Horror ख़ौफ़

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rajsharma
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Re: Horror ख़ौफ़

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मृत्युंजय की पत्नी का कद नाटा था। रंग गोरा तो था किन्तु नैन-नक्श इस दर्जे के न थे कि उसे ‘खूबसूरत’ विशेषण से नवाजा जा सकता। चर्बीयुक्त बेडौल जिस्म पर लदे गहने देख कर उसे औरत की बजाय गहनों की चलती-फिरती दुकान कहना ज्यादा मुनासिब था। वैभव नामधारी मृत्युंजय के बेटे का कद अधिक ऊंचा न होते हुए भी कम से कम मां-बाप से तो ऊंचा ही था। उसके बाल घुंघराले थे। चमड़े की रंगत बाप की रंगत से मेल खाती थी। रंगीनमिजाजी में वह बाप से भी कई हाथ आगे था। तेजरहित आंखों में व्याप्त लालिमा के बीच नशे के डोरे भी नजर आ रहे थे। कदमों की लड़खड़ाहट बता रही थी कि उसने ड्रिंक कर रखा था। शायद यही वजह थी, जो मंत्री महोदय के निजी अंगरक्षकों में से एक उसके करीब था, ताकि कदमों की लड़खड़ाहट उसके लुढ़कने की वजह न बनने पाए।

“राजमहल में तुम्हारा स्वागत है मृत्युंजय।” दिग्विजय अपनी दोनों बाहें फैलाये हुए मृत्युंजय की ओर बढ़े और देखते ही देखते वे दोनों एक दूसरे से लिपट गये।

“माफी चाहता हूं ठाकुर साहब। थोड़ी सी देर हो गयी।” मृत्युंजय मुंह फाड़ते हुए बाकी लोगों की ओर मुखातिब हुआ।

“हमें कोई ऐतराज नहीं है मंत्री महोदय। हमने ये समझकर संतोष कर लिया कि आप करीबी दोस्त की पार्टी को भूल से किसी स्कूल या कॉलेज का फंक्शन समझ बैठे होंगे।”

अरुणोदय के कथन पर ठहाके गूंज उठे। मृत्युंजय, अरुणोदय और चन्द्रोदय से भी उतनी ही गर्मजोशी से मिला, जितनी गर्मजोशी से वह दिग्विजय से मिला था।

“कई अर्से गुजर गये इस आपसी रिश्ते को ‘करीबी दोस्ती’ का नाम देते हुए। अब तो हम चाहते हैं कि इस रिश्ते का नाम बदलकर कुछ और रख दिया जाए।” मृत्युंजय की बीबी ने खींसे निपोरी।

“जी हाँ...जी हाँ...! क्यों नहीं? हम तो कब से आपकी ओर से ‘हां’ का इन्तजार कर रहे हैं।”

“रिश्ते से याद आया....संस्कृति कहीं नजर क्यों नहीं आ रही है?” मृत्युंजय ने चारों ओर नजरें घुमाते हुए कहा।

“संस्कृति कहां रह गयी सुजाता?” दिग्विजय, सुजाता की ओर पलटे।

“अभी तैयार हो रही होगी शायद। गांव की लड़कियां उसके साथ हैं।”

“अगर संस्कृति को तैयार करने के लिये तुमने गांव की लड़कियों को लगाया है तो इस काम में अभी एक घण्टा और लगेगा। उनका ध्यान संस्कृति को तैयार करने में कम और विलायत के अनुभव सुनने में ज्यादा होगा। तुम जाओ और उसे अपने साथ लेकर आओ।”

“अभी जाती हूं।”

सुजाता पलटीं और महल की ओर बढ़ चलीं।

“विराजिए मंत्री जी।”

मृत्युंजय बीबी और बच्चे के साथ अपने लिए निर्धारित स्थान पर विराजमान हो गया। थोड़ी ही देर में नौकरों ने मेज को नाश्ते से भर दिया।

“राजनीतिक जीवन कैसा चल रहा है मंत्री जी?”

“अभी तक पानी शांत है।” मृत्युंजय ने अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ कहा- “विपक्ष की ओर से कंकड़ मारकर कोई हलचल पैदा करने की कोशिश नहीं की गयी है।”
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

“आगामी चुनाव में आपको विपक्ष की ओर से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। आपकी सरकार की दो-चार खामियों को मुद्दा बनाकर उन्होंने कई दिनों तक विधानसभा की कार्यवाही को ठप्प कर रखा था।”

“विपक्ष की ओर से अगर इतना भी हंगामा न हो तो फिर उसे विपक्ष कौन कहेगा।” मृत्युंजय लापरवाह अंदाज में हंसा- “फिलहाल हमारी पार्टी भी चुनावी जीत का चाणक्य कही जाने वाली दिग्गज हस्तियों से भरी पड़ी है। इस बार भी जीत हमारी ही होगी।”

“आमीन।”

उनके बीच चल रही इस तरह की बातों का सिलसिला लगभग बीस मिनट बाद तब थमा जब सुजाता, संस्कृति को लेकर आती हुई नजर आयी। वैभव की निगाहें संस्कृति पर ठहरीं तो फिर वहां से फिसल न सकीं।

संस्कृति ने गोल्डन बॉर्डर वाली नीली साड़ी पहन रखी थी, और उसी के साथ मैच करता स्लीवलेस ब्लाउज भी। चूंकि उसने पहली बार साड़ी पहनी थी, इसलिये सम्भल कर चलने के प्रयास में नजाकत उसकी चाल में स्वतः ही शामिल हो गयी थी। उसकी खूबसूरती वैभव के दिल पर बिजली बनकर गिरी। रोकने के लाख प्रयासों के बाद भी उसके होठों से अस्फुट स्वर में निकल ही पड़ा- “गॉर्जियस।”

संस्कृति ने आते ही सबसे पहले मृत्युंजय और उसकी बीबी के पांव छुए।

“जीती रहो।” मृत्युंजय के कुछ बोलने से पहले ही उसकी बीबी चहक उठी- “हमें डर था कि कहीं हमारी होने वाली बहु विलायती संस्कारों में रंग कर भारतीय परम्पराओं को भूल न गयी हो, लेकिन ईश्वर का शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ। दस साल विलायत में गुजारने के बाद भी तुम्हारे अन्दर भारतीय संस्कार जीवित हैं।”

संस्कृति पर मानो वज्रपात हुआ। ‘होने वाली बहु।’ इस वाक्यांश ने उसे पाषाणप्रतिमा में तब्दील कर दिया। मृत्युंजय की बीबी के साथ-साथ वहां मौजूद हर शख्स के चेहरे पर मुस्कान देख वह सुजाता की ओर पलटी। मां होने के नाते सुजाता उसकी भावनाओं को समझ गयीं। उन्होंने मृत्युंजय के बगल में बैठे वैभव, जिसकी निगाहें अब-तक एक पल के लिये भी संस्कृति के चेहरे से नहीं हटी थी, की ओर इशारा करते हुए कहा- “ये वैभव है। मंत्री साहब का इकलौता लड़का। इसी साल एमबीए पासआउट हुआ है।”

वैभव मानो इसी की प्रतीक्षा कर रहा था। संस्कृति की ओर से कोई प्रतिक्रिया आती, इससे पहले ही वह तपाक से उठ खड़ा हुआ, और अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला- “आपको देख कर खुशी हुई मिस गॉर्जियस। यू ऑर रियली सो हॉट एण्ड सेक्सी।”

बोलते समय वैभव की सांसों से आती शराब की दुर्गन्ध के कारण संस्कृति को ऊबकाई आयी। पहली मुलाकात में ही उसका जेहन वैभव के प्रति घृणा से भर गया। उसे ज़रा भी अनुमान नहीं था कि वैभव सभ्यता से इतना दूर होगा कि बड़ों के सामने ही उसके लिए ‘हॉट एण्ड सेक्सी’ जैसे घटिया कॉम्प्लिमेण्ट का प्रयोग कर देगा। उसने ऐसे इंसान के साथ हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़ना बेहतर समझा।

“सेम हियर।” हाथ जोड़ते हुए वह बड़ी मुश्किल से मुस्कुरा पायी। इस दौरान उसे पहली दफा पता चला कि किसी के प्रति मन में घृणा रखते हुए मजबूरीवश उसके लिये मुस्कुराना कितना दुरुह कार्य होता है।

वैभव ने शर्मिंदगी महसूस करते हुए अपना हाथ वापस खींच लिया, जबकि अन्य लोग संस्कृति के इस व्यवहार को नारी सुलभ आचरण समझ कर हंस पड़े।

“हमें इन दोनों को अकेला छोड़ कर किसी और टेबल पर चलना चाहिए, ताकि घोषणा होने तक ये दोनों एक-दूसरे से बेहतर ढंग से रूबरू हो जाएंगे।”
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Re: Horror ख़ौफ़

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Horror ख़ौफ़

Post by rajsharma »

दिग्विजय का निर्णय सुन सभी खड़े हो गये। संस्कृति समझ गयी कि उसके डैड क्या घोषणा करने वाले हैं। ‘डैडी मेहमानों के सामने इस लम्पट के साथ मेरी शादी की ऑफिसियल अनाउन्समेण्ट करेंगे।’ इस अनुमान के जेहन में दस्तक देते ही संस्कृति ने एक बार फिर असहज होकर सुजाता की ओर देखा। सुजाता भी अन्य लोगों की तरह वहां से जा रही थीं, किन्तु संस्कृति उन पर झपट पड़ी।

“य....ये अचानक हो क्या रहा है मम्मी? क्या डैडी के पास टाइम पास करने के लिये यही एक घटिया जोक था?”

“धीरे बोल। तेरे ग्रेजुएट होने की खुशी में डैडी ने तुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया है।”

“ये नमूना? य..ये नमूना मेरा सरप्राइज गिफ्ट है?” हैरान संस्कृति ने वैभव पर एक नजर डाली।

“हां। अब जा।”

“लेकिन मम्मी......।”

संस्कृति की बात अनसुनी करते हुए सुजाता भी वहां से निकल गयीं। मां-बेटी के बीच हुए इस संक्षिप्त वार्तालाप को कोई तीसरा न सुन सका। संस्कृति टेबल की ओर पलटी, जहाँ अकेला बैठा वैभव उसी की ओर देख रहा था। संस्कृति ने निचला होंठ दांतों तले दबाया। आँखें बन्द की। गहरी सांस लेकर आने वाली चुनौतियों के लिये खुद को तैयार किया और टेबल के पास पहुंची।

“मैंने सुना है कि तुम उस कॉलेज से पढ़ कर आयी हो, जहां से न्यूटन ने अपनी रिसर्च पूरी की थी।” संस्कृति के बैठते ही वैभव ने कहा।

“हां।” ‘तुम’ शब्द के इस्तेमाल से संस्कृति फिर तिलमिलाई, किन्तु उसने इसका प्रभाव वार्तालाप की शैली पर नहीं पड़ने दिया और आगे कहा- “कैम्बिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से। यहीं से स्टीफन हॉकिंग ने भी कॉस्मोलॉजी में रिसर्च की थी।”

“तुमने मुझसे हाथ क्यों नहीं मिलाया?”

“क्योंकि मुझे अजनबियों के साथ शेकहैंड्स करना पसंद नहीं है।”

“हम अजनबी नहीं हैं। हम दोनों के परिवार वाले एक-दूसरे के बेहद करीब हैं।”

“मैं हर उस शख्स को अजनबी मानती हूं, जिसे मैं पर्सनली नहीं जानती।”

“हम एक दूसरे को पर्सनली जान सकें, इसलिये हमें अकेला छोड़ा गया है। तुम मेरे बारे में जो कुछ जानना चाहती हो, पूछ सकती हो।”

“मैं आप में इंटरेस्टेड नहीं हूँ।”

“कमाल है।” वैभव ने खींसे निपोरी- “हमारी शादी होने वाली है। एक-दूसरे से जुड़ी बेसिक चीजें तो जाननी ही होंगी।”

“किसने कहा कि हमारी शादी होने वाली है?”

संस्कृति का सख्त स्वर और वैभव भौचक्क।

“तो क्या....तो क्या तुम्हें नहीं मालूम कि तुम्हारे कैम्ब्रिज से लौटने की खुशी के नाम पर ये पार्टी इसीलिये ऑर्गेनाइज की गयी है ताकि मेरे और तुम्हारे डैड, हम दोनों की शादी की ऑफिसियल अनाउन्समेण्ट कर सकें?”

“हां। लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा है कि मेरे फैमिली वाले मुझे बताये बिना ही मेरी लाइफ की एक इम्पोर्टेण्ट डिसीजन ले चुके हैं। लेकिन इतना तो तय हैं कि इस टॉपिक पर जब तक मैं कुछ नहीं बोलूंगी, तब तक किसी भी अनाउन्समेण्ट को ऑफिसियल नहीं कहा जा सकता। शादी मुझे करनी है, मेरे डैड को नहीं।”

वैभव आसामान से सीधा जमीन पर आ गिरा। उसे सूझा ही नहीं कि क्या जवाब दे।

“क्या हुआ? साड़ी में लिपटी एक लड़की के होठों से मॉडर्न बातें सुन कर भौच्चक रह गये आप?” संस्कृति, वैभव की मनोदशा पर खुल कर हंसी।

“जब खुद को इतना मॉडर्न समझती हो कि अपने किसी फैसले में पैरेण्ट्स की थिंकिंग को कोई अहमियत नहीं देती हो, तो फिर भारतीय आचरण का अनुसरण करने का ये दिखावा किसलिये?” वैभव चिढ़ गया।

“मैं कोई दिखावा नहीं करना चाहती थी, और न ही दो गज के कफन जैसी इस साड़ी में लिपटना चाहती थी, लेकिन मम्मी के कहने पर मुझे ऐसा करना पड़ा। मम्मी चाहती थीं कि मैं मेहमानों के सामने भारतीय परम्पराओं में ढली लड़की के रूप में पेश आऊँ।”

परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में संस्कृति को मानो अपनी भड़ास निकालने का पूरा मौका मिल गया था।

“तुम कहना क्या चाहती हो?” वैभव आशंकित नजर आने लगा।

“मैं डैडी के फैसले के पक्ष में नहीं हूँ।” संस्कृति ने दो टूक लहजे में कहा।

“यानी कि तुम इस शादी से इनकार कर रही हो?”

“हाँ, क्योंकि मैंने अभी शादी के बारे में दूर-दूर तक कुछ नहीं सोचा है।”

“तो अब सोचो। हमारे देश में लड़कियों की शादी के लिये मिनिमम एज बार अट्ठारह साल है। तुम उस एज बार को क्रॉस कर चुकी हो।”

“जरूरत होने पर मैं भी सोचना शुरू कर दूंगी।”

“तो मैं ये मान लूं कि तुम अपने पैरेण्ट्स के खिलाफ जाकर हमारे रिश्ते को नामंजूर कर दोगी?”

“बेशक। मुझे तो यहां आने तक ये पता भी नहीं था कि मेरे ग्रेजुएट होने की खुशी में डैडी मुझे ऐसी बेहूदा सरप्राइज गिफ्ट देने वाले हैं।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकती।” अब-तक नर्म स्वर में बातें करता वैभव अचानक उग्र हो उठा। उसने हाथ के दोनों पंजे मेज पर टिकाए और संस्कृति की आंखों में झांकते हुए बोला- “मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा।”

वैभव की सांसों से आती शराब की दुर्गन्ध को संस्कृति झेल न सकी। आखिरकार उसने रुमाल निकाल लिया।

“आप बेवकूफ हैं।”

“माइण्ड योर लैंग्वेज।” वैभव इतनी तेज चीखा कि आस-पास के मेहमानों का रुख उन दोनों की ओर हो गया- “मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहता।”

“तमाशा मैं भी नहीं करना चाहती हूँ, इसीलिये ये बातें मैं अकेले में कह रही हूँ। चाहती तो उसी समय कह सकती थी, जिस समय आपकी माँ ने ओवरएक्साइटमेंट में मुझे ‘होने वाली बहु’ का दर्जा दे दिया था।”

“यदि तुमने ये रिश्ता ठुकराया तो तुम्हारा बाप तुम्हें जीते जी जमीन में दफन कर देगा।” वैभव की आँखों से चिंगारियां बरसने लगी थीं। नशे के कारण पहले से ही सूर्ख उसकी आँखें और अधिक सूर्ख हो उठीं।

“आप मेरी कब्र पर दिये जलाने जरूर आना।”
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