना सर्वाधिक पसंदीदा पेय होता है। शिकार के दौरान ये पशु का रूप धारण कर लेते हैं। हर ब्रह्मराक्षस का पशु-रूप अलग-अलग होता है। श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक और स्वास्तिक चिन्ह इनकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है, इसलिये इन्हें काबू में करने वाले अनुष्ठानों में गीता के श्लोक और स्वास्तिक चिन्ह की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत के मध्य और दक्षिणी भागों में ब्रह्मराक्षस के मन्दिर पाये जाते हैं, जिनमें केरल के कोट्टायम जिले का ब्रह्मराक्षस-मन्दिर सर्वाधिक प्रसिध्द है।’
ब्लैंक पेपर पर उपरोक्त सारांश लिखने के बाद साहिल ने वेबपेज को क्लोज कर दिया। उसका चेहरा तनावग्रस्त हो उठा था। उसने माथा थामकर कुछ देर तक चिन्तन-मनन किया, फिर खड़ा हो गया।
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साहिल ने फ्लैट का दरवाजा अन्दर की ओर धकेला। अन्दर से खुला होने के कारण दरवाजा खुलता ही चला गया। फ्लैट में दाखिल होने के बाद उसने हाथ में मौजूद सब्जियों का थैला टेबल पर रखा और उस लड़के को लक्ष्य करके कहा, जो सोफे पर बैठा किसी पुरानी एल्बम की तस्वीरें देख रहा था- “हाउ वाज द डे यश?”
“फाइन।” लड़के ने एल्बम से नजरें उठाए बगैर कहा।
“तुम्हारे पसंद की सब्जी लाया हूं।”
“थैंक यू।” यश ने सब्जी के थैले पर नजर डालना जरूरी नहीं समझा।
वॉशरूम जाने से पहले साहिल ने उसे गौर से देखा। तस्वीरों को देखने का उसका अन्दाज बता रहा था कि वह उनके जरिये यादों की बिखरी हुई कड़ियां जोड़ने का प्रयास कर रहा था। साहिल के चेहरे पर अनगिनत भाव आये और चले गये। बगैर कुछ कहे वह वॉशरूम की ओर बढ़ गया। उसके जाने के बाद यश ने टेबल पर पड़े सब्जियों के थैले को देखा। थैले में आलू, टमाटर आदि के अलावा कुछ बैंगन भी थे।
लगभग बीस मिनट बाद साहिल वॉशरूम से बाहर आया। रेफ्रीजरेटर से कोल्डड्रिंक का बॉटल निकाला और कांच के दो गिलास के साथ यश के पास आकर बैठ गया। कोल्डड्रिंक को गिलास में पलटने के दौरान उसकी निगाहें यश पर ही ठहरी हुई थीं। उसके वॉशरूम से आकर सोफे पर बैठने के दौरान यश ने एक भी बार उसकी ओर नहीं देखा था।
“ये मम्मी-पापा हैं।” साहिल ने एक तस्वीर पर उंगली रखते हुए कहा। उसकी टिप्पणी के बाद यश ने उस फोटो को गौर से देखा।
“य....यही मम्मी-पापा हैं?”
“हां। तुम गौर से देखोगे तो पाओगे कि तुम्हारी आंखों का रंग और होंठों की शेप बिल्कुल मम्मी के जैसी हैं। मैंने तो माँ-बाप से अनुवांशिक विरासत के रूप में केवल पापा का चौड़ा माथा और लम्बी नाक ही पायी है।”
यश मुस्कुरा उठा। उसने साहिल के बात की सच्चाई परखने के लिये पहले उसके चेहरे पर दृष्टिपात किया, और फिर तस्वीर पर। तस्वीर में एक जोड़ा गार्डन के झूले पर बैठा मुस्कुरा रहा था।
“कोल्डड्रिंक लो।” साहिल ने गिलास उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
यश ने गिलास थामने के बजाय चेहरे पर नासमझी का भाव लिये हुए उसकी ओर देखा।
“माउण्टेन ड्यू....। तुम्हारी फेवरिट कोल्डड्रिंक।.....डर के आगे जीत है।”
यश ने एल्बम बन्द करके बगल में रखने के बाद गिलास थाम लिया।
“चीयर्स नहीं करोगे?”
“ओह....या....चीयर्स।”
कांच के टकराने की ध्वनि समाप्त होते ही दोनों ने गिलास अपने-अपने होठों से लगा लिया।
“अरे हां....।” साहिल चौंका- “एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया।.....जस्ट अ मिनट।”
साहिल ने गिलास सेंटर टेबल पर रखा और जीन्स की साइड पॉकेट से वैलेट निकाला। थोड़ी ही देर में उसके हाथ में दो मूवी टिकट्स नजर आ रहे थे।
“ये ‘द नन’ के मैटिनी शो के टिकट्स हैं। तुम हॉलीवुड की हॉरर फिल्मों के शौकीन हो, स्पेशियली ‘द कांजरिंग यूनिवर्स’ की फिल्मों के, इसीलिये मैं ले आया। यह फिल्म द कांजरिंग सीरीज की अब तक आयी फिल्मों की प्रीक्वल है। इसमें वैलक की ओरिजिन के बारे में बताया गया है।”
“ये कितनी अजीब बात है न भइया कि मेरी पसंद के बारे में मुझसे ज्यादा आप जानते हैं। जिन सब्जियों को आप मेरी पसंद बता रहे हैं, मुझे खुद नहीं मालूम कि उन्हें मैंने आखिरी बार कब खाया था। जिस जेनर की फिल्मों को आप मेरी पसंदिदा फिल्में बता रहे हैं, उस जेनर की किसी फिल्म का नाम तक मुझे नहीं मालूम।” यश ने झुंझलाते हुए कहा और गिलास सेंटर टेबल पर रख दिया- “अतीत को खोकर जीना कितना मुश्किल होता है, ये मुझे आज समझ में आ रहा है। जेहन में अब ना तो किसी दोस्त की पहचान बाकी रह गयी है, और ना ही किसी दुश्मन की। चारों ओर फैली धुंध भरी वीरानी में अपनी पहचान तलाशने के लिए मैं जितनी बार भटकता हूँ, उतनी बार ठोकर खाकर गिर पड़ता हूँ। करोड़ों की भीड़ में खुद को एक ऐसे इंसान के रूप में अकेला पाता हूं, जो कभी तस्वीरों के जरिये मां-बाप को पहचानने की कोशिश करता है, तो कभी एक अनजान शख्स के जरिये अपनी पसंद-नापसंद से रूबरू होता है।”
“नहीं यश।” साहिल ने उसके दोनो कन्धों को पकड़कर झकझोरते हुए कहा- “मैं अनजान नहीं हूं। तेरा भाई, तेरा सगा हूं मैं। हमने....हमने साथ में बचपन बिताया है।”
“जो इंसान अपनी पहचान से महरूम हो, जो इंसान खुद के वजूद से अनजान हो और जो इंसान अपने आप को भी सगा नहीं कह सकता, वह किसी और को सगा कैसे मान सकता है?”
“तुम्हारी यादें वापस आएंगी। मैं वापस लाऊंगा उन्हें।”
साहिल के इस तरह के दावे यश पहले भी सुन चुका था और अब फिर से नहीं सुनना चाहता था, इसीलिये उसने बगैर कुछ कहे चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। साहिल ने उसकी आंखों में भर आये पानी की पहचान आंसुओं के रूप में की। दोनों में से फिर किसी ने सेंटर टेबल पर रखे गिलास को दोबारा हाथ नहीं लगाया। काफी देर की खामोशी के बाद यश अपनी जगह से उठा।
“कहां जा रहे हो?”
“टैरेस पर। शायद शाम की खूबसूरती मेरे दर्द और बेचैनी को कम कर सके।”
कहने के बाद यश बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद साहिल थोड़ी देर तक ख्यालों में गुम रहा, फिर उसने ‘द नन’ की टिकट को वापस वैलेट में रखा और स्टडी टेबल के पास पहुंचा। लैपटॉप का पॉवर बटन ऑन किया। सिस्टम के स्टार्ट होने तक उसने टेबल पर बिखरी बुक्स और नोटबुक्स को किनारे किया।
लैपटॉप स्टार्ट होने के बाद उसने डेक्स्टॉप पर मौजूद क्रोम ब्राउजर के आइकन पर क्लिक किया। गूगल के सर्च बॉक्स में हिन्दी इनपुट टूल की सहायता से ‘ब्रह्मराक्षस’ टाइप किया और एण्टर पर क्लिक करने के बाद सर्च रिजल्ट की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी ही देर में मॉनीटर पर ब्रह्मराक्षस से जुड़ी जानकारियां रखने वाले ब्लॉग्स और वेबसाइट्स की सूची नजर आने लगी। साहिल ने इत्मीनान से उस सूची का अवलोकन किया और फिर एक यूआरएल पर क्लिक कर दिया। यूआरएल के वेबपेज पर ब्रह्मराक्षस के विषय में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध थी। लगभग बीस मिनट तक उसने उस वेबपेज पर मौजूद कंटेंट को पढ़ा और फिर एक ब्लैंक पेपर पर उनका सारांश लिखने लगा।
‘हिन्दू धर्म में वर्णित चौरासी लाख योनियों में से एक योनि ब्रह्मराक्षस की होती है। इनमें देवताओं और राक्षसों के गुण समान रूप से पाये जाते हैं। पीपल के पुराने पेड़ और वीरान पड़ी हवेलियों में इनका वास होता है। ब्रह्मराक्षस योनि को प्रायः वे ब्राह्मण प्राप्त होते हैं, जो दुराचारी होते हैं और अकाल मृत्यु के कारण शरीर त्यागते हैं।
अब-तक ज्ञात सभी पैशाचिक शक्तियों में ब्रह्मराक्षस को सर्वोच्च पैशाचिक शक्ति माना गया है। इन्हें सामान्य तांत्रिक अनुष्ठानों से काबू में नहीं किया जा सकता है। ये दिखने में सामान्य मनुष्यों की भांति होते हैं, किन्तु इनकी शारीरिक भाषा और चेहरे के हाव-भाव डरावने होते हैं। रक्त इतना सर्वाधिक पसंदीदा पेय होता है। शिकार के दौरान ये पशु का रूप धारण कर लेते हैं। हर ब्रह्मराक्षस का पशु-रूप अलग-अलग होता है। श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक और स्वास्तिक चिन्ह इनकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है, इसलिये इन्हें काबू में करने वाले अनुष्ठानों में गीता के श्लोक और स्वास्तिक चिन्ह की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत के मध्य और दक्षिणी भागों में ब्रह्मराक्षस के मन्दिर पाये जाते हैं, जिनमें केरल के कोट्टायम जिले का ब्रह्मराक्षस-मन्दिर सर्वाधिक प्रसिध्द है।’
ब्लैंक पेपर पर उपरोक्त सारांश लिखने के बाद साहिल ने वेबपेज को क्लोज कर दिया। उसका चेहरा तनावग्रस्त हो उठा था। उसने माथा थामकर कुछ देर तक चिन्तन-मनन किया, फिर खड़ा हो गया।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Horror ख़ौफ़
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Re: Horror ख़ौफ़
चटाक।
दुबली-पतली संस्कृति दिग्विजय के तेज थप्पड़ का आवेग नहीं सह सकी, और लहराकर सोफे पर गिर पड़ी।
दिग्विजय के भीषण क्रोध के आगे परिवार का प्रत्येक सदस्य सहम कर रह गया। संस्कृति एक बार सोफे पड़ी तो पड़ी ही रह गयी। उसने उठने का प्रयास नहीं किया और सोफे की पुश्त पर माथा टिकाकर सिसकने लगी। सुजाता बेटी की ओर बढ़ने को उद्यत हुई ही थीं कि दिग्विजय दहाड़ उठे- “वहीं ठहर जाओ सुजाता। किसी भी प्रकार की ममता जताने की कोई जरूरत नहीं है। हमारे थप्पड़ की चोट, उस थप्पड़ की चोट से अधिक नहीं होगी, जो इसने भरी महफिल में हमारे सम्मान के गाल पर मारा है। चार दिन तक अंधेरी कोठरी में बन्द रहेगी तो इसके अन्दर से वह विलायती संस्कार खुद-ब-खुद बाहर निकल जाएगा, जो दस सालों में इसकी रग-रग में दाखिल हो चुका है।”
कोई कुछ नहीं बोला। मेहमानों के सामने हुए अपमान की तिलमिलाहट दिग्विजय के चेहरे के जर्रे-जर्रे से नुमाया हो रही थी। क्रोध की अधिकता के कारण उनके चेहरे का गौर वर्ण रक्तिम पड़ गया था। श्वासों की गति हांफने के स्तर तक तेज थी। शरीर का कम्पन देख कर कोई भी इस गफलत का शिकार हो सकता था कि वे जूड़ी के मरीज हैं।
“वर्षों के कमाये हुए मेरे शान और रुतबे को इस लड़की ने पल भर में ही नेस्तनाबूंद कर दिया। ठाकुर खानदान के माथे पर इसने कलंक का जो टिका लगाया है, वह काला टीका इसके आंसुओं से नहीं धुल सकता।” क्रोध के कारण दिग्विजय की वाणी लड़खड़ायी, किन्तु शीघ्र ही संयत होकर आगे बोले- “यदि ये तुम्हारी जिद है कि तुम मृत्यंजय के बेटे से शादी नहीं करोगी, तो हमारी भी ये जिद सुन लो कि राजमहल की दहलीज से तुम्हारी डोली उठेगी तो सिर्फ मृत्युंजय सिंह ठाकुर की दहलीज तक जाने के लिये।”
दिग्विजय का फैसला सुन संस्कृति ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया, और हिचकियों के बीच कहा- “मेरी जिद के आगे आपकी जिद हार जाएगी। मैं मरना कुबूल कर लूंगी, लेकिन उस लड़के से शादी करना कभी नहीं क़ुबूल करूंगी, जिसकी आंखों में मैंने खुद के लिये वहशीपन देखा है। आप अपना पॉलिटिकल कैरियर संवारने के चक्कर में अपनी बेटी की जिन्दगी एक हैवान के साथ जोड़ना चाहते हैं। आप मेरी लाइफ की इतनी इम्पोर्टेन्ट डिसिजन बिना मुझे बताये कैसे ले सकते हैं? क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं कि मैं उस शख्स को अपनी कसौटी पर परख सकूं, जिसके साथ मुझे जिन्दगी गुजारनी है?”
“ये तुम नहीं तुम्हारी विलायती सोच बोल रही है। आधुनिक बनने की अंधी दौड़ में आज की युवा पीढ़ी इस कदर गुमराह हो चुकी है कि मां-बाप की पसंद को अपने पैमाने पर परखने की मांग करने लगी है। मृत्युंजय के बेटे को इस परिवार का हर सदस्य तुम्हारे लिये योग्य मानता है।”
“हर फैमिली मेम्बर नहीं डैडी। सिर्फ आपके जिद ने वैभव को मेरे लिये परफैक्ट माना है। कोई भी फैमिली मेम्बर ये जानते हुए भी कि वह एक अय्याश पॉलिटिशियन का शराबी और निकम्मा बेटा है, उसे मेरे पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।”
“इस बेवकूफ लड़की की सोच से कितने लोग सहमत हैं?” दिग्विजय ड्राइंग रूम में मौजूद सदस्यों को लक्ष्य करके चिल्ला उठे- “कितने लोग हैं, जो ये मानते हैं कि हम अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिये इसे एक हैवान के साथ बांधना चाहते हैं?”
सभी सदस्यों ने नजरें झुका ली। दिग्विजय के भीषण क्रोध के दावानल से भयभीत थे, या वास्तव में उनके फैसले से सहमत थे? कहना मुश्किल था।
“देखा तुमने? हर कोई ये मान रहा है कि हमारा फैसला तुम्हारे हित में है।”
संस्कृति बगैर कुछ कहे सिसकती रही।
“हम कल कुलगुरु को विवाह का मुहूर्त निकलवाने के लिये राजमहल बुला रहे हैं। हमें उम्मीद है कि तब तक तुम हमारे फैसले को स्वीकार कर चुकी होगी।”
कहने के बाद दिग्विजय वहां एक पल भी नहीं ठहरे।
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दुबली-पतली संस्कृति दिग्विजय के तेज थप्पड़ का आवेग नहीं सह सकी, और लहराकर सोफे पर गिर पड़ी।
दिग्विजय के भीषण क्रोध के आगे परिवार का प्रत्येक सदस्य सहम कर रह गया। संस्कृति एक बार सोफे पड़ी तो पड़ी ही रह गयी। उसने उठने का प्रयास नहीं किया और सोफे की पुश्त पर माथा टिकाकर सिसकने लगी। सुजाता बेटी की ओर बढ़ने को उद्यत हुई ही थीं कि दिग्विजय दहाड़ उठे- “वहीं ठहर जाओ सुजाता। किसी भी प्रकार की ममता जताने की कोई जरूरत नहीं है। हमारे थप्पड़ की चोट, उस थप्पड़ की चोट से अधिक नहीं होगी, जो इसने भरी महफिल में हमारे सम्मान के गाल पर मारा है। चार दिन तक अंधेरी कोठरी में बन्द रहेगी तो इसके अन्दर से वह विलायती संस्कार खुद-ब-खुद बाहर निकल जाएगा, जो दस सालों में इसकी रग-रग में दाखिल हो चुका है।”
कोई कुछ नहीं बोला। मेहमानों के सामने हुए अपमान की तिलमिलाहट दिग्विजय के चेहरे के जर्रे-जर्रे से नुमाया हो रही थी। क्रोध की अधिकता के कारण उनके चेहरे का गौर वर्ण रक्तिम पड़ गया था। श्वासों की गति हांफने के स्तर तक तेज थी। शरीर का कम्पन देख कर कोई भी इस गफलत का शिकार हो सकता था कि वे जूड़ी के मरीज हैं।
“वर्षों के कमाये हुए मेरे शान और रुतबे को इस लड़की ने पल भर में ही नेस्तनाबूंद कर दिया। ठाकुर खानदान के माथे पर इसने कलंक का जो टिका लगाया है, वह काला टीका इसके आंसुओं से नहीं धुल सकता।” क्रोध के कारण दिग्विजय की वाणी लड़खड़ायी, किन्तु शीघ्र ही संयत होकर आगे बोले- “यदि ये तुम्हारी जिद है कि तुम मृत्यंजय के बेटे से शादी नहीं करोगी, तो हमारी भी ये जिद सुन लो कि राजमहल की दहलीज से तुम्हारी डोली उठेगी तो सिर्फ मृत्युंजय सिंह ठाकुर की दहलीज तक जाने के लिये।”
दिग्विजय का फैसला सुन संस्कृति ने आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया, और हिचकियों के बीच कहा- “मेरी जिद के आगे आपकी जिद हार जाएगी। मैं मरना कुबूल कर लूंगी, लेकिन उस लड़के से शादी करना कभी नहीं क़ुबूल करूंगी, जिसकी आंखों में मैंने खुद के लिये वहशीपन देखा है। आप अपना पॉलिटिकल कैरियर संवारने के चक्कर में अपनी बेटी की जिन्दगी एक हैवान के साथ जोड़ना चाहते हैं। आप मेरी लाइफ की इतनी इम्पोर्टेन्ट डिसिजन बिना मुझे बताये कैसे ले सकते हैं? क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं कि मैं उस शख्स को अपनी कसौटी पर परख सकूं, जिसके साथ मुझे जिन्दगी गुजारनी है?”
“ये तुम नहीं तुम्हारी विलायती सोच बोल रही है। आधुनिक बनने की अंधी दौड़ में आज की युवा पीढ़ी इस कदर गुमराह हो चुकी है कि मां-बाप की पसंद को अपने पैमाने पर परखने की मांग करने लगी है। मृत्युंजय के बेटे को इस परिवार का हर सदस्य तुम्हारे लिये योग्य मानता है।”
“हर फैमिली मेम्बर नहीं डैडी। सिर्फ आपके जिद ने वैभव को मेरे लिये परफैक्ट माना है। कोई भी फैमिली मेम्बर ये जानते हुए भी कि वह एक अय्याश पॉलिटिशियन का शराबी और निकम्मा बेटा है, उसे मेरे पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।”
“इस बेवकूफ लड़की की सोच से कितने लोग सहमत हैं?” दिग्विजय ड्राइंग रूम में मौजूद सदस्यों को लक्ष्य करके चिल्ला उठे- “कितने लोग हैं, जो ये मानते हैं कि हम अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिये इसे एक हैवान के साथ बांधना चाहते हैं?”
सभी सदस्यों ने नजरें झुका ली। दिग्विजय के भीषण क्रोध के दावानल से भयभीत थे, या वास्तव में उनके फैसले से सहमत थे? कहना मुश्किल था।
“देखा तुमने? हर कोई ये मान रहा है कि हमारा फैसला तुम्हारे हित में है।”
संस्कृति बगैर कुछ कहे सिसकती रही।
“हम कल कुलगुरु को विवाह का मुहूर्त निकलवाने के लिये राजमहल बुला रहे हैं। हमें उम्मीद है कि तब तक तुम हमारे फैसले को स्वीकार कर चुकी होगी।”
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